Quran पारा 30

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

عَمَّ يَتَسَاءلُونَ {1}

ये लोग आपस में किस चीज़ का हाल पूछते हैं (1)

अम्म

عَنِ النَّبَإِ الْعَظِيمِ {2}

एक बड़ी ख़बर का हाल (2)

अम्म

الَّذِي هُمْ فِيهِ مُخْتَلِفُونَ {3}

जिसमें लोग एख़्तेलाफ कर रहे हैं (3)

अम्म

كَلَّا سَيَعْلَمُونَ {4}

देखो उन्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगा (4)

अम्म

ثُمَّ كَلَّا سَيَعْلَمُونَ {5}

फिर इन्हें अनक़रीब ही ज़रूर मालूम हो जाएगा (5)

अम्म

أَلَمْ نَجْعَلِ الْأَرْضَ مِهَادًا {6}

क्या हमने ज़मीन को बिछौना (6)

अम्म

وَالْجِبَالَ أَوْتَادًا {7}

और पहाड़ों को (ज़मीन) की मेख़े नहीं बनाया (7)

अम्म

وَخَلَقْنَاكُمْ أَزْوَاجًا {8}

और हमने तुम लोगों को जोड़ा जोड़ा पैदा किया (8)

अम्म

وَجَعَلْنَا نَوْمَكُمْ سُبَاتًا {9}

और तुम्हारी नींद को आराम (का बाइस) क़रार दिया (9)

अम्म

وَجَعَلْنَا اللَّيْلَ لِبَاسًا {10}

और रात को परदा बनाया (10)

अम्म

وَجَعَلْنَا النَّهَارَ مَعَاشًا {11}

और हम ही ने दिन को (कसब) मआश (का वक़्त) बनाया (11)

अम्म

وَبَنَيْنَا فَوْقَكُمْ سَبْعًا شِدَادًا {12}

और तुम्हारे ऊपर सात मज़बूत (आसमान) बनाए (12)

अम्म

وَجَعَلْنَا سِرَاجًا وَهَّاجًا {13}

और हम ही ने (सूरज) को रौशन चिराग़ बनाया (13)

अम्म

وَأَنزَلْنَا مِنَ الْمُعْصِرَاتِ مَاء ثَجَّاجًا {14}

और हम ही ने बादलों से मूसलाधार पानी बरसाया (14)

अम्म

لِنُخْرِجَ بِهِ حَبًّا وَنَبَاتًا {15}

ताकि उसके ज़रिए से दाने और सबज़ी (15)

अम्म

وَجَنَّاتٍ أَلْفَافًا {16}

और घने घने बाग़ पैदा करें (16)

अम्म

إِنَّ يَوْمَ الْفَصْلِ كَانَ مِيقَاتًا {17}

बेशक फैसले का दिन मुक़र्रर है (17)

अम्म

يَوْمَ يُنفَخُ فِي الصُّورِ فَتَأْتُونَ أَفْوَاجًا {18}

जिस दिन सूर फूँका जाएगा और तुम लोग गिरोह गिरोह हाजि़र होगे (18)

अम्म

وَفُتِحَتِ السَّمَاء فَكَانَتْ أَبْوَابًا {19}

और आसमान खोल दिए जाएँगे (19)

अम्म

وَسُيِّرَتِ الْجِبَالُ فَكَانَتْ سَرَابًا {20}

तो (उसमें) दरवाज़े हो जाएँगे और पहाड़ (अपनी जगह से) चलाए जाएँगे तो रेत होकर रह जाएँगे (20)

अम्म

إِنَّ جَهَنَّمَ كَانَتْ مِرْصَادًا {21}

बेशक जहन्नुम घात में है (21)

अम्म

لِلْطَّاغِينَ مَآبًا {22}

सरकशों का (वही) ठिकाना है (22)

अम्म

لَابِثِينَ فِيهَا أَحْقَابًا {23}

उसमें मुद्दतों पड़े झींकते रहेंगें (23)

अम्म

لَّا يَذُوقُونَ فِيهَا بَرْدًا وَلَا شَرَابًا {24}

न वहाँ ठन्डक का मज़ा चखेंगे और न खौलते हुए पानी (24)

अम्म

إِلَّا حَمِيمًا وَغَسَّاقًا {25}

और बहती हुयी पीप के सिवा कुछ पीने को मिलेगा (25)

अम्म

جَزَاء وِفَاقًا {26}

(ये उनकी कारस्तानियों का) पूरा पूरा बदला है (26)

अम्म

إِنَّهُمْ كَانُوا لَا يَرْجُونَ حِسَابًا {27}

बेशक ये लोग आख़ेरत के हिसाब की उम्मीद ही न रखते थे (27)

अम्म

وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا كِذَّابًا {28}

और इन लोगो हमारी आयतों को बुरी तरह झुठलाया (28)

अम्म

وَكُلَّ شَيْءٍ أَحْصَيْنَاهُ كِتَابًا {29}

और हमने हर चीज़ को लिख कर मनज़बत कर रखा है (29)

अम्म

فَذُوقُوا فَلَن نَّزِيدَكُمْ إِلَّا عَذَابًا {30}

तो अब तुम मज़ा चखो हमतो तुम पर अज़ाब ही बढ़ाते जाएँगे (30)

अम्म

إِنَّ لِلْمُتَّقِينَ مَفَازًا {31}

बेशक परहेज़गारों के लिए बड़ी कामयाबी है (31)

अम्म

حَدَائِقَ وَأَعْنَابًا {32}

(यानि बेहिश्त के) बाग़ और अंगूर (32)

अम्म

وَكَوَاعِبَ أَتْرَابًا {33}

और वह औरतें जिनकी उठती हुयी जवानियाँ (33)

अम्म

وَكَأْسًا دِهَاقًا {34}

और बाहम हमजोलियाँ हैं और शराब के लबरेज़ साग़र (34)

अम्म

لَّا يَسْمَعُونَ فِيهَا لَغْوًا وَلَا كِذَّابًا {35}

और शराब के लबरेज़ साग़र वहाँ न बेहूदा बात सुनेंगे और न झूठ (35)

अम्म

جَزَاء مِّن رَّبِّكَ عَطَاء حِسَابًا {36}

(ये) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से काफ़ी इनाम और सिला है (36)

अम्म

رَبِّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا الرحْمَنِ لَا يَمْلِكُونَ مِنْهُ خِطَابًا {37}

जो सारे आसमान और ज़मीन और जो इन दोनों के बीच में है सबका मालिक है बड़ा मेहरबान लोगों को उससे बात का पूरा न होगा (37)

अम्म

يَوْمَ يَقُومُ الرُّوحُ وَالْمَلَائِكَةُ صَفًّا لَّا يَتَكَلَّمُونَ إِلَّا مَنْ أَذِنَ لَهُ الرحْمَنُ وَقَالَ صَوَابًا {38}

जिस दिन जिबरील और फरिश्ते (उसके सामने) पर बाँध कर खड़े होंगे (उस दिन) उससे कोई बात न कर सकेगा मगर जिसे ख़ुदा इजाज़त दे और वह ठिकाने की बात कहे (38)

अम्म

ذَلِكَ الْيَوْمُ الْحَقُّ فَمَن شَاء اتَّخَذَ إِلَى رَبِّهِ مَآبًا {39}

वह दिन बरहक़ है तो जो शख़्स चाहे अपने परवरदिगार की बारगाह में (अपना) ठिकाना बनाए (39)

अम्म

إِنَّا أَنذَرْنَاكُمْ عَذَابًا قَرِيبًا يَوْمَ يَنظُرُ الْمَرْءُ مَا قَدَّمَتْ يَدَاهُ وَيَقُولُ الْكَافِرُ يَا لَيْتَنِي كُنتُ تُرَابًا {40}

हमने तुम लोगों को अनक़रीब आने वाले अज़ाब से डरा दिया जिस दिन आदमी अपने हाथों पहले से भेजे हुए (आमाल) को देखेगा और काफि़र कहेगा काश मैं ख़ाक हो जाता (40)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान रहेम वाला हैं 

अम्म

وَالنَّازِعَاتِ غَرْقًا {1}

उन (फरिश्तों) की कसम जो (कुफ्फ़ार की रूह) डूब कर सख्ती से खीच लेते हैं(1) 

अम्म

وَالنَّاشِطَاتِ نَشْطًا {2}

और उनकी कसम जो (मोमिन की जान) आसानी से खोल देता हैं (2)

अम्म

وَالسَّابِحَاتِ سَبْحًا {3}

और उन की कसम जो (आसमान ज़मीन के दरमियान) पैरते फिरते हैं (3) 

अम्म

فَالسَّابِقَاتِ سَبْقًا {4}

फिर एक के आगे बढते है (4)

अम्म

فَالْمُدَبِّرَاتِ أَمْرًا {5}

बढते फिर (दुनिया के) इंतेज़ाम करते हैं (5)

अम्म

يَوْمَ تَرْجُفُ الرَّاجِفَةُ {6}

(उनकी कसम कि क़यामत हो कर रहेगी) जिस दिन ज़मीन को भूचाल आएगा (6)

अम्म

تَتْبَعُهَا الرَّادِفَةُ {7}

फिर उस पीछे और ज़लज़ला आएगा (7)

अम्म

قُلُوبٌ يَوْمَئِذٍ وَاجِفَةٌ {8}

उस दिन दिलों की धड़कन होंगी (8)

अम्म

أَبْصَارُهَا خَاشِعَةٌ {9}

उन की आँखे (निदामत से) झुंकी हुई होंगी (9)

अम्म

يَقُولُونَ أَئِنَّا لَمَرْدُودُونَ فِي الْحَافِرَةِ {10}

कुफ्फ़ार कहते है की क्या हम उलटे पाँव (ज़िन्दगी की तरफ) फिर लौटेंगे (10)

अम्म

أَئِذَا كُنَّا عِظَامًا نَّخِرَةً {11}

क्या जब हम हड्डियाँ हो जाएँगे (11)

अम्म

قَالُوا تِلْكَ إِذًا كَرَّةٌ خَاسِرَةٌ {12}

कहते है की ये लौटना बड़ा नुकसान दे है (12)

अम्म

فَإِنَّمَا هِيَ زَجْرَةٌ وَاحِدَةٌ {13}

वह (क़यामत) तो (गोया) बस एक सख्त चीख होंगी (13)

अम्म

فَإِذَا هُم بِالسَّاهِرَةِ {14}

और लोग यकबारगी एक मैदान (हश्र) में मौजूद होंगे (14)

अम्म

هَلْ أتَاكَ حَدِيثُ مُوسَى {15}

(ऐ रसूल) क्या तुम्हारे पास मूसा का किस्सा भी पंहुचा है (15)

अम्म

إِذْ نَادَاهُ رَبُّهُ بِالْوَادِ الْمُقَدَّسِ طُوًى {16}

जब उन को उन के परवरदिगार ने तूबा के मैदान में पुकारा (16)

अम्म

اذْهَبْ إِلَى فِرْعَوْنَ إِنَّهُ طَغَى {17}

फिरऔन के पास जाओ वह सरकश हो गया है (17)

अम्म

فَقُلْ هَل لَّكَ إِلَى أَن تَزَكَّى {18}

और उस से कहो की क्या तेरी ख्वाहिश है कि (कुफ्र से) पाक हो जाए (18)

अम्म

وَأَهْدِيَكَ إِلَى رَبِّكَ فَتَخْشَى {19}

और मैं तुझे तेरे परवर दीगर की रह बता दूं तो तुझ को खौफ (पैदा) हो (19)

अम्म

فَأَرَاهُ الْآيَةَ الْكُبْرَى {20}

गरज़ मूसा ने उसे असा का बड़ा मोजिज़ा दिखाया (20)

अम्म

فَكَذَّبَ وَعَصَى {21}

तो उसने झुटला दिया और न माना (21)

अम्म

ثُمَّ أَدْبَرَ يَسْعَى {22}

फिर पीठ फेर कर (खिलाफ की ) तदबीर करने लगा (22)

अम्म

فَحَشَرَ فَنَادَى {23}

फिर (लोंगो को) जमा किया और बुलंद आवाज़ से चिल्लाया, (23)

अम्म

فَقَالَ أَنَا رَبُّكُمُ الْأَعْلَى {24}

तो कहने लगा मैं तुम लोंगो का सबसे बड़ा परवर दिगार हूँ, (24)

अम्म

فَأَخَذَهُ اللَّهُ نَكَالَ الْآخِرَةِ وَالْأُولَى {25}

तो खुदा ने उसे दुनिया और आखरत (दोनों) के अज़ाब में गिरफ्तार किया (25)

अम्म

إِنَّ فِي ذَلِكَ لَعِبْرَةً لِّمَن يَخْشَى {26}

बेशक जो शख्स (खुदा) से डरे है उस के लिए इस (किस्से) में इबरत हैं, (26)

अम्म

أَأَنتُمْ أَشَدُّ خَلْقًا أَمِ السَّمَاء بَنَاهَا {27}

भला तुम्हारा पैदा करना ज्यादा मुश्किल हैं या आसमान का (27)

अम्म

رَفَعَ سَمْكَهَا فَسَوَّاهَا {28}

की उसी ने उसको बनाया उसकी छत को खूब ऊंचा रख्खा फिर उसे दुरुस्त किया (28)

अम्म

وَأَغْطَشَ لَيْلَهَا وَأَخْرَجَ ضُحَاهَا {29}

और उसकी रात को तरीक बनाया और (दिन को) धूप निकाली (29)

अम्म

وَالْأَرْضَ بَعْدَ ذَلِكَ دَحَاهَا {30}

और उसके बाद ज़मीन को फैलाया (30)

अम्म

أَخْرَجَ مِنْهَا مَاءهَا وَمَرْعَاهَا {31}

उसी में से उस का पानी और उस का चारा निकाला (31)

अम्म

وَالْجِبَالَ أَرْسَاهَا {32}

और पहाड़ों को उस में गाड़ दिया, (32)

अम्म

مَتَاعًا لَّكُمْ وَلِأَنْعَامِكُمْ {33}

(ये सब सामान) तुम्हारे और तुम्हारे चार पायों के फायदे के लिए लिए हैं (33)

अम्म

فَإِذَا جَاءتِ الطَّامَّةُ الْكُبْرَى {34}

तो जब बड़ी सख्त मुसीबत (क़यामत) आ मौजूद होगी, (34)

अम्म

يَوْمَ يَتَذَكَّرُ الْإِنسَانُ مَا سَعَى {35}

जिस दिन इंसान अपने कामो को खुद याद करेंगा (35)

अम्म

وَبُرِّزَتِ الْجَحِيمُ لِمَن يَرَى {36}

और जहन्नुम देखने वालो के सामने ज़ाहिर कर दी जाएगी, (36)

अम्म

فَأَمَّا مَن طَغَى {37}

जिस ने (दुनिया में) सर उठाया था (37)

अम्म

وَآثَرَ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا {38}

और दुनियावी ज़िन्दगी को तरजीद दी थी (38)

अम्म

فَإِنَّ الْجَحِيمَ هِيَ الْمَأْوَى {39}

उसका ठिकाना तो यकीनन दोज़ख है (39)

अम्म

وَأَمَّا مَنْ خَافَ مَقَامَ رَبِّهِ وَنَهَى النَّفْسَ عَنِ الْهَوَى {40}

मगर जो शख्स अपने परवर दीगर के सामने से खड़े होने से डरता और जी को नाजाएज़ ख्वाहिशो से रोकता रहा (40)

अम्म

فَإِنَّ الْجَنَّةَ هِيَ الْمَأْوَى {41}

तो उसका ठिकाना यकीनन बेहिशत है (41)

अम्म

يَسْأَلُونَكَ عَنِ السَّاعَةِ أَيَّانَ مُرْسَاهَا {42}

(ऐ रसूल) लोग तुम से क़यामत के बारे में पूछते है की उसका कही थल बेडा भी है (42)

अम्म

فِيمَ أَنتَ مِن ذِكْرَاهَا {43}

तो तुम उस के ज़िक्र से फ़िक्र में हो (43)

अम्म

إِلَى رَبِّكَ مُنتَهَاهَا {44}

उस (के इल्म) की इन्तेहा तुम्हारे परवरदिगार ही तक है (44)

अम्म

إِنَّمَا أَنتَ مُنذِرُ مَن يَخْشَاهَا {45}

तो तुम जो बस उस से डरे उसको डराने वाले हो (45)

अम्म

كَأَنَّهُمْ يَوْمَ يَرَوْنَهَا لَمْ يَلْبَثُوا إِلَّا عَشِيَّةً أَوْ ضُحَاهَا {46}

जिस दिन वह लोग उस को देखेंगे तो (समझेगे कि दुनिया में) बस एक शाम या सुबह ठहरे थे (46) 

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है

अम्म

عَبَسَ وَتَوَلَّى {1}

वह अपनी बात पर चीं ब जबीं हो गया (1)

अम्म

أَن جَاءهُ الْأَعْمَى {2}

और मुँह फेर बैठा कि उसके पास नाबीना आ गया (2)

अम्म

وَمَا يُدْرِيكَ لَعَلَّهُ يَزَّكَّى {3}

और तुमको क्या मालूम शायद वह (तालीम से) पाकीज़गी हासिल करता (3)

अम्म

أَوْ يَذَّكَّرُ فَتَنفَعَهُ الذِّكْرَى {4}

या वह नसीहत सुनता तो नसीहत उसके काम आती (4)

अम्म

أَمَّا مَنِ اسْتَغْنَى {5}

तो जो कुछ परवाह नहीं करता (5)

अम्म

فَأَنتَ لَهُ تَصَدَّى {6}

उसके तो तुम दरपै हो जाते हो हालाँकि अगर वह न सुधरे (6)

अम्म

وَمَا عَلَيْكَ أَلَّا يَزَّكَّى {7}

तो तुम जि़म्मेदार नहीं (7)

अम्म

وَأَمَّا مَن جَاءكَ يَسْعَى {8}

और जो तुम्हारे पास लपकता हुआ आता है (8)

अम्म

وَهُوَ يَخْشَى {9}

और (ख़ुदा से) डरता है (9)

अम्म

فَأَنتَ عَنْهُ تَلَهَّى {10}

तो तुम उससे बेरूख़ी करते हो (10)

अम्म

كَلَّا إِنَّهَا تَذْكِرَةٌ {11}

देखो ये (क़ुरआन) तो सरासर नसीहत है (11)

अम्म

فَمَن شَاء ذَكَرَهُ {12}

तो जो चाहे इसे याद रखे (12)

अम्म

فِي صُحُفٍ مُّكَرَّمَةٍ {13}

(लौहे महफूज़ के) बहुत मोअज़जि़ज औराक़ में (लिखा हुआ) है (13)

अम्म

مَّرْفُوعَةٍ مُّطَهَّرَةٍ {14}

बुलन्द मरतबा और पाक हैं (14)

अम्म

بِأَيْدِي سَفَرَةٍ {15}

(ऐसे) लिखने वालों के हाथों में है (15)

अम्म

كِرَامٍ بَرَرَةٍ {16}

जो बुज़ुर्ग नेकोकार हैं (16)

अम्म

قُتِلَ الْإِنسَانُ مَا أَكْفَرَهُ {17}

इन्सान हलाक हो जाए वह क्या कैसा नाशुक्रा है (17)

अम्म

مِنْ أَيِّ شَيْءٍ خَلَقَهُ {18}

(ख़ुदा ने) उसे किस चीज़ से पैदा किया (18)

अम्म

مِن نُّطْفَةٍ خَلَقَهُ فَقَدَّرَهُ {19}

नुत्फे से उसे पैदा किया फिर उसका अन्दाज़ा मुक़र्रर किया (19)

अम्म

ثُمَّ السَّبِيلَ يَسَّرَهُ {20}

फिर उसका रास्ता आसान कर दिया (20)

अम्म

ثُمَّ أَمَاتَهُ فَأَقْبَرَهُ {21}

फिर उसे मौत दी फिर उसे कब्र में दफ़न कराया (21)

अम्म

ثُمَّ إِذَا شَاء أَنشَرَهُ {22}

फिर जब चाहेगा उठा खड़ा करेगा (22)

अम्म

كَلَّا لَمَّا يَقْضِ مَا أَمَرَهُ {23}

सच तो यह है कि ख़ुदा ने जो हुक़्म उसे दिया उसने उसको पूरा न किया (23)

अम्म

فَلْيَنظُرِ الْإِنسَانُ إِلَى طَعَامِهِ {24}

तो इन्सान को अपने घाटे ही तरफ ग़ौर करना चाहिए (24)

अम्म

أَنَّا صَبَبْنَا الْمَاء صَبًّا {25}

कि हम ही ने (बादल) से पानी बरसाया (25)

अम्म

ثُمَّ شَقَقْنَا الْأَرْضَ شَقًّا {26}

फिर हम ही ने ज़मीन (दरख़्त उगाकर) चीरी फाड़ी (26)

अम्म

فَأَنبَتْنَا فِيهَا حَبًّا {27}

फिर हमने उसमें अनाज उगाया (27)

अम्म

وَعِنَبًا وَقَضْبًا {28}

और अंगूर और तरकारियाँ (28)

अम्म

وَزَيْتُونًا وَنَخْلًا {29}

और ज़ैतून और खजूरें (29)

अम्म

وَحَدَائِقَ غُلْبًا {30}

और घने घने बाग़ और मेवे (30)

अम्म

وَفَاكِهَةً وَأَبًّا {31}

और चारा (ये सब कुछ) तुम्हारे और तुम्हारे (31)

अम्म

مَّتَاعًا لَّكُمْ وَلِأَنْعَامِكُمْ {32}

चारपायों के फायदे के लिए (बनाया) (32)

अम्म

فَإِذَا جَاءتِ الصَّاخَّةُ {33}

तो जब कानों के परदे फाड़ने वाली (क़यामत) आ मौजूद होगी (33)

अम्म

يَوْمَ يَفِرُّ الْمَرْءُ مِنْ أَخِيهِ {34}

उस दिन आदमी अपने भाई (34)

अम्म

وَأُمِّهِ وَأَبِيهِ {35}

और अपनी माँ और अपने बाप (35)

अम्म

وَصَاحِبَتِهِ وَبَنِيهِ {36}

और अपने लड़के बालों से भागेगा (36)

अम्म

لِكُلِّ امْرِئٍ مِّنْهُمْ يَوْمَئِذٍ شَأْنٌ يُغْنِيهِ {37}

उस दिन हर शख़्स (अपनी नजात की) ऐसी फि़क्र में होगा जो उसके (मशग़ूल होने के) लिए काफ़ी हों (37)

अम्म

وُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ مُّسْفِرَةٌ {38}

बहुत से चेहरे तो उस दिन चमकते होंगे (38)

अम्म

ضَاحِكَةٌ مُّسْتَبْشِرَةٌ {39}

ख़न्दाँ शादमाँ (यही नेको कार हैं) (39)

अम्म

وَوُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ عَلَيْهَا غَبَرَةٌ {40}

और बहुत से चेहरे ऐसे होंगे जिन पर गर्द पड़ी होगी (40)

अम्म

تَرْهَقُهَا قَتَرَةٌ {41}

उस पर सियाही छाई हुयी होगी (41)

अम्म

أُوْلَئِكَ هُمُ الْكَفَرَةُ الْفَجَرَةُ {42}

यही कुफ़्फ़ार बदकार हैं (42)

अम्म

بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ

अम्म

إِذَا ٱلشَّمْسُ كُوِّرَتْ {1}

जिस वक़्त आफ़ताब की चादर को लपेट लिया जाएगा (1) 

अम्म

وَإِذَا ٱلنُّجُومُ ٱنكَدَرَتْ {2}

और जिस वक़्त तारे गिर पड़ेगा (2) 

अम्म

وَإِذَا ٱلْجِبَالُ سُيِّرَتْ {3}

और जब पहाड़ चलाए जाएँगे (3) 

अम्म

وَإِذَا ٱلْعِشَارُ عُطِّلَتْ {4}

और जब अनक़रीब जनने वाली ऊटनिया बेकार कर दी जाएंगी (4)

अम्म

وَإِذَا ٱلْوُحُوشُ حُشِرَتْ {5}

और जिस वक़्त वेह्शी जानवर इकट्ठा किये जायेगे (5)

अम्म

وَإِذَا ٱلْبِحَارُ سُجِّرَتْ {6}

और जिस वक़्त दरिया आग हो जायेंगे (6)

अम्म

وَإِذَا ٱلنُّفُوسُ زُوِّجَتْ {7}

और जिस वक़्त रुहें हड्डियों से मिला दी जाएंगी (7)

अम्म

وَإِذَا ٱلْمَوْءُۥدَةُ سُئِلَتْ {8}

और जिस वक़्त ज़िन्दा दरगोर लड़की से पूछा जाएंगा (8)

अम्म

بِأَىِّ ذَنۢبٍ قُتِلَتْ {9}

कि वह किस गुनाह के बदले मारी गयी (9)

अम्म

وَإِذَا ٱلصُّحُفُ نُشِرَتْ {10}

और जिस वक़्त (आमाल के) दफ्तर खोले जाएँगे (10)

अम्म

وَإِذَا ٱلسَّمَآءُ كُشِطَتْ {11}

और जिस वक़्त आसमान का छिलका उतारा जाएंगा (11)

अम्म

وَإِذَا ٱلْجَحِيمُ سُعِّرَتْ {12}

और जब दोज़ख़ (की आग) भड़कायी जाएंगी (12)

अम्म

وَإِذَا ٱلْجَنَّةُ أُزْلِفَتْ {13}

और जब बेहिश्त क़रीब कर दी जाएंगी (13)

अम्म

عَلِمَتْ نَفْسٌ مَّآ أَحْضَرَتْ {14}

तब हर शख़्स मालूम करेगा कि वह क्या (आमाल) लेकर आया (14)

अम्म

فَلَآ أُقْسِمُ بِٱلْخُنَّسِ {15}

तो मुझे उन सितारों की क़सम जो चलते चलते पीछे हट जाते (15)

अम्म

ٱلْجَوَارِ ٱلْكُنَّسِ {16}

और गायब होते हैं (16)

अम्म

وَٱلَّيْلِ إِذَا عَسْعَسَ {17}

और रात की क़सम जब ख़त्म होने को आ, (17)

अम्म

وَٱلصُّبْحِ إِذَا تَنَفَّسَ {18}

और सुबह की क़सम जब रौशन हो जाऐ (18)

अम्म

إِنَّهُۥ لَقَوْلُ رَسُولٍ كَرِيمٍ {19}

कि बेशक यें (क़ुरान) ऐक मुअज़िज़ फरि’ता (जिबरील की ज़बान का पैगाम है (19)

अम्म

ذِى قُوَّةٍ عِندَ ذِى ٱلْعَرْشِ مَكِينٍ {20}

जो बड़े क़वी अर्श के मालिक की बारगह में बुलन्द रुतबा है (20)

अम्म

مُّطَاعٍ ثَمَّ أَمِينٍ {21}

वहाँ (सब फरिश्तो का) सरदार अमानतदार है (21)

अम्म

وَمَا صَاحِبُكُم بِمَجْنُونٍ {22}

और (मक्के वालों) तुम्हारे साथी मोहम्मद दीवाने नहीं हैं (22)

अम्म

وَلَقَدْ رَءَاهُ بِٱلْأُفُقِ ٱلْمُبِينِ {23}

और बेशक उन्होने जिबरील को (आसमान के) खुले (शरक़ी) किनारे पर देखा है (23)

अम्म

وَمَا هُوَ عَلَى ٱلْغَيْبِ بِضَنِينٍ {24}

और वह गैब की बातों के ज़ाहिर करने में बख़ील नहीं (24)

अम्म

وَمَا هُوَ بِقَوْلِ شَيْطَٰنٍ رَّجِيمٍ {25}

और न यह मरदूद शैतान का क़ौल है (25)

अम्म

فَأَيْنَ تَذْهَبُونَ {26}

फिर तुम कहाँ जाते हो (26)

अम्म

إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ لِّلْعَٰلَمِينَ {27}

ये सारे जहान के लोगो के लिए बस नसीहत है (27)

अम्म

لِمَن شَاءَ مِنكُمْ أَن يَسْتَقِيمَ {28}

(मगर) उसी के लि, जो तुममें सीधी राह चले (28)

अम्म

وَمَا تَشَا ءُونَ إِلَّا أَن يَشَا ءَ ٱللَّهُ رَبُّ ٱلْعَٰلَمِينَ {29}

और तुम तो सारे जहान के पालने वाले ख़ुदा के चाहे बगैर कुछ भी चाह नहीं सकते (29)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

अम्म

إِذَا السَّمَاء انفَطَرَتْ {1}

जब आसमान तखऱ् जाएगा (1)

अम्म

وَإِذَا الْكَوَاكِبُ انتَثَرَتْ {2}

और जब तारे झड़ पड़ेंगे (2)

अम्म

وَإِذَا الْبِحَارُ فُجِّرَتْ {3}

और जब दरिया बह (कर एक दूसरे से मिल) जाएँगे (3)

अम्म

وَإِذَا الْقُبُورُ بُعْثِرَتْ {4}

और जब कब्रें उखाड़ दी जाएँगी (4)

अम्म

عَلِمَتْ نَفْسٌ مَّا قَدَّمَتْ وَأَخَّرَتْ {5}

तब हर शख़्स को मालूम हो जाएगा कि उसने आगे क्या भेजा था और पीछे क्या छोड़ा था (5)

अम्म

يَا أَيُّهَا الْإِنسَانُ مَا غَرَّكَ بِرَبِّكَ الْكَرِيمِ {6}

ऐ इन्सान तुम अपने परवरदिगार के बारे में किस चीज़ ने धोका दिया (6)

अम्म

الَّذِي خَلَقَكَ فَسَوَّاكَ فَعَدَلَكَ {7}

जिसने तुझे पैदा किया तो तुझे दुरूस्त बनाया और मुनासिब आज़ा दिए (7)

अम्म

فِي أَيِّ صُورَةٍ مَّا شَاء رَكَّبَكَ {8}

और जिस सूरत में उसने चाहा तेरे जोड़ बन्द मिलाए (8)

अम्म

كَلَّا بَلْ تُكَذِّبُونَ بِالدِّينِ {9}

हाँ बात ये है कि तुम लोग जज़ा (के दिन) को झुठलाते हो (9)

अम्म

وَإِنَّ عَلَيْكُمْ لَحَافِظِينَ {10}

हालाँकि तुम पर निगेहबान मुक़र्रर हैं (10)

अम्म

كِرَامًا كَاتِبِينَ {11}

बुज़ुर्ग लोग (फ़रिश्ते सब बातों को) लिखने वाले (केरामन क़ातेबीन) (11)

अम्म

يَعْلَمُونَ مَا تَفْعَلُونَ {12}

जो कुछ तुम करते हो वह सब जानते हैं (12)

अम्म

إِنَّ الْأَبْرَارَ لَفِي نَعِيمٍ {13}

बेशक नेको कार (बेहिश्त की) नेअमतों में होंगे (13)

अम्म

وَإِنَّ الْفُجَّارَ لَفِي جَحِيمٍ {14}

और बदकार लोग यक़ीनन जहन्नुम में जज़ा के दिन (14)

अम्म

يَصْلَوْنَهَا يَوْمَ الدِّينِ {15}

उसी में झोंके जाएँगे (15)

अम्म

وَمَا هُمْ عَنْهَا بِغَائِبِينَ {16}

और वह लोग उससे छुप न सकेंगे (16)

अम्म

وَمَا أَدْرَاكَ مَا يَوْمُ الدِّينِ {17}

और तुम्हें क्या मालूम कि जज़ा का दिन क्या है (17)

अम्म

ثُمَّ مَا أَدْرَاكَ مَا يَوْمُ الدِّينِ {18}

फिर तुम्हें क्या मालूम कि जज़ा का दिन क्या चीज़ है (18)

अम्म

يَوْمَ لَا تَمْلِكُ نَفْسٌ لِّنَفْسٍ شَيْئًا وَالْأَمْرُ يَوْمَئِذٍ لِلَّهِ {19}

उस दिन कोई शख़्स किसी शख़्स की भलाई न कर सकेगा और उस दिन हुक्म सिर्फ ख़ुदा ही का होगा (19)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

अम्म

وَيْلٌ لِّلْمُطَفِّفِينَ {1}

नाप तौल में कमी करने वालों की ख़राबी है (1)

अम्म

الَّذِينَ إِذَا اكْتَالُواْ عَلَى النَّاسِ يَسْتَوْفُونَ {2}

जो औरें से नाप कर लें तो पूरा पूरा लें (2)

अम्म

وَإِذَا كَالُوهُمْ أَو وَّزَنُوهُمْ يُخْسِرُونَ {3}

और जब उनकी नाप या तौल कर दें तो कम कर दें (3)

अम्म

أَلَا يَظُنُّ أُولَئِكَ أَنَّهُم مَّبْعُوثُونَ {4}

क्या ये लोग इतना भी ख़्याल नहीं करते (4)

अम्म

لِيَوْمٍ عَظِيمٍ {5}

कि एक बड़े (सख़्त) दिन (क़यामत) में उठाए जाएँगे (5)

अम्म

يَوْمَ يَقُومُ النَّاسُ لِرَبِّ الْعَالَمِينَ {6}

जिस दिन तमाम लोग सारे जहाँन के परवरदिगार के सामने खड़े होंगे (6)

अम्म

كَلَّا إِنَّ كِتَابَ الفُجَّارِ لَفِي سِجِّينٍ {7}

सुन रखो कि बदकारों के नाम ए अमाल सिज्जीन में हैं (7)

अम्म

وَمَا أَدْرَاكَ مَا سِجِّينٌ {8}

तुमको क्या मालूम सिज्जीन क्या चीज़ है (8)

अम्म

كِتَابٌ مَّرْقُومٌ {9}

एक लिखा हुआ दफ़तर है जिसमें शयातीन के (आमाल दर्ज हैं) (9)

अम्म

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ {10}

उस दिन झुठलाने वालों की ख़राबी है (10)

अम्म

الَّذِينَ يُكَذِّبُونَ بِيَوْمِ الدِّينِ {11}

जो लोग रोजे़ जज़ा को झुठलाते हैं (11)

अम्म

وَمَا يُكَذِّبُ بِهِ إِلَّا كُلُّ مُعْتَدٍ أَثِيمٍ {12}

हालाँकि उसको हद से निकल जाने वाले गुनाहगार के सिवा कोई नहीं झुठलाता (12)

अम्म

إِذَا تُتْلَى عَلَيْهِ آيَاتُنَا قَالَ أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ {13}

जब उसके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो कहता है कि ये तो अगलों के अफ़साने हैं (13)

अम्म

كَلَّا بَلْ رَانَ عَلَى قُلُوبِهِم مَّا كَانُوا يَكْسِبُونَ {14}

नहीं नहीं बात ये है कि ये लोग जो आमाल (बद) करते हैं उनका उनके दिलों पर जंग बैठ गया है (14)

अम्म

كَلَّا إِنَّهُمْ عَن رَّبِّهِمْ يَوْمَئِذٍ لَّمَحْجُوبُونَ {15}

बेशक ये लोग उस दिन अपने परवरदिगार (की रहमत से) रोक दिए जाएँगे (15)

अम्म

ثُمَّ إِنَّهُمْ لَصَالُوا الْجَحِيمِ {16}

फिर ये लोग ज़रूर जहन्नुम वासिल होंगे (16)

अम्म

ثُمَّ يُقَالُ هَذَا الَّذِي كُنتُم بِهِ تُكَذِّبُونَ {17}

फिर उनसे कहा जाएगा कि ये वही चीज़ तो है जिसे तुम झुठलाया करते थे (17)

अम्म

كَلَّا إِنَّ كِتَابَ الْأَبْرَارِ لَفِي عِلِّيِّينَ {18}

ये भी सुन रखो कि नेको के नाम ए अमाल इल्लीयीन में होंगे (18)

अम्म

وَمَا أَدْرَاكَ مَا عِلِّيُّونَ {19}

और तुमको क्या मालूम कि इल्लीयीन क्या है वह एक लिखा हुआ दफ़तर है (19)

अम्म

كِتَابٌ مَّرْقُومٌ {20}

जिसमें नेकों के आमाल दर्ज हैं (20)

अम्म

يَشْهَدُهُ الْمُقَرَّبُونَ {21}

उसके पास मुक़र्रिब (फ़रिश्ते) हाजि़र हैं (21)

अम्म

إِنَّ الْأَبْرَارَ لَفِي نَعِيمٍ {22}

बेशक नेक लोग नेअमतों में होंगे (22)

अम्म

عَلَى الْأَرَائِكِ يَنظُرُونَ {23}

तख़्तों पर बैठे नज़ारे करेंगे (23)

अम्म

تَعْرِفُ فِي وُجُوهِهِمْ نَضْرَةَ النَّعِيمِ {24}

तुम उनके चेहरों ही से राहत की ताज़गी मालूम कर लोगे (24)

अम्म

يُسْقَوْنَ مِن رَّحِيقٍ مَّخْتُومٍ {25}

उनको सर ब मोहर ख़ालिस शराब पिलायी जाएगी (25)

अम्म

خِتَامُهُ مِسْكٌ وَفِي ذَلِكَ فَلْيَتَنَافَسِ الْمُتَنَافِسُونَ {26}

जिसकी मोहर मिश्क की होगी और उसकी तरफ अलबत्ता शयाक़ीन को रग़बत करनी चाहिए (26)

अम्म

وَمِزَاجُهُ مِن تَسْنِيمٍ {27}

और उस (शराब) में तसनीम के पानी की आमेजि़श होगी (27)

अम्म

عَيْنًا يَشْرَبُ بِهَا الْمُقَرَّبُونَ {28}

वह एक चश्मा है जिसमें मुक़रेबीन पियेंगे (28)

अम्म

إِنَّ الَّذِينَ أَجْرَمُوا كَانُواْ مِنَ الَّذِينَ آمَنُوا يَضْحَكُونَ {29}

बेशक जो गुनाहगार मोमिनों से हँसी किया करते थे (29)

अम्म

وَإِذَا مَرُّواْ بِهِمْ يَتَغَامَزُونَ {30}

और जब उनके पास से गुज़रते तो उन पर चशमक करते थे (30)

अम्म

وَإِذَا انقَلَبُواْ إِلَى أَهْلِهِمُ انقَلَبُواْ فَكِهِينَ {31}

और जब अपने लड़के वालों की तरफ़ लौट कर आते थे तो इतराते हुए (31)

अम्म

وَإِذَا رَأَوْهُمْ قَالُوا إِنَّ هَؤُلَاء لَضَالُّونَ {32}

और जब उन मोमिनीन को देखते तो कह बैठते थे कि ये तो यक़ीनी गुमराह हैं (32)

अम्म

وَمَا أُرْسِلُوا عَلَيْهِمْ حَافِظِينَ {33}

हालाँकि ये लोग उन पर कुछ निगराँ बना के तो भेजे नहीं गए थे (33)

अम्म

فَالْيَوْمَ الَّذِينَ آمَنُواْ مِنَ الْكُفَّارِ يَضْحَكُونَ {34}

तो आज (क़यामत में) ईमानदार लोग काफि़रों से हँसी करेंगे (34)

अम्म

عَلَى الْأَرَائِكِ يَنظُرُونَ {35}

(और) तख़्तों पर बैठे नज़ारे करेंगे (35)

अम्म

هَلْ ثُوِّبَ الْكُفَّارُ مَا كَانُوا يَفْعَلُونَ {36}

कि अब तो काफि़रों को उनके किए का पूरा पूरा बदला मिल गया (36)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

إِذَا السَّمَاء انشَقَّتْ {1}

जब आसमान फट जाएगा (1)

अम्म

وَأَذِنَتْ لِرَبِّهَا وَحُقَّتْ {2}

और अपने परवरदिगार का हुक्म बजा लाएगा और उसे वाजिब भी यही है (2)

अम्म

وَإِذَا الْأَرْضُ مُدَّتْ {3}

और जब ज़मीन (बराबर करके) तान दी जाएगी (3)

अम्म

وَأَلْقَتْ مَا فِيهَا وَتَخَلَّتْ {4}

और जो कुछ उसमें है उगल देगी और बिल्कुल ख़ाली हो जाएगी (4)

अम्म

وَأَذِنَتْ لِرَبِّهَا وَحُقَّتْ {5}

और अपने परवरदिगार का हुक्म बजा लाएगी (5)

अम्म

يَا أَيُّهَا الْإِنسَانُ إِنَّكَ كَادِحٌ إِلَى رَبِّكَ كَدْحًا فَمُلَاقِيهِ {6}

और उस पर लाजि़म भी यही है (तो क़यामत आ जाएगी) ऐ इन्सान तू अपने परवरदिगार की हुज़ूरी की कोशिश करता है (6)

अम्म

فَأَمَّا مَنْ أُوتِيَ كِتَابَهُ بِيَمِينِهِ {7}

तो तू (एक न एक दिन) उसके सामने हाजि़र होगा फिर (उस दिन) जिसका नामाए आमाल उसके दाहिने हाथ में दिया जाएगा (7)

अम्म

فَسَوْفَ يُحَاسَبُ حِسَابًا يَسِيرًا {8}

उससे तो हिसाब आसान तरीके़ से लिया जाएगा (8)

अम्म

وَيَنقَلِبُ إِلَى أَهْلِهِ مَسْرُورًا {9}

और (फिर) वह अपने (मोमिनीन के) क़बीले की तरफ ख़ुश ख़ुश पलटेगा (9)

अम्म

وَأَمَّا مَنْ أُوتِيَ كِتَابَهُ وَرَاء ظَهْرِهِ {10}

लेकिन जिस शख़्स को उसका नामए आमल उसकी पीठ के पीछे से दिया जाएगा (10)

अम्म

فَسَوْفَ يَدْعُو ثُبُورًا {11}

वह तो मौत की दुआ करेगा (11)

अम्म

وَيَصْلَى سَعِيرًا {12}

और जहन्नुम वासिल होगा (12)

अम्म

إِنَّهُ كَانَ فِي أَهْلِهِ مَسْرُورًا {13}

ये शख़्स तो अपने लड़के बालों में मस्त रहता था (13)

अम्म

إِنَّهُ ظَنَّ أَن لَّن يَحُورَ {14}

और समझता था कि कभी (ख़ुदा की तरफ) फिर कर जाएगा ही नहीं (14)

अम्म

بَلَى إِنَّ رَبَّهُ كَانَ بِهِ بَصِيرًا {15}

हाँ उसका परवरदिगार यक़ीनी उसको देख भाल कर रहा है (15)

अम्म

فَلَا أُقْسِمُ بِالشَّفَقِ {16}

तो मुझे शाम की सुर्खी की क़सम (16)

अम्म

وَاللَّيْلِ وَمَا وَسَقَ {17}

और रात की और उन चीज़ों की जिन्हें ये ढाँक लेती है (17)

अम्म

وَالْقَمَرِ إِذَا اتَّسَقَ {18}

और चाँद की जब पूरा हो जाए (18)

अम्म

لَتَرْكَبُنَّ طَبَقًا عَن طَبَقٍ {19}

कि तुम लोग ज़रूर एक सख़्ती के बाद दूसरी सख़्ती में फँसोगे (19)

अम्म

فَمَا لَهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ {20}

तो उन लोगों को क्या हो गया है कि ईमान नहीं इमान नहीं लाते (20)

अम्म

وَإِذَا قُرِئَ عَلَيْهِمُ الْقُرْآنُ لَا يَسْجُدُونَ {21}

और जब उनके सामने क़ुरान पढ़ा जाता है तो (ख़ुदा का) सजदा नहीं करते (21) (सजदा) 

अम्म

بَلِ الَّذِينَ كَفَرُواْ يُكَذِّبُونَ {22}

बल्कि काफि़र लोग तो (और उसे) झुठलाते हैं (22)

अम्म

وَاللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا يُوعُونَ {23}

और जो बातें ये लोग अपने दिलों में छिपाते हैं ख़ुदा उसे ख़ूब जानता है (23)

अम्म

فَبَشِّرْهُم بِعَذَابٍ أَلِيمٍ {24}

तो (ऐ रसूल) उन्हें दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशख़बरी दे दो (24)

अम्म

إِلَّا الَّذِينَ آمَنُواْ وَعَمِلُواْ الصَّالِحَاتِ لَهُمْ أَجْرٌ غَيْرُ مَمْنُونٍ {25}

मगर जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे अच्छे काम किए उनके लिए बेइन्तिहा अज्र (व सवाब है) (25)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

अम्म

وَالسَّمَاء ذَاتِ الْبُرُوجِ {1}

बुर्जों वाले आसमानों की क़सम (1)

अम्म

وَالْيَوْمِ الْمَوْعُودِ {2}

और उस दिन की जिसका वायदा किया गया है (2)

अम्म

وَشَاهِدٍ وَمَشْهُودٍ {3}

और गवाह की और जिसकी गवाही दे जाएगी (3)

अम्म

قُتِلَ أَصْحَابُ الْأُخْدُودِ {4}

उसकी (कि कुफ़्फ़ार मक्का हलाक हुए) जिस तरह ख़न्दक़ वाले हलाक कर दिए गए (4)

अम्म

النَّارِ ذَاتِ الْوَقُودِ {5}

जो ख़न्दक़ें आग की थीं (5)

अम्म

إِذْ هُمْ عَلَيْهَا قُعُودٌ {6}

जिसमें (उन्होंने मुसलमानों के लिए) ईंधन झोंक रखा था (6)

अम्म

وَهُمْ عَلَى مَا يَفْعَلُونَ بِالْمُؤْمِنِينَ شُهُودٌ {7}

जब वह उन (ख़न्दक़ों) पर बैठे हुए और जो सुलूक ईमानदारों के साथ करते थे उसको सामने देख रहे थे (7)

अम्म

وَمَا نَقَمُوا مِنْهُمْ إِلَّا أَن يُؤْمِنُوا بِاللَّهِ الْعَزِيزِ الْحَمِيدِ {8}

और उनको मोमिनीन की यही बात बुरी मालूम हुयी कि वह लोग ख़ुदा पर ईमान लाए थे जो ज़बरदस्त और सज़ावार हम्द है (8)

अम्म

الَّذِي لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَاللَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ {9}

वह (ख़ुदा) जिसकी सारे आसमान ज़मीन में बादशाहत है और ख़ुदा हर चीज़ से वाकि़फ़ है (9)

अम्म

إِنَّ الَّذِينَ فَتَنُوا الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ ثُمَّ لَمْ يَتُوبُوا فَلَهُمْ عَذَابُ جَهَنَّمَ وَلَهُمْ عَذَابُ الْحَرِيقِ {10}

बेशक जिन लोगों ने ईमानदार मर्दों और औरतों को तकलीफें दीं फिर तौबा न की उनके लिए जहन्नुम का अज़ाब तो है ही (इसके अलावा) जलने का भी अज़ाब होगा (10)

अम्म

إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُمْ جَنَّاتٌ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ ذَلِكَ الْفَوْزُ الْكَبِيرُ {11}

बेशक जो लोग ईमान लाए और अच्छे काम करते रहे उनके लिए वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं यही तो बड़ी कामयाबी है (11)

अम्म

إِنَّ بَطْشَ رَبِّكَ لَشَدِيدٌ {12}

बेशक तुम्हारे परवरदिगार की पकड़ बहुत सख़्त है (12)

अम्म

إِنَّهُ هُوَ يُبْدِئُ وَيُعِيدُ {13}

वही पहली दफ़ा पैदा करता है और वही दोबारा (क़यामत में जि़न्दा) करेगा (13)

अम्म

وَهُوَ الْغَفُورُ الْوَدُودُ {14}

और वही बड़ा बख़्शने वाला मोहब्बत करने वाला है (14)

अम्म

ذُو الْعَرْشِ الْمَجِيدُ {15}

अर्श का मालिक बड़ा आलीशान है (15)

अम्म

فَعَّالٌ لِّمَا يُرِيدُ {16}

जो चाहता है करता है (16)

अम्म

هَلْ أَتَاكَ حَدِيثُ الْجُنُودِ {17}

क्या तुम्हारे पास लशकरों की ख़बर पहुँची है (17)

अम्म

فِرْعَوْنَ وَثَمُودَ {18}

(यानि) फिरआऊन व समूद की (ज़रूर पहुँची है) (18)

अम्म

بَلِ الَّذِينَ كَفَرُوا فِي تَكْذِيبٍ {19}

मगर कुफ़्फ़ार तो झुठलाने ही (की फि़क्र) में हैं (19)

अम्म

وَاللَّهُ مِن وَرَائِهِم مُّحِيطٌ {20}

और ख़ुदा उनको पीछे से घेरे हुए है (ये झुठलाने के क़ाबिल नहीं) (20)

अम्म

بَلْ هُوَ قُرْآنٌ مَّجِيدٌ {21}

बल्कि ये तो क़ुरान मजीद है (21)

अम्म

فِي لَوْحٍ مَّحْفُوظٍ {22}

जो लौहे महफूज़ में लिखा हुआ है (22)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

अम्म

وَالسَّمَاء وَالطَّارِقِ {1}

आसमान और रात को आने वाले की क़सम (1)

अम्म

وَمَا أَدْرَاكَ مَا الطَّارِقُ {2}

और तुमको क्या मालूम रात को आने वाला क्या है (2)

अम्म

النَّجْمُ الثَّاقِبُ {3}

(वह) चमकता हुआ तारा है (3)

अम्म

إِن كُلُّ نَفْسٍ لَّمَّا عَلَيْهَا حَافِظٌ {4}

(इस बात की क़सम) कि कोई शख़्स ऐसा नहीं जिस पर निगेहबान मुक़र्रर नहीं (4)

अम्म

فَلْيَنظُرِ الْإِنسَانُ مِمَّ خُلِقَ {5}

तो इन्सान को देखना चाहिए कि वह किस चीज़ से पैदा हुआ हैं (5)

अम्म

خُلِقَ مِن مَّاء دَافِقٍ {6}

वह उछलते हुए पानी (मनी) से पैदा हुआ है (6)

अम्म

يَخْرُجُ مِن بَيْنِ الصُّلْبِ وَالتَّرَائِبِ {7}

जो पीठ और सीने की हड्डियों के बीच में से निकलता है (7)

अम्म

إِنَّهُ عَلَى رَجْعِهِ لَقَادِرٌ {8}

बेशक ख़ुदा उसके दोबारा (पैदा) करने पर ज़रूर कु़दरत रखता है (8)

अम्म

يَوْمَ تُبْلَى السَّرَائِرُ {9}

जिस दिन दिलों के भेद जाँचे जाएँगे (9)

अम्म

فَمَا لَهُ مِن قُوَّةٍ وَلَا نَاصِرٍ {10}

तो (उस दिन) उसका न कुछ ज़ोर चलेगा और न कोई मददगार होगा (10)

अम्म

وَالسَّمَاء ذَاتِ الرَّجْعِ {11}

चक्कर (खाने) वाले आसमान की क़सम (11)

अम्म

وَالْأَرْضِ ذَاتِ الصَّدْعِ {12}

और फटने वाली (ज़मीन की क़सम) (12)

अम्म

إِنَّهُ لَقَوْلٌ فَصْلٌ {13}

बेशक ये क़ुरान क़ौले फ़ैसल है (13)

अम्म

وَمَا هُوَ بِالْهَزْلِ {14}

और लग़ो नहीं है (14)

अम्म

إِنَّهُمْ يَكِيدُونَ كَيْدًا {15}

बेशक ये कुफ़्फ़ार अपनी तदबीर कर रहे हैं (15)

अम्म

وَأَكِيدُ كَيْدًا {16}

और मैं अपनी तरजी कर रहा हूँ (16)

अम्म

فَمَهِّلِ الْكَافِرِينَ أَمْهِلْهُمْ رُوَيْدًا {17}

तो काफि़रों को मोहलत दो बस उनको थोड़ी सी मोहलत दो (17)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

سَبِّحِ اسْمَ رَبِّكَ الْأَعْلَى {1}

ऐ रसूल अपने आलीशान परवरदिगार के नाम की तस्बीह करो (1)

अम्म

الَّذِي خَلَقَ فَسَوَّى {2}

जिसने (हर चीज़ को) पैदा किया (2)

अम्म

وَالَّذِي قَدَّرَ فَهَدَى {3}

और दुरूस्त किया और जिसने (उसका) अन्दाज़ा मुक़र्रर किया फिर राह बतायी (3)

अम्म

وَالَّذِي أَخْرَجَ الْمَرْعَى {4}

और जिसने (हैवानात के लिए) चारा उगाया (4)

अम्म

فَجَعَلَهُ غُثَاء أَحْوَى {5}

फिर खुश्क उसे सियाह रंग का कूड़ा कर दिया (5)

अम्म

سَنُقْرِؤُكَ فَلَا تَنسَى {6}

हम तुम्हें (ऐसा) पढ़ा देंगे कि कभी भूलो ही नहीं (6)

अम्म

إِلَّا مَا شَاء اللَّهُ إِنَّهُ يَعْلَمُ الْجَهْرَ وَمَا يَخْفَى {7}

मगर जो ख़ुदा चाहे (मन्सूख़ कर दे) बेशक वह खुली बात को भी जानता है और छुपे हुए को भी (7) 

अम्म

وَنُيَسِّرُكَ لِلْيُسْرَى {8}

और हम तुमको आसान तरीके की तौफ़ीक़ देंगे (8)

अम्म

فَذَكِّرْ إِن نَّفَعَتِ الذِّكْرَى {9}

तो जहाँ तक समझाना मुफ़ीद हो समझते रहो (9)

अम्म

سَيَذَّكَّرُ مَن يَخْشَى {10}

जो खौफ रखता हो वह तो फौरी समझ जाएगा (10)

अम्म

وَيَتَجَنَّبُهَا الْأَشْقَى {11}

और बदबख़्त उससे पहलू तही करेगा (11)

अम्म

الَّذِي يَصْلَى النَّارَ الْكُبْرَى {12}

जो (क़यामत में) बड़ी (तेज़) आग में दाखि़ल होगा (12)

अम्म

ثُمَّ لَا يَمُوتُ فِيهَا وَلَا يَحْيَى {13}

फिर न वहाँ मरेगा ही न जीयेगा (13)

अम्म

قَدْ أَفْلَحَ مَن تَزَكَّى {14}

वह यक़ीनन मुराद दिली को पहुँचा जो (शिर्क से) पाक हो (14)

अम्म

وَذَكَرَ اسْمَ رَبِّهِ فَصَلَّى {15}

और अपने परवरदिगार का जि़क्र करता और नमाज़ पढ़ता रहा (15)

अम्म

بَلْ تُؤْثِرُونَ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا {16}

मगर तुम लोग दुनियावी जि़न्दगी को तरजीह देते हो (16)

अम्म

وَالْآخِرَةُ خَيْرٌ وَأَبْقَى {17}

हालाकि आख़ोरत कहीं बेहतर और देर पा है (17)

अम्म

إِنَّ هَذَا لَفِي الصُّحُفِ الْأُولَى {18}

बेशक यही बात अगले सहीफ़ों (18)

अम्म

صُحُفِ إِبْرَاهِيمَ وَمُوسَى {19}

इबराहीम और मूसा के सहीफ़ों में भी है (19)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है

अम्म

هَلْ أَتَاكَ حَدِيثُ الْغَاشِيَةِ {1}

भला तुमको ढाँप लेने वाली मुसीबत (क़यामत) का हाल मालुम हुआ है (1)

अम्म

وُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ خَاشِعَةٌ {2}

उस दिन बहुत से चेहरे ज़लील रूसवा होंगे (2)

अम्म

عَامِلَةٌ نَّاصِبَةٌ {3}

(तौक़ व जंजीर से) म्यक़्क़त करने वाले (3)

अम्म

تَصْلَى نَارًا حَامِيَةً {4}

थके माँदे दहकती हुयी आग में दाखिल होंगे (4)

अम्म

تُسْقَى مِنْ عَيْنٍ آنِيَةٍ {5}

उन्हें एक खौलते हुए चशमें का पानी पिलाया जाएगा (5)

अम्म

لَّيْسَ لَهُمْ طَعَامٌ إِلَّا مِن ضَرِيعٍ {6}

ख़ारदार झाड़ी के सिवा उनके लिए कोई खाना नहीं (6)

अम्म

لَا يُسْمِنُ وَلَا يُغْنِي مِن جُوعٍ {7}

जो मोटाई पैदा करे न भूख में कुछ काम आएगा (7)

अम्म

وُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ نَّاعِمَةٌ {8}

(और) बहुत से चेहरे उस दिन तरो ताज़ा होंगे (8)

अम्म

لِسَعْيِهَا رَاضِيَةٌ {9}

अपनी कोशिश (के नतीजे) पर शादमान (9)

अम्म

فِي جَنَّةٍ عَالِيَةٍ {10}

एक आलीशान बाग़ में (10)

अम्म

لَّا تَسْمَعُ فِيهَا لَاغِيَةً {11}

वहाँ कोई लग़ो बात सुनेंगे ही नहीं (11)

अम्म

فِيهَا عَيْنٌ جَارِيَةٌ {12}

उसमें चश्मे जारी होंगे (12)

अम्म

فِيهَا سُرُرٌ مَّرْفُوعَةٌ {13}

उसमें ऊँचे ऊँचे तख़्त बिछे होंगे (13)

अम्म

وَأَكْوَابٌ مَّوْضُوعَةٌ {14}

और (उनके किनारे) गिलास रखे होंगे (14)

अम्म

وَنَمَارِقُ مَصْفُوفَةٌ {15}

और गाँव तकिए क़तार की क़तार लगे होंगे (15)

अम्म

وَزَرَابِيُّ مَبْثُوثَةٌ {16}

और नफ़ीस मसनदे बिछी हुयी (16)

अम्म

أَفَلَا يَنظُرُونَ إِلَى الْإِبِلِ كَيْفَ خُلِقَتْ {17}

तो क्या ये लोग ऊँट की तरह ग़ौर नहीं करते कि कैसा अजीब पैदा किया गया है (17) 

अम्म

وَإِلَى السَّمَاء كَيْفَ رُفِعَتْ {18}

और आसमान की तरफ कि क्या बुलन्द बनाया गया है (18) 

अम्म

وَإِلَى الْجِبَالِ كَيْفَ نُصِبَتْ {19}

और पहाड़ों की तरफ़ कि किस तरह खड़े किए गए हैं (19) 

अम्म

وَإِلَى الْأَرْضِ كَيْفَ سُطِحَتْ {20}

और ज़मीन की तरफ कि किस तरह बिछायी गयी है (20)

अम्म

فَذَكِّرْ إِنَّمَا أَنتَ مُذَكِّرٌ {21}

तो तुम नसीहत करते रहो तुम तो बस नसीहत करने वाले हो (21)

अम्म

لَّسْتَ عَلَيْهِم بِمُصَيْطِرٍ {22}

तुम कुछ उन पर दरोग़ा तो हो नहीं (22)

अम्म

إِلَّا مَن تَوَلَّى وَكَفَرَ {23}

हाँ जिसने मुँह फेर लिया (23)

अम्म

فَيُعَذِّبُهُ اللَّهُ الْعَذَابَ الْأَكْبَرَ {24}

और न माना तो ख़ुदा उसको बहुत बड़े अज़ाब की सज़ा देगा (24)

अम्म

إِنَّ إِلَيْنَا إِيَابَهُمْ {25}

बेशक उनको हमारी तरफ़ लौट कर आना है (25)

अम्म

ثُمَّ إِنَّ عَلَيْنَا حِسَابَهُمْ {26}

फिर उनका हिसाब हमारे जि़म्मे है (26)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

وَالْفَجْرِ {1}

सुबह की क़सम (1)

अम्म

وَلَيَالٍ عَشْرٍ {2}

और दस रातों की (2)

अम्म

وَالشَّفْعِ وَالْوَتْرِ {3}

और ज़ुफ्त व ताक़ की (3)

अम्म

وَاللَّيْلِ إِذَا يَسْرِ {4}

और रात की जब आने लगे (4)

अम्म

هَلْ فِي ذَلِكَ قَسَمٌ لِّذِي حِجْرٍ {5}

अक़्लमन्द के वास्ते तो ज़रूर बड़ी क़सम है (कि कुफ़्फ़ार पर ज़रूर अज़ाब होगा) (5)

अम्म

أَلَمْ تَرَ كَيْفَ فَعَلَ رَبُّكَ بِعَادٍ {6}

क्या तुमने देखा नहीं कि तुम्हारे आद के साथ क्या किया (6)

अम्म

إِرَمَ ذَاتِ الْعِمَادِ {7}

यानि इरम वाले दराज़ क़द (7)

अम्म

الَّتِي لَمْ يُخْلَقْ مِثْلُهَا فِي الْبِلَادِ {8}

जिनका मिसल तमाम (दुनिया के) शहरों में कोई पैदा ही नहीं किया गया (8)

अम्म

وَثَمُودَ الَّذِينَ جَابُوا الصَّخْرَ بِالْوَادِ {9}

और समूद के साथ (क्या किया) जो वादी (क़रा) में पत्थर तराश कर घर बनाते थे (9)

अम्म

وَفِرْعَوْنَ ذِي الْأَوْتَادِ {10}

और फिरआऊन के साथ (क्या किया) जो (सज़ा के लिए) मेख़े रखता था (10)

अम्म

الَّذِينَ طَغَوْا فِي الْبِلَادِ {11}

ये लोग मुख़तलिफ़ शहरों में सरकश हो रहे थे (11)

अम्म

فَأَكْثَرُوا فِيهَا الْفَسَادَ {12}

और उनमें बहुत से फ़साद फैला रखे थे (12)

अम्म

فَصَبَّ عَلَيْهِمْ رَبُّكَ سَوْطَ عَذَابٍ {13}

तो तुम्हारे परवरदिगार ने उन पर अज़ाब का कोड़ा लगाया (13)

अम्म

إِنَّ رَبَّكَ لَبِالْمِرْصَادِ {14}

बेशक तुम्हारा परवरदिगार ताक में है (14)

अम्म

فَأَمَّا الْإِنسَانُ إِذَا مَا ابْتَلَاهُ رَبُّهُ فَأَكْرَمَهُ وَنَعَّمَهُ فَيَقُولُ رَبِّي أَكْرَمَنِ {15}

लेकिन इन्सान जब उसको उसका परवरदिगार (इस तरह) आज़माता है कि उसको इज़्ज़त व नेअमत देता है, तो कहता है कि मेरे परवरदिगार ने मुझे इज़्ज़त दी है (15)

अम्म

وَأَمَّا إِذَا مَا ابْتَلَاهُ فَقَدَرَ عَلَيْهِ رِزْقَهُ فَيَقُولُ رَبِّي أَهَانَنِ {16}

मगर जब उसको (इस तरह) आज़माता है कि उस पर रोज़ी को तंग कर देता है बोल उठता है कि मेरे परवरदिगार ने मुझे ज़लील किया (16)

अम्म

كَلَّا بَل لَّا تُكْرِمُونَ الْيَتِيمَ {17}

हरगिज़ नहीं बल्कि तुम लोग न यतीम की ख़ातिरदारी करते हो (17)

अम्म

وَلَا تَحَاضُّونَ عَلَى طَعَامِ الْمِسْكِينِ {18}

और न मोहताज को खाना खिलाने की तरग़ीब देते हो (18)

अम्म

وَتَأْكُلُونَ التُّرَاثَ أَكْلًا لَّمًّا {19}

और मीरारा के माल (हलाल व हराम) को समेट कर चख जाते हो (19)

अम्म

وَتُحِبُّونَ الْمَالَ حُبًّا جَمًّا {20}

और माल को बहुत ही अज़ीज़ रखते हो (20)

अम्म

كَلَّا إِذَا دُكَّتِ الْأَرْضُ دَكًّا دَكًّا {21}

सुन रखो कि जब ज़मीन कूट कूट कर रेज़ा रेज़ा कर दी जाएगी (21)

अम्म

وَجَاء رَبُّكَ وَالْمَلَكُ صَفًّا صَفًّا {22}

और तुम्हारे परवरदिगार का हुक्म और फ़रिश्ते कतार के कतार आ जाएँगे (22)

अम्म

وَجِيءَ يَوْمَئِذٍ بِجَهَنَّمَ يَوْمَئِذٍ يَتَذَكَّرُ الْإِنسَانُ وَأَنَّى لَهُ الذِّكْرَى {23}

और उस दिन जहन्नुम सामने कर दी जाएगी उस दिन इन्सान चैंकेगा मगर अब चैंकना कहाँ (फ़ायदा देगा) (23) 

अम्म

يَقُولُ يَا لَيْتَنِي قَدَّمْتُ لِحَيَاتِي {24}

(उस वक़्त) कहेगा कि काश मैने अपनी (इस) जि़न्दगी के वास्ते कुछ पहले भेजा होता (24)

अम्म

فَيَوْمَئِذٍ لَّا يُعَذِّبُ عَذَابَهُ أَحَدٌ {25}

तो उस दिन ख़ुदा ऐसा अज़ाब करेगा कि किसी ने वैसा अज़ाब न किया होगा (25)

अम्म

وَلَا يُوثِقُ وَثَاقَهُ أَحَدٌ {26}

और न कोई उसके जकड़ने की तरह जकड़ेगा (26)

अम्म

يَا أَيَّتُهَا النَّفْسُ الْمُطْمَئِنَّةُ {27}

(और कुछ लोगों से कहेगा) ऐ इत्मेनान पाने वाली जान (27)

अम्म

ارْجِعِي إِلَى رَبِّكِ رَاضِيَةً مَّرْضِيَّةً {28}

अपने परवरदिगार की तरफ़ चल तू उससे ख़ुश वह तुझ से राज़ी (28)

अम्म

فَادْخُلِي فِي عِبَادِي {29}

तो मेरे (ख़ास) बन्दों में शामिल हो जा (29)

अम्म

وَادْخُلِي جَنَّتِي {30}

और मेरे बेहिश्त में दाखि़ल हो जा (30)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

لَا أُقْسِمُ بِهَذَا الْبَلَدِ {1}

मुझे इस शहर (मक्का) की कसम (1)

अम्म

وَأَنتَ حِلٌّ بِهَذَا الْبَلَدِ {2}

और तुम इसी शहर में तो रहते हो (2)

अम्म

وَوَالِدٍ وَمَا وَلَدَ {3}

और (तुम्हारे) बाप (आदम) और उसकी औलाद की क़सम (3)

अम्म

لَقَدْ خَلَقْنَا الْإِنسَانَ فِي كَبَدٍ {4}

हमने इन्सान को मशक़्क़त में (रहने वाला) पैदा किया है (4)

अम्म

أَيَحْسَبُ أَن لَّن يَقْدِرَ عَلَيْهِ أَحَدٌ {5}

क्या वह ये समझता है कि उस पर कोई काबू न पा सकेगा (5)

अम्म

يَقُولُ أَهْلَكْتُ مَالًا لُّبَدًا {6}

वह कहता है कि मैने अलग़ारों माल उड़ा दिया (6)

अम्म

أَيَحْسَبُ أَن لَّمْ يَرَهُ أَحَدٌ {7}

क्या वह ये ख़्याल रखता है कि उसको किसी ने देखा ही नहीं (7)

अम्म

أَلَمْ نَجْعَل لَّهُ عَيْنَيْنِ {8}

क्या हमने उसे दोनों आँखें और ज़बान (8)

अम्म

وَلِسَانًا وَشَفَتَيْنِ {9}

और दोनों लब नहीं दिए (ज़रूर दिए) (9)

अम्म

وَهَدَيْنَاهُ النَّجْدَيْنِ {10}

और उसको (अच्छी बुरी) दोनों राहें भी दिखा दीं (10)

अम्म

فَلَا اقْتَحَمَ الْعَقَبَةَ {11}

फिर वह घाटी पर से होकर (क्यों) नहीं गुज़रा (11)

अम्म

وَمَا أَدْرَاكَ مَا الْعَقَبَةُ {12}

और तुमको क्या मालूम कि घाटी क्या है (12)

अम्म

فَكُّ رَقَبَةٍ {13}

किसी (की) गर्दन का (गुलामी या कर्ज़ से) छुड़ाना (13)

अम्म

أَوْ إِطْعَامٌ فِي يَوْمٍ ذِي مَسْغَبَةٍ {14}

या भूख के दिन रिश्तेदार यतीम या ख़ाकसार (14)

अम्म

يَتِيمًا ذَا مَقْرَبَةٍ {15}

मोहताज को (15)

अम्म

أَوْ مِسْكِينًا ذَا مَتْرَبَةٍ {16}

खाना खिलाना (16)

अम्म

ثُمَّ كَانَ مِنَ الَّذِينَ آمَنُوا وَتَوَاصَوْا بِالصَّبْرِ وَتَوَاصَوْا بِالْمَرْحَمَةِ {17}

फिर तो उन लोगों में (शामिल) हो जाता जो ईमान लाए और सब्र की नसीहत और तरस खाने की वसीयत करते रहे (17)

अम्म

أُوْلَئِكَ أَصْحَابُ الْمَيْمَنَةِ {18}

यही लोग ख़ुश नसीब हैं (18)

अम्म

وَالَّذِينَ كَفَرُوا بِآيَاتِنَا هُمْ أَصْحَابُ الْمَشْأَمَةِ {19}

और जिन लोगों ने हमारी आयतों से इन्कार किया है यही लोग बदबख़्त हैं (19)

अम्म

عَلَيْهِمْ نَارٌ مُّؤْصَدَةٌ {20}

कि उनको आग में डाल कर हर तरफ से बन्द कर दिया जाएगा (20)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

وَالشَّمْسِ وَضُحَاهَا {1}

सूरज की क़सम और उसकी रौशनी की (1)

अम्म

وَالْقَمَرِ إِذَا تَلَاهَا {2}

और चाँद की जब उसके पीछे निकले (2)

अम्म

وَالنَّهَارِ إِذَا جَلَّاهَا {3}

और दिन की जब उसे चमका दे (3)

अम्म

وَاللَّيْلِ إِذَا يَغْشَاهَا {4}

और रात की जब उसे ढाँक ले (4)

अम्म

وَالسَّمَاء وَمَا بَنَاهَا {5}

और आसमान की और जिसने उसे बनाया (5)

अम्म

وَالْأَرْضِ وَمَا طَحَاهَا {6}

और ज़मीन की जिसने उसे बिछाया (6)

अम्म

وَنَفْسٍ وَمَا سَوَّاهَا {7}

और जान की और जिसने उसे दुरूस्त किया (7)

अम्म

فَأَلْهَمَهَا فُجُورَهَا وَتَقْوَاهَا {8}

फिर उसकी बदकारी और परहेज़गारी को उसे समझा दिया (8)

अम्म

قَدْ أَفْلَحَ مَن زَكَّاهَا {9}

(क़सम है) जिसने उस (जान) को (गनाह से) पाक रखा वह तो कामयाब हुआ (9)

अम्म

وَقَدْ خَابَ مَن دَسَّاهَا {10}

और जिसने उसे (गुनाह करके) दबा दिया वह नामुराद रहा (10)

अम्म

كَذَّبَتْ ثَمُودُ بِطَغْوَاهَا {11}

क़ौम मसूद ने अपनी सरकशी से (सालेह पैग़म्बर को) झुठलाया, (11)

अम्म

إِذِ انبَعَثَ أَشْقَاهَا {12}

जब उनमें का एक बड़ा बदबख़्त उठ खड़ा हुआ (12)

अम्म

فَقَالَ لَهُمْ رَسُولُ اللَّهِ نَاقَةَ اللَّهِ وَسُقْيَاهَا {13}

तो ख़ुदा के रसूल (सालेह) ने उनसे कहा कि ख़ुदा की ऊँटनी और उसके पानी पीने से तअर्रुज़ न करना (13)

अम्म

فَكَذَّبُوهُ فَعَقَرُوهَا فَدَمْدَمَ عَلَيْهِمْ رَبُّهُم بِذَنبِهِمْ فَسَوَّاهَا {14}

मगर उन लोगों पैग़म्बर को झुठलाया और उसकी कूँचे काट डाली तो ख़ुदा ने उनके गुनाहों सबब से उन पर अज़ाब नाजि़ल किया फिर (हलाक करके) बराबर कर दिया (14)

अम्म

وَلَا يَخَافُ عُقْبَاهَا {15}

और उसको उनके बदले का कोई ख़ौफ तो है नहीं (15)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

وَاللَّيْلِ إِذَا يَغْشَى {1}

रात की क़सम जब (सूरज को) छिपा ले (1)

अम्म

وَالنَّهَارِ إِذَا تَجَلَّى {2}

और दिन की क़सम जब ख़ूब रौशन हो (2)

अम्म

وَمَا خَلَقَ الذَّكَرَ وَالْأُنثَى {3}

और उस (ज़ात) की जिसने नर व मादा को पैदा किया (3)

अम्म

إِنَّ سَعْيَكُمْ لَشَتَّى {4}

कि बेशक तुम्हारी कोशिश तरह तरह की है (4)

अम्म

فَأَمَّا مَن أَعْطَى وَاتَّقَى {5}

तो जिसने सख़ावत की और अच्छी बात (इस्लाम) की तस्दीक़ की (5)

अम्म

وَصَدَّقَ بِالْحُسْنَى {6}

तो हम उसके लिए राहत व आसानी (6)

अम्म

فَسَنُيَسِّرُهُ لِلْيُسْرَى {7}

(जन्नत) के असबाब मुहय्या कर देंगे (7)

अम्म

وَأَمَّا مَن بَخِلَ وَاسْتَغْنَى {8}

और जिसने बुख़्ल किया, और बेपरवाई की (8)

अम्म

وَكَذَّبَ بِالْحُسْنَى {9}

और अच्छी बात को झुठलाया (9)

अम्म

فَسَنُيَسِّرُهُ لِلْعُسْرَى {10}

तो हम उसे सख़्ती (जहन्नुम) में पहुँचा देंगे, (10)

अम्म

وَمَا يُغْنِي عَنْهُ مَالُهُ إِذَا تَرَدَّى {11}

और जब वह हलाक होगा तो उसका माल उसके कुछ भी काम न आएगा (11)

अम्म

إِنَّ عَلَيْنَا لَلْهُدَى {12}

हमें राह दिखा देना ज़रूर है (12)

अम्म

وَإِنَّ لَنَا لَلْآخِرَةَ وَالْأُولَى {13}

और आख़ेरत और दुनिया (दोनों) ख़ास हमारी चीज़े हैं (13)

अम्म

فَأَنذَرْتُكُمْ نَارًا تَلَظَّى {14}

तो हमने तुम्हें भड़कती हुयी आग से डरा दिया (14)

अम्म

لَا يَصْلَاهَا إِلَّا الْأَشْقَى {15}

उसमें बस वही दाखि़ल होगा जो बड़ा बदबख़्त है (15)

अम्म

الَّذِي كَذَّبَ وَتَوَلَّى {16}

जिसने झुठलाया और मुँह फेर लिया और जो बड़ा परहेज़गार है (16)

अम्म

وَسَيُجَنَّبُهَا الْأَتْقَى {17}

वह उससे बचा लिया जाएगा (17)

अम्म

الَّذِي يُؤْتِي مَالَهُ يَتَزَكَّى {18}

जो अपना माल (ख़ुदा की राह) में देता है ताकि पाक हो जाए (18)

अम्म

وَمَا لِأَحَدٍ عِندَهُ مِن نِّعْمَةٍ تُجْزَى {19}

और लुत्फ ये है कि किसी का उस पर कोई एहसान नहीं जिसका उसे बदला दिया जाता है (19)

अम्म

إِلَّا ابْتِغَاء وَجْهِ رَبِّهِ الْأَعْلَى {20}

बल्कि (वह तो) सिर्फ अपने आलीशान परवरदिगार की ख़ुशनूदी हासिल करने के लिए (देता है) (20)

अम्म

وَلَسَوْفَ يَرْضَى {21}

और वह अनक़रीब भी ख़ुश हो जाएगा (21)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

وَالضُّحَى {1}

(ऐ रसूल) पहर दिन चढ़े की क़सम (1)

अम्म

وَاللَّيْلِ إِذَا سَجَى {2}

और रात की जब (चीज़ों को) छुपा ले (2)

अम्म

مَا وَدَّعَكَ رَبُّكَ وَمَا قَلَى {3}

कि तुम्हारा परवरदिगार न तुमको छोड़ बैठा और (न तुमसे) नाराज़ हुआ (3)

अम्म

وَلَلْآخِرَةُ خَيْرٌ لَّكَ مِنَ الْأُولَى {4}

और तुम्हारे वास्ते आख़ेरत दुनिया से यक़ीनी कहीं बेहतर है (4)

अम्म

وَلَسَوْفَ يُعْطِيكَ رَبُّكَ فَتَرْضَى {5}

और तुम्हारा परवरदिगार अनक़रीब इस क़दर अता करेगा कि तुम ख़ुश हो जाओ (5)

अम्म

أَلَمْ يَجِدْكَ يَتِيمًا فَآوَى {6}

क्या उसने तुम्हें यतीम पाकर (अबू तालिब की) पनाह न दी (ज़रूर दी) (6)

अम्म

وَوَجَدَكَ ضَالًّا فَهَدَى {7}

और तुमको एहकाम से नावाकिफ़ देखा तो मंजि़ले मक़सूद तक पहुँचा दिया (7)

अम्म

وَوَجَدَكَ عَائِلًا فَأَغْنَى {8}

और तुमको तंगदस्त देखकर ग़नी कर दिया (8)

अम्म

فَأَمَّا الْيَتِيمَ فَلَا تَقْهَرْ {9}

तो तुम भी यतीम पर सितम न करना (9)

अम्म

وَأَمَّا السَّائِلَ فَلَا تَنْهَرْ {10}

माँगने वाले को झिड़की न देना (10)

अम्म

وَأَمَّا بِنِعْمَةِ رَبِّكَ فَحَدِّثْ {11}

और अपने परवरदिगार की नेअमतों का जि़क्र करते रहना (11)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

अम्म

أَلَمْ نَشْرَحْ لَكَ صَدْرَكَ {1}

(ऐ रसूल) क्या हमने तुम्हारा सीना इल्म से कुशादा नहीं कर दिया (जरूर किया) (1)

अम्म

وَوَضَعْنَا عَنكَ وِزْرَكَ {2}

और तुम पर से वह बोझ उतार दिया (2)

अम्म

الَّذِي أَنقَضَ ظَهْرَكَ {3}

जिसने तुम्हारी कमर तोड़ रखी थी (3)

अम्म

وَرَفَعْنَا لَكَ ذِكْرَكَ {4}

और तुम्हारा जि़क्र भी बुलन्द कर दिया (4)

अम्म

فَإِنَّ مَعَ الْعُسْرِ يُسْرًا {5}

तो (हाँ) पस बेशक दुशवारी के साथ ही आसानी है (5)

अम्म

إِنَّ مَعَ الْعُسْرِ يُسْرًا {6}

यक़ीनन दुशवारी के साथ आसानी है (6)

अम्म

فَإِذَا فَرَغْتَ فَانصَبْ {7}

तो जब तुम फारिग़ हो जाओ तो मुक़र्रर कर दो (7)

अम्म

وَإِلَى رَبِّكَ فَارْغَبْ {8}

और फिर अपने परवरदिगार की तरफ रग़बत करो (8)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

وَالتِّينِ وَالزَّيْتُونِ {1}

इन्जीर और ज़ैतून की क़सम (1)

अम्म

وَطُورِ سِينِينَ {2}

और तूर सीनीन की (2)

अम्म

وَهَذَا الْبَلَدِ الْأَمِينِ {3}

और उस अमन वाले शहर (मक्का) की (3)

अम्म

لَقَدْ خَلَقْنَا الْإِنسَانَ فِي أَحْسَنِ تَقْوِيمٍ {4}

कि हमने इन्सान बहुत अच्छे कैड़े का पैदा किया (4)

अम्म

ثُمَّ رَدَدْنَاهُ أَسْفَلَ سَافِلِينَ {5}

फिर हमने उसे (बूढ़ा करके रफ़्ता रफ़्ता) पस्त से पस्त हालत की तरफ फेर दिया (5)

अम्म

إِلَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فَلَهُمْ أَجْرٌ غَيْرُ مَمْنُونٍ {6}

मगर जो लोग ईमान लाए और अच्छे (अच्छे) काम करते रहे उनके लिए तो बे इन्तेहा अज्र व सवाब है (6)

अम्म

فَمَا يُكَذِّبُكَ بَعْدُ بِالدِّينِ {7}

तो (ऐ रसूल) इन दलीलों के बाद तुमको (रोज़े) जज़ा के बारे में कौन झुठला सकता है (7)

अम्म

أَلَيْسَ اللَّهُ بِأَحْكَمِ الْحَاكِمِينَ {8}

क्या ख़ुदा सबसे बड़ा हाकिम नहीं है (हाँ ज़रूर है) (8)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

اقْرَأْ بِاسْمِ رَبِّكَ الَّذِي خَلَقَ {1}

(ऐ रसूल) अपने परवरदिगार का नाम लेकर पढ़ो जिसने हर (चीज़ को) पैदा किया (1)

अम्म

خَلَقَ الْإِنسَانَ مِنْ عَلَقٍ {2}

उस ने इन्सान को जमे हुए ख़ून से पैदा किया पढ़ो (2)

अम्म

اقْرَأْ وَرَبُّكَ الْأَكْرَمُ {3}

और तुम्हारा परवरदिगार बड़ा क़रीम है (3)

अम्म

الَّذِي عَلَّمَ بِالْقَلَمِ {4}

जिसने क़लम के ज़रिए तालीम दी (4)

अम्म

عَلَّمَ الْإِنسَانَ مَا لَمْ يَعْلَمْ {5}

उसीने इन्सान को वह बातें बतायीं जिनको वह कुछ जानता ही न था (5)

अम्म

كَلَّا إِنَّ الْإِنسَانَ لَيَطْغَى {6}

सुन रखो बेशक इन्सान जो अपने को ग़नी देखता है (6)

अम्म

أَن رَّآهُ اسْتَغْنَى {7}

तो सरकश हो जाता है (7)

अम्म

إِنَّ إِلَى رَبِّكَ الرُّجْعَى {8}

बेशक तुम्हारे परवरदिगार की तरफ (सबको) पलटना है (8)

अम्म

أَرَأَيْتَ الَّذِي يَنْهَى {9}

भला तुमने उस शख़्स को भी देखा (9)

अम्म

عَبْدًا إِذَا صَلَّى {10}

जो एक बन्दे को जब वह नमाज़ पढ़ता है तो वह रोकता है (10)

अम्म

أَرَأَيْتَ إِن كَانَ عَلَى الْهُدَى {11}

भला देखो तो कि अगर ये राहे रास्त पर हो या परहेज़गारी का हुक्म करे (11)

अम्म

أَوْ أَمَرَ بِالتَّقْوَى {12}

(तो रोकना कैसा) (12)

अम्म

أَرَأَيْتَ إِن كَذَّبَ وَتَوَلَّى {13}

भला देखो तो कि अगर उसने (सच्चे को) झुठला दिया और (उसने) मुँह फेरा (13)

अम्म

أَلَمْ يَعْلَمْ بِأَنَّ اللَّهَ يَرَى {14}

(तो नतीजा क्या होगा) क्या उसको ये मालूम नहीं कि ख़ुदा यक़ीनन देख रहा है (14)

अम्म

كَلَّا لَئِن لَّمْ يَنتَهِ لَنَسْفَعًا بِالنَّاصِيَةِ {15}

देखो अगर वह बाज़ न आएगा तो हम परेशानी के पट्टे पकड़ के घसीटेंगे (15)

अम्म

نَاصِيَةٍ كَاذِبَةٍ خَاطِئَةٍ {16}

झूठे ख़तावार की पेशानी के पट्टे (16)

अम्म

فَلْيَدْعُ نَادِيَه {17}

तो वह अपने याराने जलसा को बुलाए हम भी जल्लाद फ़रिश्ते को बुलाएँगे (17)

अम्म

سَنَدْعُ الزَّبَانِيَةَ {18}

(ऐ रसूल) देखो हरगिज़ उनका कहना न मानना (18)

अम्म

كَلَّا لَا تُطِعْهُ وَاسْجُدْ وَاقْتَرِبْ {19}

और सजदे करते रहो और कु़र्ब हासिल करो (19) (सजदा)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

إِنَّا أَنزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةِ الْقَدْرِ {1}

हमने (इस कु़रान) को शबे क़द्र में नाजि़ल (करना शुरू) किया (1)

अम्म

وَمَا أَدْرَاكَ مَا لَيْلَةُ الْقَدْرِ {2}

और तुमको क्या मालूम शबे क़द्र क्या है (2)

अम्म

لَيْلَةُ الْقَدْرِ خَيْرٌ مِّنْ أَلْفِ شَهْرٍ {3}

शबे क़द्र (मरतबा और अमल में) हज़ार महीनो से बेहतर है (3)

अम्म

تَنَزَّلُ الْمَلَائِكَةُ وَالرُّوحُ فِيهَا بِإِذْنِ رَبِّهِم مِّن كُلِّ أَمْرٍ {4}

इस (रात) में फ़रिश्ते और जिबरील (साल भर की) हर बात का हुक्म लेकर अपने परवरदिगार के हुक्म से नाजि़ल होते हैं (4)

अम्म

سَلَامٌ هِيَ حَتَّى مَطْلَعِ الْفَجْرِ {5}

ये रात सुबह के तुलूअ होने तक (अज़सरतापा) सलामती है (5)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

لَمْ يَكُنِ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ وَالْمُشْرِكِينَ مُنفَكِّينَ حَتَّى تَأْتِيَهُمُ الْبَيِّنَةُ {1}

अहले किताब और मुशरिकों से जो लोग काफिर थे जब तक कि उनके पास खुली हुयी दलीलें न पहुँचे वह (अपने कुफ्र से) बाज़ आने वाले न थे (1)

अम्म

رَسُولٌ مِّنَ اللَّهِ يَتْلُو صُحُفًا مُّطَهَّرَةً {2}

(यानि) ख़ुदा के रसूल जो पाक औराक़ पढ़ते हैं (आए और) (2)

अम्म

فِيهَا كُتُبٌ قَيِّمَةٌ {3}

उनमें (जो) पुरज़ोर और दरूस्त बातें लिखी हुयी हैं (सुनाये) (3)

अम्म

وَمَا تَفَرَّقَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ إِلَّا مِن بَعْدِ مَا جَاءتْهُمُ الْبَيِّنَةُ {4}

अहले किताब मुताफ़र्रिक़ हुए भी तो जब उनके पास खुली हुयी दलील आ चुकी (4)

अम्म

وَمَا أُمِرُوا إِلَّا لِيَعْبُدُوا اللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ حُنَفَاء وَيُقِيمُوا الصَّلَاةَ وَيُؤْتُوا الزَّكَاةَ وَذَلِكَ دِينُ الْقَيِّمَةِ {5}

(तब) और उन्हें तो बस ये हुक्म दिया गया था कि निरा ख़ुरा उसी का एतक़ाद रख के बातिल से कतरा के ख़ुदा की इबादत करे और पाबन्दी से नमाज़ पढ़े और ज़कात अदा करता रहे और यही सच्चा दीन है (5)

अम्म

إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ وَالْمُشْرِكِينَ فِي نَارِ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا أُوْلَئِكَ هُمْ شَرُّ الْبَرِيَّةِ {6}

बेशक अहले किताब और मुशरेकीन से जो लोग (अब तक) काफि़र हैं वह दोज़ख़ की आग में (होंगे) हमेशा उसी में रहेंगे यही लोग बदतरीन ख़लाएक़ हैं (6)

अम्म

إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أُوْلَئِكَ هُمْ خَيْرُ الْبَرِيَّةِ {7}

बेशक जो लोग ईमान लाए और अच्छे काम करते रहे यही लोग बेहतरीन ख़लाएक़ हैं (7)

अम्म

جَزَاؤُهُمْ عِندَ رَبِّهِمْ جَنَّاتُ عَدْنٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا رَّضِيَ اللَّهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا عَنْهُ ذَلِكَ لِمَنْ خَشِيَ رَبَّهُ {8}

उनकी जज़ा उनके परवरदिगार के यहाँ हमेशा रहने (सहने) के बाग़ हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं और वह आबादुल आबाद हमेशा उसी में रहेंगे ख़ुदा उनसे राज़ी और वह ख़ुदा से ख़ुश ये (जज़ा) ख़ास उस शख़्स की है जो अपने परवरदिगार से डरे (8)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

إِذَا زُلْزِلَتِ الْأَرْضُ زِلْزَالَهَا {1}

जब ज़मीन बड़े ज़ोरों के साथ ज़लज़ले में आ जाएगी (1)

अम्म

وَأَخْرَجَتِ الْأَرْضُ أَثْقَالَهَا {2}

और ज़मीन अपने अन्दर के बोझे (मादनयात मुर्दे वग़ैरह) निकाल डालेगी (2)

अम्म

وَقَالَ الْإِنسَانُ مَا لَهَا {3}

और एक इन्सान कहेगा कि उसको क्या हो गया है (3)

अम्म

يَوْمَئِذٍ تُحَدِّثُ أَخْبَارَهَا {4}

उस रोज़ वह अपने सब हालात बयान कर देगी (4)

अम्म

بِأَنَّ رَبَّكَ أَوْحَى لَهَا {5}

क्योंकि तुम्हारे परवरदिगार ने उसको हुक्म दिया होगा (5)

अम्म

يَوْمَئِذٍ يَصْدُرُ النَّاسُ أَشْتَاتًا لِّيُرَوْا أَعْمَالَهُمْ {6}

उस दिन लोग गिरोह गिरोह (अपनी कब्रों से) निकलेंगे ताकि अपने आमाल को देखे (6)

अम्म

فَمَن يَعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ خَيْرًا يَرَهُ {7}

तो जिस शख़्स ने ज़र्रा बराबर नेकी की वह उसे देख लेगा (7)

अम्म

وَمَن يَعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ شَرًّا يَرَهُ {8}

और जिस शख़्स ने ज़र्रा बराबर बदी की है तो उसे देख लेगा (8)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

अम्म

وَالْعَادِيَاتِ ضَبْحًا {1}

(ग़ाजि़यों के) सरपट दौड़ने वाले घोड़ो की क़सम (1)

अम्म

فَالْمُورِيَاتِ قَدْحًا {2}

जो नथनों से फ़रराटे लेते हैं (2)

अम्म

فَالْمُغِيرَاتِ صُبْحًا {3}

फिर पत्थर पर टाप मारकर चिंगारियाँ निकालते हैं फिर सुबह को छापा मारते हैं (3)

अम्म

فَأَثَرْنَ بِهِ نَقْعًا {4}

(तो दौड़ धूप से) बुलन्द कर देते हैं (4)

अम्म

فَوَسَطْنَ بِهِ جَمْعًا {5}

फिर उस वक़्त (दुश्मन के) दिल में घुस जाते हैं (5)

अम्म

إِنَّ الْإِنسَانَ لِرَبِّهِ لَكَنُودٌ {6}

(ग़रज़ क़सम है) कि बेशक इन्सान अपने परवरदिगार का नाशुक्रा है (6)

अम्म

وَإِنَّهُ عَلَى ذَلِكَ لَشَهِيدٌ {7}

और यक़ीनी ख़ुदा भी उससे वाकि़फ़ है (7)

अम्म

وَإِنَّهُ لِحُبِّ الْخَيْرِ لَشَدِيدٌ {8}

और बेशक वह माल का सख़्त हरीस है (8)

अम्म

أَفَلَا يَعْلَمُ إِذَا بُعْثِرَ مَا فِي الْقُبُورِ {9}

तो क्या वह ये नहीं जानता कि जब मुर्दे क़ब्रों से निकाले जाएँगे (9)

अम्म

وَحُصِّلَ مَا فِي الصُّدُورِ {10}

और दिलों के भेद ज़ाहिर कर दिए जाएँगे (10)

अम्म

إِنَّ رَبَّهُم بِهِمْ يَوْمَئِذٍ لَّخَبِيرٌ {11}

बेशक उस दिन उनका परवरदिगार उनसे ख़ूब वाकि़फ़ होगा (11)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

الْقَارِعَةُ {1}

खड़खड़ाने वाली (1)

अम्म

مَا الْقَارِعَةُ {2}

वह खड़खड़ाने वाली क्या है (2)

अम्म

وَمَا أَدْرَاكَ مَا الْقَارِعَةُ {3}

और तुम को क्या मालूम कि वह खड़खड़ाने वाली क्या है (3)

अम्म

يَوْمَ يَكُونُ النَّاسُ كَالْفَرَاشِ الْمَبْثُوثِ {4}

जिस दिन लोग (मैदाने हर्श में) टिड्डियों की तरह फैले होंगे (4)

अम्म

وَتَكُونُ الْجِبَالُ كَالْعِهْنِ الْمَنفُوشِ {5}

और पहाड़ धुनकी हुयी रूई के से हो जाएँगे (5)

अम्म

فَأَمَّا مَن ثَقُلَتْ مَوَازِينُهُ {6}

तो जिसके (नेक आमाल) के पल्ले भारी होंगे (6)

अम्म

فَهُوَ فِي عِيشَةٍ رَّاضِيَةٍ {7}

वह मन भाते ऐश में होंगे (7)

अम्म

وَأَمَّا مَنْ خَفَّتْ مَوَازِينُهُ {8}

और जिनके आमाल के पल्ले हल्के होंगे (8) 

अम्म

فَأُمُّهُ هَاوِيَةٌ {9}

तो उनका ठिकाना न रहा (9)

अम्म

وَمَا أَدْرَاكَ مَا هِيَهْ {10}

और तुमको क्या मालूम हाविया क्या है (10)

अम्म

نَارٌ حَامِيَةٌ {11}

वह दहकती हुयी आग है (11)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

अम्म

أَلْهَاكُمُ التَّكَاثُرُ {1}

कुल व माल की बहुतायत ने तुम लोगों को ग़ाफि़ल रखा (1)

अम्म

حَتَّى زُرْتُمُ الْمَقَابِرَ {2}

यहाँ तक कि तुम लोगों ने कब्रें देखी (मर गए) (2)

अम्म

كَلَّا سَوْفَ تَعْلَمُونَ {3}

देखो तुमको अनक़रीब ही मालुम हो जाएगा (3)

अम्म

ثُمَّ كَلَّا سَوْفَ تَعْلَمُونَ {4}

फिर देखो तुम्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगा (4)

अम्म

كَلَّا لَوْ تَعْلَمُونَ عِلْمَ الْيَقِينِ {5}

देखो अगर तुमको यक़ीनी तौर पर मालूम होता (तो हरगिज़ ग़ाफिल न होते) (5)

अम्म

لَتَرَوُنَّ الْجَحِيمَ {6}

तुम लोग ज़रूर दोज़ख़ को देखोगे (6)

अम्म

ثُمَّ لَتَرَوُنَّهَا عَيْنَ الْيَقِينِ {7}

फिर तुम लोग यक़ीनी देखना देखोगे (7)

अम्म

ثُمَّ لَتُسْأَلُنَّ يَوْمَئِذٍ عَنِ النَّعِيمِ {8}

फिर तुमसे नेअमतों के बारें ज़रूर बाज़ पुर्स की जाएगी (8)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

وَالْعَصْرِ {1}

नमाज़े अस्र की क़सम (1)

अम्म

إِنَّ الْإِنسَانَ لَفِي خُسْرٍ {2}

बेशक इन्सान घाटे में है (2)

अम्म

إِلَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَتَوَاصَوْا بِالْحَقِّ وَتَوَاصَوْا بِالصَّبْرِ {3}

मगर जो लोग ईमान लाए, और अच्छे काम करते रहे और आपस में हक़ का हुक्म और सब्र की वसीयत करते रहे (3)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

وَيْلٌ لِّكُلِّ هُمَزَةٍ لُّمَزَةٍ {1}

हर ताना देने वाले चुग़लख़ोर की ख़राबी है (1)

अम्म

الَّذِي جَمَعَ مَالًا وَعَدَّدَهُ {2}

जो माल को जमा करता है और गिन गिन कर रखता है (2)

अम्म

يَحْسَبُ أَنَّ مَالَهُ أَخْلَدَهُ {3}

वह समझता है कि उसका माल उसे हमेशा जि़न्दा बाक़ी रखेगा (3)

अम्म

كَلَّا لَيُنبَذَنَّ فِي الْحُطَمَةِ {4}

हरगिज़ नहीं वह तो ज़रूर हुतमा में डाला जाएगा (4)

अम्म

وَمَا أَدْرَاكَ مَا الْحُطَمَةُ {5}

और तुमको क्या मालूम हतमा क्या है (5)

अम्म

نَارُ اللَّهِ الْمُوقَدَةُ {6}

वह ख़ुदा की भड़काई हुयी आग है जो (तलवे से लगी तो) (6)

अम्म

الَّتِي تَطَّلِعُ عَلَى الْأَفْئِدَةِ {7}

दिलों तक चढ़ जाएगी (7)

अम्म

إِنَّهَا عَلَيْهِم مُّؤْصَدَةٌ {8}

में डाल कर बन्द कर दिए जाएँगे (8)

अम्म

فِي عَمَدٍ مُّمَدَّدَةٍ {9}

ये लोग आग के लम्बे सुतूनो (9)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

अम्म

أَلَمْ تَرَ كَيْفَ فَعَلَ رَبُّكَ بِأَصْحَابِ الْفِيلِ {1}

ऐ रसूल क्या तुमने नहीं देखा कि तुम्हारे परवरदिगार ने हाथी वालों के साथ क्या किया (1)

अम्म

أَلَمْ يَجْعَلْ كَيْدَهُمْ فِي تَضْلِيلٍ {2}

क्या उसने उनकी तमाम तद्बीरें ग़लत नहीं कर दीं (ज़रूर) (2)

अम्म

وَأَرْسَلَ عَلَيْهِمْ طَيْرًا أَبَابِيلَ {3}

और उन पर झुन्ड की झुन्ड चिडि़याँ भेज दीं (3)

अम्म

تَرْمِيهِم بِحِجَارَةٍ مِّن سِجِّيلٍ {4}

जो उन पर खरन्जों की कंकरियाँ फेकती थीं (4)

अम्म

فَجَعَلَهُمْ كَعَصْفٍ مَّأْكُولٍ {5}

तो उन्हें चबाए हुए भूस की (तबाह) कर दिया (5)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

अम्म

لِإِيلَافِ قُرَيْشٍ {1}

चूँकि क़ुरइश को जाड़े और गर्मी के सफ़र से मानूस कर दिया है (1)

अम्म

إِيلَافِهِمْ رِحْلَةَ الشِّتَاء وَالصَّيْفِ {2}

तो उनको मानूस कर देने की वजह से (2)

अम्म

فَلْيَعْبُدُوا رَبَّ هَذَا الْبَيْتِ {3}

इस घर (काबा) के मालिक की इबादत करनी चाहिए (3)

अम्म

الَّذِي أَطْعَمَهُم مِّن جُوعٍ وَآمَنَهُم مِّنْ خَوْفٍ {4}

जिसने उनको भूख में खाना दिया और उनको खौफ़ से अमन अता किया (4)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

अम्म

أَرَأَيْتَ الَّذِي يُكَذِّبُ بِالدِّينِ {1}

क्या तुमने उस शख़्स को भी देखा है जो रोज़ जज़ा को झुठलाता है (1)

अम्म

فَذَلِكَ الَّذِي يَدُعُّ الْيَتِيمَ {2}

ये तो वही (कम्बख़्त) है जो यतीम को धक्के देता है (2)

अम्म

وَلَا يَحُضُّ عَلَى طَعَامِ الْمِسْكِينِ {3}

और मोहताजों को खिलाने के लिए (लोगों को) आमादा नहीं करता (3)

अम्म

فَوَيْلٌ لِّلْمُصَلِّينَ {4}

तो उन नमाजि़यों की तबाही है (4)

अम्म

الَّذِينَ هُمْ عَن صَلَاتِهِمْ سَاهُونَ {5}

जो अपनी नमाज़ से ग़ाफिल रहते हैं (5)

अम्म

الَّذِينَ هُمْ يُرَاؤُونَ {6}

जो दिखाने के वास्ते करते हैं (6)

अम्म

وَيَمْنَعُونَ الْمَاعُونَ {7}

और रोज़ मर्रा की मालूली चीज़ें भी आरियत नहीं देते (7)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

खुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

अम्म

إِنَّا أَعْطَيْنَاكَ الْكَوْثَرَ {1}

(ऐ रसूल) हमनें तुमको को कौसर अता किया, (1)

अम्म

فَصَلِّ لِرَبِّكَ وَانْحَرْ {2}

तो तुम अपने परवरदिगार की नमाज़ पढ़ा करो (2)

अम्म

إِنَّ شَانِئَكَ هُوَ الْأَبْتَرُ {3}

और क़ुर्बानी दिया करो बेशक तुम्हारा दुश्मन बे औलाद रहेगा (3)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

قُلْ يَا أَيُّهَا الْكَافِرُونَ {1}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ काफिरों (1)

अम्म

لَا أَعْبُدُ مَا تَعْبُدُونَ {2}

तुम जिन चीज़ों को पूजते हो, मैं उनको नहीं पूजता (2)

अम्म

وَلَا أَنتُمْ عَابِدُونَ مَا أَعْبُدُ {3}

और जिस (ख़ुदा) की मैं इबादत करता हूँ उसकी तुम इबादत नहीं करते (3)

अम्म

وَلَا أَنَا عَابِدٌ مَّا عَبَدتُّمْ {4}

और जिन्हें तुम पूजते हो मैं उनका पूजने वाला नहीं (4)

अम्म

وَلَا أَنتُمْ عَابِدُونَ مَا أَعْبُدُ (5}

और जिसकी मैं इबादत करता हूँ उसकी तुम इबादत करने वाले नहीं (5)

अम्म

لَكُمْ دِينُكُمْ وَلِيَ دِينِ (6}

तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मेरे लिए मेरा दीन (6)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

إِذَا جَاء نَصْرُ اللَّهِ وَالْفَتْحُ {1}

ऐ रसूल जब ख़ुदा की मदद आ पहुचेंगी (1)

अम्म

وَرَأَيْتَ النَّاسَ يَدْخُلُونَ فِي دِينِ اللَّهِ أَفْوَاجًا {2}

और फतेह (मक्का) हो जाएगी और तुम लोगों को देखोगे कि गोल के गोल ख़ुदा के दीन में दाखि़ल हो रहे हैं (2)

अम्म

فَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ وَاسْتَغْفِرْهُ إِنَّهُ كَانَ تَوَّابًا {3}

तो तुम अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तसबीह करना और उसी से मग़फे़रत की दुआ माँगना वह बेशक बड़ा माफ़ करने वाला है (3)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

अम्म

تَبَّتْ يَدَا أَبِي لَهَبٍ وَتَبَّ {1}

अबु लहब के हाथ टूट जाएँ और वह ख़ुद सत्यानास हो जाए (1)

अम्म

مَا أَغْنَى عَنْهُ مَالُهُ وَمَا كَسَبَ {2}

(आखि़र) न उसका माल ही उसके हाथ आया और (न) उसने कमाया (2)

अम्म

سَيَصْلَى نَارًا ذَاتَ لَهَبٍ {3}

वह बहुत भड़कती हुयी आग में दाखि़ल होगा (3)

अम्म

وَامْرَأَتُهُ حَمَّالَةَ الْحَطَبِ {4}

और उसकी जोरू भी जो सर पर ईंधन उठाए फिरती है (4)

अम्म

فِي جِيدِهَا حَبْلٌ مِّن مَّسَدٍ {5}

और उसके गले में बटी हुयी रस्सी बँधी है (5)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

अम्म

قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ {1}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ख़ुदा एक है (1)

अम्म

اللَّهُ الصَّمَدُ {2}

ख़ुदा बरहक़ बेनियाज़ है (2)

अम्म

لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ {3}

न उसने किसी को जना न उसको किसी ने जना, (3)

अम्म

وَلَمْ يَكُن لَّهُ كُفُوًا أَحَدٌ {4}

और उसका कोई हमसर नहीं (4)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

अम्म

قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ الْفَلَقِ {1}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं सुबह के मालिक की हर चीज़ की बुराई से (1)

अम्म

مِن شَرِّ مَا خَلَقَ {2}

जो उसने पैदा की पनाह माँगता हूँ (2)

अम्म

وَمِن شَرِّ غَاسِقٍ إِذَا وَقَبَ {3}

और अँधेरी रात की बुराई से जब उसका अँधेरा छा जाए (3)

अम्म

وَمِن شَرِّ النَّفَّاثَاتِ فِي الْعُقَدِ {4}

और गन्डों पर फूँकने वालियों की बुराई से (4)

अम्म

وَمِن شَرِّ حَاسِدٍ إِذَا حَسَدَ {5}

(जब फूँके) और हसद करने वाले की बुराई से जब हसद करें(5)

अम्म

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

अम्म

قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ النَّاسِ {1}

(ऐ रसूल) तुम कह दो मैं लोगों के परवरदिगार (1)

अम्म

مَلِكِ النَّاسِ {2}

लोगों के बादशाह (2)

अम्म

إِلَهِ النَّاسِ {3}

लोगों के माबूद की (शैतानी) (3)

अम्म

مِن شَرِّ الْوَسْوَاسِ الْخَنَّاسِ {4}

वसवसे की बुराई से पनाह माँगता हूँ (4)

अम्म

الَّذِي يُوَسْوِسُ فِي صُدُورِ النَّاسِ {5}

जो (ख़ुदा के नाम से) पीछे हट जाता है जो लोगों के दिलों में वसवसे डाला करता है (5)

अम्म

مِنَ الْجِنَّةِ وَ النَّاسِ {6}

जिन्नात में से ख़्वाह आदमियों में से (6)