Quran पारा 17

इकतराबा लिन्नास

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

खु़दा के नाम से शुरू करता हूँ जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है।

इकतराबा लिन्नास

اقْتَرَبَ لِلنَّاسِ حِسَابُهُمْ وَهُمْ فِي غَفْلَةٍ مَّعْرِضُونَ {1}

लोगों के पास उनका हिसाब (उसका वक़्त) आ पहुँचा और वो हैं कि गफ़लत में पड़े मुँह मोड़े ही जाते हैं (1)

इकतराबा लिन्नास

مَا يَأْتِيهِم مِّن ذِكْرٍ مَّن رَّبِّهِم مُّحْدَثٍ إِلَّا اسْتَمَعُوهُ وَهُمْ يَلْعَبُونَ {2}

जब उनके परवरदिगार की तरफ से उनके पास कोई नया हुक्म आता है तो उसे सिर्फ कान लगाकर सुन लेते हैं और (फिर उसका) हँसी खेल उड़ाते हैं (2)

इकतराबा लिन्नास

لَاهِيَةً قُلُوبُهُمْ وَأَسَرُّواْ النَّجْوَى الَّذِينَ ظَلَمُواْ هَلْ هَذَا إِلَّا بَشَرٌ مِّثْلُكُمْ أَفَتَأْتُونَ السِّحْرَ وَأَنتُمْ تُبْصِرُونَ {3}

उनके दिल (आखि़रत के ख़्याल से) बिल्कुल बेख़बर हैं और ये ज़ालिम चुपके-चुपके कानाफूसी किया करते हैं कि ये शख़्स (मोहम्मद कुछ भी नहीं) बस तुम्हारे ही सा आदमी है तो क्या तुम दीदा व दानिस्ता जादू में फँसते हो (3)

इकतराबा लिन्नास

قَالَ رَبِّي يَعْلَمُ الْقَوْلَ فِي السَّمَاء وَالأَرْضِ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ {4}

(तो उस पर) रसूल ने कहा कि मेरा परवरदिगार जितनी बातें आसमान और ज़मीन में होती हैं खू़ब जानता है (फिर क्यों कानाफूसी करते हो) और वह तो बड़ा सुनने वाला वाकि़फ़कार है (4)

इकतराबा लिन्नास

بَلْ قَالُواْ أَضْغَاثُ أَحْلاَمٍ بَلِ افْتَرَاهُ بَلْ هُوَ شَاعِرٌ فَلْيَأْتِنَا بِآيَةٍ كَمَا أُرْسِلَ الأَوَّلُونَ {5}

(उस पर भी उन लोगों ने इकतेफ़ा न की) बल्कि कहने लगे (ये कु़रआन तो) ख्वाबहाय परीशाँ का मजमूआ है बल्कि उसने खु़द अपने जी से झूट-मूट गढ़ लिया है बल्कि ये शख़्स शायर है और अगर हक़ीकतन रसूल है) तो जिस तरह अगले पैग़म्बर मौजिज़ों के साथ भेजे गए थे (5)

इकतराबा लिन्नास

مَا آمَنَتْ قَبْلَهُم مِّن قَرْيَةٍ أَهْلَكْنَاهَا أَفَهُمْ يُؤْمِنُونَ {6}

उसी तरह ये भी कोई मौजिज़ा (जैसा हम कहें) हमारे पास भला लाए तो सही इनसे पहले जिन बस्तियों को तबाह कर डाला (मौजिज़े भी देखकर तो) ईमान न लाए (6)

इकतराबा लिन्नास

وَمَا أَرْسَلْنَا قَبْلَكَ إِلاَّ رِجَالاً نُّوحِي إِلَيْهِمْ فَاسْأَلُواْ أَهْلَ الذِّكْرِ إِن كُنتُمْ لاَ تَعْلَمُونَ {7}

तो क्या ये लोग ईमान लाएँगे और ऐ रसूल हमने तुमसे पहले भी आदमियों ही को (रसूल बनाकर) भेजा था कि उनके पास “वही” भेजा करते थे तो अगर तुम लोग खु़द नहीं जानते हो तो आलिमों से पूँछकर देखो (7)

इकतराबा लिन्नास

وَمَا جَعَلْنَاهُمْ جَسَدًا لَّا يَأْكُلُونَ الطَّعَامَ وَمَا كَانُوا خَالِدِينَ {8}

और हमने उन (पैग़म्बरों) के बदन ऐसे नहीं बनाए थे कि वह खाना न खाएँ और न वह (दुनिया में) हमेशा रहने सहने वाले थे (8)

इकतराबा लिन्नास

ثُمَّ صَدَقْنَاهُمُ الْوَعْدَ فَأَنجَيْنَاهُمْ وَمَن نَّشَاء وَأَهْلَكْنَا الْمُسْرِفِينَ {9}

फिर हमने उन्हें (अपना अज़ाब का) वायदा सच्चा कर दिखाया (और जब अज़ाब आ पहुँचा) तो हमने उन पैग़म्बरों को और जिस जिसको चाहा छुटकारा दिया और हद से बढ़ जाने वालों को हलाक कर डाला (9)

इकतराबा लिन्नास

لَقَدْ أَنزَلْنَا إِلَيْكُمْ كِتَابًا فِيهِ ذِكْرُكُمْ أَفَلَا تَعْقِلُونَ {10}

हमने तो तुम लोगों के पास वह किताब (कु़रआआन) नाजि़ल की है जिसमें तुम्हारा (भी) जि़क्रे (ख़ैर) है तो क्या तुम लोग (इतना भी) नहीं समझते (10)

इकतराबा लिन्नास

وَكَمْ قَصَمْنَا مِن قَرْيَةٍ كَانَتْ ظَالِمَةً وَأَنشَأْنَا بَعْدَهَا قَوْمًا آخَرِينَ {11}

और हमने कितनी बस्तियों को जिनके रहने वाले सरकश थे बरबाद कर दिया और उनके बाद दूसरे लोगों केा पैदा किया (11)

इकतराबा लिन्नास

فَلَمَّا أَحَسُّوا بَأْسَنَا إِذَا هُم مِّنْهَا يَرْكُضُونَ {12}

तो जब उन लोगों ने हमारे अज़ाब की आहट पाई तो एका एकी भागने लगे (12)

इकतराबा लिन्नास

لَا تَرْكُضُوا وَارْجِعُوا إِلَى مَا أُتْرِفْتُمْ فِيهِ وَمَسَاكِنِكُمْ لَعَلَّكُمْ تُسْأَلُونَ {13}

(हमने कहा) भागो नहीं और उन्हीं बस्तियों और घरों में लौट जाओ जिनमें तुम चैन करते थे ताकि तुमसे कुछ पूछगछ की जाए (13)

इकतराबा लिन्नास

قَالُوا يَا وَيْلَنَا إِنَّا كُنَّا ظَالِمِينَ {14}

वह लोग कहने लगे हाए हमारी शामत बेशक हम सरकश तो ज़रूर थे (14)

इकतराबा लिन्नास

فَمَا زَالَت تِّلْكَ دَعْوَاهُمْ حَتَّى جَعَلْنَاهُمْ حَصِيدًا خَامِدِينَ {15}

ग़रज़ वह बराबर यही पड़े पुकारा किए यहाँ तक कि हमने उन्हें कटी हुयी खेती की तरह बिछा के ठन्डा करके ढेर कर दिया (15)

इकतराबा लिन्नास

وَمَا خَلَقْنَا السَّمَاء وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا لَاعِبِينَ {16}

और हमने आसमान और ज़मीन को और जो कुछ इन दोनों के दरमियान है बेकार लगो नहीं पैदा किया (16)

इकतराबा लिन्नास

لَوْ أَرَدْنَا أَن نَّتَّخِذَ لَهْوًا لَّاتَّخَذْنَاهُ مِن لَّدُنَّا إِن كُنَّا فَاعِلِينَ {17}

अगर हम कोई खेल बनाना चाहते तो बेशक हम उसे अपनी तजवीज़ से बना लेते अगर हमको करना होता (मगर हमें शायान ही न था) (17)

इकतराबा लिन्नास

بَلْ نَقْذِفُ بِالْحَقِّ عَلَى الْبَاطِلِ فَيَدْمَغُهُ فَإِذَا هُوَ زَاهِقٌ وَلَكُمُ الْوَيْلُ مِمَّا تَصِفُونَ {18}

बल्कि हम तो हक़ को नाहक़ (के सर) पर खींच मारते हैं तो वह बातिल के सर को कुचल देता है फिर वो उसी वक़्त नेस्तो नाबूद हो जाता है और तुम पर अफ़सोस है कि ऐसी-ऐसी नाहक़ बातें बनाया करते हो (18)

इकतराबा लिन्नास

وَلَهُ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَنْ عِندَهُ لَا يَسْتَكْبِرُونَ عَنْ عِبَادَتِهِ وَلَا يَسْتَحْسِرُونَ {19}

हालाँकि जो (फरिश्ते) आसमान और ज़मीन में हैं (सब) उसी के (बन्दे) हैं और जो (फरिश्ते) उस सरकार में हैं न तो वो उसकी इबादत की शेख़ी करते हैं और न थकते हैं (19)

इकतराबा लिन्नास

يُسَبِّحُونَ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ لَا يَفْتُرُونَ {20}

रात और दिन उसकी तस्बीह किया करते हैं (और) कभी काहिली नहीं करते (20)

इकतराबा लिन्नास

أَمِ اتَّخَذُوا آلِهَةً مِّنَ الْأَرْضِ هُمْ يُنشِرُونَ {21}

उन लोगों ने जो माबूद ज़मीन में बना रखे हैं क्या वही (लोगों को) जि़न्दा करेंगे (21)

इकतराबा लिन्नास

لَوْ كَانَ فِيهِمَا آلِهَةٌ إِلَّا اللَّهُ لَفَسَدَتَا فَسُبْحَانَ اللَّهِ رَبِّ الْعَرْشِ عَمَّا يَصِفُونَ {22}

(बा ग़रज़ मुहाल) ज़मीन व आसमान में खु़दा कि सिवा चन्द माबूद होते तो दोनों कब के बरबाद हो गए होते तो जो बातें ये लोग अपने जी से (उसके बारे में) बनाया करते हैं खु़दा जो अर्श का मालिक है उन तमाम ऐबों से पाक व पाकीज़ा है (22)

इकतराबा लिन्नास

لَا يُسْأَلُ عَمَّا يَفْعَلُ وَهُمْ يُسْأَلُونَ {23}

जो कुछ वो करता है उसकी पूछगछ नहीं हो सकती (23)

इकतराबा लिन्नास

أَمِ اتَّخَذُوا مِن دُونِهِ آلِهَةً قُلْ هَاتُوا بُرْهَانَكُمْ هَذَا ذِكْرُ مَن مَّعِيَ وَذِكْرُ مَن قَبْلِي بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ الْحَقَّ فَهُم مُّعْرِضُونَ {24}

(हाँ) और उन लोगों से बाज़ पुरस्त होगी क्या उन लोगों ने खु़दा को छोड़कर कुछ और माबूद बना रखे हैं (ऐ रसूल) तुम कहो कि भला अपनी दलील तो पेश करो जो मेरे (ज़माने में) साथ है उनकी किताब (कु़रआन) और जो लोग मुझ से पहले थे उनकी किताबें (तौरेत वग़ैरह) ये (मौजूद) हैं (उनमें खु़दा का शरीक बता दो) बल्कि उनमें से अक्सर तो हक़ (बात) को तो जानते ही नहीं (24)

इकतराबा लिन्नास

وَمَا أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ مِن رَّسُولٍ إِلَّا نُوحِي إِلَيْهِ أَنَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا أَنَا فَاعْبُدُونِ {25}

तो (जब हक़ का जि़क्र आता है) ये लोग मुँह फेर लेते हैं और (ऐ रसूल) हमने तुमसे पहले जब कभी कोई रसूल भेजा तो उसके पास “वही” भेजते रहे कि बस हमारे सिवा कोई माबूद क़ाबिले परसतिश नहीं तो मेरी इबादत किया करो (25)

इकतराबा लिन्नास

وَقَالُوا اتَّخَذَ الرَّحْمَنُ وَلَدًا سُبْحَانَهُ بَلْ عِبَادٌ مُّكْرَمُونَ {26}

और (एहले मक्का) कहते हैं कि खु़दा ने (फरिश्तों को) अपनी औलाद (बेटियाँ) बना रखा है (हालाँकि) वह उससे पाक व पकीज़ा हैं बल्कि (वो फ़रिश्ते) (खु़दा के) मोअजि़्ज़ बन्दे हैं (26)

इकतराबा लिन्नास

لَا يَسْبِقُونَهُ بِالْقَوْلِ وَهُم بِأَمْرِهِ يَعْمَلُونَ {27}

ये लोग उसके सामने बढ़कर बोल नहीं सकते और ये लोग उसी के हुक्म पर चलते हैं (27)

इकतराबा लिन्नास

يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَلَا يَشْفَعُونَ إِلَّا لِمَنِ ارْتَضَى وَهُم مِّنْ خَشْيَتِهِ مُشْفِقُونَ {28}

जो कुछ उनके सामने है और जो कुछ उनके पीछे है (ग़रज़ सब कुछ) वो (खु़दा) जानता है और ये लोग उस शख़्स के सिवा जिससे खुदा राज़ी हो किसी की सिफारिश भी नहीं करते और ये लोग खुद उसके ख़ौफ से (हर वक़्त) डरते रहते हैं (28)

इकतराबा लिन्नास

وَمَن يَقُلْ مِنْهُمْ إِنِّي إِلَهٌ مِّن دُونِهِ فَذَلِكَ نَجْزِيهِ جَهَنَّمَ كَذَلِكَ نَجْزِي الظَّالِمِينَ {29}

और उनमें से जो कोई ये कह दे कि खु़दा नहीं (बल्कि) मैं माबूद हूँ तो वह (मरदूद बारगाह हुआ) हम उसको जहन्नुम की सज़ा देंगे और सरकशों को हम ऐसी ही सज़ा देते हैं (29)

इकतराबा लिन्नास

أَوَلَمْ يَرَ الَّذِينَ كَفَرُوا أَنَّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ كَانَتَا رَتْقًا فَفَتَقْنَاهُمَا وَجَعَلْنَا مِنَ الْمَاء كُلَّ شَيْءٍ حَيٍّ أَفَلَا يُؤْمِنُونَ {30}

जो लोग काफ़िर हो बैठे क्या उन लोगों ने इस बात पर ग़ौर नहीं किया कि आसमान और ज़मीन दोनों बस्ता (बन्द) थे तो हमने दोनों को शिगाफ़ता किया (खोल दिया) और हम ही ने जानदार चीज़ को पानी से पैदा किया इस पर भी ये लोग ईमान न लाएँगे (30)

इकतराबा लिन्नास

وَجَعَلْنَا فِي الْأَرْضِ رَوَاسِيَ أَن تَمِيدَ بِهِمْ وَجَعَلْنَا فِيهَا فِجَاجًا سُبُلًا لَعَلَّهُمْ يَهْتَدُونَ {31}

और हम ही ने ज़मीन पर भारी बोझल पहाड़ बनाए ताकि ज़मीन उन लोगों को लेकर किसी तरफ झुक न पड़े और हम ने ही उसमें लम्बे-चैड़े रास्ते बनाए ताकि ये लोग अपने-अपने मंजि़लें मक़सूद को जा पहुँचे (31)

इकतराबा लिन्नास

وَجَعَلْنَا السَّمَاء سَقْفًا مَّحْفُوظًا وَهُمْ عَنْ آيَاتِهَا مُعْرِضُونَ {32}

और हम ही ने आसमान को छत बनाया जो हर तरह महफूज़ है और ये लोग उसकी आसमानी निशानियों से मुँह फेर रहे हैं (32)

इकतराबा लिन्नास

وَهُوَ الَّذِي خَلَقَ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ وَالشَّمْسَ وَالْقَمَرَ كُلٌّ فِي فَلَكٍ يَسْبَحُونَ {33}

और वही वह (क़ादिरे मुतलक़) है जिसने रात और दिन और आफ़ताब और माहताब को पैदा किया कि सब के सब एक (एक) आसमान में पैर कर चक्कर लगा रहे हैं (33)

इकतराबा लिन्नास

وَمَا جَعَلْنَا لِبَشَرٍ مِّن قَبْلِكَ الْخُلْدَ أَفَإِن مِّتَّ فَهُمُ الْخَالِدُونَ {34}

और (ऐ रसूल) हमने तुमसे पहले भी किसी फर्द व बशर को सदा की जि़न्दगी नहीं दी तो क्या अगर तुम मर जाओगे तो ये लोग हमेशा जिया ही करेंगे (34)

इकतराबा लिन्नास

كُلُّ نَفْسٍ ذَائِقَةُ الْمَوْتِ وَنَبْلُوكُم بِالشَّرِّ وَالْخَيْرِ فِتْنَةً وَإِلَيْنَا تُرْجَعُونَ {35}

(हर शख़्स एक न एक दिन) मौत का मज़ा चखने वाला है और हम तुम्हें मुसीबत व राहत में इम्तेहान की ग़रज़ से आज़माते हैं और (आखि़र कार) हमारी ही तरफ लौटाए जाओगे (35)

इकतराबा लिन्नास

وَإِذَا رَآكَ الَّذِينَ كَفَرُوا إِن يَتَّخِذُونَكَ إِلَّا هُزُوًا أَهَذَا الَّذِي يَذْكُرُ آلِهَتَكُمْ وَهُم بِذِكْرِ الرَّحْمَنِ هُمْ كَافِرُونَ {36}

और (ऐ रसूल) जब तुम्हें कुफ़्फ़ार देखते हैं तो बस तुमसे मसखरापन करते हैं कि क्या यही हज़रत हैं जो तुम्हारे माबूदों को (बुरी तरह) याद करते हैं हालाँकि ये लोग खु़द खु़दा की याद से इन्कार करते हैं (तो इनकी बेवकू़फी पर हँसना चाहिए) (36)

इकतराबा लिन्नास

خُلِقَ الْإِنسَانُ مِنْ عَجَلٍ سَأُرِيكُمْ آيَاتِي فَلَا تَسْتَعْجِلُونِ {37}

आदमी तो बड़ा जल्दबाज़ पैदा किया गया है मैं अनक़रीब ही तुम्हें अपनी (कु़दरत की) निशानियाँ दिखाऊँगा तो तुम मुझसे जल्दी की (धूम) न मचाओ (37)

इकतराबा लिन्नास

وَيَقُولُونَ مَتَى هَذَا الْوَعْدُ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ {38}

और लुत्फ़ तो ये है कि कहते हैं कि अगर सच्चे हो तो ये क़यामत का वायदा कब (पूरा) होगा (38)

इकतराबा लिन्नास

لَوْ يَعْلَمُ الَّذِينَ كَفَرُوا حِينَ لَا يَكُفُّونَ عَن وُجُوهِهِمُ النَّارَ وَلَا عَن ظُهُورِهِمْ وَلَا هُمْ يُنصَرُونَ {39}

और जो लोग काफि़र हो बैठे काश उस वक़्त की हालत से आगाह होते (कि जहन्नुम की आग में खडे़ होंगे) और न अपने चेहरों से आग को हटा सकेंगे और न अपनी पीठ से और न उनकी मदद की जाएगी (39)

इकतराबा लिन्नास

بَلْ تَأْتِيهِم بَغْتَةً فَتَبْهَتُهُمْ فَلَا يَسْتَطِيعُونَ رَدَّهَا وَلَا هُمْ يُنظَرُونَ {40}

(क़यामत कुछ जता कर तो आने से रही) बल्कि वह तो अचानक उन पर आ पड़ेगी और उन्हें हक्का बक्का कर देगी फिर उस वक़्त उसमें न उसके हटाने की मजाल होगी और न उन्हें दी ही जाएगी (40)

इकतराबा लिन्नास

وَلَقَدِ اسْتُهْزِئَ بِرُسُلٍ مِّن قَبْلِكَ فَحَاقَ بِالَّذِينَ سَخِرُوا مِنْهُم مَّا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُون {41}

और (ऐ रसूल) कुछ तुम ही नहीं तुमसे पहले पैग़म्बरों के साथ मसख़रापन किया जा चुका है तो उन पैग़म्बरों से मसख़रापन करने वालों को उस सख़्त अज़ाब ने आ घेर लिया जिसकी वह हँसी उड़ाया करते थे (41)

इकतराबा लिन्नास

قُلْ مَن يَكْلَؤُكُم بِاللَّيْلِ وَالنَّهَارِ مِنَ الرَّحْمَنِ بَلْ هُمْ عَن ذِكْرِ رَبِّهِم مُّعْرِضُونَ {42}

(ऐ रसूल) तुम उनसे पूछो तो कि खु़दा (के अज़ाब) से (बचाने में) रात को या दिन को तुम्हारा कौन पहरा दे सकता है उस पर डरना तो दर किनार बल्कि ये लोग अपने परवरदिगार की याद से मुँह फेरते हैं (42)

इकतराबा लिन्नास

أَمْ لَهُمْ آلِهَةٌ تَمْنَعُهُم مِّن دُونِنَا لَا يَسْتَطِيعُونَ نَصْرَ أَنفُسِهِمْ وَلَا هُم مِّنَّا يُصْحَبُونَ {43}

क्या हमारे सिवा उनके कुछ और परवरदिगार हैं कि जो उनको (हमारे अज़ाब से) बचा सकते हैं (वह क्या बचाएँगे) ये लोग खु़द अपनी तो मदद कर ही नहीं सकते और न हमारे अज़ाब से उन्हें पनाह दी जाएगी (43)

इकतराबा लिन्नास

بَلْ مَتَّعْنَا هَؤُلَاء وَآبَاءهُمْ حَتَّى طَالَ عَلَيْهِمُ الْعُمُرُ أَفَلَا يَرَوْنَ أَنَّا نَأْتِي الْأَرْضَ نَنقُصُهَا مِنْ أَطْرَافِهَا أَفَهُمُ الْغَالِبُونَ {44}

बल्कि हम ही से उनको और उनके बुज़ुर्गों को आराम व चैन रहा यहाँ तक कि उनकी उमरें बढ़ गई तो फिर क्या ये लोग नहीं देखते कि हम रूए ज़मीन को चारों तरफ से क़ब्ज़ा करते और उसको फतेह करते चले आते हैं तो क्या (अब भी यही लोग कुफ़्फ़ारे मक्का) ग़ालिब और वर हैं (44)

इकतराबा लिन्नास

قُلْ إِنَّمَا أُنذِرُكُم بِالْوَحْيِ وَلَا يَسْمَعُ الصُّمُّ الدُّعَاء إِذَا مَا يُنذَرُونَ {45}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो बस तुम लोगों को “वही” के मुताबिक़ (अज़ाब से) डराता हूँ (मगर तुम लोग गोया बहरे हो) और बहरों को जब डराया जाता है तो वह पुकारने ही को नहीं सुनते (डरें क्या ख़ाक) (45)

इकतराबा लिन्नास

وَلَئِن مَّسَّتْهُمْ نَفْحَةٌ مِّنْ عَذَابِ رَبِّكَ لَيَقُولُنَّ يَا وَيْلَنَا إِنَّا كُنَّا ظَالِمِينَ {46}

और (ऐ रसूल) अगर कहीं उनको तुम्हारे परवरदिगार के अज़ाब की ज़रा सी हवा भी लग गई तो बेसाक़ता बोल उठें हाय अफसोस वाक़ई हम ही ज़ालिम थे (46)

इकतराबा लिन्नास

وَنَضَعُ الْمَوَازِينَ الْقِسْطَ لِيَوْمِ الْقِيَامَةِ فَلَا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَيْئًا وَإِن كَانَ مِثْقَالَ حَبَّةٍ مِّنْ خَرْدَلٍ أَتَيْنَا بِهَا وَكَفَى بِنَا حَاسِبِينَ {47}

और क़यामत के दिन तो हम (बन्दों के भले बुरे आमाल तौलने के लिए) इन्साफ़ की तराज़ू में खड़ी कर देंगे तो फिर किसी शख़्स पर कुछ भी ज़ुल्म न किया जाएगा और अगर राई के दाने के बराबर भी किसी का (अमल) होगा तो तुम उसे ला हाजि़र करेंगे और हम हिसाब करने के वास्ते बहुत काफ़ी हैं (47)

इकतराबा लिन्नास

وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى وَهَارُونَ الْفُرْقَانَ وَضِيَاء وَذِكْرًا لِّلْمُتَّقِينَ {48}

और हम ही ने यक़ीनन मूसा और हारून को (हक़ व बातिल की) जुदा करने वाली किताब (तौरेत) और परहेज़गारों के लिए अज़सरतापा नूर और नसीहत अता की (48)

इकतराबा लिन्नास

الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُم بِالْغَيْبِ وَهُم مِّنَ السَّاعَةِ مُشْفِقُونَ {49}

जो बिना देखे अपने परवरदिगार से ख़ौफ खाते हैं और ये लोग रोज़े क़यामत से भी डरते हैं (49)

इकतराबा लिन्नास

وَهَذَا ذِكْرٌ مُّبَارَكٌ أَنزَلْنَاهُ أَفَأَنتُمْ لَهُ مُنكِرُونَ {50}

और ये (कु़रआन भी) एक बाबरकत तज़किरा है जिसको हमने उतारा है तो क्या तुम लोग इसको नहीं मानते (50)

इकतराबा लिन्नास

وَلَقَدْ آتَيْنَا إِبْرَاهِيمَ رُشْدَهُ مِن قَبْلُ وَكُنَّا بِه عَالِمِينَ {51}

और इसमें भी शक नहीं कि हमने इबराहीम को पहले ही से फ़हेम सलीम अता की थी और हम उन (की हालत) से खू़ब वाकि़फ थे (51)

इकतराबा लिन्नास

إِذْ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوْمِهِ مَا هَذِهِ التَّمَاثِيلُ الَّتِي أَنتُمْ لَهَا عَاكِفُونَ {52}

जब उन्होंने अपने (मुँह भोले) बाप और अपनी क़ौम से कहा ये मूरतें जिनकी तुम लोग मुजाबिरी करते हो आखि़र क्या (बला) है (52)

इकतराबा लिन्नास

قَالُوا وَجَدْنَا آبَاءنَا لَهَا عَابِدِينَ {53}

वह लोग बोले (और तो कुछ नहीं जानते मगर) अपने बडे़ बूढ़ों को इनही की परसतिश करते देखा है (53)

इकतराबा लिन्नास

قَالَ لَقَدْ كُنتُمْ أَنتُمْ وَآبَاؤُكُمْ فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ {54}

इबराहीम ने कहा यक़ीनन तुम भी और तुम्हारे बुर्जु़ग भी खुली हुई गुमराही में पड़े हुए थे (54)

इकतराबा लिन्नास

قَالُوا أَجِئْتَنَا بِالْحَقِّ أَمْ أَنتَ مِنَ اللَّاعِبِينَ {55}

वह लोग कहने लगे तो क्या तुम हमारे पास हक़ बात लेकर आए हो या तुम भी (यूँ ही) दिल्लगी करते हो (55)

इकतराबा लिन्नास

قَالَ بَل رَّبُّكُمْ رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ الَّذِي فَطَرَهُنَّ وَأَنَا عَلَى ذَلِكُم مِّنَ الشَّاهِدِينَ {56}

इबराहीम ने कहा मज़ाक नहीं ठीक कहता हूँ कि तुम्हारे माबूद बुत नहीं बल्कि तुम्हारा परवरदिगार आसमान व ज़मीन का मालिक है जिसने उनको पैदा किया और मैं खु़द इस बात का तुम्हारे सामने गवाह हूँ (56)

इकतराबा लिन्नास

وَتَاللَّهِ لَأَكِيدَنَّ أَصْنَامَكُم بَعْدَ أَن تُوَلُّوا مُدْبِرِينَ {57}

और अपने जी में कहा खु़दा की क़सम तुम्हारे पीठ फेरने के बाद में तुम्हारे बुतों के साथ एक चाल चलूँगा (57)

इकतराबा लिन्नास

فَجَعَلَهُمْ جُذَاذًا إِلَّا كَبِيرًا لَّهُمْ لَعَلَّهُمْ إِلَيْهِ يَرْجِعُونَ {58}

चुनान्चे इब्राराहीम ने उन बुतों को (तोड़कर) चकनाचूर कर डाला मगर उनके बड़े बुत को (इसलिए रहने दिया) ताकि ये लोग ईद से पलटकर उसकी तरफ रूजू करें (58)

इकतराबा लिन्नास

قَالُوا مَن فَعَلَ هَذَا بِآلِهَتِنَا إِنَّهُ لَمِنَ الظَّالِمِينَ {59}

(जब कुफ़्फ़ार को मालूम हुआ) तो कहने लगे जिसने ये गुस्ताख़ी हमारे माबूदों के साथ की है उसने यक़ीनी बड़ा ज़ुल्म किया (59)

इकतराबा लिन्नास

قَالُوا سَمِعْنَا فَتًى يَذْكُرُهُمْ يُقَالُ لَهُ إِبْرَاهِيمُ {60}

(कुछ लोग) कहने लगे हमने एक नौजवान को जिसको लोग इबराहीम कहते हैं उन बुतों का (बुरी तरह) जि़क्र करते सुना था (60) 

इकतराबा लिन्नास

قَالُوا فَأْتُوا بِهِ عَلَى أَعْيُنِ النَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَشْهَدُونَ {61}

लोगों ने कहा तो अच्छा उसको सब लोगों के सामने (गिरफ़्तार करके) ले आओ ताकि वह (जो कुछ कहें) लोग उसके गवाह रहें (61)

इकतराबा लिन्नास

قَالُوا أَأَنتَ فَعَلْتَ هَذَا بِآلِهَتِنَا يَا إِبْرَاهِيمُ {62}

(ग़रज़ इबराहीम आए) और लोगों ने उनसे पूछा कि क्यों इबराहीम क्या तुमने माबूदों के साथ ये हरकत की है (62)

इकतराबा लिन्नास

قَالَ بَلْ فَعَلَهُ كَبِيرُهُمْ هَذَا فَاسْأَلُوهُمْ إِن كَانُوا يَنطِقُونَ {63}

इबराहीम ने कहा बल्कि ये हरकत इन बुतों (खु़दाओं) के बड़े (खु़दा) ने की है तो अगर ये बुत बोल सकते हों तो उनही से पूछ के देखो (63)

इकतराबा लिन्नास

فَرَجَعُوا إِلَى أَنفُسِهِمْ فَقَالُوا إِنَّكُمْ أَنتُمُ الظَّالِمُونَ {64}

इस पर उन लोगों ने अपने जी में सोचा तो (एक दूसरे से) कहने लगे बेशक तुम ही लोग खु़द बर सरे नाहक़़ हो (64)

इकतराबा लिन्नास

ثُمَّ نُكِسُوا عَلَى رُؤُوسِهِمْ لَقَدْ عَلِمْتَ مَا هَؤُلَاء يَنطِقُونَ {65}

फिर उन लोगों के सर इसी गुमराही में झुका दिए गए (और तो कुछ बन न पड़ा मगर ये बोले) तुमको तो अच्छी तरह मालूम है कि ये बुत बोला नहीं करते (65)

इकतराबा लिन्नास

قَالَ أَفَتَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللَّهِ مَا لَا يَنفَعُكُمْ شَيْئًا وَلَا يَضُرُّكُمْ {66}

(फिर इनसे क्या पूछे) इबराहीम ने कहा तो क्या तुम लोग खु़दा को छोड़कर ऐसी चीज़ों की परसतिश करते हो जो न तुम्हें कुछ नफा ही पहुँचा सकती है और न तुम्हारा कुछ नुक़सान ही कर सकती है (66)

इकतराबा लिन्नास

أُفٍّ لَّكُمْ وَلِمَا تَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللَّهِ أَفَلَا تَعْقِلُونَ {67}

तुफ़ है तुम पर उस चीज़ पर जिसे तुम खु़दा के सिवा पूजते हो तो क्या तुम इतना भी नहीं समझते (67)

इकतराबा लिन्नास

قَالُوا حَرِّقُوهُ وَانصُرُوا آلِهَتَكُمْ إِن كُنتُمْ فَاعِلِينَ {68}

(आखि़र) वह लोग (बाहम) कहने लगे कि अगर तुम कुछ कर सकते हो तो इब्राहीम को आग में जला दो और अपने खु़दाओं की मदद करो (68)

इकतराबा लिन्नास

قُلْنَا يَا نَارُ كُونِي بَرْدًا وَسَلَامًا عَلَى إِبْرَاهِيمَ {69}

(ग़रज़) उन लोगों ने इबराहीम को आग में डाल दिया तो हमने हुक्म दिया ऐ आग तू इबराहीम पर बिल्कुल ठन्डी और सलामती का बाइस हो जा (69)

इकतराबा लिन्नास

وَأَرَادُوا بِهِ كَيْدًا فَجَعَلْنَاهُمُ الْأَخْسَرِينَ {70}

(कि उनको कोई तकलीफ़ न पहुँचे) और उन लोगों ने इबराहीम के साथ चालबाज़ी करनी चाही थी तो हमने इन सब को नाकाम कर दिया (70)

इकतराबा लिन्नास

وَنَجَّيْنَاهُ وَلُوطًا إِلَى الْأَرْضِ الَّتِي بَارَكْنَا فِيهَا لِلْعَالَمِينَ {71}

और हम ने ही इबराहीम और लूत को (सरकशों से) सही व सालिम निकालकर इस सर ज़मीन (शाम बैतुलमुक़द्दस) में जा पहुँचाया जिसमें हमने सारे जहाँन के लिए तरह-तरह की बरकत अता की थी (71)

इकतराबा लिन्नास

وَوَهَبْنَا لَهُ إِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ نَافِلَةً وَكُلًّا جَعَلْنَا صَالِحِينَ {72}

और हमने इबराहीम को इनाम में इसहाक़ (जैसा बैटा) और याकू़ब (जैसा पोता) इनायत फरमाया हमने सबको नेक बख़्त बनाया (72)

इकतराबा लिन्नास

وَجَعَلْنَاهُمْ أَئِمَّةً يَهْدُونَ بِأَمْرِنَا وَأَوْحَيْنَا إِلَيْهِمْ فِعْلَ الْخَيْرَاتِ وَإِقَامَ الصَّلَاةِ وَإِيتَاء الزَّكَاةِ وَكَانُوا لَنَا عَابِدِينَ {73}

और उन सबको (लोगों का) पेशवा बनाया कि हमारे हुक्म से (उनकी) हिदायत करते थे और हमने उनके पास नेक काम करने और नमाज़ पढ़ने और ज़कात देने की “वही” भेजी थी और ये सब के सब हमारी ही इबादत करते थे (73)

इकतराबा लिन्नास

وَلُوطًا آتَيْنَاهُ حُكْمًا وَعِلْمًا وَنَجَّيْنَاهُ مِنَ الْقَرْيَةِ الَّتِي كَانَت تَّعْمَلُ الْخَبَائِثَ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمَ سَوْءٍ فَاسِقِينَ {74}

और लूत को भी हम ही ने फ़हमे सलीम और नबूवत अता की और हम ही ने उस बस्ती से जहाँ के लोग बदकारियाँ करते थे नजात दी इसमें शक नहीं कि वह लोग बड़े बदकार आदमी थे (74)

इकतराबा लिन्नास

وَأَدْخَلْنَاهُ فِي رَحْمَتِنَا إِنَّهُ مِنَ الصَّالِحِينَ {75}

और हमने लूत को अपनी रहमत में दाखि़ल कर लिया इसमें शक नहीं कि वह नेकोंकार बन्दों में से थे (75)

इकतराबा लिन्नास

وَنُوحًا إِذْ نَادَى مِن قَبْلُ فَاسْتَجَبْنَا لَهُ فَنَجَّيْنَاهُ وَأَهْلَهُ مِنَ الْكَرْبِ الْعَظِيمِ {76}

और (ऐ रसूल लूत से भी) पहले (हमने) नूह को नबूवत पर फ़ायज़ किया जब उन्होंने (हमको) आवाज़ दी तो हमने उनकी (दुआ) सुन ली फिर उनको और उनके साथियों को (तूफ़ान की) बड़ी सख़्त मुसीबत से नजात दी (76)

इकतराबा लिन्नास

وَنَصَرْنَاهُ مِنَ الْقَوْمِ الَّذِينَ كَذَّبُوا بِآيَاتِنَا إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمَ سَوْءٍ فَأَغْرَقْنَاهُمْ أَجْمَعِينَ {77}

और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया था उनके मुक़ाबले में उनकी मदद की बेशक ये लोग (भी) बहुत बुऱे लोग थे तो हमने उन सबको डुबा मारा (77)

इकतराबा लिन्नास

وَدَاوُودَ وَسُلَيْمَانَ إِذْ يَحْكُمَانِ فِي الْحَرْثِ إِذْ نَفَشَتْ فِيهِ غَنَمُ الْقَوْمِ وَكُنَّا لِحُكْمِهِمْ شَاهِدِينَ {78}

और (ऐ रसूल इनको) दाऊद और सुलेमान का (वाक़्या याद दिलाओ) जब ये दोनों एक खेती के बारे में जिसमें रात के वक़्त कुछ लोगों की बकरियाँ (घुसकर) चर गई थी फैसला करने बैठे और हम उन लोगों के कि़स्से को देख रहे थे (कि बाहम इक़तेलाफ़ हुआ) (78)

इकतराबा लिन्नास

فَفَهَّمْنَاهَا سُلَيْمَانَ وَكُلًّا آتَيْنَا حُكْمًا وَعِلْمًا وَسَخَّرْنَا مَعَ دَاوُودَ الْجِبَالَ يُسَبِّحْنَ وَالطَّيْرَ وَكُنَّا فَاعِلِينَ {79}

तो हमने सुलेमान को (इसका सही फ़ैसला समझा दिया) और (यूँ तो) सबको हम ही ने फहमे सलीम और इल्म अता किया और हम ही ने पहाड़ों को दाऊद का ताबेए कर दिया था था कि उनके साथ (खु़दा की) तस्बीह किया करते थे और परिन्दों को (भी ताबेए कर दिया था) और हम ही (ये अजाऐब) किया करते थे (79)

इकतराबा लिन्नास

وَعَلَّمْنَاهُ صَنْعَةَ لَبُوسٍ لَّكُمْ لِتُحْصِنَكُم مِّن بَأْسِكُمْ فَهَلْ أَنتُمْ شَاكِرُونَ {80}

और हम ही ने उनको तुम्हारी जंगी पोशिश (जि़राह) का बनाना सिखा दिया ताकि तुम्हें (एक दूसरे के) वार से बचाए तो क्या तुम (अब भी) उसके शुक्रगुज़ार न बनोगे (80)

इकतराबा लिन्नास

وَلِسُلَيْمَانَ الرِّيحَ عَاصِفَةً تَجْرِي بِأَمْرِهِ إِلَى الْأَرْضِ الَّتِي بَارَكْنَا فِيهَا وَكُنَّا بِكُلِّ شَيْءٍ عَالِمِينَ {81}

और (हम ही ने) बड़े ज़ोरों की हवा को सुलेमान का (ताबेए कर दिया था) कि वह उनके हुक्म से इस सरज़मीन (बैतुलमुक़द्दस) की तरफ चला करती थी जिसमें हमने तरह-तरह की बरकतें अता की थी और हम तो हर चीज़ से खू़ब वाकि़फ़ थे (और) है (81)

इकतराबा लिन्नास

وَمِنَ الشَّيَاطِينِ مَن يَغُوصُونَ لَهُ وَيَعْمَلُونَ عَمَلًا دُونَ ذَلِكَ وَكُنَّا لَهُمْ حَافِظِينَ {82}

और जिन्नात में से जो लोग (समन्दर में) ग़ोता लगाकर (जवाहरात निकालने वाले) थे और उसके अलावा और काम भी करते थे (सुलेमान का ताबेए कर दिया था) और हम ही उनके निगेहबान थे (82)

इकतराबा लिन्नास

وَأَيُّوبَ إِذْ نَادَى رَبَّهُ أَنِّي مَسَّنِيَ الضُّرُّ وَأَنتَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِينَ {83}

(कि भाग न जाएँ) और (ऐ रसूल) अय्यूब (का कि़स्सा याद करो) जब उन्होंने अपने परवरदिगार से दुआ की कि (ख़ुदा वन्द) बीमारी तो मेरे पीछे लग गई है और तू तो सब रहम करने वालो से (बढ़ कर है मुझ पर तरस खा) (83)

इकतराबा लिन्नास

فَاسْتَجَبْنَا لَهُ فَكَشَفْنَا مَا بِهِ مِن ضُرٍّ وَآتَيْنَاهُ أَهْلَهُ وَمِثْلَهُم مَّعَهُمْ رَحْمَةً مِّنْ عِندِنَا وَذِكْرَى لِلْعَابِدِينَ {84}

तो हमने उनकी दुआ कु़बूल की तो हमने उनका जो कुछ दर्द दुख था रफ़ा कर दिया और उन्हें उनके लड़के बाले बल्कि उनके साथ उतनी ही और भी महज़ अपनी ख़ास मेहरबानी से और इबादत करने वालों की इबरत के वास्ते अता किए (84)

इकतराबा लिन्नास

وَإِسْمَاعِيلَ وَإِدْرِيسَ وَذَا الْكِفْلِ كُلٌّ مِّنَ الصَّابِرِينَ {85}

और (ऐ रसूल) इसमाईल और इदरीस और जु़लकिफ़ली (के वाक़यात से याद करो) ये सब साबिर बन्दे थे (85)

इकतराबा लिन्नास

وَأَدْخَلْنَاهُمْ فِي رَحْمَتِنَا إِنَّهُم مِّنَ الصَّالِحِينَ {86}

और हमने उन सबको अपनी (ख़ास) रहमत में दाखि़ल कर लिया बेशक ये लोग नेक बन्दे थे (86)

इकतराबा लिन्नास

وَذَا النُّونِ إِذ ذَّهَبَ مُغَاضِبًا فَظَنَّ أَن لَّن نَّقْدِرَ عَلَيْهِ فَنَادَى فِي الظُّلُمَاتِ أَن لَّا إِلَهَ إِلَّا أَنتَ سُبْحَانَكَ إِنِّي كُنتُ مِنَ الظَّالِمِينَ {87}

और ज़वालऐ नून (यूनुस को याद करो) जबकि गुस्से में आकर चलते हुए और ये ख़्याल न किया कि हम उन पर रोज़ी तंग न करेंगे (तो हमने उन्हें मछली के पेट में पहुँचा दिया) तो (घटाटोप) अँधेरे में (घबराकर) चिल्ला उठा कि (परवरदिगार) तेरे सिवा कोई माबूद नहीं तू (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है बेशक मैं कुसूरवार हूँ (87)

इकतराबा लिन्नास

فَاسْتَجَبْنَا لَهُ وَنَجَّيْنَاهُ مِنَ الْغَمِّ وَكَذَلِكَ نُنجِي الْمُؤْمِنِينَ {88}

तो हमने उनकी दुआ कु़बूल की और उन्हें रंज से नजात दी और हम तो ईमानवालों को यूँ ही नजात दिया करते हैं (88)

इकतराबा लिन्नास

وَزَكَرِيَّا إِذْ نَادَى رَبَّهُ رَبِّ لَا تَذَرْنِي فَرْدًا وَأَنتَ خَيْرُ الْوَارِثِينَ {89}

और ज़करिया (को याद करो) जब उन्होंने (मायूसी की हालत में) अपने परवरदिगार से दुआ की ऐ मेरे पालने वाले मुझे तन्हा (बे औलाद) न छोड़ और तू तो सब वारिसों से बेहतर है (89)

इकतराबा लिन्नास

فَاسْتَجَبْنَا لَهُ وَوَهَبْنَا لَهُ يَحْيَى وَأَصْلَحْنَا لَهُ زَوْجَهُ إِنَّهُمْ كَانُوا يُسَارِعُونَ فِي الْخَيْرَاتِ وَيَدْعُونَنَا رَغَبًا وَرَهَبًا وَكَانُوا لَنَا خَاشِعِينَ {90}

तो हमने उनकी दुआ सुन ली और उन्हें यहया सा बेटा अता किया और हमने उनके लिए उनकी बीवी को अच्छी बना दिया इसमें शक नहीं कि ये सब नेक कामों में जल्दी करते थे और हमको बड़ी रग़बत और ख़ौफ के साथ पुकारा करते थे और हमारे आगे गिड़गिड़ाया करते थे (90)

इकतराबा लिन्नास

وَالَّتِي أَحْصَنَتْ فَرْجَهَا فَنَفَخْنَا فِيهَا مِن رُّوحِنَا وَجَعَلْنَاهَا وَابْنَهَا آيَةً لِّلْعَالَمِينَ {91}

और (ऐ रसूल) उस बीबी को (याद करो) जिसने अपनी अज़मत की हिफाज़त की तो हमने उन (के पेट) में अपनी तरफ से रूह फूँक दी और उनको और उनके बेटे (ईसा) को सारे जहाँन के वास्ते (अपनी क़ुदरत की) निशानी बनाया (91)

इकतराबा लिन्नास

إِنَّ هَذِهِ أُمَّتُكُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً وَأَنَا رَبُّكُمْ فَاعْبُدُونِ {92}

बेशक ये तुम्हारा दीन (इस्लाम) एक ही दीन है और मैं तुम्हारा परवरदिगार हूँ तो मेरी ही इबादत करो (92)

इकतराबा लिन्नास

وَتَقَطَّعُوا أَمْرَهُم بَيْنَهُمْ كُلٌّ إِلَيْنَا رَاجِعُونَ {93}

और लोगों ने बाहम (इक़तेलाफ़ करके) अपने दीन को टुकड़े -टुकड़े कर डाला (हालाँकि) वो सब के सब हिरफिर के हमारे ही पास आने वाले हैं (93)

इकतराबा लिन्नास

فَمَن يَعْمَلْ مِنَ الصَّالِحَاتِ وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَلَا كُفْرَانَ لِسَعْيِهِ وَإِنَّا لَهُ كَاتِبُونَ {94}

(उस वक़्त फैसला हो जाएगा कि) तो जो शख़्स अच्छे-अच्छे काम करेगा और वह ईमानवाला भी हो तो उसकी कोशिश अकारत न की जाएगी और हम उसके आमाल लिखते जाते हैं (94)

इकतराबा लिन्नास

وَحَرَامٌ عَلَى قَرْيَةٍ أَهْلَكْنَاهَا أَنَّهُمْ لَا يَرْجِعُونَ {95}

और जिस बस्ती को हमने तबाह कर डाला मुमकिन नहीं कि वह लोग क़यामत के दिन हिरफिर के से (हमारे पास) न लौटे (95)

इकतराबा लिन्नास

حَتَّى إِذَا فُتِحَتْ يَأْجُوجُ وَمَأْجُوجُ وَهُم مِّن كُلِّ حَدَبٍ يَنسِلُونَ {96}

बस इतना (तवक्कुफ़ तो ज़रूर होगा) कि जब याजूद माजूद (हद ऐ सिकन्दरी) की कै़द से खोल दिए जाएँगे और ये लोग (ज़मीन की) हर बुलन्दी से दौड़ते हुए निकल पड़ें (96)

इकतराबा लिन्नास

وَاقْتَرَبَ الْوَعْدُ الْحَقُّ فَإِذَا هِيَ شَاخِصَةٌ أَبْصَارُ الَّذِينَ كَفَرُوا يَا وَيْلَنَا قَدْ كُنَّا فِي غَفْلَةٍ مِّنْ هَذَا بَلْ كُنَّا ظَالِمِينَ {97}

और क़यामत का सच्चा वायदा नज़दीक आ जाए तो फिर काफ़िरों की आँखे एक दम से पथरा दी जाएँ (और कहने लगे) हाय हमारी शामत कि हम तो इस (दिन) से ग़फलत ही में (पड़े) रहे बल्कि (सच तो यूँ है कि अपने ऊपर) हम आप ज़ालिम थे (97)

इकतराबा लिन्नास

إِنَّكُمْ وَمَا تَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللَّهِ حَصَبُ جَهَنَّمَ أَنتُمْ لَهَا وَارِدُونَ {98}

(उस दिन किहा जाएगा कि ऐ कुफ़्फ़ार) तुम और जिस चीज़ की तुम खु़दा के सिवा परसतिश करते थे यक़ीनन जहन्नुम की ईधन (जलावन) होंगे (और) तुम सबको उसमें उतरना पड़ेगा (98)

इकतराबा लिन्नास

لَوْ كَانَ هَؤُلَاء آلِهَةً مَّا وَرَدُوهَا وَكُلٌّ فِيهَا خَالِدُونَ {99}

अगर ये (सच्चे) माबूद होते तो उन्हें दोज़ख़ में न जाना पड़ता और (अब तो) सबके सब उसी में हमेशा रहेंगे (99)

इकतराबा लिन्नास

لَهُمْ فِيهَا زَفِيرٌ وَهُمْ فِيهَا لَا يَسْمَعُونَ {100}

उन लोगों की दोज़ख़ में चिंघाड़ होगी और ये लोग (अपने शोर व ग़ुल में) किसी की बात भी न सुन सकेंगे (100)

इकतराबा लिन्नास

إِنَّ الَّذِينَ سَبَقَتْ لَهُم مِّنَّا الْحُسْنَى أُوْلَئِكَ عَنْهَا مُبْعَدُونَ {101}

ज़बान अलबत्ता जिन लोगों के वास्ते हमारी तरफ से पहले ही भलाई (तक़दीर में लिखी जा चुकी) वह लोग दोज़ख़ से दूर ही दूर रखे जाएँगे (101)

इकतराबा लिन्नास

لَا يَسْمَعُونَ حَسِيسَهَا وَهُمْ فِي مَا اشْتَهَتْ أَنفُسُهُمْ خَالِدُونَ {102}

(यहाँ तक) कि ये लोग उसकी भनक भी न सुनेंगे और ये लोग हमेशा अपनी मनमाँगी मुरादों में (चैन से) रहेंगे (102)

इकतराबा लिन्नास

لَا يَحْزُنُهُمُ الْفَزَعُ الْأَكْبَرُ وَتَتَلَقَّاهُمُ الْمَلَائِكَةُ هَذَا يَوْمُكُمُ الَّذِي كُنتُمْ تُوعَدُونَ {103}

और उनको (क़यामत का) बड़े से बड़ा ख़ौफ़ भी दहशत में न लाएगा और फ़रिश्ते उन से खु़शी-खु़शी मुलाक़ात करेंगे और ये खु़शख़बरी देंगे कि यही वह तुम्हारा (खु़शी का) दिन है जिसका (दुनिया में) तुमसे वायदा किया जाता था (103)

इकतराबा लिन्नास

يَوْمَ نَطْوِي السَّمَاء كَطَيِّ السِّجِلِّ لِلْكُتُبِ كَمَا بَدَأْنَا أَوَّلَ خَلْقٍ نُّعِيدُهُ وَعْدًا عَلَيْنَا إِنَّا كُنَّا فَاعِلِينَ {104}

(ये) वह दिन (होगा) जब हम आसमान को इस तरह लपेटेंगे जिस तरह ख़तों का तूमार लपेटा जाता है जिस तरह हमने (मख़लूक़ात को) पहली बार पैदा किया था (उसी तरह) दोबारा (पैदा) कर छोड़ेगें (ये वह) वायदा (है जिसका करना) हम पर (लाजि़म) है और हम उसे ज़रूर करके रहेंगे (104)

इकतराबा लिन्नास

وَلَقَدْ كَتَبْنَا فِي الزَّبُورِ مِن بَعْدِ الذِّكْرِ أَنَّ الْأَرْضَ يَرِثُهَا عِبَادِيَ الصَّالِحُونَ {105}

और हमने तो नसीहत (तौरेत) के बाद यक़ीनन जुबूर में लिख ही दिया था कि रूए ज़मीन के वारिस हमारे नेक बन्दे होंगे (105)

इकतराबा लिन्नास

إِنَّ فِي هَذَا لَبَلَاغًا لِّقَوْمٍ عَابِدِينَ {106}

इसमें शक नहीं कि इसमें इबादत करने वालों के लिए (एहकामें खु़दा की) तबलीग़ है (106)

इकतराबा लिन्नास

وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا رَحْمَةً لِّلْعَالَمِينَ {107}

और (ऐ रसूल) हमने तो तुमको सारे दुनिया जहाँन के लोगों के हक़ में अज़सरतापा रहमत बनाकर भेजा (107)

इकतराबा लिन्नास

قُلْ إِنَّمَا يُوحَى إِلَيَّ أَنَّمَا إِلَهُكُمْ إِلَهٌ وَاحِدٌ فَهَلْ أَنتُم مُّسْلِمُونَ {108}

तुम कह दो कि मेरे पास तो बस यही “वही” आई है कि तुम लोगों का माबूद बस यकता खु़दा है तो क्या तुम (उसके) फरमाबरदार बन्दे बनते हो (108)

इकतराबा लिन्नास

فَإِن تَوَلَّوْا فَقُلْ آذَنتُكُمْ عَلَى سَوَاء وَإِنْ أَدْرِي أَقَرِيبٌ أَم بَعِيدٌ مَّا تُوعَدُونَ {109}

फिर अगर ये लोग (उस पर भी) मुँह फेरें तो तुम कह दो कि मैंने तुम सबको यकसाँ ख़बर कर दी है और मैं नहीं जानता कि जिस (अज़ाब) का तुमसे वायदा किया गया है क़रीब आ पहुँचा या (अभी) दूर है (109)

इकतराबा लिन्नास

إِنَّهُ يَعْلَمُ الْجَهْرَ مِنَ الْقَوْلِ وَيَعْلَمُ مَا تَكْتُمُونَ {110}

इसमें शक नहीं कि वह उस बात को भी जानता है जो पुकार कर कही जाती है और जिसे तुम लोग छिपाते हो उससे भी खू़ब वाकि़फ है (110)

इकतराबा लिन्नास

وَإِنْ أَدْرِي لَعَلَّهُ فِتْنَةٌ لَّكُمْ وَمَتَاعٌ إِلَى حِينٍ {111}

और मैं ये भी नहीं जानता कि शायद ये (ताख़ीरे अज़ाब तुम्हारे) वास्ते इम्तिहान हो और एक मोअययन मुद्दत तक (तुम्हारे लिए) चैन हो (111)

इकतराबा लिन्नास

قَالَ رَبِّ احْكُم بِالْحَقِّ وَرَبُّنَا الرَّحْمَنُ الْمُسْتَعَانُ عَلَى مَا تَصِفُونَ {112}

(आखि़र) रसूल ने दुआ की ऐ मेरे पालने वाले तू ठीक-ठीक मेरे और काफिरों के दरम्यिान फैसला कर दे और हमार परवरदिगार बड़ा मेहरबान है कि उसी से इन बातों में मदद माँगी जाती है जो तुम लोग बयान करते हो (112)

इकतराबा लिन्नास

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

खु़दा के नाम से शुरू करता हूँ जो बड़ा रहम वाला निहायत मेहरबान है 

इकतराबा लिन्नास

يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُوا رَبَّكُمْ إِنَّ زَلْزَلَةَ السَّاعَةِ شَيْءٌ عَظِيمٌ {1}

ऐ लोगों अपने परवरदिगार से डरते रहो (क्योंकि) क़यामत का ज़लज़ला (कोई मामूली नहीं) एक बड़ी (सख़्त) चीज़ है (1)

इकतराबा लिन्नास

يَوْمَ تَرَوْنَهَا تَذْهَلُ كُلُّ مُرْضِعَةٍ عَمَّا أَرْضَعَتْ وَتَضَعُ كُلُّ ذَاتِ حَمْلٍ حَمْلَهَا وَتَرَى النَّاسَ سُكَارَى وَمَا هُم بِسُكَارَى وَلَكِنَّ عَذَابَ اللَّهِ شَدِيدٌ {2}

जिस दिन तुम उसे देख लोगे तो हर दूध पिलाने वाली (डर के मारे) अपने दूध पीते (बच्चे) को भूल जायेगी और सारी हामला औरते अपने-अपने हमल (दैहशत से) गिरा देगी और (घबराहट में) लोग तुझे मतवाले मालूम होंगे हालाँकि वह मतवाले नहीं हैं बल्कि खु़दा का अज़ाब बहुत सख़्त है कि लोग बदहवास हो रहे हैं (2)

इकतराबा लिन्नास

وَمِنَ النَّاسِ مَن يُجَادِلُ فِي اللَّهِ بِغَيْرِ عِلْمٍ وَيَتَّبِعُ كُلَّ شَيْطَانٍ مَّرِيدٍ {3}

और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बग़ैर जाने खु़दा के बारे में (ख़्वाहम ख़्वाह) झगड़ते हैं और हर सरकश शैतान के पीछे हो लेते हैं (3)

इकतराबा लिन्नास

كُتِبَ عَلَيْهِ أَنَّهُ مَن تَوَلَّاهُ فَأَنَّهُ يُضِلُّهُ وَيَهْدِيهِ إِلَى عَذَابِ السَّعِيرِ {4}

जिन (की पेशानी) के ऊपर (ख़ते तक़दीर से) लिखा जा चुका है कि जिसने उससे दोस्ती की हो तो ये यक़ीनन उसे गुमराह करके छोड़ेगा और दोज़क़ के अज़ाब तक पहुँचा देगा (4)

इकतराबा लिन्नास

يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِن كُنتُمْ فِي رَيْبٍ مِّنَ الْبَعْثِ فَإِنَّا خَلَقْنَاكُم مِّن تُرَابٍ ثُمَّ مِن نُّطْفَةٍ ثُمَّ مِنْ عَلَقَةٍ ثُمَّ مِن مُّضْغَةٍ مُّخَلَّقَةٍ وَغَيْرِ مُخَلَّقَةٍ لِّنُبَيِّنَ لَكُمْ وَنُقِرُّ فِي الْأَرْحَامِ مَا نَشَاء إِلَى أَجَلٍ مُّسَمًّى ثُمَّ نُخْرِجُكُمْ طِفْلًا ثُمَّ لِتَبْلُغُوا أَشُدَّكُمْ وَمِنكُم مَّن يُتَوَفَّى وَمِنكُم مَّن يُرَدُّ إِلَى أَرْذَلِ الْعُمُرِ لِكَيْلَا يَعْلَمَ مِن بَعْدِ عِلْمٍ شَيْئًا وَتَرَى الْأَرْضَ هَامِدَةً فَإِذَا أَنزَلْنَا عَلَيْهَا الْمَاء اهْتَزَّتْ وَرَبَتْ وَأَنبَتَتْ مِن كُلِّ زَوْجٍ بَهِيجٍ {5}

लोगों अगर तुमको (मरने के बाद) दोबारा जी उठने में किसी तरह का शक है तो इसमें शक नहीं कि हमने तुम्हें शुरू-शुरू मिट्टी से उसके बाद नुत्फे से उसके बाद जमे हुए ख़ून से फिर उस लोथड़े से जो पूरा (सूडौल) हो या अधूरा हो पैदा किया ताकि तुम पर (अपनी कु़दरत) ज़ाहिर करें (फिर तुम्हारा दोबारा जि़न्दा) करना क्या मुश्किल है और हम औरतों के पेट में जिस (नुत्फे) को चाहते हैं एक मुद्दत मुअय्यन तक ठहरा रखते हैं फिर तुमको बच्चा बनाकर निकालते हैं फिर (तुम्हें पालते हैं) ताकि तुम अपनी जवानी को पहुँचो और तुममें से कुछ लोग तो ऐसे हैं जो (क़ब्ल बुढ़ापे के) मर जाते हैं और तुम में से कुछ लोग ऐसे हैं जो नाकारा जि़न्दगी बुढ़ापे तक फेर लाए जाते हैं ताकि समझने के बाद सठिया के कुछ भी (ख़ाक) न समझ सकें और तो ज़मीन को मुर्दा (बेकार उफ़तदाह) देख रहा है फिर जब हम उस पर पानी बरसा देते हैं तो लहलहाने और उभरने लगती है और हर तरह की ख़ु़शनुमा चीज़ें उगती है तो ये क़ुदरत के तमाशे इसलिए दिखाते हैं ताकि तुम जानो (5)

इकतराबा लिन्नास

ذَلِكَ بِأَنَّ اللَّهَ هُوَ الْحَقُّ وَأَنَّهُ يُحْيِي الْمَوْتَى وَأَنَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ {6}

कि बेशक खु़दा बरहक़ है और (ये भी कि) बेशक वही मुर्दों को जिलाता है और वह यक़ीनन हर चीज़ पर क़ादिर है (6)

इकतराबा लिन्नास

وَأَنَّ السَّاعَةَ آتِيَةٌ لَّا رَيْبَ فِيهَا وَأَنَّ اللَّهَ يَبْعَثُ مَن فِي الْقُبُورِ {7}

और क़यामत यक़ीनन आने वाली है इसमें कोई शक नहीं और बेशक जो लोग क़ब्रों में हैं उनको खु़दा दोबारा जि़न्दा करेगा (7)

इकतराबा लिन्नास

وَمِنَ النَّاسِ مَن يُجَادِلُ فِي اللَّهِ بِغَيْرِ عِلْمٍ وَلَا هُدًى وَلَا كِتَابٍ مُّنِيرٍ {8}

और लोगों में से कुछ ऐसे भी है जो बेजाने बूझे बे हिदायत पाए बगै़र रौशन किताब के (जो उसे राह बताए) खु़दा की आयतों से मुँह मोड़े (8)

इकतराबा लिन्नास

ثَانِيَ عِطْفِهِ لِيُضِلَّ عَن سَبِيلِ اللَّهِ لَهُ فِي الدُّنْيَا خِزْيٌ وَنُذِيقُهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ عَذَابَ الْحَرِيقِ {9}

(ख़्वाहम ख़्वाह) खु़दा के बारे में लड़ने मरने पर तैयार है ताकि (लोगों को) ख़ुदा की राह से बहका दे ऐसे (ना बुकार) के लिए दुनिया में (भी) रूसवाई है और क़यामत के दिन (भी) हम उसे जहन्नुम के अज़ाब (का मज़ा) चखाएँगे (9)

इकतराबा लिन्नास

ذَلِكَ بِمَا قَدَّمَتْ يَدَاكَ وَأَنَّ اللَّهَ لَيْسَ بِظَلَّامٍ لِّلْعَبِيدِ {10}

और उस वक़्त उससे कहा जाएगा कि ये उन आमाल की सज़ा है जो तेरे हाथों ने पहले से किए हैं और बेशक खु़दा बन्दों पर हरगिज़ जु़ल्म नहीं करता (10)

इकतराबा लिन्नास

وَمِنَ النَّاسِ مَن يَعْبُدُ اللَّهَ عَلَى حَرْفٍ فَإِنْ أَصَابَهُ خَيْرٌ اطْمَأَنَّ بِهِ وَإِنْ أَصَابَتْهُ فِتْنَةٌ انقَلَبَ عَلَى وَجْهِهِ خَسِرَ الدُّنْيَا وَالْآخِرَةَ ذَلِكَ هُوَ الْخُسْرَانُ الْمُبِينُ {11}

और लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं जो एक किनारे पर (खड़े होकर) खु़दा की इबादत करता है तो अगर उसको कोई फायदा पहुँच गया तो उसकी वजह से मुतमईन हो गया और अगर कहीं उस कोई मुसीबत छू भी गयी तो (फौरन) मुँह फेर के (कुफ़्र की तरफ़) पलट पड़ा उसने दुनिया और आखे़रत (दोनों) का घाटा उठाया यही तो सरीही घाटा है (11)

इकतराबा लिन्नास

يَدْعُو مِن دُونِ اللَّهِ مَا لَا يَضُرُّهُ وَمَا لَا يَنفَعُهُ ذَلِكَ هُوَ الضَّلَالُ الْبَعِيدُ {12}

खु़दा को छोड़कर उन चीज़ों को (हाजत के वक़्त) बुलाता है जो न उसको नुक़सान ही पहुँचा सकते हैं और न कुछ नफ़ा ही पहुँचा सकते हैं (12)

इकतराबा लिन्नास

يَدْعُو لَمَن ضَرُّهُ أَقْرَبُ مِن نَّفْعِهِ لَبِئْسَ الْمَوْلَى وَلَبِئْسَ الْعَشِيرُ {13}

यही तो पल्ले दर्जे की गुमराही है और उसको अपनी हाजत रवाई के लिए पुकारता है जिस का नुक़सान उसके नफ़े से ज़्यादा क़रीब है बेशक ऐसा मालिक भी बुरा और ऐसा रफीक़ भी बुरा (13)

इकतराबा लिन्नास

إِنَّ اللَّهَ يُدْخِلُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ إِنَّ اللَّهَ يَفْعَلُ مَا يُرِيدُ {14}

बेशक जिन लोगों ने ईमान कु़बूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उनको (खु़दा बेहश्त के) उन (हरे-भरे) बाग़ात में ले जाकर दाखि़ल करेगा जिनके नीचे नहरें जारी होगीं बेशक खु़दा जो चाहता है करता है (14)

इकतराबा लिन्नास

مَن كَانَ يَظُنُّ أَن لَّن يَنصُرَهُ اللَّهُ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ فَلْيَمْدُدْ بِسَبَبٍ إِلَى السَّمَاء ثُمَّ لِيَقْطَعْ فَلْيَنظُرْ هَلْ يُذْهِبَنَّ كَيْدُهُ مَا يَغِيظُ {15}

जो शख़्स (गु़स्से में) ये बदगुमानी करता है कि दुनिया और आख़ेरत में खु़दा उसकी हरगि़ज मदद न करेगा तो उसे चाहिए कि आसमान तक रस्सी ताने (और अपने गले में फाँसी डाल दे) फिर उसे काट दे (ताकि घुट कर मर जाए) फिर देखिए कि जो चीज़ उसे गुस्से में ला रही थी उसे उसकी तदबीर दूर दफ़ा कर देती है (15)

इकतराबा लिन्नास

وَكَذَلِكَ أَنزَلْنَاهُ آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ وَأَنَّ اللَّهَ يَهْدِي مَن يُرِيدُ {16}

(या नहीं) और हमने इस कु़रआन को यूँ ही वाजे़ए व रौशन निशानियाँ (बनाकर) नाजि़ल किया और बेशक खु़दा जिसकी चाहता है हिदायत करता है (16)

इकतराबा लिन्नास

إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَالَّذِينَ هَادُوا وَالصَّابِئِينَ وَالنَّصَارَى وَالْمَجُوسَ وَالَّذِينَ أَشْرَكُوا إِنَّ اللَّهَ يَفْصِلُ بَيْنَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ إِنَّ اللَّهَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ {17}

इसमें शक नहीं कि जिन लोगों ने ईमान कु़बूल किया (मुसलमान) और यहूदी और लामज़हब लोग और नुसैरा और मजूसी (आतिशपरस्त) और मुशरेकीन (कुफ़्फ़ार) यक़ीनन खु़दा उन लोगों के दरमियान क़यामत के दिन (ठीक ठीक) फ़ैसला कर देगा इसमें शक नहीं कि खु़दा हर चीज़ को देख रहा है (17)

इकतराबा लिन्नास

أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ يَسْجُدُ لَهُ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَمَن فِي الْأَرْضِ وَالشَّمْسُ وَالْقَمَرُ وَالنُّجُومُ وَالْجِبَالُ وَالشَّجَرُ وَالدَّوَابُّ وَكَثِيرٌ مِّنَ النَّاسِ وَكَثِيرٌ حَقَّ عَلَيْهِ الْعَذَابُ وَمَن يُهِنِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِن مُّكْرِمٍ إِنَّ اللَّهَ يَفْعَلُ مَا يَشَاء {18}

क्या तुमने इसको भी नहीं देखा कि जो लोग आसमानों में हैं और जो लोग ज़मीन में हैं और आफताब और माहताब और सितारे और पहाड़ और दरख़्त और चारपाए (ग़रज़ कुल मख़लूक़ात) और आदमियों में से बहुत से लोग सब खु़दा ही को सजदा करते हैं और बहुत से ऐसे भी हैं जिन पर नाफ़रमानी की वजह से अज़ाब का (का आना) लाजि़म हो चुका है और जिसको खु़दा ज़लील करे फिर उसका कोई इज़्ज़त देने वाला नहीं कुछ शक नहीं कि खु़दा जो चाहता है करता है (18) सजदा 

इकतराबा लिन्नास

هَذَانِ خَصْمَانِ اخْتَصَمُوا فِي رَبِّهِمْ فَالَّذِينَ كَفَرُوا قُطِّعَتْ لَهُمْ ثِيَابٌ مِّن نَّارٍ يُصَبُّ مِن فَوْقِ رُؤُوسِهِمُ الْحَمِيمُ {19}

ये दोनों (मोमिन व काफिर) दो फरीक़ हैं आपस में अपने परवरदिगार के बारे में लड़ते हैं ग़रज़ जो लोग काफि़र हो बैठे उनके लिए तो आग के कपड़े क़तअ किए गए हैं (वह उन्हें पहनाए जाएँगें और) उनके सरों पर खौलता हुआ पानी उँडेला जाएगा (19)

इकतराबा लिन्नास

يُصْهَرُ بِهِ مَا فِي بُطُونِهِمْ وَالْجُلُودُ {20}

जिस (की गर्मी) से जो कुछ उनके पेट में है (आँतें वग़ैरह) और खालें सब गल जाएँगी (20)

इकतराबा लिन्नास

وَلَهُم مَّقَامِعُ مِنْ حَدِيدٍ {21}

और उनके (मारने के) लिए लोहे के गुर्ज़ होंगे (21)

इकतराबा लिन्नास

كُلَّمَا أَرَادُوا أَن يَخْرُجُوا مِنْهَا مِنْ غَمٍّ أُعِيدُوا فِيهَا وَذُوقُوا عَذَابَ الْحَرِيقِ {22}

कि जब सदमें के मारे चाहेंगे कि दोज़ख़ से निकल भागें तो (ग़ुर्ज़ मार के) फिर उसके अन्दर ढकेल दिए जाएँगे और (उनसे कहा जाएगा कि) जलाने वाले अज़ाब के मज़े चखो (22)

इकतराबा लिन्नास

إِنَّ اللَّهَ يُدْخِلُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ يُحَلَّوْنَ فِيهَا مِنْ أَسَاوِرَ مِن ذَهَبٍ وَلُؤْلُؤًا وَلِبَاسُهُمْ فِيهَا حَرِيرٌ {23}

जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे अच्छे काम भी किए उनको खु़दा बेहश्त के ऐसे हरे-भरे बाग़ों में दाखि़ल फरमाएगा जिनके नीचे नहरे जारी होगी उन्हें वहाँ सोने के कंगन और मोती (के हार) से सँवारा जाएगा और उनका लिबास वहाँ रेशमी होगा (23)

इकतराबा लिन्नास

وَهُدُوا إِلَى الطَّيِّبِ مِنَ الْقَوْلِ وَهُدُوا إِلَى صِرَاطِ الْحَمِيدِ {24}

और (ये इस वजह से कि दुनिया में) उन्हें अच्छी बात (कलमा ए तौहीद) की हिदायत की गई और उन्हें सज़ावार हम्द (खु़दा) का रास्ता दिखाया गया (24)

इकतराबा लिन्नास

إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا وَيَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ اللَّهِ وَالْمَسْجِدِ الْحَرَامِ الَّذِي جَعَلْنَاهُ لِلنَّاسِ سَوَاء الْعَاكِفُ فِيهِ وَالْبَادِ وَمَن يُرِدْ فِيهِ بِإِلْحَادٍ بِظُلْمٍ نُذِقْهُ مِنْ عَذَابٍ أَلِيمٍ {25}

बेशक जो लोग काफिर हो बैठे और खु़दा की राह से और मस्जिदें मोहतरम (ख़ाना ए काबा) से जिसे हमने सब लोगों के लिए (मईद) बनाया है (और) इसमें शहरी और बैरूनी सबका हक़ बराबर है (लोगों को) रोकते हैं (उनको) और जो शख़्स इसमें शरारत से गुमराही करे उसको हम दर्दनाक अज़ाब का मज़ा चखा देंगे (25)

इकतराबा लिन्नास

وَإِذْ بَوَّأْنَا لِإِبْرَاهِيمَ مَكَانَ الْبَيْتِ أَن لَّا تُشْرِكْ بِي شَيْئًا وَطَهِّرْ بَيْتِيَ لِلطَّائِفِينَ وَالْقَائِمِينَ وَالرُّكَّعِ السُّجُودِ {26}

और (ऐ रसूल वह वक़्त याद करो) जब हमने इबराहीम के ज़रिये से इबराहीम के वास्ते ख़ानए काबा की जगह ज़ाहिर कर दी (और उनसे कहा कि) मेरा किसी चीज़ को शरीक न बनाना और मेरे घर केा तवाफ़ और क़याम और रूकू सुजूद करने वालों के वास्ते साफ सुथरा रखना (26)

इकतराबा लिन्नास

وَأَذِّن فِي النَّاسِ بِالْحَجِّ يَأْتُوكَ رِجَالًا وَعَلَى كُلِّ ضَامِرٍ يَأْتِينَ مِن كُلِّ فَجٍّ عَمِيقٍ {27}

और लोगों को हज की ख़बर कर दो कि लोग तुम्हारे पास (ज़ूक दर ज़ूक) ज़्यादा और हर तरह की दुबली (सवारियों पर जो राह दूर दराज़ तय करके आयी होगी चढ़-चढ़ के) आ पहुँचेगें (27)

इकतराबा लिन्नास

لِيَشْهَدُوا مَنَافِعَ لَهُمْ وَيَذْكُرُوا اسْمَ اللَّهِ فِي أَيَّامٍ مَّعْلُومَاتٍ عَلَى مَا رَزَقَهُم مِّن بَهِيمَةِ الْأَنْعَامِ فَكُلُوا مِنْهَا وَأَطْعِمُوا الْبَائِسَ الْفَقِيرَ {27}

ताकि अपने (दुनिया व आखे़रत के) फायदो पर फायज़ हों और खु़दा ने जो जानवर चारपाए उन्हें अता फ़रमाए उनपर (जि़बाह के वक़्त) चन्द मोअययन दिनों में खु़दा का नाम लें तो तुम लोग कु़रबानी के गोश्त खु़द भी खाओ और भूखे मोहताज केा भी खिलाओ (28)

इकतराबा लिन्नास

ثُمَّ لْيَقْضُوا تَفَثَهُمْ وَلْيُوفُوا نُذُورَهُمْ وَلْيَطَّوَّفُوا بِالْبَيْتِ الْعَتِيقِ {29}

फिर लोगों को चाहिए कि अपनी-अपनी (बदन की) कशाफ्त दूर करें और अपनी नज़रें पूरी करें और क़दीम (इबादत) ख़ाना ए काबा का तवाफ़ करें यही हुक्म है (29)

इकतराबा लिन्नास

ذَلِكَ وَمَن يُعَظِّمْ حُرُمَاتِ اللَّهِ فَهُوَ خَيْرٌ لَّهُ عِندَ رَبِّهِ وَأُحِلَّتْ لَكُمُ الْأَنْعَامُ إِلَّا مَا يُتْلَى عَلَيْكُمْ فَاجْتَنِبُوا الرِّجْسَ مِنَ الْأَوْثَانِ وَاجْتَنِبُوا قَوْلَ الزُّورِ {30}

और इसके अलावा जो शख़्स खु़दा की हुरमत वाली चीज़ों की ताज़ीम करेगा तो ये उसके पवरदिगार के यहाँ उसके हक़ में बेहतर है और उन जानवरों के अलावा जो तुमसे बयान किए जाँएगे कुल चारपाए तुम्हारे वास्ते हलाल किए गए तो तुम नापाक बुतों से बचे रहो और लग़ो बातें गाने वग़ैरह से बचे रहो (30)

इकतराबा लिन्नास

حُنَفَاء لِلَّهِ غَيْرَ مُشْرِكِينَ بِهِ وَمَن يُشْرِكْ بِاللَّهِ فَكَأَنَّمَا خَرَّ مِنَ السَّمَاء فَتَخْطَفُهُ الطَّيْرُ أَوْ تَهْوِي بِهِ الرِّيحُ فِي مَكَانٍ سَحِيقٍ {31}

निरे खुरे अल्लाह के होकर (रहो) उसका किसी को शरीक न बनाओ और जिस शख़्स ने (किसी को) खु़दा का शरीक बनाया तो गोया कि वह आसमान से गिर पड़ा फिर उसको (या तो दरम्यिान ही से) कोई (मुरदा ख़्ववार) चिडि़या उचक ले गई या उसे हवा के झोंके ने बहुत दूर जा फेंका (31)

इकतराबा लिन्नास

ذَلِكَ وَمَن يُعَظِّمْ شَعَائِرَ اللَّهِ فَإِنَّهَا مِن تَقْوَى الْقُلُوبِ {32}

ये (याद रखो) और जिस शख़्स ने खु़दा की निशानियों की ताज़ीम की तो कुछ शक नहीं कि ये भी दिलों की परहेज़गारी से हासिल होती है (32)

इकतराबा लिन्नास

لَكُمْ فِيهَا مَنَافِعُ إِلَى أَجَلٍ مُّسَمًّى ثُمَّ مَحِلُّهَا إِلَى الْبَيْتِ الْعَتِيقِ {33}

और इन चार पायों में एक मईन मुद्दत तक तुम्हार लिये बहुत से फायदें हैं फिर उनके जि़बाह होने की जगह क़दीम (इबादत) ख़ाना ए काबा है (33)

इकतराबा लिन्नास

وَلِكُلِّ أُمَّةٍ جَعَلْنَا مَنسَكًا لِيَذْكُرُوا اسْمَ اللَّهِ عَلَى مَا رَزَقَهُم مِّن بَهِيمَةِ الْأَنْعَامِ فَإِلَهُكُمْ إِلَهٌ وَاحِدٌ فَلَهُ أَسْلِمُوا وَبَشِّرِ الْمُخْبِتِينَ {34}

और हमने तो हर उम्मत के वास्ते क़ुरबानी का तरीक़ा मुक़र्रर कर दिया है ताकि जो मवेशी चारपाए खु़दा ने उन्हें अता किए हैं उन पर (जि़बाह के वक़्त) खु़दा का नाम ले ग़रज़ तुम लोगों का माबूद (वही) यकता खु़दा है तो उसी के फरमाबरदार बन जाओ (34)

इकतराबा लिन्नास

الَّذِينَ إِذَا ذُكِرَ اللَّهُ وَجِلَتْ قُلُوبُهُمْ وَالصَّابِرِينَ عَلَى مَا أَصَابَهُمْ وَالْمُقِيمِي الصَّلَاةِ وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنفِقُونَ {35}

और (ऐ रसूल हमारे) गिड़गिड़ाने वाले बन्दों को (बेहश्त की) खु़शख़बरी दे दो ये वो हैं कि जब (उनके सामने) खु़दा का नाम लिया जाता है तो उनके दिल सहम जाते हैं और जब उनपर कोई मुसीबत आ पड़े तो सब्र करते हैं और नमाज़ पाबन्दी से अदा करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दे रखा है उसमें से (राहे खु़दा में) ख़र्च करते हैं (35)

इकतराबा लिन्नास

وَالْبُدْنَ جَعَلْنَاهَا لَكُم مِّن شَعَائِرِ اللَّهِ لَكُمْ فِيهَا خَيْرٌ فَاذْكُرُوا اسْمَ اللَّهِ عَلَيْهَا صَوَافَّ فَإِذَا وَجَبَتْ جُنُوبُهَا فَكُلُوا مِنْهَا وَأَطْعِمُوا الْقَانِعَ وَالْمُعْتَرَّ كَذَلِكَ سَخَّرْنَاهَا لَكُمْ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ {36}

और कु़रबानी (मोटे गदबदे) ऊँट भी हमने तुम्हारे वास्ते खु़दा की निशानियों में से क़रार दिया है इसमें तुम्हारी बहुत सी भलाईयाँ हैं फिर उनका तांते का तांता बाँध कर हज करो और उस वक़्त उन पर खु़दा का नाम लो फिर जब उनके दस्त व बाजू कटकर गिर पड़े तो उन्हीं से तुम खु़द भी खाओ और क़नाअत पेशा फ़क़ीरों और माँगने वाले मोहताजों (दोनों) को भी खिलाओ हमने यूँ इन जानवरों को तुम्हारा ताबेए कर दिया ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो (36)

इकतराबा लिन्नास

لَن يَنَالَ اللَّهَ لُحُومُهَا وَلَا دِمَاؤُهَا وَلَكِن يَنَالُهُ التَّقْوَى مِنكُمْ كَذَلِكَ سَخَّرَهَا لَكُمْ لِتُكَبِّرُوا اللَّهَ عَلَى مَا هَدَاكُمْ وَبَشِّرِ الْمُحْسِنِينَ {37}

खु़दा तक न तो हरगिज़ उनके गोश्त ही पहुँचेगे और न खू़न मगर (हाँ) उस तक तुम्हारी परहेज़गारी अलबत्ता पहुँचेगी ख़ुदा ने जानवरों को (इसलिए) यूँ तुम्हारे क़ाबू में कर दिया है ताकि जिस तरह खु़दा ने तुम्हें बनाया है उसी तरह उसकी बड़ाई करो (37)

इकतराबा लिन्नास

إِنَّ اللَّهَ يُدَافِعُ عَنِ الَّذِينَ آمَنُوا إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ كُلَّ خَوَّانٍ كَفُورٍ {38}

और (ऐ रसूल) नेकी करने वालों को (हमेशा की) ख़ु़शख़बरी दे दो इसमें शक नहीं कि खु़दा ईमानवालों से कुफ़्फ़ार को दूर दफा करता रहता है खु़दा किसी बद दयानत नाशुक्रे को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता (38)

इकतराबा लिन्नास

أُذِنَ لِلَّذِينَ يُقَاتَلُونَ بِأَنَّهُمْ ظُلِمُوا وَإِنَّ اللَّهَ عَلَى نَصْرِهِمْ لَقَدِيرٌ {39}

जिन (मुसलमानों) से (कुफ़्फ़ार) लड़ते थे चूँकि वह (बहुत) सताए गए उस वजह से उन्हें भी (जिहाद) की इजाज़त दे दी गई और खु़दा तो उन लोगों की मदद पर यक़ीनन क़ादिर (व तवाना) है (39)

इकतराबा लिन्नास

الَّذِينَ أُخْرِجُوا مِن دِيَارِهِمْ بِغَيْرِ حَقٍّ إِلَّا أَن يَقُولُوا رَبُّنَا اللَّهُ وَلَوْلَا دَفْعُ اللَّهِ النَّاسَ بَعْضَهُم بِبَعْضٍ لَّهُدِّمَتْ صَوَامِعُ وَبِيَعٌ وَصَلَوَاتٌ وَمَسَاجِدُ يُذْكَرُ فِيهَا اسْمُ اللَّهِ كَثِيراً وَلَيَنصُرَنَّ اللَّهُ مَن يَنصُرُهُ إِنَّ اللَّهَ لَقَوِيٌّ عَزِيزٌ {40}

ये वह (मज़लूम हैं जो बेचारे) सिर्फ इतनी बात कहने पर कि हमारा परवरदिगार खु़दा है (नाहक़) अपने-अपने घरों से निकाल दिए गये और अगर खु़दा लोगों को एक दूसरे से दूर दफ़ा न करता रहता तो गिरजे और यहूदियों के इबादत ख़ाने और मजूस के इबादतख़ाने और मस्जिद जिनमें कसरत से खु़दा का नाम लिया जाता है कब के कब ढहा दिए गए होते और जो शख़्स खु़दा की मदद करेगा खु़दा भी अलबत्ता उसकी मदद ज़रूर करेगा बेशक खु़दा ज़रूर ज़बरदस्त ग़ालिब है (40)

इकतराबा लिन्नास

الَّذِينَ إِن مَّكَّنَّاهُمْ فِي الْأَرْضِ أَقَامُوا الصَّلَاةَ وَآتَوُا الزَّكَاةَ وَأَمَرُوا بِالْمَعْرُوفِ وَنَهَوْا عَنِ الْمُنكَرِ وَلِلَّهِ عَاقِبَةُ الْأُمُورِ {41}

ये वह लोग हैं कि अगर हम इन्हें रूए ज़मीन पर क़ाबू दे दे तो भी यह लोग पाबन्दी से नमाजे अदा करेंगे और ज़कात देंगे और अच्छे-अच्छे काम का हुक्म करेंगे और बुरी बातों से (लोगों को) रोकेंगे और (यूँ तो) सब कामों का अन्जाम खु़दा ही के एख़्तेयार में है (41)

इकतराबा लिन्नास

وَإِن يُكَذِّبُوكَ فَقَدْ كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ وَعَادٌ وَثَمُودُ {42}

और (ऐ रसूल) अगर ये (कुफ़्फ़ार) तुमको झुठलाते हैं तो कोइ ताज्जुब की बात नहीं उनसे पहले नूह की क़ौम और (क़ौमे आद और समूद) (42)

इकतराबा लिन्नास

وَقَوْمُ إِبْرَاهِيمَ وَقَوْمُ لُوطٍ {43}

और इबराहीम की क़ौम और लूत की क़ौम (43)

इकतराबा लिन्नास

وَأَصْحَابُ مَدْيَنَ وَكُذِّبَ مُوسَى فَأَمْلَيْتُ لِلْكَافِرِينَ ثُمَّ أَخَذْتُهُمْ فَكَيْفَ كَانَ نَكِيرِ {44}

और मदीन के रहने वाले (अपने-अपने पैग़म्बरों को) झुठला चुके हैं और मूसा (भी) झुठलाए जा चुके हैं तो मैंने काफिरों को चन्द ढील दे दी फिर (आखि़र) उन्हें ले डाला तो तुमने देखा मेरा अज़ाब कैसा था (44)

इकतराबा लिन्नास

فَكَأَيِّن مِّن قَرْيَةٍ أَهْلَكْنَاهَا وَهِيَ ظَالِمَةٌ فَهِيَ خَاوِيَةٌ عَلَى عُرُوشِهَا وَبِئْرٍ مُّعَطَّلَةٍ وَقَصْرٍ مَّشِيدٍ {45}

ग़रज़ कितनी बस्तियाँ हैं कि हम ने उन्हें बरबाद कर दिया और वह सरकश थीं पस वह अपनी छतों पर ढही पड़ी हैं और कितने बेकार (उजडे़ कुएँ और कितने) मज़बूत बड़े-बड़े ऊँचे महल (वीरान हो गए) (45)

इकतराबा लिन्नास

أَفَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَتَكُونَ لَهُمْ قُلُوبٌ يَعْقِلُونَ بِهَا أَوْ آذَانٌ يَسْمَعُونَ بِهَا فَإِنَّهَا لَا تَعْمَى الْأَبْصَارُ وَلَكِن تَعْمَى الْقُلُوبُ الَّتِي فِي الصُّدُورِ {46}

क्या ये लोग रूए ज़मीन पर चले फिरे नहीं ताकि उनके लिए ऐसे दिल होते हैं जैसे हक़ बातों को समझते या उनके ऐसे कान होते जिनके ज़रिए से (सच्ची बातों को) सुनते क्योंकि आँखें अंधी नहीं हुआ करती बल्कि दिल जो सीने में है वही अन्धे हो जाया करते हैं (46)

इकतराबा लिन्नास

وَيَسْتَعْجِلُونَكَ بِالْعَذَابِ وَلَن يُخْلِفَ اللَّهُ وَعْدَهُ وَإِنَّ يَوْمًا عِندَ رَبِّكَ كَأَلْفِ سَنَةٍ مِّمَّا تَعُدُّونَ {47}

और (ऐ रसूल) तुम से ये लोग अज़ाब के जल्द आने की तमन्ना रखते हैं और खु़दा तो हरगिज़ अपने वायदे के खि़लाफ नहीं करेगा और बेशक (क़यामत का) एक दिन तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक तुम्हारी गिनती के हिसाब से एक हज़ार बरस के बराबर है (47)

इकतराबा लिन्नास

وَكَأَيِّن مِّن قَرْيَةٍ أَمْلَيْتُ لَهَا وَهِيَ ظَالِمَةٌ ثُمَّ أَخَذْتُهَا وَإِلَيَّ الْمَصِيرُ {48}

और कितनी बस्तियाँ हैं कि मैंने उन्हें (चन्द) मोहलत दी हालाँकि वह सरकश थी फिर (आखि़र) मैंने उन्हें ले डाला और (सबको) मेरी तरफ लौटना है (48)

इकतराबा लिन्नास

قُلْ يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّمَا أَنَا لَكُمْ نَذِيرٌ مُّبِينٌ {49}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि लोगों में तो सिर्फ तुमको खुल्लम-खुल्ला (अज़ाब से) डराने वाला हूँ (49)

इकतराबा लिन्नास

فَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَرِزْقٌ كَرِيمٌ {50}

पस जिन लोगों ने ईमान कु़बूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए (आखि़रत में) उनके लिए बक़शिश है और बेहिश्त की बहुत उम्दा रोज़ी (50)

इकतराबा लिन्नास

وَالَّذِينَ سَعَوْا فِي آيَاتِنَا مُعَاجِزِينَ أُوْلَئِكَ أَصْحَابُ الْجَحِيمِ {51}

और जिन लोगों ने हमारी आयतों (के झुठलाने में हमारे) आजिज़ करने के वास्ते कोशिश की यही लोग तो जहन्नुमी हैं (51)

इकतराबा लिन्नास

وَمَا أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ مِن رَّسُولٍ وَلَا نَبِيٍّ إِلَّا إِذَا تَمَنَّى أَلْقَى الشَّيْطَانُ فِي أُمْنِيَّتِهِ فَيَنسَخُ اللَّهُ مَا يُلْقِي الشَّيْطَانُ ثُمَّ يُحْكِمُ اللَّهُ آيَاتِهِ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ {52}

और (ऐ रसूल) हमने तो तुमसे पहले जब कभी कोई रसूल और नबी भेजा तो ये ज़रूर हुआ कि जिस वक़्त उसने (तबलीग़े एहकाम की) आरज़ू की तो शैतान ने उसकी आरज़ू में (लोगों को बहका कर) क़लल डाल दिया फिर जो वस वसा शैतान डालता है खु़दा उसे मिटा देता है फिर अपने एहकाम को मज़बूत करता है और खु़दा तो बड़ा वाकि़फकार दाना है (52)

इकतराबा लिन्नास

لِيَجْعَلَ مَا يُلْقِي الشَّيْطَانُ فِتْنَةً لِّلَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ وَالْقَاسِيَةِ قُلُوبُهُمْ وَإِنَّ الظَّالِمِينَ لَفِي شِقَاقٍ بَعِيدٍ {53}

और शैतान जो (वसवसा) डालता (भी) है तो इसलिए ताकि खु़दा उसे उन लोगों के आज़माईश (का ज़रिया) क़रार दे जिनके दिलों में (कुफ़्र का) मर्ज़ है और जिनके दिल सख़्त हैं और बेशक (ये) ज़ालिम मुशरेकीन पल्ले दरजे की मुख़ालेफ़त में पड़े हैं (53)

इकतराबा लिन्नास

وَلِيَعْلَمَ الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ أَنَّهُ الْحَقُّ مِن رَّبِّكَ فَيُؤْمِنُوا بِهِ فَتُخْبِتَ لَهُ قُلُوبُهُمْ وَإِنَّ اللَّهَ لَهَادِ الَّذِينَ آمَنُوا إِلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ {54}

और (इसलिए भी) ताकि जिन लोगों को (कुतूबे समादी का) इल्म अता हुआ है वह जान लें कि ये (वही) बेशक तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से ठीक ठीक (नाजि़ल) हुई है फिर (ये ख़्याल करके) इस पर वह लोग ईमान लाए फिर उनके दिल खु़दा के सामने आजिज़ी करें और इसमें तो शक ही नहीं कि जिन लोगों ने ईमान कु़बूल किया उनको खु़दा सीधी राह तक पहुँचा देता है (54)

इकतराबा लिन्नास

وَلَا يَزَالُ الَّذِينَ كَفَرُوا فِي مِرْيَةٍ مِّنْهُ حَتَّى تَأْتِيَهُمُ السَّاعَةُ بَغْتَةً أَوْ يَأْتِيَهُمْ عَذَابُ يَوْمٍ عَقِيمٍ {55}

और जो लोग काफ़िर हो बैठे वह तो कु़राआन की तरफ से हमेशा शक ही में पड़े रहेंगे यहाँ तक कि क़यामत यकायक उनके सर पर आ मौजूद हो या (यूँ कहो कि) उनपर एक सख़्त मनहूस दिन का अज़ाब नाजि़ल हुआ (55)

इकतराबा लिन्नास

الْمُلْكُ يَوْمَئِذٍ لِّلَّهِ يَحْكُمُ بَيْنَهُمْ فَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فِي جَنَّاتِ النَّعِيمِ {56}

उस दिन की हुकूमत तो ख़ास खु़दा ही की होगी वह लोगों (के बाहमी एख़्तेलाफ) का फ़ैसला कर देगा तो जिन लोगों ने ईमान कु़बूल किया और अच्छे काम किए हैं वह नेअमतों के (भरे) हुए बाग़ात (बेहश्त) में रहेंगे (56)

इकतराबा लिन्नास

وَالَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا فَأُوْلَئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ مُّهِينٌ {57}

और जिन लोगों ने कुफ्र इक़तेयार किया और हमारी आयतों को झुठलाया तो यही वह (कम्बख़्त) लोग हैं (57)

इकतराबा लिन्नास

وَالَّذِينَ هَاجَرُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ ثُمَّ قُتِلُوا أَوْ مَاتُوا لَيَرْزُقَنَّهُمُ اللَّهُ رِزْقًا حَسَنًا وَإِنَّ اللَّهَ لَهُوَ خَيْرُ الرَّازِقِينَ {58}

जिनके लिए ज़लील करने वाला अज़ाब है जिन लोगों ने खु़दा की राह में अपने देस छोडे़ फिर शहीद किए गए या (आप अपनी मौत से) मर गए खु़दा उन्हें (आखि़रत में) ज़रूर उम्दा रोज़ी अता फ़रमाएगा (58)

इकतराबा लिन्नास

لَيُدْخِلَنَّهُم مُّدْخَلًا يَرْضَوْنَهُ وَإِنَّ اللَّهَ لَعَلِيمٌ حَلِيمٌ {59}

और बेशक तमाम रोज़ी देने वालों में खु़दा ही सबसे बेहतर है वह उन्हें ज़रूर ऐसी जगह (बेहिश्त) पहुँचा देगा जिससे वह निहाल हो जाएँगे (59)

इकतराबा लिन्नास

ذَلِكَ وَمَنْ عَاقَبَ بِمِثْلِ مَا عُوقِبَ بِهِ ثُمَّ بُغِيَ عَلَيْهِ لَيَنصُرَنَّهُ اللَّهُ إِنَّ اللَّهَ لَعَفُوٌّ غَفُورٌ {60}

और खु़दा तो बेशक बड़ा वाकि़फकार बुर्दवार है यही (ठीक) है और जो शख़्स (अपने दुश्मन को) उतना ही सताए जितना ये उसके हाथों से सताया गया था उसके बाद फिर (दोबारा दुशमन की तरफ़ से) उस पर ज़्यादती की जाए तो खु़दा उस मज़लूम की ज़रूर मदद करेगा (60)

इकतराबा लिन्नास

ذَلِكَ بِأَنَّ اللَّهَ يُولِجُ اللَّيْلَ فِي النَّهَارِ وَيُولِجُ النَّهَارَ فِي اللَّيْلِ وَأَنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ بَصِيرٌ {61}

बेशक खु़दा बड़ा माफ करने वाला बख़शने वाला है ये (मदद) इस वजह से दी जाएगी कि खु़दा (बड़ा क़ादिर है वही) तो रात को दिन में दाखि़ल करता है और दिन को रात में दाखि़ल करता है और इसमें भी शक नहीं कि खु़दा सब कुछ जानता है (61)

इकतराबा लिन्नास

ذَلِكَ بِأَنَّ اللَّهَ هُوَ الْحَقُّ وَأَنَّ مَا يَدْعُونَ مِن دُونِهِ هُوَ الْبَاطِلُ وَأَنَّ اللَّهَ هُوَ الْعَلِيُّ الْكَبِيرُ {62}

(और) इस वजह से (भी) कि यक़ीनन खु़दा ही बरहक़ है और उसके सिवा जिनको लोग (वक़्ते मुसीबत) पुकारा करते हैं (सबके सब) बातिल हैं और (ये भी) यक़ीनी (है कि) खु़दा ही (सबसे) बुलन्द मर्तबा बुज़ुर्ग है (62)

इकतराबा लिन्नास

أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ أَنزَلَ مِنَ السَّمَاء مَاء فَتُصْبِحُ الْأَرْضُ مُخْضَرَّةً إِنَّ اللَّهَ لَطِيفٌ خَبِيرٌ {63}

अरे क्या तूने इतना भी नहीं देखा कि खु़दा ही आसमान से पानी बरसाता है तो ज़मीन सर सब्ज़ (व शादाब) हो जाती है बेशक खु़दा (बन्दों के हाल पर) बड़ा मेहरबान वाकि़फ़कार है (63)

इकतराबा लिन्नास

لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَإِنَّ اللَّهَ لَهُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ {64}

जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है और इसमें तो शक ही नहीं कि खु़दा (सबसे) बेपरवाह (और) सज़ावार हम्द है (64)

इकतराबा लिन्नास

أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ سَخَّرَ لَكُم مَّا فِي الْأَرْضِ وَالْفُلْكَ تَجْرِي فِي الْبَحْرِ بِأَمْرِهِ وَيُمْسِكُ السَّمَاء أَن تَقَعَ عَلَى الْأَرْضِ إِلَّا بِإِذْنِهِ إِنَّ اللَّهَ بِالنَّاسِ لَرَؤُوفٌ رَّحِيمٌ {65}

क्या तूने उस पर भी नज़र न डाली कि जो कुछ रूए ज़मीन में है सबको खु़दा ही ने तुम्हारे क़ाबू में कर दिया है और कश्ती को (भी) जो उसके हुक्म से दरिया में चलती है और वही तो आसमान को रोके हुए है कि ज़मीन पर न गिर पड़े मगर (जब) उसका हुक्म होगा (तो गिर पडे़गा) इसमें शक नहीं कि खु़दा लोगों पर बड़ा मेहरबान व रहमवाला है (65)

इकतराबा लिन्नास

وَهُوَ الَّذِي أَحْيَاكُمْ ثُمَّ يُمِيتُكُمْ ثُمَّ يُحْيِيكُمْ إِنَّ الْإِنسَانَ لَكَفُورٌ {66}

और वही तो क़ादिर मुत्तलिक़ है जिसने तुमको (पहली बार माँ के पेट में) जिला उठाया फिर वही तुमको मार डालेगा फिर वही तुमको दोबारा जि़न्दगी देगा (66)

इकतराबा लिन्नास

لِكُلِّ أُمَّةٍ جَعَلْنَا مَنسَكًا هُمْ نَاسِكُوهُ فَلَا يُنَازِعُنَّكَ فِي الْأَمْرِ وَادْعُ إِلَى رَبِّكَ إِنَّكَ لَعَلَى هُدًى مُّسْتَقِيمٍ {67}

इसमें शक नहीं कि इन्सान बड़ा ही नाशुक्रा है (ऐ रसूल) हमने हर उम्मत के वास्ते एक तरीक़ा मुक़र्रर कर दिया कि वह इस पर चलते हैं फिर तो उन्हें इस दीन (इस्लाम) में तुम से झगड़ा न करना चाहिए और तुम (लोगों को) अपने परवरदिगार की तरफ़ बुलाए जाओ (67)

इकतराबा लिन्नास

وَإِن جَادَلُوكَ فَقُلِ اللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا تَعْمَلُونَ {68}

बेशक तुम सीधे रास्ते पर हो और अगर (इस पर भी) लोग तुमसे झगड़ा करें तो तुम कह दो कि जो कुछ तुम कर रहे हो खु़दा उससे खू़ब वाकि़फ़ है (68)

इकतराबा लिन्नास

اللَّهُ يَحْكُمُ بَيْنَكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فِيمَا كُنتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ {69}

जिन बातों में तुम बाहम झगड़ा करते थे क़यामत के दिन ख़ुदा तुम लोगों के दरम्यिान (ठीक) फ़ैसला कर देगा (69)

इकतराबा लिन्नास

أَلَمْ تَعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاء وَالْأَرْضِ إِنَّ ذَلِكَ فِي كِتَابٍ إِنَّ ذَلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرٌ {70}

(ऐ रसूल) क्या तुम नहीं जानते कि जो कुछ आसमान और ज़मीन में है खु़दा यक़ीनन जानता है उसमें तो शक नहीं कि ये सब (बातें) किताब (लौहे महफूज़) में (लिखी हुई मौजूद) हैं (70)

इकतराबा लिन्नास

وَيَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللَّهِ مَا لَمْ يُنَزِّلْ بِهِ سُلْطَانًا وَمَا لَيْسَ لَهُم بِهِ عِلْمٌ وَمَا لِلظَّالِمِينَ مِن نَّصِيرٍ {71}

बेशक ये (सब कुछ) खु़दा पर आसान है और ये लोग खु़दा को छोड़कर उन लोगों की इबादत करते हैं जिनके लिए न तो ख़ुदा ही ने कोई सनद नाजि़ल की है और न उस (के हक़ होने) का खु़द उन्हें इल्म है और क़यामत में तो ज़ालिमों का कोई मददगार भी नहीं होगा (71)

इकतराबा लिन्नास

وَإِذَا تُتْلَى عَلَيْهِمْ آيَاتُنَا بَيِّنَاتٍ تَعْرِفُ فِي وُجُوهِ الَّذِينَ كَفَرُوا الْمُنكَرَ يَكَادُونَ يَسْطُونَ بِالَّذِينَ يَتْلُونَ عَلَيْهِمْ آيَاتِنَا قُلْ أَفَأُنَبِّئُكُم بِشَرٍّ مِّن ذَلِكُمُ النَّارُ وَعَدَهَا اللَّهُ الَّذِينَ كَفَرُوا وَبِئْسَ الْمَصِيرُ {72}

और (ऐ रसूल) जब हमारी वाज़ेए व रौशन आयतें उनके सामने पढ़ कर सुनाई जाती हैं तो तुम (उन) काफ़िरों के चेहरों पर नाखु़शी के (आसार) देखते हो (यहाँ तक कि) क़रीब होता है कि जो लोग उनको हमारी आयातें पढ़कर सुनाते हैं उन पर ये लोग हमला कर बैठे (ऐ रसूल) तुम कह दो (कि) तो क्या मैं तुम्हें इससे भी कहीं बदतर चीज़ बता दूँ (अच्छा) तो सुन लो वह जहन्नुम है जिसमें झोंकने का वायदा खु़दा ने काफि़रों से किया है (72)

इकतराबा लिन्नास

يَا أَيُّهَا النَّاسُ ضُرِبَ مَثَلٌ فَاسْتَمِعُوا لَهُ إِنَّ الَّذِينَ تَدْعُونَ مِن دُونِ اللَّهِ لَن يَخْلُقُوا ذُبَابًا وَلَوِ اجْتَمَعُوا لَهُ وَإِن يَسْلُبْهُمُ الذُّبَابُ شَيْئًا لَّا يَسْتَنقِذُوهُ مِنْهُ ضَعُفَ الطَّالِبُ وَالْمَطْلُوبُ {73}

और वह क्या बुरा ठिकाना है लोगों एक मस्ल बयान की जाती है तो उसे कान लगा के सुनो कि खु़दा को छोड़कर जिन लोगों को तुम पुकारते हो वह लोग अगरचे सब के सब इस काम के लिए इकट्ठे भी हो जाएँ तो भी एक मक्खी तक पैदा नहीं कर सकते और कहीं मक्खी कुछ उनसे छीन ले जाए तो उससे उसको छुड़ा नहीं सकते (अजब लुत्फ है) कि माँगने वाला (आबिद) और जिससे माँग लिया (माबूद) दोनों कमज़ोर हैं (73)

इकतराबा लिन्नास

مَا قَدَرُوا اللَّهَ حَقَّ قَدْرِهِ إِنَّ اللَّهَ لَقَوِيٌّ عَزِيزٌ {74}

खु़दा की जैसे क़द्र करनी चाहिए उन लोगों ने न की इसमें शक नहीं कि खु़दा तो बड़ा ज़बरदस्त ग़ालिब है (74)

इकतराबा लिन्नास

اللَّهُ يَصْطَفِي مِنَ الْمَلَائِكَةِ رُسُلًا وَمِنَ النَّاسِ إِنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ بَصِيرٌ {75}

खु़दा फरिश्तों में से बाज़ को अपने एहकाम पहुँचाने के लिए मुन्तखि़ब कर लेता है (75)

इकतराबा लिन्नास

يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَإِلَى اللَّهِ تُرْجَعُ الأمُورُ {76}

और (इसी तरह) आदमियों में से भी बेशक खु़दा (सबकी) सुनता देखता है जो कुछ उनके सामने है और जो कुछ उनके पीछे (हो चुका है) (खु़दा सब कुछ) जानता है (76)

इकतराबा लिन्नास

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا ارْكَعُوا وَاسْجُدُوا وَاعْبُدُوا رَبَّكُمْ وَافْعَلُوا الْخَيْرَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ {77}

और तमाम उमूर की रूजूअ खु़दा ही की तरफ होती है ऐ ईमानवालों रूकू करो और सजदे करो और अपने परवरदिगार की इबादत करो और नेकी करो (77)

इकतराबा लिन्नास

وَجَاهِدُوا فِي اللَّهِ حَقَّ جِهَادِهِ هُوَ اجْتَبَاكُمْ وَمَا جَعَلَ عَلَيْكُمْ فِي الدِّينِ مِنْ حَرَجٍ مِّلَّةَ أَبِيكُمْ إِبْرَاهِيمَ هُوَ سَمَّاكُمُ الْمُسْلِمينَ مِن قَبْلُ وَفِي هَذَا لِيَكُونَ الرَّسُولُ شَهِيدًا عَلَيْكُمْ وَتَكُونُوا شُهَدَاء عَلَى النَّاسِ فَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ وَاعْتَصِمُوا بِاللَّهِ هُوَ مَوْلَاكُمْ فَنِعْمَ الْمَوْلَى وَنِعْمَ النَّصِيرُ {78}

ताकि तुम कामयाब हो और जो हक़ जिहाद करने का है खु़दा की राह में जिहाद करो उसी नें तुमको बरगुज़ीदा किया और उमूरे दीन में तुम पर किसी तरह की सख़्ती नहीं की तुम्हारे बाप इबराहीम के मजह़ब को (तुम्हारा मज़हब बना दिया उसी (खु़दा) ने तुम्हारा पहले ही से मुसलमान (फरमाबरदार बन्दे) नाम रखा और कु़राआन में भी (तो जिहाद करो) ताकि रसूल तुम्हारे मुक़ाबले में गवाह बने और तुम पाबन्दी से नामज़ पढ़ा करो और ज़कात देते रहो और खु़दा ही (के एहकाम) को मज़बूत पकड़ो वही तुम्हारा सरपरस्त है तेा क्या अच्छा सरपरस्त है और क्या अच्छा मददगार है (78)