आदाब ए जिंदगी

अज़ान व इकामत की सुन्नते

1 अज़ान व इकामत किबले रू (ओर) कहना सुन्नत है

2 अज़ान के अलफ़ाज़ को ठहर ठहर कर अदा करना और इकामत के अल्फाज़ जल्द-अज़-जल्द अदा करना सुन्नत है I

3 अज़ान में हय्य ‍‌अलस्सलाह : और हय्य अललफलाह : कहते वक़्त बाई और दाई जानिब मुह फेरना सुन्नत है लेकिन सीना और कदम किबला रुख ही रखे

4 जब अज़ान सुनो तो तिलावत, ज़िक्र की तस्बीह बंद कर दो और अज़ान का ज्वाब दो यानी आजान के कलिमात को दोहराओ  I जब मुअज्ज़ीन हय्य ‍‌अलस्सलाह : और हय्य अललफलाह : कहे तो जवाब में लाहोल वला कुवात : इल्लाबिल्लाहि कहो I

5 फजर की अज़ान में “अस्स्लातु खैरूम मिनन्नोम ”(नमाज़ सोने से बेहतर है ) के जवाब में “सद्क़त बरतत ”(नमाज़ सोने से बेहतर है ) कहा जायेगा I

6 इकामत का जवाब भी अज़ान की तरह दिया जायेगा लेकिन क़दकामतिस्स्लाह के जवाब में “अकाम्ह्ल्लाहु व अदामहा ”(अल्लाह नमाज को कायम और हमेशा रखे )

7 अज़ान खत्म होने के बाद दुरूद शरीफ पढ़ना सुन्नत है I

उचाई पर चड़ने और नीचे उतरने की सुन्नते

1 जब बुलंदी पर चड़े ख्वाह एक ही दो सीड़ी मस्जिद की हो  या अपने घर की हो तो बुलंदी की तरफ दाहिना पाँव बढ़ाये और “अल्लाहु अकबर ” कहे

2 इसी तरह जब नीचे उतरे तो बाया पाँव आगे बढ़ाए और सुबहानल्लाह कहे I ख्वाह यह नशेब (ढलाव) मामूली भी हो तो भी इस सुन्नत का सवाब हासिल करे I 

कुफ्र या गुनाह के वसावित के वक़्त यह पढना सुन्नत है

वसाविस (भ्रम) के वक़्त की सुन्नते :

1 अऊज़ु बिल्लाहि मिनश शैता निर्रजीम (में अल्लाह की शैतान मरदूद से पनाह चाहता हूँ ) पढ़े और आमंतु बिल्लाहि व रसूलिही, मिरकात जि० / 137 (में तो ईमान ले आया अल्लाह और उसके रसूल पर )

2 दूसरी सुन्नत यह है की ज़ात हक तआला में गौर न करे , तफ़क्कुर (चिन्तन) का ताल्लुक खलक से है न की खालिक से I “कमा क़ाल तआला शानुहु यतफ़क्करून फ़ी खल्किस्समावाति वलअर्ज़ी ”                                -मसाइलुस्सुलूक (बयानुल कुरान )

खाने की चंद सुन्नते

1 दस्तरख्वान बिछाना

2 दोनों हाथ गटटो तक धोना

3 बिस्मिल्लाह पढना बुलंद आवाज़ से                                       - शामी जि ०

4 दाहिने हाथ से खाना

5 दाहिने हाथ से खाना

6 खाने की मजलिस में जो शख्स सबसे ज्यादा बुजुर्ग और बड़ा हो उससे खाना शुरू कराना

7 खाना एक किस्म का हो तो अपने सामने से खाना

8 अगर कोई लुकमा गिर जाए तो उसे साफ़ करके खाना

9 टेक लगाकर न खाना

10 खाने में कोई एब ना निकालना

11 जूते उतार कर खाना

12 खाने के वक्त उकडू बेठना ताकि दोनों घुटने खड़े हो और सुरीन ज़मीन पर हो या एक घुटना खड़ा हो और दूसरे घुटने को बिछाकर कअदे की तरह बैठे और आगे की तरफ ज़रा झुक कर  बैठे

13 खाने के बाद बर्तन व प्याला व प्लेट को साफ़ करलेना इसलिए की बर्तन उसके लिए मग़फिरत की दुआ करता है

14 खाने के बाद की दुआ पढना –“अलहम्दु लिल्लाहिल्लज़ी अतअमना व सकाना व जअलना मिनल मुस्लिमीन ”(तमाम तारीफे अल्लाह के लिए है जिसने खिलाया पिलाया और मुसलमान बनाया   )

15 पहले दस्तरख्वान उठाना फिर खुद उठाना

16 दस्तरख्वान उठाने की दुआ पढना – “अलहम्दु लिल्लाहि हमदन कसीरन तय्यिबन मुबारकन फ़ीही ग़ैर मुकफ्फिन व ला मुवद्दईन वला मुस्तगन अनहु रब्बना  ” (सब तारीफे अल्लाह के लिए है ऐसी तारीफ़ जो बहुत ही पाकीज़ा और बा बरकत है , ए हमारे रब हम इस खाने को काफी समझ कर या बिलकुल रुखसत करके या उससे ग़ैर मोहताज़ होकर नहीं उठा रहे है )

17 दोनों हाथ धोना

18 कुल्लि करना

19 अगर शुरू में बिस्मिल्लाह पढना भूल जाए तो यू पढ़े – “बिस्मिल्लाहि अव्व्लहू व आखिरहू  ” (अल्लाह के नाम के साथ अव्वल में भी आखिर में भी )

20 जब किसी की दावत खाए तो मेजबान को ये दुआ दे – “अल्लाहुम्म अतइम मन अतअमीन वस्की मन सकानी ” (ए अल्लाह जिसने खिलाया मुझको उसे खिला और जिसने पिलाया मुझको उसे पिला )

21 सिरके का इस्तिमाल करना सुन्नत है जिस घर में सिरका मोजूद हो वह घर सालन से खाली नही समझा जाता

22 खालिस गंदूम अगर कोई इस्तेमाल करता है तो उसे चाइये की इसमें कुछ जो भी मिला चाहे थोड़ी ही मिकदार में हो ताकि सुन्नत पर अमल का सवाब हासिल हो जाए

23 गोश्त खाना सुन्नत है I रसूल स ० का फरमान है कि दुनिया और आखिरत में खानों का सरदार गोश्त है

24 अपने मुसलमान भाई की दावत कुबूल करना सुन्नत है

अलबत्ता अगर ज्यादा आमदनी सूद या रिश्वत की हो या वह बदकारी में मुब्तला हो तो उसकी दावत कुबूल नहीं करनी चाहिए

25 अपने अज़ीज़ो , दोस्तों , रिश्तेदारों और मसाकीन (अनाथो )को वलीमे का खाना खिलाना सुन्नत है

26 मय्यत के रिश्तेदारों को खाना देना सुन्नत है

26 खाने के वक़्त बिलकुल खामोश रहना मकरूह है                                                         -(शामी )

लेकिन गम फ़िक्र और मर्ज़ की बाते न करे I शरह अबूदाऊद बज़ले-मजहुद 35 पर लिखा है की जब कोई शख्स बिस्मिल्लाह कह कर अपने घर में दाखिल होता है तो शैतान अपने भाइयो से कहता है कि ए भाइयो ! “ला मबीत लकुम ” तुम्हारे लिए इस घर के दरवाज़े बंद हो चुके है I रात गुजरने के लिए कोई और घर तलाश कर लो और जब खाने के वक़्त बिस्मिल्लाह पढ़ लिया जाता है तो शैतान कहता है लो अब खाने पर भी पाबंदी लग गयी यानी ना यहाँ रह सकते है न खा सकते हो अगर बन्दा घर में दाखिल होते वक़्त बिस्मिल्लाह कहना भूल जाए तो उस वक़्त शैतान अपने भाइयो से कहता है “अदरकतुमुलमबीत ” तुमने घर पा लिया रात गुजरने के लिए और अगर वह बन्दा खाते वक़्त भी बिस्मिल्लाह पढना भूल जाए तो शेतान कहता है “अदरकतुमुल मबीत वल अशा  ”यानी कयाम के साथ साथ तआम (खाने ) की भी इजाज़त है I

जुम्मे के दीन के नो अमाल

1 सुबह को और दिनों से कुछ पहले उठाना

2 गुस्ल करना I

3 साफ़ कपडे पहनना I

4 मस्जिद में जल्द अज़ जल्द जाने की फ़िक्र करना I

5 मस्जिद पैदल जाना I

6 इमाम के करीब बेठने की कोशिश करना I

7 अगर सफे पुरी हो जाए तो सफों को फांद कर आगे न बढ़ना I

8 अपने कपड़ो से या बालो से  लहव व लअब (खेल-कूद) न करना I

9 खुतबे को गौर से सुनना I

नाख़ून काटने की सुन्नते

1 दाहिने हाथ की उंगली शाहदत (कलमा ए शहादत वाली उंगली ) से शुरू करे और छुंगली तक फिर बाए हाथ की छुंगली से बाए हाथ के अंगूठे तक फिर आखिर में दाहिने हाथ के अंगूठे का नाखून काटे

और दाहिने पाँव की छुंगली से शुरू करके अंगूठे तक फिर बाए पाँव के अंगूठे से छुंगली तक तरतीबवार नाखून काटना चाहिए 

निकाह की सुन्नते

1 मसनून निकाह वह है जो सादा हो जिसमे हंगामा या ज्यादा तकल्लुफात (आड़बरो) और दहेज़ वगेरा के सामान का झगड़ा न हो

2 निकाह के लिए सालीह नेक फर्द (व्यक्ति को) तलाश करना और मंगनी या पैगाम भेजना मसनून है

3 निकाह को मशहूर करना और निकाह के बाद छुवारे या खजूर लुटाना या तकसीम करना सुन्नत है

4 जुमे के दिन मस्जिद में और शव्वाल के महीने में निकाह करना पसंदीदा और मसनून है

5 हस्बे इस्तिताअत (शमता ले अनुसार ) महर मुकर्रर (नियुक्त) करना सुन्नत है

6 शादी की रात जब बीवी से तन्हाई हो तो बीवी की पेशानी के ऊपर के बाल पकड़ कर ये दुआ पढ़े – “अल्लाहुम्म इन्नी असअलुक ख़ैरहा व ख़ैरमाफीहा व अऊज़ु बिक मिन शर्रिहा व शर्रिमा फ़ीहा  ”(ए अल्लाह में तुझसे इसकी भलाई का और जिस गरज़ के लिए ये है उसकी भलाई का सवाल करता हूँ और उसके शर (बुराइ ) से और जिस गरज़ (ज़रूरत)के लिए यह है उसके शर से पनाह मांगता हूँ )

7 जब बीवी से सोहबत (सम्भोग) का इरादा हो तो यह दुआ पढ़े ले वरना शैतान का नुत्फा (वीर्य) भी मर्द के नुतफे के साथ अंदर चला जाता है और औलाद शैतान की ख़सलतो में मुबतला (ग्रस्त) होगी I दुआ यह है –

“बिस्मिल्लाहि अल्लाहुम्म जन्ननिबनश शैतान वजन्ननिबिश शैतान मा रज़क़तना ”(में अल्लाह का नाम लेकर ये काम करता हूँ या अल्लाह हम को शैतान से बचा और जो औलाद जो तू हम को दे उसको भी शैतान से दूर रख ) इस दुआ को पढ़ लेने से जो औलाद होगी उसको शैतान कभी नुकसान न पोह्चायेगा

8 वलीमा :

शबे उरूसी (शादी की पहली रात ) गुज़ारने के बाद अपने दोस्तों अजीजो दोस्तों रिश्तेदारों और मसाकीन को वलीमे का खाना खिलाना सुन्नत है I  वलीमे के लिए ज़रूरी नहीं बड़े पैमाने पर खाना तैयार कर के खिलाये थोडा खाना इस्तिताअत (क्षमता के अनुसार ) तैयार करके दोस्तों अज़ीज़ो को थोड़ा थोड़ा खिलाना भी अदा - ए- सुन्नत के लिए काफी है

9 मर्दों के लिए साड़े चार माशा वजन से कम की चांदी की अंगूठी पहनने की इजाजत है और सोने की अंगूठी मर्दों के लिए बिलकुल हराम है I औरतो को मेहँदी इस्तेमाल करना सुन्नत है I 

पीने की सुन्नते

1 दाहिने हाथ से पीने का बर्तन पकड़ना

2 पीने से पहले अगर खड़े हो तो बैठ जाना I खड़े होकर पीना मन है

3 बिस्मिल्लाह करके पीना और पीकर अल्हम्दुल्लिलाह कहना

4 बर्तन के टूटे हुए किनारे की तरफ से न पिए

5 मशक से मुह लगाकर न पीना या कोई भी एसा बर्तन हो जिससे दफ़अतन (अचानक) पानी ज्यादा आ जाने का एह्तिमाल (शक) हो या अंदेशा हो की इसमें कोई साप या बिच्छु आ जाये

6 सिर्फ पानी पीने के बाद ये दुआ पढना भी मसनून है – “अल्हम्दु लिललाहिल्ल्ज़ी सकाना अज़बन फुरातन बिरहमतिही माअन वलमयज़अल्हु बिजुनू बिना मिल्हन उजाजा ”                                             - रूहुल मआनी पेज 1490, पारा 27

7 पानी पीकर अगर दुसरो को देना हो तो पहले दाहिने वाले को दे फिर इसी तरतीब (क्रम ) से दौर (बारी) खत्म हो I इसी तरह चाय और शरबत भी पेश करे I

8 दूध पीने के बाद ये दुआ पढ़े – “अल्लाहुम्म बारिकलना फ़ीही वज़िदना मिन्हु ” (ए अल्लाह तू इसमें हमें बरकत दे और हमको ज्यादा दे )

9 पिलाने वाले को आखिर में पीना

10 आबे ज़म ज़म खड़े हो कर पीना

 

बात – चीत और ज़ुबान के आदाब

1  ज़ुरूरत के वक़्त बात करे, और जब बोले काम की बात करे I हर वक़्त बोलना और बेकार बाते बनाना बोहोत बुरी आदत है I

2  हमेशा सच बोले , झूठ से कभी अपनी जुबान गन्दी न करे I झूठ बोहोत बड़ा गुनाह है I सच्ची बात कहने से कभी ना झिझके , चाहे कितना बड़ा नुकसान ही क्यों न हो रहा हो I

3  कभी किसी बुरी बात से जुबान गन्दी न करे , और दुसरो की बुरे न करे , चुगली न खाए , शिकायते न करे , दुसरो की नकले न उतारे I झूठा वादा न करे I किसी की हसी न उडाये , अपनी बड़ाई न जताए , अपनी तारीफ न करे , बात बात पर कसम न खाए , हमेशा दरमियानी आवाज़ से बोले , बिना वजह चीख – चीख क्र न बोले I कुरान शरीफ में है , सबसे ज्यदा नागवार गधे की आवाज़ है I

4  जो बात करे सोच समझ कर करे , बिना वजह बात को ना बढाये , और न अपने इल्म का रॉब जमाने के लिए मोटे – मोटे शब्द न बोले I ईएसआई बाते कहे जो सुनने वाला समझ जाये और अगर वो एक बार में न समझे या न सुन सके तो फिर दोहरा दे और गुस्सा न करे I

5  कभी खुशामद और चापलूसी की बात न करे , अपनी इज्ज़त का हमेशा ख्याल रखे , और कभी अपने मर्तब से गिरी हुई बात न करे I

6  ठहर - ठहर क्र सलिखे से बात करे , बात करने में तेज़ी और जल्दी न करे I हर वक़्त मज़ाक और दिल्लगी न करे , इससे आदमी की वक़त जाती रहती है I

7  कोई सवाल करे तो पूरा सवाल ख़ूब गौर से सुने और सोच समझ कर जवाब दे I यह नहीं की पूरी बात सुने बगैर अललटप जवाब देना शुरू कर दे , और अगर दुसरे से सवाल किया जा रहा हो तो खुद बढ – बढ क्र जवाब न दे I

8  कोई बात कर रहा हो तो बिच में अपनी बात न छेड़े , और अगर कोई कुछ बताना चाहे तो पहले से ही न कहे की हमें मालूम है I बड़ो से किसी बात में न झगडे I अगर किसी से कोई मामला करना हो तो झगडे की नौबत न आने दे I इन्साफ और सलिखे की बात ही हमेशा करे I

9  हर हाल में इन्साफ की बात ही कहे I अगर अपनी गलती हो तो फ़ौरन ही मान ले I अपनी बात की पच न करे और अगर दुसरे की गलती हो तो गुस्से में गलत बात न कहे I

10  बात करते वक़्त इशारा न करे की दुसरे को बदगुमानी न हो और वह कोई गलत बात समझ जाए I दुसरो की बाते कान लगाकर न सुने I जो बाते छिपाने की हो वो किसी से न कहे I दुसरे का राज़ छुपाना अमानतदारी है I

11 कम कहे और ज्यादा सुने I किसी बुज़ुर्ग से लोगो ने कहा , आप सुनते बोहोत ज्यादा है और बोलते बोहोत कम है I फरमाया हां ज्यादा सुनना चाहिए और कम बोलना चाहिए I देखते नहीं की अल्लाह मिया ने कान दो दिए है और जुबान एक I

 

बालो की सुन्नते

1 नबी करीम (स०) के बालो की लम्बाई कानो के दरमियान तक और दूसरी रिवायत (कथन) के मुताबिक़ कानो तक और एक और रिवायत के मुताबिक़ कानो की लो तक थी , इनके अलावा कंधो तक या कंधो के करीब तक होने की भी रिवायत है

2 या तो सारे सर के बाल रखे या सारा सर मुंडवाए  एक हिस्से के बाल रखना और एक हिस्से के मुंडवाना या तरशवाना मना है

3  दाड़ी को बढाने और मुछो को कम करने के मुताल्लिक (बारे में) हदीस में हुक्म वारिद (आगंतुक) दाड़ी एक मुश्त से कम कतरवाने और मुंडवाने को हराम फरमाया गया है अल्लाह तआला हर मुसलमान को इससे महफूज़ रखे

4 जेरे नाफ (नाभि के नीचे) बगल और नाक काटना , चालीस दिन गुज़र जाए और सफाई ना कराये तो गुनाहगार होगा

5 बालो को धोना , तेल लगाना और कंघा करना मसनून है , लेकिन एक आध दिन बीच में छोड़ देना चाइये

6 जब तेल डालने का इरादा हो तो बाए हाथ की हथेली में लेकर पहले अबरुओ (भावो) पर फिर आँखों पर और फिर सर में तेल डाले

7 सर में तेल डालने की इब्तिदा पेशानी से करे

8 कंघा करे तो पहले दाहिनी तरफ से शुरू करे   

बिमारी, इलाज और अियादत की सुन्नते

1 बीमारी में दवा और इलाज करवाना मसनून है I इलाज कराता रहे मगर बीमारी की शिफा में नज़र अल्लाह ही पर रखे I

2 कलोंजी और शेहद के साथ इलाज करना सुन्नत है I हुजुर (स०) का इरशाद है कि अल्लाह तआला ने इन दोनों चीजों में शिफा रखी है I इन दोनों की तारीफ़ में बहुत – सी हदीसे आई है I

3 इलाज के दौरान नुकसान पहुचाने वाली चीजों से परहेज़ करना

4 अपने बीमार भाई की अियादत (बीमार पुरसी) के लिए जाना सुन्नत है

5 बीमार पुरसी करके जल्द लौट आना सुन्नत है I कही तुम्हारे ज्यादा देर बैठने से बीमार मलूल (दुखित) और रंजीदा न हो जाए या घर वालो के काम में खलल न पड़े I

6 बीमार की हर तरह तसल्ली करना मसनून है I मसलन उससे यह कहे कि इंशाल्लाह तुम जल्द अच्छे हो जाओगे I खुदा तआला बड़ी कुदरत वाले है I कोई डर या खौफ़ पैदा करने वाली बात बीमार से न कहे I

7 बीमार पुरसी रात में भी जायज़ है इसको जो लोग मनहूस कहते है वे ग़लती पर है I

इसी तरह बिमारी की खबर मिले तो जब दिल चाहे अिआदत को जाए बेअसल बात है I

8  जब किसी मरीज़ की अिआदत करे तो उससे यू कहे “ला बास तुहूरून इंशाल्लाह ” (कोई घबराने की बात नहीं यह बिमारी ज़ाहिरी और बातिनी आलूदगियो-गुनाहों से पाक करने वाली है) फिर उसकी शिफायाबी के लिए सात बार यह दुआ पढ़े – “असअलुल्लाहल अज़ीम रब्बल अ़रशिल अज़ीमी अय्य्शफिक” (में खुदाए बुज़ुर्ग व बरतर से दुआ करता हूँ जो अर्शे अज़ीम का मालिक है कि वह तुझे शिफ़ा दे दे ) हुजुर (स० ) ने इरशाद फरमाया है कि सात मर्तबा इसके पढ़ने से मरीज़ को शिफा होगी हां अगर उसकी मौत ही आ गयी तो अलग बात है I

 

मस्जिद में दाखिल होने की सुन्नते

1 दाहिना पैर मस्जिद में पहले दाखिल करना

2 बिस्मिल्लाह पढना

3 दूरुदशरीफ पढना मसलन – “अस्स्लातु वस्सलामु अला रसूलिल्लाहि अलिही व सल्लम  ” फिर यह दुआ पढना

4 “अल्लाहुम्म्फ़ तहली अबवाब रेहमतिक ” (या अल्लाह अपनी रेहमत के दरवाज़े खोल दे )

5 एतिकाफ की नियत करना

मिस्वाक की सुन्नते

1 हर वुजू करते वक़्त मिस्वाक करना सुन्नत है - तरगीब , तरहिब

 

2 मिस्वाक एक बालिश्त से ज्यादा लम्बी न हो - बहरुर्राईइक

मुआ़शरत की सुन्नते

1 सलाम करना मुसलमानों के लिए बहुत बड़ी सुन्नत है हुज़ुर (स०) ने इसकी बहुत ताकीद फरमाई है I हर मुसलमान को सलाम करना चाहिए क्युकी सलाम इस्लामी हक है किसी के जानने और शनासाई (जान पहचान ) पर मौकूफ (निर्भर ) नही I

2 बुखारी और मुस्लिम की एक हदीस में है की रसूलल्लाह (स०) का गुजर बच्चो पर हुआ तो उनको सलाम किया इसलिए बच्चो को भी सलाम करना सुन्नत है I

3 सलाम करने का सुन्नत तरीका यह है की जुबां से अस्सलामु अलैकुम कहे हाथ से या सर से या उंगली के इशारे से सलाम करना या उसका जवाब देना सुन्नत के खिलाफ है I

4 किसी मुसलमान भाई से मुलाक़ात हो तो सलाम के बाद मुसाफह करना मसनून है

5 किसी मजलिस में जाओ तो जहा मौका मिले जगह मिले बेठ जाओ दुसरो को उठा कर खुद बैठ जाना गुनाह और मकरूह है I

6 अगर कोई शख्स मजलिस में आये और जगह न हो तो पहले से बेठने वालो को चाहिये की ज़रा मिलकर बैठ जाए और आने वाले मोमिन भाई के लिए गुंजाइश निकाल ले I

7 कही अगर सिर्फ तीन आदमी है तो एक को छोड़ कर काना फूसी की इजाज़त नही है, क्युकी ख्वा़ह मख्वा़ह  उसका दिल (शुबहात की वजह से ) रंजीदा होगा और मुसलमान भाई को रंजीदा करना बहुत बड़ा गुनाह है I

8 किसी के घर पर जाना हो तो उससे इजाजत लेकर दाखिल होना चाहिये I

9 अगर किसी का अच्छा नाम सुनो तो उसे अपने मक़सद के लिए नेक फाल समझना सुन्नत है और खुश होना भी सुन्नत है I बदफाली लेने को सख्त मना फरमाया है I जेसे रस्ते में चलते चलते रास्ते में छींक आई तो ये समझना कि काम न होगा या कव्वा बोला, या बंदर नजर आये, या उल्लू बोला, तो इनसे आफ़त आने में गुमान करना सख्त नादानी और बिलकुल बे असल और गलत गुमराही का अकीदा है I इसी तरह किसी को मनहूस समझना बहुत बुरा है I सुन्नत पर अमल करने से बन्दा अल्लाह तआ़ला का महबूब हो जाता है इसलिए एहतेमाम से इस पर अमल करना चाहिए

मुलाकात के आदाब

लोगो से मेल जोल रखने और एक दुसरे के काम आने के लिए कभी हम किसी से मिलने जाते हे और कभी हमारे यहाँ कोई मिलने आता हे I हर काम का एक सलीका और कुछ आदाब होते हे I मुलाकात के वक़्त इन बातो का ध्यान रखना चाहिए I

 

1 जब किसी से मुलाक़ात हो तो सलाम में पहल करे ,इसका बड़ा सवाब हे I फिर मुसाफाह करे यानी हाथ मिलाये और मिजाज़ पूछे I मुनासिब हो तो घर वालो की खेरियत भी मालूम करले I

2  जब किसी से मिलने जाए तो साफ़ सुथरे कपडे पहनकर जाए I मेले कुचेले कपडे पहने किसी के यहाँ जाना बड़ी ख़राब बात है I

3  जब किसी से  मिलना हो तो पहले उससे वक़्त लेले , उसका फुर्सत का वक़्त मालूम करले I यो ही वक्त बेवक्त किसी के यहाँ जाना मुनासिब नहीं I इससे दुसरो को भी हर्ज होता है और खुद भी आदमी दुसरो की नज़रो में गिर जाता है I

4  जब कोई हमसे मिलने आये तो मुस्कुराते चेहरे से उसका इस्तकबाल करे , उसे इज्ज़त से बेठाए ,खेरियत मालूम करे और मुमकिन हो तो मुनासिब खातिरदारी भी करे I

5  किसी से मिलने जाये तो काम की बात करे , बेकार बातो में वक़्त बर्बाद न करे कि उसको हमारा बेठना बोझ मालूम हो I

6  किसी के यहाँ जाए तो कभी – कभी कोई चीज़ तोहफे के तौर पर साथ लेते जाये I तोहफा देने से मोहब्बत बढती है I

7  किसी के मकान में यू ही न घुस पड़े , पहले इजाज़त ले , फिर सलाम करके अन्दर जाये , और अगर तीन आवाज़े देने पर कोई जवाब ना आये तो ख़ुशी – ख़ुशी वापस आ जाये I

8 जब कोई ज़रूरतमंद मिलने आये तो ध्यान से उसकी ज़रूरत मालूम करे I अगर मुमकिन हो तो उसकी ज़ुरूरत पूरी करदे और अगर पूरी न कर सके तो बिना वजह उसे उम्मीद न दिलाये I खुद किसी के यहाँ अपनी ज़ुरूरत लेकर जाए तो मुनासिब अंदाज़ में अपनी मुसीबत बयान कर दे I पूरी हो जाये तो शुक्रिया अदा करे और पूरी ना हो सके तो ख़ुशी ख़ुशी वापस आ जाये I

9 सिर्फ यही ख्वाहिश न रखे कि दुसरे ही हमसे मिलने आये I खुद भी दुसरे से मिलने जाए आपस में मेल – जोल बढाना , एक – दुसरे के काम आना अच्छी बात है   

लिबास की सुन्नते

1 हुजुर (स ० ) को सफ़ेद रंग का कपड़ा पसंद था

2 क़सीम कुर्ता या सदरी वगेरह पहने तो पहले दाया हाथ आस्तीन में डाले, फिर बाया हाथ इसी तरह पायजामा और शलवार के लिए पहले दाया पैर फिर बाया पैर

3 नया कपड़ा पहनकर ये दुआ पढ़े – “अलहम्दु लिल्लाहिल्ल्ज़ी कासानी हाज़ा व रज़क़नीहि मिन ग़ैरि होलीमम्मिनी व ला क़ुव्वतिन  ” (शुक्र है अल्लाह जल्ल शानहू का जिसने मुझे ये कपडा पहनाया और बगैर मेरी ताक़त और क़ुव्वत के यह मुझको अता फरमाया )

4 अमामे के नीचे टोपी रखना सुन्नत है , बगैर टोपी के अमामा बांधना खिलाफे सुन्नत है

5 सियाह साफा बांधना मसनून है I शिमला (तुर्रा) छोड़ना भी सुन्नत है I  शिमले की लम्बाई एक हाथ या उससे ज्यादा भी साबित है

6 कपड़े उतारते वक्त बिस्मिल्लाह कहे और इब्तिदा (शुरु) बाई जानिब से करे कमीस या कुरता वगेराह उतारना हो तो पहले बाया हाथ आस्तीन से निकाले फिर दाहिना हाथ

इसी तरह शलवार और पैजामा उतारते वक्त पहले बाया पैर बाहर निकाले फिर दाहिना

7 जूता पहले दाहिने पाँव फिर बाए पैर में पहने

8 नया जूता पहने तो ये दुआ पढ़े – “अल्लाहुम्म इन्नी असअलुक मिन खैरिही व खैरी मा हुव लहू व अऊजुबिक मिनशर्रिही व शिर्री माहुव लहू ”(ए अल्लाह में तुझ से इसकी भलाई और जिस गर्ज़ के लिए यह है उसकी भलाई का सवाल करता हूँ और उसके शर (बुराई ) से पनाह मांगता हू और जिस गर्ज़ के लिए है उस के शर से पनाह मांगता हूँ  )

वुजू की सुन्नते

1 वुजू की नियत करना I मसलन यह की में नमाज़ के मुबाह ( हलाल ) होने के लिए वुजू करता हूँ I

2 “ बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहमा निर्रहीम ” पढ़कर वुजू करना बअज़ रिवायत में वुजू की बिस्मिल्लाह इस तरह आई है “बिस्मिल्लाहिल अज़ीम वल हम्दुलिल्लाहि अला दीनिल इस्लाम

( शुरू करता हु अल्लाह के नाम से जो बड़ा है और तमाम तारीफे अल्लाह के लिए उपर दीने इस्लाम के )

3 दोनों हाथो को पंहुचो तक तीन बार धोना

4 मिस्वाक करना, अगर मिस्वाक न हो तो उंगली से दातो को मलना I

5 तीन बार कुल्लि करना

6 तीन बार नाक में पानी देना

7 तीन बार ही नाक सिनकिना

8 हर उज्व (अंग ) को तीन बार धोना

9 चेहरा धोते वक़्त दाढ़ी का खिलाल करना

10 हाथो और पेरो को धोते वक़्त उंगलियों का खिलाल करना

11 एक बार तमाम सर का मसह के साथ कानो का मसह करना

12 सर के मसह के साथ कानो का मसह करना

13 आज़ा-ए-वुजू को मलमल कर धोना

14 पै दर पै (लगातार ) वुजू करना

15 तरतीब वार वुजू करना

16 दाहिनी तरफ से पहले धोना

17 वुजू के बाद कलमा शहादत पढ़े  – “अशहदु अल्ला इलाह इल्लल्लाहु व अशहदु अन्न मुहम्मदन अब्दुहु व रसुलुह  ”

(में गवाही देता हूँ की अल्लाह ही सिर्फ इबादत के लायक है और मुहम्मद स० उसके बन्दे और रसूल है )

18 फिर यह दुआ पढ़े – “अल्लाहुम्म्ज अलनी मिनत्तव्वाबीन वज अलनी मिनल मुतत ह्हिह्ररीन ” ( ए अल्लाह मुझे तौबा करने वालो और खूब पाकी हासिल करने वालो में बनाइये )

सफर की सुन्नते

1 जहा तक हो सके कम अज़ कम दो आदमी सफर में जाए तन्हा आदमी सफर न करे

2 सवारी के लिए रकाब में पाँव रखे तो “बिस्मिल्लाह ”कहे

3 सवारी पर अछि तरह बेठ जाए तो तीन मर्तबा “अल्लाहुअकबर ”कहे, फिर ये दुआ पढ़े- “सुबहानल्ल्ज़ी सख्खरलना हाज़ा वमा कुन्ना लहू मुक़रिनीन व इन्ना इला रब्बिना लमुन क़लिबुन ” (पाक़ है वो ज़ात जिसने इस सवारी को क़ाबू में कर दिया हम तो उसको काबू में नहीं ला सकते थे और हम तो लौट क्र अपने रब के पास ही जायेंगे )

4 फिर ये दुआ पढ़े- “अल्लाहुम्म हव्विन अलैना हाज़स्सफर व अतवि अन्ना बुअदहू अल्लाहुम्म अन्तस्साहिबु फिस्सफरी वल ख़लीफतु फिल अहलि अल्लाहुम्म इन्नी अऊजुबिक मिंवव असाइस्सफ़रि वकाबतिल मनज़रि व सूइल मुनक़लबि फिलमालि वल अहलि वलवलद ” (ए अल्लाह आसान कर  दीजिये हम पर इस सफ़र को और तय दीजिये हम पर दराजी इसकी ए अल्लाह आप ही रफ़िके सफ़र है I सफर में और खबरगीरी में घर बार की I या अल्लाह में पनाह चाहता हूँ आपकी, सफर की मुशक्कत से और बुरी हालत देखने से और वापस आकर बुरी हालत पाने से माल में और घर में और बच्चो में )

5 मुसाफ़रत में ठहरने की ज़रूरत पेश आ जाये तो सुन्नत यह है कि रास्ते से हट कर कयाम करे I रास्ते में पढाव न डाले कि आने जाने वालो का रास्ता रुके और उनको तकलीफ हो I

6 सफ़र के दौरान जब सवारी बुलंदी पर चढ़े तो तीन मर्तबा अल्लाहु अकबर कहे

7 जब सवारी नशेब (ढलाव) या पसती में उतरने लगे तो तीन बार सुबहानल्लाह कहे

8 और जब उस शहर में दाखिल होने लगे तो यह दुआ पढ़े –

“ अल्लाहुम्म र ज़ु कना जनाहा व हब्बिबना इला अहलिहा व ह्ब्बिब सालिही अहलिहा इलैना ”(या अल्लाह नसीब कीजिये हमें समरात इसके और अज़ीज़ कर दीजिये हमें इस शहर के नजदीक और मुहब्बत दीजिये हमें इस शहर के नेक लोगो की)

9 रसूलल्लाह(स० ) का इरशाद है की जब सफर की ज़रूरत पूरी हो जाये तो अपने घर लौट आये I बाहर सफर में बिलाज़रूरत (बगैर ज़रूरत ) ठहरना अच्छा नहीं

10 दूर दराज़ के सफर से बहुत दिनों बाद लौटे तो सुन्नत यह है की अचानक घर में दाखिल न हो बल्कि अपने आने की खबर करे और कुछ देर बाद घर में दाखिल हो I

एसे ही ज्यादा रात गये अगर देर से घर आये तो उसी वक़्त घर में न जाए बल्कि बहतर है कि सुबह मकान में जाए अलबत्ता अहले खाना (घरवाले) तुम्हारे देर से आने से आगाह हो I और उनको तुम्हारा इन्तिज़ार भी हो तो उसी वक्त घर में दाखिल होने में कोई हर्ज नही I इन मसनून तरीको पर अमल करने से दीन व दुनिया की भलाई हासिल होगी

11 सफर से लौट कर आने वाले के लिए यह मसनून है कि घर में दाखिल होने से पहले मस्जिद में जाकर दो रकअत नमाज़ पढ़े

    

सोकर उठने की सुन्नते

1 नींद से उठते ही दोनों हाथो से चेहरा और आखो को मलना ताकि नींद का खुमार (नशा ) दूर हो जाए

 

2 सुबह जब आँख खुले तो तीन बार “अलहम्दु लिल्लाह ”(तमाम तारीफ़ अल्लाह के लिए है ) कहे और कलम “ला इलाह इल्लालाहु मुहम्मदुर रसूलुल्लाह ” पढ़कर यह दुआ पढ़े – “अलहम्दु लिल्लाहिल्ल्ज़ी अह्याना बअ द मा अमातना व इलैहिन्नुशूर ”(बुखारी अबू दाऊद निसाई ) (उस अल्लाह तआला का बहुत बहुत शुक्र है जिसने हमें मारने के बात जिला दिया और उसी की तरफ मरकर जाना है )

 

3 जब आप सोकर उठे तो मिस्वाक कर ले I मुसनद अहमद , अबू दाऊद (फायदा ) वुज़ू में दुबारा मिस्वाक की जायेगी सोकर उठते ही मिस्वाक कर लेना अलाहिदा सुन्नत है

 

4 पायजामा या सलवार पहने तो अव्वल दाहिने पाँव में फिर बाए पाँव में , कमीज़ पहने तो पहले दाई आस्तीन में हाथ डाले फिर बाए आस्तीन में , इसी तरह सदरी I एसे ही जूता पहले दाए पाँव में फिर बाए पाँव में पहने और जब उतारे तो पहले बाई तरफ का उतारे फिर दाई तरफ का और बदन पहनी हुई हर चीज़ के उतारने का यही तरीका सुन्नत है

 

5 बर्तन में हाथ डालने से पहले तीन मर्तबा हाथो को अच्छी तरह से धो ले

 

6 तहारत के लिए पानी और ढेले दोनों को ले जाए – तीन ढेले या पत्थर मुस्तहब है अगर पहले से बेतुलखला(टॉयलेट या शोचालय) में इन्तेजाम किया हुआ हो तो काफी है फ़्लैश पाखानो में ढेलो की वजह से दिक्कत हो रही हो तो ढेले न ले जाए मुफ़्ती रशीद अहमद साहिब ने टायलेट पेपर इस्तिमाल करने का मशवरा दिया है I ताकि फर्श खराब न हो I

 

7 हुजुर (स.) सर ढांप क्र और जूता पहनकर बेतुलखला तशरीफ़ ले जाते थे I

 

8 बैतूलखला में दाखिल होने से पहले यह दुआ पढ़े “बिस्मिल्लाहि अल्लाहुम्म इन्नी अऊजबिक मिनल ख़ुबुसी वलखबाईस ”(ए अल्लाह में तेरी पनाह चाहता हु खबीस जिनो से मर्द हो या औरत ) फायदा : मुल्ला अली कारी (र०) ने मिरकात में लिखा है कि इस दुआ की बरकत से बैतूलखला के खबीस शेतान और बंदे के दरमियान पर्दा हो जाता है जिससे वे शर्मगाह नहीं देख पाते

 

9 बेतुलखला में दाखिल होते वक़्त पहले पहले बाया कदम रख ले और कदमचे पर सीधा पैर रखे और उतरने में बाया पैर पहले कदमचे से नीचे रखे

 

10 जब बदन नंगा करे तो आसानी के साथ जितना निचे होकर खोल सके इतना ही बेहतर है

 

11 बैतुलखला से निकलते वक़्त दाहिना पैर बाहर निकाले और यह दुआ पढ़े – “गुफ़रानक अलहम्दु लिल्ला हिल्ल्ज़ी अजहब अन्निल अज़ा व आफ़ानी ” (ए अल्लाह तुझ में बख्शिश का सवाल करता हूँ सब तारीफ़ अल्लाह ही के लिए है जिसने मुझसे इज़ा (नुकसान )देने वाली चीज़ दूर की और मुझे चैन दी )

 

12 बेतुलखला जाने से पहले अंगूठी या किसी चीज़ पर कुरान शरीफ की आयत या हुजुर (स ०) का मुबारक नाम लिखा हो और दिखाई देता हो तो उसको उतार कर छोड़ दे

 

13 रफए हाजत (पेशाब पखाने ) के वक़्त किबले की तरफ न चेहरा करे और न उस तरफ पीठ करे                                                                                               – मिशकत

 

14 पेशाब करते वक़्त या इस्तिंजा करते वक़्त उजवे ख़ास (गुप्त अंगो ) को दाया हाथ न लगाए बल्कि बाया हाथ लगाए

 

15 पेशाब पाखानो की छिटो से बहुत बचे क्युकी अक्सर अज़ाबे कब्र पेशाब की छिटो से न बचने से होता है                                                                 - तिरमिज़ी

 

16 पेशाब करने के लिए नरम जगह तलाश करे ताकि छीटे न उठे और ज़मीन उसे ज़ज़ब करती जाए                                                                         - तिरमिज़ी

 

17 वुजू सुन्नत के मुताबिक़ घर पर करना चाहिए

 

18 सुन्नते घर पर पढ़कर जाना – मौका न हो तो मस्जिद में पढना

 

19 घर से मस्जिद या कही भी जाने के लिए बाहर निकल क्र दुआ पढना – “बिस्मिल्लाहि तवक्क्ल्तु अलल्लाहि ला हौल वला कुव्वत इल्लाह बिल्लाह ” (में अल्लाह का नाम लेकर निकला मेने अल्लाह पर भरोसा किया गुनाहों से बचना और नेकियो की कुव्वत अल्लाह के ही बस में है )

 

20 इतमिनान से जाना दौड़ कर न जाना (यह सिर्फ मस्जिद के लिए है )

 

21 मस्जिद से या कही से भी घर में आने के बाद घर वालो को सलाम करना और यह दुआ पढना – “अल्लाहुम्म इन्नी असअलुक खैरल मौलजि व खैरल मखरजि बिस्मिल्लाहि वलजना व बिस्मिल्लाहि ख्ररजना व अलल्लाहि रब्बिना ” - अबू दाऊद (ए अल्लाह ! में तुझसे घर के अंदर आने और घर के बाहर जाने की खैर व बरकत का सवाल करता हूँ I हम अल्लाह के नाम के साथ ही घर में आते है और अल्लाह के नाम के साथ ही घर से बाहर जाते है , अपने परवर दिगार अल्लाह जल्ल शानुहु पर ही हमारा भरोसा है )

सोने की सुन्नते

1 नबी करीम (स०) से इन तमाम चीजों पर इस्तिराहत (लेटना ) फरमाना साबित है I

  • बोरिया
  • चटाई
  • कपडे का फर्श
  • ज़मीन
  • तख़्त
  • चारपाई
  • चमड़ा और खाल

 

2 बा वुजू सोना सुन्नत है I

3 जब अपने बिस्तर पर आये तो उसे कपड़े के किनारे से झाड़ना सुन्नत है I

4 सोने से पहले दुसरे कपडे तब्दील करना सुन्नत है I

5 सोने से पहले “बिस्मिल्लाह ” कहते हुए दर्ज़ ज़ेल उमूर अंजाम दे

  • दरवाज़ा बंद करे
  • चिराग बुझा दे
  • मशकीज़े का मुह बांधे
  • बर्तन ढाक दे                                                          

                                                                                   - सिहाहेसित्ता

6 इशा की नमाज़ के बाद किस्सा कहानियों की मुमानअत है I

नमाज़ पढ़कर सो रहना चाहिये I अलबत्ता वअज़ व नसीहत के लिए या रोज़ी मआश के लिए जागने की इजाज़त है I

7 सोते वक़्त हर आख में तीन सलाई सुरमा लगाना औरत और मर्द दोनों के लिए मसनून है I

8 जब सोने का इरादा हो तो कुरान शरीफ की आयत और सूरते पढो मसलन –

अलहम्दु शरीफ , आयतुल कुर्सी , सूरः मुल्क , चारो कुल और दुरूद शरीफ अगर ज्यादा न पढ़ सको तो एक दो सूरत ज़रूर पढ़ लो की यह दुनिया व आख़िरत की भलाई और नेक बख्ति की बुनियाद है I

9 सोने से पहले तस्बिहे फातेहा (रजि ०) का एहतिमाम करे यानी सुबहानल्लाह 33 बार और अल्लाहु अकबर 34 बार पढ़े                                        -(बुखारी,मुस्लिम,तिर्जिमी )

10 सोते वक़्त दाहिनी करवट पर क़िबला रुख सोना मसनून है पर इस तरह की सीना ज़मीन की तरफ हो और पीठ आस्मान की तरफ होना मन है क्युकी इस तरह शैतान सोता है I

11 बिस्तर पर लेट कर यह दुआ पढ़े –

“अल्लाहुम्म बिइसमिक वज़अतु ज़मबी व बिक अ़र्फ़ ऊहू इन अमसकत नफ़सी फ़ग़फि़र लहा व इन अरसलतहा फ़हफज़ हां बिमा तह  फ़जु बिहि इबादकस्सालिहीन  ” (तेरे नाम के साथ ही मेने बिस्तर पर अपना पहलु रखा है और लेटा हूँ और तेरे ही नाम से उठूँगा अगर तू मेरी जान को रोक ले सोते में रूह कब्ज़ कर ले तो उसकी मग़फिरत कर दीजिये और अगर तू उसको छोड़ दे (और जिंदा उठाये ) तो उसकी एसी ही हिफाज़त कीजिये जैसे कि तू अपने नेक बन्दों की हिफाजत करता है I)

12 और फिर यह दुआ पढ़े –

“अल्लाहुम्म बिइसमिक अमूतु व अहया ”                                          - बुखारी, मुस्लिम

(ए अल्लाह तेरे ही नाम पर मरूँगा और तेरे ही नाम पर जिंदा हूँ )

13 सोने से पहले इस्तिग़फा़र भी पढ़े –

“असतग फिरुल्ला हल्ल्ज़ी ला इला ह इल्ला हुवल हय्युल क़य्युमु व अतूबुइलैहि ”      - तरमिज़ी

(में उस अल्लाह से मगफिरत का तलबगार हू जिसके सिवा कोई माबूद नहीं )वह (हमेशा हमेशा जिंदा रहने वाला और कायम रखने वाला है और में उसी की तरफ लौटता हु (तौबा करता हूँ ) अगर ख्व़ाब में कोई डरावनी बात नजर आये तो आख खुल जाए तो – “अऊज़ु बिल्लाहि मिनश-शैतानिर-रजीम” तीन बार पढ़कर बाई तरफ थुथकार दो और करवट बदल कर  सो जाओ I

अगर किसी को फुरसत मयस्सर हो तो इत्तिबाए सुन्नत में दोपहर को कुछ देर लेट जाना सुन्नत है I नींद आये या न आये I