Quran पारा 19
वक़ालल लजीना
وَقَالَ الَّذِينَ لَا يَرْجُونَ لِقَاءنَا لَوْلَا أُنزِلَ عَلَيْنَا الْمَلَائِكَةُ أَوْ نَرَى رَبَّنَا لَقَدِ اسْتَكْبَرُوا فِي أَنفُسِهِمْ وَعَتَوْ عُتُوًّا كَبِيرًا {21}
और जो लोग (क़यामत में) हमारी हुज़ूरी की उम्मीद नहीं रखते कहा करते हैं कि आखि़र फ़रिशते हमारे पास क्यों नहीं नाजि़ल किए गए या हम अपने परवरदिगार को (क्यों नहीं) देखते उन लोगों ने अपने जी में अपने को (बहुत) बड़ा समझ लिया है और बड़ी सरकशी की (21)
वक़ालल लजीना
يَوْمَ يَرَوْنَ الْمَلَائِكَةَ لَا بُشْرَى يَوْمَئِذٍ لِّلْمُجْرِمِينَ وَيَقُولُونَ حِجْرًا مَّحْجُورًا {22}
जिस दिन ये लोग फ़रिश्तों को देखेंगे उस दिन गुनाह गारों को कुछ ख़ुशी न होगी और फ़रिश्तों को देखकर कहेंगे दूर दफान (22)
वक़ालल लजीना
وَقَدِمْنَا إِلَى مَا عَمِلُوا مِنْ عَمَلٍ فَجَعَلْنَاهُ هَبَاء مَّنثُورًا {23}
और उन लोगों ने (दुनिया में) जो कुछ नेक काम किए हैं हम उसकी तरफ तवज्जों करेंगें तो हम उसको (गोया) उड़ती हुयी ख़ाक बनाकर (बरबाद कर) देगें (23)
वक़ालल लजीना
أَصْحَابُ الْجَنَّةِ يَوْمَئِذٍ خَيْرٌ مُّسْتَقَرًّا وَأَحْسَنُ مَقِيلًا {24}
उस दिन जन्नत वालों का ठिकाना भी बेहतर है बेहतर होगा और आरमगाह भी अच्छी से अच्छी (24)
वक़ालल लजीना
وَيَوْمَ تَشَقَّقُ السَّمَاء بِالْغَمَامِ وَنُزِّلَ الْمَلَائِكَةُ تَنزِيلًا {25}
और जिस दिन आसमान बदली के सबब से फट जाएगा और फ़रिशते कसरत से (जूक दर ज़ूक) नाजि़ल किए जाएँगे (25)
वक़ालल लजीना
الْمُلْكُ يَوْمَئِذٍ الْحَقُّ لِلرَّحْمَنِ وَكَانَ يَوْمًا عَلَى الْكَافِرِينَ عَسِيرًا {26}
उसे दिन की सल्तनत ख़ास ख़ुदा ही के लिए होगी और वह दिन काफिरों पर बड़ा सख़्त होगा (26)
वक़ालल लजीना
وَيَوْمَ يَعَضُّ الظَّالِمُ عَلَى يَدَيْهِ يَقُولُ يَا لَيْتَنِي اتَّخَذْتُ مَعَ الرَّسُولِ سَبِيلًا {27}
और जिस दिन जु़ल्म करने वाला अपने हाथ (मारे अफ़सोस के) काटने लगेगा और कहेगा काश रसूल के साथ मैं भी (दीन का सीधा) रास्ता पकड़ता (27)
वक़ालल लजीना
يَا وَيْلَتَى لَيْتَنِي لَمْ أَتَّخِذْ فُلَانًا خَلِيلًا {28}
हाए अफसोस काश मै फ़ला शख़्स को अपना दोस्त न बनाता (28)
वक़ालल लजीना
لَقَدْ أَضَلَّنِي عَنِ الذِّكْرِ بَعْدَ إِذْ جَاءنِي وَكَانَ الشَّيْطَانُ لِلْإِنسَانِ خَذُولًا {29}
बेशक यक़ीनन उसने हमारे पास नसीहत आने के बाद मुझे बहकाया और शैतान तो आदमी को रुसवा करने वाला ही है (29)
वक़ालल लजीना
وَقَالَ الرَّسُولُ يَا رَبِّ إِنَّ قَوْمِي اتَّخَذُوا هَذَا الْقُرْآنَ مَهْجُورًا {30}
और (उस वक़्त) रसूल (बारगाहे ख़ुदा वन्दी में) अर्ज़ करेगें कि ऐ मेरे परवरदिगार मेरी क़ौम ने तो इस क़ुरआन को बेकार बना दिया (30)
वक़ालल लजीना
وَكَذَلِكَ جَعَلْنَا لِكُلِّ نَبِيٍّ عَدُوًّا مِّنَ الْمُجْرِمِينَ وَكَفَى بِرَبِّكَ هَادِيًا وَنَصِيرًا {31}
और हमने (गोया ख़ुद) गुनाहगारों में से हर नबी के दुशमन बना दिए हैं और तुम्हारा परवरदिगार हिदायत और मददगारी के लिए काफी है (31)
वक़ालल लजीना
وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَوْلَا نُزِّلَ عَلَيْهِ الْقُرْآنُ جُمْلَةً وَاحِدَةً كَذَلِكَ لِنُثَبِّتَ بِهِ فُؤَادَكَ وَرَتَّلْنَاهُ تَرْتِيلًا {32}
और कुफ्फार कहने लगे कि उनके ऊपर (आखि़र) क़ुरआन का कुल (एक ही दफा) क्यों नहीं नाजि़ल किया गया (हमने) इस तरह इसलिए (नाजि़ल किया) ताकि तुम्हारे दिल को तस्कीन देते रहें और हमने इसको ठहर ठहर कर नाजि़ल किया (32)
वक़ालल लजीना
وَلَا يَأْتُونَكَ بِمَثَلٍ إِلَّا جِئْنَاكَ بِالْحَقِّ وَأَحْسَنَ تَفْسِيرًا {33}
और (ये कुफ्फार) चाहे कैसी ही (अनोखी) मसल बयान करेंगे मगर हम तुम्हारे पास (उनका) बिल्कुल ठीक और निहायत उम्दा (जवाब) बयान कर देगें (33)
वक़ालल लजीना
الَّذِينَ يُحْشَرُونَ عَلَى وُجُوهِهِمْ إِلَى جَهَنَّمَ أُوْلَئِكَ شَرٌّ مَّكَانًا وَأَضَلُّ سَبِيلًا {34}
जो लोग (क़यामत के दिन) अपने अपने मोहसिनों के बल जहन्नुम में हकाए जाएगें वही लोग बदतर जगह में होगें और सब से ज़्यादा राहे रास्त से भटकने वाले (34)
वक़ालल लजीना
وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ وَجَعَلْنَا مَعَهُ أَخَاهُ هَارُونَ وَزِيرًا {35}
और अलबत्ता हमने मूसा को किताब (तौरैत) अता की और उनके साथ उनके भाई हारुन को (उनका) वज़ीर बनाया (35)
वक़ालल लजीना
فَقُلْنَا اذْهَبَا إِلَى الْقَوْمِ الَّذِينَ كَذَّبُوا بِآيَاتِنَا فَدَمَّرْنَاهُمْ تَدْمِيرًا {36}
तो हमने कहा तुम दोनों उन लोगों के पास जा जो हमारी (कुदरत की) निशानियों को झुठलाते हैं जाओ (और समझाओ जब न माने) तो हमने उन्हें खू़ब बरबाद कर डाला (36)
वक़ालल लजीना
وَقَوْمَ نُوحٍ لَّمَّا كَذَّبُوا الرُّسُلَ أَغْرَقْنَاهُمْ وَجَعَلْنَاهُمْ لِلنَّاسِ آيَةً وَأَعْتَدْنَا لِلظَّالِمِينَ عَذَابًا أَلِيمًا {37}
और नूह की क़ौम को जब उन लोगों ने (हमारे) पैग़म्बरों को झुठलाया तो हमने उन्हें डुबो दिया और हमने उनको लोगों (के हैरत) की निशानी बनाया और हमने ज़ालिमों के वास्ते दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है (37)
वक़ालल लजीना
وَعَادًا وَثَمُودَ وَأَصْحَابَ الرَّسِّ وَقُرُونًا بَيْنَ ذَلِكَ كَثِيراً {38}
और (इसी तरह) आद और समूद और नहर वालों और उनके दरम्यिान में बहुत सी जमाअतों को (हमने हलाक कर डाला) (38)
वक़ालल लजीना
وَكُلًّا ضَرَبْنَا لَهُ الْأَمْثَالَ وَكُلًّا تَبَّرْنَا تَتْبِيرًا {39}
और हमने हर एक से मिसालें बयान कर दी थीं और (खूब समझाया) मगर न माना (39)
वक़ालल लजीना
وَلَقَدْ أَتَوْا عَلَى الْقَرْيَةِ الَّتِي أُمْطِرَتْ مَطَرَ السَّوْءِ أَفَلَمْ يَكُونُوا يَرَوْنَهَا بَلْ كَانُوا لَا يَرْجُونَ نُشُورًا {40}
हमने उनको ख़ूब सत्यानास कर छोड़ा और ये लोग (कुफ़्फ़ारे मक्का) उस बस्ती पर (हो) आए हैं जिस पर (पत्थरों की) बुरी बारिश बरसाई गयी तो क्या उन लोगों ने इसको देखा न होगा मगर (बात ये है कि) ये लोग मरने के बाद जी उठने की उम्मीद नहीं रखते (फिर क्यों इमान लाएँ) (40)
वक़ालल लजीना
وَإِذَا رَأَوْكَ إِن يَتَّخِذُونَكَ إِلَّا هُزُوًا أَهَذَا الَّذِي بَعَثَ اللَّهُ رَسُولًا {41}
और (ऐ रसूल) ये लोग तुम्हें जब देखते हैं तो तुम से मसख़रा पन ही करने लगते हैं कि क्या यही वह (हज़रत) हैं जिन्हें अल्लाह ने रसूल बनाकर भेजा है (माज़ अल्लाह) (41)
वक़ालल लजीना
إِن كَادَ لَيُضِلُّنَا عَنْ آلِهَتِنَا لَوْلَا أَن صَبَرْنَا عَلَيْهَا وَسَوْفَ يَعْلَمُونَ حِينَ يَرَوْنَ الْعَذَابَ مَنْ أَضَلُّ سَبِيلًا {42}
अगर बुतों की परसतिश पर साबित क़दम न रहते तो इस शख़्स ने हमको हमारे माबूदों से बहका दिया था और बहुत जल्द (क़यामत में) जब ये लोग अज़ाब को देखेंगें तो उन्हें मालूम हो जाएगा कि राहे रास्त से कौन ज़्यादा भटका हुआ था (42)
वक़ालल लजीना
أَرَأَيْتَ مَنِ اتَّخَذَ إِلَهَهُ هَوَاهُ أَفَأَنتَ تَكُونُ عَلَيْهِ وَكِيلًا {43}
क्या तुमने उस शख़्स को भी देखा है जिसने अपनी नफ़सियानी ख़्वाहिश को अपना माबूद बना रखा है तो क्या तुम उसके जि़म्मेदार हो सकते हो (कि वह गुमराह न हों) (43)
वक़ालल लजीना
أَمْ تَحْسَبُ أَنَّ أَكْثَرَهُمْ يَسْمَعُونَ أَوْ يَعْقِلُونَ إِنْ هُمْ إِلَّا كَالْأَنْعَامِ بَلْ هُمْ أَضَلُّ سَبِيلًا {44}
क्या ये तुम्हारा ख़्याल है कि इन (कुफ़्फ़ारों) में अक्सर (बात) सुनते या समझते है (नहीं) ये तो बस बिल्कुल मिस्ल जानवरों के हैं बल्कि उन से भी ज़्यादा रहे (रास्त) से भटके हुए (44)
वक़ालल लजीना
أَلَمْ تَرَ إِلَى رَبِّكَ كَيْفَ مَدَّ الظِّلَّ وَلَوْ شَاء لَجَعَلَهُ سَاكِنًا ثُمَّ جَعَلْنَا الشَّمْسَ عَلَيْهِ دَلِيلًا {45}
(ऐ रसूल) क्या तुमने अपने परवरदिगार की कु़दरत की तरफ नज़र नहीं की कि उसने क्योंकर साये को फैला दिया अगर वह चहता तो उसे (एक ही जगह) ठहरा हुआ कर देता फिर हमने आफ़ताब को (उसकी शीनाख़्त के वास्ते) उसका रहनुमा बना दिया (45)
वक़ालल लजीना
ثُمَّ قَبَضْنَاهُ إِلَيْنَا قَبْضًا يَسِيرًا {46}
फिर हमने उसको थोड़ा थोड़ा करके अपनी तरफ़ खीच लिया (46)
वक़ालल लजीना
وَهُوَ الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ اللَّيْلَ لِبَاسًا وَالنَّوْمَ سُبَاتًا وَجَعَلَ النَّهَارَ نُشُورًا {47}
और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने तुम्हारे वास्ते रात को पर्दा बनाया और नींद को राहत और दिन को (कारोबार के लिए) उठ खड़ा होने का वक़्त बनाया (47)
वक़ालल लजीना
وَهُوَ الَّذِي أَرْسَلَ الرِّيَاحَ بُشْرًا بَيْنَ يَدَيْ رَحْمَتِهِ وَأَنزَلْنَا مِنَ السَّمَاء مَاء طَهُورًا {48}
और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने अपनी रहमत (बारिश) के आगे आगे हवाओं को खुश ख़बरी देने के लिए (पेश ख़ेमा बना के) भेजा और हम ही ने आसमान से बहुत पाक और सुथरा हुआ पानी बरसाया (48)
वक़ालल लजीना
لِنُحْيِيَ بِهِ بَلْدَةً مَّيْتًا وَنُسْقِيَهُ مِمَّا خَلَقْنَا أَنْعَامًا وَأَنَاسِيَّ كَثِيراً {49}
ताकि हम उसके ज़रिए से मुर्दा (वीरान) शहर को जि़न्दा (आबाद) कर दें और अपनी मख़लूकात में से चैपायों और बहुत से आदमियों को उससे सेराब करें (49)
वक़ालल लजीना
وَلَقَدْ صَرَّفْنَاهُ بَيْنَهُمْ لِيَذَّكَّرُوا فَأَبَى أَكْثَرُ النَّاسِ إِلَّا كُفُورًا {50}
और हमने पानी को उनके दरम्यिान (तरह तरह से) तक़सीम किया ताकि लोग नसीहत हासिल करें मगर अक्सर लोगों ने नाशुक्री के सिवा कुछ न माना (50)
वक़ालल लजीना
وَلَوْ شِئْنَا لَبَعَثْنَا فِي كُلِّ قَرْيَةٍ نَذِيرًا {51}
और अगर हम चाहते तो हर बस्ती में ज़रुर एक (अज़ाबे ख़ुदा से) डराने वाला पैग़म्बर भेजते (51)
वक़ालल लजीना
فَلَا تُطِعِ الْكَافِرِينَ وَجَاهِدْهُم بِهِ جِهَادًا كَبِيرًا {52}
(तो ऐ रसूल) तुम काफिरों की इताअत न करना और उनसे कु़रआन के (दलाएल) से खू़ब लड़ों (52)
वक़ालल लजीना
وَهُوَ الَّذِي مَرَجَ الْبَحْرَيْنِ هَذَا عَذْبٌ فُرَاتٌ وَهَذَا مِلْحٌ أُجَاجٌ وَجَعَلَ بَيْنَهُمَا بَرْزَخًا وَحِجْرًا مَّحْجُورًا {53}
और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने दरयाओं को आपस में मिला दिया (और बावजूद कि) ये खालिस मज़ेदार मीठा है और ये बिल्कुल खारी कड़वा (मगर दोनों को मिलाया) और दोनों के दरम्यिान एक आड़ और मज़बूत ओट बना दी है (कि गड़बड़ न हो) (53)
वक़ालल लजीना
وَهُوَ الَّذِي خَلَقَ مِنَ الْمَاء بَشَرًا فَجَعَلَهُ نَسَبًا وَصِهْرًا وَكَانَ رَبُّكَ قَدِيرًا {54}
और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने पानी (मनी) से आदमी को पैदा किया फिर उसको ख़ानदान और सुसराल वाला बनाया और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार हर चीज़ पर क़ादिर है (54)
वक़ालल लजीना
وَيَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللَّهِ مَا لَا يَنفَعُهُمْ وَلَا يَضُرُّهُمْ وَكَانَ الْكَافِرُ عَلَى رَبِّهِ ظَهِيرًا {55}
और लोग (कुफ़्फ़ारे मक्का) ख़ुदा को छोड़कर उस चीज़ की परसतिश करते हैं जो न उन्हें नफा ही दे सकती है और न नुक़सान ही पहुँचा सकती है और काफिर (अबूजहल) तो हर वक़्त अपने परवरदिगार की मुख़ालेफत पर ज़ोर लगाए हुए है (55)
वक़ालल लजीना
وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا مُبَشِّرًا وَنَذِيرًا {56}
और (ऐ रसूल) हमने तो तुमको बस (नेकी को जन्नत की) खुशबरी देने वाला और (बुरों को अज़ाब से) डराने वाला बनाकर भेजा है (56)
वक़ालल लजीना
قُلْ مَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ إِلَّا مَن شَاء أَن يَتَّخِذَ إِلَى رَبِّهِ سَبِيلًا {55}
और उन लोगों से तुम कह दो कि मै इस (तबलीगे़ रिसालत) पर तुमसे कुछ मज़दूरी तो माँगता नहीं हूँ मगर तमन्ना ये है कि जो चाहे अपने परवरदिगार तक पहुँचने की राह पकडे़ (57)
वक़ालल लजीना
وَتَوَكَّلْ عَلَى الْحَيِّ الَّذِي لَا يَمُوتُ وَسَبِّحْ بِحَمْدِهِ وَكَفَى بِهِ بِذُنُوبِ عِبَادِهِ خَبِيرًا {58}
और (ऐ रसूल) तुम उस (ख़ुदा) पर भरोसा रखो जो ऐसा जि़न्दा है कि कभी नहीं मरेगा और उसकी हम्द व सना की तस्बीह पढ़ो और वह अपने बन्दों के गुनाहों की वाकि़फ कारी में काफी है (वह ख़ुद समझ लेगा) (58)
वक़ालल लजीना
الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ ثُمَّ اسْتَوَى عَلَى الْعَرْشِ الرَّحْمَنُ فَاسْأَلْ بِهِ خَبِيرًا {59}
जिसने सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ उन दोनों में है छहः दिन में पैदा किया फिर अर्श (के बनाने) पर आमादा हुआ और वह बड़ा मेहरबान है तो तुम उसका हाल किसी बाख़बर ही से पूछना (59)
वक़ालल लजीना
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اسْجُدُوا لِلرَّحْمَنِ قَالُوا وَمَا الرَّحْمَنُ أَنَسْجُدُ لِمَا تَأْمُرُنَا وَزَادَهُمْ نُفُورًا {60}
और जब उन कुफ्फारों से कहा जाता है कि रहमान (ख़ुदा) को सजदा करो तो कहते हैं कि रहमान क्या चीज़ है तुम जिसके लिए कहते हो हम उस का सजदा करने लगें और (इससे) उनकी नफ़रत और बढ़ जाती है (60) सजदा
वक़ालल लजीना
تَبَارَكَ الَّذِي جَعَلَ فِي السَّمَاء بُرُوجًا وَجَعَلَ فِيهَا سِرَاجًا وَقَمَرًا مُّنِيرًا {61}
बहुत बाबरकत है वह ख़ुदा जिसने आसमान में बुर्ज बनाए और उन बुर्जों में (आफ़ताब का) चिराग़ और जगमगाता चाँद बनाया (61)
वक़ालल लजीना
وَهُوَ الَّذِي جَعَلَ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ خِلْفَةً لِّمَنْ أَرَادَ أَن يَذَّكَّرَ أَوْ أَرَادَ شُكُورًا {62}
और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने रात और दिन (एक) को (एक का) जानशीन बनाया (ये) उस के (समझने के) लिए है जो नसीहत हासिल करना चाहे या शुक्र गुज़ारी का इरादा करें (62)
वक़ालल लजीना
وَعِبَادُ الرَّحْمَنِ الَّذِينَ يَمْشُونَ عَلَى الْأَرْضِ هَوْنًا وَإِذَا خَاطَبَهُمُ الْجَاهِلُونَ قَالُوا سَلَامًا {63}
और (ख़ुदाए) रहमान के ख़ास बन्दे तो वह हैं जो ज़मीन पर फिरौतनी के साथ चलते हैं और जब जाहिल उनसे (जिहालत) की बात करते हैं तो कहते हैं कि सलाम (तुम सलामत रहो) (63)
वक़ालल लजीना
وَالَّذِينَ يَبِيتُونَ لِرَبِّهِمْ سُجَّدًا وَقِيَامًا {64}
और वह लोग जो अपने परवरदिगार के वास्ते सज़दे और क़याम में रात काट देते हैं (64)
वक़ालल लजीना
وَالَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا اصْرِفْ عَنَّا عَذَابَ جَهَنَّمَ إِنَّ عَذَابَهَا كَانَ غَرَامًا {65}
और वह लोग जो दुआ करते हैं कि परवरदिगारा हम से जहन्नुम का अज़ाब फेरे रहना क्योंकि उसका अज़ाब बहुत (सख़्त और पाएदार होगा) (65)
वक़ालल लजीना
إِنَّهَا سَاءتْ مُسْتَقَرًّا وَمُقَامًا {66}
बेशक वह बहुत बुरा ठिकाना और बुरा मक़ाम है (66)
वक़ालल लजीना
وَالَّذِينَ إِذَا أَنفَقُوا لَمْ يُسْرِفُوا وَلَمْ يَقْتُرُوا وَكَانَ بَيْنَ ذَلِكَ قَوَامًا {67}
और वह लोग कि जब खर्च करते हैं तो न फुज़ूल ख़र्ची करते हैं और न तंगी करते हैं और उनका ख़र्च उसके दरमेयान औसत दर्जे का रहता है (67)
वक़ालल लजीना
وَالَّذِينَ لَا يَدْعُونَ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ وَلَا يَقْتُلُونَ النَّفْسَ الَّتِي حَرَّمَ اللَّهُ إِلَّا بِالْحَقِّ وَلَا يَزْنُونَ وَمَن يَفْعَلْ ذَلِكَ يَلْقَ أَثَامًا {68}
और वह लोग जो ख़ुदा के साथ दूसरे माबूदों की परसतिश नही करते और जिस जान के मारने को ख़ुदा ने हराम कर दिया है उसे नाहक़ क़त्ल नहीं करते और न जि़ना करते हैं और जो शख़्स ऐसा करेगा वह आप अपने गुनाह की सज़ा भुगतेगा (68)
वक़ालल लजीना
يُضَاعَفْ لَهُ الْعَذَابُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَيَخْلُدْ فِيهِ مُهَانًا {69}
कि क़यामत के दिन उसके लिए अज़ाब दूना कर दिया जाएगा और उसमें हमेशा ज़लील व ख़वार रहेगा (69)
वक़ालल लजीना
إِلَّا مَن تَابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ عَمَلًا صَالِحًا فَأُوْلَئِكَ يُبَدِّلُ اللَّهُ سَيِّئَاتِهِمْ حَسَنَاتٍ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا {70}
मगर (हाँ) जिस शख़्स ने तौबा की और इमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए तो (अलबत्ता) उन लोगों की बुराइयों को ख़ुदा नेकियों से बदल देगा और ख़ुदा तो बड़ा बख़शने वाला मेहरबान है (70)
वक़ालल लजीना
وَمَن تَابَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَإِنَّهُ يَتُوبُ إِلَى اللَّهِ مَتَابًا {71}
और जिस शख़्स ने तौबा कर ली और अच्छे अच्छे काम किए तो बेशक उसने ख़ुदा की तरफ़ (सच्चे दिल से) हक़ीकक़तन रुजु की (71)
वक़ालल लजीना
وَالَّذِينَ لَا يَشْهَدُونَ الزُّورَ وَإِذَا مَرُّوا بِاللَّغْوِ مَرُّوا كِرَامًا {72}
और वह लोग जो फ़रेब के पास ही नही खड़े होते और वह लोग जब किसी बेहूदा काम के पास से गुज़रते हैं तो बुज़ुर्गाना अन्दाज़ से गुज़र जाते हैं (72)
वक़ालल लजीना
وَالَّذِينَ إِذَا ذُكِّرُوا بِآيَاتِ رَبِّهِمْ لَمْ يَخِرُّوا عَلَيْهَا صُمًّا وَعُمْيَانًا {73}
और वह लोग कि जब उन्हें उनके परवरदिगार की आयतें याद दिलाई जाती हैं तो बहरे अन्धें होकर गिर नहीं पड़ते बल्कि जी लगाकर सुनते हैं (73)
वक़ालल लजीना
وَالَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَاجِنَا وَذُرِّيَّاتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍ وَاجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِينَ إِمَامًا {74}
और वह लोग जो (हमसे) अर्ज़ करते हैं कि परवरदिगार हमें हमारी बीबियों और औलादों की तरफ़ से आँखों की ठन्डक अता फरमा और हमको परहेज़गारों का पेशवा बना (74)
वक़ालल लजीना
أُوْلَئِكَ يُجْزَوْنَ الْغُرْفَةَ بِمَا صَبَرُوا وَيُلَقَّوْنَ فِيهَا تَحِيَّةً وَسَلَامًا {75}
ये वह लोग हैं जिन्हें उनकी जज़ा में (बेहश्त के) बाला ख़ाने अता किए जाएँगें और वहाँ उन्हें ताज़ीम व सलाम (का बदला) पेश किया जाएगा (75)
वक़ालल लजीना
خَالِدِينَ فِيهَا حَسُنَتْ مُسْتَقَرًّا وَمُقَامًا {76}
ये लोग उसी में हमेशा रहेंगें और वह रहने और ठहरने की अच्छी जगह है (76)
वक़ालल लजीना
قُلْ مَا يَعْبَأُ بِكُمْ رَبِّي لَوْلَا دُعَاؤُكُمْ فَقَدْ كَذَّبْتُمْ فَسَوْفَ يَكُونُ لِزَامًا {77}
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर दुआ नही किया करते तो मेरा परवरदिगार भी तुम्हारी कुछ परवाह नही करता तुमने तो (उसके रसूल को) झुठलाया तो अन क़रीब ही (उसका वबाल) तुम्हारे सर पडे़गा (77)
वक़ालल लजीना
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ
ख़ुदा के नाम से (शुरु करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
वक़ालल लजीना
طسم {1}
ता सीन मीम (1)
वक़ालल लजीना
تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ الْمُبِينِ {2}
ये वाज़ेए व रौशन किताब की आयतें हैं (2)
वक़ालल लजीना
لَعَلَّكَ بَاخِعٌ نَّفْسَكَ أَلَّا يَكُونُوا مُؤْمِنِينَ {3}
(ऐ रसूल) शायद तुम (इस फिक्र में)अपनी जान हलाक कर डालोगे कि ये (कुफ्फार) मोमिन क्यो नहीं हो जाते (3)
वक़ालल लजीना
إِن نَّشَأْ نُنَزِّلْ عَلَيْهِم مِّن السَّمَاء آيَةً فَظَلَّتْ أَعْنَاقُهُمْ لَهَا خَاضِعِينَ {4}
अगर हम चाहें तो उन लोगों पर आसमान से कोई ऐसा मौजिज़ा नाजि़ल करें कि उन लोगों की गर्दनें उसके सामने झुक जाएँ (4)
वक़ालल लजीना
وَمَا يَأْتِيهِم مِّن ذِكْرٍ مِّنَ الرَّحْمَنِ مُحْدَثٍ إِلَّا كَانُوا عَنْهُ مُعْرِضِينَ {5}
और (लोगों का क़ायदा है कि) जब उनके पास कोई कोई नसीहत की बात ख़ुदा की तरफ़ से आयी तो ये लोग उससे मुँह फेरे बगै़र नहीं रहे (5)
वक़ालल लजीना
فَقَدْ كَذَّبُوا فَسَيَأْتِيهِمْ أَنبَاء مَا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُون {6}
उन लोगों ने झुठलाया ज़रुर तो अनक़रीब ही (उन्हें) इस (अज़ाब) की हक़ीकत मालूम हो जाएगी जिसकी ये लोग हँसी उड़ाया करते थे (6)
वक़ालल लजीना
أَوَلَمْ يَرَوْا إِلَى الْأَرْضِ كَمْ أَنبَتْنَا فِيهَا مِن كُلِّ زَوْجٍ كَرِيمٍ {7}
क्या इन लोगों ने ज़मीन की तरफ़ भी (ग़ौर से) नहीं देखा कि हमने हर रंग की उम्दा उम्दा चीजे़ं उसमें किस कसरत से उगायी हैं (7)
वक़ालल लजीना
إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَةً وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ {8}
यक़ीनन इसमें (भी क़ुदरत) ख़ुदा की एक बड़ी निशानी है मगर उनमें से अक्सर इमान लाने वाले ही नहीं (8)
वक़ालल लजीना
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ {9}
और इसमें शक नहीं कि तेरा परवरदिगार यक़ीनन (हर चीज़ पर) ग़ालिब (और) मेहरबान है (9)
वक़ालल लजीना
وَإِذْ نَادَى رَبُّكَ مُوسَى أَنِ ائْتِ الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ {10}
(ऐ रसूल वह वक़्त याद करो) जब तुम्हारे परवरदिगार ने मूसा को आवाज़ दी कि (इन) ज़ालिमों फ़िरऔनयों की क़ौम के पास जाओ (हिदायत करो)(10)
वक़ालल लजीना
قَوْمَ فِرْعَوْنَ أَلَا يَتَّقُونَ {11}
क्या ये लोग (मेरे ग़ज़ब से) डरते नहीं है (11)
वक़ालल लजीना
قَالَ رَبِّ إِنِّي أَخَافُ أَن يُكَذِّبُونِ {12}
मूसा ने अर्ज़ कि परवरदिगार मैं डरता हूँ कि (मुबादा) वह लोग मुझे झुठला दे (12)
वक़ालल लजीना
وَيَضِيقُ صَدْرِي وَلَا يَنطَلِقُ لِسَانِي فَأَرْسِلْ إِلَى هَارُونَ {13}
और (उनके झुठलाने से) मेरा दम रुक जाए और मेरी ज़बान (अच्छी तरह) न चले तो हारुन के पास पैग़ाम भेज दे (कि मेरा साथ दे) (13)
वक़ालल लजीना
وَلَهُمْ عَلَيَّ ذَنبٌ فَأَخَافُ أَن يَقْتُلُونِ {14}
(और इसके अलावा) उनका मेरे सर एक जुर्म भी है (कि मैने एक शख़्स को मार डाला था) (14)
वक़ालल लजीना
قَالَ كَلَّا فَاذْهَبَا بِآيَاتِنَا إِنَّا مَعَكُم مُّسْتَمِعُونَ {15}
तो मैं डरता हूँ कि (शायद) मुझे ये लाग मार डालें ख़ुदा ने कहा हरगिज़ नहीं अच्छा तुम दोनों हमारी निशानियाँ लेकर जाओ हम तुम्हारे साथ हैं (15)
वक़ालल लजीना
فَأْتِيَا فِرْعَوْنَ فَقُولَا إِنَّا رَسُولُ رَبِّ الْعَالَمِينَ {16}
और (सारी गुफ्तगू) अच्छी तरह सुनते हैं ग़रज़ तुम दोनों फ़िरऔन के पास जाओ और कह दो कि हम सारे जहाँन के परवरदिगार के रसूल हैं (और पैग़ाम लाएँ हैं) (16)
वक़ालल लजीना
أَنْ أَرْسِلْ مَعَنَا بَنِي إِسْرَائِيلَ {17}
कि आप बनी इसराइल को हमारे साथ भेज दीजिए (17)
वक़ालल लजीना
قَالَ أَلَمْ نُرَبِّكَ فِينَا وَلِيدًا وَلَبِثْتَ فِينَا مِنْ عُمُرِكَ سِنِينَ {18}
(चुनान्चे मूसा गए और कहा) फ़िरऔन बोला (मूसा) क्या हमने तुम्हें यहाँ रख कर बचपने में तुम्हारी परवरिश नहीं की और तुम अपनी उम्र से बरसों हम मे रह सह चुके हो (18)
वक़ालल लजीना
وَفَعَلْتَ فَعْلَتَكَ الَّتِي فَعَلْتَ وَأَنتَ مِنَ الْكَافِرِينَ {19}
और तुम अपना वह काम (ख़ून कि़ब्ती) जो कर गए और तुम (बड़े) नाशुक्रे हो (19)
वक़ालल लजीना
قَالَ فَعَلْتُهَا إِذًا وَأَنَا مِنَ الضَّالِّينَ {20}
मूसा ने कहा (हाँ) मैने उस वक़्त उस काम को किया जब मै हालते ग़फलत में था (20)
वक़ालल लजीना
فَفَرَرْتُ مِنكُمْ لَمَّا خِفْتُكُمْ فَوَهَبَ لِي رَبِّي حُكْمًا وَجَعَلَنِي مِنَ الْمُرْسَلِينَ {21}
फिर जब मै आप लोगों से डरा तो भाग खड़ा हुआ फिर (कुछ अरसे के बाद) मेरे परवरदिगार ने मुझे नुबूवत अता फरमायी और मुझे भी एक पैग़म्बर बनाया (21)
वक़ालल लजीना
وَتِلْكَ نِعْمَةٌ تَمُنُّهَا عَلَيَّ أَنْ عَبَّدتَّ بَنِي إِسْرَائِيلَ {22}
और ये भी कोई एहसान हे जिसे आप मुझ पर जता रहे है कि आप ने बनी इसराईल को ग़ुलाम बना रखा है (22)
वक़ालल लजीना
قَالَ فِرْعَوْنُ وَمَا رَبُّ الْعَالَمِينَ {23}
फ़िरऔन ने पूछा (अच्छा ये तो बताओ) रब्बुल आलमीन क्या चीज़ है (23)
वक़ालल लजीना
قَالَ رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا إن كُنتُم مُّوقِنِينَ {24}
मूसा ने कहाँ सारे आसमान व ज़मीन का और जो कुछ इन दोनों के दरम्यिान है (सबका) मालिक अगर आप लोग यक़ीन कीजिए (तो काफी है) (24)
वक़ालल लजीना
قَالَ لِمَنْ حَوْلَهُ أَلَا تَسْتَمِعُونَ {25}
फ़िरऔन ने उन लोगो से जो उसके इर्द गिर्द (बैठे) थे कहा क्या तुम लोग नहीं सुनते हो (25)
वक़ालल लजीना
قَالَ رَبُّكُمْ وَرَبُّ آبَائِكُمُ الْأَوَّلِينَ {26}
मूसा ने कहा (वही ख़ुदा जो कि) तुम्हारा परवरदिगार और तुम्हारे बाप दादाओं का परवरदिगार है (26)
वक़ालल लजीना
قَالَ إِنَّ رَسُولَكُمُ الَّذِي أُرْسِلَ إِلَيْكُمْ لَمَجْنُونٌ {27}
फ़िरऔन ने कहा (लोगों) ये रसूल जो तुम्हारे पास भेजा गया है हो न हो दीवाना है (27)
वक़ालल लजीना
قَالَ رَبُّ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ وَمَا بَيْنَهُمَا إِن كُنتُمْ تَعْقِلُونَ {28}
मूसा ने कहा (वह ख़ुदा जो) पूरब पच्छिम और जो कुछ इन दोनों के दरम्यिान (सबका) मालिक है अगर तुम समझते हो (तो यही काफी है) (28)
वक़ालल लजीना
قَالَ لَئِنِ اتَّخَذْتَ إِلَهًا غَيْرِي لَأَجْعَلَنَّكَ مِنَ الْمَسْجُونِينَ {29}
फ़िरऔन ने कहा अगर तुम मेरे सिवा किसी और को (अपना) ख़ुदा बनाया है तो मै ज़रुर तुम्हे कै़दी बनाऊँगा (29)
वक़ालल लजीना
قَالَ أَوَلَوْ جِئْتُكَ بِشَيْءٍ مُّبِينٍ {30}
मूसा ने कहा अगरचे मैं आपको एक वाजे़ए व रौशन मौजिज़ा भी दिखाऊं (तो भी) (30)
वक़ालल लजीना
قَالَ فَأْتِ بِهِ إِن كُنتَ مِنَ الصَّادِقِينَ {31}
फ़िरऔन ने कहा (अच्छा) तो तुम अगर (अपने दावे में) सच्चे हो तो ला दिखाओ (31)
वक़ालल लजीना
فَأَلْقَى عَصَاهُ فَإِذَا هِيَ ثُعْبَانٌ مُّبِينٌ {32}
बस (ये सुनते ही) मूसा ने अपनी छड़ी (ज़मीन पर) डाल दी फिर तो यकायक वह एक सरीही अज़दहा बन गया (32)
वक़ालल लजीना
وَنَزَعَ يَدَهُ فَإِذَا هِيَ بَيْضَاء لِلنَّاظِرِينَ {33}
और (जेब से) अपना हाथ बाहर निकाला तो यकायक देखने वालों के वास्ते बहुत सफेद चमकदार था (33)
वक़ालल लजीना
قَالَ لِلْمَلَإِ حَوْلَهُ إِنَّ هَذَا لَسَاحِرٌ عَلِيمٌ {34}
(इस पर) फ़िरऔन अपने दरबारियों से जो उसके गिर्द (बैठे) थे कहने लगा (34)
वक़ालल लजीना
يُرِيدُ أَن يُخْرِجَكُم مِّنْ أَرْضِكُم بِسِحْرِهِ فَمَاذَا تَأْمُرُونَ {35}
कि ये तो यक़ीनी बड़ा खिलाड़ी जादूगर है ये तो चाहता है कि अपने जादू के ज़ोर से तुम्हें तुम्हारे मुल्क से बाहर निकाल दे तो तुम लोग क्या हुक्म लगाते हो (35)
वक़ालल लजीना
قَالُوا أَرْجِهِ وَأَخَاهُ وَابْعَثْ فِي الْمَدَائِنِ حَاشِرِينَ {36}
दरबारियों ने कहा अभी इसको और इसके भाई को (चन्द) मोहलत दीजिए (36)
वक़ालल लजीना
يَأْتُوكَ بِكُلِّ سَحَّارٍ عَلِيمٍ {37}
और तमाम शहरों में जादूगरों के जमा करने को हरकारे रवाना कीजिए कि वह लोग तमाम बड़े बड़े खिलाड़ी जादूगरों को आपके सामने ला हाजि़र करें (37)
वक़ालल लजीना
فَجُمِعَ السَّحَرَةُ لِمِيقَاتِ يَوْمٍ مَّعْلُومٍ {38}
ग़रज़ वक़्त मुक़र्रर हुआ सब जादूगर उस मुक़र्रर वक़्त के वायदे पर जमा किए गए (38)
वक़ालल लजीना
وَقِيلَ لِلنَّاسِ هَلْ أَنتُم مُّجْتَمِعُونَ {39}
और लोगों में मुनादी करा दी गयी कि तुम लोग अब भी जमा होगे (39)
वक़ालल लजीना
لَعَلَّنَا نَتَّبِعُ السَّحَرَةَ إِن كَانُوا هُمُ الْغَالِبِينَ {40}
या नहीं ताकि अगर जादूगर ग़ालिब और वर है तो हम लोग उनकी पैरवी करें (40)
वक़ालल लजीना
فَلَمَّا جَاء السَّحَرَةُ قَالُوا لِفِرْعَوْنَ أَئِنَّ لَنَا لَأَجْرًا إِن كُنَّا نَحْنُ الْغَالِبِينَ {41}
अलग़रज जब सब जादूगर आ गये तो जादूगरों ने फ़िरऔन से कहा कि अगर हम ग़ालिब आ गए तो हमको यक़ीनन कुछ इनाम (सरकार से) मिलेगा (41)
वक़ालल लजीना
قَالَ نَعَمْ وَإِنَّكُمْ إِذًا لَّمِنَ الْمُقَرَّبِينَ {42}
फ़िरऔन ने कहा हाँ (ज़रुर मिलेगा) और (इनाम क्या चीज़ है) तुम उस वक़्त (मेरे) मुक़र्रेबीन (बारगाह) से हो गए (42)
वक़ालल लजीना
قَالَ لَهُم مُّوسَى أَلْقُوا مَا أَنتُم مُّلْقُونَ {43}
मूसा ने जादूगरों से कहा (मंत्र व तंत्र) जो कुछ तुम्हें फेंकना हो फेंको (43)
वक़ालल लजीना
فَأَلْقَوْا حِبَالَهُمْ وَعِصِيَّهُمْ وَقَالُوا بِعِزَّةِ فِرْعَوْنَ إِنَّا لَنَحْنُ الْغَالِبُونَ {44}
इस पर जादूगरों ने अपनी रस्सियाँ और अपनी छडि़याँ (मैदान में) डाल दी और कहने लगे फ़िरऔन के जलाल की क़सम हम ही ज़रुर ग़ालिब रहेंगे (44)
वक़ालल लजीना
فَأَلْقَى مُوسَى عَصَاهُ فَإِذَا هِيَ تَلْقَفُ مَا يَأْفِكُونَ {45}
तब मूसा ने अपनी छड़ी डाली तो जादूगरों ने जो कुछ (शोबदे) बनाए थे उसको वह निगलने लगी (45)
वक़ालल लजीना
فَأُلْقِيَ السَّحَرَةُ سَاجِدِينَ {46}
ये देखते ही जादूगर लोग सजदे में (मूसा के सामने) गिर पडे़ (46)
वक़ालल लजीना
قَالُوا آمَنَّا بِرَبِّ الْعَالَمِينَ {47}
और कहने लगे हम सारे जहाँ के परवरदिगार पर इमान लाए (47)
वक़ालल लजीना
رَبِّ مُوسَى وَهَارُونَ {48}
जो मूसा और हारुन का परवरदिगार है (48)
वक़ालल लजीना
قَالَ آمَنتُمْ لَهُ قَبْلَ أَنْ آذَنَ لَكُمْ إِنَّهُ لَكَبِيرُكُمُ الَّذِي عَلَّمَكُمُ السِّحْرَ فَلَسَوْفَ تَعْلَمُونَ لَأُقَطِّعَنَّ أَيْدِيَكُمْ وَأَرْجُلَكُم مِّنْ خِلَافٍ وَلَأُصَلِّبَنَّكُمْ أَجْمَعِينَ {49}
फ़िरऔन ने कहा (हाए) क़ब्ल इसके कि मै तुम्हें इजाज़त दूँ तुम इस पर इमान ले आए बेशक ये तुम्हारा बड़ा (गुरु है जिसने तुम सबको जादू सिखाया है तो ख़ैर) अभी तुम लोगों को (इसका नतीजा) मालूम हो जाएगा कि हम यक़ीनन तुम्हारे एक तरफ़ के हाथ और दूसरी तरफ़ के पाँव काट डालेगें और तुम सब के सब को सूली देगें (49)
वक़ालल लजीना
قَالُوا لَا ضَيْرَ إِنَّا إِلَى رَبِّنَا مُنقَلِبُونَ {50}
वह बोले कुछ परवाह नही हमको तो बहरहाल अपने परवरदिगार की तरफ़ लौट कर जाना है (50)
वक़ालल लजीना
إِنَّا نَطْمَعُ أَن يَغْفِرَ لَنَا رَبُّنَا خَطَايَانَا أَن كُنَّا أَوَّلَ الْمُؤْمِنِينَ {51}
हम चूँकि सबसे पहले इमान लाए है इसलिए ये उम्मीद रखते हैं कि हमारा परवरदिगार हमारी ख़ताएँ माफ़ कर देगा (51)
वक़ालल लजीना
وَأَوْحَيْنَا إِلَى مُوسَى أَنْ أَسْرِ بِعِبَادِي إِنَّكُم مُّتَّبَعُونَ {52}
और हमने मूसा के पास वही भेजी कि तुम मेरे बन्दों को लेकर रातों रात निकल जाओ क्योंकि तुम्हारा पीछा किया जाएगा (52)
वक़ालल लजीना
فَأَرْسَلَ فِرْعَوْنُ فِي الْمَدَائِنِ حَاشِرِينَ {53}
तब फिरआऊन ने (लश्कर जमा करने के ख़्याल से) तमाम शहरों में (धड़ा धड़) हरकारे रवाना किए (53)
वक़ालल लजीना
إِنَّ هَؤُلَاء لَشِرْذِمَةٌ قَلِيلُونَ {54}
(और कहा) कि ये लोग मूसा के साथ बनी इसराइल थोड़ी सी (मुट्ठी भर की) जमाअत हैं (54)
वक़ालल लजीना
وَإِنَّهُمْ لَنَا لَغَائِظُونَ {55}
और उन लोगों ने हमें सख़्त गुस्सा दिलाया है (55)
वक़ालल लजीना
وَإِنَّا لَجَمِيعٌ حَاذِرُونَ {56}
और हम सबके सब बा साज़ों सामान हैं (56)
वक़ालल लजीना
فَأَخْرَجْنَاهُم مِّن جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ {57}
(तुम भी आ जाओ कि सब मिलकर ताअककुब (पीछा) करें) (57)
वक़ालल लजीना
وَكُنُوزٍ وَمَقَامٍ كَرِيمٍ {58}
ग़रज़ हमने इन लोगों को (मिस्र के) बाग़ों और चश्मों और खज़ानों और इज़्ज़त की जगह से (यूँ) निकाल बाहर किया (58)
वक़ालल लजीना
كَذَلِكَ وَأَوْرَثْنَاهَا بَنِي إِسْرَائِيلَ {59}
(और जो नाफ़रमानी करे) इसी तरह सज़ा होगी और आखि़र हमने उन्हीं चीज़ों का मालिक बनी इसराइल को बनाया (59)
वक़ालल लजीना
فَأَتْبَعُوهُم مُّشْرِقِينَ {60}
ग़रज़ (मूसा) तो रात ही को चले गए (60)
वक़ालल लजीना
فَلَمَّا تَرَاءى الْجَمْعَانِ قَالَ أَصْحَابُ مُوسَى إِنَّا لَمُدْرَكُونَ {61}
और उन लोगों ने सूरज निकलते उनका पीछा किया तो जब दोनों जमाअतें (इतनी करीब हुयीं कि) एक दूसरे को देखने लगी तो मूसा के साथी (हैरान होकर) कहने लगे (61)
वक़ालल लजीना
قَالَ كَلَّا إِنَّ مَعِيَ رَبِّي سَيَهْدِينِ {62}
कि अब तो पकड़े गए मूसा ने कहा हरगिज़ नहीं क्योंकि मेरे साथ मेरा परवरदिगार है (62)
वक़ालल लजीना
فَأَوْحَيْنَا إِلَى مُوسَى أَنِ اضْرِب بِّعَصَاكَ الْبَحْرَ فَانفَلَقَ فَكَانَ كُلُّ فِرْقٍ كَالطَّوْدِ الْعَظِيمِ {63}
वह फौरन मुझे कोई (मुखलिसी का) रास्ता बता देगा तो हमने मूसा के पास वही भेजी कि अपनी छड़ी दरिया पर मारो (मारना था कि) फौरन दरिया फूट के टुकड़े टुकड़े हो गया तो गोया हर टुकड़ा एक बड़ा ऊँचा पहाड़ था (63)
वक़ालल लजीना
وَأَزْلَفْنَا ثَمَّ الْآخَرِينَ {64}
और हमने उसी जगह दूसरे फरीक (फ़िरऔन के साथी) को क़रीब कर दिया (64)
वक़ालल लजीना
وَأَنجَيْنَا مُوسَى وَمَن مَّعَهُ أَجْمَعِينَ {65}
और मूसा और उसके साथियों को हमने (डूबने से) बचा लिया (65)
वक़ालल लजीना
ثُمَّ أَغْرَقْنَا الْآخَرِينَ {66}
फिर दूसरे फरीक़ (फ़िरऔन और उसके साथियों) को डुबोकर हलाक़ कर दिया (66)
वक़ालल लजीना
إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَةً وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ {67}
बेशक इसमें यक़ीनन एक बड़ी इबरत है और उनमें अक्सर इमान लाने वाले ही न थे (67)
वक़ालल लजीना
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ {68}
और इसमें तो शक ही न था कि तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन (सब पर) ग़ालिब और बड़ा मेहरबान है (68)
वक़ालल लजीना
وَاتْلُ عَلَيْهِمْ نَبَأَ إِبْرَاهِيمَ {69}
और (ऐ रसूल) उन लोगों के सामने इबराहीम का क़िस्सा बयान करों (69)
वक़ालल लजीना
إِذْ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوْمِهِ مَا تَعْبُدُونَ {70}
जब उन्होंने अपने (मुँह बोले) बाप और अपनी क़ौम से कहा (70)
वक़ालल लजीना
قَالُوا نَعْبُدُ أَصْنَامًا فَنَظَلُّ لَهَا عَاكِفِينَ {71}
कि तुम लोग किसकी इबादत करते हो तो वह बोले हम बुतों की इबादत करते हैं और उन्हीं के मुजाविर बन जाते हैं (71)
वक़ालल लजीना
قَالَ هَلْ يَسْمَعُونَكُمْ إِذْ تَدْعُونَ {72}
इबराहीम ने कहा भला जब तुम लोग उन्हें पुकारते हो तो वह तुम्हारी कुछ सुनते हैं (72)
वक़ालल लजीना
أَوْ يَنفَعُونَكُمْ أَوْ يَضُرُّونَ {73}
या तम्हें कुछ नफा या नुक़सान पहुँचा सकते हैं (73)
वक़ालल लजीना
قَالُوا بَلْ وَجَدْنَا آبَاءنَا كَذَلِكَ يَفْعَلُونَ {74}
कहने लगे (कि ये सब तो कुछ नहीं) बल्कि हमने अपने बाप दादाओं को ऐसा ही करते पाया है (74)
वक़ालल लजीना
قَالَ أَفَرَأَيْتُم مَّا كُنتُمْ تَعْبُدُونَ {75}
इबराहीम ने कहा क्या तुमने देखा भी कि जिन चीज़ों की तुम परसतिश करते हो (75)
वक़ालल लजीना
أَنتُمْ وَآبَاؤُكُمُ الْأَقْدَمُونَ {76}
या तुम्हारे अगले बाप दादा (करते थे) ये सब मेरे यक़ीनी दुश्मन हैं (76)
वक़ालल लजीना
فَإِنَّهُمْ عَدُوٌّ لِّي إِلَّا رَبَّ الْعَالَمِينَ {77}
मगर सारे जहाँ का पालने वाला जिसने मुझे पैदा किया (वही मेरा दोस्त है) (77)
वक़ालल लजीना
الَّذِي خَلَقَنِي فَهُوَ يَهْدِينِ {78}
फिर वही मेरी हिदायत करता है (78)
वक़ालल लजीना
وَالَّذِي هُوَ يُطْعِمُنِي وَيَسْقِينِ {79}
और वह शख़्स जो मुझे (खाना) खिलाता है और मुझे (पानी) पिलाता है (79)
वक़ालल लजीना
وَإِذَا مَرِضْتُ فَهُوَ يَشْفِينِ {80}
और जब बीमार पड़ता हूँ तो वही मुझे शिफ़ा इनायत फरमाता है (80)
वक़ालल लजीना
وَالَّذِي يُمِيتُنِي ثُمَّ يُحْيِينِ {81}
और वह वही हे जो मुझे मार डालेगा और उसके बाद (फिर) मुझे जि़न्दा करेगा (81)
वक़ालल लजीना
وَالَّذِي أَطْمَعُ أَن يَغْفِرَ لِي خَطِيئَتِي يَوْمَ الدِّينِ {82}
और वह वही है जिससे मै उम्मीद रखता हूँ कि क़यामत के दिन मेरी ख़ताओं को बख्श देगा (82)
वक़ालल लजीना
رَبِّ هَبْ لِي حُكْمًا وَأَلْحِقْنِي بِالصَّالِحِينَ {83}
परवरदिगार मुझे इल्म व फहम अता फरमा और मुझे नेकों के साथ शामिल कर (83)
वक़ालल लजीना
وَاجْعَل لِّي لِسَانَ صِدْقٍ فِي الْآخِرِينَ {84}
और आइन्दा आने वाली नस्लों में मेरा जि़क्रे ख़ैर क़ायम रख (84)
वक़ालल लजीना
وَاجْعَلْنِي مِن وَرَثَةِ جَنَّةِ النَّعِيمِ {85}
और मुझे भी नेअमत के बाग़ (बेहेश्त) के वारिसों में से बना (85)
वक़ालल लजीना
وَاغْفِرْ لِأَبِي إِنَّهُ كَانَ مِنَ الضَّالِّينَ {86}
और मेरे (मुँह बोले) बाप (चचा आज़र) को बख्श दे क्योंकि वह गुमराहों में से है (86)
वक़ालल लजीना
وَلَا تُخْزِنِي يَوْمَ يُبْعَثُونَ {87}
और जिस दिन लोग क़ब्रों से उठाए जाएँगें मुझे रुसवा न करना (87)
वक़ालल लजीना
يَوْمَ لَا يَنفَعُ مَالٌ وَلَا بَنُونَ {88}
जिस दिन न तो माल ही कुछ काम आएगा और न लड़के बाले (88)
वक़ालल लजीना
إِلَّا مَنْ أَتَى اللَّهَ بِقَلْبٍ سَلِيمٍ {89}
मगर जो शख़्स ख़ुदा के सामने (गुनाहों से) पाक दिल लिए हुए हाजि़र होगा (वह फायदे में रहेगा) (89)
वक़ालल लजीना
وَأُزْلِفَتِ الْجَنَّةُ لِلْمُتَّقِينَ {90}
और बेहेश्त परहेज़ गारों के क़रीब कर दी जाएगी (90)
वक़ालल लजीना
وَبُرِّزَتِ الْجَحِيمُ لِلْغَاوِينَ {91}
और दोज़ख़ गुमराहों के सामने ज़ाहिर कर दी जाएगी (91)
वक़ालल लजीना
وَقِيلَ لَهُمْ أَيْنَ مَا كُنتُمْ تَعْبُدُونَ {92}
और उन लोगों (एहले जहन्नुम) से पूछा जाएगा कि ख़ुदा को छोड़कर जिनकी तुम परसतिश करते थे (आज) वह कहाँ हैं (92)
वक़ालल लजीना
مِن دُونِ اللَّهِ هَلْ يَنصُرُونَكُمْ أَوْ يَنتَصِرُونَ {93}
क्या वह तुम्हारी कुछ मदद कर सकते हैं या वह ख़ुद अपनी आप बाहम मदद कर सकते हैं (93)
वक़ालल लजीना
فَكُبْكِبُوا فِيهَا هُمْ وَالْغَاوُونَ {94}
फिर वह (माबूद) और गुमराह लोग और शैतान का लशकर (94)
वक़ालल लजीना
وَجُنُودُ إِبْلِيسَ أَجْمَعُونَ {95}
(ग़रज़ सबके सब) जहन्नुम में औधें मुँह ढकेल दिए जाएँगे (95)
वक़ालल लजीना
قَالُوا وَهُمْ فِيهَا يَخْتَصِمُونَ {96}
और ये लोग जहन्नुम में बाहम झगड़ा करेंगे और अपने माबूद से कहेंगे (96)
वक़ालल लजीना
تَاللَّهِ إِن كُنَّا لَفِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ {97}
ख़ुदा की क़सम हम लोग तो यक़ीनन सरीही गुमराही में थे (97)
वक़ालल लजीना
إِذْ نُسَوِّيكُم بِرَبِّ الْعَالَمِينَ {98}
कि हम तुम को सारे जहाँन के पालने वाले (ख़ुदा) के बराबर समझते रहे (98)
वक़ालल लजीना
وَمَا أَضَلَّنَا إِلَّا الْمُجْرِمُونَ {99}
और हमको बस (उन) गुनाहगारों ने (जो मुझसे पहले हुए) गुमराह किया (99)
वक़ालल लजीना
فَمَا لَنَا مِن شَافِعِينَ {100}
तो अब तो न कोई (साहब) मेरी सिफारिश करने वाले हैं (100)
वक़ालल लजीना
وَلَا صَدِيقٍ حَمِيمٍ {101}
और न कोई दिलबन्द दोस्त हैं (101)
वक़ालल लजीना
فَلَوْ أَنَّ لَنَا كَرَّةً فَنَكُونَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ {102}
तो काश हमें अब दुनिया में दोबारा जाने का मौक़ा मिलता तो हम (ज़रुर) इमान वालों से होते (102)
वक़ालल लजीना
إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَةً وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ {103}
इबराहीम के इस किस्से में भी यक़ीनन एक बड़ी इबरत है और इनमें से अक्सर इमान लाने वाले थे भी नहीं (103)
वक़ालल लजीना
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ {104}
और इसमे तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार (सब पर) ग़ालिब और बड़ा मेहरबान है (104)
वक़ालल लजीना
كَذَّبَتْ قَوْمُ نُوحٍ الْمُرْسَلِينَ {105}
(यूँ ही) नूह की क़ौम ने पैग़म्बरो को झुठलाया (105)
वक़ालल लजीना
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ نُوحٌ أَلَا تَتَّقُونَ {106}
कि जब उनसे उन के भाई नूह ने कहा कि तुम लोग (ख़ुदा से) क्यों नहीं डरते मै तो तुम्हारा यक़ीनी अमानत दार पैग़म्बर हूँ (106)
वक़ालल लजीना
إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ {107}
तुम खु़दा से डरो और मेरी इताअत करो (107)
वक़ालल लजीना
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ {108}
और मैं इस (तबलीग़े रिसालत) पर कुछ उजरत तो माँगता नहीं (108)
वक़ालल लजीना
وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَى رَبِّ الْعَالَمِينَ {109}
मेरी उजरत तो बस सारे जहाँ के पालने वाले ख़ुदा पर है (109)
वक़ालल लजीना
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ {110}
तो ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो वह लोग बोले जब कमीनो मज़दूरों वग़ैरह ने (लालच से) तुम्हारी पैरवी कर ली है (110)
वक़ालल लजीना
قَالُوا أَنُؤْمِنُ لَكَ وَاتَّبَعَكَ الْأَرْذَلُونَ {111}
तो हम तुम पर क्या इमान लाए (111)
वक़ालल लजीना
قَالَ وَمَا عِلْمِي بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ {112}
नूह ने कहा ये लोग जो कुछ करते थे मुझे क्या ख़बर (और क्या ग़रज़) (112)
वक़ालल लजीना
إِنْ حِسَابُهُمْ إِلَّا عَلَى رَبِّي لَوْ تَشْعُرُونَ {113}
इन लोगों का हिसाब तो मेरे परवरदिगार के जि़म्मे है (113)
वक़ालल लजीना
وَمَا أَنَا بِطَارِدِ الْمُؤْمِنِينَ {114}
काश तुम (इतनी) समझ रखते और मै तो इमानदारों को अपने पास से निकालने वाला नहीं (114)
वक़ालल लजीना
إِنْ أَنَا إِلَّا نَذِيرٌ مُّبِينٌ {115}
मै तो सिर्फ़ (अज़ाबे ख़ुदा से) साफ़ साफ़ डराने वाला हूँ (115)
वक़ालल लजीना
قَالُوا لَئِن لَّمْ تَنتَهِ يَا نُوحُ لَتَكُونَنَّ مِنَ الْمَرْجُومِينَ {116}
वह लोग कहने लगे ऐ नूह अगर तुम अपनी हरकत से बाज़ न आओगे तो ज़रुर संगसार कर दिए जाओगे (116)
वक़ालल लजीना
قَالَ رَبِّ إِنَّ قَوْمِي كَذَّبُونِ {117}
नूह ने अर्ज़की परवरदिगार मेरी क़ौम ने यक़ीनन मुझे झुठलाया (117)
वक़ालल लजीना
فَافْتَحْ بَيْنِي وَبَيْنَهُمْ فَتْحًا وَنَجِّنِي وَمَن مَّعِي مِنَ الْمُؤْمِنِينَ {118}
तो अब तू मेरे और इन लोगों के दरम्यिान एक क़तई फैसला कर दे और मुझे और जो मोमिनीन मेरे साथ हें उनको नजात दे (118)
वक़ालल लजीना
فَأَنجَيْنَاهُ وَمَن مَّعَهُ فِي الْفُلْكِ الْمَشْحُونِ {119}
ग़रज़ हमने नूह और उनके साथियों को जो भरी हुयी कश्ती में थे नजात दी (119)
वक़ालल लजीना
ثُمَّ أَغْرَقْنَا بَعْدُ الْبَاقِينَ {120}
फिर उसके बाद हमने बाक़ी लोगों को ग़रख़ कर दिया (120)
वक़ालल लजीना
إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَةً وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ {121}
बेशक इसमे भी यक़ीनन बड़ी इबरत है और उनमें से बहुतेरे इमान लाने वाले ही न थे (121)
वक़ालल लजीना
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ {122}
और इसमें तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार (सब पर) ग़ालिब मेहरबान है (122)
वक़ालल लजीना
كَذَّبَتْ عَادٌ الْمُرْسَلِينَ {123}
(इसी तरह क़ौम) आद ने पैग़म्बरों को झुठलाया (123)
वक़ालल लजीना
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ هُودٌ أَلَا تَتَّقُونَ {124}
जब उनके भाई हूद ने उनसे कहा कि तुम ख़ुदा से क्यों नही डरते (124)
वक़ालल लजीना
إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ {125}
मैं तो यक़ीनन तुम्हारा अमानतदार पैग़म्बर हूँ (125)
वक़ालल लजीना
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ {126}
तो ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो (126)
वक़ालल लजीना
وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَى رَبِّ الْعَالَمِينَ {127}
मै तो तुम से इस (तबलीग़े़ रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं माँगता मेरी उजरत तो बस सारी ख़ुदायी के पालने वाले (ख़ुदा) पर है (127)
वक़ालल लजीना
أَتَبْنُونَ بِكُلِّ رِيعٍ آيَةً تَعْبَثُونَ {128}
तो क्या तुम ऊँची जगह पर बेकार यादगारे बनाते फिरते हो (128)
वक़ालल लजीना
وَتَتَّخِذُونَ مَصَانِعَ لَعَلَّكُمْ تَخْلُدُونَ {129}
और बड़े बड़े महल तामीर करते हो गोया तुम हमेशा (यहीं) रहोगे (129)
वक़ालल लजीना
وَإِذَا بَطَشْتُم بَطَشْتُمْ جَبَّارِينَ {130}
और जब तुम (किसी पर) हाथ डालते हो तो सरकशी से हाथ डालते हो (130)
वक़ालल लजीना
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ {131}
तो तुम ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो (131)
वक़ालल लजीना
وَاتَّقُوا الَّذِي أَمَدَّكُم بِمَا تَعْلَمُونَ {132}
और उस शख़्स से डरो जिसने तुम्हारी उन चीज़ों से मदद की जिन्हें तुम खू़ब जानते हो (132)
वक़ालल लजीना
أَمَدَّكُم بِأَنْعَامٍ وَبَنِينَ {133}
अच्छा सुनो उसने तुम्हारे चार पायों और लड़के बालों वग़ैरह और चश्मों से मदद की (133)
वक़ालल लजीना
وَجَنَّاتٍ وَعُيُونٍ {134}
मै तो यक़ीनन तुम पर (134)
वक़ालल लजीना
إِنِّي أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ {135}
एक बड़े (सख़्त) रोज़ के अज़ाब से डरता हूँ (135)
वक़ालल लजीना
قَالُوا سَوَاء عَلَيْنَا أَوَعَظْتَ أَمْ لَمْ تَكُن مِّنَ الْوَاعِظِينَ {136}
वह लोग कहने लगे ख्वाह तुम नसीहत करो या न नसीहत करो हमारे वास्ते (सब) बराबर है (136)
वक़ालल लजीना
إِنْ هَذَا إِلَّا خُلُقُ الْأَوَّلِينَ {137}
ये (डराना) तो बस अगले लोगों की आदत है (137)
वक़ालल लजीना
وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِينَ {138}
हालाँकि हम पर अज़ाब (वग़ैरह अब) किया नहीं जाएगा (138)
वक़ालल लजीना
فَكَذَّبُوهُ فَأَهْلَكْنَاهُمْ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَةً وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ {139}
ग़रज़ उन लोगों ने हूद को झुठला दिया तो हमने भी उनको हलाक कर डाला बेशक इस वाकि़ये में यक़ीनी एक बड़ी इबरत है आर उनमें से बहुतेरे इमान लाने वाले भी न थे (139)
वक़ालल लजीना
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ {140}
और इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन (सब पर) ग़ालिब (और) बड़ा मेहरबान है (140)
वक़ालल लजीना
كَذَّبَتْ ثَمُودُ الْمُرْسَلِينَ {141}
(इसी तरह क़ौम) समूद ने पैग़म्बरों को झुठलाया (141)
वक़ालल लजीना
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ صَالِحٌ أَلَا تَتَّقُونَ {142}
जब उनके भाई सालेह ने उनसे कहा कि तुम (ख़ुदा से) क्यो नहीं डरते (142)
वक़ालल लजीना
إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ {143}
मैं तो यक़ीनन तुम्हारा अमानतदार पैग़म्बर हूँ (143)
वक़ालल लजीना
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ {144}
तो खु़दा से डरो और मेरी इताअत करो (144)
वक़ालल लजीना
وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَى رَبِّ الْعَالَمِينَ {145}
और मै तो तुमसे इस (तबलीगे़ रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं माँगता- मेरी मज़दूरी तो बस सारी ख़ुदाई के पालने वाले (ख़ुदा पर है) (145)
वक़ालल लजीना
أَتُتْرَكُونَ فِي مَا هَاهُنَا آمِنِينَ {146}
क्या जो चीजे़ं यहाँ (दुनिया में) मौजूद है (146)
वक़ालल लजीना
فِي جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ {147}
बाग़ और चश्मे और खेतिया और छुहारे जिनकी कलियाँ लतीफ़ व नाज़ुक होती है (147)
वक़ालल लजीना
وَزُرُوعٍ وَنَخْلٍ طَلْعُهَا هَضِيمٌ {148}
उन्हीं मे तुम लोग इतमिनान से (हमेशा के लिए) छोड़ दिए जाओगे (148)
वक़ालल लजीना
وَتَنْحِتُونَ مِنَ الْجِبَالِ بُيُوتًا فَارِهِينَ {149}
और (इस वजह से) पूरी महारत और तकलीफ़ के साथ पहाड़ों को काट काट कर घर बनाते हो (149)
वक़ालल लजीना
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ {150}
तो ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो (150)
वक़ालल लजीना
وَلَا تُطِيعُوا أَمْرَ الْمُسْرِفِينَ {151}
और ज़्यादती करने वालों का कहा न मानों (151)
वक़ालल लजीना
الَّذِينَ يُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ وَلَا يُصْلِحُونَ {152}
जो रुए ज़मीन पर फ़साद फैलाया करते हैं और (ख़राबियों की) इसलाह नहीं करते (152)
वक़ालल लजीना
قَالُوا إِنَّمَا أَنتَ مِنَ الْمُسَحَّرِينَ {153}
वह लोग बोले कि तुम पर तो बस जादू कर दिया गया है (कि ऐसी बातें करते हो) (153)
वक़ालल लजीना
مَا أَنتَ إِلَّا بَشَرٌ مِّثْلُنَا فَأْتِ بِآيَةٍ إِن كُنتَ مِنَ الصَّادِقِينَ {154}
तुम भी तो आखि़र हमारे ही ऐसे आदमी हो पस अगर तुम सच्चे हो तो कोई मौजिज़ा हमारे पास ला (दिखाओ) (154)
वक़ालल लजीना
قَالَ هَذِهِ نَاقَةٌ لَّهَا شِرْبٌ وَلَكُمْ شِرْبُ يَوْمٍ مَّعْلُومٍ {155}
सालेह ने कहा- यही ऊँटनी (मौजिज़ा) है एक बारी इसके पानी पीने की है और एक मुक़र्रर दिन तुम्हारे पीने का (155)
वक़ालल लजीना
وَلَا تَمَسُّوهَا بِسُوءٍ فَيَأْخُذَكُمْ عَذَابُ يَوْمٍ عَظِيمٍ {156}
और इसको कोई तकलीफ़ न पहुँचाना वरना एक बड़े (सख़्त) ज़ोर का अज़ाब तुम्हे ले डालेगा (156)
वक़ालल लजीना
فَعَقَرُوهَا فَأَصْبَحُوا نَادِمِينَ {157}
इस पर भी उन लोगों ने उसके पाँव काट डाले और (उसको मार डाला) फिर ख़़ुद पशेमान हुए (157)
वक़ालल लजीना
فَأَخَذَهُمُ الْعَذَابُ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَةً وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ {158}
फिर उन्हें अज़ाब ने ले डाला-बेशक इसमें यक़ीनन एक बड़ी इबरत है और इनमें के बहुतेरे इमान लाने वाले भी न थे (158)
वक़ालल लजीना
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ {159}
और इसमें शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार (सब पर) ग़ालिब और मेहरबान है (159)
वक़ालल लजीना
كَذَّبَتْ قَوْمُ لُوطٍ الْمُرْسَلِينَ {160}
इसी तरह लूत की क़ौम ने पैग़म्बरों को झुठलाया (160)
वक़ालल लजीना
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ لُوطٌ أَلَا تَتَّقُونَ {161}
जब उनके भाई लूत ने उनसे कहा कि तुम (ख़ुदा से) क्यों नहीं डरते (161)
वक़ालल लजीना
إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ {162}
मै तो यक़ीनन तुम्हारा अमानतदार पैग़म्बर हूँ तो ख़ुदा से डरो (162)
वक़ालल लजीना
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ {163}
और मेरी इताअत करो (163)
वक़ालल लजीना
وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَى رَبِّ الْعَالَمِينَ {164}
और मै तो तुमसे इस (तबलीगे़ रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं माँगता मेरी मज़दूरी तो बस सारी ख़ुदायी के पालने वाले (ख़ुदा) पर है (164)
वक़ालल लजीना
أَتَأْتُونَ الذُّكْرَانَ مِنَ الْعَالَمِينَ {165}
क्या तुम लोग (शहवत परस्ती के लिए) सारे जहाँ के लोगों में मर्दों ही के पास जाते हो (165)
वक़ालल लजीना
وَتَذَرُونَ مَا خَلَقَ لَكُمْ رَبُّكُمْ مِنْ أَزْوَاجِكُم بَلْ أَنتُمْ قَوْمٌ عَادُونَ {166}
और तुम्हारे वास्ते जो बीवियाँ तुम्हारे परवरदिगार ने पैदा की है उन्हें छोड़ देते हो (ये कुछ नहीं) बल्कि तुम लोग हद से गुज़र जाने वाले आदमी हो (166)
वक़ालल लजीना
قَالُوا لَئِن لَّمْ تَنتَهِ يَا لُوطُ لَتَكُونَنَّ مِنَ الْمُخْرَجِينَ {167}
उन लोगों ने कहा ऐ लूत अगर तुम बाज़ न आओगे तो तुम ज़रुर निकाल बाहर कर दिए जाओगे (167)
वक़ालल लजीना
قَالَ إِنِّي لِعَمَلِكُم مِّنَ الْقَالِينَ {168}
लूत ने कहा मै यक़ीनन तुम्हारी (नाशाइसता) हरकत से बेज़ार हूँ (168)
वक़ालल लजीना
رَبِّ نَجِّنِي وَأَهْلِي مِمَّا يَعْمَلُونَ {169}
(और दुआ की) परवरदिगार जो कुछ ये लोग करते है उससे मुझे और मेरे लड़कों को नजात दे (169)
वक़ालल लजीना
فَنَجَّيْنَاهُ وَأَهْلَهُ أَجْمَعِينَ {170}
तो हमने उनको और उनके सब लड़कों को नजात दी (170)
वक़ालल लजीना
إِلَّا عَجُوزًا فِي الْغَابِرِينَ {171}
मगर (लूत की) बूढ़ी औरत कि वह पीछे रह गयी (171)
वक़ालल लजीना
ثُمَّ دَمَّرْنَا الْآخَرِينَ {172}
(और हलाक हो गयी) फिर हमने उन लोगों को हलाक कर डाला (172)
वक़ालल लजीना
وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهِم مَّطَرًا فَسَاء مَطَرُ الْمُنذَرِينَ {173}
और उन पर हमने (पत्थरों का) मेंह बरसाया तो जिन लोगों को (अज़ाबे ख़ुदा से) डराया गया था (173)
वक़ालल लजीना
إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَةً وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ {174}
उन पर क्या बड़ी बारिश हुयी इस वाकि़ये में भी एक बड़ी इबरत है और इनमें से बहुतेरे इमान लाने वाले ही न थे (174)
वक़ालल लजीना
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ {175}
और इसमे तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन सब पर ग़ालिब (और) बड़ा मेहरबान है (175)
वक़ालल लजीना
كَذَّبَ أَصْحَابُ الْأَيْكَةِ الْمُرْسَلِينَ {176}
इसी तरह जंगल के रहने वालों ने (मेरे) पैग़म्बरों को झुठलाया (176)
वक़ालल लजीना
إِذْ قَالَ لَهُمْ شُعَيْبٌ أَلَا تَتَّقُونَ {177}
जब शुएब ने उनसे कहा कि तुम (ख़़ुदा से) क्यों नहीं डरते (177)
वक़ालल लजीना
إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ {178}
मै तो बिला शुबाह तुम्हारा अमानदार हूँ (178)
वक़ालल लजीना
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ {179}
तो ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो (179)
वक़ालल लजीना
وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَى رَبِّ الْعَالَمِينَ {180}
मै तो तुमसे इस (तबलीग़े रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं माँगता मेरी मज़दूरी तो बस सारी ख़ुदाई के पालने वाले (ख़ुदा) के जि़म्मे है (180)
वक़ालल लजीना
أَوْفُوا الْكَيْلَ وَلَا تَكُونُوا مِنَ الْمُخْسِرِينَ {181}
तुम (जब कोई चीज़ नाप कर दो तो) पूरा पैमाना दिया करो और नुक़सान (कम देने वाले) न बनो (181)
वक़ालल लजीना
وَزِنُوا بِالْقِسْطَاسِ الْمُسْتَقِيمِ {182}
और तुम (जब तौलो तो) ठीक तराज़ू से डन्डी सीधी रखकर तौलो (182)
वक़ालल लजीना
وَلَا تَبْخَسُوا النَّاسَ أَشْيَاءهُمْ وَلَا تَعْثَوْا فِي الْأَرْضِ مُفْسِدِينَ {183}
और लोगों को उनकी चीज़े (जो ख़रीदें) कम न ज़्यादा करो और ज़मीन से फसाद न फैलाते फिरो (183)
वक़ालल लजीना
وَاتَّقُوا الَّذِي خَلَقَكُمْ وَالْجِبِلَّةَ الْأَوَّلِينَ {184}
और उस (ख़ुदा) से डरो जिसने तुम्हे और अगली खि़लकत को पैदा किया (184)
वक़ालल लजीना
قَالُوا إِنَّمَا أَنتَ مِنَ الْمُسَحَّرِينَ {185}
वह लोग कहने लगे तुम पर तो बस जादू कर दिया गया है (कि ऐसी बातें करते हों) (185)
वक़ालल लजीना
وَمَا أَنتَ إِلَّا بَشَرٌ مِّثْلُنَا وَإِن نَّظُنُّكَ لَمِنَ الْكَاذِبِينَ {186}
और तुम तो हमारे ही ऐसे एक आदमी हो और हम लोग तो तुमको झूठा ही समझते हैं (186)
वक़ालल लजीना
فَأَسْقِطْ عَلَيْنَا كِسَفًا مِّنَ السَّمَاء إِن كُنتَ مِنَ الصَّادِقِينَ {187}
तो अगर तुम सच्चे हो तो हम पर आसमान का एक टुकड़ा गिरा दो (187)
वक़ालल लजीना
قَالَ رَبِّي أَعْلَمُ بِمَا تَعْمَلُونَ {188}
और शुएब ने कहा जो तुम लोग करते हो मेरा परवरदिगार ख़ूब जानता है (188)
वक़ालल लजीना
فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَهُمْ عَذَابُ يَوْمِ الظُّلَّةِ إِنَّهُ كَانَ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ {189}
ग़रज़ उन लोगों ने शुएब को झुठलाया तो उन्हें साएबान (अब्र) के अज़ाब ने ले डाला- इसमे शक नहीं कि ये भी एक बड़े (सख़्त) दिन का अज़ाब था (189)
वक़ालल लजीना
إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَةً وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ {190}
इसमे भी शक नहीं कि इसमें (समझदारों के लिए) एक बड़ी इबरत है और उनमें के बहुतेरे इमान लाने वाले ही न थे (190)
वक़ालल लजीना
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ {191}
और बेशक तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन (सब पर) ग़ालिब (और) बड़ा मेहरबान है (191)
वक़ालल लजीना
وَإِنَّهُ لَتَنزِيلُ رَبِّ الْعَالَمِينَ {192}
और (ऐ रसूल) बेशक ये (क़़ुरआन) सारी ख़़ुदायी के पालने वाले (ख़़ुदा) का उतारा हुआ है (192)
वक़ालल लजीना
نَزَلَ بِهِ الرُّوحُ الْأَمِينُ {193}
जिसे रुहुल अमीन (जिबरील) साफ़ अरबी ज़बान में लेकर तुम्हारे दिल पर नाजि़ल हुए है (193)
वक़ालल लजीना
عَلَى قَلْبِكَ لِتَكُونَ مِنَ الْمُنذِرِينَ {194}
ताकि तुम भी और पैग़म्बरों की तरह (194)
वक़ालल लजीना
بِلِسَانٍ عَرَبِيٍّ مُّبِينٍ {195}
लोगों को अज़ाबे ख़ुदा से डराओ (195)
वक़ालल लजीना
وَإِنَّهُ لَفِي زُبُرِ الْأَوَّلِينَ {196}
और बेशक इसकी ख़बर अगले पैग़म्बरों की किताबों मे (भी मौजूद) है (196)
वक़ालल लजीना
أَوَلَمْ يَكُن لَّهُمْ آيَةً أَن يَعْلَمَهُ عُلَمَاء بَنِي إِسْرَائِيلَ {197}
क्या उनके लिए ये कोई (काफ़ी) निशानी नहीं है कि इसको उलेमा बनी इसराइल जानते हैं (197)
वक़ालल लजीना
وَلَوْ نَزَّلْنَاهُ عَلَى بَعْضِ الْأَعْجَمِينَ {198}
और अगर हम इस क़़ुरआन को किसी दूसरी ज़बान वाले पर नाजि़ल करते (198)
वक़ालल लजीना
فَقَرَأَهُ عَلَيْهِم مَّا كَانُوا بِهِ مُؤْمِنِينَ {199}
और वह उन अरबो के सामने उसको पढ़ता तो भी ये लोग उस पर इमान लाने वाले न थे (199)
वक़ालल लजीना
كَذَلِكَ سَلَكْنَاهُ فِي قُلُوبِ الْمُجْرِمِينَ {200}
इसी तरह हमने (गोया ख़ुद) इस इन्कार को गुनाहगारों के दिलों में राह दी (200)
वक़ालल लजीना
لَا يُؤْمِنُونَ بِهِ حَتَّى يَرَوُا الْعَذَابَ الْأَلِيمَ {201}
ये लोग जब तक दर्दनाक अज़ाब को न देख लेगें उस पर इमान न लाएँगे (201)
वक़ालल लजीना
فَيَأْتِيَهُم بَغْتَةً وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ {202}
कि वह यकायक इस हालत में उन पर आ पडे़गा कि उन्हें ख़बर भी न होगी (202)
वक़ालल लजीना
فَيَقُولُوا هَلْ نَحْنُ مُنظَرُونَ {203}
(मगर जब अज़ाब नाजि़ल होगा) तो वह लोग कहेंगे कि क्या हमें (इस वक़्त कुछ) मोहलत मिल सकती है (203)
वक़ालल लजीना
أَفَبِعَذَابِنَا يَسْتَعْجِلُونَ {204}
तो क्या ये लोग हमारे अज़ाब की जल्दी कर रहे हैं (204)
वक़ालल लजीना
أَفَرَأَيْتَ إِن مَّتَّعْنَاهُمْ سِنِينَ {205}
तो क्या तुमने ग़ौर किया कि अगर हम उनको सालो साल चैन करने दे (205)
वक़ालल लजीना
ثُمَّ جَاءهُم مَّا كَانُوا يُوعَدُونَ {206}
उसके बाद जिस (अज़ाब) का उनसे वायदा किया जाता है उनके पास आ पहुँचे (206)
वक़ालल लजीना
مَا أَغْنَى عَنْهُم مَّا كَانُوا يُمَتَّعُونَ {207}
तो जिन चीज़ों से ये लोग चैन किया करते थे कुछ भी काम न आएँगी (207)
वक़ालल लजीना
وَمَا أَهْلَكْنَا مِن قَرْيَةٍ إِلَّا لَهَا مُنذِرُونَ {208}
और हमने किसी बस्ती को बग़ैर उसके हलाक़ नहीं किया कि उसके समझाने को (पहले से) डराने वाले (पैग़म्बर भेज दिए) थे (208)
वक़ालल लजीना
ذِكْرَى وَمَا كُنَّا ظَالِمِينَ {209}
और हम ज़ालिम नहीं है (209)
वक़ालल लजीना
وَمَا تَنَزَّلَتْ بِهِ الشَّيَاطِينُ {210}
और इस क़़ुरआन को शयातीन लेकर नाजि़ल नही हुए (210)
वक़ालल लजीना
وَمَا يَنبَغِي لَهُمْ وَمَا يَسْتَطِيعُونَ {211}
और ये काम न तो उनके लिए मुनासिब था और न वह कर सकते थे (211)
वक़ालल लजीना
إِنَّهُمْ عَنِ السَّمْعِ لَمَعْزُولُونَ {212}
बल्कि वह तो (वही के) सुनने से महरुम हैं (212)
वक़ालल लजीना
فَلَا تَدْعُ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ فَتَكُونَ مِنَ الْمُعَذَّبِينَ {213}
(ऐ रसूल) तुम ख़़ुदा के साथ किसी दूसरे माबूद की इबादत न करो वरना तुम भी मुबतिलाए अज़ाब किए जाओगे (213)
वक़ालल लजीना
وَأَنذِرْ عَشِيرَتَكَ الْأَقْرَبِينَ {214}
और (ऐ रसूल) तुम अपने क़रीबी रिश्तेदारों को (अज़ाबे ख़ुदा से) डराओ (214)
वक़ालल लजीना
وَاخْفِضْ جَنَاحَكَ لِمَنِ اتَّبَعَكَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ {215}
और जो मोमिनीन तुम्हारे पैरो हो गए हैं उनके सामने अपना बाजू़ झुकाओ (215)
वक़ालल लजीना
فَإِنْ عَصَوْكَ فَقُلْ إِنِّي بَرِيءٌ مِّمَّا تَعْمَلُونَ {216}
(तो वाज़ेए करो) पस अगर लोग तुम्हारी नाफ़रमानी करें तो तुम (साफ़ साफ़) कह दो कि मैं तुम्हारे करतूतों से बरी उज़ जि़म्मा हूँ (216)
वक़ालल लजीना
وَتَوَكَّلْ عَلَى الْعَزِيزِ الرَّحِيمِ {217}
और तुम उस (ख़ुदा) पर जो सबसे (ग़ालिब और) मेहरबान है (217)
वक़ालल लजीना
الَّذِي يَرَاكَ حِينَ تَقُومُ {218}
भरोसा रखो कि जब तुम (नमाजे़ तहज्जुद में) खड़े होते हो (218)
वक़ालल लजीना
وَتَقَلُّبَكَ فِي السَّاجِدِينَ {219}
और सजदा (219)
वक़ालल लजीना
إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ {220}
करने वालों (की जमाअत) में तुम्हारा फिरना (उठना बैठना सजदा रुकूउ वगै़रह सब) देखता है (220)
वक़ालल लजीना
هَلْ أُنَبِّئُكُمْ عَلَى مَن تَنَزَّلُ الشَّيَاطِينُ {221}
बेशक वह बड़ा सुनने वाला वाकि़फ़कार है क्या मै तुम्हें बता दूँ कि शयातीन किन लोगों पर नाजि़ल हुआ करते हैं (221)
वक़ालल लजीना
تَنَزَّلُ عَلَى كُلِّ أَفَّاكٍ أَثِيمٍ {222}
(लो सुनो) ये लोग झूठे बद किरदार पर नाजि़ल हुआ करते हैं (222)
वक़ालल लजीना
يُلْقُونَ السَّمْعَ وَأَكْثَرُهُمْ كَاذِبُونَ {223}
जो (फ़रिश्तों की बातों पर कान लगाए रहते हैं) कि कुछ सुन पाएँ (223)
वक़ालल लजीना
وَالشُّعَرَاء يَتَّبِعُهُمُ الْغَاوُونَ {224}
हालाँकि उनमें के अक्सर तो (बिल्कुल) झूठे हैं और शायरों की पैरवी तो गुमराह लोग किया करते हैं (224)
वक़ालल लजीना
أَلَمْ تَرَ أَنَّهُمْ فِي كُلِّ وَادٍ يَهِيمُونَ {225}
क्या तुम नहीं देखते कि ये लोग जंगल जंगल सरगिरदा मारे मारे फिरते हैं (225)
वक़ालल लजीना
وَأَنَّهُمْ يَقُولُونَ مَا لَا يَفْعَلُونَ {226}
और ये लोग ऐसी बाते कहते हैं जो कभी करते नहीं (226)
वक़ालल लजीना
إِلَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَذَكَرُوا اللَّهَ كَثِيراً وَانتَصَرُوا مِن بَعْدِ مَا ظُلِمُوا وَسَيَعْلَمُ الَّذِينَ ظَلَمُوا أَيَّ مُنقَلَبٍ يَنقَلِبُونَ {227}
मगर (हाँ) जिन लोगों ने इमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए और क़सरत से ख़़ुदा का जि़क्र किया करते हैं और जब उन पर ज़़ुल्म किया जा चुका उसके बाद उन्होंनें बदला लिया और जिन लोगों ने ज़ु़ल्म किया है उन्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगा कि वह किस जगह लौटाए जाएँगें (227)
वक़ालल लजीना
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ
खु़दा के नाम से (शुरु करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है
वक़ालल लजीना
طس تِلْكَ آيَاتُ الْقُرْآنِ وَكِتَابٍ مُّبِينٍ {1}
ता सीन ये क़ुरआन वाजे़ए व रौशन किताब की आयतें है (1)
वक़ालल लजीना
هُدًى وَبُشْرَى لِلْمُؤْمِنِينَ {2}
(ये) उन इमानदारों के लिए (अज़सरतापा) हिदायत और (जन्नत की) ख़ुशखबरी है (2)
वक़ालल लजीना
الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُم بِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ {3}
जो नमाज़ को पाबन्दी से अदा करते हैं और ज़कात दिया करते हैं और यही लोग आखि़रत (क़यामत) का भी यक़ीन रखते हैं (3)
वक़ालल लजीना
إِنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ زَيَّنَّا لَهُمْ أَعْمَالَهُمْ فَهُمْ يَعْمَهُونَ {4}
इसमें शक नहीं कि जो लोग आखिरत पर इमान नहीं रखते (गोया) हमने ख़ुद (उनकी कारस्तानियों को उनकी नज़र में) अच्छा कर दिखाया है (4)
वक़ालल लजीना
أُوْلَئِكَ الَّذِينَ لَهُمْ سُوءُ الْعَذَابِ وَهُمْ فِي الْآخِرَةِ هُمُ الْأَخْسَرُونَ {5}
तो ये लोग भटकते फिरते हैं- यही वह लोग हैं जिनके लिए (क़यामत में) बड़ा अज़ाब है और यही लोग आखि़रत में सबसे ज़्यादा घाटा उठाने वाले हैं (5)
वक़ालल लजीना
وَإِنَّكَ لَتُلَقَّى الْقُرْآنَ مِن لَّدُنْ حَكِيمٍ عَلِيمٍ {6}
और (ऐ रसूल) तुमको तो क़ुरआन एक बडे़ वाकि़फकार हकीम की बारगाह से अता किया जाता है (6)
वक़ालल लजीना
إِذْ قَالَ مُوسَى لِأَهْلِهِ إِنِّي آنَسْتُ نَارًا سَآتِيكُم مِّنْهَا بِخَبَرٍ أَوْ آتِيكُم بِشِهَابٍ قَبَسٍ لَّعَلَّكُمْ تَصْطَلُونَ {7}
(वह वाकि़या याद दिलाओ) जब मूसा ने अपने लड़के बालों से कहा कि मैने (अपनी बायीं तरफ) आग देखी है (एक ज़रा ठहरो तो) मै वहाँ से कुछ (राह की) ख़बर लाँऊ या तुम्हें एक सुलगता हुआ आग का अँगारा ला दूँ ताकि तुम तापो (7)
वक़ालल लजीना
فَلَمَّا جَاءهَا نُودِيَ أَن بُورِكَ مَن فِي النَّارِ وَمَنْ حَوْلَهَا وَسُبْحَانَ اللَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ {8}
ग़रज़ जब मूसा इस आग के पास आए तो उनको आवाज़ आयी कि मुबारक है वह जो आग में (तजल्ली दिखाना) है और जो उसके गिर्द है और वह ख़ुदा सारे जहाँ का पालने वाला है (8)
वक़ालल लजीना
يَا مُوسَى إِنَّهُ أَنَا اللَّهُ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ {9}
(हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है- ऐ मूसा इसमें शक नहीं कि मै ज़बरदस्त हिकमत वाला हूँ (9)
वक़ालल लजीना
وَأَلْقِ عَصَاكَ فَلَمَّا رَآهَا تَهْتَزُّ كَأَنَّهَا جَانٌّ وَلَّى مُدْبِرًا وَلَمْ يُعَقِّبْ يَا مُوسَى لَا تَخَفْ إِنِّي لَا يَخَافُ لَدَيَّ الْمُرْسَلُونَ {10}
और (हाँ) अपनी छड़ी तो (ज़मीन पर) डाल दो तो जब मूसा ने उसको देखा कि वह इस तरह लहरा रही है गोया वह जिन्द़ा अज़दहा है तो पिछले पावँ भाग चले और पीछे मुड़कर भी न देखा (तो हमने कहा) ऐ मूसा डरो नहीं हमारे पास पैग़म्बर लोग डरा नहीं करते हैं (10)
वक़ालल लजीना
إِلَّا مَن ظَلَمَ ثُمَّ بَدَّلَ حُسْنًا بَعْدَ سُوءٍ فَإِنِّي غَفُورٌ رَّحِيمٌ {11}
(मुतमइन हो जाते है) मगर जो शख़्स गुनाह करे फिर गुनाह के बाद उसे नेकी (तौबा) से बदल दे तो अलबत्ता बड़ा बख्शने वाला मेहरबान हूँ (11)
वक़ालल लजीना
وَأَدْخِلْ يَدَكَ فِي جَيْبِكَ تَخْرُجْ بَيْضَاء مِنْ غَيْرِ سُوءٍ فِي تِسْعِ آيَاتٍ إِلَى فِرْعَوْنَ وَقَوْمِهِ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ {12}
(वहाँ) और अपना हाथ अपने गरेबा में तो डालो कि वह सफेद बुर्राक़ होकर बेऐब निकल आएगा (ये वह मौजिज़े) मिन जुमला नौ मोजिज़ात के हैं जो तुमको मिलेगें तुम फ़िरऔन और उसकी क़ौम के पास (जाओ) क्योंकि वह बदकिरदार लोग हैं (12)
वक़ालल लजीना
فَلَمَّا جَاءتْهُمْ آيَاتُنَا مُبْصِرَةً قَالُوا هَذَا سِحْرٌ مُّبِينٌ {13}
तो जब उनके पास हमारे आँखें खोल देने वाले मैजिज़े आए तो कहने लगे ये तो खुला हुआ जादू है (13)
वक़ालल लजीना
وَجَحَدُوا بِهَا وَاسْتَيْقَنَتْهَا أَنفُسُهُمْ ظُلْمًا وَعُلُوًّا فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُفْسِدِينَ {14}
और बावजूद के उनके दिल को उन मौजिज़ात का यक़ीन था मगर फिर भी उन लोगों ने सरकशी और तकब्बुर से उनको न माना तो (ऐ रसूल) देखो कि (आखिर) मुफसिदों का अन्जाम क्या होगा (14)
वक़ालल लजीना
وَلَقَدْ آتَيْنَا دَاوُودَ وَسُلَيْمَانَ عِلْمًا وَقَالَا الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي فَضَّلَنَا عَلَى كَثِيرٍ مِّنْ عِبَادِهِ الْمُؤْمِنِينَ {15}
और इसमें शक नहीं कि हमने दाऊद और सुलेमान को इल्म अता किया और दोनों ने (ख़ुश होकर) कहा ख़ुदा का शुक्र जिसने हमको अपने बहुतेरे ईमानदार बन्दों पर फज़ीलत दी (15)
वक़ालल लजीना
وَوَرِثَ سُلَيْمَانُ دَاوُودَ وَقَالَ يَا أَيُّهَا النَّاسُ عُلِّمْنَا مَنطِقَ الطَّيْرِ وَأُوتِينَا مِن كُلِّ شَيْءٍ إِنَّ هَذَا لَهُوَ الْفَضْلُ الْمُبِينُ {16}
और (इल्म हिकमत जाएदाद (मनकूला) गै़र मनकूला सब में) सुलेमान दाऊद के वारिस हुए और कहा कि लोग हम को (ख़ुदा के फज़ल से) परिन्दों की बोली भी सिखायी गयी है और हमें (दुनिया की) हर चीज़ अता की गयी है इसमें शक नहीं कि ये यक़ीनी (ख़ुदा का) सरीही फज़ल व करम है (16)
वक़ालल लजीना
وَحُشِرَ لِسُلَيْمَانَ جُنُودُهُ مِنَ الْجِنِّ وَالْإِنسِ وَالطَّيْرِ فَهُمْ يُوزَعُونَ {17}
और सुलेमान के सामने उनके लशकर जिन्नात और आदमी और परिन्दे सब जमा किए जाते थे (17)
वक़ालल लजीना
حَتَّى إِذَا أَتَوْا عَلَى وَادِي النَّمْلِ قَالَتْ نَمْلَةٌ يَا أَيُّهَا النَّمْلُ ادْخُلُوا مَسَاكِنَكُمْ لَا يَحْطِمَنَّكُمْ سُلَيْمَانُ وَجُنُودُهُ وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ {18}
तो वह सबके सब (मसल मसल) खडे़ किए जाते थे (ग़रज़ इस तरह लशकर चलता) यहाँ तक कि जब (एक दिन) चीटीयों के मैदान में आ निकले तो एक चीटीं बोली ऐ चीटीयों अपने अपने बिल में घुस जाओ- ऐसा न हो कि सुलेमान और उनका लशकर तुम्हे रौन्द डाले और उन्हें उसकी ख़बर भी न हो (18)
वक़ालल लजीना
فَتَبَسَّمَ ضَاحِكًا مِّن قَوْلِهَا وَقَالَ رَبِّ أَوْزِعْنِي أَنْ أَشْكُرَ نِعْمَتَكَ الَّتِي أَنْعَمْتَ عَلَيَّ وَعَلَى وَالِدَيَّ وَأَنْ أَعْمَلَ صَالِحًا تَرْضَاهُ وَأَدْخِلْنِي بِرَحْمَتِكَ فِي عِبَادِكَ الصَّالِحِينَ {19}
तो सुलेमान इस बात से मुस्कुरा के हँस पड़ें और अर्ज़ की परवरदिगार मुझे तौफीक़ अता फरमा कि जैसी जैसी नेअमतें तूने मुझ पर और मेरे वालदैन पर नाजि़ल फरमाई हैं मै (उनका) शुक्रिया अदा करुँ और मैं ऐसे नेक काम करुँ जिसे तू पसन्द फ़रमाए और तू अपनी ख़ास मेहरबानी से मुझे (अपने) नेकोकार बन्दों में दाखिल कर (19)
वक़ालल लजीना
وَتَفَقَّدَ الطَّيْرَ فَقَالَ مَا لِيَ لَا أَرَى الْهُدْهُدَ أَمْ كَانَ مِنَ الْغَائِبِينَ {20}
और सुलेमान ने परिन्दों (के लशकर) की हाजि़री ली तो कहने लगे कि क्या बात है कि मै हुदहुद को (उसकी जगह पर) नहीं देखता क्या (वाक़ई में) वह कही ग़ायब है (20)
वक़ालल लजीना
لَأُعَذِّبَنَّهُ عَذَابًا شَدِيدًا أَوْ لَأَذْبَحَنَّهُ أَوْ لَيَأْتِيَنِّي بِسُلْطَانٍ مُّبِينٍ {21}
(अगर ऐसा है तो) मै उसे सख़्त से सख़्त सज़ा दूँगा या (नहीं तो ) उसे ज़बाह ही कर डालूँगा या वह (अपनी बेगुनाही की) कोई साफ़ दलील मेरे पास पेश करे (21)
वक़ालल लजीना
فَمَكَثَ غَيْرَ بَعِيدٍ فَقَالَ أَحَطتُ بِمَا لَمْ تُحِطْ بِهِ وَجِئْتُكَ مِن سَبَإٍ بِنَبَإٍ يَقِينٍ {22}
ग़रज़ सुलेमान ने थोड़ी ही देर (तवक्कुफ़ किया था कि (हुदहुद) आ गया) तो उसने अर्ज़ की मुझे यह बात मालूम हुयी है जो अब तक हुज़ूर को भी मालूम नहीं है और आप के पास शहरे सबा से एक तहक़ीकी ख़बर लेकर आया हूँ (22)
वक़ालल लजीना
إِنِّي وَجَدتُّ امْرَأَةً تَمْلِكُهُمْ وَأُوتِيَتْ مِن كُلِّ شَيْءٍ وَلَهَا عَرْشٌ عَظِيمٌ {23}
मैने एक औरत को देखा जो वहाँ के लोगों पर सलतनत करती है और उसे (दुनिया की) हर चीज़ अता की गयी है और उसका एक बड़ा तख़्त है (23)
वक़ालल लजीना
وَجَدتُّهَا وَقَوْمَهَا يَسْجُدُونَ لِلشَّمْسِ مِن دُونِ اللَّهِ وَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطَانُ أَعْمَالَهُمْ فَصَدَّهُمْ عَنِ السَّبِيلِ فَهُمْ لَا يَهْتَدُونَ {24}
मैने खु़द मलका को देखा और उसकी क़ौम को देखा कि वह लोग ख़ुदा को छोड़कर आफ़ताब को सजदा करते हैं शैतान ने उनकी करतूतों को (उनकी नज़र में) अच्छा कर दिखाया है और उनको राहे रास्त से रोक रखा है (24)
वक़ालल लजीना
أَلَّا يَسْجُدُوا لِلَّهِ الَّذِي يُخْرِجُ الْخَبْءَ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَيَعْلَمُ مَا تُخْفُونَ وَمَا تُعْلِنُونَ {25}
तो उन्हें (इतनी सी बात भी नहीं सूझती) कि वह लोग ख़ुदा ही का सजदा क्यों नहीं करते जो आसमान और ज़मीन की पोशीदा बातों को ज़ाहिर कर देता है और तुम लोग जो कुछ छिपाकर या ज़ाहिर करके करते हो सब जानता है (25)
वक़ालल लजीना
اللَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ الْعَرْشِ الْعَظِيمِ {26}
अल्लाह वह है जिससे सिवा कोई माबूद नहीं वही (इतने) बड़े अर्श का मालिक है (सजदा) (26)
वक़ालल लजीना
قَالَ سَنَنظُرُ أَصَدَقْتَ أَمْ كُنتَ مِنَ الْكَاذِبِينَ {27}
(ग़रज़) सुलेमान ने कहा हम अभी देखते हैं कि तूने सच सच कहा या तू झूठा है (27)
वक़ालल लजीना
اذْهَب بِّكِتَابِي هَذَا فَأَلْقِهْ إِلَيْهِمْ ثُمَّ تَوَلَّ عَنْهُمْ فَانظُرْ مَاذَا يَرْجِعُونَ {28}
(अच्छा) हमारा ये ख़त लेकर जा और उसको उन लोगों के सामने डाल दे फिर उन के पास से जाना फिर देखते रहना कि वह लोग अखि़र क्या जवाब देते हैं (28)
वक़ालल लजीना
قَالَتْ يَا أَيُّهَا المَلَأُ إِنِّي أُلْقِيَ إِلَيَّ كِتَابٌ كَرِيمٌ {29}
(ग़रज़) हुद हुद ने मलका के पास ख़त पहुँचा दिया तो मलका बोली ऐ (मेरे दरबार के) सरदारों ये एक वाजिबुल एहतराम ख़त मेरे पास डाल दिया गया है (29)
वक़ालल लजीना
إِنَّهُ مِن سُلَيْمَانَ وَإِنَّهُ بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ {30}
सुलेमान की तरफ से है (ये उसका सरनामा) है बिस्मिल्लाहिररहमानिरहीम (30)
वक़ालल लजीना
أَلَّا تَعْلُوا عَلَيَّ وَأْتُونِي مُسْلِمِينَ {31}
(और मज़मून) यह है कि मुझ से सरकशी न करो और मेरे सामने फरमाबरदार बन कर हाजि़र हो (31)
वक़ालल लजीना
قَالَتْ يَا أَيُّهَا المَلَأُ أَفْتُونِي فِي أَمْرِي مَا كُنتُ قَاطِعَةً أَمْرًا حَتَّى تَشْهَدُونِ {32}
तब मलका (बिलक़ीस) बोली ऐ मेरे दरबार के सरदारों तुम मेरे इस मामले में मुझे राय दो (क्योंकि मेरा तो ये क़ायदा है कि) जब तक तुम लोग मेरे सामने मौजूद न हो (मशवरा न दे दो) मैं किसी अम्र में क़तई फैसला न किया करती (32)
वक़ालल लजीना
قَالُوا نَحْنُ أُوْلُوا قُوَّةٍ وَأُولُوا بَأْسٍ شَدِيدٍ وَالْأَمْرُ إِلَيْكِ فَانظُرِي مَاذَا تَأْمُرِينَ {33}
उन लोगों ने अर्ज़ की हम बड़े ज़ोरावर बडे़ लड़ने वाले हैं और (आइन्दा) हर अम्र का आप को एख़्तियार है तो जो हुक्म दे आप (खुद अच्छी) तरह इसके अन्जाम पर ग़ौर कर ले (33)
वक़ालल लजीना
قَالَتْ إِنَّ الْمُلُوكَ إِذَا دَخَلُوا قَرْيَةً أَفْسَدُوهَا وَجَعَلُوا أَعِزَّةَ أَهْلِهَا أَذِلَّةً وَكَذَلِكَ يَفْعَلُونَ {34}
मलका ने कहा बादशाहों का क़ायदा है कि जब किसी बस्ती में (बज़ोरे फ़तेह) दाखि़ल हो जाते हैं तो उसको उजाड़ देते हैं और वहाँ के मुअजि़ज़ लोगों को ज़लील व रुसवा कर देते हैं और ये लोग भी ऐसा ही करेंगे (34)
वक़ालल लजीना
وَإِنِّي مُرْسِلَةٌ إِلَيْهِم بِهَدِيَّةٍ فَنَاظِرَةٌ بِمَ يَرْجِعُ الْمُرْسَلُونَ {35}
और मैं उनके पास (एलचियों की माअरफ़त कुछ तोहफा भेजकर देखती हूँ कि एलची लोग क्या जवाब लाते हैं) ग़रज़ जब बिलक़ीस का एलची (तोहफा लेकर) सुलेमान के पास आया (35)
वक़ालल लजीना
فَلَمَّا جَاء سُلَيْمَانَ قَالَ أَتُمِدُّونَنِ بِمَالٍ فَمَا آتَانِيَ اللَّهُ خَيْرٌ مِّمَّا آتَاكُم بَلْ أَنتُم بِهَدِيَّتِكُمْ تَفْرَحُونَ {36}
तो सुलेमान ने कहा क्या तुम लोग मुझे माल की मदद देते हो तो ख़ुदा ने जो (माल दुनिया) मुझे अता किया है वह (माल) उससे जो तुम्हें बख्शा है कहीं बेहतर है (मैं तो नही) बल्कि तुम्ही लोग अपने तोहफे़ तहायफ़ से ख़ुश हुआ करो (36)
वक़ालल लजीना
ارْجِعْ إِلَيْهِمْ فَلَنَأْتِيَنَّهُمْ بِجُنُودٍ لَّا قِبَلَ لَهُم بِهَا وَلَنُخْرِجَنَّهُم مِّنْهَا أَذِلَّةً وَهُمْ صَاغِرُونَ {37}
(फिर तोहफ़ा लाने वाले ने कहा) तो उन्हीं लोगों के पास जा हम यक़ीनन ऐसे लशकर से उन पर चढ़ाई करेंगे जिसका उससे मुक़ाबला न हो सकेगा और हम ज़रुर उन्हें वहाँ से ज़लील व रुसवा करके निकाल बाहर करेंगे (37)
वक़ालल लजीना
قَالَ يَا أَيُّهَا المَلَأُ أَيُّكُمْ يَأْتِينِي بِعَرْشِهَا قَبْلَ أَن يَأْتُونِي مُسْلِمِينَ {38}
(जब वह जा चुका) तो सुलेमान ने अपने एहले दरबार से कहा ऐ मेरे दरबार के सरदारो तुममें से कौन ऐसा है कि क़ब्ल इसके वह लोग मेरे सामने फरमाबरदार बनकर आयें (38)
वक़ालल लजीना
قَالَ عِفْريتٌ مِّنَ الْجِنِّ أَنَا آتِيكَ بِهِ قَبْلَ أَن تَقُومَ مِن مَّقَامِكَ وَإِنِّي عَلَيْهِ لَقَوِيٌّ أَمِينٌ {39}
मलिका का तख़्त मेरे पास ले आए (इस पर) जिनों में से एक दियो बोल उठा कि क़ब्ल इसके कि हुज़ूर (दरबार बरख़ास्त करके) अपनी जगह से उठे मै तख़्त आपके पास ले आऊँगा और यक़ीनन उस पर क़ाबू रखता हूँ (और) जि़म्मेदार हूँ (39)
वक़ालल लजीना
قَالَ الَّذِي عِندَهُ عِلْمٌ مِّنَ الْكِتَابِ أَنَا آتِيكَ بِهِ قَبْلَ أَن يَرْتَدَّ إِلَيْكَ طَرْفُكَ فَلَمَّا رَآهُ مُسْتَقِرًّا عِندَهُ قَالَ هَذَا مِن فَضْلِ رَبِّي لِيَبْلُوَنِي أَأَشْكُرُ أَمْ أَكْفُرُ وَمَن شَكَرَ فَإِنَّمَا يَشْكُرُ لِنَفْسِهِ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ رَبِّي غَنِيٌّ كَرِيمٌ {40}
इस पर अभी सुलेमान कुछ कहने न पाए थे कि वह शख़्स (आसिफ़ बिन बरखि़या) जिसके पास किताबे (ख़ुदा) का किस कदर इल्म था बोला कि मै आप की पलक झपकने से पहले तख़्त को आप के पास हाजि़र किए देता हूँ (बस इतने ही में आ गया) तो जब सुलेमान ने उसे अपने पास मौजूद पाया तो कहने लगे ये महज़ मेरे परवरदिगार का फज़ल व करम है ताकि वह मेरा इम्तेहान ले कि मै उसका शुक्र करता हूँ या नाशुक्री करता हूँ और जो कोई शुक्र करता है वह अपनी ही भलाई के लिए शुक्र करता है और जो शख़्स नाशुक्री करता है तो (याद रखिए) मेरा परवरदिगार यक़ीनन बेपरवा और सख़ी है (40)
वक़ालल लजीना
قَالَ نَكِّرُوا لَهَا عَرْشَهَا نَنظُرْ أَتَهْتَدِي أَمْ تَكُونُ مِنَ الَّذِينَ لَا يَهْتَدُونَ {41}
(उसके बाद) सुलेमान ने कहा कि उसके तख़्त में (उसकी अक़्ल के इम्तिहान के लिए) तग़य्युर तबददुल कर दो ताकि हम देखें कि फिर भी वह समझ रखती है या उन लोगों में है जो कुछ समझ नहीं रखते (41)
वक़ालल लजीना
فَلَمَّا جَاءتْ قِيلَ أَهَكَذَا عَرْشُكِ قَالَتْ كَأَنَّهُ هُوَ وَأُوتِينَا الْعِلْمَ مِن قَبْلِهَا وَكُنَّا مُسْلِمِينَ {42}
(चुनान्चे ऐसा ही किया गया) फिर जब बिलक़ीस (सुलेमान के पास) आयी तो पूछा गया कि तुम्हारा तख़्त भी ऐसा ही है वह बोली गोया ये वही है (फिर कहने लगी) हमको तो उससे पहले ही (आपकी नुबूवत) मालूम हो गयी थी और हम तो आपके फ़रमाबरदार थे ही (42)
वक़ालल लजीना
وَصَدَّهَا مَا كَانَت تَّعْبُدُ مِن دُونِ اللَّهِ إِنَّهَا كَانَتْ مِن قَوْمٍ كَافِرِينَ {43}
और ख़ुदा के सिवा जिसे वह पूजती थी सुलेमान ने उससे उसे रोक दिया क्योंकि वह काफिर क़ौम की थी (और आफ़ताब को पूजती थी) (43)
वक़ालल लजीना
قِيلَ لَهَا ادْخُلِي الصَّرْحَ فَلَمَّا رَأَتْهُ حَسِبَتْهُ لُجَّةً وَكَشَفَتْ عَن سَاقَيْهَا قَالَ إِنَّهُ صَرْحٌ مُّمَرَّدٌ مِّن قَوَارِيرَ قَالَتْ رَبِّ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي وَأَسْلَمْتُ مَعَ سُلَيْمَانَ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ {44}
फिर उससे कहा गया कि आप अब महल मे चलिए तो जब उसने महल (में शीशे के फ़र्श) को देखा तो उसको गहरा पानी समझी (और गुज़रने के लिए इस तरह अपने पाएचे उठा लिए कि) अपनी दोनों पिन्डलियाँ खोल दी सुलेमान ने कहा (तुम डरो नहीं) ये (पानी नहीं है) महल है जो शीशे से मढ़ा हुआ है (उस वक़्त तम्बीह हुयी और) अर्ज़ की परवरदिगार मैने (आफ़ताब को पूजा कर) यक़ीनन अपने ऊपर ज़ुल्म किया (44)
वक़ालल लजीना
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا إِلَى ثَمُودَ أَخَاهُمْ صَالِحًا أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ فَإِذَا هُمْ فَرِيقَانِ يَخْتَصِمُونَ {45}
और अब मैं सुलेमान के साथ सारे जहाँ के पालने वाले खु़दा पर ईमान लाती हूँ और हम ही ने क़ौम समूद के पास उनके भाई सालेह को पैग़म्बर बनाकर भेजा कि तुम लोग ख़ुदा की इबादत करो तो वह सालेह के आते ही (मोमिन व काफ़िर) दो फरीक़ बनकर बाहम झगड़ने लगे (45)
वक़ालल लजीना
قَالَ يَا قَوْمِ لِمَ تَسْتَعْجِلُونَ بِالسَّيِّئَةِ قَبْلَ الْحَسَنَةِ لَوْلَا تَسْتَغْفِرُونَ اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ {46}
सालेह ने कहा ऐ मेरी क़ौम (आखि़र) तुम लोग भलाई से पहल बुराई के वास्ते जल्दी क्यों कर रहे हो तुम लोग ख़ुदा की बारगाह में तौबा व अस्तग़फार क्यों नही करते ताकि तुम पर रहम किया जाए (46)
वक़ालल लजीना
قَالُوا اطَّيَّرْنَا بِكَ وَبِمَن مَّعَكَ قَالَ طَائِرُكُمْ عِندَ اللَّهِ بَلْ أَنتُمْ قَوْمٌ تُفْتَنُونَ {47}
वह लोग बोले हमने तो तुम से और तुम्हारे साथियों से बुरा शगुन पाया सालेह ने कहा तुम्हारी बदकिस्मती ख़ुदा के पास है (ये सब कुछ नहीं) बल्कि तुम लोगों की आज़माइश की जा रही है (47)
वक़ालल लजीना
وَكَانَ فِي الْمَدِينَةِ تِسْعَةُ رَهْطٍ يُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ وَلَا يُصْلِحُونَ {48}
और शहर में नौ आदमी थे जो मुल्क के बानीये फ़साद थे और इसलाह की फिक्र न करते थे-उन लोगों ने (आपस में) कहा कि बाहम ख़ुदा की क़सम खाते जाओ (48)
वक़ालल लजीना
قَالُوا تَقَاسَمُوا بِاللَّهِ لَنُبَيِّتَنَّهُ وَأَهْلَهُ ثُمَّ لَنَقُولَنَّ لِوَلِيِّهِ مَا شَهِدْنَا مَهْلِكَ أَهْلِهِ وَإِنَّا لَصَادِقُونَ {49}
कि हम लोग सालेह और उसके लड़के बालो पर सब खून करे उसके बाद उसके वाली वारिस से कह देगें कि हम लोग उनके घर वालों को हलाक़ होते वक़्त मौजूद ही न थे और हम लोग तो यक़ीनन सच्चे हैं (49)
वक़ालल लजीना
وَمَكَرُوا مَكْرًا وَمَكَرْنَا مَكْرًا وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ {50}
और उन लोगों ने एक तदबीर की और हमने भी एक तदबीर की और (हमारी तदबीर की) उनको ख़बर भी न हुयी (50)
वक़ालल लजीना
فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ مَكْرِهِمْ أَنَّا دَمَّرْنَاهُمْ وَقَوْمَهُمْ أَجْمَعِينَ {51}
तो (ऐ रसूल) तुम देखो उनकी तदबीर का क्या (बुरा) अन्जाम हुआ कि हमने उनको और सारी क़ौम को हलाक कर डाला (51)
वक़ालल लजीना
فَتِلْكَ بُيُوتُهُمْ خَاوِيَةً بِمَا ظَلَمُوا إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَةً لِّقَوْمٍ يَعْلَمُونَ {52}
ये बस उनके घर हैं कि उनकी नाफ़रमानियों की वज़ह से ख़ाली वीरान पड़े हैं इसमे शक नही कि उस वाकि़ये में वाकि़फ कार लोगों के लिए बड़ी इबरत है (52)
वक़ालल लजीना
وَأَنجَيْنَا الَّذِينَ آمَنُوا وَكَانُوا يَتَّقُونَ {53}
और हमने उन लोगों को जो इमान लाए थे और परहेज़गार थे बचा लिया(53)
वक़ालल लजीना
وَلُوطًا إِذْ قَالَ لِقَوْمِهِ أَتَأْتُونَ الْفَاحِشَةَ وَأَنتُمْ تُبْصِرُونَ {54}
और (ऐ रसूल) लूत को (याद करो) जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि क्या तुम देखभाल कर (समझ बूझ कर) ऐसी बेहयाई करते हो (54)
वक़ालल लजीना
أَئِنَّكُمْ لَتَأْتُونَ الرِّجَالَ شَهْوَةً مِّن دُونِ النِّسَاء بَلْ أَنتُمْ قَوْمٌ تَجْهَلُونَ {55}
क्या तुम औरतों को छोड़कर शहवत से मर्दों के आते हो (ये तुम अच्छा नहीं करते) बल्कि तुम लोग बड़ी जाहिल क़ौम हो तो लूत की क़ौम का इसके सिवा कुछ जवाब न था (55)
वक़ालल लजीना
فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوْمِهِ إِلَّا أَن قَالُوا أَخْرِجُوا آلَ لُوطٍ مِّن قَرْيَتِكُمْ إِنَّهُمْ أُنَاسٌ يَتَطَهَّرُونَ {56}
कि वह लोग बोल उठे कि लूत के खानदान को अपनी बस्ती (सदूम) से निकाल बाहर करो ये लोग बड़े पाक साफ़ बनना चाहते हैं (56)
वक़ालल लजीना
فَأَنجَيْنَاهُ وَأَهْلَهُ إِلَّا امْرَأَتَهُ قَدَّرْنَاهَا مِنَ الْغَابِرِينَ {57}
ग़रज हमने लूत को और उनके ख़ानदान को बचा लिया मगर उनकी बीवी कि हमने उसकी तक़दीर में पीछे रह जाने वालों में लिख दिया था (57)
वक़ालल लजीना
وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهِم مَّطَرًا فَسَاء مَطَرُ الْمُنذَرِينَ {58}
और (फिर तो) हमने उन लोगों पर (पत्थर का) मेंह बरसाया तो जो लोग डराए जा चुके थे उन पर क्या बुरा मेंह बरसा (58)
वक़ालल लजीना
قُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ وَسَلَامٌ عَلَى عِبَادِهِ الَّذِينَ اصْطَفَى آللَّهُ خَيْرٌ أَمَّا يُشْرِكُونَ {59}
(ऐ रसूल) तुम कह दो (उनके हलाक़ होने पर) खु़दा का शुक्र और उसके बरगुज़ीदा बन्दों पर सलाम भला ख़ुदा बेहतर है या वह चीज़ जिसे ये लोग शरीके ख़ुदा कहते हैं (59)