Quran पारा 14
रुबामा
رُّبَمَا يَوَدُّ الَّذِينَ كَفَرُواْ لَوْ كَانُواْ مُسْلِمِينَ {2}
(एक दिन वह भी आने वाला है कि) जो लोग काफि़र हो बैठे हैं अक्सर दिल से चाहेंगें (2)
रुबामा
ذَرْهُمْ يَأْكُلُواْ وَيَتَمَتَّعُواْ وَيُلْهِهِمُ الأَمَلُ فَسَوْفَ يَعْلَمُونَ {3}
काश (हम भी) मुसलमान होते (ऐ रसूल) उन्हें उनकी हालत पर रहने दो कि खा पी लें और (दुनिया के चन्द रोज़) चैन कर लें और उनकी तमन्नाएँ उन्हें खेल तमाशे में लगाए रहीं (3)
रुबामा
وَمَا أَهْلَكْنَا مِن قَرْيَةٍ إِلاَّ وَلَهَا كِتَابٌ مَّعْلُومٌ {4}
अनक़रीब ही (इसका नतीजा) उन्हें मालूम हो जाएगा और हमने कभी कोई बस्ती तबाह नहीं की मगर ये कि उसकी तबाही के लिए (पहले ही से) समझी बूझी मियाद मुक़र्रर लिखी हुयी थी (4)
रुबामा
مَّا تَسْبِقُ مِنْ أُمَّةٍ أَجَلَهَا وَمَا يَسْتَأْخِرُونَ {5}
कोई उम्मत अपने वक़्त से न आगे बढ़ सकती है न पीछे हट सकती है (5)
रुबामा
وَقَالُواْ يَا أَيُّهَا الَّذِي نُزِّلَ عَلَيْهِ الذِّكْرُ إِنَّكَ لَمَجْنُونٌ {6}
(ऐ रसूल कुफ़्फ़ारे मक्का तुमसे) कहते हैं कि ऐ शख़्स (जिसको ये भरम है) कि उस पर ‘वही’ व किताब नाजि़ल हुई है तो (अच्छा ख़ासा) सिड़ी है (6)
रुबामा
لَّوْ مَا تَأْتِينَا بِالْمَلائِكَةِ إِن كُنتَ مِنَ الصَّادِقِينَ {7}
अगर तू अपने दावे में सच्चा है तो फरिश्तों को हमारे सामने क्यों नहीं ला खड़ा करता (7)
रुबामा
مَا نُنَزِّلُ الْمَلائِكَةَ إِلاَّ بِالحَقِّ وَمَا كَانُواْ إِذًا مُّنظَرِينَ {8}
(हालाँकि) हम फरिश्तों को खुल्लम खुल्ला (जिस अज़ाब के साथ) फैसले ही के लिए भेजा करते हैं और (अगर फरिश्ते नाजि़ल हो जाए तो) फिर उनको (जान बचाने की) मोहलत भी न मिले (8)
रुबामा
إِنَّا نَحْنُ نَزَّلْنَا الذِّكْرَ وَإِنَّا لَهُ لَحَافِظُونَ {9}
बेशक हम ही ने क़ुरान नाजि़ल किया और हम ही तो उसके निगेहबान भी हैं (9)
रुबामा
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ فِي شِيَعِ الأَوَّلِينَ {10}
(ऐ रसूल) हमने तो तुमसे पहले भी अगली उम्मतों में (और भी बहुत से) रसूल भेजे (10)
रुबामा
وَمَا يَأْتِيهِم مِّن رَّسُولٍ إِلاَّ كَانُواْ بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ {11}
और (उनकी भी यही हालत थी कि) उनके पास कोई रसूल न आया मगर उन लोगों ने उसकी हँसी ज़रुर उड़ाई (11)
रुबामा
كَذَلِكَ نَسْلُكُهُ فِي قُلُوبِ الْمُجْرِمِينَ {12}
हम (गोया खुद) इसी तरह इस (गुमराही) को (उन) गुनाहगारों के दिल में डाल देते हैं (12)
रुबामा
لاَ يُؤْمِنُونَ بِهِ وَقَدْ خَلَتْ سُنَّةُ الأَوَّلِينَ {13}
ये कुफ़्फ़ार इस (क़ुरान) पर इमान न लाएँगें और (ये कुछ अनोखी बात नहीं) अगलों के तरीक़े भी (ऐसे ही) रहें है (13)
रुबामा
وَلَوْ فَتَحْنَا عَلَيْهِم بَابًا مِّنَ السَّمَاء فَظَلُّواْ فِيهِ يَعْرُجُونَ {14}
और अगर हम अपनी कुदरत से आसमान का एक दरवाज़ा भी खोल दें और ये लोग दिन दहाड़े उस दरवाज़े से (आसमान पर) चढ़ भी जाएँ (14)
रुबामा
لَقَالُواْ إِنَّمَا سُكِّرَتْ أَبْصَارُنَا بَلْ نَحْنُ قَوْمٌ مَّسْحُورُونَ {15}
तब भी यहीं कहेगें कि हो न हो हमारी आँखें (नज़र बन्दी से) मतवाली कर दी गई हैं या नहीं तो हम लोगों पर जादू किया गया है (15)
रुबामा
وَلَقَدْ جَعَلْنَا فِي السَّمَاء بُرُوجًا وَزَيَّنَّاهَا لِلنَّاظِرِينَ {16}
और हम ही ने आसमान में बुर्ज बनाए और देखने वालों के वास्ते उनके (सितारों से) आरास्ता (सजाया) किया (16)
रुबामा
وَحَفِظْنَاهَا مِن كُلِّ شَيْطَانٍ رَّجِيمٍ {17}
और हर शैतान मरदूद की आमद रफत (आने जाने) से उन्हें महफूज़ रखा (17)
रुबामा
إِلاَّ مَنِ اسْتَرَقَ السَّمْعَ فَأَتْبَعَهُ شِهَابٌ مُّبِينٌ {18}
मगर जो शैतान चोरी छिपे (वहाँ की किसी बात पर) कान लगाए तो शहाब का दहकता हुआ शोला उसके (खदेड़ने को) पीछे पड़ जाता है (18)
रुबामा
وَالأَرْضَ مَدَدْنَاهَا وَأَلْقَيْنَا فِيهَا رَوَاسِيَ وَأَنبَتْنَا فِيهَا مِن كُلِّ شَيْءٍ مَّوْزُونٍ {19}
और ज़मीन को (भी अपने मख़लूक़ात के रहने सहने को) हम ही ने फैलाया और इसमें (कील की तरह) पहाड़ो के लंगर डाल दिए और हमने उसमें हर किस्म की मुनासिब चीज़े उगाई (19)
रुबामा
وَجَعَلْنَا لَكُمْ فِيهَا مَعَايِشَ وَمَن لَّسْتُمْ لَهُ بِرَازِقِينَ {20}
और हम ही ने उन्हें तुम्हारे वास्ते जि़न्दगी के साज़ों सामान बना दिए और उन जानवरों के लिए भी जिन्हें तुम रोज़ी नहीं देते (20)
रुबामा
وَإِن مِّن شَيْءٍ إِلاَّ عِندَنَا خَزَائِنُهُ وَمَا نُنَزِّلُهُ إِلاَّ بِقَدَرٍ مَّعْلُومٍ {21}
और हमारे यहाँ तो हर चीज़ के बेशुमार खज़ाने (भरे) पड़े हैं और हम (उसमें से) एक जची तली मिक़दार भेजते रहते है (21)
रुबामा
وَأَرْسَلْنَا الرِّيَاحَ لَوَاقِحَ فَأَنزَلْنَا مِنَ السَّمَاء مَاء فَأَسْقَيْنَاكُمُوهُ وَمَا أَنتُمْ لَهُ بِخَازِنِينَ {22}
और हम ही ने वह हवाएँ भेजी जो बादलों को पानी से (भरे हुए) है फिर हम ही ने आसमान से पानी बरसाया फिर हम ही ने तुम लोगों को वह पानी पिलाया और तुम लोगों ने तो कुछ उसको जमा करके नहीं रखा था (22)
रुबामा
وَإنَّا لَنَحْنُ نُحْيِي وَنُمِيتُ وَنَحْنُ الْوَارِثُونَ {23}
और इसमें शक नहीं कि हम ही (लोगों को) जिलाते और हम ही मार डालते हैं और (फिर) हम ही (सब के) वाली वारिस हैं (23)
रुबामा
وَلَقَدْ عَلِمْنَا الْمُسْتَقْدِمِينَ مِنكُمْ وَلَقَدْ عَلِمْنَا الْمُسْتَأْخِرِينَ {24}
और बेशक हम ही ने तुममें से उन लोगों को भी अच्छी तरह समझ लिया जो पहले हो गुज़रे और हमने उनको भी जान लिया जो बाद को आने वाले हैं (24)
रुबामा
وَإِنَّ رَبَّكَ هُوَ يَحْشُرُهُمْ إِنَّهُ حَكِيمٌ عَلِيمٌ {25}
और इसमें शक नहीं कि तेरा परवरदिगार वही है जो उन सब को (क़यामत में कब्रों से) उठाएगा बेशक वह हिक़मत वाला वाकि़फकार है (25)
रुबामा
وَلَقَدْ خَلَقْنَا الإِنسَانَ مِن صَلْصَالٍ مِّنْ حَمَإٍ مَّسْنُونٍ {26}
और बेशक हम ही ने आदमी को ख़मीर (गुंधी) दी हुई सड़ी मिट्टी से जो (सूखकर) खन खन बोलने लगे पैदा किया (26)
रुबामा
وَالْجَآنَّ خَلَقْنَاهُ مِن قَبْلُ مِن نَّارِ السَّمُومِ {27}
और हम ही ने जिन्नात को आदमी से (भी) पहले वे धुएँ की तेज़ आग से पैदा किया (27)
रुबामा
وَإِذْ قَالَ رَبُّكَ لِلْمَلاَئِكَةِ إِنِّي خَالِقٌ بَشَرًا مِّن صَلْصَالٍ مِّنْ حَمَإٍ مَّسْنُونٍ {28}
और (ऐ रसूल वह वक़्त याद करो) जब तुम्हारे परवरदिगार ने फरिश्तों से कहा कि मैं एक आदमी को खमीर दी हुयी मिट्टी से (जो सूखकर) खन खन बोलने लगे पैदा करने वाला हूँ (28)
रुबामा
فَإِذَا سَوَّيْتُهُ وَنَفَخْتُ فِيهِ مِن رُّوحِي فَقَعُواْ لَهُ سَاجِدِينَ {29}
तो जिस वक़्त मै उसको हर तरह से दुरुस्त कर चुके और उसमें अपनी (तरफ से) रुह फूँक दूँ तो सब के सब उसके सामने सजदे में गिर पड़ना (29)
रुबामा
فَسَجَدَ الْمَلآئِكَةُ كُلُّهُمْ أَجْمَعُونَ {30}
ग़रज़ फरिश्ते तो सब के सब सर ब सजूद हो गए (30)
रुबामा
إِلاَّ إِبْلِيسَ أَبَى أَن يَكُونَ مَعَ السَّاجِدِينَ {31}
मगर इबलीस (मलऊन) की उसने सजदा करने वालों के साथ शामिल होने से इन्कार किया (31)
रुबामा
قَالَ يَا إِبْلِيسُ مَا لَكَ أَلاَّ تَكُونَ مَعَ السَّاجِدِينَ {32}
(इस पर ख़ुदा ने) फरमाया आओ शैतान आखि़र तुझे क्या हुआ कि तू सजदा करने वालों के साथ शामिल न हुआ (32)
रुबामा
قَالَ لَمْ أَكُن لِّأَسْجُدَ لِبَشَرٍ خَلَقْتَهُ مِن صَلْصَالٍ مِّنْ حَمَإٍ مَّسْنُونٍ {33}
वह (ढिठाई से) कहने लगा मैं ऐसा गया गुज़रा तो हूँ नहीं कि ऐसे आदमी को सजदा कर बैठूँ जिसे तूने सड़ी हुयी खन खन बोलने वाली मिट्टी से पैदा किया है (33)
रुबामा
قَالَ فَاخْرُجْ مِنْهَا فَإِنَّكَ رَجِيمٌ {34}
ख़ुदा ने फरमाया (नहीं तू) तो बेहिश्त से निकल जा (दूर हो) कि बेशक तू मरदूद है (34)
रुबामा
وَإِنَّ عَلَيْكَ اللَّعْنَةَ إِلَى يَوْمِ الدِّينِ {35}
और यक़ीनन तुझ पर रोज़े में जज़ा तक फिटकार बरसा करेगी (35)
रुबामा
قَالَ رَبِّ فَأَنظِرْنِي إِلَى يَوْمِ يُبْعَثُونَ {36}
शैतान ने कहा ऐ मेरे परवरदिगार ख़ैर तू मुझे उस दिन तक की मोहलत दे जबकि (लोग दोबारा जि़न्दा करके) उठाए जाएँगें (36)
रुबामा
قَالَ فَإِنَّكَ مِنَ الْمُنظَرِينَ {37}
ख़ुदा ने फरमाया वक़्त मुक़र्रर (37)
रुबामा
إِلَى يَومِ الْوَقْتِ الْمَعْلُومِ {38}
के दिन तक तुझे मोहलत दी गई (38)
रुबामा
قَالَ رَبِّ بِمَا أَغْوَيْتَنِي لأُزَيِّنَنَّ لَهُمْ فِي الأَرْضِ وَلأُغْوِيَنَّهُمْ أَجْمَعِينَ {39}
उन शैतान ने कहा ऐ मेरे परवरदिगार चूंकि तूने मुझे रास्ते से अलग किया मैं भी उनके लिए दुनिया में (साज़ व सामान को) उम्दा कर दिखाऊँगा और सबको ज़रुर बहकाऊगा (39)
रुबामा
إِلاَّ عِبَادَكَ مِنْهُمُ الْمُخْلَصِينَ {40}
मगर उनमें से तेरे निरे खुरे ख़ास बन्दे (कि वह मेरे बहकाने में न आएँगें) (40)
रुबामा
قَالَ هَذَا صِرَاطٌ عَلَيَّ مُسْتَقِيمٌ {41}
ख़ुदा ने फरमाया कि यही राह सीधी है कि मुझ तक (पहुँचती) है (41)
रुबामा
إِنَّ عِبَادِي لَيْسَ لَكَ عَلَيْهِمْ سُلْطَانٌ إِلاَّ مَنِ اتَّبَعَكَ مِنَ الْغَاوِينَ {42}
जो मेरे मुख़लिस (ख़ास बन्दे) बन्दे हैं उन पर तुझसे किसी तरह की हुकूमत न होगी मगर हाँ गुमराहों में से जो तेरी पैरवी करे (उस पर तेरा वार चल जाएगा) (42)
रुबामा
وَإِنَّ جَهَنَّمَ لَمَوْعِدُهُمْ أَجْمَعِينَ {43}
और हाँ ये भी याद रहे कि उन सब के वास्ते (आखि़री) वायदा बस जहन्नम है जिसके सात दरवाजे़ होगे (43)
रुबामा
لَهَا سَبْعَةُ أَبْوَابٍ لِّكُلِّ بَابٍ مِّنْهُمْ جُزْءٌ مَّقْسُومٌ {44}
हर (दरवाज़े में जाने) के लिए उन गुमराहों की अलग अलग टोलियाँ होगीं (44)
रुबामा
إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ {45}
और परहेज़गार तो बेहश्त के बाग़ों और चाश्मों मे यक़ीनन होंगे (45)
रुबामा
ادْخُلُوهَا بِسَلاَمٍ آمِنِينَ {46}
(दाखि़ले के वक़्त फरिश्ते कहेगें कि) उनमें सलामती इत्मिनान से चले चलो (46)
रुबामा
وَنَزَعْنَا مَا فِي صُدُورِهِم مِّنْ غِلٍّ إِخْوَانًا عَلَى سُرُرٍ مُّتَقَابِلِينَ {47}
और (दुनिया की तकलीफों से) जो कुछ उनके दिल में रंज था उसको भी हम निकाल देगें और ये बाहम एक दूसरे के आमने सामने तख़्तों पर इस तरह बैठे होगें जैसे भाई भाई (47)
रुबामा
لاَ يَمَسُّهُمْ فِيهَا نَصَبٌ وَمَا هُم مِّنْهَا بِمُخْرَجِينَ {48}
उनको बहिश्त में तकलीफ छुएगी भी तो नहीं और न कभी उसमें से निकाले जाएँगें (48)
रुबामा
نَبِّئْ عِبَادِي أَنِّي أَنَا الْغَفُورُ الرَّحِيمُ {49}
(ऐ रसूल) मेरे बन्दों को आगाह करो कि बेशक मै बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान हूँ (49)
रुबामा
وَ أَنَّ عَذَابِي هُوَ الْعَذَابُ الأَلِيمَ {50}
मगर साथ ही इसके (ये भी याद रहे कि) बेशक मेरा अज़ाब भी बड़ा दर्दनाक अज़ाब है (50)
रुबामा
وَنَبِّئْهُمْ عَن ضَيْفِ إِ بْراَهِيمَ {51}
और उनको इबराहीम के मेहमान का हाल सुना दो (51)
रुबामा
إِذْ دَخَلُواْ عَلَيْهِ فَقَالُواْ سَلامًا قَالَ إِنَّا مِنكُمْ وَجِلُونَ {52}
कि जब ये इबराहीम के पास आए तो (पहले) उन्होंने सलाम किया इबराहीम ने (जवाब सलाम के बाद) कहा हमको तो तुम से डर मालूम होता है (52)
रुबामा
قَالُواْ لاَ تَوْجَلْ إِنَّا نُبَشِّرُكَ بِغُلامٍ عَلِيمٍ {53}
उन्होंने कहा आप मुत्तलिक़ ख़ौफ न कीजिए (क्योंकि) हम तो आप को एक (दाना व बीना) फरज़न्द (के पैदाइश) की खुशख़बरी देते हैं (53)
रुबामा
قَالَ أَبَشَّرْتُمُونِي عَلَى أَن مَّسَّنِيَ الْكِبَرُ فَبِمَ تُبَشِّرُونَ {54}
इब्राहिम ने कहा क्या मुझे ख़ुशख़बरी (बेटा होने की) देते हो जब मुझे बुढ़ापा छा गया (54)
रुबामा
قَالُواْ بَشَّرْنَاكَ بِالْحَقِّ فَلاَ تَكُن مِّنَ الْقَانِطِينَ {55}
तो फिर अब काहे की खुशख़बरी देते हो वह फरिश्ते बोले हमने आप को बिल्कुल ठीक खुशख़बरी दी है तो आप (बारगाह ख़ुदा बन्दी से) ना उम्मीद न हो (55)
रुबामा
قَالَ وَمَن يَقْنَطُ مِن رَّحْمَةِ رَبِّهِ إِلاَّ الضَّآلُّونَ {56}
इबराहीम ने कहा गुमराहों के सिवा और ऐसा कौन है जो अपने परवरदिगार की रहमत से ना उम्मीद हो (56)
रुबामा
قَالَ فَمَا خَطْبُكُمْ أَيُّهَا الْمُرْسَلُونَ {57}
(फिर) इबराहीम ने कहा ऐ (ख़ुदा के) भेजे हुए (फरिश्तौं) तुम्हें आखि़र क्या मुहिम दर पेश है (57)
रुबामा
قَالُواْ إِنَّا أُرْسِلْنَا إِلَى قَوْمٍ مُّجْرِمِينَ {58}
उन्होंने कहा कि हम तो एक गुनाहगार क़ौम की तरफ (अज़ाब नाजि़ल करने के लिए) भेजे गए हैं (58)
रुबामा
إِلاَّ آلَ لُوطٍ إِنَّا لَمُنَجُّوهُمْ أَجْمَعِينَ {59}
मगर लूत के लड़के वाले कि हम उन सबको ज़रुर बचा लेगें मगर उनकी बीबी जिसे हमने ताक लिया है (59)
रुबामा
إِلاَّ امْرَأَتَهُ قَدَّرْنَا إِنَّهَا لَمِنَ الْغَابِرِينَ {60}
कि वह ज़रुर (अपने लड़के बालों के) पीछे (अज़ाब में) रह जाएगी (60)
रुबामा
فَلَمَّا جَاء آلَ لُوطٍ الْمُرْسَلُونَ {60}
ग़रज़ जब (ख़ुदा के) भेजे हुए (फरिश्ते) लूत के बाल बच्चों के पास आए तो लूत ने कहा कि तुम तो (कुछ) अजनबी लोग (मालूम होते हो) (61)
रुबामा
قَالَ إِنَّكُمْ قَوْمٌ مُّنكَرُونَ {62}
फरिश्तौं ने कहा (नहीं) बल्कि हम तो आपके पास वह (अज़ाब) लेकर आए हैं (62)
रुबामा
قَالُواْ بَلْ جِئْنَاكَ بِمَا كَانُواْ فِيهِ يَمْتَرُونَ {63}
जिसके बारे में आपकी क़ौम के लोग शक रखते थे (63)
रुबामा
وَأَتَيْنَاكَ بَالْحَقِّ وَإِنَّا لَصَادِقُونَ {64}
(कि आए न आए) और हम आप के पास (अज़ाब का) कलई (सही) हुक्म लेकर आए हैं और हम बिल्कुल सच कहते हैं (64)
रुबामा
فَأَسْرِ بِأَهْلِكَ بِقِطْعٍ مِّنَ اللَّيْلِ وَاتَّبِعْ أَدْبَارَهُمْ وَلاَ يَلْتَفِتْ مِنكُمْ أَحَدٌ وَامْضُواْ حَيْثُ تُؤْمَرُونَ {65}
बस तो आप कुछ रात रहे अपने लड़के बालों को लेकर निकल जाइए और आप सब के सब पीछे रहिएगा और उन लोगों में से कोई मुड़कर पीछे न देखे और जिधर (जाने) का हुक्म दिया गया है (शाम) उधर (सीधे) चले जाओ और हमने लूत के पास इस अम्र का क़तई फैसला कहला भेजा (65)
रुबामा
وَقَضَيْنَا إِلَيْهِ ذَلِكَ الأَمْرَ أَنَّ دَابِرَ هَؤُلاء مَقْطُوعٌ مُّصْبِحِينَ {66}
कि बस सुबह होते होते उन लोगों की जड़ काट डाली जाएगी (66)
रुबामा
وَجَاء أَهْلُ الْمَدِينَةِ يَسْتَبْشِرُونَ {67}
और (ये बात हो रही थीं कि) शहर के लोग (मेहमानों की ख़बर सुन कर बुरी नीयत से) खुशियाँ मनाते हुए आ पहुँचे (67)
रुबामा
قَالَ إِنَّ هَؤُلاء ضَيْفِي فَلاَ تَفْضَحُونِ {68}
लूत ने (उनसे कहा) कि ये लोग मेरे मेहमान है तो तुम (इन्हें सताकर) मुझे रुसवा बदनाम न करो (68)
रुबामा
وَاتَّقُوا اللّهَ وَلاَ تُخْزُونِ {69}
और ख़ुदा से डरो और मुझे ज़लील न करो (69)
रुबामा
قَالُوا أَوَلَمْ نَنْهَكَ عَنِ الْعَالَمِينَ {70}
वह लोग कहने लगे क्यों जी हमने तुम को सारे जहाँन के लोगों (के आने) की मनाही नहीं कर दी थी (70)
रुबामा
قَالَ هَؤُلاء بَنَاتِي إِن كُنتُمْ فَاعِلِينَ {71}
लूत ने कहा अगर तुमको (ऐसा ही) करना है तो ये मेरी क़ौम की बेटियाँ मौजूद हैं (71)
रुबामा
لَعَمْرُكَ إِنَّهُمْ لَفِي سَكْرَتِهِمْ يَعْمَهُونَ {72}
(इनसे निकाह कर लो) ऐ रसूल तुम्हारी जान की कसम ये लोग (क़ौम लूत) अपनी मस्ती में मदहोश हो रहे थे (72)
रुबामा
فَأَخَذَتْهُمُ الصَّيْحَةُ مُشْرِقِينَ {73}
(लूत की सुनते काहे को) ग़रज़ सूरज निकलते निकलते उनको (बड़े ज़ोरो की) चिघाड़ न ले डाला (73)
रुबामा
فَجَعَلْنَا عَالِيَهَا سَافِلَهَا وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهِمْ حِجَارَةً مِّن سِجِّيلٍ {74}
फिर हमने उसी बस्ती को उलट कर उसके ऊपर के तबके़ को नीचे का तबक़ा बना दिया और उसके ऊपर उन पर खरन्जे के पत्थर बरसा दिए इसमें शक नहीं कि इसमें (असली बात के) ताड़ जाने वालों के लिए (कुदरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं (74)
रुबामा
إِنَّ فِي ذَلِكَ لآيَاتٍ لِّلْمُتَوَسِّمِينَ {75}
और वह उलटी हुयी बस्ती हमेशा (की आमदरफ्त) (75)
रुबामा
وَإِنَّهَا لَبِسَبِيلٍ مُّقيمٍ {76}
के रास्ते पर है (76)
रुबामा
إِنَّ فِي ذَلِكَ لآيَةً لِّلْمُؤمِنِينَ {77}
इसमें तो शक हीं नहीं कि इसमें ईमानदारों के वास्ते (कुदरते ख़ुदा की) बहुत बड़ी निशानी है (77)
रुबामा
وَإِن كَانَ أَصْحَابُ الأَيْكَةِ لَظَالِمِينَ {78}
और एैका के रहने वाले (क़ौमे शोएब की तरह बड़े सरकश थे) (78)
रुबामा
فَانتَقَمْنَا مِنْهُمْ وَإِنَّهُمَا لَبِإِمَامٍ مُّبِينٍ {79}
तो उन से भी हमने (नाफरमानी का) बदला लिया और ये दो बस्तियाँ (क़ौमे लूत व शोएब की) एक खुली हुयी शह राह पर (अभी तक मौजूद) हैं (79)
रुबामा
وَلَقَدْ كَذَّبَ أَصْحَابُ الحِجْرِ الْمُرْسَلِينَ {80}
और इसी तरह हिज्र के रहने वालों (क़ौम सालेह ने भी) पैग़म्बरों को झुठलाया (80)
रुबामा
وَآتَيْنَاهُمْ آيَاتِنَا فَكَانُواْ عَنْهَا مُعْرِضِينَ {81}
और (बावजूद कि) हमने उन्हें अपनी निशानियाँ दी उस पर भी वह लोग उनसे रद गिरदानी करते रहे (81)
रुबामा
وَكَانُواْ يَنْحِتُونَ مِنَ الْجِبَالِ بُيُوتًا آمِنِينَ {82}
और बहुत दिल जोई से पहाड़ों को तराश कर घर बनाते रहे (82)
रुबामा
فَأَخَذَتْهُمُ الصَّيْحَةُ مُصْبِحِينَ {83}
आखि़र उनके सुबह होते होते एक बड़ी (जोरों की) चिंघाड़ ने ले डाला (83)
रुबामा
فَمَا أَغْنَى عَنْهُم مَّا كَانُواْ يَكْسِبُونَ {84}
फिर जो कुछ वह अपनी हिफाज़त की तदबीर किया करते थे (अज़ाब ख़ुदा से बचाने में) कि कुछ भी काम न आयीं (84)
रुबामा
وَمَا خَلَقْنَا السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا إِلاَّ بِالْحَقِّ وَإِنَّ السَّاعَةَ لآتِيَةٌ فَاصْفَحِ الصَّفْحَ الْجَمِيلَ {85}
और हमने आसमानों और ज़मीन को और जो कुछ उन दोनों के दरम्यिान में है हिकमत व मसलहत से पैदा किया है और क़यामत यक़ीनन ज़रुर आने वाली है तो तुम (ऐ रसूल) उन काफिरों से शाइस्ता उनवान (अच्छे बरताव) के साथ दर गुज़र करो (85)
रुबामा
إِنَّ رَبَّكَ هُوَ الْخَلاَّقُ الْعَلِيمُ {86}
इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार बड़ा पैदा करने वाला है (86)
रुबामा
وَلَقَدْ آتَيْنَاكَ سَبْعًا مِّنَ الْمَثَانِي وَالْقُرْآنَ الْعَظِيمَ {87}
(बड़ा दाना व बीना है) और हमने तुमको सबअे मसानी (सूरे हम्द) और क़ुरान अज़ीम अता किया है (87)
रुबामा
لاَ تَمُدَّنَّ عَيْنَيْكَ إِلَى مَا مَتَّعْنَا بِهِ أَزْوَاجًا مِّنْهُمْ وَلاَ تَحْزَنْ عَلَيْهِمْ وَاخْفِضْ جَنَاحَكَ لِلْمُؤْمِنِينَ {88}
और हमने जो उन कुफ्फारों में से कुछ लोगों को (दुनिया की) माल व दौलत से निहाल कर दिया है तुम उसकी तरफ हरगिज़ नज़र भी न उठाना और न उनकी (बेदीनी) पर कुछ अफसोस करना और इमानदारों से (अगरचे ग़रीब हो) झुककर मिला करो और कहा दो कि मै तो (अज़ाबे ख़ुदा से) सरीही तौर से डराने वाला हूँ (88)
रुबामा
وَقُلْ إِنِّي أَنَا النَّذِيرُ الْمُبِينُ {89}
(ऐ रसूल) उन कुफ्फारों पर इस तरह अज़ाब नाजि़ल करेगें जिस तरह हमने उन लोगों पर नाजि़ल किया (89)
रुबामा
كَمَا أَنزَلْنَا عَلَى المُقْتَسِمِينَ {90}
जिन्होंने क़ुरान को बाँट कर टुकडे़ टुकड़े कर डाला (90)
रुबामा
الَّذِينَ جَعَلُوا الْقُرْآنَ عِضِينَ {91}
(बाज़ को माना बाज को नहीं) तो ऐ रसूल तुम्हारे ही परवरदिगार की (अपनी) क़सम (91)
रुबामा
فَوَرَبِّكَ لَنَسْأَلَنَّهُمْ أَجْمَعِيْنَ {92}
कि हम उनसे जो कुछ ये (दुनिया में) किया करते थे (बहुत सख़्ती से) ज़रुर बाज़ पुर्स (पुछताछ) करेंगे (92)
रुबामा
عَمَّا كَانُوا يَعْمَلُونَ {93}
पस जिसका तुम्हें हुक्म दिया गया है उसे वाजेए करके सुना दो (93)
रुबामा
فَاصْدَعْ بِمَا تُؤْمَرُ وَأَعْرِضْ عَنِ الْمُشْرِكِينَ {94}
और मुशरेकीन की तरफ से मुँह फेर लो (94)
रुबामा
إِنَّا كَفَيْنَاكَ الْمُسْتَهْزِئِينَ {95}
जो लोग तुम्हारी हँसी उड़ाते है (95)
रुबामा
الَّذِينَ يَجْعَلُونَ مَعَ اللّهِ إِلـهًا آخَرَ فَسَوْفَ يَعْلَمُونَ {96}
और ख़ुदा के साथ दूसरे परवरदिगार को (शरीक) ठहराते हैं हम तुम्हारी तरफ से उनके लिए काफी हैं तो अनक़रीब ही उन्हें मालूम हो जाएगा (96)
रुबामा
وَلَقَدْ نَعْلَمُ أَنَّكَ يَضِيقُ صَدْرُكَ بِمَا يَقُولُونَ {97}
कि तुम जो इन (कुफ्फारों मुनाफिक़ीन) की बातों से दिल तंग होते हो उसको हम ज़रुर जानते हैं (97)
रुबामा
فَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ وَكُن مِّنَ السَّاجِدِينَ {98}
तो तुम अपने परवरदिगार की हम्दो सना से उसकी तस्बीह करो और (उसकी बारगाह में) सजदा करने वालों में हो जाओ (98)
रुबामा
وَاعْبُدْ رَبَّكَ حَتَّى يَأْتِيَكَ الْيَقِينُ {99}
और जब तक तुम्हारे पास मौत आए अपने परवरदिगार की इबादत में लगे रहो (99)
रुबामा
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ
ख़ुदा के नाम से शुरु करता हूँ जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला हैं
रुबामा
أَتَى أَمْرُ اللّهِ فَلاَ تَسْتَعْجِلُوهُ سُبْحَانَهُ وَتَعَالَى عَمَّا يُشْرِكُونَ {1}
ऐ कुफ़्फ़ारे मक्का (ख़़ुदा का हुक्म (क़यामत गोया) आ पहुँचा तो (ऐ काफिरों बे फायदे) तुम इसकी जल्दी न मचाओ जिस चीज़ को ये लोग शरीक क़रार देते हैं उससे वह ख़ुदा पाक व पाकीज़ा और बरतर है (1)
रुबामा
يُنَزِّلُ الْمَلآئِكَةَ بِالْرُّوحِ مِنْ أَمْرِهِ عَلَى مَن يَشَاء مِنْ عِبَادِهِ أَنْ أَنذِرُواْ أَنَّهُ لاَ إِلَـهَ إِلاَّ أَنَاْ فَاتَّقُونِ {2}
वही अपने हुक्म से अपने बन्दों में से जिसके पास चाहता है ‘वहीं’देकर फ़रिश्तौं को भेजता है कि लोगों को इस बात से आगाह कर दें कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं तो मुझी से डरते रहो (2)
रुबामा
خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ بِالْحَقِّ تَعَالَى عَمَّا يُشْرِكُونَ {3}
उसी ने सारे आसमान और ज़मीन मसलहत व हिकमत से पैदा किए तो ये लोग जिसको उसका शरीक बनाते हैं उससे कहीं बरतर है (3)
रुबामा
خَلَقَ الإِنسَانَ مِن نُّطْفَةٍ فَإِذَا هُوَ خَصِيمٌ مُّبِينٌ {4}
उसने इन्सान को नुत्फे से पैदा किया फिर वह यकायक (हम ही से) खुल्लम खुल्ला झगड़ने वाला हो गया (4)
रुबामा
وَالأَنْعَامَ خَلَقَهَا لَكُمْ فِيهَا دِفْءٌ وَمَنَافِعُ وَمِنْهَا تَأْكُلُونَ {5}
उसी ने चरपायों को भी पैदा किया कि तुम्हारे लिए ऊन (ऊन की खाल और ऊन) से जाडे़ का सामान है (5)
रुबामा
وَلَكُمْ فِيهَا جَمَالٌ حِينَ تُرِيحُونَ وَحِينَ تَسْرَحُونَ {6}
इसके अलावा और भी फायदें हैं और उनमें से बाज़ को तुम खाते हो और जब तुम उन्हें सिरे शाम चराई पर से लाते हो जब सवेरे ही सवेरे चराई पर ले जाते हो (6)
रुबामा
وَتَحْمِلُ أَثْقَالَكُمْ إِلَى بَلَدٍ لَّمْ تَكُونُواْ بَالِغِيهِ إِلاَّ بِشِقِّ الأَنفُسِ إِنَّ رَبَّكُمْ لَرَؤُوفٌ رَّحِيمٌ {7}
तो उनकी वजह से तुम्हारी रौनक़ भी है और जिन शहरों तक बग़ैर बड़ी जान ज़ोख़म में डाले बगै़र के पहुँच न सकते थे वहाँ तक ये चैपाए भी तुम्हारे बोझे भी उठा लिए फिरते हैं इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार बड़ा शफीक़ मेहरबान है (7)
रुबामा
وَالْخَيْلَ وَالْبِغَالَ وَالْحَمِيرَ لِتَرْكَبُوهَا وَزِينَةً وَيَخْلُقُ مَا لاَ تَعْلَمُونَ {8}
और (उसी ने) घोड़ों ख़च्चरों और गधों को (पैदा किया) ताकि तुम उन पर सवार हो और (इसमें) ज़ीनत (भी) है (8)
रुबामा
وَعَلَى اللّهِ قَصْدُ السَّبِيلِ وَمِنْهَا جَآئِرٌ وَلَوْ شَاء لَهَدَاكُمْ أَجْمَعِينَ {9}
(उसके अलावा) और चीज़े भी पैदा करेगा जिनको तुम नहीं जानते हो और (खुश्क व तर में) सीधी राह (की हिदायत तो ख़ुदा ही के जि़म्मे हैं और बाज़ रस्ते टेढे़ हैं (9)
रुबामा
هُوَ الَّذِي أَنزَلَ مِنَ السَّمَاء مَاء لَّكُم مِّنْهُ شَرَابٌ وَمِنْهُ شَجَرٌ فِيهِ تُسِيمُونَ {10}
और अगर ख़़ुदा चाहता तो तुम सबको मजि़ले मक़सूद तक पहुँचा देता वह वही (ख़ुदा) है जिसने आसमान से पानी बरसाया जिसमें से तुम सब पीते हो और इससे दरख़्त शादाब होते हैं (10)
रुबामा
يُنبِتُ لَكُم بِهِ الزَّرْعَ وَالزَّيْتُونَ وَالنَّخِيلَ وَالأَعْنَابَ وَمِن كُلِّ الثَّمَرَاتِ إِنَّ فِي ذَلِكَ لآيَةً لِّقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ {11}
जिनमें तुम (अपने मवेशियों को) चराते हो इसी पानी से तुम्हारे वास्ते खेती और जै़तून और खुरमें और अंगूर उगाता है और हर तरह के फल (पैदा करता है) इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर करने वालो के वास्ते (कुदरते ख़ुदा की) बहुत बड़ी निशानी है (11)
रुबामा
وَسَخَّرَ لَكُمُ اللَّيْلَ وَالْنَّهَارَ وَالشَّمْسَ وَالْقَمَرَ وَالْنُّجُومُ مُسَخَّرَاتٌ بِأَمْرِهِ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يَعْقِلُونَ {12}
उसी ने तुम्हारे वास्ते रात को और दिन को और सूरज और चाँद को तुम्हारा ताबेए बना दिया है और सितारे भी उसी के हुक्म से (तुम्हारे) फरमाबरदार हैं कुछ शक ही नहीं कि (इसमें) समझदार लोगों के वास्ते यक़ीनन (कुदरत खु़दा की) बहुत सी निशानियाँ हैं (12)
रुबामा
وَمَا ذَرَأَ لَكُمْ فِي الأَرْضِ مُخْتَلِفًا أَلْوَانُهُ إِنَّ فِي ذَلِكَ لآيَةً لِّقَوْمٍ يَذَّكَّرُونَ {13}
और जो तरह तरह के रंगों की चीज़े उसमें ज़मीन में तुम्हारे नफे के वास्ते पैदा की (13)
रुबामा
وَهُوَ الَّذِي سَخَّرَ الْبَحْرَ لِتَأْكُلُواْ مِنْهُ لَحْمًا طَرِيًّا وَتَسْتَخْرِجُواْ مِنْهُ حِلْيَةً تَلْبَسُونَهَا وَتَرَى الْفُلْكَ مَوَاخِرَ فِيهِ وَلِتَبْتَغُواْ مِن فَضْلِهِ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ {14}
कुछ शक नहीं कि इसमें भी इबरत व नसीहत हासिल करने वालों के वास्ते (कुदरते ख़़ुदा की) बहुत सी निशानी है और वही (वह ख़ुदा है जिसने दरिया को (भी तुम्हारे) क़ब्ज़े में कर दिया ताकि तुम इसमें से (मछलियों का) ताज़ा ताज़ा गोश्त खाओ और इसमें से जे़वर (की चीज़े मोती वगैरह) निकालो जिन को तुम पहना करते हो और तू कश्तियों को देखता है कि (आमद व रफत में) दरिया में (पानी को) चीरती फाड़ती आती है (14)
रुबामा
وَأَلْقَى فِي الأَرْضِ رَوَاسِيَ أَن تَمِيدَ بِكُمْ وَأَنْهَارًا وَسُبُلاً لَّعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ {15}
और (दरिया को तुम्हारे ताबेए) इसलिए (कर दिया) कि तुम लोग उसके फज़ल (नफा तिजारत) की तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो और उसी ने ज़मीन पर (भारी भारी) पहाड़ों को गाड़ दिया (15)
रुबामा
وَعَلامَاتٍ وَبِالنَّجْمِ هُمْ يَهْتَدُونَ {16}
ताकि (ऐसा न हों) कि ज़मीन तुम्हें लेकर झुक जाए (और तुम्हारे क़दम न जमें) और (उसी ने) नदियाँ और रास्ते (बनाए) (16)
रुबामा
أَفَمَن يَخْلُقُ كَمَن لاَّ يَخْلُقُ أَفَلا تَذَكَّرُونَ {17}
ताकि तुम (अपनी अपनी मंजि़ले मक़सूद तक पहुँचों (उसके अलावा रास्तों में) और बहुत सी निशानियाँ (पैदा की हैं) और बहुत से लोग सितारे से भी राह मालूम करते हैं (17)
रुबामा
وَإِن تَعُدُّواْ نِعْمَةَ اللّهِ لاَ تُحْصُوهَا إِنَّ اللّهَ لَغَفُورٌ رَّحِيمٌ {18}
तो क्या जो (ख़ुदा इतने मख़लूकात को) पैदा करता है वह उन (बुतों के बराबर हो सकता है जो कुछ भी पैदा नहीं कर सकते तो क्या तुम (इतनी बात भी) नहीं समझते और अगर तुम ख़ुदा की नेअमतों को गिनना चाहो तो (इस कसरत से हैं कि) तुम नहीं गिन सकते हो (18)
रुबामा
وَاللّهُ يَعْلَمُ مَا تُسِرُّونَ وَمَا تُعْلِنُونَ {19}
बेशक ख़़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है कि (तुम्हारी नाफरमानी पर भी नेअमत देता है) (19)
रुबामा
وَالَّذِينَ يَدْعُونَ مِن دُونِ اللّهِ لاَ يَخْلُقُونَ شَيْئًا وَهُمْ يُخْلَقُونَ {20}
और जो कुछ तुम छिपाकर करते हो और जो कुछ ज़ाहिर करते हो (ग़रज़) ख़ुदा (सब कुछ) जानता है और (ये कुफ्फार) ख़़ुदा को छोड़कर जिन लोगों को (हाजत के वक़्त) पुकारते हैं वह कुछ भी पैदा नहीं कर सकते (20)
रुबामा
أَمْواتٌ غَيْرُ أَحْيَاء وَمَا يَشْعُرُونَ أَيَّانَ يُبْعَثُونَ {21}
(बल्कि) वह ख़ुद दूसरों के बनाए हुए मुर्दे बेजान हैं और इतनी भी ख़बर नहीं कि कब (क़यामत) होगी और कब मुर्दे उठाए जाएगें (21)
रुबामा
إِلَهُكُمْ إِلَهٌ وَاحِدٌ فَالَّذِينَ لاَ يُؤْمِنُونَ بِالآخِرَةِ قُلُوبُهُم مُّنكِرَةٌ وَهُم مُّسْتَكْبِرُونَ {22}
(फिर क्या काम आएगी) तुम्हारा परवरदिगार (यकता खुदा है तो जो लोग आखि़रत पर इमान नहीं रखते उनके दिल ही (इस वजह के हैं कि हर बात का) इन्कार करते हैं और वह बड़े मग़रुर हैं (22)
रुबामा
لاَ جَرَمَ أَنَّ اللّهَ يَعْلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعْلِنُونَ إِنَّهُ لاَ يُحِبُّ الْمُسْتَكْبِرِينَ {23}
ये लोग जो कुछ छिपा कर करते हैं और जो कुछ ज़ाहिर बज़ाहिर करते हैं (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा ज़रुर जानता है वह हरगिज़ तकब्बुर करने वालों को पसन्द नहीं करता (23)
रुबामा
وَإِذَا قِيلَ لَهُم مَّاذَا أَنزَلَ رَبُّكُمْ قَالُواْ أَسَاطِيرُ الأَوَّلِينَ {24}
और जब उनसे कहा जाता है कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या नाजि़ल किया है तो वह कहते हैं कि (अजी कुछ भी नहीं बस) अगलो के किस्से हैं (24)
रुबामा
لِيَحْمِلُواْ أَوْزَارَهُمْ كَامِلَةً يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَمِنْ أَوْزَارِ الَّذِينَ يُضِلُّونَهُم بِغَيْرِ عِلْمٍ أَلاَ سَاء مَا يَزِرُونَ {25}
(उनको बकने दो ताकि क़यामत के दिन) अपने (गुनाहों) के पूरे बोझ और जिन लोगों को उन्होंने बे समझे बूझे गुमराह किया है उनके (गुनाहों के) बोझ भी उन्हीं को उठाने पड़ेगें ज़रा देखो तो कि ये लोग कैसा बुरा बोझ अपने ऊपर लादे चले जा रहें हैं (25)
रुबामा
قَدْ مَكَرَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ فَأَتَى اللّهُ بُنْيَانَهُم مِّنَ الْقَوَاعِدِ فَخَرَّ عَلَيْهِمُ السَّقْفُ مِن فَوْقِهِمْ وَأَتَاهُمُ الْعَذَابُ مِنْ حَيْثُ لاَ يَشْعُرُونَ {26}
बेशक जो लोग उनसे पहले थे उन्होंने भी मक्कारियाँ की थीं तो (ख़ुदा का हुक्म) उनके ख़्यालात की इमारत की जड़ की तरफ से आ पड़ा (पस फिर क्या था) इस ख़्याली इमारत की छत उन पर उनके ऊपर से धम से गिर पड़ी (और सब ख़्याल हवा हो गए) और जिधर से उन पर अज़ाब आ पहुँचा उसकी उनको ख़बर तक न थी (26)
रुबामा
ثُمَّ يَوْمَ الْقِيَامَةِ يُخْزِيهِمْ وَيَقُولُ أَيْنَ شُرَكَآئِيَ الَّذِينَ كُنتُمْ تُشَاقُّونَ فِيهِمْ قَالَ الَّذِينَ أُوتُواْ الْعِلْمَ إِنَّ الْخِزْيَ الْيَوْمَ وَالْسُّوءَ عَلَى الْكَافِرِينَ {27}
(फिर उसी पर इकतिफा नहीं) उसके बाद क़यामत के दिन ख़ुदा उनको रुसवा करेगा और फरमाएगा कि (अब बताओ) जिसको तुमने मेरा शरीक बना रखा था और जिनके बारे में तुम (इमानदारों से) झगड़ते थे कहाँ हैं (वह तो कुछ जवाब देगें नहीं मगर) जिन लोगों को (ख़ुदा की तरफ से) इल्म दिया गया है कहेगें कि आज के दिन रुसवाई और ख़राबी (सब कुछ) काफिरों पर ही है (27)
रुबामा
الَّذِينَ تَتَوَفَّاهُمُ الْمَلائِكَةُ ظَالِمِي أَنفُسِهِمْ فَأَلْقَوُاْ السَّلَمَ مَا كُنَّا نَعْمَلُ مِن سُوءٍ بَلَى إِنَّ اللّهَ عَلِيمٌ بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ {28}
वह लोग हैं कि जब फरिश्ते उनकी रुह क़ब्ज़ करने लगते हैं (और) ये लोग (कुफ्र करके) आप अपने ऊपर सितम ढ़ाते रहे तो इताअत पर आमादा नज़र आते हैं और (कहते हैं कि) हम तो (अपने ख़्याल में) कोई बुराई नहीं करते थे (तो फरिश्ते कहते हैं) हाँ जो कुछ तुम्हारी करतूते थी ख़ुदा उससे खूब अच्छी तरह वाकि़फ हैं (28)
रुबामा
فَادْخُلُواْ أَبْوَابَ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا فَلَبِئْسَ مَثْوَى الْمُتَكَبِّرِينَ {29}
(अच्छा तो लो) जहन्नुम के दरवाज़ों में दाखि़ल हो और इसमें हमेशा रहोगे ग़रज़ तकब्बुर करने वालो का भी क्या बुरा ठिकाना है (29)
रुबामा
وَقِيلَ لِلَّذِينَ اتَّقَوْاْ مَاذَا أَنزَلَ رَبُّكُمْ قَالُواْ خَيْرًا لِّلَّذِينَ أَحْسَنُواْ فِي هَذِهِ الدُّنْيَا حَسَنَةٌ وَلَدَارُ الآخِرَةِ خَيْرٌ وَلَنِعْمَ دَارُ الْمُتَّقِينَ {30}
और जब परहेज़गारों से पूछा जाता है कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या नाजि़ल किया है तो बोल उठते हैं सब अच्छे से अच्छा जिन लोगों ने नेकी की उनके लिए इस दुनिया में (भी) भलाई (ही भलाई) है और आखि़रत का घर क्या उम्दा है (30)
रुबामा
جَنَّاتُ عَدْنٍ يَدْخُلُونَهَا تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ لَهُمْ فِيهَا مَا يَشَآؤُونَ كَذَلِكَ يَجْزِي اللّهُ الْمُتَّقِينَ {31}
सदा बहार (हरे भरे) बाग़ हैं जिनमें (वे तकल्लुफ) जा पहुँचेगें उनके नीचे नहरें जारी होंगी और ये लोग जो चाहेगें उनके लिए मुयय्या (मौजू़द) है यूँ ख़ुदा परहेज़गारों (को उनके किए) की जज़ा अता फरमाता है (31)
रुबामा
الَّذِينَ تَتَوَفَّاهُمُ الْمَلآئِكَةُ طَيِّبِينَ يَقُولُونَ سَلامٌ عَلَيْكُمُ ادْخُلُواْ الْجَنَّةَ بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ {32}
(ये) वह लोग हैं जिनकी रुहें फरिश्ते इस हालत में क़ब्ज़ करतें हैं कि वह (नजासते कुफ्र से) पाक व पाकीज़ा होते हैं तो फरिश्ते उनसे (निहायत तपाक से) कहते है सलामुन अलैकुम जो नेकियाँ दुनिया में तुम करते थे उसके सिले में जन्नत में (बेतकल्लुफ) चले जाओ (32)
रुबामा
هَلْ يَنظُرُونَ إِلاَّ أَن تَأْتِيَهُمُ الْمَلائِكَةُ أَوْ يَأْتِيَ أَمْرُ رَبِّكَ كَذَلِكَ فَعَلَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ وَمَا ظَلَمَهُمُ اللّهُ وَلـكِن كَانُواْ أَنفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ {33}
(ऐ रसूल) क्या ये (एहले मक्का) इसी बात के मुन्तिज़र है कि उनके पास फरिश्ते (क़ब्ज़े रुह को) आ ही जाएँ या (उनके हलाक करने को) तुम्हारे परवरदिगार का अज़ाब ही आ पहुँचे जो लोग उनसे पहले हो गुज़रे हैं वह ऐसी बातें कर चुके हैं और ख़ुदा ने उन पर (ज़रा भी) जुल्म नहीं किया बल्कि वह लोग ख़ुद कुफ्ऱ की वजह से अपने ऊपर आप जुल्म करते रहे (33)
रुबामा
فَأَصَابَهُمْ سَيِّئَاتُ مَا عَمِلُواْ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُواْ بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ {34}
फिर जो जो करतूतें उनकी थी उसकी सज़ा में बुरे नतीजे उनको मिले और जिस (अज़ाब) की वह हँसी उड़ाया करते थे उसने उन्हें (चारो तरफ से) घेर लिया (34)
रुबामा
وَقَالَ الَّذِينَ أَشْرَكُواْ لَوْ شَاء اللّهُ مَا عَبَدْنَا مِن دُونِهِ مِن شَيْءٍ نَّحْنُ وَلا آبَاؤُنَا وَلاَ حَرَّمْنَا مِن دُونِهِ مِن شَيْءٍ كَذَلِكَ فَعَلَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ فَهَلْ عَلَى الرُّسُلِ إِلاَّ الْبَلاغُ الْمُبِينُ {35}
और मुशरेकीन कहते हैं कि अगर ख़ुदा चाहता तो न हम ही उसके सिवा किसी और चीज़ की इबादत करते और न हमारे बाप दादा और न हम बग़ैर उस (की मर्ज़ी) के किसी चीज़ को हराम कर बैठते जो लोग इनसे पहले हो गुज़रे हैं वह भी ऐसे (हीला हवाले की) बातें कर चुके हैं तो (कहा करें) पैग़म्बरों पर तो उसके सिवा कि एहकाम को साफ साफ पहुँचा दे और कुछ भी नहीं (35)
रुबामा
وَلَقَدْ بَعَثْنَا فِي كُلِّ أُمَّةٍ رَّسُولاً أَنِ اعْبُدُواْ اللّهَ وَاجْتَنِبُواْ الطَّاغُوتَ فَمِنْهُم مَّنْ هَدَى اللّهُ وَمِنْهُم مَّنْ حَقَّتْ عَلَيْهِ الضَّلالَةُ فَسِيرُواْ فِي الأَرْضِ فَانظُرُواْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُكَذِّبِينَ {36}
और हमने तो हर उम्मत में एक (न एक) रसूल इस बात के लिए ज़रुर भेजा कि लोगों ख़ुदा की इबादत करो और बुतों (की इबादत) से बचे रहो ग़रज़ उनमें से बाज़ की तो ख़ुदा ने हिदायत की और बाज़ के (सर) पर गुमराही सवार हो गई तो ज़रा तुम लोग रुए ज़मीन पर चल फिर कर देखो तो कि (पैग़म्बराने ख़़ुदा के) झुठलाने वालों को क्या अन्जाम हुआ (36)
रुबामा
إِن تَحْرِصْ عَلَى هُدَاهُمْ فَإِنَّ اللّهَ لاَ يَهْدِي مَن يُضِلُّ وَمَا لَهُم مِّن نَّاصِرِينَ {37}
(ऐ रसूल) अगर तुमको इन लोगों के राहे रास्त पर जाने का हौका है (तो बे फायदा) क्योंकि ख़ुदा तो हरगिज़ उस शख़्स की हिदायत नहीं करेगा जिसको (नाजि़ल होने की वजह से) गुमराही में छोड़ देता है और न उनका कोई मददगार है (37)
रुबामा
وَأَقْسَمُواْ بِاللّهِ جَهْدَ أَيْمَانِهِمْ لاَ يَبْعَثُ اللّهُ مَن يَمُوتُ بَلَى وَعْدًا عَلَيْهِ حَقًّا وَلـكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لاَ يَعْلَمُونَ {38}
(कि अज़ाब से बचाए) और ये कुफ्फार ख़ुदा की जितनी क़समें उनके इमकान में तुम्हें खा (कर कहते) हैं कि जो शख़्स मर जाता है फिर उसको ख़ुदा दोबारा जि़न्दा नहीं करेगा (ऐ रसूल) तुम कह दो कि हाँ ज़रुर ऐसा करेगा इस पर अपने वायदे की (वफा) लाजि़म व ज़रुरी है मगर बहुतेरे आदमी नहीं जानते हैं (38)
रुबामा
لِيُبَيِّنَ لَهُمُ الَّذِي يَخْتَلِفُونَ فِيهِ وَلِيَعْلَمَ الَّذِينَ كَفَرُواْ أَنَّهُمْ كَانُواْ كَاذِبِينَ {39}
(दोबारा जि़न्दा करना इसलिए ज़रुरी है) कि जिन बातों पर ये लोग झगड़ा करते हैं उन्हें उनके सामने साफ वाज़ेए कर देगा और ताकि कुफ्फार ये समझ लें कि ये लोग (दुनिया में) झूठे थे (39)
रुबामा
إِنَّمَا قَوْلُنَا لِشَيْءٍ إِذَا أَرَدْنَاهُ أَن نَّقُولَ لَهُ كُن فَيَكُونُ {40}
हम जब किसी चीज़ (के पैदा करने) का इरादा करते हैं तो हमारा कहना उसके बारे में इतना ही होता है कि हम कह देते हैं कि ‘हो जा’ बस फौरन हो जाती है (तो फिर मुर्दों का जिलाना भी कोई बात है) (40)
रुबामा
وَالَّذِينَ هَاجَرُواْ فِي اللّهِ مِن بَعْدِ مَا ظُلِمُواْ لَنُبَوِّئَنَّهُمْ فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَلَأَجْرُ الآخِرَةِ أَكْبَرُ لَوْ كَانُواْ يَعْلَمُونَ {41}
और जिन लोगों ने (कुफ़्फ़ार के ज़ुल्म पर ज़ुल्म सहने के बाद ख़ुदा की खुशी के लिए घर बार छोड़ा हिजरत की हम उनको ज़रुर दुनिया में भी अच्छी जगह बिठाएँगें और आखि़रत की जज़ा तो उससे कहीं बढ़ कर है काश ये लोग जिन्होंने ख़ुदा की राह में सखि़्तयों पर सब्र किया (41)
रुबामा
الَّذِينَ صَبَرُواْ وَعَلَى رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ {42}
और अपने परवरदिगार ही पर भरोसा रखते हैं (आखि़रत का सवाब) जानते होते (42)
रुबामा
وَمَا أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ إِلاَّ رِجَالاً نُّوحِي إِلَيْهِمْ فَاسْأَلُواْ أَهْلَ الذِّكْرِ إِن كُنتُمْ لاَ تَعْلَمُونَ {43}
और (ऐ रसूल) तुम से पहले आदमियों ही को पैग़म्बर बना बनाकर भेजा किए जिन की तरफ हम वहीं भेजते थे तो (तुम एहले मक्का से कहो कि) अगर तुम खुद नहीं जानते हो तो एहले जि़क्र (आलिमों से) पूछो (और उन पैग़म्बरों को भेजा भी तो) रौशन दलीलों और किताबों के साथ (43)
रुबामा
بِالْبَيِّنَاتِ وَالزُّبُرِ وَأَنزَلْنَا إِلَيْكَ الذِّكْرَ لِتُبَيِّنَ لِلنَّاسِ مَا نُزِّلَ إِلَيْهِمْ وَلَعَلَّهُمْ يَتَفَكَّرُونَ {44}
और तुम्हारे पास क़ुरान नाजि़ल किया है ताकि जो एहकाम लोगों के लिए नाजि़ल किए गए है तुम उनसे साफ साफ बयान कर दो ताकि वह लोग खुद से कुछ ग़ौर फिक्र करें (44)
रुबामा
أَفَأَمِنَ الَّذِينَ مَكَرُواْ السَّيِّئَاتِ أَن يَخْسِفَ اللّهُ بِهِمُ الأَرْضَ أَوْ يَأْتِيَهُمُ الْعَذَابُ مِنْ حَيْثُ لاَ يَشْعُرُونَ {45}
तो क्या जो लोग बड़ी बड़ी मक्कारियाँ (शिर्क वग़ैरह) करते थे (उनको इस बात का इत्मिनान हो गया है (और मुत्तलिक़ ख़ौफ नहीं) कि ख़ुदा उन्हें ज़मीन में धसा दे या ऐसी तरफ से उन पर अज़ाब आ पहुँचे कि उसकी उनको ख़बर भी न हो (45)
रुबामा
أَوْ يَأْخُذَهُمْ فِي تَقَلُّبِهِمْ فَمَا هُم بِمُعْجِزِينَ {46}
उनके चलते फिरते (ख़ुदा का अज़ाब) उन्हें गिरफ्तार करे तो वह लोग उसे ज़ेर नहीं कर सकते (46)
रुबामा
أَوْ يَأْخُذَهُمْ عَلَى تَخَوُّفٍ فَإِنَّ رَبَّكُمْ لَرؤُوفٌ رَّحِيمٌ {47}
या वह अज़ाब से डरते हो तो (उसी हालत में) धर पकड़ करे इसमें तो शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार बड़ा शफीक़ रहम वाला है (47)
रुबामा
أَوَ لَمْ يَرَوْاْ إِلَى مَا خَلَقَ اللّهُ مِن شَيْءٍ يَتَفَيَّأُ ظِلاَلُهُ عَنِ الْيَمِينِ وَالْشَّمَآئِلِ سُجَّدًا لِلّهِ وَهُمْ دَاخِرُونَ {48}
क्या उन लोगों ने ख़ुदा की मख़लूक़ात में से कोई ऐसी चीज़ नहीं देखी जिसका साया (कभी) दाहिनी तरफ और कभी बायी तरफ पलटा रहता है कि (गोया) ख़ुदा के सामने सर सजदा है और सब इताअत का इज़हार करते हैं (48)
रुबामा
وَلِلّهِ يَسْجُدُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ مِن دَآبَّةٍ وَالْمَلآئِكَةُ وَهُمْ لاَ يَسْتَكْبِرُونَ {49}
और जितनी चीज़ें (चादँ सूरज वग़ैरह) आसमानों में हैं और जितने जानवर ज़मीन में हैं सब ख़ुदा ही के आगे सर सजूद हैं और फरिश्ते तो (है ही) और वह हुक्में ख़ुदा से सरकशी नहीं करते (49) (सजदा)
रुबामा
يَخَافُونَ رَبَّهُم مِّن فَوْقِهِمْ وَيَفْعَلُونَ مَا يُؤْمَرُونَ {50}
और अपने परवरदिगार से जो उनसे (कहीं) बरतर (बड़ा) व आला है डरते हैं और जो हुक्में दिया जाता है फौरन बजा लाते हैं (50)
रुबामा
وَقَالَ اللّهُ لاَ تَتَّخِذُواْ إِلـهَيْنِ اثْنَيْنِ إِنَّمَا هُوَ إِلهٌ وَاحِدٌ فَإيَّايَ فَارْهَبُونِ {51}
और ख़ुदा ने फरमाया था कि दो दो माबूद न बनाओ माबूद तो बस वही यकता ख़ुदा है सिर्फ मुझी से डरते रहो (51)
रुबामा
وَلَهُ مَا فِي الْسَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَلَهُ الدِّينُ وَاصِبًا أَفَغَيْرَ اللّهِ تَتَّقُونَ {52}
और जो कुछ आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन में हैं (ग़रज़) सब कुछ उसी का है और ख़ालिस फरमाबरदारी हमेशा उसी को लाजि़म (जरूरी) है तो क्या तुम लोग ख़ुदा के सिवा (किसी और से भी) डरते हो (52)
रुबामा
وَمَا بِكُم مِّن نِّعْمَةٍ فَمِنَ اللّهِ ثُمَّ إِذَا مَسَّكُمُ الضُّرُّ فَإِلَيْهِ تَجْأَرُونَ {53}
और जितनी नेअमतें तुम्हारे साथ हैं (सब ही की तरफ से हैं) फिर जब तुमको तकलीफ छू भी गई तो तुम उसी के आगे फरियाद करने लगते हो (53)
रुबामा
ثُمَّ إِذَا كَشَفَ الضُّرَّ عَنكُمْ إِذَا فَرِيقٌ مِّنكُم بِرَبِّهِمْ يُشْرِكُونَ {54}
फिर जब वह तुमसे तकलीफ को दूर कर देता है तो बस फौरन तुममें से कुछ लोग अपने परवरदिगार को शरीक ठहराते हैं (54)
रुबामा
لِيَكْفُرُواْ بِمَا آتَيْنَاهُمْ فَتَمَتَّعُواْ فَسَوْفَ تَعْلَمُونَ {55}
ताकि जो (नेअमतें) हमने उनको दी है उनकी नाशुक्री करें तो (ख़ैर दुनिया में चन्द रोज़ चैन कर लो फिर तो अनक़रीब तुमको मालूम हो जाएगा (55)
रुबामा
وَيَجْعَلُونَ لِمَا لاَ يَعْلَمُونَ نَصِيبًا مِّمَّا رَزَقْنَاهُمْ تَاللّهِ لَتُسْأَلُنَّ عَمَّا كُنتُمْ تَفْتَرُونَ {56}
और हमने जो रोज़ी उनको दी है उसमें से ये लोग उन बुतों का हिस्सा भी क़रार देते है जिनकी हक़ीकत नहीं जानते तो ख़ुदा की (अपनी) कि़स्म जो इफ़तेरा परदाजि़याँ तुम करते थे (क़यामत में) उनकी बाज़पुर्स (पूछ गछ) तुम से ज़रुर की जाएगी (56)
रुबामा
وَيَجْعَلُونَ لِلّهِ الْبَنَاتِ سُبْحَانَهُ وَلَهُم مَّا يَشْتَهُونَ {57}
और ये लोग ख़ुदा के लिए बेटियाँ तजवीज़ करते हैं (सुबान अल्लाह) वह उस से पाक व पाकीज़ा है (57)
रुबामा
وَإِذَا بُشِّرَ أَحَدُهُمْ بِالأُنثَى ظَلَّ وَجْهُهُ مُسْوَدًّا وَهُوَ كَظِيمٌ {58}
और अपने लिए (बेटे) जो मरग़ूब (दिल पसन्द) हैं और जब उसमें से किसी एक को लड़की पैदा होने की जो खुशख़बरी दीजिए रंज के मारे मुँह काला हो जाता है (58)
रुबामा
يَتَوَارَى مِنَ الْقَوْمِ مِن سُوءِ مَا بُشِّرَ بِهِ أَيُمْسِكُهُ عَلَى هُونٍ أَمْ يَدُسُّهُ فِي التُّرَابِ أَلاَ سَاء مَا يَحْكُمُونَ {59}
और वह ज़हर का सा घूँट पीकर रह जाता है (बेटी की) जिसकी खुशखबरी दी गई है अपनी क़ौम के लोगों से छिपा फिरता है (और सोचता है) कि क्या इसको जि़ल्लत उठाके जि़न्दा रहने दे या (जि़न्दा ही) इसको ज़मीन में गाड़ दे-देखो तुम लोग किस क़दर बुरा एहकाम (हुक्म) लगाते हैं (59)
रुबामा
لِلَّذِينَ لاَ يُؤْمِنُونَ بِالآخِرَةِ مَثَلُ السَّوْءِ وَلِلّهِ الْمَثَلُ الأَعْلَىَ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ {60}
बुरी (बुरी) बातें तो उन्हीं लोगों के लिए ज़्यादा मुनासिब हैं जो आखि़रत का यक़ीन नहीं रखते और ख़ुदा की शान के लायक़ तो आला सिफते (बहुत बड़ी अच्छाइया) हैं और वही तो ग़ालिब है (60)
रुबामा
وَلَوْ يُؤَاخِذُ اللّهُ النَّاسَ بِظُلْمِهِم مَّا تَرَكَ عَلَيْهَا مِن دَآبَّةٍ وَلَكِن يُؤَخِّرُهُمْ إلَى أَجَلٍ مُّسَمًّى فَإِذَا جَاء أَجَلُهُمْ لاَ يَسْتَأْخِرُونَ سَاعَةً وَلاَ يَسْتَقْدِمُونَ {61}
और अगर (कहीं) ख़ुदा अपने बन्दों की नाफरमानियों की गिरफ़त करता तो रुए ज़मीन पर किसी एक जानदार को बाक़ी न छोड़ता मगर वह तो एक मुक़र्रर वक़्त तक उन सबको मोहलत देता है फिर जब उनका (वह) वक़्त आ पहुँचेगा तो न एक घड़ी पीछे हट सकते हैं और न आगे बढ़ सकते हैं (61)
रुबामा
وَيَجْعَلُونَ لِلّهِ مَا يَكْرَهُونَ وَتَصِفُ أَلْسِنَتُهُمُ الْكَذِبَ أَنَّ لَهُمُ الْحُسْنَى لاَ جَرَمَ أَنَّ لَهُمُ الْنَّارَ وَأَنَّهُم مُّفْرَطُونَ {62}
और ये लोग खुद जिन बातों को पसन्द नहीं करते उनको ख़ुदा के वास्ते क़रार देते हैं और अपनी ही ज़बान से ये झूठे दावे भी करते हैं कि (आखि़रत में भी) उन्हीं के लिए भलाई है (भलाई तो नहीं मगर) हाँ उनके लिए जहन्नुम की आग ज़रुरी है और यही लोग सबसे पहले (उसमें) झोंके जाएँगें (62)
रुबामा
تَاللّهِ لَقَدْ أَرْسَلْنَا إِلَى أُمَمٍ مِّن قَبْلِكَ فَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطَانُ أَعْمَالَهُمْ فَهُوَ وَلِيُّهُمُ الْيَوْمَ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ {63}
(ऐ रसूल) ख़ुदा की (अपनी) कसम तुमसे पहले उम्मतों के पास बहुतेरे पैग़म्बर भेजे तो शैतान ने उनकी कारस्तानियों को उम्दा कर दिखाया तो वही (शैतान) आज भी उन लोगों का सरपरस्त बना हुआ है हालाँकि उनके वास्ते दर्दनाक अज़ाब है (63)
रुबामा
وَمَا أَنزَلْنَا عَلَيْكَ الْكِتَابَ إِلاَّ لِتُبَيِّنَ لَهُمُ الَّذِي اخْتَلَفُواْ فِيهِ وَهُدًى وَرَحْمَةً لِّقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ {64}
और हमने तुम पर किताब (क़ुरान) तो इसी लिए नाजि़ल की ताकि जिन बातों में ये लोग बाहम झगड़ा किए हैं उनको तुम साफ साफ बयान करो (और यह किताब) इमानदारों के लिए तो (अज़सरतापा) हिदायत और रहमत है (64)
रुबामा
وَاللّهُ أَنزَلَ مِنَ الْسَّمَاء مَاء فَأَحْيَا بِهِ الأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا إِنَّ فِي ذَلِكَ لآيَةً لِّقَوْمٍ يَسْمَعُونَ {65}
और ख़ुदा ही ने आसमान से पानी बरसाया तो उसके ज़रिए ज़मीन को मुर्दा होने के बाद जि़न्दा (शादाब) (हरी भरी) किया क्या कुछ शक नहीं कि इसमें जो लोग बसते हैं उनके वास्ते (कु़दरते ख़ुदा की) बहुत बड़ी निशानी है (65)
रुबामा
وَإِنَّ لَكُمْ فِي الأَنْعَامِ لَعِبْرَةً نُّسْقِيكُم مِّمَّا فِي بُطُونِهِ مِن بَيْنِ فَرْثٍ وَدَمٍ لَّبَنًا خَالِصًا سَآئِغًا لِلشَّارِبِينَ {66}
और इसमें शक नहीं कि चैपायों में भी तुम्हारे लिए (इबरत की बात) है कि उनके पेट में ख़ाक, बला, गोबर और ख़ून (जो कुछ भरा है) उसमें से हमे तुमको ख़ालिस दूध पिलाते हैं जो पीने वालों के लिए खुशगवार है (66)
रुबामा
وَمِن ثَمَرَاتِ النَّخِيلِ وَالأَعْنَابِ تَتَّخِذُونَ مِنْهُ سَكَرًا وَرِزْقًا حَسَنًا إِنَّ فِي ذَلِكَ لآيَةً لِّقَوْمٍ يَعْقِلُونَ {67}
और इसी तरह खुरमें और अंगूर के फल से (हम तुमको शीरा पिलाते हैं) जिसकी (कभी तो) तुम शराब बना लिया करते हो और कभी अच्छी रोज़ी (सिरका वगै़रह) इसमें शक नहीं कि इसमें भी समझदार लोगों के लिए (क़ुदरत ख़ुदा की) बड़ी निशानी है (67)
रुबामा
وَأَوْحَى رَبُّكَ إِلَى النَّحْلِ أَنِ اتَّخِذِي مِنَ الْجِبَالِ بُيُوتًا وَمِنَ الشَّجَرِ وَمِمَّا يَعْرِشُونَ {68}
और (ऐ रसूल) तुम्हारे परवरदिगार ने शहद की मक्खियों के दिल में ये बात डाली कि तू पहाड़ों और दरख़्तों और ऊँची ऊँची ट्ट्टियाँ (और मकानात पाट कर) बनाते हैं (68)
रुबामा
ثُمَّ كُلِي مِن كُلِّ الثَّمَرَاتِ فَاسْلُكِي سُبُلَ رَبِّكِ ذُلُلاً يَخْرُجُ مِن بُطُونِهَا شَرَابٌ مُّخْتَلِفٌ أَلْوَانُهُ فِيهِ شِفَاء لِلنَّاسِ إِنَّ فِي ذَلِكَ لآيَةً لِّقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ {69}
उनमें अपने छत्ते बना फिर हर तरह के फलों (के पूर से) (उनका अकऱ्) चूस कर फिर अपने परवरदिगार की राहों में ताबेदारी के साथ चली मक्खियों के पेट से पीने की एक चीज़ निकलती है (शहद) जिसके मुख़्तलिफ रंग होते हैं इसमें लोगों (के बीमारियों) की शिफ़ा (भी) है इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर व फि़क्र करने वालों के वास्ते (क़ुदरते ख़ुदा की बहुत बड़ी निशानी है) (69)
रुबामा
وَاللّهُ خَلَقَكُمْ ثُمَّ يَتَوَفَّاكُمْ وَمِنكُم مَّن يُرَدُّ إِلَى أَرْذَلِ الْعُمُرِ لِكَيْ لاَ يَعْلَمَ بَعْدَ عِلْمٍ شَيْئًا إِنَّ اللّهَ عَلِيمٌ قَدِيرٌ {70}
और ख़ुदा ही ने तुमको पैदा किया फिर वही तुमको (दुनिया से) उठा लेगा और तुममें से बाज़ ऐसे भी हैं जो ज़लील जि़न्दगी (सख़्त बुढ़ापे) की तरफ लौटाए जाते हैं (बहुत कुछ) जानने के बाद (ऐसे सड़ीले हो गए कि) कुछ नहीं जान सके बेशक ख़ुदा (सब कुछ) जानता और (हर तरह की) कुदरत रखता है (70)
रुबामा
وَاللّهُ فَضَّلَ بَعْضَكُمْ عَلَى بَعْضٍ فِي الْرِّزْقِ فَمَا الَّذِينَ فُضِّلُواْ بِرَآدِّي رِزْقِهِمْ عَلَى مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُمْ فَهُمْ فِيهِ سَوَاء أَفَبِنِعْمَةِ اللّهِ يَجْحَدُونَ {71}
और ख़ुदा ही ने तुममें से बाज़ को बाज़ पर रिज़क (दौलत में) तरजीह दी है फिर जिन लोगों को रोज़ी ज़्यादा दी गई है वह लोग अपनी रोज़ी में से उन लोगों को जिन पर उनका दस्तरस (इख़्तेयार) है (लौन्डी ग़ुलाम वग़ैरह) देने वाला नहीं (हालाँकि इस माल में तो सब के सब मालिक गुलाम वग़ैरह) बराबर हैं तो क्या ये लोग ख़ुदा की नेअमत के मुन्किर हैं (71)
रुबामा
وَاللّهُ جَعَلَ لَكُم مِّنْ أَنفُسِكُمْ أَزْوَاجًا وَجَعَلَ لَكُم مِّنْ أَزْوَاجِكُم بَنِينَ وَحَفَدَةً وَرَزَقَكُم مِّنَ الطَّيِّبَاتِ أَفَبِالْبَاطِلِ يُؤْمِنُونَ وَبِنِعْمَتِ اللّهِ هُمْ يَكْفُرُونَ {72}
और ख़ुदा ही ने तुम्हारे लिए बीबियाँ तुम ही में से बनाई और उसी ने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी बीवियों से बेटे और पोते पैदा किए और तुम्हें पाक व पाकीज़ा रोज़ी खाने को दी तो क्या ये लोग बिल्कुल बातिल (सुल्तान बुत वग़ैरह) पर इमान रखते हैं और ख़ुदा की नेअमत (वहदानियत वग़ैरह से) इन्कार करते हैं (72)
रुबामा
وَيَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللّهِ مَا لاَ يَمْلِكُ لَهُمْ رِزْقًا مِّنَ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ شَيْئًا وَلاَ يَسْتَطِيعُونَ {73}
और ख़ुदा को छोड़कर ऐसी चीज़ की परसतिश करते हैं जो आसमानों और ज़मीन में से उनको रिज़क़ देने का कुछ भी न एख़्तियार रखते हैं और न कुदरत हासिल कर सकते हैं (73)
रुबामा
فَلاَ تَضْرِبُواْ لِلّهِ الأَمْثَالَ إِنَّ اللّهَ يَعْلَمُ وَأَنتُمْ لاَ تَعْلَمُونَ {74}
तो तुम (दुनिया के लोगों पर कयास करके ख़ुद) मिसालें न गढ़ो बेशक ख़ुदा (सब कुछ) जानता है और तुम नहीं जानते (74)
रुबामा
ضَرَبَ اللّهُ مَثَلاً عَبْدًا مَّمْلُوكًا لاَّ يَقْدِرُ عَلَى شَيْءٍ وَمَن رَّزَقْنَاهُ مِنَّا رِزْقًا حَسَنًا فَهُوَ يُنفِقُ مِنْهُ سِرًّا وَجَهْرًا هَلْ يَسْتَوُونَ الْحَمْدُ لِلّهِ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لاَ يَعْلَمُونَ {75}
एक मसल ख़ुदा ने बयान फरमाई कि एक ग़ुलाम है जो दूसरे के कब्जे़ में है (और) कुछ भी एख़्तियार नहीं रखता और एक शख़्स वह है कि हमने उसे अपनी बारगाह से अच्छी (खासी) रोज़ी दे रखी है तो वह उसमें से छिपा के दिखा के (ग़रज़ हर तरह ख़ुदा की राह में) ख़र्च करता है क्या ये दोनो बराबर हो सकते हैं (हरगिज़ नहीं) अल्हमदोलिल्लाह (कि वह भी उसके मुक़र्रर हैं) मगर उनके बहुतेरे (इतना भी) नहीं जानते (75)
रुबामा
وَضَرَبَ اللّهُ مَثَلاً رَّجُلَيْنِ أَحَدُهُمَا أَبْكَمُ لاَ يَقْدِرُ عَلَىَ شَيْءٍ وَهُوَ كَلٌّ عَلَى مَوْلاهُ أَيْنَمَا يُوَجِّههُّ لاَ يَأْتِ بِخَيْرٍ هَلْ يَسْتَوِي هُوَ وَمَن يَأْمُرُ بِالْعَدْلِ وَهُوَ عَلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ {76}
और ख़ुदा एक दूसरी मसल बयान फरमाता है दो आदमी हैं कि एक उनमें से बिल्कुल गूँगा उस पर गुलाम जो कुछ भी (बात वग़ैरह की) कुदरत नहीं रखता और (इस वजह से) वह अपने मालिक को दूभर हो रहा है कि उसको जिधर भेजता है (ख़ैर से) कभी भलाई नहीं लाता क्या ऐसा ग़ुलाम और वह शख़्स जो (लोगों को) अदल व मियाना रवी का हुक्म करता है वह खुद भी ठीक सीधी राह पर क़ायम है (दोनों बराबर हो सकते हैं (हरगिज़ नहीं) (76)
रुबामा
وَلِلّهِ غَيْبُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَمَا أَمْرُ السَّاعَةِ إِلاَّ كَلَمْحِ الْبَصَرِ أَوْ هُوَ أَقْرَبُ إِنَّ اللّهَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ {77}
और सारे आसमान व ज़मीन की ग़ैब की बातें ख़ुदा ही के लिए मख़सूस हैं और ख़ुदा क़यामत का वाकेए होना तो ऐसा है जैसे पलक का झपकना बल्कि इससे भी जल्दी बेशक ख़ुदा हर चीज़ पर क़ुदरत कामेला रखता है (77)
रुबामा
وَاللّهُ أَخْرَجَكُم مِّن بُطُونِ أُمَّهَاتِكُمْ لاَ تَعْلَمُونَ شَيْئًا وَجَعَلَ لَكُمُ الْسَّمْعَ وَالأَبْصَارَ وَالأَفْئِدَةَ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ {78}
और ख़ुदा ही ने तुम्हें तुम्हारी माओं के पेट से निकाला (जब) तुम बिल्कुल नासमझ थे और तुम को कान दिए और आँखें (अता की) दिल (इनायत किए) ताकि तुम शुक्र करो (78)
रुबामा
أَلَمْ يَرَوْاْ إِلَى الطَّيْرِ مُسَخَّرَاتٍ فِي جَوِّ السَّمَاء مَا يُمْسِكُهُنَّ إِلاَّ اللّهُ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ {79}
क्या उन लोगों ने परिन्दों की तरफ ग़ौर नहीं किया जो आसमान के नीचे हवा में घिरे हुए (उड़ते रहते हैं) उनको तो बस ख़ुदा ही (गिरने से ) रोकता है बेशक इसमें भी (कुदरते ख़ुदा की) इमानदारों के लिए बहुत सी निशानियाँ हैं (79)
रुबामा
وَاللّهُ جَعَلَ لَكُم مِّن بُيُوتِكُمْ سَكَنًا وَجَعَلَ لَكُم مِّن جُلُودِ الأَنْعَامِ بُيُوتًا تَسْتَخِفُّونَهَا يَوْمَ ظَعْنِكُمْ وَيَوْمَ إِقَامَتِكُمْ وَمِنْ أَصْوَافِهَا وَأَوْبَارِهَا وَأَشْعَارِهَا أَثَاثًا وَمَتَاعًا إِلَى حِينٍ {80}
और ख़ुदा ही ने तुम्हारे घरों को तुम्हारा ठिकाना क़रार दिया और उसी ने तुम्हारे वास्ते चैपायों की खालों से तुम्हारे लिए (हलके फुलके) डेरे (ख़ेमे) बना जिन्हें तुम हलका पाकर अपने सफर और हजर (ठहरने) में काम लाते हो और इन चारपायों की ऊन और रुई और बालो से एक वक़्त ख़ास (क़यामत तक) के लिए तुम्हारे बहुत से असबाब और अबकार आमद (काम की) चीज़े बनाई (80)
रुबामा
وَاللّهُ جَعَلَ لَكُم مِّمَّا خَلَقَ ظِلاَلاً وَجَعَلَ لَكُم مِّنَ الْجِبَالِ أَكْنَانًا وَجَعَلَ لَكُمْ سَرَابِيلَ تَقِيكُمُ الْحَرَّ وَسَرَابِيلَ تَقِيكُم بَأْسَكُمْ كَذَلِكَ يُتِمُّ نِعْمَتَهُ عَلَيْكُمْ لَعَلَّكُمْ تُسْلِمُونَ {81}
और ख़ुदा ही ने तुम्हारे आराम के लिए अपनी पैदा की हुई चीज़ों के साए बनाए और उसी ने तुम्हारे (छिपने बैठने) के वास्ते पहाड़ों में घरौन्दे (ग़ार वग़ैरह) बनाए और उसी ने तुम्हारे लिए कपड़े बनाए जो तुम्हें (सर्दी) गर्मी से महफूज़ रखें और (लोहे) के कुर्ते जो तुम्हें हाथियों की ज़द (मार) से बचा लें यूँ ख़ुदा अपनी नेअमत तुम पर पूरी करता है (81)
रुबामा
فَإِن تَوَلَّوْاْ فَإِنَّمَا عَلَيْكَ الْبَلاَغُ الْمُبِينُ {82}
तुम उसकी फरमाबरदारी करो उस पर भी अगर ये लोग (इमान से) मुँह फेरे तो तुम्हारा फर्ज़ सिर्फ (एहकाम का) साफ पहुँचा देना है (82)
रुबामा
يَعْرِفُونَ نِعْمَتَ اللّهِ ثُمَّ يُنكِرُونَهَا وَأَكْثَرُهُمُ الْكَافِرُونَ {83}
(बस) ये लोग ख़ुदा की नेअमतों को पहचानते हैं फिर (जानबुझ कर) उनसे मुकर जाते हैं और इन्हीं में से बहुतेरे नाशुक्रे हैं (83)
रुबामा
وَيَوْمَ نَبْعَثُ مِن كُلِّ أُمَّةٍ شَهِيدًا ثُمَّ لاَ يُؤْذَنُ لِلَّذِينَ كَفَرُواْ وَلاَ هُمْ يُسْتَعْتَبُونَ {84}
और जिस दिन हम एक उम्मत में से (उसके पैग़म्बरों को) गवाह बनाकर क़ब्रों से उठा खड़ा करेगे फिर तो काफिरों को न (बात करने की) इजाज़त दी जाएगी और न उनका उज्र (जवाब) ही सुना जाएगा (84)
रुबामा
وَإِذَا رَأى الَّذِينَ ظَلَمُواْ الْعَذَابَ فَلاَ يُخَفَّفُ عَنْهُمْ وَلاَ هُمْ يُنظَرُونَ {85}
और जिन लोगों ने (दुनिया में) शरारतें की थी जब वह अज़ाब को देख लेगें तो उनके अज़ाब ही में तख़फ़ीफ़ की जाएगी और न उनको मोहलत ही दी जाएगी (85)
रुबामा
وَإِذَا رَأى الَّذِينَ أَشْرَكُواْ شُرَكَاءهُمْ قَالُواْ رَبَّنَا هَـؤُلاء شُرَكَآؤُنَا الَّذِينَ كُنَّا نَدْعُوْ مِن دُونِكَ فَألْقَوْا إِلَيْهِمُ الْقَوْلَ إِنَّكُمْ لَكَاذِبُونَ {86}
और जिन लोगों ने दुनिया में ख़ुदा का शरीक (दूसरे को) ठहराया था जब अपने (उन) शरीकों को (क़यामत में) देखेंगे तो बोल उठेगें कि ऐ हमारे परवरदिगार यही तो हमारे शरीक हैं जिन्हें हम (मुसीबत) के वक़्त तुझे छोड़ कर पुकारा करते थे तो वह शरीक उन्हीं की तरफ बात को फेंक मारेगें कि तुम निरे झूठे हो (86)
रुबामा
وَأَلْقَوْاْ إِلَى اللّهِ يَوْمَئِذٍ السَّلَمَ وَضَلَّ عَنْهُم مَّا كَانُواْ يَفْتَرُونَ {87}
और उस दिन ख़ुदा के सामने सर झुका देंगे और जो इफ़तेरा परदाजि़याँ दुनिया में किया करते थे उनसे गायब हो जाएँगें (87)
रुबामा
الَّذِينَ كَفَرُواْ وَصَدُّواْ عَن سَبِيلِ اللّهِ زِدْنَاهُمْ عَذَابًا فَوْقَ الْعَذَابِ بِمَا كَانُواْ يُفْسِدُونَ {88}
जिन लोगों ने कुफ्र एख़्तेयार किया और लोगों को ख़ुदा की राह से रोका उनके फ़साद वाले कामों के बदले में उनके लिए हम अज़ाब पर अज़ाब बढ़ाते जाएँगें (88)
रुबामा
وَيَوْمَ نَبْعَثُ فِي كُلِّ أُمَّةٍ شَهِيدًا عَلَيْهِم مِّنْ أَنفُسِهِمْ وَجِئْنَا بِكَ شَهِيدًا عَلَى هَـؤُلاء وَنَزَّلْنَا عَلَيْكَ الْكِتَابَ تِبْيَانًا لِّكُلِّ شَيْءٍ وَهُدًى وَرَحْمَةً وَبُشْرَى لِلْمُسْلِمِينَ {89}
और वह दिन याद करो जिस दिन हम हर एक गिरोह में से उन्हीं में का एक गवाह उनके मुक़ाबिल ला खड़ा करेगें और (ऐ रसूल) तुम को उन लोगों पर (उनके) सामने गवाह बनाकर ला खड़ा करेंगें और हमने तुम पर किताब (क़ुरान) नाजि़ल की जिसमें हर चीज़ का (शाफी) बयान है और मुसलमानों के लिए (सरमापा) हिदायत और रहमत और खुशख़बरी है (89)
रुबामा
إِنَّ اللّهَ يَأْمُرُ بِالْعَدْلِ وَالإِحْسَانِ وَإِيتَاء ذِي الْقُرْبَى وَيَنْهَى عَنِ الْفَحْشَاء وَالْمُنكَرِ وَالْبَغْيِ يَعِظُكُمْ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ {90}
इसमें शक नहीं कि ख़ुदा इन्साफ और (लोगों के साथ) नेकी करने और क़राबतदारों को (कुछ) देने का हुक्म करता है और बदकारी और नाशएस्ता हरकतों और सरकशी करने को मना करता है (और) तुम्हें नसीहत करता है ताकि तुम नसीहत हासिल करो (90)
रुबामा
وَأَوْفُواْ بِعَهْدِ اللّهِ إِذَا عَاهَدتُّمْ وَلاَ تَنقُضُواْ الأَيْمَانَ بَعْدَ تَوْكِيدِهَا وَقَدْ جَعَلْتُمُ اللّهَ عَلَيْكُمْ كَفِيلاً إِنَّ اللّهَ يَعْلَمُ مَا تَفْعَلُونَ {91}
और जब तुम लोग बाहम क़ौल व क़रार कर लिया करो तो ख़ुदा के एहदो पैमान को पूरा करो और क़समों को उनके पक्का हो जाने के बाद न तोड़ा करो हालाँकि तुम तो ख़ुदा को अपना ज़ामिन बना चुके हो जो कुछ भी तुम करते हो ख़ुदा उसे ज़रुर जानता है (91)
रुबामा
وَلاَ تَكُونُواْ كَالَّتِي نَقَضَتْ غَزْلَهَا مِن بَعْدِ قُوَّةٍ أَنكَاثًا تَتَّخِذُونَ أَيْمَانَكُمْ دَخَلاً بَيْنَكُمْ أَن تَكُونَ أُمَّةٌ هِيَ أَرْبَى مِنْ أُمَّةٍ إِنَّمَا يَبْلُوكُمُ اللّهُ بِهِ وَلَيُبَيِّنَنَّ لَكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ مَا كُنتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ {92}
और तुम लोग (क़समों के तोड़ने में) उस औरत के ऐसे न हो जो अपना सूत मज़बूत कातने के बाद टुकड़े टुकड़े करके तोड़ डाले कि अपने एहदो को आपस में उस बात की मक्कारी का ज़रिया बनाने लगो कि एक गिरोह दूसरे गिरोह से (ख़्वामख़वाह) बढ़ जाए इससे बस ख़ुदा तुमको आज़माता है (कि तुम किसी की पालाइश करते हो) और जिन बातों में तुम दुनिया में झगड़ते थे क़यामत के दिन ख़ुदा खुद तुम से साफ साफ बयान कर देगा (92)
रुबामा
وَلَوْ شَاء اللّهُ لَجَعَلَكُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً وَلكِن يُضِلُّ مَن يَشَاء وَيَهْدِي مَن يَشَاء وَلَتُسْأَلُنَّ عَمَّا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ {93}
और अगर ख़ुदा चाहता तो तुम सबको एक ही (किस्म के) गिरोह बना देता मगर वह तो जिसको चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसकी चाहता है हिदायत करता है और जो कुछ तुम लोग दुनिया में किया करते थे उसकी बाज़ पुर्स (पुछ गछ) तुमसे ज़रुर की जाएगी (93)
रुबामा
وَلاَ تَتَّخِذُواْ أَيْمَانَكُمْ دَخَلاً بَيْنَكُمْ فَتَزِلَّ قَدَمٌ بَعْدَ ثُبُوتِهَا وَتَذُوقُواْ الْسُّوءَ بِمَا صَدَدتُّمْ عَن سَبِيلِ اللّهِ وَلَكُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ {94}
और तुम अपनी क़समों को आपस में के फसाद का सबब न बनाओ ताकि (लोगों के) क़दम जमने के बाद (इस्लाम से) उखड़ जाएँ और फिर आखि़रकार क़यामत में तुम्हें लोगों को ख़ुदा की राह से रोकने की पादाश (रोकने के बदले) में अज़ाब का मज़ा चखना पड़े और तुम्हारे वास्ते बड़ा सख़्त अज़ाब हो (94)
रुबामा
وَلاَ تَشْتَرُواْ بِعَهْدِ اللّهِ ثَمَنًا قَلِيلاً إِنَّمَا عِندَ اللّهِ هُوَ خَيْرٌ لَّكُمْ إِن كُنتُمْ تَعْلَمُونَ {95}
और ख़ुदा के एहदो पैमान के बदले थोड़ी क़ीमत (दुनयावी नफा) न तो अगर तुम जानते (बूझते) हो तो (समझ लो कि) जो कुछ ख़ुदा के पास है वह उससे कहीं बेहतर है (95)
रुबामा
مَا عِندَكُمْ يَنفَدُ وَمَا عِندَ اللّهِ بَاقٍ وَلَنَجْزِيَنَّ الَّذِينَ صَبَرُواْ أَجْرَهُم بِأَحْسَنِ مَا كَانُواْ يَعْمَلُونَ {96}
(क्योंकि माल दुनिया से) जो कुछ तुम्हारे पास है एक न एक दिन ख़त्म हो जाएगा और (अज्र) ख़ुदा के पास है वह हमेशा बाक़ी रहेगा (96) और जिन लोगों ने दुनिया में सब्र किया था उनको (क़यामत में) उनके कामों का हम अच्छे से अच्छा अज्र व सवाब अता करेंगें (96)
रुबामा
مَنْ عَمِلَ صَالِحًا مِّن ذَكَرٍ أَوْ أُنثَى وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَلَنُحْيِيَنَّهُ حَيَاةً طَيِّبَةً وَلَنَجْزِيَنَّهُمْ أَجْرَهُم بِأَحْسَنِ مَا كَانُواْ يَعْمَلُونَ {97}
मर्द हो या औरत जो शख़्स नेक काम करेगा और वह इमानदार भी हो तो हम उसे (दुनिया में भी) पाक व पाकीज़ा जिन्दगी बसर कराएँगें और (आखि़रत में भी) जो कुछ वह करते थे उसका अच्छे से अच्छा अज्र व सवाब अता फरमाएँगें (97)
रुबामा
فَإِذَا قَرَأْتَ الْقُرْآنَ فَاسْتَعِذْ بِاللّهِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ {98}
और जब तुम क़ुरान पढ़ने लगो तो शैतान मरदूद (के वसवसो) से ख़ुदा की पनाह तलब कर लिया करो (98)
रुबामा
إِنَّهُ لَيْسَ لَهُ سُلْطَانٌ عَلَى الَّذِينَ آمَنُواْ وَعَلَى رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ {99}
इसमें शक नहीं कि जो लोग इमानदार हैं और अपने परवरदिगार पर भरोसा रखते हैं उन पर उसका क़ाबू नहीं चलता (99)
रुबामा
إِنَّمَا سُلْطَانُهُ عَلَى الَّذِينَ يَتَوَلَّوْنَهُ وَالَّذِينَ هُم بِهِ مُشْرِكُونَ {100}
उसका क़ाबू चलता है तो बस उन्हीं लोगों पर जो उसको दोस्त बनाते हैं और जो लोग उसको ख़ुदा का शरीक बनाते हैं (100)
रुबामा
وَإِذَا بَدَّلْنَا آيَةً مَّكَانَ آيَةٍ وَاللّهُ أَعْلَمُ بِمَا يُنَزِّلُ قَالُواْ إِنَّمَا أَنتَ مُفْتَرٍ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لاَ يَعْلَمُونَ {101}
और (ऐ रसूल) हम जब एक आयत के बदले दूसरी आयत नाजि़ल करते हैं तो हालाँकि ख़ुदा जो चीज़ नाजि़ल करता है उस (की मसलहतों) से खूब वाकि़फ है मगर ये लोग (तुम को) कहने लगते हैं कि तुम बस बिल्कुल मुज़तरी (ग़लत बयान करने वाले) हो बल्कि खुद उनमें के बहुतेरे (मसालेह को) नहीं जानते (101)
रुबामा
قُلْ نَزَّلَهُ رُوحُ الْقُدُسِ مِن رَّبِّكَ بِالْحَقِّ لِيُثَبِّتَ الَّذِينَ آمَنُواْ وَهُدًى وَبُشْرَى لِلْمُسْلِمِينَ {102}
(ऐ रसूल) तुम (साफ) कह दो कि इस (क़ुरान) को तो रुहलकुदूस (जिबरील) ने तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से हक़ नाजि़ल किया है ताकि जो लोग इमान ला चुके हैं उनको साबित क़दम रखे और मुसलमानों के लिए (अज़सरतापा) खुशखबरी है (102)
रुबामा
وَلَقَدْ نَعْلَمُ أَنَّهُمْ يَقُولُونَ إِنَّمَا يُعَلِّمُهُ بَشَرٌ لِّسَانُ الَّذِي يُلْحِدُونَ إِلَيْهِ أَعْجَمِيٌّ وَهَـذَا لِسَانٌ عَرَبِيٌّ مُّبِينٌ {103}
और (ऐ रसूल) हम तहक़ीक़तन जानते हैं कि ये कुफ्फार तुम्हारी निस्बत कहा करते है कि उनको (तुम को) कोई आदमी क़ुरान सिखा दिया करता है हालॅाकि बिल्कुल ग़लत है क्योंकि जिस शख़्स की तरफ से ये लोग निस्बत देते हैं उसकी ज़बान तो अजमी है और ये तो साफ साफ अरबी ज़बान है (103)
रुबामा
إِنَّ الَّذِينَ لاَ يُؤْمِنُونَ بِآيَاتِ اللّهِ لاَ يَهْدِيهِمُ اللّهُ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ {104}
इसमें तो शक ही नहीं कि जो लोग ख़ुदा की आयतों पर इमान नहीं लाते ख़ुदा भी उनको मंजि़ले मक़सूद तक नहीं पहुँचाएगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है (104)
रुबामा
إِنَّمَا يَفْتَرِي الْكَذِبَ الَّذِينَ لاَ يُؤْمِنُونَ بِآيَاتِ اللّهِ وَأُوْلـئِكَ هُمُ الْكَاذِبُونَ {105}
झूठ बोहतान तो बस वही लोग बांधा करते हैं जो खुदा की आयतों पर इमान नहीं रखतें (105)
रुबामा
مَن كَفَرَ بِاللّهِ مِن بَعْدِ إيمَانِهِ إِلاَّ مَنْ أُكْرِهَ وَقَلْبُهُ مُطْمَئِنٌّ بِالإِيمَانِ وَلَـكِن مَّن شَرَحَ بِالْكُفْرِ صَدْرًا فَعَلَيْهِمْ غَضَبٌ مِّنَ اللّهِ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ {106}
और हक़ीक़त अम्र ये है कि यही लोग झूठे हैं उस शख़्स के सिवा जो (कलमाए कुफ्र) पर मजबूर किया जाए और उसका दिल इमान की तरफ से मुतमइन हो जो शख़्स भी इमान लाने के बाद कुफ्र एख़्तियार करे बल्कि खूब सीना कुशादा (जी खोलकर) कुफ्र करे तो उन पर ख़ुदा का ग़ज़ब है और उनके लिए बड़ा (सख़्त) अज़ाब है (106)
रुबामा
ذَلِكَ بِأَنَّهُمُ اسْتَحَبُّواْ الْحَيَاةَ الْدُّنْيَا عَلَى الآخِرَةِ وَأَنَّ اللّهَ لاَ يَهْدِي الْقَوْمَ الْكَافِرِينَ {107}
ये इस वजह से कि उन लोगों ने दुनिया की चन्द रोज़ा जि़न्दगी को आखि़रत पर तरजीह दी और इस वजह से की ख़ुदा काफिरों को हरगिज़ मंजि़ले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता (107)
रुबामा
أُولَـئِكَ الَّذِينَ طَبَعَ اللّهُ عَلَى قُلُوبِهِمْ وَسَمْعِهِمْ وَأَبْصَارِهِمْ وَأُولَـئِكَ هُمُ الْغَافِلُونَ {108}
ये वही लोग हैं जिनके दिलों पर और उनके कानों पर और उनकी आँखों पर खु़दा ने अलामात मुक़र्रर कर दी है (108)
रुबामा
لاَ جَرَمَ أَنَّهُمْ فِي الآخِرَةِ هُمُ الْخَاسِرونَ {109}
(कि इमान न लाएँगे) और यही लोग (इस सिरे के) बेखबर हैं कुछ शक नहीं कि यही लोग आखि़रत में भी यक़ीनन घाटा उठाने वाले हैं (109)
रुबामा
ثُمَّ إِنَّ رَبَّكَ لِلَّذِينَ هَاجَرُواْ مِن بَعْدِ مَا فُتِنُواْ ثُمَّ جَاهَدُواْ وَصَبَرُواْ إِنَّ رَبَّكَ مِن بَعْدِهَا لَغَفُورٌ رَّحِيمٌ {110}
फिर इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार उन लोगों को जिन्होने मुसीबत में मुब्तिला होने क बाद घर बार छोडे़ फिर (ख़ुदा की राह में) जिहाद किए और तकलीफों पर सब्र किया इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार इन सब बातों के बाद अलबत्ता बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (110)
रुबामा
يَوْمَ تَأْتِي كُلُّ نَفْسٍ تُجَادِلُ عَن نَّفْسِهَا وَتُوَفَّى كُلُّ نَفْسٍ مَّا عَمِلَتْ وَهُمْ لاَ يُظْلَمُونَ {111}
और (उस दिन को याद) करो जिस दिन हर शख़्स अपनी ज़ात के बारे में झगड़ने को आ मौजूद होगा (111)
रुबामा
وَضَرَبَ اللّهُ مَثَلاً قَرْيَةً كَانَتْ آمِنَةً مُّطْمَئِنَّةً يَأْتِيهَا رِزْقُهَا رَغَدًا مِّن كُلِّ مَكَانٍ فَكَفَرَتْ بِأَنْعُمِ اللّهِ فَأَذَاقَهَا اللّهُ لِبَاسَ الْجُوعِ وَالْخَوْفِ بِمَا كَانُواْ يَصْنَعُونَ {112}
और हर शख़्स को जो कुछ भी उसने किया था उसका पूरा पूरा बदला मिलेगा और उन पर किसी तरह का जु़ल्म न किया जाएगा ख़ुदा ने एक गाँव की मसल बयान फरमाई जिसके रहने वाले हर तरह के चैन व इत्मेनान में थे हर तरफ से बाफराग़त (बहुत ज़्यादा) उनकी रोज़ी उनके पास आई थी फिर उन लोगों ने ख़ुदा की नूअमतों की नाशुक्री की तो ख़ुदा ने उनकी करतूतों की बदौलत उनको मज़ा चखा दिया (112)
रुबामा
وَلَقَدْ جَاءهُمْ رَسُولٌ مِّنْهُمْ فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَهُمُ الْعَذَابُ وَهُمْ ظَالِمُونَ {113}
कि भूक और ख़ौफ को ओढ़ना (बिछौना) बना दिया और उन्हीं लोगों में का एक रसूल भी उनके पास आया तो उन्होंने उसे झुठलाया (113)
रुबामा
فَكُلُواْ مِمَّا رَزَقَكُمُ اللّهُ حَلالاً طَيِّبًا وَاشْكُرُواْ نِعْمَتَ اللّهِ إِن كُنتُمْ إِيَّاهُ تَعْبُدُونَ {114}
फिर अज़ाब (ख़ुदा) ने उन्हें ले डाला और वह ज़ालिम थे ही तो ख़ुदा ने जो कुछ तुम्हें हलाल तय्यब (ताहिर) रोज़ी दी है उसको (शक़ से) खाओ और अगर तुम खुदा ही की परसतिश (का दावा करते हो) (114)
रुबामा
إِنَّمَا حَرَّمَ عَلَيْكُمُ الْمَيْتَةَ وَالْدَّمَ وَلَحْمَ الْخَنزِيرِ وَمَا أُهِلَّ لِغَيْرِ اللّهِ بِهِ فَمَنِ اضْطُرَّ غَيْرَ بَاغٍ وَلاَ عَادٍ فَإِنَّ اللّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ {115}
उसकी नेअमत का शुक्र अदा किया करो तुम पर उसने मुरदार और खून और सूअर का गोश्त और वह जानवर जिस पर (ज़बाह के वक़्त) ख़ुदा के सिवा (किसी) और का नाम लिया जाए हराम किया है फिर जो शख़्स (मारे भूक के) मजबूर हो ख़ुदा से सरतापी (नाफरमानी) करने वाला हो और न (हद ज़रुरत से) बढ़ने वाला हो और (हराम खाए) तो बेशक ख़ुदा बख़्शने वाला मेहरबान है (115)
रुबामा
وَلاَ تَقُولُواْ لِمَا تَصِفُ أَلْسِنَتُكُمُ الْكَذِبَ هَـذَا حَلاَلٌ وَهَـذَا حَرَامٌ لِّتَفْتَرُواْ عَلَى اللّهِ الْكَذِبَ إِنَّ الَّذِينَ يَفْتَرُونَ عَلَى اللّهِ الْكَذِبَ لاَ يُفْلِحُونَ {116}
और झूट मूट जो कुछ तुम्हारी ज़बान पर आए (बे समझे बूझे) न कह बैठा करों कि ये हलाल है और हराम है ताकि इसकी बदौलत ख़ुदा पर झूठ बोहतान बाँधने लगो इसमें शक नहीं कि जो लोग ख़ुदा पर झूठ बोहतान बाधते हैं वह कभी कामयाब न होगें (116)
रुबामा
مَتَاعٌ قَلِيلٌ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ {117}
(दुनिया में) फायदा तो ज़रा सा है और (आखि़रत में) दर्दनाक अज़ाब है (117)
रुबामा
وَعَلَى الَّذِينَ هَادُواْ حَرَّمْنَا مَا قَصَصْنَا عَلَيْكَ مِن قَبْلُ وَمَا ظَلَمْنَاهُمْ وَلَـكِن كَانُواْ أَنفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ {118}
और यहूदियों पर हमने वह चीज़े हराम कर दीं थी जो तुमसे पहले बयान कर चुके हैं और हमने तो (इस की वजह से) उन पर कुछ ज़ुल्म नहीं किया (118)
रुबामा
ثُمَّ إِنَّ رَبَّكَ لِلَّذِينَ عَمِلُواْ السُّوءَ بِجَهَالَةٍ ثُمَّ تَابُواْ مِن بَعْدِ ذَلِكَ وَأَصْلَحُواْ إِنَّ رَبَّكَ مِن بَعْدِهَا لَغَفُورٌ رَّحِيمٌ {119}
मगर वह लोग खुद अपने ऊपर सितम तोड़ रहे हैं फिर इसमे शक नहीं कि जो लोग नादानी से गुनाह कर बैठे उसके बाद सदक़ दिल से तौबा कर ली और अपने को दुरुस्त कर लिया तो (ऐ रसूल) इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार इसके बाद बख़्शने वाला मेहरबान है (119)
रुबामा
إِنَّ إِبْرَاهِيمَ كَانَ أُمَّةً قَانِتًا لِلّهِ حَنِيفًا وَلَمْ يَكُ مِنَ الْمُشْرِكِينَ {120}
इसमें शक नहीं कि इबराहीम (लोगों के) पेशवा ख़ुदा के फरमाबरदार बन्दे और बातिल से कतरा कर चलने वाले थे और मुशरेकीन से हरगिज़ न थे (120)
रुबामा
شَاكِرًا لِّأَنْعُمِهِ اجْتَبَاهُ وَهَدَاهُ إِلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ {121}
उसकी नेअमतों के शुक्र गुज़ार उनको ख़ुदा ने मुनतखि़ब कर लिया है और (अपनी) सीधी राह की उन्हें हिदायत की थी (121)
रुबामा
وَآتَيْنَاهُ فِي الْدُّنْيَا حَسَنَةً وَإِنَّهُ فِي الآخِرَةِ لَمِنَ الصَّالِحِينَ {122}
और हमने उन्हें दुनिया में भी (हर तरह की) बेहतरी अता की थी (122)
रुबामा
ثُمَّ أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ أَنِ اتَّبِعْ مِلَّةَ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِينَ {123}
और वह आखि़रत में भी यक़ीनन नेको कारों से होगें ऐ रसूल फिर तुम्हारे पास वही भेजी कि इबराहीम के तरीक़े की पैरवी करो जो बातिल से कतरा के चलते थे और मुशरे कीन से नहीं थे (123)
रुबामा
إِنَّمَا جُعِلَ السَّبْتُ عَلَى الَّذِينَ اخْتَلَفُواْ فِيهِ وَإِنَّ رَبَّكَ لَيَحْكُمُ بَيْنَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فِيمَا كَانُواْ فِيهِ يَخْتَلِفُونَ {124}
(ऐ रसूल) हफ्ते (के दिन) की ताज़ीम तो बस उन्हीं लोगों पर लाजि़म की गई थी (यहूद व नसारा इसके बारे में) एख़्तिलाफ करते थे और कुछ शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार उनके दरम्यिान जिस अग्र में वह झगड़ा करते थे क़यामत के दिन फैसला कर देगा (124)
रुबामा
ادْعُ إِلِى سَبِيلِ رَبِّكَ بِالْحِكْمَةِ وَالْمَوْعِظَةِ الْحَسَنَةِ وَجَادِلْهُم بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعْلَمُ بِمَن ضَلَّ عَن سَبِيلِهِ وَهُوَ أَعْلَمُ بِالْمُهْتَدِينَ {125}
(ऐ रसूल) तुम (लोगों को) अपने परवरदिगार की राह पर हिकमत और अच्छी अच्छी नसीहत के ज़रिए से बुलाओ और बहस व मुबाश करो भी तो इस तरीक़े से जो लोगों के नज़दीक सबसे अच्छा हो इसमें शक नहीं कि जो लोग ख़ुदा की राह से भटक गए उनको तुम्हारा परवरदिगार खूब जानता है (125)
रुबामा
وَإِنْ عَاقَبْتُمْ فَعَاقِبُواْ بِمِثْلِ مَا عُوقِبْتُم بِهِ وَلَئِن صَبَرْتُمْ لَهُوَ خَيْرٌ لِّلصَّابِرينَ {126}
और हिदायत याफ़ता लोगों से भी खूब वाकि़फ है और अगर (मुख़ालिफीन के साथ) सख़्ती करो भी तो वैसी ही सख़्ती करो जैसे सख़्ती उन लोगों ने तुम पर की थी और अगर तुम सब्र करो तो सब्र करने वालों के वास्ते बेहतर हैं (126)
रुबामा
وَاصْبِرْ وَمَا صَبْرُكَ إِلاَّ بِاللّهِ وَلاَ تَحْزَنْ عَلَيْهِمْ وَلاَ تَكُ فِي ضَيْقٍ مِّمَّا يَمْكُرُونَ {127}
और (ऐ रसूल) तुम सब्र ही करो (और ख़ुदा की (मदद) बग़ैर तो तुम सब्र कर भी नहीं सकते और उन मुख़ालिफीन के हाल पर तुम रंज न करो और जो मक्कारीयाँ ये लोग करते हैं उससे तुम तंग दिल न हो (127)
रुबामा
إِنَّ اللّهَ مَعَ الَّذِينَ اتَّقَواْ وَّالَّذِينَ هُم مُّحْسِنُونَ {128}
जो लोग परहेज़गार हैं और जो लोग नेको कार हैं ख़ुदा उनका साथी है (128)