Quran पारा 23

वमा लिया

وَمَا لِي لاَ أَعْبُدُ الَّذِي فَطَرَنِي وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ {22}

और मुझे क्या (ख़ब्त) हुआ है कि जिसने मुझे पैदा किया है उसकी इबादत न करूँ हालाँकि तुम सब के बस (आखि़र) उसी की तरफ लौटकर जाओगे (22)

वमा लिया

أَأَتَّخِذُ مِن دُونِهِ آلِهَةً إِن يُرِدْنِ الرَّحْمَن بِضُرٍّ لاَّ تُغْنِ عَنِّي شَفَاعَتُهُمْ شَيْئًا وَلاَ يُنقِذُونِ {23}

क्या मैं उसे छोड़कर दूसरों को माबूद बना लूँ अगर खु़दा मुझे कोई तकलीफ पहुँचाना चाहे तो न उनकी सिफारिश ही मेरे कुछ काम आएगी और न ये लोग मुझे (इस मुसीबत से) छुड़ा ही सकेंगें (23)

वमा लिया

إِنِّي إِذًا لَّفِي ضَلاَلٍ مُّبِينٍ {24}

(अगर ऐसा करूँ) तो उस वक़्त मैं यक़ीनी सरीही गुमराही में हूँ (24)

वमा लिया

إِنِّي آمَنتُ بِرَبِّكُمْ فَاسْمَعُونِ {25}

मैं तो तुम्हारे परवरदिगार पर ईमान ला चुका हूँ मेरी बात सुनो और मानो ;मगर उन लोगों ने उसे संगसार कर डाला (25)

वमा लिया

قِيلَ ادْخُلِ الْجَنَّةَ قَالَ يَا لَيْتَ قَوْمِي يَعْلَمُونَ {26}

तब उसे खु़दा का हुक्म हुआ कि बेहिश्त में जा (उस वक़्त भी उसको क़ौम का ख़्याल आया तो कहा) (26)

वमा लिया

بِمَا غَفَرَ لِي رَبِّي وَجَعَلَنِي مِنَ الْمُكْرَمِينَ {27}

मेरे परवरदिगार ने जो मुझे बख़्श दिया और मुझे बुज़ुर्ग लोगों में शामिल कर दिया काश इसको मेरी क़ौम के लोग जान लेते और ईमान लाते (27)

वमा लिया

وَمَا أَنزَلْنَا عَلَى قَوْمِهِ مِن بَعْدِهِ مِنْ جُندٍ مِّنَ السَّمَاء وَمَا كُنَّا مُنزِلِينَ {28}

और हमने उसके मरने के बाद उसकी क़ौम पर उनकी तबाही के लिए न तो आसमान से कोई लशकर उतारा और न हम कभी इतनी सी बात के वास्ते लशकर उतारने वाले थे (28)

वमा लिया

إِن كَانَتْ إِلاَّ صَيْحَةً وَاحِدَةً فَإِذَا هُمْ خَامِدُونَ {29}

वह तो सिर्फ एक चिंघाड थी (जो कर दी गयी बस) फिर तो वह फौरन चिराग़े सहरी की तरह बुझ के रह गए (29)

वमा लिया

يَا حَسْرَةً عَلَى الْعِبَادِ مَا يَأْتِيهِم مِّن رَّسُولٍ إِلاَّ كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُون {30}

हाए अफसोस बन्दों के हाल पर कि कभी उनके पास कोई रसूल नहीं आया मगर उन लोगों ने उसके साथ मसख़रापन ज़रूर किया (30)

वमा लिया

أَلَمْ يَرَوْا كَمْ أَهْلَكْنَا قَبْلَهُم مِّنْ الْقُرُونِ أَنَّهُمْ إِلَيْهِمْ لاَ يَرْجِعُونَ {31}

क्या उन लोगों ने इतना भी ग़ौर नहीं किया कि हमने उनसे पहले कितनी उम्मतों को हलाक कर डाला और वह लोग उनके पास हरगिज़ पलट कर नहीं आ सकते (31)

वमा लिया

وَإِن كُلٌّ لَّمَّا جَمِيعٌ لَّدَيْنَا مُحْضَرُونَ {32}

(हाँ) अलबत्ता सब के सब इकट्ठा हो कर हमारी बारगाह में हाजि़र किए जाएँगे (32)

वमा लिया

وَآيَةٌ لَّهُمُ الْأَرْضُ الْمَيْتَةُ أَحْيَيْنَاهَا وَأَخْرَجْنَا مِنْهَا حَبًّا فَمِنْهُ يَأْكُلُونَ {33}

और उनके (समझने) के लिए मेरी कु़दरत की एक निशानी मुर्दा (परती) ज़मीन है कि हमने उसको (पानी से) जि़न्दा कर दिया और हम ही ने उससे दाना निकाला तो उसे ये लोग खाया करते हैं (33)

वमा लिया

وَجَعَلْنَا فِيهَا جَنَّاتٍ مِن نَّخِيلٍ وَأَعْنَابٍ وَفَجَّرْنَا فِيهَا مِنْ الْعُيُونِ {34}

और हम ही ने ज़मीन में छुहारों और अँगूरों के बाग़ लगाए और हमही ने उसमें पानी के चशमें जारी किए (34)

वमा लिया

لِيَأْكُلُوا مِن ثَمَرِهِ وَمَا عَمِلَتْهُ أَيْدِيهِمْ أَفَلَا يَشْكُرُونَ {35}

ताकि लोग उनके फल खाएँ और कुछ उनके हाथों ने उसे नहीं बनाया (बल्कि खु़दा ने) तो क्या ये लोग (इस पर भी) शुक्र नहीं करते (35)

वमा लिया

سُبْحَانَ الَّذِي خَلَقَ الْأَزْوَاجَ كُلَّهَا مِمَّا تُنبِتُ الْأَرْضُ وَمِنْ أَنفُسِهِمْ وَمِمَّا لَا يَعْلَمُونَ {36}

वह (हर ऐब से) पाक साफ है जिसने ज़मीन से उगने वाली चीज़ों और खु़द उन लोगों के और उन चीज़ों के जिनकी उन्हें ख़बर नहीं सबके जोड़े पैदा किए (36)

वमा लिया

وَآيَةٌ لَّهُمْ اللَّيْلُ نَسْلَخُ مِنْهُ النَّهَارَ فَإِذَا هُم مُّظْلِمُونَ {37}

और मेरी क़ुदरत की एक निशानी रात है जिससे हम दिन को खींच कर निकाल लेते (जाएल कर देते) हैं तो उस वक़्त ये लोग अँधेरे में रह जाते हैं (37)

वमा लिया

وَالشَّمْسُ تَجْرِي لِمُسْتَقَرٍّ لَّهَا ذَلِكَ تَقْدِيرُ الْعَزِيزِ الْعَلِيمِ {38}

और (एक निशानी) आफताब है जो अपने एक ठिकाने पर चल रहा है ये (सबसे) ग़ालिब वाकि़फ (खु़दा) का (वाधा हुआ) अन्दाज़ा है (38)

वमा लिया

وَالْقَمَرَ قَدَّرْنَاهُ مَنَازِلَ حَتَّى عَادَ كَالْعُرْجُونِ الْقَدِيمِ {39}

और हमने चाँद के लिए मंजि़लें मुक़र्रर कर दीं हैं यहाँ तक कि हिर फिर के (आखि़र माह में) खजूर की पुरानी टहनी का सा (पतला टेढ़ा) हो जाता है (39)

वमा लिया

لَا الشَّمْسُ يَنبَغِي لَهَا أَن تُدْرِكَ الْقَمَرَ وَلَا اللَّيْلُ سَابِقُ النَّهَارِ وَكُلٌّ فِي فَلَكٍ يَسْبَحُونَ {40}

न तो आफताब ही से ये बन पड़ता है कि वह माहताब को जा ले और न रात ही दिन से आगे बढ़ सकती है (चाँद, सूरज, सितारे) हर एक अपने-अपने आसमान (मदार) में चक्कर लगा रहें हैं (40)

वमा लिया

وَآيَةٌ لَّهُمْ أَنَّا حَمَلْنَا ذُرِّيَّتَهُمْ فِي الْفُلْكِ الْمَشْحُونِ {41}

और उनके लिए (मेरी कु़दरत) की एक निशानी ये है कि उनके बुज़ुर्गों को (नूह की) भरी हुयी कश्ती में सवार किया (41)

वमा लिया

وَخَلَقْنَا لَهُم مِّن مِّثْلِهِ مَا يَرْكَبُونَ {42}

और उस कशती के मिसल उन लोगों के वास्ते भी वह चीज़े (कश्तियाँ) जहाज़ पैदा कर दी (42)

वमा लिया

وَإِن نَّشَأْ نُغْرِقْهُمْ فَلَا صَرِيخَ لَهُمْ وَلَا هُمْ يُنقَذُونَ {43}

जिन पर ये लोग सवार हुआ करते हैं और अगर हम चाहें तो उन सब लोगों को डुबा मारें फिर न कोई उन का फरियाद रस होगा और न वह लोग छुटकारा ही पा सकते हैं (43)

वमा लिया

إِلَّا رَحْمَةً مِّنَّا وَمَتَاعًا إِلَى حِينٍ {44}

मगर हमारी मेहरबानी से और चूँकि एक (ख़ास) वक़्त तक (उनको) चैन करने देना (मंज़ूर) है (44)

वमा लिया

وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اتَّقُوا مَا بَيْنَ أَيْدِيكُمْ وَمَا خَلْفَكُمْ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ {45}

और जब उन कुफ़्फ़ार से कहा जाता है कि इस (अज़ाब से) बचो (हर वक़्त तुम्हारे साथ-साथ) तुम्हारे सामने और तुम्हारे पीछे (मौजूद) है ताकि तुम पर रहम किया जाए (45)

वमा लिया

وَمَا تَأْتِيهِم مِّنْ آيَةٍ مِّنْ آيَاتِ رَبِّهِمْ إِلَّا كَانُوا عَنْهَا مُعْرِضِينَ {46}

(तो परवाह नहीं करते) और उनकी हालत ये है कि जब उनके परवरदिगार की निशानियों में से कोई निशानी उनके पास आयी तो ये लोग मुँह मोड़े बग़ैर कभी नहीं रहे (46)

वमा लिया

وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ أَنفِقُوا مِمَّا رَزَقَكُمْ اللَّهُ قَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلَّذِينَ آمَنُوا أَنُطْعِمُ مَن لَّوْ يَشَاء اللَّهُ أَطْعَمَهُ إِنْ أَنتُمْ إِلَّا فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ {47}

और जब उन (कुफ़्फ़ार) से कहा जाता है कि (माले दुनिया से) जो खु़दा ने तुम्हें दिया है उसमें से कुछ (खु़दा की राह में भी) ख़र्च करो तो (ये) कुफ़्फ़ार ईमानवालों से कहते हैं कि भला हम उस शख़्स को खिलाएँ जिसे (तुम्हारे ख़्याल के मुवाफि़क़) खु़दा चाहता तो उसको खु़द खिलाता कि तुम लोग बस सरीही गुमराही में (पड़े हुए) हो (47)

वमा लिया

وَيَقُولُونَ مَتَى هَذَا الْوَعْدُ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ {48}

और कहते हैं कि (भला) अगर तुम लोग (अपने दावे में सच्चे हो) तो आखि़र ये (क़यामत का) वायदा कब पूरा होगा (48)

वमा लिया

مَا يَنظُرُونَ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً تَأْخُذُهُمْ وَهُمْ يَخِصِّمُونَ {49}

(ऐ रसूल) ये लोग एक सख़्त चिंघाड़ (सूर) के मुनतजि़र हैं जो उन्हें (उस वक़्त) ले डालेगी (49)

वमा लिया

فَلَا يَسْتَطِيعُونَ تَوْصِيَةً وَلَا إِلَى أَهْلِهِمْ يَرْجِعُونَ {50}

जब ये लोग बाहम झगड़ रहे होगें फिर न तो ये लोग वसीयत ही करने पायेंगे और न अपने लड़के बालों ही की तरफ लौट कर जा सकेगें (50)

वमा लिया

وَنُفِخَ فِي الصُّورِ فَإِذَا هُم مِّنَ الْأَجْدَاثِ إِلَى رَبِّهِمْ يَنسِلُونَ {51}

और फिर (जब दोबारा) सूर फूँका जाएगा तो उसी दम ये सब लोग (अपनी-अपनी) क़ब्रों से (निकल-निकल के) अपने परवरदिगार की बारगाह की तरफ चल खड़े होगे (51)

वमा लिया

قَالُوا يَا وَيْلَنَا مَن بَعَثَنَا مِن مَّرْقَدِنَا هَذَا مَا وَعَدَ الرَّحْمَنُ وَصَدَقَ الْمُرْسَلُونَ {52}

और (हैरान होकर) कहेगें हाए अफसोस हम तो पहले सो रहे थे हमें ख़्वाबगाह से किसने उठाया (जवाब आएगा) कि ये वही (क़यामत का) दिन है जिसका खु़दा ने (भी) वायदा किया था (52)

वमा लिया

إِن كَانَتْ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً فَإِذَا هُمْ جَمِيعٌ لَّدَيْنَا مُحْضَرُونَ {53}

और पैग़म्बरों ने भी सच कहा था (क़यामत तो) बस एक सख़्त चिंघाड़ होगी फिर एका एकी ये लोग सब के सब हमारे हुजू़र में हाजि़र किए जाएँगे (53)

वमा लिया

فَالْيَوْمَ لَا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَيْئًا وَلَا تُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ {54}

फिर आज (क़यामत के दिन) किसी शख़्स पर कुछ भी ज़ुल्म न होगा और तुम लोगों को तो उसी का बदला दिया जाएगा जो तुम लोग (दुनिया में) किया करते थे (54)

वमा लिया

إِنَّ أَصْحَابَ الْجَنَّةِ الْيَوْمَ فِي شُغُلٍ فَاكِهُونَ {55}

बेहश्त के रहने वाले आज (रोजे़ क़यामत) एक न एक मशग़ले में जी बहला रहे हैं (55)

वमा लिया

هُمْ وَأَزْوَاجُهُمْ فِي ظِلَالٍ عَلَى الْأَرَائِكِ مُتَّكِؤُونَ {56}

वह अपनी बीवियों के साथ (ठन्डी) छाँव में तकिया लगाए तख़्तों पर (चैन से) बैठे हुए हैं (56)

वमा लिया

لَهُمْ فِيهَا فَاكِهَةٌ وَلَهُم مَّا يَدَّعُونَ {57}

बहिश्त में उनके लिए (ताज़ा) मेवे (तैयार) हैं और जो वह चाहें उनके लिए (हाजि़र) है (57)

वमा लिया

سَلَامٌ قَوْلًا مِن رَّبٍّ رَّحِيمٍ {58}

मेहरबान परवरदिगार की तरफ से सलाम का पैग़ाम आएगा (58)

वमा लिया

وَامْتَازُوا الْيَوْمَ أَيُّهَا الْمُجْرِمُونَ {59}

और (एक आवाज़ आएगी कि) ऐ गुनाहगारों तुम लोग (इनसे) अलग हो जाओ (59)

वमा लिया

أَلَمْ أَعْهَدْ إِلَيْكُمْ يَا بَنِي آدَمَ أَن لَّا تَعْبُدُوا الشَّيْطَانَ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُّبِينٌ {60}

ऐ आदम की औलाद क्या मैंने तुम्हारे पास ये हुक्म नहीं भेजा था कि (ख़बरदार) शैतान की परसतिश न करना वह यक़ीनी तुम्हारा खुल्लम खुल्ला दुश्मन है (60)

वमा लिया

وَأَنْ اعْبُدُونِي هَذَا صِرَاطٌ مُّسْتَقِيمٌ {61}

और ये कि (देखो) सिर्फ मेरी इबादत करना यही (नजात की) सीधी राह है (61)

वमा लिया

وَلَقَدْ أَضَلَّ مِنكُمْ جِبِلًّا كَثِيراً أَفَلَمْ تَكُونُوا تَعْقِلُونَ {62}

और (बावजूद इसके) उसने तुममें से बहुतेरों को गुमराह कर छोड़ा तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते थे (62)

वमा लिया

هَذِهِ جَهَنَّمُ الَّتِي كُنتُمْ تُوعَدُونَ {63}

ये वही जहन्नुम है जिसका तुमसे वायदा किया गया था (63)

वमा लिया

اصْلَوْهَا الْيَوْمَ بِمَا كُنتُمْ تَكْفُرُونَ {64}

तो अब चूँकि तुम कुफ्र करते थे इस वजह से आज इसमें (चुपके से) चले जाओ (64)

वमा लिया

الْيَوْمَ نَخْتِمُ عَلَى أَفْوَاهِهِمْ وَتُكَلِّمُنَا أَيْدِيهِمْ وَتَشْهَدُ أَرْجُلُهُمْ بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ {65}

आज हम उनके मुँह पर मुहर लगा देगें और (जो) कारसतानियाँ ये लोग दुनिया में कर रहे थे खु़द उनके हाथ हमको बता देगें और उनके पाँव गवाही देगें (65)

वमा लिया

وَلَوْ نَشَاء لَطَمَسْنَا عَلَى أَعْيُنِهِمْ فَاسْتَبَقُوا الصِّرَاطَ فَأَنَّى يُبْصِرُونَ {66}

और अगर हम चाहें तो उनकी आँखों पर झाडू फेर दें तो ये लोग राह को पड़े चक्कर लगाते ढूँढते फिरें मगर कहाँ देख पाँएगे (66)

वमा लिया

وَلَوْ نَشَاء لَمَسَخْنَاهُمْ عَلَى مَكَانَتِهِمْ فَمَا اسْتَطَاعُوا مُضِيًّا وَلَا يَرْجِعُونَ {67}

और अगर हम चाहे तो जहाँ ये हैं (वहीं) उनकी सूरतें बदल (करके) (पत्थर मिट्टी बना) दें फिर न तो उनमें आगे जाने का क़ाबू रहे और न (घर) लौट सकें (67)

वमा लिया

وَمَنْ نُعَمِّرْهُ نُنَكِّسْهُ فِي الْخَلْقِ أَفَلَا يَعْقِلُونَ {68}

और हम जिस शख़्स को (बहुत) ज़्यादा उम्र देते हैं तो उसे खि़लक़त में उलट (कर बच्चों की तरह मजबूर कर) देते हैं तो क्या वह लोग समझते नहीं (68)

वमा लिया

وَمَا عَلَّمْنَاهُ الشِّعْرَ وَمَا يَنبَغِي لَهُ إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ وَقُرْآنٌ مُّبِينٌ {69}

और हमने न उस (पैग़म्बर) को शेर की तालीम दी है और न शायरी उसकी शान के लायक़ है ये (किताब) तो बस (निरी) नसीहत और साफ-साफ कु़रान है (69)

वमा लिया

لِيُنذِرَ مَن كَانَ حَيًّا وَيَحِقَّ الْقَوْلُ عَلَى الْكَافِرِينَ {70}

ताकि जो जि़न्दा (दिल आकि़ल) हों उसे (अज़ाब से) डराए और काफि़रों पर (अज़ाब का) क़ौल साबित हो जाए (और हुज्जत बाक़ी न रहे) (70)

वमा लिया

أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّا خَلَقْنَا لَهُمْ مِمَّا عَمِلَتْ أَيْدِينَا أَنْعَامًا فَهُمْ لَهَا مَالِكُونَ {71}

क्या उन लोगों ने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हमने उनके फायदे के लिए चारपाए उस चीज़ से पैदा किए जिसे हमारी ही क़ुदरत ने बनाया तो ये लोग (ख्वाहमाख्वाह) उनके मालिक बन गए (71)

वमा लिया

وَذَلَّلْنَاهَا لَهُمْ فَمِنْهَا رَكُوبُهُمْ وَمِنْهَا يَأْكُلُونَ {72}

और हम ही ने चार पायों को उनका मुतीय बना दिया तो बाज़ उनकी सवारियां हैं और बाज़ को खाते हैं (72)

वमा लिया

وَلَهُمْ فِيهَا مَنَافِعُ وَمَشَارِبُ أَفَلَا يَشْكُرُونَ {73}

और चार पायों में उनके (और) बहुत से फायदे हैं और पीने की चीज़ (दूध) तो क्या ये लोग (इस पर भी) शुक्र नहीं करते (73)

वमा लिया

وَاتَّخَذُوا مِن دُونِ اللَّهِ آلِهَةً لَعَلَّهُمْ يُنصَرُونَ {74}

और लोगों ने ख़ुदा को छोड़कर (फ़र्ज़ी माबूद बनाए हैं ताकि उन्हें उनसे कुछ मद्द मिले हालाँकि वह लोग उनकी किसी तरह मद्द कर ही नहीं सकते (74)

वमा लिया

لَا يَسْتَطِيعُونَ نَصْرَهُمْ وَهُمْ لَهُمْ جُندٌ مُّحْضَرُونَ {75}

और ये कुफ़्फ़ार उन माबूदों के लशकर हैं (और क़यामत में) उन सबकी हाजि़री ली जाएगी (75)

वमा लिया

فَلَا يَحْزُنكَ قَوْلُهُمْ إِنَّا نَعْلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعْلِنُونَ {76}

तो (ऐ रसूल) तुम इनकी बातों से आज़ुरदा ख़ातिर (पेरशान) न हो जो कुछ ये लोग छिपा कर करते हैं और जो कुछ खुल्लम खुल्ला करते हैं-हम सबको यक़ीनी जानते हैं (76)

वमा लिया

أَوَلَمْ يَرَ الْإِنسَانُ أَنَّا خَلَقْنَاهُ مِن نُّطْفَةٍ فَإِذَا هُوَ خَصِيمٌ مُّبِينٌ {77}

क्या आदमी ने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हम ही ने इसको एक ज़लील नुत्फे़ से पैदा किया फिर वह यकायक (हमारा ही) खुल्लम खुल्ला मुक़ाबिल (बना) है (77)

वमा लिया

وَضَرَبَ لَنَا مَثَلًا وَنَسِيَ خَلْقَهُ قَالَ مَنْ يُحْيِي الْعِظَامَ وَهِيَ رَمِيمٌ {78}

और हमारी निसबत बातें बनाने लगा और अपनी खि़लक़त (की हालत) भूल गया और कहने लगा कि भला जब ये हड्डियाँ (सड़गल कर) ख़ाक हो जाएँगी तो (फिर) कौन (दोबारा) जि़न्दा कर सकता है (78)

वमा लिया

قُلْ يُحْيِيهَا الَّذِي أَنشَأَهَا أَوَّلَ مَرَّةٍ وَهُوَ بِكُلِّ خَلْقٍ عَلِيمٌ {79}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि उसको वही जि़न्दा करेगा जिसने उनको (जब ये कुछ न थे) पहली बार जि़न्दा कर (रखा) (79)

वमा लिया

الَّذِي جَعَلَ لَكُم مِّنَ الشَّجَرِ الْأَخْضَرِ نَارًا فَإِذَا أَنتُم مِّنْهُ تُوقِدُونَ {80}

और वह हर तरह की पैदाइश से वाकि़फ है जिसने तुम्हारे वास्ते (मिखऱ् और अफ़ार के) हरे दरख़्त से आग पैदा कर दी फिर तुम उससे (और) आग सुलगा लेते हो (80)

वमा लिया

أَوَلَيْسَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِقَادِرٍ عَلَى أَنْ يَخْلُقَ مِثْلَهُم بَلَى وَهُوَ الْخَلَّاقُ الْعَلِيمُ {81}

(भला) जिस (खु़दा) ने सारे आसमान और ज़मीन पैदा किए क्या वह इस पर क़ाबू नहीं रखता कि उनके मिस्ल (दोबारा) पैदा कर दे हाँ (ज़रूर क़ाबू रखता है) और वह तो पैदा करने वाला वाकि़फ़कार है (81)

वमा लिया

إِنَّمَا أَمْرُهُ إِذَا أَرَادَ شَيْئًا أَنْ يَقُولَ لَهُ كُنْ فَيَكُونُ {82}

उसकी शान तो ये है कि जब किसी चीज़ को (पैदा करना) चाहता है तो वह कह देता है कि “हो जा” तो (फौरन) हो जाती है (82)

वमा लिया

فَسُبْحَانَ الَّذِي بِيَدِهِ مَلَكُوتُ كُلِّ شَيْءٍ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ {83}

तो वह ख़ुद (हर नफ़्स से) पाक साफ़ है जिसके क़ब्ज़े कु़दरत में हर चीज़ की हिकमत है और तुम लोग उसी की तरफ लौट कर जाओगे (83)

वमा लिया

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

वमा लिया

وَالصَّافَّاتِ صَفًّا {1}

(इबादत या जिहाद में) पर बाँधने वालों की (क़सम) (1)

वमा लिया

فَالزَّاجِرَاتِ زَجْرًا {2}

फिर (बदों को बुराई से) झिड़क कर डाँटने वाले की (क़सम) (2)

वमा लिया

فَالتَّالِيَاتِ ذِكْرًا {3}

फिर कु़रान पढ़ने वालों की क़सम है (3)

वमा लिया

إِنَّ إِلَهَكُمْ لَوَاحِدٌ {4}

तुम्हारा माबूद (यक़ीनी) एक ही है (4)

वमा लिया

رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا وَرَبُّ الْمَشَارِقِ {5}

जो सारे आसमान ज़मीन का और जो कुछ इन दोनों के दरमियान है (सबका) परवरदिगार है (5)

वमा लिया

إِنَّا زَيَّنَّا السَّمَاء الدُّنْيَا بِزِينَةٍ الْكَوَاكِبِ {6}

और (चाँद सूरज तारे के) तुलूउ व (गु़रूब) के मक़ामात का भी मालिक है हम ही ने नीचे वाले आसमान को तारों की आरइश (जगमगाहट) से आरास्ता किया (6)

वमा लिया

وَحِفْظًا مِّن كُلِّ شَيْطَانٍ مَّارِدٍ {7}

और (तारों को) हर सरकश शैतान से हिफ़ाज़त के वास्ते (भी पैदा किया) (7)

वमा लिया

لَا يَسَّمَّعُونَ إِلَى الْمَلَإِ الْأَعْلَى وَيُقْذَفُونَ مِن كُلِّ جَانِبٍ {8}

कि अब शैतान आलमे बाला की तरफ़ कान भी नहीं लगा सकते और (जहाँ सुन गुन लेना चाहा तो) हर तरफ़ से खदेड़ने के लिए शहाब फेके जाते हैं (8)

वमा लिया

دُحُورًا وَلَهُمْ عَذَابٌ وَاصِبٌ {9}

और उनके लिए पाएदार अज़ाब है (9)

वमा लिया

إِلَّا مَنْ خَطِفَ الْخَطْفَةَ فَأَتْبَعَهُ شِهَابٌ ثَاقِبٌ {10}

मगर जो (शैतान शाज़ व नादिर फरिश्तों की) कोई बात उचक ले भागता है तो आग का दहकता हुआ तीर उसका पीछा करता है (10)

वमा लिया

فَاسْتَفْتِهِمْ أَهُمْ أَشَدُّ خَلْقًا أَم مَّنْ خَلَقْنَا إِنَّا خَلَقْنَاهُم مِّن طِينٍ لَّازِبٍ {11}

तो (ऐ रसूल) तुम उनसे पूछो तो कि उनका पैदा करना ज़्यादा दुश्वार है या उन (मज़कूरा) चीज़ों का जिनको हमने पैदा किया हमने तो उन लोगों को लसदार मिट्टी से पैदा किया (11)

वमा लिया

بَلْ عَجِبْتَ وَيَسْخَرُونَ {12}

बल्कि तुम (उन कुफ़्फ़ार के इन्कार पर) ताज्जुब करते हो और वह लोग (तुमसे) मसख़रापन करते हैं (12)

वमा लिया

وَإِذَا ذُكِّرُوا لَا يَذْكُرُونَ {13}

और जब उन्हें समझाया जाता है तो समझते नहीं हैं (13)

वमा लिया

وَإِذَا رَأَوْا آيَةً يَسْتَسْخِرُونَ {14}

और जब किसी मौजिजे़ को देखते हैं तो (उससे) मसख़रापन करते हैं (14)

वमा लिया

وَقَالُوا إِنْ هَذَا إِلَّا سِحْرٌ مُّبِينٌ {15}

और कहते हैं कि ये तो बस खुला हुआ जादू है (15)

वमा लिया

أَئِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَعِظَامًا أَئِنَّا لَمَبْعُوثُونَ {16}

भला जब हम मर जाएँगे और ख़ाक और हड्डियाँ रह जाएँगे (16)

वमा लिया

أَوَآبَاؤُنَا الْأَوَّلُونَ {17}

तो क्या हम या हमारे अगले बाप दादा फिर दोबारा क़ब्रों से उठा खड़े किए जाँएगे (17)

वमा लिया

قُلْ نَعَمْ وَأَنتُمْ دَاخِرُونَ {18}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि हाँ (ज़रूर उठाए जाओगे) (18)

वमा लिया

فَإِنَّمَا هِيَ زَجْرَةٌ وَاحِدَةٌ فَإِذَا هُمْ يَنظُرُونَ {19}

और तुम ज़लील होगे और वह (क़यामत) तो एक ललकार होगी फिर तो वह लोग फ़ौरन ही (आँखे फाड़-फाड़ के) देखने लगेंगे (19)

वमा लिया

وَقَالُوا يَا وَيْلَنَا هَذَا يَوْمُ الدِّينِ {20}

और कहेंगे हाए अफसोस ये तो क़यामत का दिन है (20)

वमा लिया

هَذَا يَوْمُ الْفَصْلِ الَّذِي كُنتُمْ بِهِ تُكَذِّبُونَ {21}

(जवाब आएगा) ये वही फैसले का दिन है जिसको तुम लोग (दुनिया में) झूठ समझते थे (21)

वमा लिया

احْشُرُوا الَّذِينَ ظَلَمُوا وَأَزْوَاجَهُمْ وَمَا كَانُوا يَعْبُدُونَ {22}

(और फ़रिश्तों को हुक्म होगा कि) जो लोग (दुनिया में) सरकशी करते थे उनको और उनके साथियों को और खु़दा को छोड़कर जिनकी परसतिश करते हैं (22)

वमा लिया

مِن دُونِ اللَّهِ فَاهْدُوهُمْ إِلَى صِرَاطِ الْجَحِيمِ {23}

उनको (सबको) इकट्ठा करो फिर उन्हें जहन्नुम की राह दिखाओ (23)

वमा लिया

وَقِفُوهُمْ إِنَّهُم مَّسْئُولُونَ {24}

और (हाँ ज़रा) उन्हें ठहराओ तो उनसे कुछ पूछना है (24)

वमा लिया

مَا لَكُمْ لَا تَنَاصَرُونَ {25}

(अरे कमबख़्तों) अब तुम्हें क्या होगा कि एक दूसरे की मदद नहीं करते (25)

वमा लिया

بَلْ هُمُ الْيَوْمَ مُسْتَسْلِمُونَ {26}

(जवाब क्या देंगे) बल्कि वह तो आज गर्दन झुकाए हुए हैं (26)

वमा लिया

وَأَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلَى بَعْضٍ يَتَسَاءلُونَ {27}

और एक दूसरे की तरफ मुतावज्जे होकर बाहम पूछताछ करेंगे (27)

वमा लिया

قَالُوا إِنَّكُمْ كُنتُمْ تَأْتُونَنَا عَنِ الْيَمِينِ {28}

(और इन्सान शयातीन से) कहेंगे कि तुम ही तो हमारी दाहिनी तरफ से (हमें बहकाने को) चढ़ आते थे (28)

वमा लिया

قَالُوا بَل لَّمْ تَكُونُوا مُؤْمِنِينَ {29}

वह जवाब देगें (हम क्या जानें) तुम तो खु़द ईमान लाने वाले न थे (29)

वमा लिया

وَمَا كَانَ لَنَا عَلَيْكُم مِّن سُلْطَانٍ بَلْ كُنتُمْ قَوْمًا طَاغِينَ {30}

और (साफ़ तो ये है कि) हमारी तुम पर कुछ हुकूमत तो थी नहीं बल्कि तुम खु़द सरकश लोग थे (30)

वमा लिया

فَحَقَّ عَلَيْنَا قَوْلُ رَبِّنَا إِنَّا لَذَائِقُونَ {31}

फिर अब तो लोगों पर हमारे परवरदिगार का (अज़ाब का) क़ौल पूरा हो गया कि अब हम सब यक़ीनन अज़ाब का मज़ा चखेंगे (31)

वमा लिया

فَأَغْوَيْنَاكُمْ إِنَّا كُنَّا غَاوِينَ {32}

हम खु़द गुमराह थे तो तुम को भी गुमराह किया (32)

वमा लिया

فَإِنَّهُمْ يَوْمَئِذٍ فِي الْعَذَابِ مُشْتَرِكُونَ {33}

ग़रज़ ये लोग सब के सब उस दिन अज़ाब में शरीक होगें (33)

वमा लिया

إِنَّا كَذَلِكَ نَفْعَلُ بِالْمُجْرِمِينَ {34}

और हम तो गुनाहगारों के साथ यूँ ही किया करते हैं ये लोग ऐसे (शरीर) थे (34)

वमा लिया

إِنَّهُمْ كَانُوا إِذَا قِيلَ لَهُمْ لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ يَسْتَكْبِرُونَ {35}

कि जब उनसे कहा जाता था कि खु़दा के सिवा कोई माबूद नहीं तो अकड़ा करते थे (35)

वमा लिया

وَيَقُولُونَ أَئِنَّا لَتَارِكُوا آلِهَتِنَا لِشَاعِرٍ مَّجْنُونٍ {36}

और ये लोग कहते थे कि क्या एक पागल शायर के लिए हम अपने माबूदों को छोड़ बैठें (अरे कम्बख्तों ये शायर या पागल नहीं) (36)

वमा लिया

بَلْ جَاء بِالْحَقِّ وَصَدَّقَ الْمُرْسَلِينَ {37}

बल्कि ये तो हक़ बात लेकर आया है और (अगले) पैग़म्बरों की तसदीक़ करता है (37)

वमा लिया

إِنَّكُمْ لَذَائِقُو الْعَذَابِ الْأَلِيمِ {38}

तुम लोग (अगर न मानोगे) तो ज़रूर दर्दनाक अज़ाब का मज़ा चखोगे (38)

वमा लिया

وَمَا تُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ {39}

और तुम्हें तो उसके किये का बदला दिया जाएगा जो (जो दुनिया में) करते रहे (39)

वमा लिया

إِلَّا عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ {40}

मगर खु़दा के बरगुजीदा बन्दे (40)

वमा लिया

أُوْلَئِكَ لَهُمْ رِزْقٌ مَّعْلُومٌ {41}

उनके वास्ते (बेहिश्त में) एक मुक़र्रर रोज़ी होगी (41)

वमा लिया

فَوَاكِهُ وَهُم مُّكْرَمُونَ {42}

(और वह भी ऐसी वैसी नहीं) हर कि़स्म के मेवे (42)

वमा लिया

فِي جَنَّاتِ النَّعِيمِ {43}

और वह लोग बड़ी इज़्ज़त से नेअमत के (लदे हुए) (43)

वमा लिया

عَلَى سُرُرٍ مُّتَقَابِلِينَ {44}

बाग़ों में तख़्तों पर (चैन से) आमने सामने बैठे होगे (44)

वमा लिया

يُطَافُ عَلَيْهِم بِكَأْسٍ مِن مَّعِينٍ {45}

उनमें साफ सफेद बुर्राक़ शराब के जाम का दौर चल रहा होगा (45)

वमा लिया

بَيْضَاء لَذَّةٍ لِّلشَّارِبِينَ {46}

जो पीने वालों को बड़ा मज़ा देगी (46)

वमा लिया

لَا فِيهَا غَوْلٌ وَلَا هُمْ عَنْهَا يُنزَفُونَ {47}

(और फिर) न उस शराब में ख़ु़मार की वजह से) दर्द सर होगा और न वह उस (के पीने) से मतवाले होंगे (47)

वमा लिया

وَعِنْدَهُمْ قَاصِرَاتُ الطَّرْفِ عِينٌ {48}

और उनके पहलू में (शर्म से) नीची निगाहें करने वाली बड़ी बड़ी आँखों वाली परियाँ होगी (48)

वमा लिया

كَأَنَّهُنَّ بَيْضٌ مَّكْنُونٌ {49}

(उनकी) गोरी-गोरी रंगतों में हल्की सी सुर्खी ऐसी झलकती होगी (49)

वमा लिया

فَأَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلَى بَعْضٍ يَتَسَاءلُونَ {50}

गोया वह अन्डे हैं जो छिपाए हुए रखे हो (50)

वमा लिया

قَالَ قَائِلٌ مِّنْهُمْ إِنِّي كَانَ لِي قَرِينٌ {51}

फिर एक दूसरे की तरफ मुतावज्जे पाकर बाहम बातचीत करते करते उनमें से एक कहने वाला बोल उठेगा कि (दुनिया में) मेरा एक दोस्त था (51)

वमा लिया

يَقُولُ أَئِنَّكَ لَمِنْ الْمُصَدِّقِينَ {52}

और (मुझसे) कहा करता था कि क्या तुम भी क़यामत की तसदीक़ करने वालों में हो (52)

वमा लिया

أَئِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَعِظَامًا أَئِنَّا لَمَدِينُونَ {53}

(भला जब हम मर जाएँगे) और (सड़ गल कर) मिट्टी और हड्डी (होकर) रह जाएँगे तो क्या हमको दोबारा जि़न्दा करके हमारे (आमाल का) बदला दिया जाएगा (53)

वमा लिया

قَالَ هَلْ أَنتُم مُّطَّلِعُونَ {54}

(फिर अपने बेहश्त के साथियों से कहेगा) (54)

वमा लिया

فَاطَّلَعَ فَرَآهُ فِي سَوَاء الْجَحِيمِ {55}

तो क्या तुम लोग भी (मेरे साथ उसे झांक कर देखोगे) ग़रज़ झाँका तो उसे बीच जहन्नुम में (पड़ा हुआ) देखा (55)

वमा लिया

قَالَ تَاللَّهِ إِنْ كِدتَّ لَتُرْدِينِ {56}

(ये देख कर बेसाख्त) बोल उठेगा कि खु़दा की क़सम तुम तो मुझे भी तबाह करने ही को थे (56)

वमा लिया

وَلَوْلَا نِعْمَةُ رَبِّي لَكُنتُ مِنَ الْمُحْضَرِينَ {57}

और अगर मेरे परवरदिगार का एहसान न होता तो मैं भी (इस वक़्त) तेरी तरह जहन्नुम में गिरफ़्तार किया गया होता (57)

वमा लिया

أَفَمَا نَحْنُ بِمَيِّتِينَ {58}

(अब बताओ) क्या (मैं तुम से न कहता था) कि हम को इस पहली मौत के सिवा फिर मरना नहीं है (58)

वमा लिया

إِلَّا مَوْتَتَنَا الْأُولَى وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِينَ {59}

और न हम पर (आख़ेरत) में अज़ाब होगा (59)

वमा लिया

إِنَّ هَذَا لَهُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ {60}

(तो तुम्हें यक़ीन न होता था) ये यक़ीनी बहुत बड़ी कामयाबी है (60)

वमा लिया

لِمِثْلِ هَذَا فَلْيَعْمَلْ الْعَامِلُونَ {61}

ऐसी (ही कामयाबी) के वास्ते काम करने वालों को कारगुज़ारी करनी चाहिए (61)

वमा लिया

أَذَلِكَ خَيْرٌ نُّزُلًا أَمْ شَجَرَةُ الزَّقُّومِ {62}

भला मेहमानी के वास्ते ये (सामान) बेहतर है या थोहड़ का दरख़्त (जो जहन्नुमियों के वास्ते होगा) (62)

वमा लिया

إِنَّا جَعَلْنَاهَا فِتْنَةً لِّلظَّالِمِينَ {63}

जिसे हमने यक़ीनन ज़ालिमों की आज़माइश के लिए बनाया है (63)

वमा लिया

إِنَّهَا شَجَرَةٌ تَخْرُجُ فِي أَصْلِ الْجَحِيمِ {64}

ये वह दरख़्त हैं जो जहन्नुम की तह में उगता है (64)

वमा लिया

طَلْعُهَا كَأَنَّهُ رُؤُوسُ الشَّيَاطِينِ {65}

उसके फल ऐसे (बदनुमा) हैं गोया (हू बहू) साँप के फन जिसे छूते दिल डरे (65)

वमा लिया

فَإِنَّهُمْ لَآكِلُونَ مِنْهَا فَمَالِؤُونَ مِنْهَا الْبُطُونَ {66}

फिर ये (जहन्नुमी लोग) यक़ीनन उसमें से खाएँगे फिर उसी से अपने पेट भरेंगे (66)

वमा लिया

ثُمَّ إِنَّ لَهُمْ عَلَيْهَا لَشَوْبًا مِّنْ حَمِيمٍ {67}

फिर उसके ऊपर से उन को खू़ब खौलता हुआ पानी (पीप वग़ैरह में) मिला मिलाकर पीने को दिया जाएगा (67)

वमा लिया

ثُمَّ إِنَّ مَرْجِعَهُمْ لَإِلَى الْجَحِيمِ {68}

फिर (खा पीकर) उनको जहन्नुम की तरफ यक़ीनन लौट जाना होगा (68)

वमा लिया

إِنَّهُمْ أَلْفَوْا آبَاءهُمْ ضَالِّينَ {69}

उन लोगों ने अपन बाप दादा को गुमराह पाया था (69)

वमा लिया

فَهُمْ عَلَى آثَارِهِمْ يُهْرَعُونَ {70}

ये लोग भी उनके पीछे दौड़े चले जा रहे हैं (70)

वमा लिया

وَلَقَدْ ضَلَّ قَبْلَهُمْ أَكْثَرُ الْأَوَّلِينَ {71}

और उनके क़ब्ल अगलों में से बहुतेरे गुमराह हो चुके (71)

वमा लिया

وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا فِيهِم مُّنذِرِينَ {72}

उन लोगों के डराने वाले (पैग़म्बरों) को भेजा था (72)

वमा लिया

فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُنذَرِينَ {73}

ज़रा देखो तो कि जो लोग डराए जा चुके थे उनका क्या बुरा अन्जाम हुआ (73)

वमा लिया

إِلَّا عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ {74}

मगर (हाँ) खु़दा के निरे खरे बन्दे (महफूज़ रहे) (74)

वमा लिया

وَلَقَدْ نَادَانَا نُوحٌ فَلَنِعْمَ الْمُجِيبُونَ {75}

और नूह ने (अपनी कौ़म से मायूस होकर) हमें ज़रूर पुकारा था (देखो हम) क्या खू़ब जवाब देने वाले थे (75)

वमा लिया

وَنَجَّيْنَاهُ وَأَهْلَهُ مِنَ الْكَرْبِ الْعَظِيمِ {76}

और हमने उनको और उनके लड़के वालों को बड़ी (सख़्त) मुसीबत से नजात दी (76)

वमा लिया

وَجَعَلْنَا ذُرِّيَّتَهُ هُمْ الْبَاقِينَ {77}

और हमने (उनमें वह बरकत दी कि) उनकी औलाद को (दुनिया में) बरक़रार रखा (77)

वमा लिया

وَتَرَكْنَا عَلَيْهِ فِي الْآخِرِينَ {78}

और बाद को आने वाले लोगों में उनका अच्छा चर्चा बाक़ी रखा (78)

वमा लिया

سَلَامٌ عَلَى نُوحٍ فِي الْعَالَمِينَ {79}

कि सारी खु़दायी में (हर तरफ से) नूह पर सलाम है (79)

वमा लिया

إِنَّا كَذَلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ {80}

हम नेकी करने वालों को यूँ जज़ाए ख़ैर अता फरमाते हैं (80)

वमा लिया

إِنَّهُ مِنْ عِبَادِنَا الْمُؤْمِنِينَ {81}

इसमें शक नहीं कि नूह हमारे (ख़ास) ईमानदार बन्दों से थे (81)

वमा लिया

ثُمَّ أَغْرَقْنَا الْآخَرِينَ {82}

फिर हमने बाक़ी लोगों को डुबो दिया (82)

वमा लिया

وَإِنَّ مِن شِيعَتِهِ لَإِبْرَاهِيمَ {83}

और यक़ीनन उन्हीं के तरीक़ो पर चलने वालों में इबराहीम (भी) ज़रूर थे (83)

वमा लिया

إِذْ جَاء رَبَّهُ بِقَلْبٍ سَلِيمٍ {84}

जब वह अपने परवरदिगार (कि इबादत) की तरफ (पहलू में) ऐसा दिल लिए हुए बढ़े जो (हर ऐब से पाक था (84)

वमा लिया

إِذْ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوْمِهِ مَاذَا تَعْبُدُونَ {85}

जब उन्होंने अपने (मुँह बोले) बाप और अपनी क़ौम से कहा कि तुम लोग किस चीज़ की परसतिश करते हो (85)

वमा लिया

أَئِفْكًا آلِهَةً دُونَ اللَّهِ تُرِيدُونَ {86}

क्या खु़दा को छोड़कर दिल से गढ़े हुए माबूदों की तमन्ना रखते हो (86)

वमा लिया

فَمَا ظَنُّكُم بِرَبِّ الْعَالَمِينَ {87}

फिर सारी खु़दाई के पालने वाले के साथ तुम्हारा क्या ख़्याल है (87)

वमा लिया

فَنَظَرَ نَظْرَةً فِي النُّجُومِ {88}

फिर (एक ईद में उन लोगों ने चलने को कहा) तो इबराहीम ने सितारों की तरफ़ एक नज़र देखा (88)

वमा लिया

فَقَالَ إِنِّي سَقِيمٌ {89}

और कहा कि मैं (अनक़रीब) बीमार पड़ने वाला हूँ (89)

वमा लिया

فَتَوَلَّوْا عَنْهُ مُدْبِرِينَ {90}

तो वह लोग इबराहीम के पास से पीठ फेर फेर कर हट गए (90)

वमा लिया

فَرَاغَ إِلَى آلِهَتِهِمْ فَقَالَ أَلَا تَأْكُلُونَ {91}

(बस) फिर तो इबराहीम चुपके से उनके बुतों की तरफ मुतावज्जे हुए और (तान से) कहा तुम्हारे सामने इतने चढ़ाव रखते हैं (91)

वमा लिया

مَا لَكُمْ لَا تَنطِقُونَ {92}

आखि़र तुम खाते क्यों नहीं (अरे तुम्हें क्या हो गया है) (92)

वमा लिया

فَرَاغَ عَلَيْهِمْ ضَرْبًا بِالْيَمِينِ {93}

कि तुम बोलते तक नहीं (93)

वमा लिया

فَأَقْبَلُوا إِلَيْهِ يَزِفُّونَ {94}

फिर तो इबराहीम दाहिने हाथ से मारते हुए उन पर पिल पड़े (और तोड़-फोड़ कर एक बड़े बुत के गले में कुल्हाड़ी डाल दी) (94)

वमा लिया

قَالَ أَتَعْبُدُونَ مَا تَنْحِتُونَ {95}

जब उन लोगों को ख़बर हुयी तो इबराहीम के पास दौड़ते हुए पहुँचे (95)

वमा लिया

وَاللَّهُ خَلَقَكُمْ وَمَا تَعْمَلُونَ {96}

इबराहीम ने कहा (अफ़सोस) तुम लोग उसकी परसतिश करते हो जिसे तुम लोग खु़द तराश कर बनाते हो (96)

वमा लिया

قَالُوا ابْنُوا لَهُ بُنْيَانًا فَأَلْقُوهُ فِي الْجَحِيمِ {97}

हालाँकि तुमको और जिसको तुम लोग बनाते हो (सबको) खु़दा ही ने पैदा किया है (ये सुनकर) वह लोग (आपस में कहने लगे) इसके लिए (भट्टी की सी) एक इमारत बनाओ (97)

वमा लिया

فَأَرَادُوا بِهِ كَيْدًا فَجَعَلْنَاهُمُ الْأَسْفَلِينَ {98}

और (उसमें आग सुलगा कर उसी दहकती हुयी आग में इसको डाल दो) फिर उन लोगों ने इबराहीम के साथ मक्कारी करनी चाही (98)

वमा लिया

وَقَالَ إِنِّي ذَاهِبٌ إِلَى رَبِّي سَيَهْدِينِ {99}

तो हमने (आग सर्द गुलज़ार करके) उन्हें नीचा दिखाया और जब (आज़र ने) इबराहीम को निकाल दिया तो बोले मैं अपने परवरदिगार की तरफ जाता हूँ (99)

वमा लिया

رَبِّ هَبْ لِي مِنَ الصَّالِحِينَ {100}

वह अनक़रीब ही मुझे रूबरा कर देगा (फिर ग़रज की) परवरदिगार मुझे एक नेको कार (फरज़न्द) इनायत फरमा (100)

वमा लिया

فَبَشَّرْنَاهُ بِغُلَامٍ حَلِيمٍ {101}

तो हमने उनको एक बड़े नरम दिले लड़के (के पैदा होने की) खु़शख़बरी दी (101)

वमा लिया

فَلَمَّا بَلَغَ مَعَهُ السَّعْيَ قَالَ يَا بُنَيَّ إِنِّي أَرَى فِي الْمَنَامِ أَنِّي أَذْبَحُكَ فَانظُرْ مَاذَا تَرَى قَالَ يَا أَبَتِ افْعَلْ مَا تُؤْمَرُ سَتَجِدُنِي إِن شَاء اللَّهُ مِنَ الصَّابِرِينَ {102}

फिर जब इस्माईल अपने बाप के साथ दौड़ धूप करने लगा तो (एक दफा) इबराहीम ने कहा बेटा खू़ब मैं (वही के ज़रिये क्या) देखता हूँ कि मैं तो खु़द तुम्हें जि़बाह कर रहा हूँ तो तुम भी ग़ौर करो तुम्हारी इसमें क्या राय है इसमाईल ने कहा अब्बा जान जो आपको हुक्म हुआ है उसको (बे तअम्मुल) कीजिए अगर खु़दा ने चाहा तो मुझे आप सब्र करने वालों में से पाएगे (102)

वमा लिया

فَلَمَّا أَسْلَمَا وَتَلَّهُ لِلْجَبِينِ {103}

फिर जब दोनों ने ये ठान ली और बाप ने बेटे को (जि़बाह करने के लिए) माथे के बल लिटाया (103)

वमा लिया

وَنَادَيْنَاهُ أَنْ يَا إِبْرَاهِيمُ {104}

और हमने (आमादा देखकर) आवाज़ दी ऐ इबराहीम (104)

वमा लिया

قَدْ صَدَّقْتَ الرُّؤْيَا إِنَّا كَذَلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ {105}

तुमने अपने ख़्वाब को सच कर दिखाया अब तुम दोनों को बड़े मरतबे मिलेगें हम नेकी करने वालों को यूँ जज़ाए ख़ैर देते हैं (105)

वमा लिया

إِنَّ هَذَا لَهُوَ الْبَلَاء الْمُبِينُ {106}

इसमें शक नहीं कि ये यक़ीनी बड़ा सख़्त और सरीही इम्तिहान था (106)

वमा लिया

وَفَدَيْنَاهُ بِذِبْحٍ عَظِيمٍ {107}

और हमने इस्माईल का फि़दया एक जि़बाहे अज़ीम (बड़ी कु़र्बानी) क़रार दिया (107)

वमा लिया

وَتَرَكْنَا عَلَيْهِ فِي الْآخِرِينَ {108}

और हमने उनका अच्छा चर्चा बाद को आने वालों में बाक़ी रखा है (108)

वमा लिया

سَلَامٌ عَلَى إِبْرَاهِيمَ {109}

कि (सारी खु़दायी में) इबराहीम पर सलाम (ही सलाम) हैं (109)

वमा लिया

كَذَلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ {110}

हम यूँ नेकी करने वालों को जज़ाए ख़ैर देते हैं (110)

वमा लिया

إِنَّهُ مِنْ عِبَادِنَا الْمُؤْمِنِينَ {111}

बेशक इबराहीम हमारे (ख़ास) ईमानदार बन्दों में थे (111)

वमा लिया

وَبَشَّرْنَاهُ بِإِسْحَاقَ نَبِيًّا مِّنَ الصَّالِحِينَ {112}

और हमने इबराहीम को इसहाक़ (के पैदा होने की) खु़शख़बरी दी थी (112)

वमा लिया

وَبَارَكْنَا عَلَيْهِ وَعَلَى إِسْحَاقَ وَمِن ذُرِّيَّتِهِمَا مُحْسِنٌ وَظَالِمٌ لِّنَفْسِهِ مُبِينٌ {113}

जो एक नेकोसार नबी थे और हमने खु़द इबराहीम पर और इसहाक़ पर अपनी बरकत नाजि़ल की और इन दोनों की नस्ल में बाज़ तो नेकोकार और बाज़ (नाफरमानी करके) अपनी जान पर सरीही सितम ढ़ाने वाला (113)

वमा लिया

وَلَقَدْ مَنَنَّا عَلَى مُوسَى وَهَارُونَ {114}

और हमने मूसा और हारून पर बहुत से एहसानात किए हैं (114)

वमा लिया

وَنَجَّيْنَاهُمَا وَقَوْمَهُمَا مِنَ الْكَرْبِ الْعَظِيمِ {115}

और खु़द दोनों को और इनकी क़ौम को बड़ी (सख़्त) मुसीबत से नजात दी (115)

वमा लिया

وَنَصَرْنَاهُمْ فَكَانُوا هُمُ الْغَالِبِينَ {116}

और (फिरऔन के मुक़ाबले में) हमने उनकी मदद की तो (आखि़र) यही लोग ग़ालिब रहे (116)

वमा लिया

وَآتَيْنَاهُمَا الْكِتَابَ الْمُسْتَبِينَ {117}

और हमने उन दोनों को एक वाज़ेए उलम तालिब किताब (तौरेत) अता की (117)

वमा लिया

وَهَدَيْنَاهُمَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ {118}

और दोनों को सीधी राह की हिदायत फ़रमाई (118)

वमा लिया

وَتَرَكْنَا عَلَيْهِمَا فِي الْآخِرِينَ {119}

और बाद को आने वालों में उनका जि़क्रे ख़ैर बाक़ी रखा (119)

वमा लिया

سَلَامٌ عَلَى مُوسَى وَهَارُونَ {120}

कि (हर जगह) मूसा और हारून पर सलाम (ही सलाम) है (120)

वमा लिया

إِنَّا كَذَلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ {121}

हम नेकी करने वालों को यूँ जज़ाए ख़ैर अता फरमाते हैं (121)

वमा लिया

إِنَّهُمَا مِنْ عِبَادِنَا الْمُؤْمِنِينَ {122}

बेशक ये दोनों हमारे (ख़ालिस ईमानदार बन्दों में से थे) (122)

वमा लिया

وَإِنَّ إِلْيَاسَ لَمِنْ الْمُرْسَلِينَ {123}

और इसमें शक नहीं कि इलियास यक़ीनन पैग़म्बरों में से थे (123)

वमा लिया

إِذْ قَالَ لِقَوْمِهِ أَلَا تَتَّقُونَ {124}

जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि तुम लोग (ख़ुदा से) क्यों नहीं डरते (124)

वमा लिया

أَتَدْعُونَ بَعْلًا وَتَذَرُونَ أَحْسَنَ الْخَالِقِينَ {125}

क्या तुम लोग बाल (बुत) की परसतिश करते हो और खु़दा को छोड़े बैठे हो जो सबसे बेहतर पैदा करने वाला है (125)

वमा लिया

اللَّهَ رَبَّكُمْ وَرَبَّ آبَائِكُمُ الْأَوَّلِينَ {126}

और (जो) तुम्हारा परवरदिगार और तुम्हारे अगले बाप दादाओं का (भी) परवरदिगार है (126)

वमा लिया

فَكَذَّبُوهُ فَإِنَّهُمْ لَمُحْضَرُونَ {127}

तो उसे लोगों ने झुठला दिया तो ये लोग यक़ीनन (जहन्नुम) में गिरफ्तार किए जाएँगे (127)

वमा लिया

إِلَّا عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ {128}

मगर खु़दा के निरे खरे बन्दे महफूज़ रहेंगे (128)

वमा लिया

وَتَرَكْنَا عَلَيْهِ فِي الْآخِرِينَ {129}

और हमने उनका जि़क्र ख़ैर बाद को आने वालों में बाक़ी रखा (129)

वमा लिया

سَلَامٌ عَلَى إِلْ يَاسِينَ {130}

कि (हर तरफ से) आले यासीन पर सलाम (ही सलाम) है (130)

वमा लिया

إِنَّا كَذَلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ {131}

हम यक़ीनन नेकी करने वालों को ऐसा ही बदला दिया करते हैं (131)

वमा लिया

إِنَّهُ مِنْ عِبَادِنَا الْمُؤْمِنِينَ {132}

बेशक वह हमारे (ख़ालिस) ईमानदार बन्दों में थे (132)

वमा लिया

وَإِنَّ لُوطًا لَّمِنَ الْمُرْسَلِينَ {133}

और इसमें भी शक नहीं कि लूत यक़ीनी पैग़म्बरों में से थे (133)

वमा लिया

إِذْ نَجَّيْنَاهُ وَأَهْلَهُ أَجْمَعِينَ {134}

जब हमने उनको और उनके लड़के वालों सब को नजात दी (134)

वमा लिया

إِلَّا عَجُوزًا فِي الْغَابِرِينَ {135}

मगर एक (उनकी) बूढ़ी बीबी जो पीछे रह जाने वालों ही में थीं (135)

वमा लिया

ثُمَّ دَمَّرْنَا الْآخَرِينَ {136}

फिर हमने बाक़ी लोगों को तबाह व बर्बाद कर दिया (136)

वमा लिया

وَإِنَّكُمْ لَتَمُرُّونَ عَلَيْهِم مُّصْبِحِينَ {137}

और ऐ एहले मक्का तुम लोग भी उन पर से (कभी) सुबह को और (कभी) शाम को (आते जाते गुज़रते हो) (137)

वमा लिया

وَبِاللَّيْلِ أَفَلَا تَعْقِلُونَ {138}

तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते (138)

वमा लिया

وَإِنَّ يُونُسَ لَمِنَ الْمُرْسَلِينَ {139}

और इसमें शक नहीं कि यूनुस (भी) पैग़म्बरों में से थे (139)

वमा लिया

إِذْ أَبَقَ إِلَى الْفُلْكِ الْمَشْحُونِ {140}

(वह वक़्त याद करो) जब यूनुस भाग कर एक भरी हुयी कश्ती के पास पहुँचे (140)

वमा लिया

فَسَاهَمَ فَكَانَ مِنْ الْمُدْحَضِينَ {141}

तो (एहले कश्ती ने) कु़रआ डाला तो (उनका ही नाम निकला) यूनुस ने ज़क उठायी (और दरिया में गिर पड़े) (141)

वमा लिया

فَالْتَقَمَهُ الْحُوتُ وَهُوَ مُلِيمٌ {142}

तो उनको एक मछली निगल गयी और यूनुस खु़द (अपनी) मलामत कर रहे थे (142)

वमा लिया

فَلَوْلَا أَنَّهُ كَانَ مِنْ الْمُسَبِّحِينَ {143}

फिर अगर यूनुस (खु़दा की) तसबीह (व जि़क्र) न करते (143)

वमा लिया

لَلَبِثَ فِي بَطْنِهِ إِلَى يَوْمِ يُبْعَثُونَ {144}

तो रोज़े क़यामत तक मछली के पेट में रहते (144)

वमा लिया

فَنَبَذْنَاهُ بِالْعَرَاء وَهُوَ سَقِيمٌ {145}

फिर हमने उनको (मछली के पेट से निकाल कर) एक खुले मैदान में डाल दिया (145)

वमा लिया

وَأَنبَتْنَا عَلَيْهِ شَجَرَةً مِّن يَقْطِينٍ {146}

और (वह थोड़ी देर में) बीमार निढाल हो गए थे और हमने उन पर साये के लिए एक कद्दू का दरख़्त उगा दिया (146)

वमा लिया

وَأَرْسَلْنَاهُ إِلَى مِئَةِ أَلْفٍ أَوْ يَزِيدُونَ {147}

और (इसके बाद) हमने एक लाख बल्कि (एक हिसाब से) ज़्यादा आदमियों की तरफ (पैग़म्बर बना कर भेजा) (147)

वमा लिया

فَآمَنُوا فَمَتَّعْنَاهُمْ إِلَى حِينٍ {148}

तो वह लोग (उन पर) इमान लाए फिर हमने (भी) एक ख़ास वक़्त तक उनको चैन से रखा (148)

वमा लिया

فَاسْتَفْتِهِمْ أَلِرَبِّكَ الْبَنَاتُ وَلَهُمُ الْبَنُونَ {149}

तो (ऐ रसूल) उन कुफ़्फ़ार से पूछो कि क्या तुम्हारे परवरदिगार के लिए बेटियाँ हैं और उनके लिए बेटे (149)

वमा लिया

أَمْ خَلَقْنَا الْمَلَائِكَةَ إِنَاثًا وَهُمْ شَاهِدُونَ {150}

(क्या वाक़ई) हमने फरिश्तों की औरतें बनाया है और ये लोग (उस वक़्त) मौजूद थे (150)

वमा लिया

أَلَا إِنَّهُم مِّنْ إِفْكِهِمْ لَيَقُولُونَ {151}

ख़बरदार (याद रखो कि) ये लोग यक़ीनन अपने दिल से गढ़-गढ़ के कहते हैं कि खु़दा औलाद वाला है (151)

वमा लिया

وَلَدَ اللَّهُ وَإِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ {152}

और ये लोग यक़ीनी झूठे हैं (152)

वमा लिया

أَصْطَفَى الْبَنَاتِ عَلَى الْبَنِينَ {153}

क्या खु़दा ने (अपने लिए) बेटियों को बेटों पर तरजीह दी है (153)

वमा लिया

مَا لَكُمْ كَيْفَ تَحْكُمُونَ {154}

(अरे कम्बख्तों) तुम्हें क्या जुनून हो गया है तुम लोग (बैठे-बैठे) कैसा फैसला करते हो (154)

वमा लिया

أَفَلَا تَذَكَّرُونَ {155}

तो क्या तुम (इतना भी) ग़ौर नहीं करते (155)

वमा लिया

أَمْ لَكُمْ سُلْطَانٌ مُّبِينٌ {156}

या तुम्हारे पास (इसकी) कोई वाज़ेए व रौशन दलील है (156)

वमा लिया

فَأْتُوا بِكِتَابِكُمْ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ {157}

तो अगर तुम (अपने दावे में) सच्चे हो तो अपनी किताब पेश करो (157)

वमा लिया

وَجَعَلُوا بَيْنَهُ وَبَيْنَ الْجِنَّةِ نَسَبًا وَلَقَدْ عَلِمَتِ الْجِنَّةُ إِنَّهُمْ لَمُحْضَرُونَ {158}

और उन लोगों ने खु़दा और जिन्नात के दरम्यिान रिश्ता नाता मुक़र्रर किया है हालाँकि जिन्नात बखू़बी जानते हैं कि वह लोग यक़ीनी (क़यामत में बन्दों की तरह) हाजि़र किए जाएँगे (158)

वमा लिया

سُبْحَانَ اللَّهِ عَمَّا يَصِفُونَ {159}

ये लोग जो बातें बनाया करते हैं इनसे खु़दा पाक साफ़ है (159)

वमा लिया

إِلَّا عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ {160}

मगर खु़दा के निरे खरे बन्दे (ऐसा नहीं कहते) (160)

वमा लिया

فَإِنَّكُمْ وَمَا تَعْبُدُونَ {161}

ग़रज़ तुम लोग खु़द और तुम्हारे माबूद (161)

वमा लिया

مَا أَنتُمْ عَلَيْهِ بِفَاتِنِينَ {162}

उसके खि़लाफ (किसी को) बहका नहीं सकते (162)

वमा लिया

إِلَّا مَنْ هُوَ صَالِ الْجَحِيمِ {163}

मगर उसको जो जहन्नुम में झोंका जाने वाला है (163)

वमा लिया

وَمَا مِنَّا إِلَّا لَهُ مَقَامٌ مَّعْلُومٌ {164}

और फरिश्ते या आइम्मा तो ये कहते हैं कि मैं हर एक का एक दरजा मुक़र्रर है (164)

वमा लिया

وَإِنَّا لَنَحْنُ الصَّافُّونَ {165}

और हम तो यक़ीनन (उसकी इबादत के लिए) सफ बाँधे खड़े रहते हैं (165)

वमा लिया

وَإِنَّا لَنَحْنُ الْمُسَبِّحُونَ {166}

और हम तो यक़ीनी (उसकी) तस्बीह पढ़ा करते हैं (166)

वमा लिया

وَإِنْ كَانُوا لَيَقُولُونَ {167}

अगरचे ये कुफ्फार (इस्लाम के क़ब्ल) कहा करते थे (167)

वमा लिया

لَوْ أَنَّ عِندَنَا ذِكْرًا مِّنْ الْأَوَّلِينَ {168}

कि अगर हमारे पास भी अगले लोगों का तज़किरा (किसी किताबे खु़दा में) होता (168)

वमा लिया

لَكُنَّا عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ {169}

तो हम भी खु़दा के निरे खरे बन्दे ज़रूर हो जाते (169)

वमा लिया

فَكَفَرُوا بِهِ فَسَوْفَ يَعْلَمُونَ {170}

(मगर जब किताब आयी) तो उन लोगों ने उससे इन्कार किया ख़ैर अनक़रीब (उसका नतीजा) उन्हें मालूम हो जाएगा (170)

वमा लिया

وَلَقَدْ سَبَقَتْ كَلِمَتُنَا لِعِبَادِنَا الْمُرْسَلِينَ {171}

और अपने ख़ास बन्दों पैग़म्बरों से हमारी बात पक्की हो चुकी है (171)

वमा लिया

إِنَّهُمْ لَهُمُ الْمَنصُورُونَ {172}

कि इन लोगों की (हमारी बारगाह से) यक़ीनी मदद की जाएगी (172)

वमा लिया

وَإِنَّ جُندَنَا لَهُمُ الْغَالِبُونَ {173}

और हमारा लश्कर तो यक़ीनन ग़ालिब रहेगा (173)

वमा लिया

فَتَوَلَّ عَنْهُمْ حَتَّى حِينٍ {174}

तो (ऐ रसूल) तुम उनसे एक ख़ास वक़्त तक मुँह फेरे रहो (174)

वमा लिया

وَأَبْصِرْهُمْ فَسَوْفَ يُبْصِرُونَ {175}

और इनको देखते रहो तो ये लोग अनक़रीब ही (अपना नतीजा) देख लेगे (175)

वमा लिया

أَفَبِعَذَابِنَا يَسْتَعْجِلُونَ {176}

तो क्या ये लोग हमारे अज़ाब की जल्दी कर रहे हैं (176)

वमा लिया

فَإِذَا نَزَلَ بِسَاحَتِهِمْ فَسَاء صَبَاحُ الْمُنذَرِينَ {177}

फिर जब (अज़ाब) उनकी अंगनाई में उतर पडे़गा तो जो लोग डराए जा चुके हैं उनकी भी क्या बुरी सुबह होगी (177)

वमा लिया

وَتَوَلَّ عَنْهُمْ حَتَّى حِينٍ {178}

और उन लोगों से एक ख़ास वक़्त तक मुँह फेरे रहो (178)

वमा लिया

وَأَبْصِرْ فَسَوْفَ يُبْصِرُونَ {179}

और देखते रहो ये लोग तो खु़द अनक़रीब ही अपना अन्जाम देख लेगें (179)

वमा लिया

سُبْحَانَ رَبِّكَ رَبِّ الْعِزَّةِ عَمَّا يَصِفُونَ {180}

ये लोग जो बातें (खु़दा के बारे में) बनाया करते हैं उनसे तुम्हारा परवरदिगार इज़्ज़त का मालिक पाक साफ है (180)

वमा लिया

وَسَلَامٌ عَلَى الْمُرْسَلِينَ {181}

और पैग़म्बरों पर (दुरूद) सलाम हो (181)

वमा लिया

وَالْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ {182}

और कुल तारीफ खु़दा ही के लिए सज़ावार हैं जो सारे जहाँन का पालने वाला है (182)

वमा लिया

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

खु़दा के नाम से शुरू करता हूँ जो बड़ा मेहरबान निहायत रहमवाला है 

वमा लिया

ص وَالْقُرْآنِ ذِي الذِّكْرِ {1}

सआद नसीहत करने वाले कु़रान की क़सम (तुम बरहक़ नबी हो) (1)

वमा लिया

بَلِ الَّذِينَ كَفَرُوا فِي عِزَّةٍ وَشِقَاقٍ {2}

मगर ये कुफ़्फ़ार (ख़्वाहमख़्वाह) तकब्बुर और अदावत में (पड़े अंधे हो रहें हैं) (2)

वमा लिया

كَمْ أَهْلَكْنَا مِن قَبْلِهِم مِّن قَرْنٍ فَنَادَوْا وَلَاتَ حِينَ مَنَاصٍ {3}

हमने उन से पहले कितने गिरोह हलाक कर डाले तो (अज़ाब के वक़्त) ये लोग चीख़ उठे मगर छुटकारे का वक़्त ही न रहा था (3)

वमा लिया

وَعَجِبُوا أَن جَاءهُم مُّنذِرٌ مِّنْهُمْ وَقَالَ الْكَافِرُونَ هَذَا سَاحِرٌ كَذَّابٌ {4}

और उन लोगों ने इस बात से ताज्जुब किया कि उन्हीं में का (अज़ाबे खु़दा से) एक डरानेवाला (पैग़म्बर) उनके पास आया और काफिर लोग कहने लगे कि ये तो बड़ा (खिलाड़ी) जादूगर और पक्का झूठा है (4)

वमा लिया

أَجَعَلَ الْآلِهَةَ إِلَهًا وَاحِدًا إِنَّ هَذَا لَشَيْءٌ عُجَابٌ {5}

भला (देखो तो) उसने तमाम माबूदों को (मटियामेट करके बस) एक ही माबूद क़ायम रखा ये तो यक़ीनी बड़ी ताज्जुब खे़ज़ बात है (5)

वमा लिया

وَانطَلَقَ الْمَلَأُ مِنْهُمْ أَنِ امْشُوا وَاصْبِرُوا عَلَى آلِهَتِكُمْ إِنَّ هَذَا لَشَيْءٌ يُرَادُ {6}

और उनमें से चन्द रवादार लोग (मजलिस व अज़ा से) ये (कह कर) चल खड़े हुए कि (यहाँ से) चल दो और अपने माबूदों की इबादत पर जमे रहो यक़ीनन इसमें (उसकी) कुछ ज़ाती ग़रज़ है (6)

वमा लिया

مَا سَمِعْنَا بِهَذَا فِي الْمِلَّةِ الْآخِرَةِ إِنْ هَذَا إِلَّا اخْتِلَاقٌ {7}

हम लोगों ने तो ये बात पिछले दीन में कभी सुनी भी नहीं हो न हो ये उसकी मन गढ़ंत है (7)

वमा लिया

أَأُنزِلَ عَلَيْهِ الذِّكْرُ مِن بَيْنِنَا بَلْ هُمْ فِي شَكٍّ مِّن ذِكْرِي بَلْ لَمَّا يَذُوقُوا عَذَابِ {8}

क्या हम सब लोगों में बस (मोहम्मद ही क़ाबिल था कि) उस पर कु़रान नाजि़ल हुआ, नहीं बात ये है कि इनके (सिरे से) मेरे कलाम ही में शक है कि मेरा है या नहीं बल्कि असल ये है कि इन लोगों ने अभी तक अज़ाब के मज़े नहीं चखे (8)

वमा लिया

أَمْ عِندَهُمْ خَزَائِنُ رَحْمَةِ رَبِّكَ الْعَزِيزِ الْوَهَّابِ {9}

(इस वजह से ये शरारत है) (ऐ रसूल) तुम्हारे ज़बरदस्त फ़य्याज़ परवरदिगार के रहमत के ख़ज़ाने इनके पास हैं (9)

वमा लिया

أَمْ لَهُم مُّلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا فَلْيَرْتَقُوا فِي الْأَسْبَابِ {10}

या सारे आसमान व ज़मीन और उन दोनों के दरमियान की सलतनत इन्हीं की ख़ास है तब इनको चाहिए कि रास्ते या सीढियाँ लगाकर (आसमान पर) चढ़ जाएँ और इन्तेज़ाम करें (10)

वमा लिया

جُندٌ مَّا هُنَالِكَ مَهْزُومٌ مِّنَ الْأَحْزَابِ {11}

(ऐ रसूल उन पैग़म्बरों के साथ झगड़ने वाले) गिरोहों में से यहाँ तुम्हारे मुक़ाबले में भी एक लशकर है जो शिकस्त खाएगा (11)

वमा लिया

كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ وَعَادٌ وَفِرْعَوْنُ ذُو الْأَوْتَادِ {12}

उनसे पहले नूह की क़ौम और आद और फिरऔन मेंख़ों वाला (12)

वमा लिया

وَثَمُودُ وَقَوْمُ لُوطٍ وَأَصْحَابُ الأَيْكَةِ أُوْلَئِكَ الْأَحْزَابُ {13}

और समूद और लूत की क़ौम और जंगल के रहने वाले (क़ौम शुऐब ये सब पैग़म्बरों को) झुठला चुकी हैं यही वह गिरोह है (13)

वमा लिया

إِن كُلٌّ إِلَّا كَذَّبَ الرُّسُلَ فَحَقَّ عِقَابِ {14}

(जो शिकस्त खा चुके) सब ही ने तो पैग़म्बरों को झुठलाया तो हमारा अज़ाब ठीक आ नाजि़ल हुआ (14)

वमा लिया

وَمَا يَنظُرُ هَؤُلَاء إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً مَّا لَهَا مِن فَوَاقٍ {15}

और ये (काफिर) लोग बस एक चिंघाड़ (सूर के मुन्तजि़र हैं जो फिर उन्हें) चश्में ज़दन की मोहलत न देगी (15)

वमा लिया

وَقَالُوا رَبَّنَا عَجِّل لَّنَا قِطَّنَا قَبْلَ يَوْمِ الْحِسَابِ {16}

और ये लोग (मज़ाक से) कहते हैं कि परवरदिगार हिसाब के दिन (क़यामत के) क़ब्ल ही (जो) हमारी कि़स्मत को लिखा (हो) हमें जल्दी दे दे (16)

वमा लिया

اصْبِرْ عَلَى مَا يَقُولُونَ وَاذْكُرْ عَبْدَنَا دَاوُودَ ذَا الْأَيْدِ إِنَّهُ أَوَّابٌ {17}

(ऐ रसूल) जैसी जैसी बातें ये लोग करते हैं उन पर सब्र करो और हमारे बन्दे दाऊद को याद करो जो बड़े कू़वत वाले थे (17)

वमा लिया

إِنَّا سَخَّرْنَا الْجِبَالَ مَعَهُ يُسَبِّحْنَ بِالْعَشِيِّ وَالْإِشْرَاقِ {18}

बेशक वह हमारी बारगाह में बड़े रूजू करने वाले थे हमने पहाड़ों को भी ताबेदार बना दिया था कि उनके साथ सुबह और शाम (खु़दा की) तस्बीह करते थे (18)

वमा लिया

وَالطَّيْرَ مَحْشُورَةً كُلٌّ لَّهُ أَوَّابٌ {19}

और परिन्दे भी (यादे खु़दा के वक़्त सिमट) आते और उनके फरमाबरदार थे (19)

वमा लिया

وَشَدَدْنَا مُلْكَهُ وَآتَيْنَاهُ الْحِكْمَةَ وَفَصْلَ الْخِطَابِ {20}

और हमने उनकी सल्तनत को मज़बूत कर दिया और हमने उनको हिकमत और बहस के फैसले की कू़वत अता फरमायी थी (20)

वमा लिया

وَهَلْ أَتَاكَ نَبَأُ الْخَصْمِ إِذْ تَسَوَّرُوا الْمِحْرَابَ {21}

(ऐ रसूल) क्या तुम तक उन दावेदारों की भी ख़बर पहुँची है कि जब वह हुजरे (इबादत) की दीवार फाँद पडे़ (21)

वमा लिया

إِذْ دَخَلُوا عَلَى دَاوُودَ فَفَزِعَ مِنْهُمْ قَالُوا لَا تَخَفْ خَصْمَانِ بَغَى بَعْضُنَا عَلَى بَعْضٍ فَاحْكُم بَيْنَنَا بِالْحَقِّ وَلَا تُشْطِطْ وَاهْدِنَا إِلَى سَوَاء الصِّرَاطِ {22}

(और) जब दाऊद के पास आ खड़े हुए तो वह उनसे डर गए उन लोगों ने कहा कि आप डरें नहीं (हम दोनों) एक मुक़द्दमें के फ़रीकै़न हैं कि हम में से एक ने दूसरे पर ज़्यादती की है तो आप हमारे दरम्यिान ठीक-ठीक फैसला कर दीजिए और इन्साफ से ने गुज़रिये और हमें सीधी राह दिखा दीजिए (22)

वमा लिया

إِنَّ هَذَا أَخِي لَهُ تِسْعٌ وَتِسْعُونَ نَعْجَةً وَلِيَ نَعْجَةٌ وَاحِدَةٌ فَقَالَ أَكْفِلْنِيهَا وَعَزَّنِي فِي الْخِطَابِ {23}

(मुराद ये हैं कि) ये (शख़्स) मेरा भाई है और उसके पास निनान्नवे दुम्बियाँ हैं और मेरे पास सिर्फ एक दुम्बी है उस पर भी ये मुझसे कहता है कि ये दुम्बी भी मुझी को दे दें और बातचीत में मुझ पर सख़्ती करता है (23)

वमा लिया

قَالَ لَقَدْ ظَلَمَكَ بِسُؤَالِ نَعْجَتِكَ إِلَى نِعَاجِهِ وَإِنَّ كَثِيراً مِّنْ الْخُلَطَاء لَيَبْغِي بَعْضُهُمْ عَلَى بَعْضٍ إِلَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَقَلِيلٌ مَّا هُمْ وَظَنَّ دَاوُودُ أَنَّمَا فَتَنَّاهُ فَاسْتَغْفَرَ رَبَّهُ وَخَرَّ رَاكِعًا وَأَنَابَ {24}

दाऊद ने (बग़ैर इसके कि मुदा आलैह से कुछ पूछें) कह दिया कि ये जो तेरी दुम्बी माँग कर अपनी दुम्बियों में मिलाना चाहता है तो ये तुझ पर ज़ुल्म करता है और अक्सर शुरका (की) यकी़नन (ये हालत है कि) एक दूसरे पर जु़ल्म किया करते हैं मगर जिन लोगों ने (सच्चे दिल से) ईमान कु़बूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए (वह ऐसा नहीं करते) और ऐसे लोग बहुत ही कम हैं (ये सुनकर दोनों चल दिए) और अब दाऊद ने समझा कि हमने उनका इमितेहान लिया (और वह ना कामयाब रहे) फिर तो अपने परवरदिगार से बखि़्शश की दुआ माँगने लगे और सजदे में गिर पड़े और (मेरी) तरफ रूझू की (24) (सजदा)

वमा लिया

فَغَفَرْنَا لَهُ ذَلِكَ وَإِنَّ لَهُ عِندَنَا لَزُلْفَى وَحُسْنَ مَآبٍ {25}

तो हमने उनकी वह ग़लती माफ कर दी और इसमें शक नहीं कि हमारी बारगाह में उनका तक़र्रुब और अन्जाम अच्छा हुआ (25)

वमा लिया

يَا دَاوُودُ إِنَّا جَعَلْنَاكَ خَلِيفَةً فِي الْأَرْضِ فَاحْكُم بَيْنَ النَّاسِ بِالْحَقِّ وَلَا تَتَّبِعِ الْهَوَى فَيُضِلَّكَ عَن سَبِيلِ اللَّهِ إِنَّ الَّذِينَ يَضِلُّونَ عَن سَبِيلِ اللَّهِ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ بِمَا نَسُوا يَوْمَ الْحِسَابِ {26}

(हमने फरमाया) ऐ दाऊद हमने तुमको ज़मीन में (अपना) नाएब क़रार दिया तो तुम लोगों के दरम्यिान बिल्कुल ठीक फैसला किया करो और नफ़सियानी ख़्वाहिश की पैरवी न करो बसा ये पीरों तुम्हें ख़ुदा की राह से बहका देगी इसमें शक नहीं कि जो लोग खु़दा की राह में भटकते हैं उनकी बड़ी सख़्त सज़ा होगी क्योंकि उन लोगों ने हिसाब के दिन (क़यामत) को भुला दिया (26)

वमा लिया

وَمَا خَلَقْنَا السَّمَاء وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا بَاطِلًا ذَلِكَ ظَنُّ الَّذِينَ كَفَرُوا فَوَيْلٌ لِّلَّذِينَ كَفَرُوا مِنَ النَّارِ {27}

और हमने आसमान और ज़मीन और जो चीज़ें उन दोनों के दरम्यिान हैं बेकार नहीं पैदा किया ये उन लोगों का ख़्याल है जो काफि़र हो बैठे तो जो लोग दोज़ख़ के मुनकिर हैं उन पर अफ़सोस है (27)

वमा लिया

أَمْ نَجْعَلُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ كَالْمُفْسِدِينَ فِي الْأَرْضِ أَمْ نَجْعَلُ الْمُتَّقِينَ كَالْفُجَّارِ {28}

क्या जिन लोगों ने ईमान कु़बूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए उनको हम (उन लोगों के बराबर) कर दें जो रूए ज़मीन में फसाद फैलाया करते हैं या हम परहेज़गारों को मिसल बदकारों के बना दें (28)

वमा लिया

كِتَابٌ أَنزَلْنَاهُ إِلَيْكَ مُبَارَكٌ لِّيَدَّبَّرُوا آيَاتِهِ وَلِيَتَذَكَّرَ أُوْلُوا الْأَلْبَابِ {29}

(ऐ रसूल) किताब (कु़रान) जो हमने तुम्हारे पास नाजि़ल की है (बड़ी) बरकत वाली है ताकि लोग इसकी आयतों में ग़ौर करें और ताकि अक़्ल वाले नसीहत हासिल करें (29)

वमा लिया

وَوَهَبْنَا لِدَاوُودَ سُلَيْمَانَ نِعْمَ الْعَبْدُ إِنَّهُ أَوَّابٌ {30}

और हमने दाऊद को सुलेमान (सा बेटा) अता किया (सुलेमान भी) क्या अच्छे बन्दे थे (30)

वमा लिया

إِذْ عُرِضَ عَلَيْهِ بِالْعَشِيِّ الصَّافِنَاتُ الْجِيَادُ {31}

बेशक वह हमारी तरफ रूजू करने वाले थे इत्तेफाक़न एक दफ़ा तीसरे पहर को ख़ासे के असील घोड़े उनके सामने पेश किए गए (31)

वमा लिया

فَقَالَ إِنِّي أَحْبَبْتُ حُبَّ الْخَيْرِ عَن ذِكْرِ رَبِّي حَتَّى تَوَارَتْ بِالْحِجَابِ {32}

तो देखने में उलझे के नवाफिल में देर हो गयी जब याद आया तो बोले कि मैंने अपने परवरदिगार की याद पर माल की उलफ़त को तरजीह दी यहाँ तक कि आफ़ताब (मग़रिब के) पर्दे में छुप गया (32)

वमा लिया

رُدُّوهَا عَلَيَّ فَطَفِقَ مَسْحًا بِالسُّوقِ وَالْأَعْنَاقِ {33}

(तो बोले अच्छा) इन घोड़ों को मेरे पास वापस लाओ (जब आए) तो (देर के कफ़्फ़ारा में) घोड़ों की टाँगों और गर्दनों पर हाथ फेर (काट) ने लगे (33)

वमा लिया

وَلَقَدْ فَتَنَّا سُلَيْمَانَ وَأَلْقَيْنَا عَلَى كُرْسِيِّهِ جَسَدًا ثُمَّ أَنَابَ {34}

और हमने सुलेमान का इम्तेहान लिया और उनके तख़्त पर एक बेजान धड़ लाकर गिरा दिया (34)

वमा लिया

قَالَ رَبِّ اغْفِرْ لِي وَهَبْ لِي مُلْكًا لَّا يَنبَغِي لِأَحَدٍ مِّنْ بَعْدِي إِنَّكَ أَنتَ الْوَهَّابُ {35}

फिर (सुलेमान ने मेरी तरफ) रूझू की (और) कहा परवरदिगार मुझे बख़्श दे और मुझे वह मुल्क अता फरमा जो मेरे बाद किसी के वास्ते शायाँह न हो इसमें तो शक नहीं कि तू बड़ा बख़्शने वाला है (35)

वमा लिया

فَسَخَّرْنَا لَهُ الرِّيحَ تَجْرِي بِأَمْرِهِ رُخَاء حَيْثُ أَصَابَ {36}

तो हमने हवा को उनका ताबेए कर दिया कि जहाँ वह पहुँचना चाहते थे उनके हुक्म के मुताबिक़ धीमी चाल चलती थी (36)

वमा लिया

وَالشَّيَاطِينَ كُلَّ بَنَّاء وَغَوَّاصٍ {37}

और (इसी तरह) जितने शयातीन (देव) इमारत बनाने वाले और ग़ोता लगाने वाले थे (37)

वमा लिया

وَآخَرِينَ مُقَرَّنِينَ فِي الْأَصْفَادِ {38}

सबको (ताबेए कर दिया और इसके अलावा) दूसरे देवों को भी जो ज़ंज़ीरों में जकड़े हुए थे (38)

वमा लिया

هَذَا عَطَاؤُنَا فَامْنُنْ أَوْ أَمْسِكْ بِغَيْرِ حِسَابٍ {39}

ऐ सुलेमान ये हमारी बेहिसाब अता है पस (उसे लोगों को देकर) एहसान करो या (सब) अपने ही पास रखो (39)

वमा लिया

وَإِنَّ لَهُ عِندَنَا لَزُلْفَى وَحُسْنَ مَآبٍ {40}

और इसमें शक नहीं कि सुलेमान की हमारी बारगाह में कु़र्ब व मज़ेलत और उमदा जगह है (40)

वमा लिया

وَاذْكُرْ عَبْدَنَا أَيُّوبَ إِذْ نَادَى رَبَّهُ أَنِّي مَسَّنِيَ الشَّيْطَانُ بِنُصْبٍ وَعَذَابٍ {41}

और (ऐ रसूल) हमारे (ख़ास) बन्दे अय्यूब को याद करो जब उन्होंने अपने परवरगिार से फरियाद की कि मुझको शैतान ने बहुत अज़ीयत और तकलीफ पहुँचा रखी है (41)

वमा लिया

ارْكُضْ بِرِجْلِكَ هَذَا مُغْتَسَلٌ بَارِدٌ وَشَرَابٌ {42}

तो हमने कहा कि अपने पाँव से (ज़मीन को) ठुकरा दो और चश्मा निकाला तो हमने कहा (ऐ अय्यूब) तुम्हारे नहाने और पीने के वास्ते ये ठन्डा पानी (हाजि़र) है (42)

वमा लिया

وَوَهَبْنَا لَهُ أَهْلَهُ وَمِثْلَهُم مَّعَهُمْ رَحْمَةً مِّنَّا وَذِكْرَى لِأُوْلِي الْأَلْبَابِ {43}

और हमने उनको और उनके लड़के वाले और उनके साथ उतने ही और अपनी ख़ास मेहरबानी से अता किए (43)

वमा लिया

وَخُذْ بِيَدِكَ ضِغْثًا فَاضْرِب بِّهِ وَلَا تَحْنَثْ إِنَّا وَجَدْنَاهُ صَابِرًا نِعْمَ الْعَبْدُ إِنَّهُ أَوَّابٌ {44}

और अक़्लमंदों के लिए इबरत व नसीहत (क़रार दी) और हमने कहा ऐ अय्यूब तुम अपने हाथ से सींको का मट्ठा लो (और उससे अपनी बीवी को) मारो अपनी क़सम में झूठे न बनो हमने कहा अय्यूब को यक़ीनन साबिर पाया वह क्या अच्छे बन्दे थे (44)

वमा लिया

وَاذْكُرْ عِبَادَنَا إبْرَاهِيمَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ أُوْلِي الْأَيْدِي وَالْأَبْصَارِ {45}

बेशक वह हमारी बारगाह में बड़े झुकने वाले थे और (ऐ रसूल) हमारे बन्दों में इब्राहीम और इसहाक़ और बेशक वह (हमारी बारगाह में) बड़े झुकने वाले थे और (ऐ रसूल) हमारे बन्दों में इबराहीम और इसहाक़ और याकू़ब को याद करो जो कुवत और बसीरत वाले थे (45)

वमा लिया

إِنَّا أَخْلَصْنَاهُم بِخَالِصَةٍ ذِكْرَى الدَّارِ {46}

हमने उन लोगों केा एक ख़ास सिफत आख़ेरत की याद से मुमताज़ किया था (46)

वमा लिया

وَإِنَّهُمْ عِندَنَا لَمِنَ الْمُصْطَفَيْنَ الْأَخْيَارِ {47}

और इसमें शक नहीं कि ये लोग हमारी बारगाह में बरगुज़ीदा और नेक लोगों में हैं (47)

वमा लिया

وَاذْكُرْ إِسْمَاعِيلَ وَالْيَسَعَ وَذَا الْكِفْلِ وَكُلٌّ مِّنْ الْأَخْيَارِ {48}

और (ऐ रसूल) इस्माईल और इलियास और जु़लकिफ़ल को (भी) याद करो और (ये) सब नेक बन्दों में हैं (48)

वमा लिया

هَذَا ذِكْرٌ وَإِنَّ لِلْمُتَّقِينَ لَحُسْنَ مَآبٍ {49}

ये एक नसीहत है और इसमें शक नहीं कि परहेज़गारों के लिए (आख़ेरत में) यक़ीनी अच्छी आरामगाह है (49)

वमा लिया

جَنَّاتِ عَدْنٍ مُّفَتَّحَةً لَّهُمُ الْأَبْوَابُ {50}

(यानि) हमेशा रहने के (बेहिश्त के) सदाबहार बाग़ात जिनके दरवाज़े उनके लिए (बराबर) खुले होगें (50)

वमा लिया

مُتَّكِئِينَ فِيهَا يَدْعُونَ فِيهَا بِفَاكِهَةٍ كَثِيرَةٍ وَشَرَابٍ {51}

और ये लोग वहाँ तकिये लगाए हुए (चैन से बैठे) होगें वहाँ (खु़द्दामे बेहिश्त से) कसरत से मेवे और शराब मँगवाएँगे (51)

वमा लिया

وَعِندَهُمْ قَاصِرَاتُ الطَّرْفِ أَتْرَابٌ {52}

और उनके पहलू में नीची नज़रों वाली (शरमीली) कमसिन बीवियाँ होगी (52)

वमा लिया

هَذَا مَا تُوعَدُونَ لِيَوْمِ الْحِسَابِ {53}

(मोमिनों) ये वह चीज़ हैं जिनका हिसाब के दिन (क़यामत) के लिए तुमसे वायदा किया जाता है (53)

वमा लिया

إِنَّ هَذَا لَرِزْقُنَا مَا لَهُ مِن نَّفَادٍ {54}

बेशक ये हमारी (दी हुयी) रोज़ी है जो कभी तमाम न होगी (54)

वमा लिया

هَذَا وَإِنَّ لِلطَّاغِينَ لَشَرَّ مَآبٍ {55}

ये परहेज़गारों का (अन्जाम) है और सरकशों का तो यक़ीनी बुरा ठिकाना है (55)

वमा लिया

جَهَنَّمَ يَصْلَوْنَهَا فَبِئْسَ الْمِهَادُ {56}

जहन्नुम जिसमें उनको जाना पड़ेगा तो वह क्या बुरा ठिकाना है (56)

वमा लिया

هَذَا فَلْيَذُوقُوهُ حَمِيمٌ وَغَسَّاقٌ {57}

ये खौलता हुआ पानी और पीप और इस तरह अनवा अक़साम की दूसरी चीज़े हैं (57)

वमा लिया

وَآخَرُ مِن شَكْلِهِ أَزْوَاجٌ {58}

तो ये लोग उन्हीं पड़े चखा करें (कुछ लोगों के बारे में) बड़ों से कहा जाएगा (58)

वमा लिया

هَذَا فَوْجٌ مُّقْتَحِمٌ مَّعَكُمْ لَا مَرْحَبًا بِهِمْ إِنَّهُمْ صَالُوا النَّارِ {59}

ये (तुम्हारी चेलों की) फौज भी तुम्हारे साथ ही ढूँसी जाएगी उनका भला न हो ये सब भी दोज़ख़ को जाने वाले हैं (59)

वमा लिया

قَالُوا بَلْ أَنتُمْ لَا مَرْحَبًا بِكُمْ أَنتُمْ قَدَّمْتُمُوهُ لَنَا فَبِئْسَ الْقَرَارُ {60}

तो चेले कहेंगें (हम क्यों) बल्कि तुम (जहन्नुमी हो) तुम्हारा ही भला न हो तो तुम ही लोगों ने तो इस (बला) से हमारा सामना करा दिया तो जहन्नुम भी क्या बुरी जगह है (60)

वमा लिया

قَالُوا رَبَّنَا مَن قَدَّمَ لَنَا هَذَا فَزِدْهُ عَذَابًا ضِعْفًا فِي النَّارِ {61}

(फिर वह) अज्र करेगें परवरदिगार जिस शख़्स ने हमारा इस (बला) से सामना करा दिया तो तू उस पर हमसे बढ़कर जहन्नुम में दो गुना अज़ाब कर (61)

वमा लिया

وَقَالُوا مَا لَنَا لَا نَرَى رِجَالًا كُنَّا نَعُدُّهُم مِّنَ الْأَشْرَارِ {62}

और (फिर) खु़द भी कहेगें हमें क्या हो गया है कि हम जिन लोगों को (दुनिया में) शरीर शुमार करते थे हम उनको यहाँ (दोज़ख़) में नहीं देखते (62)

वमा लिया

أَتَّخَذْنَاهُمْ سِخْرِيًّا أَمْ زَاغَتْ عَنْهُمُ الْأَبْصَارُ {63}

क्या हम उनसे (नाहक़) मसखरापन करते थे या उनकी तरफ से (हमारी) आँखे पलट गयी हैं (63)

वमा लिया

إِنَّ ذَلِكَ لَحَقٌّ تَخَاصُمُ أَهْلِ النَّارِ {64}

इसमें शक नहीं कि जहन्नुमियों का बाहम झगड़ना ये बिल्कुल यक़ीनी ठीक है (64)

वमा लिया

قُلْ إِنَّمَا أَنَا مُنذِرٌ وَمَا مِنْ إِلَهٍ إِلَّا اللَّهُ الْوَاحِدُ الْقَهَّارُ {65}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो बस (अज़ाबे खु़दा से) डराने वाला हूँ और यकता क़हार खु़दा के सिवा कोई माबूद क़ाबिले परसतिश नहीं (65)

वमा लिया

رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا الْعَزِيزُ الْغَفَّارُ {66}

सारे आसमान और ज़मीन का और जो चीज़े उन दोनों के दरमियान हैं (सबका) परवरदिगार ग़ालिब बड़ा बख़्शने वाला है (66)

वमा लिया

قُلْ هُوَ نَبَأٌ عَظِيمٌ {67}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ये (क़यामत) एक बहुत बड़ा वाकि़या है (67)

वमा लिया

أَنتُمْ عَنْهُ مُعْرِضُونَ {68}

जिससे तुम लोग (ख़्वाहमाख़्वाह) मुँह फेरते हो (68)

वमा लिया

مَا كَانَ لِي مِنْ عِلْمٍ بِالْمَلَإِ الْأَعْلَى إِذْ يَخْتَصِمُونَ {69}

आलम बाला के रहने वाले (फरिश्ते) जब वाहम बहस करते थे उसकी मुझे भी ख़बर न थी (69)

वमा लिया

إِن يُوحَى إِلَيَّ إِلَّا أَنَّمَا أَنَا نَذِيرٌ مُّبِينٌ {70}

मेरे पास तो बस वही की गयी है कि मैं (खु़दा के अज़ाब से) साफ-साफ डराने वाला हूँ (70)

वमा लिया

إِذْ قَالَ رَبُّكَ لِلْمَلَائِكَةِ إِنِّي خَالِقٌ بَشَرًا مِن طِينٍ {71}

(वह बहस ये थी कि) जब तुम्हारे परवरदिगार ने फरिश्तों से कहा कि मैं गीली मिट्टी से एक आदमी बनाने वाला हूँ (71)

वमा लिया

فَإِذَا سَوَّيْتُهُ وَنَفَخْتُ فِيهِ مِن رُّوحِي فَقَعُوا لَهُ سَاجِدِينَ {72}

तो जब मैं उसको दुरूस्त कर लूँ और इसमें अपनी (पैदा) की हुयी रूह फूँक दो तो तुम सब के सब उसके सामने सजदे में गिर पड़ना (72) 

वमा लिया

فَسَجَدَ الْمَلَائِكَةُ كُلُّهُمْ أَجْمَعُونَ {73}

तो सब के सब कुल फरिश्तों ने सजदा किया (73)

वमा लिया

إِلَّا إِبْلِيسَ اسْتَكْبَرَ وَكَانَ مِنْ الْكَافِرِينَ {74}

मगर (एक) इबलीस ने कि वह शेख़ी में आ गया और काफिरों में हो गया (74)

वमा लिया

قَالَ يَا إِبْلِيسُ مَا مَنَعَكَ أَن تَسْجُدَ لِمَا خَلَقْتُ بِيَدَيَّ أَسْتَكْبَرْتَ أَمْ كُنتَ مِنَ الْعَالِينَ {75}

ख़ुदा ने (इबलीस से) फरमाया कि ऐ इबलीस जिस चीज़ को मैंने अपनी ख़ास कु़दरत से पैदा किया (भला) उसको सजदा करने से तुझे किसी ने रोका क्या तूने तक़ब्बुर किया या वाकई तू बड़े दरजे वालें में है (75)

वमा लिया

قَالَ أَنَا خَيْرٌ مِّنْهُ خَلَقْتَنِي مِن نَّارٍ وَخَلَقْتَهُ مِن طِينٍ {76}

इबलीस बोल उठा कि मैं उससे बेहतर हूँ तूने मुझे आग से पैदा किया और इसको तूने गीली मिट्टी से पैदा किया (76)

वमा लिया

قَالَ فَاخْرُجْ مِنْهَا فَإِنَّكَ رَجِيمٌ {77}

(कहाँ आग कहाँ मिट्टी) खु़दा ने फरमाया कि तू यहाँ से निकल (दूर हो) तू यक़ीनी मरदूद है (77)

वमा लिया

وَإِنَّ عَلَيْكَ لَعْنَتِي إِلَى يَوْمِ الدِّينِ {78}

और तुझ पर रोज़ जज़ा (क़यामत) तक मेरी फिटकार पड़ा करेगी (78)

वमा लिया

قَالَ رَبِّ فَأَنظِرْنِي إِلَى يَوْمِ يُبْعَثُونَ {79}

शैतान ने अज्र की परवरदिगार तू मुझे उस दिन तक की मोहलत अता कर जिसमें सब लोग (दोबारा) उठा खड़े किए जायेंगे(79)

वमा लिया

قَالَ فَإِنَّكَ مِنَ الْمُنظَرِينَ {80}

फरमाया तुझे एक वक़्त मुअय्यन के दिन तक की मोहलत दी गयी (80)

वमा लिया

إِلَى يَوْمِ الْوَقْتِ الْمَعْلُومِ {81}

वह बोला तेरी ही इज़्ज़त व जलाल की क़सम (81)

वमा लिया

قَالَ فَبِعِزَّتِكَ لَأُغْوِيَنَّهُمْ أَجْمَعِينَ {82}

उनमें से तेरे ख़ालिस बन्दों के सिवा सब के सब को ज़रूर गुमराह करूँगा (82)

वमा लिया

إِلَّا عِبَادَكَ مِنْهُمُ الْمُخْلَصِينَ {83}

खु़दा ने फरमाया तो (हम भी) हक़ बात (कहे देते हैं) (83)

वमा लिया

قَالَ فَالْحَقُّ وَالْحَقَّ أَقُولُ {84}

और मैं तो हक़ ही कहा करता हूँ (84)

वमा लिया

لَأَمْلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنكَ وَمِمَّن تَبِعَكَ مِنْهُمْ أَجْمَعِينَ {85}

कि मैं तुझसे और जो लोग तेरी ताबेदारी करेंगे उन सब से जहन्नुम को ज़रूर भरूँगा (85)

वमा लिया

قُلْ مَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ وَمَا أَنَا مِنَ الْمُتَكَلِّفِينَ {86}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो तुमसे न इस (तबलीग़े रिसालत) की मज़दूरी माँगता हूँ और न मैं (झूठ मूठ) बनावट करने वाला हूँ (86)

वमा लिया

إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ لِّلْعَالَمِينَ {87}

ये (क़ुरान) तो बस सारे जहाँन के लिए नसीहत है (87)

वमा लिया

وَلَتَعْلَمُنَّ نَبَأَهُ بَعْدَ حِينٍ {88}

और कुछ दिनों बाद तुमको इसकी हक़ीकत मालूम हो जाएगी (88)

वमा लिया

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

खु़दा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

वमा लिया

تَنزِيلُ الْكِتَابِ مِنَ اللَّهِ الْعَزِيزِ الْحَكِيمِ {1}

(इस) किताब (क़ुरान) का नाजि़ल करना उस खु़दा की बारगाह से है जो (सब पर) ग़ालिब हिकमत वाला है (1)

वमा लिया

إِنَّا أَنزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ فَاعْبُدِ اللَّهَ مُخْلِصًا لَّهُ الدِّينَ {2}

(ऐ रसूल) हमने किताब (कु़रान) को बिल्कुल ठीक नाजि़ल किया है तो तुम इबादत को उसी के लिए निरा खुरा करके खु़दा की बन्दगी किया करो (2)

वमा लिया

أَلَا لِلَّهِ الدِّينُ الْخَالِصُ وَالَّذِينَ اتَّخَذُوا مِن دُونِهِ أَوْلِيَاء مَا نَعْبُدُهُمْ إِلَّا لِيُقَرِّبُونَا إِلَى اللَّهِ زُلْفَى إِنَّ اللَّهَ يَحْكُمُ بَيْنَهُمْ فِي مَا هُمْ فِيهِ يَخْتَلِفُونَ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي مَنْ هُوَ كَاذِبٌ كَفَّارٌ {3}

आगाह रहो कि इबादत तो ख़ास खु़दा ही के लिए है और जिन लोगों ने खु़दा के सिवा (औरों को अपना) सरपरस्त बना रखा है और कहते हैं कि हम तो उनकी परसतिश सिर्फ़ इसलिए करते हैं कि ये लोग खु़दा की बारगाह में हमारा तक़र्रब बढ़ा देगें इसमें शक नहीं कि जिस बात में ये लोग झगड़ते हैं (क़यामत के दिन) खु़दा उनके दरम्यिान इसमें फै़सला कर देगा बेशक खु़दा झूठे नाशुक्रे को मंजि़ले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता (3)

वमा लिया

لَوْ أَرَادَ اللَّهُ أَنْ يَتَّخِذَ وَلَدًا لَّاصْطَفَى مِمَّا يَخْلُقُ مَا يَشَاء سُبْحَانَهُ هُوَ اللَّهُ الْوَاحِدُ الْقَهَّارُ {4}

अगर खु़दा किसी को (अपना) बेटा बनाना चाहता तो अपने मख़लूक़ात में से जिसे चाहता मुन्तखिब कर लेता (मगर) वह तो उससे पाक व पाकीज़ा है वह तो यकता बड़ा ज़बरदस्त अल्लाह है (4)

वमा लिया

خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِالْحَقِّ يُكَوِّرُ اللَّيْلَ عَلَى النَّهَارِ وَيُكَوِّرُ النَّهَارَ عَلَى اللَّيْلِ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ كُلٌّ يَجْرِي لِأَجَلٍ مُسَمًّى أَلَا هُوَ الْعَزِيزُ الْغَفَّارُ {5}

उसी ने सारे आसमान और ज़मीन को बजा (दुरूस्त) पैदा किया वही रात को दिन पर ऊपर तले लपेटता है और वही दिन को रात पर तह ब तह लपेटता है और उसी ने आफताब और महताब को अपने बस में कर लिया है कि ये सबके सब अपने (अपने) मुक़रर्र वक़्त चलते रहेगें आगाह रहो कि वही ग़ालिब बड़ा बख़्शने वाला है (5)

वमा लिया

خَلَقَكُم مِّن نَّفْسٍ وَاحِدَةٍ ثُمَّ جَعَلَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَأَنزَلَ لَكُم مِّنْ الْأَنْعَامِ ثَمَانِيَةَ أَزْوَاجٍ يَخْلُقُكُمْ فِي بُطُونِ أُمَّهَاتِكُمْ خَلْقًا مِن بَعْدِ خَلْقٍ فِي ظُلُمَاتٍ ثَلَاثٍ ذَلِكُمُ اللَّهُ رَبُّكُمْ لَهُ الْمُلْكُ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ فَأَنَّى تُصْرَفُونَ {6}

उसी ने तुम सबको एक ही शख़्स से पैदा किया फिर उस (की बाक़ी मिट्टी) से उसकी बीबी (हौव्वा) को पैदा किया और उसी ने तुम्हारे लिए आठ कि़स्म के चारपाए पैदा किए वही तुमको तुम्हारी माँओं के पेट में एक कि़स्म की पैदाइश के बाद दूसरी कि़स्म (नुत्फे जमा हुआ खू़न लोथड़ा) की पैदाइश से तेहरे तेहरे अँधेरों (पेट) रहम और झिल्ली में पैदा करता है वही अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार है उसी की बादशाही है उसके सिवा माबूद नहीं तो तुम लोग कहाँ फिरे जाते हो (6)

वमा लिया

إِن تَكْفُرُوا فَإِنَّ اللَّهَ غَنِيٌّ عَنكُمْ وَلَا يَرْضَى لِعِبَادِهِ الْكُفْرَ وَإِن تَشْكُرُوا يَرْضَهُ لَكُمْ وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَى ثُمَّ إِلَى رَبِّكُم مَّرْجِعُكُمْ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ {7}

अगर तुमने उसकी नाशुक्री की तो (याद रखो कि) खु़दा तुमसे बिल्कुल बेपरवाह है और अपने बन्दों से कुफ्र और नाशुक्री को पसन्द नहीं करता और अगर तुम शुक्र करोगे तो वह उसको तुम्हारे वास्ते पसन्द करता है और (क़यामत में) कोई किसी (के गुनाह) का बोझ (अपनी गर्दन पर) नहीं उठाएगा फिर तुमको अपने परवरदिगार की तरफ लौटना है तो (दुनिया में) जो कुछ (भला बुरा) करते थे वह तुम्हें बता देगा वह यक़ीनन दिलों के राज़ (तक) से खू़ब वाकि़फ है (7)

वमा लिया

وَإِذَا مَسَّ الْإِنسَانَ ضُرٌّ دَعَا رَبَّهُ مُنِيبًا إِلَيْهِ ثُمَّ إِذَا خَوَّلَهُ نِعْمَةً مِّنْهُ نَسِيَ مَا كَانَ يَدْعُو إِلَيْهِ مِن قَبْلُ وَجَعَلَ لِلَّهِ أَندَادًا لِّيُضِلَّ عَن سَبِيلِهِ قُلْ تَمَتَّعْ بِكُفْرِكَ قَلِيلًا إِنَّكَ مِنْ أَصْحَابِ النَّارِ {8}

और आदमी (की हालत तो ये है कि) जब उसको कोई तकलीफ पहुँचती है तो उसी की तरफ रूझू करके अपने परवरदिगार से दुआ करता है (मगर) फिर जब खु़दा अपनी तरफ से उसे नेअमत अता फ़रमा देता है तो जिस काम के लिए पहले उससे दुआ करता था उसे भुला देता है और बल्कि खु़दा का शरीक बनाने लगता है ताकि (उस ज़रिए से और लोगों को भी) उसकी राह से गुमराह कर दे (ऐ रसूल ऐसे शख़्स से) कह दो कि थोड़े दिनों और अपने कुफ्र (की हालत) में चैन कर लो (8)

वमा लिया

أَمَّنْ هُوَ قَانِتٌ آنَاء اللَّيْلِ سَاجِدًا وَقَائِمًا يَحْذَرُ الْآخِرَةَ وَيَرْجُو رَحْمَةَ رَبِّهِ قُلْ هَلْ يَسْتَوِي الَّذِينَ يَعْلَمُونَ وَالَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ إِنَّمَا يَتَذَكَّرُ أُوْلُوا الْأَلْبَابِ {9}

(आखि़र) तू यक़ीनी जहन्नुमियों में होगा क्या जो शख़्स रात के अवक़ात में सजदा करके और खड़े-खड़े (खु़दा की) इबादत करता हो और आख़ेरत से डरता हो अपने परवरदिगार की रहमत का उम्मीदवार हो (नाशुक्रे) काफिर के बराबर हो सकता है (ऐ रसूल) तुम पूछो तो कि भला कहीं जानने वाले और न जाननेवाले लोग बराबर हो सकते हैं (मगर) नसीहत इबरतें तो बस अक़्लमन्द ही लोग मानते हैं (9)

वमा लिया

قُلْ يَا عِبَادِ الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا رَبَّكُمْ لِلَّذِينَ أَحْسَنُوا فِي هَذِهِ الدُّنْيَا حَسَنَةٌ وَأَرْضُ اللَّهِ وَاسِعَةٌ إِنَّمَا يُوَفَّى الصَّابِرُونَ أَجْرَهُم بِغَيْرِ حِسَابٍ {10}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ मेरे ईमानदार बन्दों अपने परवरदिगार (ही) से डरते रहो (क्योंकि) जिन लोगों ने इस दुनिया में नेकी की उन्हीं के लिए (आख़ेरत में) भलाई है और खु़दा की ज़मीन तो कुशादा है (जहाँ इबादत न कर सको उसे छोड़ दो) सब्र करने वालों ही की तो उनका भरपूर बेहिसाब बदला दिया जाएगा (10)

वमा लिया

قُلْ إِنِّي أُمِرْتُ أَنْ أَعْبُدَ اللَّهَ مُخْلِصًا لَّهُ الدِّينَ {11}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मैं इबादत को उसके लिए ख़ास करके खु़दा ही की बन्दगी करो (11)

वमा लिया

وَأُمِرْتُ لِأَنْ أَكُونَ أَوَّلَ الْمُسْلِمِينَ {12}

और मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मैं सबसे पहल मुसलमान हूँ (12)

वमा लिया

قُلْ إِنِّي أَخَافُ إِنْ عَصَيْتُ رَبِّي عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ {13}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर मैं अपने परवरदिगार की नाफरमानी करूँ तो मैं एक बड़ी (सख़्त) दिन (क़यामत) के अज़ाब से डरता हूँ (13)

वमा लिया

قُلِ اللَّهَ أَعْبُدُ مُخْلِصًا لَّهُ دِينِي {14}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं अपनी इबादत को उसी के वास्ते ख़ालिस करके खु़दा ही की बन्दगी करता हूँ (अब रहे तुम) तो उसके सिवा जिसको चाहो पूजो (14)

वमा लिया

فَاعْبُدُوا مَا شِئْتُم مِّن دُونِهِ قُلْ إِنَّ الْخَاسِرِينَ الَّذِينَ خَسِرُوا أَنفُسَهُمْ وَأَهْلِيهِمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ أَلَا ذَلِكَ هُوَ الْخُسْرَانُ الْمُبِينُ {15}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि फिल हक़ीक़त घाटे में वही लोग हैं जिन्होंने अपना और अपने लड़के वालों का क़यामत के दिन घाटा किया आगाह रहो कि सरीही (खुल्लम खुल्ला) घाटा यही है कि उनके लिए उनके ऊपर से आग ही के ओढ़ने होगें (15)

वमा लिया

لَهُم مِّن فَوْقِهِمْ ظُلَلٌ مِّنَ النَّارِ وَمِن تَحْتِهِمْ ظُلَلٌ ذَلِكَ يُخَوِّفُ اللَّهُ بِهِ عِبَادَهُ يَا عِبَادِ فَاتَّقُونِ {16}

और उनके नीचे भी (आग ही के) बिछौने ये वह अज़ाब है जिससे खु़दा अपने बन्दों को डराता है तो ऐ मेरे बन्दों मुझी से डरते रहो (16)

वमा लिया

وَالَّذِينَ اجْتَنَبُوا الطَّاغُوتَ أَن يَعْبُدُوهَا وَأَنَابُوا إِلَى اللَّهِ لَهُمُ الْبُشْرَى فَبَشِّرْ عِبَادِ {17}

और जो लोग बुतों से उनके पूजने से बचे रहे और ख़ुदा ही की तरफ रूजु की उनके लिए (जन्नत की) ख़ुशख़बरी है (17)

वमा लिया

الَّذِينَ يَسْتَمِعُونَ الْقَوْلَ فَيَتَّبِعُونَ أَحْسَنَهُ أُوْلَئِكَ الَّذِينَ هَدَاهُمُ اللَّهُ وَأُوْلَئِكَ هُمْ أُوْلُوا الْأَلْبَابِ {18}

तो (ऐ रसूल) तुम मेरे (ख़ास) बन्दों को खु़शख़बरी दे दो जो बात को जी लगाकर सुनते हैं और फिर उसमें से अच्छी बात पर अमल करते हैं यही वह लोग हैं जिनकी खु़दा ने हिदायत की और यही लोग अक़्लमन्द हैं (18)

वमा लिया

أَفَمَنْ حَقَّ عَلَيْهِ كَلِمَةُ الْعَذَابِ أَفَأَنتَ تُنقِذُ مَن فِي النَّارِ {19}

तो (ऐ रसूल) भला जिस शख़्स पर अज़ाब का वायदा पूरा हो चुका हो तो क्या तुम उस शख़्स की ख़लासी दे सकते हो (19)

वमा लिया

لَكِنِ الَّذِينَ اتَّقَوْا رَبَّهُمْ لَهُمْ غُرَفٌ مِّن فَوْقِهَا غُرَفٌ مَّبْنِيَّةٌ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ وَعْدَ اللَّهِ لَا يُخْلِفُ اللَّهُ الْمِيعَادَ {20}

जो आग में (पड़ा) हो मगर जो लोग अपने परवरदिगार से डरते रहे उनके ऊँचे-ऊँचे महल हैं (और) बाला ख़ानों पर बालाख़ाने बने हुए हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं ये खु़दा का वायदा है (और) वायदा खि़लाफी नहीं किया करता (20)

वमा लिया

أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ أَنزَلَ مِنَ السَّمَاء مَاء فَسَلَكَهُ يَنَابِيعَ فِي الْأَرْضِ ثُمَّ يُخْرِجُ بِهِ زَرْعًا مُّخْتَلِفًا أَلْوَانُهُ ثُمَّ يَهِيجُ فَتَرَاهُ مُصْفَرًّا ثُمَّ يَجْعَلُهُ حُطَامًا إِنَّ فِي ذَلِكَ لَذِكْرَى لِأُوْلِي الْأَلْبَابِ {21}

क्या तुमने इस पर ग़ौर नहीं किया कि खु़दा ही ने आसमान से पानी बरसाया फिर उसको ज़मीन में चश्में बनाकर जारी किया फिर उसके ज़रिए से रंग बिरंग (के गल्ले) की खेती उगाता है फिर (पकने के बाद) सूख जाती है तो तुम को वह ज़र्द दिखायी देती है फिर खु़दा उसे चूर-चूर भूसा कर देता है बेशक इसमें अक़्लमन्दों के लिए (बड़ी) इबरत व नसीहत है (21)

वमा लिया

أَفَمَن شَرَحَ اللَّهُ صَدْرَهُ لِلْإِسْلَامِ فَهُوَ عَلَى نُورٍ مِّن رَّبِّهِ فَوَيْلٌ لِّلْقَاسِيَةِ قُلُوبُهُم مِّن ذِكْرِ اللَّهِ أُوْلَئِكَ فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ {22}

तो क्या वह शख़्स जिस के सीने को खु़दा ने (क़ुबूल) इस्लाम के लिए कुशादा कर दिया है तो वह अपने परवरदिगार (की हिदायत) की रौशनी पर (चलता) है मगर गुमराहों के बराबर हो सकता है अफसोस तो उन लोगों पर है जिनके दिल खु़दा की याद से (ग़ाफि़ल होकर) सख़्त हो गए हैं (22)

वमा लिया

اللَّهُ نَزَّلَ أَحْسَنَ الْحَدِيثِ كِتَابًا مُّتَشَابِهًا مَّثَانِيَ تَقْشَعِرُّ مِنْهُ جُلُودُ الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ ثُمَّ تَلِينُ جُلُودُهُمْ وَقُلُوبُهُمْ إِلَى ذِكْرِ اللَّهِ ذَلِكَ هُدَى اللَّهِ يَهْدِي بِهِ مَنْ يَشَاء وَمَن يُضْلِلْ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ هَادٍ {23}

ये लोग सरीही गुमराही में (पड़े) हैं ख़ुदा ने बहुत ही अच्छा कलाम (यावी ये) किताब नाजि़ल फरमाई (जिसकी आयतें) एक दूसरे से मिलती जुलती हैं और (एक बात कई-कई बार) दोहराई गयी है उसके सुनने से उन लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं जो अपने परवरदिगार से डरते हैं फिर उनके जिस्म नरम हो जाते हैं और उनके दिल खु़दा की याद की तरफ बा इतमेनान मुतावज्जे हो जाते हैं ये खु़दा की हिदायत है इसी से जिसकी चाहता है हिदायत करता है और खु़दा जिसको गुमराही में छोड़ दे तो उसको कोई राह पर लाने वाला नहीं (23)

वमा लिया

أَفَمَن يَتَّقِي بِوَجْهِهِ سُوءَ الْعَذَابِ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَقِيلَ لِلظَّالِمِينَ ذُوقُوا مَا كُنتُمْ تَكْسِبُونَ {24}

तो क्या जो शख़्स क़यामत के दिन अपने मुँह को बड़े अज़ाब की सिपर बनाएगा (नाज़ी के बराबर हो सकता है) और ज़ालिमों से कहा जाएगा कि तुम (दुनिया में) जैसा कुछ करते थे अब उसके मज़े चखो (24)

वमा लिया

كَذَّبَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ فَأَتَاهُمْ الْعَذَابُ مِنْ حَيْثُ لَا يَشْعُرُونَ {25}

जो लोग उनसे पहले गुज़र गए उन्होंने भी (पैग़म्बरों को) झुठलाया तो उन पर अज़ाब इस तरह आ पहुँचा कि उन्हें ख़बर भी न हुयी (25)

वमा लिया

فَأَذَاقَهُمُ اللَّهُ الْخِزْيَ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَلَعَذَابُ الْآخِرَةِ أَكْبَرُ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ {26}

तो खु़दा ने उन्हें (इसी) दुनिया की जि़न्दगी में रूसवाई की लज़्ज़त चखा दी और आख़ेरत का अज़ाब तो यक़ीनी उससे कहीं बढ़कर है काश ये लोग ये बात जानते (26)

वमा लिया

وَلَقَدْ ضَرَبْنَا لِلنَّاسِ فِي هَذَا الْقُرْآنِ مِن كُلِّ مَثَلٍ لَّعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ {27}

और हमने तो इस क़ुरान में लोगों के (समझाने के) वास्ते हर तरह की मिसाल बयान कर दी है ताकि ये लोग नसीहत हासिल करें (27)

वमा लिया

قُرآنًا عَرَبِيًّا غَيْرَ ذِي عِوَجٍ لَّعَلَّهُمْ يَتَّقُونَ {28}

(हम ने तो साफ और सलीस) एक अरबी कु़रान (नाजि़ल किया) जिसमें ज़रा भी कजी (पेचीदगी) नहीं (28)

वमा लिया

ضَرَبَ اللَّهُ مَثَلًا رَّجُلًا فِيهِ شُرَكَاء مُتَشَاكِسُونَ وَرَجُلًا سَلَمًا لِّرَجُلٍ هَلْ يَسْتَوِيَانِ مَثَلًا الْحَمْدُ لِلَّهِ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ {29}

ताकि ये लोग (समझकर) खु़दा से डरे ख़ुदा ने एक मिसाल बयान की है कि एक शख़्स (ग़ुलाम) है जिसमें कई झगड़ालू साझी हैं और एक ज़ालिम है कि पूरा एक शख़्स का है उन दोनों की हालत यकसाँ हो सकती हैं (हरगिज़ नहीं) अल्हमदोलिल्लाह मगर उनमें अक्सर इतना भी नहीं जानते (29)

वमा लिया

إِنَّكَ مَيِّتٌ وَإِنَّهُم مَّيِّتُونَ {30}

(ऐ रसूल) बेशक तुम भी मरने वाले हो (30)

वमा लिया

ثُمَّ إِنَّكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ عِندَ رَبِّكُمْ تَخْتَصِمُونَ {31}

और ये लोग भी यक़ीनन मरने वाले हैं फिर तुम लोग क़यामत के दिन अपने परवरदिगार की बारगाह में बाहम झगड़ोगे (31)