निकाह

निकाह

  • Apr 14, 2020
  • Qurban Ali
  • Tuesday, 9:45 AM

नबी करीम मुहम्मद (सल्लल्लाहू अलैहे व सल्ल्म) ने फरमाया कि, 'निकाह मेरी सुन्नत है’, इसका मतलब निकाह करना या शादी करना सिर्फ एक कानूनी औपचारिकता ही नही है बल्कि ये पैगम्बर मोहम्मद (सल्लल्लाहू अलैहे व सल्ल्म) की सुन्नत पर अमल करना भी है। ये वास्तविकता शादी करने की अहमियत को कम नहीं करती है, लेकिन स्पष्ट करती है कि अगर कोई व्यक्ति शादी करने के काबिल नहीं है, तो उसने कोई गुनाह नहीं किया है। इस्लाम में शादी दो लोगों के बीच कानूनी समझौता है। निकाह की शर्तें कुछ भी हो सकती है। लेकिन ये शर्तें इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ ना जाती हों। ये कोई पवित्र संस्कार नहीं है जो दो लोगों को हमेशा के लिए बंधन में बांधता है। इसका मतलब ये है कि कुरान की सूरे तलाक़, सूरे अल-बक़रा और सूरे अल-निसा में दर्ज विशेष शर्तों की बुनियाद पर समझौते को खत्म किया जा सकता है। निकाह के वक्त औरत व मर्द दोनों से पूछा जाता है कि क्या उन्हें निकाह कुबूल है, इसका मतलब है कि बिना इनकी सहमति के निकाह अमान्य है। कुरान मोमिनों को हिदायत देता है कि वो औरतों से ज़बरदस्ती शादी न करें। ‘मोमिनो! तुमको जायज़ नहीं कि ज़बरदस्ती औरतों के वारिस बन जाओ (4:19)। निकाह के वक्त दो गवाहों का होना लाज़मी है। ये दो मर्द या दो औरतें होनी चाहिए, जो मुसलमान हों और बालिग़ भी हों।रिवाज के मुताबिक एक कानूनी वली (अभिवावक) मौजूद होना चाहिए। शादी के ख्वाहिशमंद मर्द और औरत को बराबर दर्जे का होना चाहिए। शादी के समय दूल्हें की ओर से दुल्हन को दिया जाने वाला महेर या धन भी निकाह की शर्तो में से एक शर्त है और इस पर दोनों पक्षों को राज़ी होना चाहिए। जब औरत इजाज़त दे दे तो जो निकाह पढ़ा रहा है उसे चाहिए कि वो पहले निकाह का खुत्बा पढ़े और उसे अस्तग़्फार भी पढ़ना चाहिए। महेर की जिस रकम पर सहमति हुइ है उसका भी ऐलान किया जाना चाहिए। इसके अलावा निकाह की कुछ अलिखित शर्तें हैं जो मानी जाती हैः दूल्हा और दुल्हन शादी के लायक उम्र के होने चाहिए।

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