निकाह-ए-हलाला

निकाह-ए-हलाला

  • Apr 14, 2020
  • Qurban Ali
  • Tuesday, 9:45 AM

हलाला मुस्लिम धर्म की एक प्रथा है, जो मुस्लिम तलाक-शुदा महिलाओ के लिए होती है , जो अपने पति से तलाक होने के बाद दोबारा शादी करना चाहती है, वह पहले किसी अन्य पुरुष से निकाह करे और वो पति उसे तलाक दे। इद्दत की अवधि ३ माह १० दिन गुज़ार कर फिर से अपने पहले पति से निकाह कर सकती है। इस पूरी प्रक्रिया को ही कहते है निकाह-ए-हलाला। “जब तुम औरतो को तलाक दे दो और उनकी इद्दत अवधि 3 माह 10 दिन पूरी होने को आ जाये तब या तो भले तरीके से उन्हें रोक लो या भले तरीके से उन्हें विदा कर दो , महज़ सताने के इरादे से उन्हें रोक रखे ये ज्यादती होगी I” (क़ुरान २:२३१) “पहले शोहर से तलाक के बाद औरत शादी कर लेती है और दूसरा शोहर भी उसे तलाक़ दे देता है या मर जाता है तब इद्दत की अवधि पूरी होने के बाद अगर दोनों पूर्व पति पत्नी को एक दुसरे पर यकीन हो तो फिर से एक हो सकते है I” (क़रान २:२३२) १४०० साल पूर्व जब इस्लाम धर्म में शरियत का क़ानून बना और उसमे निकाह-ए-हलाला को शामिल किया गया, तब यह व्यवस्था उस जमाने और समय के हिसाब से बेहतरीन व्यवस्था रही होगी , हलाला को शरियत में जोड़ने का एक ही कारण था तीन तलाक को रोकना, पति अपनी पत्नी को एक साथ तीन तलाक भूल कर भी ना दे क्योंकि तलाक के बाद पत्नी पति पर हराम हो जाती है। वह दोनों चाह कर भी एक दूसरे के साथ नहीं रह सकते। पति को अपने तलाक देने की ग़लती का एहसास हो भी जाए तो वह दोबारा पत्नी के साथ निकाह तब तक नहीं कर सकता जब तक पत्नी निकाह-ए-हलाला न करे ,यह प्रथा असल में पति को सजा देने के उद्देश्य से बनाई गयी थी।

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