Quran पारा 10

वालमू

وَاعْلَمُواْ أَنَّمَا غَنِمْتُم مِّن شَيْءٍ فَأَنَّ لِلّهِ خُمُسَهُ وَلِلرَّسُولِ وَلِذِي الْقُرْبَى وَالْيَتَامَى وَالْمَسَاكِينِ وَابْنِ السَّبِيلِ إِن كُنتُمْ آمَنتُمْ بِاللّهِ وَمَا أَنزَلْنَا عَلَى عَبْدِنَا يَوْمَ الْفُرْقَانِ يَوْمَ الْتَقَى الْجَمْعَانِ وَاللّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ {41}

और जान लो कि जो कुछ तुम (माल लड़कर) लूटो तो उनमें का पाचवां हिस्सा मख़सूस ख़़ुदा और रसूल और (रसूल के) क़राबतदारों और यतीमों और मिस्कीनों और परदेसियों का है अगर तुम ख़ुदा पर और उस (ग़ैबी इमदाद) पर ईमान ला चुके हो जो हमने ख़ास बन्दे (मोहम्मद) पर फ़ैसले के दिन (जंग बदर में) नाजि़ल की थी जिस दिन (मुसलमानों और काफिरों की) दो जमाअतें बाहम गुथ गयी थी और ख़़ुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर है (41)

वालमू

إِذْ أَنتُم بِالْعُدْوَةِ الدُّنْيَا وَهُم بِالْعُدْوَةِ الْقُصْوَى وَالرَّكْبُ أَسْفَلَ مِنكُمْ وَلَوْ تَوَاعَدتَّمْ لاَخْتَلَفْتُمْ فِي الْمِيعَادِ وَلَـكِن لِّيَقْضِيَ اللّهُ أَمْراً كَانَ مَفْعُولاً لِّيَهْلِكَ مَنْ هَلَكَ عَن بَيِّنَةٍ وَيَحْيَى مَنْ حَيَّ عَن بَيِّنَةٍ وَإِنَّ اللّهَ لَسَمِيعٌ عَلِيمٌ {42}

(ये वह वक़्त था) जब तुम (मैदाने जंग में मदीने के) क़रीब नाके पर थे और वह कुफ़्फ़ार बईद (दूर के) के नाके पर और (काफि़ले के) सवार तुम से नशेब में थे और अगर तुम एक दूसरे से (वक़्त की तक़रीर का) वायदा कर लेते हो तो और वक़्त पर गड़बड़ कर देते मगर (ख़ुदा ने अचानक तुम लोगों को इकट्ठा कर दिया ताकि जो बात सदनी (होनी) थी वह पूरी कर दिखाए ताकि जो शख़्स हलाक (गुमराह) हो वह (हक़ की) हुज्जत तमाम होने के बाद हलाक हो और जो जि़न्दा रहे वह हिदायत की हुज्जत तमाम होने के बाद जि़न्दा रहे और ख़ुदा यक़ीनी सुनने वाला ख़बरदार है (42)

वालमू

إِذْ يُرِيكَهُمُ اللّهُ فِي مَنَامِكَ قَلِيلاً وَلَوْ أَرَاكَهُمْ كَثِيراً لَّفَشِلْتُمْ وَلَتَنَازَعْتُمْ فِي الأَمْرِ وَلَـكِنَّ اللّهَ سَلَّمَ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ {43}

(ये वह वक़्त था) जब ख़़ुदा ने तुम्हें ख़्वाब में कुफ़्फ़ार को कम करके दिखलाया था और अगर उनको तुम्हें ज़्यादा करते दिखलाता तुम यक़ीनन हिम्मत हार देते और लड़ाई के बारे में झगड़ने लगते मगर ख़ुदा ने इसे (बदनामी) से बचाया इसमें तो शक ही नहीं कि वह दिली ख़्यालात से वाकि़फ़ है (43)

वालमू

وَإِذْ يُرِيكُمُوهُمْ إِذِ الْتَقَيْتُمْ فِي أَعْيُنِكُمْ قَلِيلاً وَيُقَلِّلُكُمْ فِي أَعْيُنِهِمْ لِيَقْضِيَ اللّهُ أَمْرًا كَانَ مَفْعُولاً وَإِلَى اللّهِ تُرْجَعُ الأمُورُ {44}

(ये वह वक़्त था) जब तुम लोगों ने मुठभेड़ की तो ख़़ुदा ने तुम्हारी आँखों में कुफ़्फ़ार को बहुत कम करके दिखलाया और उनकीआँखों में तुमको थोड़ा कर दिया ताकि ख़ुदा को जो कुछ करना मंज़ूर था वह पूरा हो जाए और कुल बातों का दारोमदार तो ख़ुदा ही पर है (44)

वालमू

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إِذَا لَقِيتُمْ فِئَةً فَاثْبُتُواْ وَاذْكُرُواْ اللّهَ كَثِيراً لَّعَلَّكُمْ تُفْلَحُونَ {45}

ऐ इमानदारों जब तुम किसी फौज से मुठभेड़ करो तो ख़बरदार अपने क़दम जमाए रहो और ख़ुदा को बहुंत याद करते रहो ताकि तुम फलाह पाओ (45)

वालमू

وَأَطِيعُواْ اللّهَ وَرَسُولَهُ وَلاَ تَنَازَعُواْ فَتَفْشَلُواْ وَتَذْهَبَ رِيحُكُمْ وَاصْبِرُواْ إِنَّ اللّهَ مَعَ الصَّابِرِينَ {46}

और ख़़ुदा की और उसके रसूल की इताअत करो और आपस में झगड़ा न करो वरना तुम हिम्मत हारोगे और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी और (जंग की तकलीफ़ को) झेल जाओ (क्योंकि) ख़ुदा तो यक़ीनन सब्र करने वालों का साथी है (46)

वालमू

وَلاَ تَكُونُواْ كَالَّذِينَ خَرَجُواْ مِن دِيَارِهِم بَطَرًا وَرِئَاء النَّاسِ وَيَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ اللّهِ وَاللّهُ بِمَا يَعْمَلُونَ مُحِيطٌ {47}

और उन लोगों के ऐसे न हो जाओ जो इतराते हुए और लोगों के दिखलाने के वास्ते अपने घरों से निकल खड़े हुए और लोगों को ख़ुदा की राह से रोकते हैं और जो कुछ भी वह लोग करते हैं ख़़ुदा उस पर (हर तरह से) अहाता किए हुए है (47)

वालमू

وَإِذْ زَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطَانُ أَعْمَالَهُمْ وَقَالَ لاَ غَالِبَ لَكُمُ الْيَوْمَ مِنَ النَّاسِ وَإِنِّي جَارٌ لَّكُمْ فَلَمَّا تَرَاءتِ الْفِئَتَانِ نَكَصَ عَلَى عَقِبَيْهِ وَقَالَ إِنِّي بَرِيءٌ مِّنكُمْ إِنِّي أَرَى مَا لاَ تَرَوْنَ إِنِّيَ أَخَافُ اللّهَ وَاللّهُ شَدِيدُ الْعِقَابِ {48}

और जब शैतान ने उनकी कारस्तानियों को उम्दा कर दिखाया और उनके कान में फूंक दिया कि लोगों में आज कोई ऐसा नहीं जो तुम पर ग़ालिब आ सके और मै तुम्हारा मददगार हूँ फिर जब दोनों लश्कर मुकाबिल हुए तो अपने उलटे पाव भाग निकला और कहने लगा कि मै तो तुम से अलग हूँ मै वह चीजें देख रहा हूँ जो तुम्हें नहीं सूझती मैं तो ख़ुदा से डरता हूँ और ख़ुदा बहुत सख़्त अज़ाब वाला है (48)

वालमू

إِذْ يَقُولُ الْمُنَافِقُونَ وَالَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ غَرَّ هَـؤُلاء دِينُهُمْ وَمَن يَتَوَكَّلْ عَلَى اللّهِ فَإِنَّ اللّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ {49}

(ये वक़्त था) जब मुनाफिक़ीन और जिन लोगों के दिल में (कुफ्र का) मजऱ् है कह रहे थे कि उन मुसलमानों को उनके दीन ने धोके में डाल रखा है (कि इतराते फिरते हैं हालाकि जो शख़्स ख़़ुदा पर भरोसा करता है (वह ग़ालिब रहता है क्योंकि) ख़़ुदा तो यक़ीनन ग़ालिब और हिकमत वाला है (49)

वालमू

وَلَوْ تَرَى إِذْ يَتَوَفَّى الَّذِينَ كَفَرُواْ الْمَلآئِكَةُ يَضْرِبُونَ وُجُوهَهُمْ وَأَدْبَارَهُمْ وَذُوقُواْ عَذَابَ الْحَرِيقِ {50}

और काश (ऐ रसूल) तुम देखते जब फ़रिश्ते काफि़रों की जान निकाल लेते थे और रूख़ और पुश्त(पीठ) पर कोड़े मारते थे और (कहते थे कि) अज़ाब जहन्नुम के मज़े चखों (50)

वालमू

ذَلِكَ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيكُمْ وَأَنَّ اللّهَ لَيْسَ بِظَلاَّمٍ لِّلْعَبِيدِ {51}

ये सज़ा उसकी है जो तुम्हारे हाथों ने पहले किया कराया है और ख़ुदा बन्दों पर हरगिज़ ज़ुल्म नहीं किया करता है (51)

वालमू

كَدَأْبِ آلِ فِرْعَوْنَ وَالَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ كَفَرُواْ بِآيَاتِ اللّهِ فَأَخَذَهُمُ اللّهُ بِذُنُوبِهِمْ إِنَّ اللّهَ قَوِيٌّ شَدِيدُ الْعِقَابِ {52}

(उन लोगों की हालत) क़ौमे फिरआऊन और उनके लोगों की सी है जो उन से पहले थे और ख़़ुदा की आयतों से इन्कार करते थे तो ख़़ुदा ने भी उनके गुनाहों की वजह से उन्हें ले डाला बेशक ख़ुदा ज़बरदस्त और बहुत सख़्त अज़ाब देने वाला है (52)

वालमू

ذَلِكَ بِأَنَّ اللّهَ لَمْ يَكُ مُغَيِّرًا نِّعْمَةً أَنْعَمَهَا عَلَى قَوْمٍ حَتَّى يُغَيِّرُواْ مَا بِأَنفُسِهِمْ وَأَنَّ اللّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌ {53}

ये सज़ा इस वजह से (दी गई) कि जब कोई नेअमत ख़ुदा किसी क़ौम को देता है तो जब तक कि वह लोग ख़ुद अपनी कलबी हालत (न) बदलें ख़ुदा भी उसे नहीं बदलेगा और ख़़ुदा तो यक़ीनी (सब की सुनता) और सब कुछ जानता है (53)

वालमू

كَدَأْبِ آلِ فِرْعَوْنَ وَالَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ كَذَّبُواْ بآيَاتِ رَبِّهِمْ فَأَهْلَكْنَاهُم بِذُنُوبِهِمْ وَأَغْرَقْنَا آلَ فِرْعَونَ وَكُلٌّ كَانُواْ ظَالِمِينَ {54}

(उन लोगों की हालत) क़ौम फिरआऊन और उन लोगों की सी है जो उनसे पहले थे और अपने परवरदिगार की आयतों को झुठलाते थे तो हमने भी उनके गुनाहों की वजह से उनको हलाक़ कर डाला और फिरआऊन की क़ौम को डुबा मारा और (ये) सब के सब ज़ालिम थे (54)

वालमू

إِنَّ شَرَّ الدَّوَابِّ عِندَ اللّهِ الَّذِينَ كَفَرُواْ فَهُمْ لاَ يُؤْمِنُونَ {55}

इसमें शक नहीं कि ख़़ुदा के नज़दीक जानवरों में कुफ़्फ़ार सबसे बदतरीन तो (बावजूद इसके) फिर ईमान नहीं लाते (55)

वालमू

الَّذِينَ عَاهَدتَّ مِنْهُمْ ثُمَّ يَنقُضُونَ عَهْدَهُمْ فِي كُلِّ مَرَّةٍ وَهُمْ لاَ يَتَّقُونَ {56}

ऐ रसूल जिन लोगों से तुम ने एहद व पैमान किया था फिर वह लोग अपने एहद को हर बार तोड़ डालते है और (फिर ख़़ुदा से) नहीं डरते (56)

वालमू

فَإِمَّا تَثْقَفَنَّهُمْ فِي الْحَرْبِ فَشَرِّدْ بِهِم مَّنْ خَلْفَهُمْ لَعَلَّهُمْ يَذَّكَّرُونَ {57}

तो अगर वह लड़ाई में तुम्हारे हाथे चढ़ जाएँ तो (ऐसी सख़्त गोशमाली दो कि) उनके साथ साथ उन लोगों का तो अगर वह लड़ाई में तुम्हारे हत्थे चढ़ जाएं तो (ऐसी सजा दो की) उनके साथ उन लोगों को भी तितिर बितिर कर दो जो उन के पुश्त पर हो ताकि ये इबरत हासिल करें (57)

वालमू

وَإِمَّا تَخَافَنَّ مِن قَوْمٍ خِيَانَةً فَانبِذْ إِلَيْهِمْ عَلَى سَوَاء إِنَّ اللّهَ لاَ يُحِبُّ الخَائِنِينَ {58}

और अगर तुम्हें किसी क़ौम की ख़्यानत (एहद शिकनी(वादा खि़लाफी)) का ख़ौफ हो तो तुम भी बराबर उनका एहद उन्हीं की तरफ से फेंकी मारो (एहदो शिकन के साथ एहद शिकनी करो ख़़ुदा हरगिज़ दग़ाबाजों को दोस्त नहीं रखता (58) 

वालमू

وَلاَ يَحْسَبَنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ سَبَقُواْ إِنَّهُمْ لاَ يُعْجِزُونَ {59}

और कुफ़्फ़ार ये न ख़्याल करें कि वह (मुसलमानों से) आगे बढ़ निकले (क्योंकि) वह हरगिज़ (मुसलमानों को) हरा नहीं सकते (59)

वालमू

وَأَعِدُّواْ لَهُم مَّا اسْتَطَعْتُم مِّن قُوَّةٍ وَمِن رِّبَاطِ الْخَيْلِ تُرْهِبُونَ بِهِ عَدْوَّ اللّهِ وَعَدُوَّكُمْ وَآخَرِينَ مِن دُونِهِمْ لاَ تَعْلَمُونَهُمُ اللّهُ يَعْلَمُهُمْ وَمَا تُنفِقُواْ مِن شَيْءٍ فِي سَبِيلِ اللّهِ يُوَفَّ إِلَيْكُمْ وَأَنتُمْ لاَ تُظْلَمُونَ {60}

और (मुसलमानों तुम कुफ्फार के मुकाबले के) वास्ते जहाँ तक तुमसे हो सके (अपने बाज़ू के) ज़ोर से और बॅधे हुए घोड़े से लड़ाई का सामान मुहय्या करो इससे ख़़ुदा के दुश्मन और अपने दुश्मन और उसके सिवा दूसरे लोगों पर भी अपनी धाक बढ़ा लेगें जिन्हें तुम नहीं जानते हो मगर ख़ुदा तो उनको जानता है और ख़ुदा की राह में तुम जो कुछ भी ख़र्च करोगें वह तुम पूरा पूरा भर पाओगें और तुम पर किसी तरह ज़ुल्म नहीं किया जाएगा (60) 

वालमू

وَإِن جَنَحُواْ لِلسَّلْمِ فَاجْنَحْ لَهَا وَتَوَكَّلْ عَلَى اللّهِ إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ {61}

और अगर ये कुफ्फार सुलह की तरफ माएल हो तो तुम भी उसकी तरफ माएल हो और ख़ुदा पर भरोसा रखो (क्योंकि) वह बेशक (सब कुछ) सुनता जानता है (61)

वालमू

وَإِن يُرِيدُواْ أَن يَخْدَعُوكَ فَإِنَّ حَسْبَكَ اللّهُ هُوَ الَّذِيَ أَيَّدَكَ بِنَصْرِهِ وَبِالْمُؤْمِنِينَ {62}

और अगर वह लोग तुम्हें फरेब देना चाहे तो (कुछ परवा नहीं) ख़ुदा तुम्हारे वास्ते यक़ीनी काफी है-(ऐ रसूल) वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने अपनी ख़ास मदद और मोमिनीन से तुम्हारी ताईद की (62)

वालमू

وَأَلَّفَ بَيْنَ قُلُوبِهِمْ لَوْ أَنفَقْتَ مَا فِي الأَرْضِ جَمِيعاً مَّا أَلَّفَتْ بَيْنَ قُلُوبِهِمْ وَلَـكِنَّ اللّهَ أَلَّفَ بَيْنَهُمْ إِنَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ {63}

और उसी ने उन मुसलमानों के दिलों में बाहम ऐसी उलफ़त पैदा कर दी कि अगर तुम जो कुछ ज़मीन में है सब का सब खर्च कर डालते तो भी उनके दिलो में ऐसी उलफ़त पैदा न कर सकते मगर ख़़ुदा ही था जिसने बाहम उलफत पैदा की बेशक वह ज़बरदस्त हिक़मत वाला है (63)

वालमू

يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ حَسْبُكَ اللّهُ وَمَنِ اتَّبَعَكَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ {64}

ऐ रसूल तुमको बस ख़ुदा और जो मोमिनीन तुम्हारे ताबेए फरमान (फरमाबरदार) है काफी है (64)

वालमू

يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ حَرِّضِ الْمُؤْمِنِينَ عَلَى الْقِتَالِ إِن يَكُن مِّنكُمْ عِشْرُونَ صَابِرُونَ يَغْلِبُواْ مِئَتَيْنِ وَإِن يَكُن مِّنكُم مِّئَةٌ يَغْلِبُواْ أَلْفًا مِّنَ الَّذِينَ كَفَرُواْ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لاَّ يَفْقَهُونَ {65}

ऐ रसूल तुम मोमिनीन को जिहाद के वास्ते आमादा करो (वह घबराए नहीं ख़ुदा उनसे वायदा करता है कि) अगर तुम लोगों में के साबित क़दम रहने वाले बीस भी होगें तो वह दो सौ (काफिरों) पर ग़ालिब आ जायेगे और अगर तुम लोगों में से साबित कदम रहने वालों सौ होगें तो हज़ार (काफिरों) पर ग़ालिब आ जाएँगें इस सबब से कि ये लोग ना समझ हैं (65)

वालमू

الآنَ خَفَّفَ اللّهُ عَنكُمْ وَعَلِمَ أَنَّ فِيكُمْ ضَعْفًا فَإِن يَكُن مِّنكُم مِّئَةٌ صَابِرَةٌ يَغْلِبُواْ مِئَتَيْنِ وَإِن يَكُن مِّنكُمْ أَلْفٌ يَغْلِبُواْ أَلْفَيْنِ بِإِذْنِ اللّهِ وَاللّهُ مَعَ الصَّابِرِينَ {66}

अब ख़़ुदा ने तुम से (अपने हुक्म की सख़्ती में) तख़्फ़ीफ (कमी) कर दी और देख लिया कि तुम में यक़ीनन कमज़ोरी है तो अगर तुम लोगों में से साबित क़दम रहने वाले सौ होगें तो दो सौ (काफि़रों) पर ग़ालिब रहेंगें और अगर तुम लोगों में से (ऐसे) एक हज़ार होगें तो ख़ुदा के हुक्म से दो हज़ार (काफि़रों) पर ग़ालिब रहेंगे और (जंग की तकलीफों को) झेल जाने वालों का ख़ुदा साथी है (66)

वालमू

مَا كَانَ لِنَبِيٍّ أَن يَكُونَ لَهُ أَسْرَى حَتَّى يُثْخِنَ فِي الأَرْضِ تُرِيدُونَ عَرَضَ الدُّنْيَا وَاللّهُ يُرِيدُ الآخِرَةَ وَاللّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ {67}

कोई नबी जब कि रूए ज़मीन पर (काफिरों का) खून न बहाए उसके यहाँ कै़दियों का रहना मुनासिब नहीं तुम लोग तो दुनिया के साज़ो सामान के ख़्वाहा (चाहने वाले) हो औॅर ख़़ुदा (तुम्हारे लिए) आखि़रत की (भलाई) का ख्वाहा है और ख़ुदा ज़बरदस्त हिकमत वाला है (67)

वालमू

لَّوْلاَ كِتَابٌ مِّنَ اللّهِ سَبَقَ لَمَسَّكُمْ فِيمَا أَخَذْتُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ {68}

और अगर ख़ुदा की तरफ से पहले ही (उसकी) माफी का हुक्म आ चुका होता तो तुमने जो (बदर के क़ैदियों के छोड़ देने के बदले) फिदिया लिया था (68)

वालमू

فَكُلُواْ مِمَّا غَنِمْتُمْ حَلاَلاً طَيِّبًا وَاتَّقُواْ اللّهَ إِنَّ اللّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ {69}

उसकी सज़ा में तुम पर बड़ा अज़ाब नाजि़ल होकर रहता तो (ख़ैर जो हुआ सो हुआ) अब तुमने जो माल ग़नीमत हासिल किया है उसे खाओ (और तुम्हारे लिए) हलाल तय्यब है और ख़ुदा से डरते रहो बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (69)

वालमू

يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ قُل لِّمَن فِي أَيْدِيكُم مِّنَ الأَسْرَى إِن يَعْلَمِ اللّهُ فِي قُلُوبِكُمْ خَيْرًا يُؤْتِكُمْ خَيْرًا مِّمَّا أُخِذَ مِنكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ وَاللّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ {70}

ऐ रसूल जो कै़दी तुम्हारे कब्जे़ में है उनसे कह दो कि अगर तुम्हारे दिलों में नेकी देखेगा तो जो (माल) तुम से छीन लिया गया है उससे कहीं बेहतर तुम्हें अता फरमाएगा और तुम्हें बख़्श भी देगा और ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (70)

वालमू

وَإِن يُرِيدُواْ خِيَانَتَكَ فَقَدْ خَانُواْ اللّهَ مِن قَبْلُ فَأَمْكَنَ مِنْهُمْ وَاللّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ {71}

और अगर ये लोग तुमसे फरेब करना चाहते है तो ख़़ुदा से पहले ही फरेब कर चुके हैं तो (उसकी सज़ा में) ख़़ुदा ने उन पर तुम्हें क़ाबू दे दिया और ख़़ुदा तो बड़ा वाकि़फकार हिकमत वाला है (71)

वालमू

إِنَّ الَّذِينَ آمَنُواْ وَهَاجَرُواْ وَجَاهَدُواْ بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ فِي سَبِيلِ اللّهِ وَالَّذِينَ آوَواْ وَّنَصَرُواْ أُوْلَـئِكَ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاء بَعْضٍ وَالَّذِينَ آمَنُواْ وَلَمْ يُهَاجِرُواْ مَا لَكُم مِّن وَلاَيَتِهِم مِّن شَيْءٍ حَتَّى يُهَاجِرُواْ وَإِنِ اسْتَنصَرُوكُمْ فِي الدِّينِ فَعَلَيْكُمُ النَّصْرُ إِلاَّ عَلَى قَوْمٍ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُم مِّيثَاقٌ وَاللّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ {72}

जिन लोगों ने ईमान क़़ुबूल किया और हिजरत की और अपने अपने जान माल से ख़ुदा की राह में जिहाद किया और जिन लोगों ने (हिजरत करने वालों को जगह दी और हर (तरह) उनकी ख़बर गीरी (मदद) की यही लोग एक दूसरे के (बाहम) सरपरस्त दोस्त हैं और जिन लेागों ने ईमान क़ुबूल किया और हिजरत नहीं की तो तुम लोगों को उनकी सरपरस्ती से कुछ सरोकार नहीं-यहाँ तक कि वह हिजरत एख़्तियार करें और (हा) मगर दीनी अम्र में तुम से मदद के ख़्वाहा हो तो तुम पर (उनकी मदद करना लाजि़म व वाजिब है मगर उन लोगों के मुक़ाबले में (नहीं) जिनमें और तुममें बाहम (सुलह का) एहदो पैमान है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा (सबको) देख रहा है (72)

वालमू

وَالَّذينَ كَفَرُواْ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاء بَعْضٍ إِلاَّ تَفْعَلُوهُ تَكُن فِتْنَةٌ فِي الأَرْضِ وَفَسَادٌ كَبِيرٌ {73}

और जो लोग काफि़र हैं वह भी (बाहम) एक दूसरे के सरपरस्त हैं अगर तुम (इस तरह) वायदा न करोगे तो रूए ज़मीन पर फि़तना (फ़साद) बरपा हो जाएगा और बड़ा फ़साद होगा (73)

वालमू

وَالَّذِينَ آمَنُواْ وَهَاجَرُواْ وَجَاهَدُواْ فِي سَبِيلِ اللّهِ وَالَّذِينَ آوَواْ وَّنَصَرُواْ أُولَـئِكَ هُمُ الْمُؤْمِنُونَ حَقًّا لَّهُم مَّغْفِرَةٌ وَرِزْقٌ كَرِيمٌ {74}

और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और हिजरत की और ख़़ुदा की राह में लड़े भिड़े और जिन लोगों ने (ऐसे नाज़ुक वक़्त में मुहाजिरीन को जगह ही और उनकी हर तरह ख़बरगीरी (मदद) की यही लोग सच्चे ईमानदार हैं उन्हीं के वास्ते मग़फिरत और इज़्ज़त व आबरु वाली रोज़ी है (74)

वालमू

وَالَّذِينَ آمَنُواْ مِن بَعْدُ وَهَاجَرُواْ وَجَاهَدُواْ مَعَكُمْ فَأُوْلَـئِكَ مِنكُمْ وَأُوْلُواْ الأَرْحَامِ بَعْضُهُمْ أَوْلَى بِبَعْضٍ فِي كِتَابِ اللّهِ إِنَّ اللّهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ {75}

और जिन लोगों ने (सुलह हुदैबिया के) बाद ईमान क़ुबूल किया और हिजरत की और तुम्हारे साथ मिलकर जिहाद किया वह लोग भी तुम्हीं में से हैं और साहबाने क़राबत ख़़ुदा की किताब में बाहम एक दूसरे के (बनिस्बत औरों के) ज़्यादा हक़दार हैं बेशक ख़़ुदा हर चीज़ से ख़ूब वाकि़फ हैं (75)

वालमू

بَرَاءةٌ مِّنَ اللّهِ وَرَسُولِهِ إِلَى الَّذِينَ عَاهَدتُّم مِّنَ الْمُشْرِكِينَ {1}

(ऐ मुसलमानों) जिन मुशरिकों से तुम लोगों ने सुलह का एहद किया था अब ख़ुदा और उसके रसूल की तरफ से उनसे (एक दम) बेज़ारी है (1)

वालमू

فَسِيحُواْ فِي الأَرْضِ أَرْبَعَةَ أَشْهُرٍ وَاعْلَمُواْ أَنَّكُمْ غَيْرُ مُعْجِزِي اللّهِ وَأَنَّ اللّهَ مُخْزِي الْكَافِرِينَ {2}

तो (ऐ मुशरिकों) बस तुम चार महीने (ज़ीकादा, जिल हिज्जा, मुहर्रम रजब) तो (चैन से बेख़तर) रूए ज़मीन में सैरो सियाहत (घूम फिर) कर लो और ये समझते रहे कि तुम (किसी तरह) ख़़ुदा को आजिज़ नहीं कर सकते और ये भी कि ख़़ुदा काफि़रों को ज़रूर रूसवा करके रहेगा (2)

वालमू

وَأَذَانٌ مِّنَ اللّهِ وَرَسُولِهِ إِلَى النَّاسِ يَوْمَ الْحَجِّ الأَكْبَرِ أَنَّ اللّهَ بَرِيءٌ مِّنَ الْمُشْرِكِينَ وَرَسُولُهُ فَإِن تُبْتُمْ فَهُوَ خَيْرٌ لَّكُمْ وَإِن تَوَلَّيْتُمْ فَاعْلَمُواْ أَنَّكُمْ غَيْرُ مُعْجِزِي اللّهِ وَبَشِّرِ الَّذِينَ كَفَرُواْ بِعَذَابٍ أَلِيمٍ {3}

और ख़़ुदा और उसके रसूल की तरफ से हज अकबर के दिन (तुम) लोगों को मुनादी की जाती है कि ख़़ुदा और उसका रसूल मुशरिकों से बेज़ार (और अलग) है तो (मुशरिकों) अगर तुम लोगों ने (अब भी) तौबा की तो तुम्हारे हक़ में यही बेहतर है और अगर तुम लोगों ने (इससे भी) मुह मोड़ा तो समझ लो कि तुम लोग ख़़ुदा को हरगिज़ आजिज़ नहीं कर सकते और जिन लोगों ने कुफ्र इख़्तेयार किया उनको दर्दनाक अज़ाब की ख़ुश ख़बरी दे दो (3)

वालमू

إِلاَّ الَّذِينَ عَاهَدتُّم مِّنَ الْمُشْرِكِينَ ثُمَّ لَمْ يَنقُصُوكُمْ شَيْئًا وَلَمْ يُظَاهِرُواْ عَلَيْكُمْ أَحَدًا فَأَتِمُّواْ إِلَيْهِمْ عَهْدَهُمْ إِلَى مُدَّتِهِمْ إِنَّ اللّهَ يُحِبُّ الْمُتَّقِينَ {4}

मगर (हाँ) जिन मुशरिकों से तुमने एहदो पैमान किया था फिर उन लोगों ने भी कभी कुछ तुमसे (वफ़ा एहद में) कमी नहीं की और न तुम्हारे मुक़ाबले में किसी की मदद की हो तो उनके एहद व पैमान को जितनी मुद्द्त के वास्ते मुक़र्रर किया है पूरा कर दो ख़़ुदा परहेज़गारों को यक़ीनन दोस्त रखता है (4)

वालमू

فَإِذَا انسَلَخَ الأَشْهُرُ الْحُرُمُ فَاقْتُلُواْ الْمُشْرِكِينَ حَيْثُ وَجَدتُّمُوهُمْ وَخُذُوهُمْ وَاحْصُرُوهُمْ وَاقْعُدُواْ لَهُمْ كُلَّ مَرْصَدٍ فَإِن تَابُواْ وَأَقَامُواْ الصَّلاَةَ وَآتَوُاْ الزَّكَاةَ فَخَلُّواْ سَبِيلَهُمْ إِنَّ اللّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ {5}

फिर जब हुरमत के चार महीने गुज़र जाएँ तो मुशरिको को जहाँ पाओ (बे ताम्मुल) कत्ल करो और उनको गिरफ्तार कर लो और उनको कै़द करो और हर घात की जगह में उनकी ताक में बैठो फिर अगर वह लोग (अब भी शिर्क से) बाज़ आए और नमाज़ पढ़ने लगें और ज़कात दे तो उनकी राह छोड़ दो (उनसे ताअरूज़ न करो) बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (5)

वालमू

وَإِنْ أَحَدٌ مِّنَ الْمُشْرِكِينَ اسْتَجَارَكَ فَأَجِرْهُ حَتَّى يَسْمَعَ كَلاَمَ اللّهِ ثُمَّ أَبْلِغْهُ مَأْمَنَهُ ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لاَّ يَعْلَمُونَ {6}

और (ऐ रसूल) अगर मुशरिकीन में से कोई तुमसे पनाह मागें तो उसको पनाह दो यहाँ तक कि वह ख़़ुदा का कलाम सुन ले फिर उसे उसकी अमन की जगह वापस पहुँचा दो ये इस वजह से कि ये लोग नादान हैं (6)

वालमू

كَيْفَ يَكُونُ لِلْمُشْرِكِينَ عَهْدٌ عِندَ اللّهِ وَعِندَ رَسُولِهِ إِلاَّ الَّذِينَ عَاهَدتُّمْ عِندَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ فَمَا اسْتَقَامُواْ لَكُمْ فَاسْتَقِيمُواْ لَهُمْ إِنَّ اللّهَ يُحِبُّ الْمُتَّقِينَ {7}

(जब) मुशरिकीन ने ख़ुद एहद शिकनी (तोड़ा) की तो उन का कोई एहदो पैमान ख़़ुदा के नज़दीक और उसके रसूल के नज़दीक क्योंकर (क़ायम) रह सकता है मगर जिन लोगों से तुमने खानाए काबा के पास मुआहेदा किया था तो वह लोग (अपनी एहदो पैमान) तुमसे क़ायम रखना चाहें तो तुम भी उन से (अपना एहद) क़ायम रखो बेशक ख़ुदा (बद एहदी से) परहेज़ करने वालों को दोस्त रखता है (7)

वालमू

كَيْفَ وَإِن يَظْهَرُوا عَلَيْكُمْ لاَ يَرْقُبُواْ فِيكُمْ إِلاًّ وَلاَ ذِمَّةً يُرْضُونَكُم بِأَفْوَاهِهِمْ وَتَأْبَى قُلُوبُهُمْ وَأَكْثَرُهُمْ فَاسِقُونَ {8}

(उनका एहद) क्योंकर (रह सकता है) जब (उनकी ये हालत है) कि अगर तुम पर ग़लबा पा जाए तो तुम्हारे में न तो रिश्ते नाते ही का लिहाज़ करेगें और न अपने क़ौल व क़रार का ये लोग तुम्हें अपनी ज़बानी (जमा खर्च में) खुश कर देते हैं हालाँकि उनके दिल नहीं मानते और उनमें के बहुतेरे तो बदचलन हैं (8)

वालमू

اشْتَرَوْاْ بِآيَاتِ اللّهِ ثَمَنًا قَلِيلاً فَصَدُّواْ عَن سَبِيلِهِ إِنَّهُمْ سَاء مَا كَانُواْ يَعْمَلُونَ {9}

और उन लोगों ने ख़ुदा की आयतों के बदले थोड़ी सी क़ीमत (दुनियावी फायदे) हासिल करके (लोगों को) उसकी राह से रोक दिया बेशक ये लोग जो कुछ करते हैं ये बहुत ही बुरा है (9)

वालमू

لاَ يَرْقُبُونَ فِي مُؤْمِنٍ إِلاًّ وَلاَ ذِمَّةً وَأُوْلَـئِكَ هُمُ الْمُعْتَدُونَ {10}

ये लोग किसी मोमिन के बारे में न तो रिश्ता नाता ही कर लिहाज़ करते हैं और न क़ौल का क़रार का और (वाक़ई) यही लोग ज़्यादती करते हैं (10)

वालमू

فَإِن تَابُواْ وَأَقَامُواْ الصَّلاَةَ وَآتَوُاْ الزَّكَاةَ فَإِخْوَانُكُمْ فِي الدِّينِ وَنُفَصِّلُ الآيَاتِ لِقَوْمٍ يَعْلَمُونَ {11}

तो अगर (अभी मुशरिक से) तौबा करें और नमाज़ पढ़ने लगें और ज़कात दें तो तुम्हारे दीनी भाई हैं और हम अपनी आयतों को वाकि़फकार लोगों के वास्ते तफ़सीलन बयान करते हैं (11)

वालमू

وَإِن نَّكَثُواْ أَيْمَانَهُم مِّن بَعْدِ عَهْدِهِمْ وَطَعَنُواْ فِي دِينِكُمْ فَقَاتِلُواْ أَئِمَّةَ الْكُفْرِ إِنَّهُمْ لاَ أَيْمَانَ لَهُمْ لَعَلَّهُمْ يَنتَهُونَ {12}

और अगर ये लोग एहद कर चुकने के बाद अपनी क़समें तोड़ डालें और तुम्हारे दीन में तुमको ताना दें तो तुम कुफ्र के सरवर आवारा लोगों से खूब लड़ाई करो उनकी क़समें का हरगिज़ कोई एतबार नहीं ताकि ये लोग (अपनी शरारत से) बाज़ आएँ (12)

वालमू

أَلاَ تُقَاتِلُونَ قَوْمًا نَّكَثُواْ أَيْمَانَهُمْ وَهَمُّواْ بِإِخْرَاجِ الرَّسُولِ وَهُم بَدَؤُوكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ أَتَخْشَوْنَهُمْ فَاللّهُ أَحَقُّ أَن تَخْشَوْهُ إِن كُنتُم مُّؤُمِنِينَ {13}

(मुसलमानों) भला तुम उन लोगों से क्यों नहीं लड़ते जिन्होंने अपनी क़समों को तोड़ डाला और रसूल को निकाल बाहर करना (अपने दिल में) ठान लिया था और तुमसे पहले छेड़ भी उन्होंने ही शुरू की थी क्या तुम उनसे डरते हो तो अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो ख़़ुदा उनसे कहीं बढ़ कर तुम्हारे डरने के क़ाबिल है (13)

वालमू

قَاتِلُوهُمْ يُعَذِّبْهُمُ اللّهُ بِأَيْدِيكُمْ وَيُخْزِهِمْ وَيَنصُرْكُمْ عَلَيْهِمْ وَيَشْفِ صُدُورَ قَوْمٍ مُّؤْمِنِينَ {14}

इनसे (बेख़ौफ (ख़तर) लड़ो ख़ुदा तुम्हारे हाथों उनकी सज़ा करेगा और उन्हें रूसवा करेगा और तुम्हें उन पर फतेह अता करेगा और इमानदार लोगों के कलेजे ठन्डे करेगा (14)

वालमू

وَيُذْهِبْ غَيْظَ قُلُوبِهِمْ وَيَتُوبُ اللّهُ عَلَى مَن يَشَاء وَاللّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ {15}

और उन मोनिनीन के दिल की क़ुदरतें जो (कुफ़्फ़ार से पहुचॅती है) दफ़ा कर देगा और ख़़ुदा जिसकी चाहे तौबा क़ुबूल करे और ख़़ुदा बड़ा वाकि़फकार (और) हिकमत वाला है (15)

वालमू

أَمْ حَسِبْتُمْ أَن تُتْرَكُواْ وَلَمَّا يَعْلَمِ اللّهُ الَّذِينَ جَاهَدُواْ مِنكُمْ وَلَمْ يَتَّخِذُواْ مِن دُونِ اللّهِ وَلاَ رَسُولِهِ وَلاَ الْمُؤْمِنِينَ وَلِيجَةً وَاللّهُ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ {16}

क्या तुमने ये समझ लिया है कि तुम (यॅू ही) छोड़ दिए जाओगे और अभी तक तो ख़ुदा ने उन लोगों को मुमताज़ किया ही नहीं जो तुम में के (राहे ख़़ुदा में) जिहाद करते हैं और ख़़ुदा और उसके रसूल और मोमेनीन के सिवा किसी को अपना राज़दार दोस्त नहीं बनाते और जो कुछ भी तुम करते हो ख़़ुदा उससे बाख़बर है (16) 

वालमू

مَا كَانَ لِلْمُشْرِكِينَ أَن يَعْمُرُواْ مَسَاجِدَ الله شَاهِدِينَ عَلَى أَنفُسِهِمْ بِالْكُفْرِ أُوْلَئِكَ حَبِطَتْ أَعْمَالُهُمْ وَفِي النَّارِ هُمْ خَالِدُونَ {17}

मुशरेकीन का ये काम नहीं कि जब वह अपने कुफ्ऱ का ख़ुद इक़रार करते है तो ख़ुदा की मस्जिदों को (जाकर) आबाद करे यही वह लोग हैं जिनका किया कराया सब अकारत हुआ और ये लोग हमेशा जहन्नुम में रहेंगे (17)

वालमू

إِنَّمَا يَعْمُرُ مَسَاجِدَ اللّهِ مَنْ آمَنَ بِاللّهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ وَأَقَامَ الصَّلاَةَ وَآتَى الزَّكَاةَ وَلَمْ يَخْشَ إِلاَّ اللّهَ فَعَسَى أُوْلَـئِكَ أَن يَكُونُواْ مِنَ الْمُهْتَدِينَ {18}

ख़़ुदा की मस्जिदों को बस सिर्फ वहीं शख़्स (जाकर) आबाद कर सकता है जो ख़़ुदा और रोजे़ आखि़रत पर ईमान लाए और नमाज़ पढ़ा करे और ज़कात देता रहे और ख़़ुदा के सिवा (और) किसी से न डरो तो अनक़रीब यही लोग हिदायत याफ़्ता लोगों मे से हो जाएंगे (18)

वालमू

أَجَعَلْتُمْ سِقَايَةَ الْحَاجِّ وَعِمَارَةَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ كَمَنْ آمَنَ بِاللّهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ وَجَاهَدَ فِي سَبِيلِ اللّهِ لاَ يَسْتَوُونَ عِندَ اللّهِ وَاللّهُ لاَ يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ {19}

क्या तुम लोगों ने हाजियों की सक़ाई (पानी पिलाने वाले) और मस्जिदुल हराम (ख़ानाए काबा की आबादियों को उस शख़्स के हमसर (बराबर) बना दिया है जो ख़ुदा और रोज़े आख़ेरत के दिन पर ईमान लाया और ख़ुदा के राह में जेहाद किया ख़़ुदा के नज़दीक तो ये लोग बराबर नहीं और खुदा ज़ालिम लोगों की हिदायत नहीं करता है (19)

वालमू

الَّذِينَ آمَنُواْ وَهَاجَرُواْ وَجَاهَدُواْ فِي سَبِيلِ اللّهِ بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ أَعْظَمُ دَرَجَةً عِندَ اللّهِ وَأُوْلَئِكَ هُمُ الْفَائِزُونَ {20}

जिन लोगों ने ईमान क़़ुबूल किया और (ख़़ुदा के लिए) हिजरत एख़्तियार की और अपने मालों से और अपनी जानों से ख़़ुदा की राह में जिहाद किया वह लोग ख़़ुदा के नज़दीक दर्जें में कही बढ़ कर हैं और यही लोग (आला दर्जे पर) फायज़ होने वाले हैं (20)

वालमू

يُبَشِّرُهُمْ رَبُّهُم بِرَحْمَةٍ مِّنْهُ وَرِضْوَانٍ وَجَنَّاتٍ لَّهُمْ فِيهَا نَعِيمٌ مُّقِيمٌ {21}

उनका परवरदिगार उनको अपनी मेहरबानी और ख़ुशनूदी और ऐसे (हरे भरे) बाग़ों की ख़ुशख़बरी देता है जिसमें उनके लिए दाइमी ऐश व (आराम) होगा (21)

वालमू

خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا إِنَّ اللّهَ عِندَهُ أَجْرٌ عَظِيمٌ {22}

और ये लोग उन बाग़ों में हमेशा अब्दआलाबाद (हमेशा हमेशा) तक रहेंगे बेशक ख़ुदा के पास तो बड़ा बड़ा अज्र व (सवाब) है (22)

वालमू

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَتَّخِذُواْ آبَاءكُمْ وَإِخْوَانَكُمْ أَوْلِيَاء إَنِ اسْتَحَبُّواْ الْكُفْرَ عَلَى الإِيمَانِ وَمَن يَتَوَلَّهُم مِّنكُمْ فَأُوْلَـئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ {23}

ऐ ईमानदारों अगर तुम्हारे माँ बाप और तुम्हारे (बहन) भाई ईमान के मुक़ाबले कुफ्ऱ को तरजीह देते हो तो तुम उनको (अपना) ख़ैर ख़्वाह (हमदर्द) न समझो और तुममें जो शख़्स उनसे उलफ़त रखेगा तो यही लोग ज़ालिम है (23)

वालमू

قُلْ إِن كَانَ آبَاؤُكُمْ وَأَبْنَآؤُكُمْ وَإِخْوَانُكُمْ وَأَزْوَاجُكُمْ وَعَشِيرَتُكُمْ وَأَمْوَالٌ اقْتَرَفْتُمُوهَا وَتِجَارَةٌ تَخْشَوْنَ كَسَادَهَا وَمَسَاكِنُ تَرْضَوْنَهَا أَحَبَّ إِلَيْكُم مِّنَ اللّهِ وَرَسُولِهِ وَجِهَادٍ فِي سَبِيلِهِ فَتَرَبَّصُواْ حَتَّى يَأْتِيَ اللّهُ بِأَمْرِهِ وَاللّهُ لاَ يَهْدِي الْقَوْمَ الْفَاسِقِينَ {24}

(ऐ रसूल) तुम कह दो तुम्हारे बाप दादा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारे भाई बन्द और तुम्हारी बीबियाँ और तुम्हारे कुनबे वाले और वह माल जो तुमने कमा के रख छोड़ा हैं और वह तिजारत जिसके मन्द पड़ जाने का तुम्हें अन्देशा है और वह मकानात जिन्हें तुम पसन्द करते हो अगर तुम्हें ख़ुदा से और उसके रसूल से और उसकी राह में जिहाद करने से ज़्यादा अज़ीज़ है तो तुम ज़रा ठहरो यहाँ तक कि ख़ुदा अपना हुक्म (अज़ाब) मौजूद करे और ख़ुदा नाफरमान लोगों की हिदायत नहीं करता (24)

वालमू

لَقَدْ نَصَرَكُمُ اللّهُ فِي مَوَاطِنَ كَثِيرَةٍ وَيَوْمَ حُنَيْنٍ إِذْ أَعْجَبَتْكُمْ كَثْرَتُكُمْ فَلَمْ تُغْنِ عَنكُمْ شَيْئًا وَضَاقَتْ عَلَيْكُمُ الأَرْضُ بِمَا رَحُبَتْ ثُمَّ وَلَّيْتُم مُّدْبِرِينَ {25}

(मुसलमानों) ख़ुदा ने तुम्हारी बहुतेरे मक़ामात पर (ग़ैबी) इमदाद की और (ख़ासकर) जंग हुनैन के दिन जब तुम्हें अपनी क़सरत (तादाद) ने मग़रूर कर दिया था फिर वह क़सरत तुम्हें कुछ भी काम न आयी और (तुम ऐसे घबराए कि) ज़मीन बावजूद उस वसअत (फैलाव) के तुम पर तंग हो गई तुम पीठ कर भाग निकले (25)

वालमू

ثُمَّ أَنَزلَ اللّهُ سَكِينَتَهُ عَلَى رَسُولِهِ وَعَلَى الْمُؤْمِنِينَ وَأَنزَلَ جُنُودًا لَّمْ تَرَوْهَا وَعذَّبَ الَّذِينَ كَفَرُواْ وَذَلِكَ جَزَاء الْكَافِرِينَ {26}

तब ख़़ुदा ने अपने रसूल पर और मोमिनीन पर अपनी (तरफ से) तसकीन नाजि़ल फरमाई और (रसूल की ख़ातिर से) फरिश्तों के लश्कर भेजे जिन्हें तुम देखते भी नहीं थे और कुफ़्फ़ार पर अज़ाब नाजि़ल फरमाया और काफिरों की यही सज़ा है (26)

वालमू

ثُمَّ يَتُوبُ اللّهُ مِن بَعْدِ ذَلِكَ عَلَى مَن يَشَاء وَاللّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ {27}

उसके बाद ख़़ुदा जिसकी चाहे तौबा क़ुबूल करे और ख़़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (27)

वालमू

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إِنَّمَا الْمُشْرِكُونَ نَجَسٌ فَلاَ يَقْرَبُواْ الْمَسْجِدَ الْحَرَامَ بَعْدَ عَامِهِمْ هَـذَا وَإِنْ خِفْتُمْ عَيْلَةً فَسَوْفَ يُغْنِيكُمُ اللّهُ مِن فَضْلِهِ إِن شَاء إِنَّ اللّهَ عَلِيمٌ حَكِيمٌ {28}

ऐ ईमानदारों मुशरेकीन तो निरे नजिस हैं तो अब वह उस साल के बाद मस्जिदुल हराम (ख़ाना ए काबा) के पास फिर न फटकने पाएँ और अगर तुम (उनसे जुदा होने में) फक़रों फाक़ा से डरते हो तो अनकरीब ही ख़ुदा तुमको अगर चाहेगा तो अपने फज़ल (करम) से ग़नीकर देगा बेशक ख़ुदा बड़ा वाकि़फकार हिकमत वाला है (28)

वालमू

قَاتِلُواْ الَّذِينَ لاَ يُؤْمِنُونَ بِاللّهِ وَلاَ بِالْيَوْمِ الآخِرِ وَلاَ يُحَرِّمُونَ مَا حَرَّمَ اللّهُ وَرَسُولُهُ وَلاَ يَدِينُونَ دِينَ الْحَقِّ مِنَ الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ حَتَّى يُعْطُواْ الْجِزْيَةَ عَن يَدٍ وَهُمْ صَاغِرُونَ {29}

एहले किताब में से जो लोग न तो (दिल से) ख़ुदा ही पर इमान रखते हैं और न रोज़े आखि़रत पर और न ख़ुदा और उसके रसूल की हराम की हुयी चीज़ों को हराम समझते हैं और न सच्चे दीन ही को एख़्तियार करते हैं उन लोगों से लड़े जाओ यहाँ तक कि वह लोग ज़लील होकर (अपने) हाथ से जजि़या दे (29)

वालमू

وَقَالَتِ الْيَهُودُ عُزَيْرٌ ابْنُ اللّهِ وَقَالَتْ النَّصَارَى الْمَسِيحُ ابْنُ اللّهِ ذَلِكَ قَوْلُهُم بِأَفْوَاهِهِمْ يُضَاهِؤُونَ قَوْلَ الَّذِينَ كَفَرُواْ مِن قَبْلُ قَاتَلَهُمُ اللّهُ أَنَّى يُؤْفَكُونَ {30}

यहूद तो कहते हैं कि अज़ीज़ ख़़ुदा के बेटे हैं और नुसैरा कहते हैं कि मसीहा (ईसा) ख़़ुदा के बेटे हैं ये तो उनकी बात है और (वह ख़ुद) उन्हीं के मुँह से ये लोग भी उन्हीं काफि़रों की सी बातें बनाने लगे जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं ख़़ुद उनको क़त्ल (तहस नहस) करके (देखो तो) कहाँ से कहाँ भटके जा रहे हैं (30) 

वालमू

اتَّخَذُواْ أَحْبَارَهُمْ وَرُهْبَانَهُمْ أَرْبَابًا مِّن دُونِ اللّهِ وَالْمَسِيحَ ابْنَ مَرْيَمَ وَمَا أُمِرُواْ إِلاَّ لِيَعْبُدُواْ إِلَـهًا وَاحِدًا لاَّ إِلَـهَ إِلاَّ هُوَ سُبْحَانَهُ عَمَّا يُشْرِكُونَ {31}

उन लोगों ने तो अपने ख़़ुदा को छोड़कर अपनी आलिमों को और अपने ज़ाहिदों को और मरियम के बेटे मसीह को अपना परवरदिगार बना डाला हालाकि उन्होनें सिवाए इसके और हुक्म ही नहीं दिया गया कि ख़़ुदाए यकता (सिर्फ़ ख़ुदा) की इबादत करें उसके सिवा (और कोई क़ाबिले परसतिश नहीं) (31)

वालमू

يُرِيدُونَ أَن يُطْفِؤُواْ نُورَ اللّهِ بِأَفْوَاهِهِمْ وَيَأْبَى اللّهُ إِلاَّ أَن يُتِمَّ نُورَهُ وَلَوْ كَرِهَ الْكَافِرُونَ {32}

जिस चीज़ को ये लोग उसका शरीक़ बनाते हैं वह उससे पाक व पाक़ीजा है ये लोग चाहते हैं कि अपने मुँह से (फूंक मारकर) ख़़ुदा के नूर को बुझा दें और ख़़ुदा इसके सिवा कुछ मानता ही नहीं कि अपने नूर को पूरा ही करके रहे (32)

वालमू

هُوَ الَّذِي أَرْسَلَ رَسُولَهُ بِالْهُدَى وَدِينِ الْحَقِّ لِيُظْهِرَهُ عَلَى الدِّينِ كُلِّهِ وَلَوْ كَرِهَ الْمُشْرِكُونَ {33}

अगरचे कुफ़्फ़ार बुरा माना करें वही तो (वह ख़़ुदा) है कि जिसने अपने रसूल (मोहम्मद) को हिदायत और सच्चे दीन के साथ ( मबऊस करके) भेजता कि उसको तमाम दीनो पर ग़ालिब करे अगरचे मुशरेकीन बुरा माना करे (33) 

वालमू

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إِنَّ كَثِيراً مِّنَ الأَحْبَارِ وَالرُّهْبَانِ لَيَأْكُلُونَ أَمْوَالَ النَّاسِ بِالْبَاطِلِ وَيَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ اللّهِ وَالَّذِينَ يَكْنِزُونَ الذَّهَبَ وَالْفِضَّةَ وَلاَ يُنفِقُونَهَا فِي سَبِيلِ اللّهِ فَبَشِّرْهُم بِعَذَابٍ أَلِيمٍ {34}

ऐ ईमानदारों इसमें उसमें शक नहीं कि (यहूद व नसारा के) बहुतेरे आलिम ज़ाहिद लेागों के मालेनाहक़ (नाहक़) चख जाते है और (लोगों को) ख़़ुदा की राह से रोकते हैं और जो लोग सोना और चाँदी जमा करते जाते हैं और उसको ख़़ुदा की राह में खर्च नहीं करते तो (ऐ रसूल) उन को दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशखबरी सुना दो (34)

वालमू

يَوْمَ يُحْمَى عَلَيْهَا فِي نَارِ جَهَنَّمَ فَتُكْوَى بِهَا جِبَاهُهُمْ وَجُنوبُهُمْ وَظُهُورُهُمْ هَـذَا مَا كَنَزْتُمْ لأَنفُسِكُمْ فَذُوقُواْ مَا كُنتُمْ تَكْنِزُونَ {35}

(जिस दिन वह (सोना चाँदी) जहन्नुम की आग में गर्म (और लाल) किया जाएगा फिर उससे उनकी पेशानियाँ और उनके पहलू और उनकी पीठें दाग़ी जाएगी (और उनसे कहा जाएगा) ये वह है जिसे तुमने अपने लिए (दुनिया में) जमा करके रखा था तो (अब) अपने जमा किए का मज़ा चखो (35)

वालमू

إِنَّ عِدَّةَ الشُّهُورِ عِندَ اللّهِ اثْنَا عَشَرَ شَهْرًا فِي كِتَابِ اللّهِ يَوْمَ خَلَقَ السَّمَاوَات وَالأَرْضَ مِنْهَا أَرْبَعَةٌ حُرُمٌ ذَلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ فَلاَ تَظْلِمُواْ فِيهِنَّ أَنفُسَكُمْ وَقَاتِلُواْ الْمُشْرِكِينَ كَآفَّةً كَمَا يُقَاتِلُونَكُمْ كَآفَّةً وَاعْلَمُواْ أَنَّ اللّهَ مَعَ الْمُتَّقِينَ {36}

इसमें तो शक ही नहीं कि ख़ुदा ने जिस दिन आसमान व ज़मीन को पैदा किया (उसी दिन से) ख़ुदा के नज़दीक ख़़ुदा की किताब (लौहे महफूज़) में महीनों की गिनती बारह महीने है उनमें से चार महीने (अदब व) हुरमत के हैं यही दीन सीधी राह है तो उन चार महीनों में तुम अपने ऊपर (कुश्त व ख़ून (मार काट) करके) ज़़ुल्म न करो और मुशरेकीन जिस तरह तुम से सबके बस मिलकर लड़ते हैं तुम भी उसी तरह सबके सब मिलकर उन से लड़ों और ये जान लो कि ख़़ुदा तो यक़ीनन परहेज़गारों के साथ है (36)

वालमू

إِنَّمَا النَّسِيءُ زِيَادَةٌ فِي الْكُفْرِ يُضَلُّ بِهِ الَّذِينَ كَفَرُواْ يُحِلِّونَهُ عَامًا وَيُحَرِّمُونَهُ عَامًا لِّيُوَاطِؤُواْ عِدَّةَ مَا حَرَّمَ اللّهُ فَيُحِلُّواْ مَا حَرَّمَ اللّهُ زُيِّنَ لَهُمْ سُوءُ أَعْمَالِهِمْ وَاللّهُ لاَ يَهْدِي الْقَوْمَ الْكَافِرِينَ {37}

महीनों का आगे पीछे कर देना भी कुफ्ऱ ही की ज़्यादती है कि उनकी बदौलत कुफ़्फ़ार (और) बहक जाते हैं एक बरस तो उसी एक महीने को हलाल समझ लेते हैं और (दूसरे) साल उसी महीने को हराम कहते हैं ताकि ख़़ुदा ने जो (चार महीने) हराम किए हैं उनकी गिनती ही पूरी कर लें और ख़ुदा की हराम की हुयी चीज़ को हलाल कर लें उनकी बुरी (बुरी) कारस्तानिया उन्हें भली कर दिखाई गई हैं और खुदा काफिर लोगो को मंजि़ले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता (37)

वालमू

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ مَا لَكُمْ إِذَا قِيلَ لَكُمُ انفِرُواْ فِي سَبِيلِ اللّهِ اثَّاقَلْتُمْ إِلَى الأَرْضِ أَرَضِيتُم بِالْحَيَاةِ الدُّنْيَا مِنَ الآخِرَةِ فَمَا مَتَاعُ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا فِي الآخِرَةِ إِلاَّ قَلِيلٌ {38}

ऐ ईमानदारों तुम्हें क्या हो गया है कि जब तुमसे कहा जाता है कि ख़़ुदा की राह में (जिहाद के लिए) निकलो तो तुम लदधड़ (ढीले) हो कर ज़मीन की तरफ झुके पड़ते हो क्या तुम आखि़रत के बनिस्बत दुनिया की (चन्द रोज़ा) जिन्दगी को पसन्द करते थे तो (समझ लो कि) दुनिया की जि़न्दगी का साज़ो सामान (आखि़र के) ऐश व आराम के मुक़ाबले में बहुत ही थोड़ा है (38)

वालमू

إِلاَّ تَنفِرُواْ يُعَذِّبْكُمْ عَذَابًا أَلِيمًا وَيَسْتَبْدِلْ قَوْمًا غَيْرَكُمْ وَلاَ تَضُرُّوهُ شَيْئًا وَاللّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ {39}

अगर (अब भी) तुम न निकलोगे तो ख़़ुदा तुम पर दर्दनाक अज़ाब नाजि़ल फरमाएगा और (ख़़ुदा कुछ मजबरू तो है नहीं) तुम्हारे बदले किसी दूसरी क़ौम को ले आएगा और तुम उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते और ख़़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (39)

वालमू

إِلاَّ تَنصُرُوهُ فَقَدْ نَصَرَهُ اللّهُ إِذْ أَخْرَجَهُ الَّذِينَ كَفَرُواْ ثَانِيَ اثْنَيْنِ إِذْ هُمَا فِي الْغَارِ إِذْ يَقُولُ لِصَاحِبِهِ لاَ تَحْزَنْ إِنَّ اللّهَ مَعَنَا فَأَنزَلَ اللّهُ سَكِينَتَهُ عَلَيْهِ وَأَيَّدَهُ بِجُنُودٍ لَّمْ تَرَوْهَا وَجَعَلَ كَلِمَةَ الَّذِينَ كَفَرُواْ السُّفْلَى وَكَلِمَةُ اللّهِ هِيَ الْعُلْيَا وَاللّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ {40}

अगर तुम उस रसूल की मदद न करोगे तो (कुछ परवाह् नहीं ख़़ुदा मददगार है) उसने तो अपने रसूल की उस वक़्त मदद की जब उसकी कुफ़्फ़ार (मक्का) ने (घर से) निकल बाहर किया उस वक़्त सिर्फ (दो आदमी थे) दूसरे रसूल थे जब वह दोनो ग़ार (सौर) में थे जब अपने साथी को (उसकी गिरिया व ज़ारी (रोने) पर) समझा रहे थे कि घबराओ नहीं ख़़ुदा यक़ीनन हमारे साथ है तो ख़़ुदा ने उन पर अपनी (तरफ से) तसकीन नाजि़ल फरमाई और (फरिश्तों के) ऐसे लश्कर से उनकी मदद की जिनको तुम लोगों ने देखा तक नहीं और ख़ुदा ने काफिरों की बात नीची कर दिखाई और ख़़ुदा ही का बोल बाला है और ख़़ुदा तो ग़ालिब हिकमत वाला है (40)

वालमू

انْفِرُواْ خِفَافًا وَثِقَالاً وَجَاهِدُواْ بِأَمْوَالِكُمْ وَأَنفُسِكُمْ فِي سَبِيلِ اللّهِ ذَلِكُمْ خَيْرٌ لَّكُمْ إِن كُنتُمْ تَعْلَمُونَ {41}

(मुसलमानों) तुम हलके फुलके (हॅसते) हो या भारी भरकम (मसलह) बहर हाल जब तुमको हुक्म दिया जाए फौरन चल खड़े हो और अपनी जानों से अपने मालों से ख़़ुदा की राह में जिहाद करो अगर तुम (कुछ जानते हो तो) समझ लो कि यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है (41)

वालमू

لَوْ كَانَ عَرَضًا قَرِيبًا وَسَفَرًا قَاصِدًا لاَّتَّبَعُوكَ وَلَـكِن بَعُدَتْ عَلَيْهِمُ الشُّقَّةُ وَسَيَحْلِفُونَ بِاللّهِ لَوِ اسْتَطَعْنَا لَخَرَجْنَا مَعَكُمْ يُهْلِكُونَ أَنفُسَهُمْ وَاللّهُ يَعْلَمُ إِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ {42}

(ऐ रसूल) अगर सरे दस्त फ़ायदा और सफर आसान होता तो यक़ीनन ये लोग तुम्हारा साथ देते मगर इन पर मुसाफ़त (सफ़र) की मशक़क़त (सख़्ती) तूलानी हो गई और अगर पीछे रह जाने की वज़ह से पूछोगे तो ये लोग फौरन ख़़ुदा की क़समें खाएगें कि अगर हम में सकत होती तो हम भी ज़रूर तुम लोगों के साथ ही चल खड़े होते ये लोग झूठी कसमें खाकर अपनी जान आप हलाक किए डालते हैं और ख़ुदा तो जानता है कि ये लोग बेशक झूठे हैं (42) 

वालमू

عَفَا اللّهُ عَنكَ لِمَ أَذِنتَ لَهُمْ حَتَّى يَتَبَيَّنَ لَكَ الَّذِينَ صَدَقُواْ وَتَعْلَمَ الْكَاذِبِينَ {43}

(ऐ रसूल) ख़़ुदा तुमसे दरगुज़र फरमाए तुमने उन्हें (पीछे रह जाने की) इजाज़त ही क्यों दी ताकि (तुम) अगर ऐसा न करते तो) तुम पर सच बोलने वाले (अलग) ज़ाहिर हो जाते और तुम झूटों को (अलग) मालूम कर लेते (43) 

वालमू

لاَ يَسْتَأْذِنُكَ الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِاللّهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ أَن يُجَاهِدُواْ بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ وَاللّهُ عَلِيمٌ بِالْمُتَّقِينَ {44}

(ऐ रसूल) जो लोग (दिल से) ख़़ुदा और रोज़े आखि़रत पर ईमान रखते हैं वह तो अपने माल से और अपनी जानों से जिहाद (न) करने की इजाज़त मागने के नहीं (बल्कि वह ख़ुद जाएगें) और ख़़ुदा परहेज़गारों से खूब वाकि़फ है (44)

वालमू

إِنَّمَا يَسْتَأْذِنُكَ الَّذِينَ لاَ يُؤْمِنُونَ بِاللّهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ وَارْتَابَتْ قُلُوبُهُمْ فَهُمْ فِي رَيْبِهِمْ يَتَرَدَّدُونَ {45}

(पीछे रह जाने की) इजाज़त तो बस वही लोग मागेंगे जो ख़़ुदा और रोजे़ आखि़रत पर ईमान नहीं रखते और उनके दिल (तरह तरह) के शक कर रहे है तो वह अपने शक में डावा डोल हो रहे हैं (45)

वालमू

وَلَوْ أَرَادُواْ الْخُرُوجَ لأَعَدُّواْ لَهُ عُدَّةً وَلَـكِن كَرِهَ اللّهُ انبِعَاثَهُمْ فَثَبَّطَهُمْ وَقِيلَ اقْعُدُواْ مَعَ الْقَاعِدِينَ {46}

(कि क्या करें क्या न करें) और अगर ये लोग (घर से) निकलने की ठान लेते तो (कुछ न कुछ सामान तो करते मगर (बात ये है) कि ख़़ुदा ने उनके साथ भेजने को नापसन्द किया तो उनको काहिल बना दिया और (गोया) उनसे कह दिया गया कि तुम बैठने वालों के साथ बैठे (मक्खी मारते) रहो (46)

वालमू

لَوْ خَرَجُواْ فِيكُم مَّا زَادُوكُمْ إِلاَّ خَبَالاً ولأَوْضَعُواْ خِلاَلَكُمْ يَبْغُونَكُمُ الْفِتْنَةَ وَفِيكُمْ سَمَّاعُونَ لَهُمْ وَاللّهُ عَلِيمٌ بِالظَّالِمِينَ {47}

अगर ये लोग तुममें (मिलकर) निकलते भी तो बस तुममे फ़साद ही बरपा कर देते और तुम्हारे हक़ में फि़तना कराने की ग़रज़ से तुम्हारे दरम्यिान (इधर उधर) घोड़े दौड़ाते फिरते और तुममें से उनके जासूस भी हैं (जो तुम्हारी उनसे बातें बयान करते हैं) और ख़़ुदा शरीरों से ख़ूब वाकि़फ़ है (47)

वालमू

لَقَدِ ابْتَغَوُاْ الْفِتْنَةَ مِن قَبْلُ وَقَلَّبُواْ لَكَ الأُمُورَ حَتَّى جَاء الْحَقُّ وَظَهَرَ أَمْرُ اللّهِ وَهُمْ كَارِهُونَ {48}

(ए रसूल) इसमें तो शक नहीं कि उन लोगों ने पहले ही फ़साद डालना चाहा था और तुम्हारी बहुत सी बातें उलट पुलट के यहा तक कि हक़ आ पहुचा और ख़़ुदा ही का हुक्म ग़ालिब रहा और उनको नागवार ही रहा (48) 

वालमू

وَمِنْهُم مَّن يَقُولُ ائْذَن لِّي وَلاَ تَفْتِنِّي أَلاَ فِي الْفِتْنَةِ سَقَطُواْ وَإِنَّ جَهَنَّمَ لَمُحِيطَةٌ بِالْكَافِرِينَ {49}

उन लोगों में से बाज़ ऐसे भी हैं जो साफ कहते हैं कि मुझे तो (पीछे रह जाने की) इजाज़त दीजिए और मुझ बला में न फॅसाइए (ऐ रसूल) आगाह हो कि ये लोग खुद बला में (औंधे मुँह) गिर पड़े और जहन्नुम तो काफिरों का यक़ीनन घेरे हुए ही हैं (49)

वालमू

إِن تُصِبْكَ حَسَنَةٌ تَسُؤْهُمْ وَإِن تُصِبْكَ مُصِيبَةٌ يَقُولُواْ قَدْ أَخَذْنَا أَمْرَنَا مِن قَبْلُ وَيَتَوَلَّواْ وَّهُمْ فَرِحُونَ {50}

तुमको कोई फायदा पहुचा तो उन को बुरा मालूम होता है और अगर तुम पर कोई मुसीबत आ पड़ती तो ये लोग कहते हैं कि (इस वजह से) हमने अपना काम पहले ही ठीक कर लिया था और (ये कह कर) ख़ुश (तुम्हारे पास से उठकर) वापस लौटतें है (50)

वालमू

قُل لَّن يُصِيبَنَا إِلاَّ مَا كَتَبَ اللّهُ لَنَا هُوَ مَوْلاَنَا وَعَلَى اللّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُونَ {51}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि हम पर हरगिज़ कोई मुसीबत पड़ नही सकती मगर जो ख़़ुदा ने तुम्हारे लिए (हमारी तक़दीर में) लिख दिया है वही हमारा मालिक है और ईमानदारों को चाहिए भी कि ख़़ुदा ही पर भरोसा रखें (51)

वालमू

قُلْ هَلْ تَرَبَّصُونَ بِنَا إِلاَّ إِحْدَى الْحُسْنَيَيْنِ وَنَحْنُ نَتَرَبَّصُ بِكُمْ أَن يُصِيبَكُمُ اللّهُ بِعَذَابٍ مِّنْ عِندِهِ أَوْ بِأَيْدِينَا فَتَرَبَّصُواْ إِنَّا مَعَكُم مُّتَرَبِّصُونَ {52}

(ऐ रसूल) तुम मुनाफिकों से कह दो कि तुम तो हमारे वास्ते (फतेह या शहादत) दो भलाइयों में से एक के ख़्वाह मख़्वाह मुन्तजि़र ही हो और हम तुम्हारे वास्ते उसके मुन्तजि़र हैं कि ख़़ुदा तुम पर (ख़ास) अपने ही से कोई अज़ाब नाजि़ल करे या हमारे हाथों से फिर (अच्छा) तुम भी इन्तेज़ार करो हम भी तुम्हारे साथ (साथ) इन्तेज़ार करते हैं (52)

वालमू

قُلْ أَنفِقُواْ طَوْعًا أَوْ كَرْهًا لَّن يُتَقَبَّلَ مِنكُمْ إِنَّكُمْ كُنتُمْ قَوْمًا فَاسِقِينَ {53}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम लोग ख़्वाह ख़ुशी से खर्च करो या मजबूरी से तुम्हारी ख़ैरात तो कभी कु़बूल की नहीं जाएगी तुम यक़ीनन बदकार लोग हो (53)

वालमू

وَمَا مَنَعَهُمْ أَن تُقْبَلَ مِنْهُمْ نَفَقَاتُهُمْ إِلاَّ أَنَّهُمْ كَفَرُواْ بِاللّهِ وَبِرَسُولِهِ وَلاَ يَأْتُونَ الصَّلاَةَ إِلاَّ وَهُمْ كُسَالَى وَلاَ يُنفِقُونَ إِلاَّ وَهُمْ كَارِهُونَ {54}

और उनकी ख़ैरात के क़ुबूल किए जाने में और कोई वजह मायने नहीं मगर यही कि उन लोगों ने ख़़ुदा और उसके रसूल की नाफ़रमानी की और नमाज़ को आते भी हैं तो अलकसाए हुए और ख़़ुदा की राह में खर्च करते भी हैं तो बे दिली से (54)

वालमू

فَلاَ تُعْجِبْكَ أَمْوَالُهُمْ وَلاَ أَوْلاَدُهُمْ إِنَّمَا يُرِيدُ اللّهُ لِيُعَذِّبَهُم بِهَا فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَتَزْهَقَ أَنفُسُهُمْ وَهُمْ كَافِرُونَ {55}

(ऐ रसूल) तुम को न तो उनके माल हैरत में डाले और न उनकी औलाद (क्योंकि) ख़़ुदा तो ये चाहता है कि उनको आल व माल की वजह से दुनिया की (चन्द रोज़) जि़न्दगी (ही) में मुबितलाए अज़ाब करे और जब उनकी जानें निकलें तब भी वह काफिर (के काफिर ही) रहें (55)

वालमू

وَيَحْلِفُونَ بِاللّهِ إِنَّهُمْ لَمِنكُمْ وَمَا هُم مِّنكُمْ وَلَـكِنَّهُمْ قَوْمٌ يَفْرَقُونَ {56}

और (मुसलमानों) ये लोग ख़ुदा की क़सम खाएगें फिर वह तुममें ही के हैं हालाकि वह लोग तुममें के नहीं हैं मगर हैं ये लोग बुज़दिल हैं (56)

वालमू

لَوْ يَجِدُونَ مَلْجَأً أَوْ مَغَارَاتٍ أَوْ مُدَّخَلاً لَّوَلَّوْاْ إِلَيْهِ وَهُمْ يَجْمَحُونَ {57}

कि गर कहीं ये लोग पनाह की जगह (कि़ले) या (छिपने के लिए) ग़ार या घुस बैठने की कोई (और) जगह पा जाए तो उसी तरफ रस्सियाँ तोड़ाते हुए भाग जाएँ (57)

वालमू

وَمِنْهُم مَّن يَلْمِزُكَ فِي الصَّدَقَاتِ فَإِنْ أُعْطُواْ مِنْهَا رَضُواْ وَإِن لَّمْ يُعْطَوْاْ مِنهَا إِذَا هُمْ يَسْخَطُونَ {58}

(ऐ रसूल) उनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं जो तुम्हें ख़ैरात (की तक़सीम) में (ख़्वाह मा ख़्वाह) इल्ज़ाम देते हैं फिर अगर उनमे से कुछ (माक़ूल मिक़दार(हिस्सा)) दे दिया गया तो खुश हो गए और अगर उनकी मजऱ् के मुवाफिक़ उसमें से उन्हें कुछ नहीं दिया गया तो बस फौरन ही बिगड़ बैठे (58)

वालमू

وَلَوْ أَنَّهُمْ رَضُوْاْ مَا آتَاهُمُ اللّهُ وَرَسُولُهُ وَقَالُواْ حَسْبُنَا اللّهُ سَيُؤْتِينَا اللّهُ مِن فَضْلِهِ وَرَسُولُهُ إِنَّا إِلَى اللّهِ رَاغِبُونَ {59}

और जो कुछ ख़ुदा ने और उसके रसूल ने उनको अता फरमाया था अगर ये लोग उस पर राज़ी रहते और कहते कि ख़़ुदा हमारे वास्ते काफी है (उस वक़्त नहीं तो) अनक़रीब ही खुदा हमें अपने फज़ल व करम से उसका रसूल दे ही देगा हम तो यक़ीनन अल्लाह ही की तरफ लौ लगाए बैठे हैं (59)

वालमू

إِنَّمَا الصَّدَقَاتُ لِلْفُقَرَاء وَالْمَسَاكِينِ وَالْعَامِلِينَ عَلَيْهَا وَالْمُؤَلَّفَةِ قُلُوبُهُمْ وَفِي الرِّقَابِ وَالْغَارِمِينَ وَفِي سَبِيلِ اللّهِ وَابْنِ السَّبِيلِ فَرِيضَةً مِّنَ اللّهِ وَاللّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ {60}

(तो उनका क्या कहना था) ख़ैरात तो बस ख़ास फकीरों का हक़ है और मोहताजों का और उस (ज़कात वग़ैरह) के कारिन्दों का और जिनकी तालीफ़ क़लब की गई है (उनका) और (जिन की) गर्दनों मे (गुलामी का फन्दा पड़ा है उनका) और ग़द्दारों का (जो ख़ुदा से अदा नहीं कर सकते) और खुदा की राह (जिहाद) में और परदेसियों की किफ़ालत में ख़र्च करना चाहिए ये हुकूक़ ख़़ुदा की तरफ से मुक़र्रर किए हुए हैं और ख़़ुदा बड़ा वाकि़फ कार हिकमत वाला है (60)

वालमू

وَمِنْهُمُ الَّذِينَ يُؤْذُونَ النَّبِيَّ وَيِقُولُونَ هُوَ أُذُنٌ قُلْ أُذُنُ خَيْرٍ لَّكُمْ يُؤْمِنُ بِاللّهِ وَيُؤْمِنُ لِلْمُؤْمِنِينَ وَرَحْمَةٌ لِّلَّذِينَ آمَنُواْ مِنكُمْ وَالَّذِينَ يُؤْذُونَ رَسُولَ اللّهِ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ {61}

और उसमें से बाज़ ऐसे भी हैं जो (हमारे) रसूल को सताते हैं और कहते हैं कि बस ये कान ही (कान) हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (कान तो हैं मगर) तुम्हारी भलाई सुन्ने के कान हैं कि ख़़ुदा पर ईमान रखते हैं और मोमिनीन की (बातों) का यक़ीन रखते हैं और तुममें से जो लोग ईमान ला चुके हैं उनके लिए रहमत और जो लोग रसूले ख़़ुदा को सताते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब हैं (61)

वालमू

يَحْلِفُونَ بِاللّهِ لَكُمْ لِيُرْضُوكُمْ وَاللّهُ وَرَسُولُهُ أَحَقُّ أَن يُرْضُوهُ إِن كَانُواْ مُؤْمِنِينَ {62}

(मुसलमानों) ये लोग तुम्हारे सामने ख़़ुदा की क़समें खाते हैं ताकि तुम्हें राज़ी कर ले हालाकि अगर ये लोग सच्चे ईमानदार है (62)

वालमू

أَلَمْ يَعْلَمُواْ أَنَّهُ مَن يُحَادِدِ اللّهَ وَرَسُولَهُ فَأَنَّ لَهُ نَارَ جَهَنَّمَ خَالِدًا فِيهَا ذَلِكَ الْخِزْيُ الْعَظِيمُ {63}

तो ख़ुदा और उसका रसूल कहीं ज़्यादा हक़दार है कि उसको राज़ी रखें क्या ये लोग ये भी नहीं जानते कि जिस शख़्स ने ख़़ुदा और उसके रसूल की मुख़ालेफ़त की तो इसमें शक ही नहीं कि उसके लिए जहन्नुम की आग (तैयार रखी) है (63) 

वालमू

يَحْذَرُ الْمُنَافِقُونَ أَن تُنَزَّلَ عَلَيْهِمْ سُورَةٌ تُنَبِّئُهُمْ بِمَا فِي قُلُوبِهِم قُلِ اسْتَهْزِئُواْ إِنَّ اللّهَ مُخْرِجٌ مَّا تَحْذَرُونَ {64}

जिसमें वह हमेशा (जलता भुनता) रहेगा यही तो बड़ी रूसवाई है मुनाफे़क़ीन इस बात से डरतें हैं कि (कहीं ऐसा न हो) इन मुलसमानों पर (रसूल की माअरफ़त) कोई सूरा नाजि़ल हो जाए जो उनको जो कुछ उन मुनाफिक़ीन के दिल में है बता दे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (अच्छा) तुम मसख़रापन किए जाओ (64) 

वालमू

وَلَئِن سَأَلْتَهُمْ لَيَقُولُنَّ إِنَّمَا كُنَّا نَخُوضُ وَنَلْعَبُ قُلْ أَبِاللّهِ وَآيَاتِهِ وَرَسُولِهِ كُنتُمْ تَسْتَهْزِئُونَ {65}

जिससे तुम डरते हो ख़़ुदा उसे ज़रूर ज़ाहिर कर देगा और अगर तुम उनसे पूछो (कि ये हरकत थी) तो ज़रूर यूही कहेगें कि हम तो यूही बातचीत (दिल्लगी) बाज़ी ही कर रहे थे तुम कहो कि हाए क्या तुम ख़़ुदा से और उसकी आयतों से और उसके रसूल से हॅसी कर रहे थे (65)

वालमू

لاَ تَعْتَذِرُواْ قَدْ كَفَرْتُم بَعْدَ إِيمَانِكُمْ إِن نَّعْفُ عَن طَآئِفَةٍ مِّنكُمْ نُعَذِّبْ طَآئِفَةً بِأَنَّهُمْ كَانُواْ مُجْرِمِينَ {66}

अब बातें न बनाओं हक़ तो ये हैं कि तुम ईमान लाने के बाद काफि़र हो बैठे अगर हम तुममें से कुछ लोगों से दरगुज़र भी करें तो हम कुछ लोगों को सज़ा ज़रूर देगें इस वजह से कि ये लोग कुसूरवार ज़रूर हैं (66)

वालमू

الْمُنَافِقُونَ وَالْمُنَافِقَاتُ بَعْضُهُم مِّن بَعْضٍ يَأْمُرُونَ بِالْمُنكَرِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمَعْرُوفِ وَيَقْبِضُونَ أَيْدِيَهُمْ نَسُواْ اللّهَ فَنَسِيَهُمْ إِنَّ الْمُنَافِقِينَ هُمُ الْفَاسِقُونَ {67}

मुनाफिक़ मर्द और मुनाफिक़ औरतें एक दूसरे के बाहम जिन्स हैं कि (लोगों को) बुरे काम का तो हुक्म करते हैं और नेक कामों से रोकते हैं और अपने हाथ (राहे ख़ुदा में ख़र्च करने से) बन्द रखते हैं (सच तो यह है कि) ये लोग ख़़ुदा को भूल बैठे तो ख़़ुदा ने भी (गोया) उन्हें भुला दिया बेशक मुनाफि़क़ बदचलन है (67)

वालमू

وَعَدَ الله الْمُنَافِقِينَ وَالْمُنَافِقَاتِ وَالْكُفَّارَ نَارَ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا هِيَ حَسْبُهُمْ وَلَعَنَهُمُ اللّهُ وَلَهُمْ عَذَابٌ مُّقِيمٌ {68}

मुनाफिक़ मर्द और मुनाफिक़ औरतें और काफिरों से ख़़ुदा ने जहन्नुम की आग का वायदा तो कर लिया है कि ये लोग हमेशा उसी में रहेगें और यही उन के लिए काफ़ी है और ख़़ुदा ने उन पर लानत की है और उन्हीं के लिए दाइमी (हमेशा रहने वाला) अज़ाब है (68)

वालमू

كَالَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ كَانُواْ أَشَدَّ مِنكُمْ قُوَّةً وَأَكْثَرَ أَمْوَالاً وَأَوْلاَدًا فَاسْتَمْتَعُواْ بِخَلاقِهِمْ فَاسْتَمْتَعْتُم بِخَلاَقِكُمْ كَمَا اسْتَمْتَعَ الَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ بِخَلاَقِهِمْ وَخُضْتُمْ كَالَّذِي خَاضُواْ أُوْلَـئِكَ حَبِطَتْ أَعْمَالُهُمْ فِي الُّدنْيَا وَالآخِرَةِ وَأُوْلَئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ {69}

(मुनाफिक़ो तुम्हारी तो) उनकी मसल है जो तुमसे पहले थे वह लोग तुमसे कू़वत में (भी) ज़्यादा थे और औलाद में (भी) कही बढ़ कर तो वह अपने हिस्से से भी फ़ायदा उठा हो चुके तो जिस तरह तुम से पहले लोग अपने हिस्से से फायदा उठा चुके हैं इसी तरह तुम ने अपने हिस्से से फायदा उठा लिया और जिस तरह वह बातिल में घुसे रहे उसी तरह तुम भी घुसे रहे ये वह लोग हैं जिन का सब किया धरा दुनिया और आखि़रत (दोनों) में अकारत हुआ और यही लोग घाटे में हैं (69)

वालमू

أَلَمْ يَأْتِهِمْ نَبَأُ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ قَوْمِ نُوحٍ وَعَادٍ وَثَمُودَ وَقَوْمِ إِبْرَاهِيمَ وِأَصْحَابِ مَدْيَنَ وَالْمُؤْتَفِكَاتِ أَتَتْهُمْ رُسُلُهُم بِالْبَيِّنَاتِ فَمَا كَانَ اللّهُ لِيَظْلِمَهُمْ وَلَـكِن كَانُواْ أَنفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ {70}

क्या इन मुनाफिक़ों को उन लोगों की ख़बर नहीं पहुँची है जो उनसे पहले हो गुज़रे हैं नूह की क़ौम और आद और समूद और इबराहीम की क़ौम और मदियन वाले और उलटी हुयी बस्तियों के रहने वाले कि उनके पास उनके रसूल वाजेए (और रौशन) मौजिज़े लेाकर आए तो (वह मुब्तिलाए अज़ाब हुए) और ख़ुदा ने उन पर जुल्म नहीं किया मगर ये लोग ख़ुद अपने ऊपर जुल्म करते थे (70)

वालमू

وَالْمُؤْمِنُونَ وَالْمُؤْمِنَاتُ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاء بَعْضٍ يَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنكَرِ وَيُقِيمُونَ الصَّلاَةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَيُطِيعُونَ اللّهَ وَرَسُولَهُ أُوْلَـئِكَ سَيَرْحَمُهُمُ اللّهُ إِنَّ اللّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ {71}

और ईमानदार मर्द और ईमानदार औरते उनमें से बाज़ के बाज़ रफीक़ है और नामज़ पाबन्दी से पढ़ते हैं और ज़कात देते हैं और ख़़ुदा और उसके रसूल की फरमाबरदारी करते हैं यही लोग हैं जिन पर ख़़ुदा अनक़रीब रहम करेगा बेशक ख़़ुदा ग़ालिब हिकमत वाला है (71)

वालमू

وَعَدَ اللّهُ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَمَسَاكِنَ طَيِّبَةً فِي جَنَّاتِ عَدْنٍ وَرِضْوَانٌ مِّنَ اللّهِ أَكْبَرُ ذَلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ {72}

ख़़ुदा ने ईमानदार मर्दों और ईमानदारा औरतों से (बेहशत के) उन बाग़ों का वायदा कर लिया है जिनके नीचे नहरें जारी हैं और वह उनमें हमेशा रहेगें (बेहश्त अदन के बाग़ो में उम्दा उम्दा मकानात का (भी वायदा फरमाया) और ख़़ुदा की ख़़ुशनूदी उन सबसे बालातर है- यही तो बड़ी (आला दर्जे की) कामयाबी है (72) 

वालमू

يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ جَاهِدِ الْكُفَّارَ وَالْمُنَافِقِينَ وَاغْلُظْ عَلَيْهِمْ وَمَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ {73}

ऐ रसूल कुफ़्फ़ार के साथ (तलवार से) और मुनाफिकों के साथ (ज़बान से) जिहाद करो और उन पर सख़्ती करो और उनका ठिकाना तो जहन्नुम ही है और वह (क्या) बुरी जगह है (73)

वालमू

يَحْلِفُونَ بِاللّهِ مَا قَالُواْ وَلَقَدْ قَالُواْ كَلِمَةَ الْكُفْرِ وَكَفَرُواْ بَعْدَ إِسْلاَمِهِمْ وَهَمُّواْ بِمَا لَمْ يَنَالُواْ وَمَا نَقَمُواْ إِلاَّ أَنْ أَغْنَاهُمُ اللّهُ وَرَسُولُهُ مِن فَضْلِهِ فَإِن يَتُوبُواْ يَكُ خَيْرًا لَّهُمْ وَإِن يَتَوَلَّوْا يُعَذِّبْهُمُ اللّهُ عَذَابًا أَلِيمًا فِي الدُّنْيَا وَالآخِرَةِ وَمَا لَهُمْ فِي الأَرْضِ مِن وَلِيٍّ وَلاَ نَصِيرٍ {74}

ये मुनाफे़क़ीन ख़़ुदा की क़समें खाते है कि (कोई बुरी बात) नहीं कही हालाकि उन लोगों ने कुफ्ऱ का कलमा ज़रूर कहा और अपने इस्लाम के बाद काफिर हो गए और जिस बात पर क़ाबू न पा सके उसे ठान बैठे और उन लोगें ने (मुसलमानों से) सिर्फ इस वजह से अदावत की कि अपने फज़ल व करम से ख़़ुदा और उसके रसूल ने दौलत मन्द बना दिया है तो उनके लिए उसमें ख़ैर है कि ये लोग अब भी तौबा कर लें और अगर ये न मानेगें तो ख़ुदा उन पर दुनिया और आखि़रत में दर्दनाक अज़ाब नाजि़ल फरमाएगा और तमाम दुनिया में उन का न कोई हामी होगा और न मददगार (74)

वालमू

وَمِنْهُم مَّنْ عَاهَدَ اللّهَ لَئِنْ آتَانَا مِن فَضْلِهِ لَنَصَّدَّقَنَّ وَلَنَكُونَنَّ مِنَ الصَّالِحِينَ {75}

और इन (मुनाफे़की़न) में से बाज़ ऐसे भी हैं जो ख़़ुदा से क़ौल क़रार कर चुके थे कि अगर हमें अपने फज़ल (व करम) से (कुछ माल) देगा तो हम ज़रूर ख़ैरात किया करेगें और नेकोकार बन्दे हो जाएगें (75)

वालमू

فَلَمَّا آتَاهُم مِّن فَضْلِهِ بَخِلُواْ بِهِ وَتَوَلَّواْ وَّهُم مُّعْرِضُونَ {76}

तो जब ख़ुदा ने अपने फज़ल (व करम) से उन्हें अता फरमाया-तो लगे उसमें बुख़्ल करने और कतराकर मुह फेरने (76)

वालमू

فَأَعْقَبَهُمْ نِفَاقًا فِي قُلُوبِهِمْ إِلَى يَوْمِ يَلْقَوْنَهُ بِمَا أَخْلَفُواْ اللّهَ مَا وَعَدُوهُ وَبِمَا كَانُواْ يَكْذِبُونَ {77}

फिर उनसे उनके ख़ामयाजे़ (बदले) में अपनी मुलाक़ात के दिन (क़यामत) तक उनके दिल में (गोया खुद) निफाक डाल दिया इस वजह से उन लोगों ने जो ख़़ुदा से वायदा किया था उसके खि़लाफ किया और इस वजह से कि झूठ बोला करते थे (77)

वालमू

أَلَمْ يَعْلَمُواْ أَنَّ اللّهَ يَعْلَمُ سِرَّهُمْ وَنَجْوَاهُمْ وَأَنَّ اللّهَ عَلاَّمُ الْغُيُوبِ {78}

क्या वह लोग इतना भी न जानते थे कि ख़ुदा (उनके) सारे भेद और उनकी सरगोशी (सब कुछ) जानता है और ये कि ग़ैब की बातों से ख़ूब आगाह है (78)

वालमू

الَّذِينَ يَلْمِزُونَ الْمُطَّوِّعِينَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ فِي الصَّدَقَاتِ وَالَّذِينَ لاَ يَجِدُونَ إِلاَّ جُهْدَهُمْ فَيَسْخَرُونَ مِنْهُمْ سَخِرَ اللّهُ مِنْهُمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ {79}

जो लोग दिल खोलकर ख़ैरात करने वाले मोमिनीन पर (रियाकारी का) और उन मोमिनीन पर जो सिर्फ अपनी मशक्कत (मेहनत) की मज़दूरी पाते (शख़ी का) इल्ज़ाम लगाते हैं फिर उनसे मसख़रापन करते तो ख़़ुदा भी उन से मसख़रापन करेगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है (79)

वालमू

اسْتَغْفِرْ لَهُمْ أَوْ لاَ تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ إِن تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ سَبْعِينَ مَرَّةً فَلَن يَغْفِرَ اللّهُ لَهُمْ ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ كَفَرُواْ بِاللّهِ وَرَسُولِهِ وَاللّهُ لاَ يَهْدِي الْقَوْمَ الْفَاسِقِينَ {80}

(ऐ रसूल) ख़्वाह तुम उन (मुनाफिक़ों) के लिए मग़फिरत की दुआ मागों या उनके लिए मग़फिरत की दुआ न मागों (उनके लिए बराबर है) तुम उनके लिए सत्तर बार भी बखि़्शश की दुआ मांगोगे तो भी ख़ुदा उनको हरगिज़ न बख़्शेगा ये (सज़ा) इस सबब से है कि उन लोगों ने ख़़ुदा और उसके रसूल के साथ कुफ्र किया और ख़़ुदा बदकार लोगों को मंजि़लें मकसूद तक नहीं पहुँचाया करता (80)

वालमू

فَرِحَ الْمُخَلَّفُونَ بِمَقْعَدِهِمْ خِلاَفَ رَسُولِ اللّهِ وَكَرِهُواْ أَن يُجَاهِدُواْ بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ فِي سَبِيلِ اللّهِ وَقَالُواْ لاَ تَنفِرُواْ فِي الْحَرِّ قُلْ نَارُ جَهَنَّمَ أَشَدُّ حَرًّا لَّوْ كَانُوا يَفْقَهُونَ {81}

(जंगे तबूक़ में) रसूले ख़़ुदा के पीछे रह जाने वाले अपनी जगह बैठ रहने (और जिहाद में न जाने) से ख़ुश हुए और अपने माल और आपनी जानों से ख़ुदा की राह में जिहाद करना उनको मकरू मालूम हुआ और कहने लगे (इस) गर्मी में (घर से) न निकलो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि जहन्नुम की आग (जिसमें तुम चलोगे उससे कहीं ज़्यादा गर्म है (81)

वालमू

فَلْيَضْحَكُواْ قَلِيلاً وَلْيَبْكُواْ كَثِيراً جَزَاء بِمَا كَانُواْ يَكْسِبُونَ {82}

अगर वह कुछ समझें जो कुछ वह किया करते थे उसके बदले उन्हें चाहिए कि वह बहुत कम हॅसें और बहुत रोएँ (82)

वालमू

فَإِن رَّجَعَكَ اللّهُ إِلَى طَآئِفَةٍ مِّنْهُمْ فَاسْتَأْذَنُوكَ لِلْخُرُوجِ فَقُل لَّن تَخْرُجُواْ مَعِيَ أَبَدًا وَلَن تُقَاتِلُواْ مَعِيَ عَدُوًّا إِنَّكُمْ رَضِيتُم بِالْقُعُودِ أَوَّلَ مَرَّةٍ فَاقْعُدُواْ مَعَ الْخَالِفِينَ {83}

तो (ऐ रसूल) अगर ख़ुदा तुम इन मुनाफेक़ीन के किसी गिरोह की तरफ (जिहाद से सहीसालिम) वापस लाए फिर तुमसे (जिहाद के वास्ते) निकलने की इजाज़त माँगें तो तुम साफ़ कह दो कि तुम मेरे साथ (जिहाद के वास्ते) हरगिज़ न निकलने पाओगे और न हरगिज़ दुश्मन से मेरे साथ लड़ने पाओगे जब तुमने पहली मरतबा (घर में) बैठे रहना पसन्द किया तो (अब भी) पीछे रह जाने वालों के साथ (घर में) बैठे रहो (83)

वालमू

وَلاَ تُصَلِّ عَلَى أَحَدٍ مِّنْهُم مَّاتَ أَبَدًا وَلاَ تَقُمْ عَلَىَ قَبْرِهِ إِنَّهُمْ كَفَرُواْ بِاللّهِ وَرَسُولِهِ وَمَاتُواْ وَهُمْ فَاسِقُونَ {84}

और (ऐ रसूल) उन मुनाफिक़ीन में से जो मर जाए तो कभी ना किसी पर नमाजे़ जनाज़ा पढ़ना और न उसकी क़ब्र पर (जाकर) खडे़ होना इन लोगों ने यक़ीनन ख़़ुदा और उसके रसूल के साथ कुफ्ऱ किया और बदकारी की हालत में मर (भी) गए (84)

वालमू

وَلاَ تُعْجِبْكَ أَمْوَالُهُمْ وَأَوْلاَدُهُمْ إِنَّمَا يُرِيدُ اللّهُ أَن يُعَذِّبَهُم بِهَا فِي الدُّنْيَا وَتَزْهَقَ أَنفُسُهُمْ وَهُمْ كَافِرُونَ {85}

और उनके माल और उनकी औलाद (की कसरत) तुम्हें ताज्जुब (हैरत) मने डाले (क्योकि) ख़ुदा तो बस ये चाहता है कि दुनिया में भी उनके माल और औलाद की बदौलत उनको अज़ाब में मुब्तिला करे और उनकी जान निकालने लगे तो उस वक़्त भी ये काफि़र (के काफि़र ही) रहें (85)

वालमू

وَإِذَا أُنزِلَتْ سُورَةٌ أَنْ آمِنُواْ بِاللّهِ وَجَاهِدُواْ مَعَ رَسُولِهِ اسْتَأْذَنَكَ أُوْلُواْ الطَّوْلِ مِنْهُمْ وَقَالُواْ ذَرْنَا نَكُن مَّعَ الْقَاعِدِينَ {86}

और जब कोई सूरा इस बारे में नाजि़ल हुआ कि ख़़ुदा को मानों और उसके रसूल के साथ जिहाद करो तो जो उनमें से दौलत वाले हैं वह तुमसे इजाज़त मांगते हैं और कहते हैं कि हमें (यहीं छोड़ दीजिए) कि हम भी (घर बैठने वालो के साथ (बैठे) रहें (86)

वालमू

رَضُواْ بِأَن يَكُونُواْ مَعَ الْخَوَالِفِ وَطُبِعَ عَلَى قُلُوبِهِمْ فَهُمْ لاَ يَفْقَهُونَ {87}

ये इस बात से ख़ुश हैं कि पीछे रह जाने वालों (औरतों, बच्चों, बीमारो के साथ बैठे) रहें और (गोया) उनके दिल पर मोहर कर दी गई तो ये कुछ नहीं समझतें (87)

वालमू

لَـكِنِ الرَّسُولُ وَالَّذِينَ آمَنُواْ مَعَهُ جَاهَدُواْ بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ وَأُوْلَـئِكَ لَهُمُ الْخَيْرَاتُ وَأُوْلَـئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ {88}

मगर रसूल और जो लोग उनके साथ ईमान लाए हैं उन लोगों ने अपने अपने माल और अपनी अपनी जानों से जिहाद किया- यही वह लोग हैं जिनके लिए (हर तरह की) भलाइयाँ हैं और यही लोग कामयाब होने वाले हैं (88) 

वालमू

أَعَدَّ اللّهُ لَهُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا ذَلِكَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ {89}

ख़़ुदा ने उनके वास्ते (बेहश्त) के वह (हरे भरे) बाग़ तैयार कर रखे हैं जिनके (दरख़्तों के) नीचे नहरे जारी हैं (और ये) इसमें हमेशा रहेंगें यही तो बड़ी कामयाबी हैं (89)

वालमू

وَجَاء الْمُعَذِّرُونَ مِنَ الأَعْرَابِ لِيُؤْذَنَ لَهُمْ وَقَعَدَ الَّذِينَ كَذَبُواْ اللّهَ وَرَسُولَهُ سَيُصِيبُ الَّذِينَ كَفَرُواْ مِنْهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ {90}

और (तुम्हारे पास) कुछ हीला करने वाले गवार देहाती (भी) आ मौजदू हुए ताकि उनको भी (पीछे रह जाने की) इजाज़त दी जाए और जिन लोगों ने ख़़ुदा और उसके रसूल से झूठ कहा था वह (घर में) बैठ रहे (आए तक नहीं) उनमें से जिन लोंगों ने कुफ्ऱ एख़्तेयार किया अनक़रीब ही उन पर दर्दनाक अज़ाब आ पहुँचेगा (90) 

वालमू

لَّيْسَ عَلَى الضُّعَفَاء وَلاَ عَلَى الْمَرْضَى وَلاَ عَلَى الَّذِينَ لاَ يَجِدُونَ مَا يُنفِقُونَ حَرَجٌ إِذَا نَصَحُواْ لِلّهِ وَرَسُولِهِ مَا عَلَى الْمُحْسِنِينَ مِن سَبِيلٍ وَاللّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ {91}

(ऐ रसूल जिहाद में न जाने का) न तो कमज़ोरों पर कुछ गुनाह है न बीमारों पर और न उन लोगों पर जो कुछ नहीं पाते कि ख़र्च करें बशर्ते कि ये लोग ख़़ुदा और उसके रसूल की ख़ैर ख़्वाही करें नेकी करने वालों पर (इल्ज़ाम की) कोई सबील नहीं और ख़़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (91)

वालमू

وَلاَ عَلَى الَّذِينَ إِذَا مَا أَتَوْكَ لِتَحْمِلَهُمْ قُلْتَ لاَ أَجِدُ مَا أَحْمِلُكُمْ عَلَيْهِ تَوَلَّواْ وَّأَعْيُنُهُمْ تَفِيضُ مِنَ الدَّمْعِ حَزَنًا أَلاَّ يَجِدُواْ مَا يُنفِقُونَ {92}

और न उन्हीं लोगों पर कोई इल्ज़ाम है जो तुम्हारे पास आए कि तुम उनके लिए सवारी बाहम पहुँचा दो और तुमने कहा कि मेरे पास (तो कोई सवारी) मौजूद नहीं कि तुमको उस पर सवार करूँ तो वह लोग (मजबूरन) फिर गए और हसरत (व अफसोस) उसे उस ग़म में कि उन को ख़र्च मयस्सर न आया (92) 

वालमू

إِنَّمَا السَّبِيلُ عَلَى الَّذِينَ يَسْتَأْذِنُونَكَ وَهُمْ أَغْنِيَاء رَضُواْ بِأَن يَكُونُواْ مَعَ الْخَوَالِفِ وَطَبَعَ اللّهُ عَلَى قُلُوبِهِمْ فَهُمْ لاَ يَعْلَمُونَ {93}

उनकी आँखों से आँसू जारी थे (इल्ज़ाम की) सबील तो सिर्फ उन्हीं लोगों पर है जिन्होंने बावजूद मालदार होने के तुमसे (जिहाद में) न जाने की इजाज़त चाही और उनके पीछे रह जाने वाले (औरतों,बच्चों) के साथ रहना पसन्द आया और ख़़ुदा ने उनके दिलों पर (गोया) मोहर कर दी है तो ये लोग कुछ नहीं जानते (93)