Umrah (उमराह)

Umrah (उमराह)

उमराह

उमराह किसे कहते है
उमराह के मायने जियारत करने से है, उस का मतलब है की अल्लाह के घर की जियारत करना उमराह की नियत से, हज फ़र्ज़ और ज़रूरी होता है और उमराह सुन्नत है। उमराह मक्का, हिजाज, सऊदी अरब के लिए इस्लामी तीर्थयात्रा है, जिसे वर्ष के किसी भी समय हज के विपरीत किया जा सकता है, जिसमें इस्लामी चंद्र कैलेंडर के मुताबिक़ विशिष्ट तिथियां हैं। अरबी में, 'उमरा का अर्थ है "एक आबादी वाले स्थान पर जाना।"  शरिया में, उमरा का अर्थ है कि एहराम (एक पवित्र वस्त्र) ग्रहण करने के बाद, खाना-काबा का तवाफ़ करना और सफ़ा और मरवा के बीच सई का प्रदर्शन करना है। 

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيْم

اَلْحَمْدُ لِلّهِ رَبِّ الْعَالَمِيْن،وَالصَّلاۃ وَالسَّلامُ عَلَی النَّبِیِّ الْکَرِيم وَعَلیٰ آله وَاَصْحَابه اَجْمَعِيْن۔

उमराह का तरीका
तलबिया
लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक, लब्बैक ला शरीका लका लब्बैक,
इन्नल हमदा वन्निमता लका वलमुल्का ला शरीका लका

उमराह  में चार काम करने होते हैं
1. मीक़ात से एहराम बांधना
2. मस्जिदे हरम पहुंचकर तवाफ करना और दो रिकात नमाज़ पढ़ना
3. सफा मरवा की सई करना
4. सर के बाल मुंडवाना या कटवाना

1. एहराम -
मीक़ात पर या मीक़ात से पहले गुस्ल या वज़ू करके एहराम के कपड़े पहन लें (यानी एक सफेद तहबंद बांध लें और एक सफेद चादर ओढ़ लें) फिर दो रिकात नफल अदा करें और उमराह  की नियत करके किसी क़दर बुलन्द आवाज से तीन मरतबा तलबिया पढ़ें। तलबिया पढ़ने के साथ ही आप का एहराम शुरू हो गया।

(वज़हात)
औरतों के एहराम के लिए कोई खास लिबास नहीं बस गुस्ल वगैरह करने के बाद आम लिबास पहन लें और चेहरा से कपड़ा हटा लें फिर नियत करके आहिस्ता से तलबिया पढ़ें।

ममनूआते एहराम मर्द और औरतों के लिए
खुशबू लगाना, नाखुन या बाल काटना, चेहरा का छुपाना, हमबिस्तरी करना या हमबिस्तरी के असबाब जैसे बोसा वगैरह लेना, जानवर का शिकार करना और ऐसा जूता पहनना जिससे पांव के दरमयान की हडडी छुप जाए।

ममनूआते एहराम सिर्फ मर्द के लिए
सिला हुआ कपड़ा पहनना और सर को टोपी या चादर वगैरह से ढांकना।

मकरूहाते एहराम
बदन से मैल दूर करना, साबुन का इस्तेमाल करना, कंघी करना, एहराम में पिन वगैरह लगाना या एहराम को धागे से बांधना। मस्जिदे हरम पहुंचने तक बार बार थोड़ी आवाज के साथ तलबिया पढ़ते रहें क्योंकि एहराम की हालत में तलबिया ही सबसे बेहतर ज़िक्र है। मक्का पहुंचकर सामान वगैरह अपने क़यामगाह पर रख कर वज़ू या गुस्ल करके उमराह  करने के लिए मस्जिदे हरम की तरफ रवाना हो जाएं।

 

2. तवाफ -
मस्जिद में दाखिल होने वाली दुआ के साथ दायां पैर आगे बढ़ाएं और निहायत इत्मीनान के साथ मस्जिदे हरम में दाखिल हों। खाना-काबा पर पहली निगाह पड़ने पर अल्लाह तआला की बड़ाई बयान करके कोई भी दुआ मांगे। उसके बाद मताफ में काबा शरीफ के उस कोने के सामने आ जाएं जिसमें हजरे असवद लगा हुआ है और उमराह के तवाफ की नियत कर लें, मर्द हज़रात इज़तिबा भी कर लें (यानी एहराम की चादर को दाएं बगल के नीचे से निकाल कर बाएं मूंढे के ऊपर डाल लें) फिर हजरे असवद का बोसा लेकर (अगर मुमकिन हो सके) वरना उसकी जानिब दोनों हाथों के ज़रिये इशारा करके बिस्मिल्लाह अल्लाहु अकबर कहें और काबा को बाएं जानिब रख कर तवाफ शुरू कर दें। तवाफ करते वक़्त निगाह सामने रखें। काबा की तरफ सीना या पीठ न करें। मर्द हज़रात पहले तीन चक्कर में (अगर मुमकिन हो) रमल करें यानी जरा मूंढे हिलाकर और अकड़ के छोटे छोटे कदम के साथ किसी क़दर तेज़ चलें। जब काबा का तीसरा कोना आ जाए जिसे रूकने यमानी कहते हैं (अगर मुमकिन हो) तो दोनों हाथ या सिर्फ दाहिना हाथ उस पर फेरें वरना उसकी तरफ इशारा किए बेगैर यूं ही गुज़र जाएं। रूकने यमानी और हजरे असवद के दरमियान यह दुआ "रब्बना आतिना फीद्दुनिया आखिर तक" तक पढ़ें। फिर हजरे असवद के सामने पहुंचकर उसकी तरफ हथेलियों का रूख करें और कहें "बिस्मिल्लाह अल्लाहु अकबर" और हथेलियों को बोसा दें। अब आप का एक चक्कर हो गया, उसके बाद बाक़ी छः चक्कर बिल्कुल उसी तरह करें। तवाफ से फारिग हो कर तवाफ की दो रिकात नमाज़ मकामे इब्राहिम के पीछे अगर सहूलत से जगह मिल जाए वरना मस्जिद में किसी भी जगह पढ़ कर ज़मज़म का पानी पीयें और फिर एक बार हजरे असवद के सामने आकर बोसा दें या सिर्फ दोनों हाथों से इशारा करें और वहीं से सफा की तरफ चले जाएं।

3. सई -
सफा पहाड़ पर पहुंचकर बेहतर है कि ज़बान से कहें "इन्नस्सफा वलमरवता मिन शआएरिल्लाह" फिर अपना रूख काबा की तरफ करके अल्लाह की हम्द व सना बयान करें, दरूद शरीफ पढ़ें, फिर हाथ उठाकर खूब दुआएं करें। उसके बाद मरवा की तरफ आम चाल से चलें। सब्ज़ सतूनों के दरमियान मर्द हज़रात जरा दौड़ कर चलें। मरवा पर पहुंचकर क़िबला रूख करके हाथ उठाकर दुआएं मांगे। यह सई का एक फेरा हो गया। इसी तरह मरवा से सफा की तरफ चलें, यह दूसरा चक्कर हो जाएगा। इस तरह आखरी व सातवां चक्कर मरवा पर खत्म होगा। (हर मरतबा सफा और मरवा पर पहुंच कर दुआ करनी चाहिए)।

(वज़ाहत)
तवाफ से फरागत के बाद अगर सई करने में लेट हो जाए तो कोई हर्ज नहीं। सई के दौरान इस दुआ को भी पढ़ लें अगर याद हो तो "रब्बिगफिर वरहम आखिर तक"।

4. हलक़ या क़स्र (बाल मुंडवाना या छोटा करवाना) -
सई से फरागत के बाद सर के बाल मुंडवा लें या कटवा लें, मर्द के लिए मुंडवाना अफज़ल है लेकिन औरतें चोटी के आखिर में से एक पोरे के बराबर बाल खुद काट लें या किसी महरम से कटवा लें।

(वज़ाहत)
बाज़ हज़रात सर के चंद बाल एक तरफ से और चंद बाल दूसरी तरफ से काट कर एहराम खोल देते हैं, याद रखें कि ऐसा करना जायज नहीं, ऐसी सूरत में दम वाजिब हो जाएगा बल्कि या तो सर के बाल मुंडवाएं या पूरे सर के बाल इस तरह कटवाएं के हर बाल कुछ न कुछ कट जाएं।

इस तरह आप का उमराह पूरा हो गया, अब आप अपने एहराम को खोल दें। जब तक मक्का में क़याम करें कसरत से नफली तवाफ करें, उमरे भी कर सकते हैं मगर तवाफ ज़्यादा करना अफज़ल व बेहतर है।

चंद अहम मसाइल
1.   अगर आप बगैर एहराम के मीक़ात से गुज़र गए तो आगे जा कर किसी भी जगह एहराम बांध लें लेकिन आप पर एक दम लाज़िम हो गया।
2.   एहराम के ऊपर मज़ीद चादर या कम्बल डालकर और तकिया का इस्तेमाल करके सोना जायज है।
3.   एहराम की हालत में एहराम को उतार कर गुस्ल भी कर सकते हैं और एहराम को तब्दील  भी कर सकते हैं।
4.   बगैर वज़ू के तवाफ करना जाएज़ नहीं अलबत्ता सई के लिए वज़ू का होना ज़रूरी नहीं है।
5.   औरतें माहवारी की हालत में तवाफ नहीं कर सकती हैं।
6.   तवाफ और सई के दौरान अरबी में या अपनी ज़बान में जो दुआ चाहें मांगे या क़ुरान की तिलावत करें। हर चक्कर की अलग अलग दुआ मसनून नहीं है।
7.   नमाज़ की हालत में बाज़ुओं का ढांकना जरूरी नहीं है, इज़तिबा सिर्फ तवाफ की हालत में सुन्नत है।
8.   तवाफ या सई के दौरान जमात की नमाज़ शुरू होने लगे या थकन हो जाए तो तवाफ या सई को रोक दें फिर जहाँ से तवाफ या सई को बन्द किया था उसी जगह से शुरू कर दें।
9.   तवाफ नफली हो या फ़र्ज़ काबा के सात चक्कर लगा कर दो रिकात नमाज़ अदा करना न भूलें।
10.  नफली सई का कोई सबूत नहीं है।
11.  तवाफ के दौरान बवक़्ते ज़रूरत बात करना जायज है।
12.  तवाफ में मर्द के लिए रमल और इज़तिबा करना सुन्नत है।
13.  सिर्फ उमराह  के सफर में तवाफे विदा नहीं है।

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