मेहर

मेहर

  • Apr 14, 2020
  • Qurban Ali
  • Tuesday, 9:45 AM

मेहर वो रक़म है जो किसी लड़की का होने वाला शौहर लड़की को देता है लेकिन यह रक़म लड़की तय करती है। इस मेहर को ना तो वापस लिया जा सकता है और ना ही माफ़ करने के लिए लड़की पे दबाव डाला जा सकता है। इस रक़म को निकाह के पहले अदा किया जाना चाहिए या फिर लड़की जैसी शर्त रखे उसके अनुसार अदा किया जाना चाहिए। लड़की अगर यह रक़म बाद में लेने के लिए तैयार अपनी मर्ज़ी से है तो ठीक वरना इस रकम को अदा किये बिना आप उसके साथ शौहर बीवी की हैसीयत से नहीं रह सकते। और स्त्रियों को उनके मेहर ख़ुशी से अदा करो। हाँ, यदि वे अपनी ख़ुशी से उसमें से तुम्हारे लिए छोड़ दें तो उसे तुम अच्छा और पाक समझकर खाओ। (क़ुरान ४:४) महिला के पारिवारिक अधिकारों की रक्षा में क़ुरान पुरुषों को आदेश देता है कि वे मेहर अदा करें और वह भी स्वेच्छा तथा प्रेम से। मेहर पत्नी की क़ीमत और मूल्य नहीं बल्कि पति की ओर से उपहार और पत्नी के प्रति उसकी सच्चाई का प्रतीक है। इसी कारण मेहर को सेदाक़ भी कहते हैं जो सिद्क़ शब्द से निकला है जिसका अर्थ सच्चाई होता है। मेहर पत्नी का अधिकार है और वह उसकी स्वामी होती है। मेहर शादी के पहले तय होता है जिसके तय किये बिना निकाह संभव नहीं क्यूँ की निकाह के समय लड़की कहती है " मैंने खुद को तुम्हारे निकाह में दिया एक तय की हुयी मेहर की रक़म पे और लड़का फ़ौरन कहता है मैंने कुबूल किया, यह कहे बिना निकाह नहीं हो सकता। हाँ अगर किसी कारणवश लड़की महर तय नहीं कर सकी या तय ना करना चाहे तो भी महर की एक रक़म खुद से तय हो जाती है जिसे "महरुल मिसल" कहते हैं और इसकी रक़म ज़िम्मेदार और इल्म रखने वाले बुज़ुर्ग तय करते हैं। लेकिन लड़की ने अगर कह दिया की यह रक़म वो खुद तय करेगी तो किसी और को तय करने का अधिकार नहीं रहता। इस मेहर को अदा करने के दो तरीके हैं :मुअज्जल जिसका मतलब है फ़ौरन निकाह के पहले और मुवज्जल जिसका मतलब होता है जब पत्नी मेहर की डिमांड करे।

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