Quran पारा 15

सुबहानल्लाजी

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से शुरु करता हूँ जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है

सुबहानल्लाजी

سُبْحَانَ الَّذِي أَسْرَى بِعَبْدِهِ لَيْلاً مِّنَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ إِلَى الْمَسْجِدِ الأَقْصَى الَّذِي بَارَكْنَا حَوْلَهُ لِنُرِيَهُ مِنْ آيَاتِنَا إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ البَصِيرُ {1}

वह ख़ुदा (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है जिसने अपने बन्दों को रातों रात मस्जिदुल हराम (ख़ान ऐ काबा) से मस्जिदुल अक़सा (आसमानी मस्जिद) तक की सैर कराई जिसके चैगिर्द हमने हर किस्म की बरकत मुहय्या कर रखी हैं ताकि हम उसको (अपनी कुदरत की) निशानियाँ दिखाए इसमें शक नहीं कि (वह सब कुछ) सुनता (और) देखता है (1)

सुबहानल्लाजी

وَآتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ وَجَعَلْنَاهُ هُدًى لِّبَنِي إِسْرَائِيلَ أَلاَّ تَتَّخِذُواْ مِن دُونِي وَكِيلاً {2}

और हमने मूसा को किताब (तौरैत) अता की और उस को बनी इसराईल की रहनुमा क़रार दिया (और हुक्म दे दिया) कि ऐ उन लोगों की औलाद जिन्हें हम ने नूह के साथ कश्ती में सवार किया था (2)

सुबहानल्लाजी

ذُرِّيَّةَ مَنْ حَمَلْنَا مَعَ نُوحٍ إِنَّهُ كَانَ عَبْدًا شَكُورًا {3}

मेरे सिवा किसी को अपना कारसाज़ न बनाना बेशक नूह बड़ा शुक्र गुज़ार बन्दा था (3)

सुबहानल्लाजी

وَقَضَيْنَا إِلَى بَنِي إِسْرَائِيلَ فِي الْكِتَابِ لَتُفْسِدُنَّ فِي الأَرْضِ مَرَّتَيْنِ وَلَتَعْلُنَّ عُلُوًّا كَبِيرًا {4}

और हमने बनी इसराईल से इसी किताब (तौरैत) में साफ साफ बयान कर दिया था कि तुम लोग रुए ज़मीन पर दो मरतबा ज़रुर फसाद फैलाओगे और बड़ी सरकशी करोगे (4)

सुबहानल्लाजी

فَإِذَا جَاء وَعْدُ أُولاهُمَا بَعَثْنَا عَلَيْكُمْ عِبَادًا لَّنَا أُوْلِي بَأْسٍ شَدِيدٍ فَجَاسُواْ خِلاَلَ الدِّيَارِ وَكَانَ وَعْدًا مَّفْعُولاً {5}

फिर जब उन दो फसादों में पहले का वक़्त आ पहुँचा तो हमने तुम पर कुछ अपने बन्दों (नजतुलनस्र) और उसकी फौज को मुसल्लत {ग़ालिब} कर दिया जो बड़े सख़्त लड़ने वाले थे तो वह लोग तुम्हारे घरों के अन्दर घुसे (और खूब क़त्ल व ग़ारत किया) और ख़ुदा के अज़ाब का वायदा जो पूरा होकर रहा (5)

सुबहानल्लाजी

ثُمَّ رَدَدْنَا لَكُمُ الْكَرَّةَ عَلَيْهِمْ وَأَمْدَدْنَاكُم بِأَمْوَالٍ وَبَنِينَ وَجَعَلْنَاكُمْ أَكْثَرَ نَفِيرًا {6}

फिर हमने तुमको दोबारा उन पर ग़लबा देकर तुम्हारे दिन फेरे और माल से और बेटों से तुम्हारी मदद की और तुमको बड़े जत्थे वाला बना दिया (6)

सुबहानल्लाजी

إِنْ أَحْسَنتُمْ أَحْسَنتُمْ لِأَنفُسِكُمْ وَإِنْ أَسَأْتُمْ فَلَهَا فَإِذَا جَاء وَعْدُ الآخِرَةِ لِيَسُوؤُواْ وُجُوهَكُمْ وَلِيَدْخُلُواْ الْمَسْجِدَ كَمَا دَخَلُوهُ أَوَّلَ مَرَّةٍ وَلِيُتَبِّرُواْ مَا عَلَوْاْ تَتْبِيرًا {7}

अगर तुम अच्छे काम करोगे तो अपने फायदे के लिए अच्छे काम करोगे और अगर तुम बुरे काम करोगे तो (भी) अपने ही लिए फिर जब दूसरे वक़्त का वायदा आ पहुँचा तो (हमने तैतूस रोगी को तुम पर मुसल्लत किया) ताकि वह लोग (मारते मारते) तुम्हारे चेहरे बिगाड़ दें (कि पहचाने न जाओ) और जिस तरह पहली दफा मस्जिद बैतुल मुक़द्दस में घुस गये थे उसी तरह फिर घुस पड़ें और जिस चीज़ पर क़ाबू पाए खूब अच्छी तरह बरबाद कर दी (7)

सुबहानल्लाजी

عَسَى رَبُّكُمْ أَن يَرْحَمَكُمْ وَإِنْ عُدتُّمْ عُدْنَا وَجَعَلْنَا جَهَنَّمَ لِلْكَافِرِينَ حَصِيرًا {8}

(अब भी अगर तुम चैन से रहो तो) उम्मीद है कि तुम्हारा परवरदिगार तुम पर तरस खाए और अगर (कहीं) वही शरारत करोगे तो हम भी फिर पकड़ेंगे और हमने तो काफिरों के लिए जहन्नुम को क़ैद खाना बना ही रखा है (8)

सुबहानल्लाजी

إِنَّ هَـذَا الْقُرْآنَ يِهْدِي لِلَّتِي هِيَ أَقْوَمُ وَيُبَشِّرُ الْمُؤْمِنِينَ الَّذِينَ يَعْمَلُونَ الصَّالِحَاتِ أَنَّ لَهُمْ أَجْرًا كَبِيرًا {9}

इसमें शक नहीं कि ये क़ुरान उस राह की हिदायत करता है जो सबसे ज़्यादा सीधी है और जो इमानदार अच्छे अच्छे काम करते हैं उनको ये खुशख़बरी देता है कि उनके लिए बहुत बड़ा अज्र और सवाब (मौजूद) है (9)

सुबहानल्लाजी

وأَنَّ الَّذِينَ لاَ يُؤْمِنُونَ بِالآخِرَةِ أَعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا {10}

और ये भी कि बेशक जो लोग आखि़रत पर इमान नहीं रखते हैं उनके लिए हमने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है (10)

सुबहानल्लाजी

وَيَدْعُ الإِنسَانُ بِالشَّرِّ دُعَاءهُ بِالْخَيْرِ وَكَانَ الإِنسَانُ عَجُولاً {11}

और आदमी कभी (आजिज़ होकर अपने हक़ में) बुराई (अज़ाब वग़ैरह की दुआ) इस तरह माँगता है जिस तरह अपने लिए भलाई की दुआ करता है और आदमी तो बड़ा जल्दबाज़ है (11)

सुबहानल्लाजी

وَجَعَلْنَا اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ آيَتَيْنِ فَمَحَوْنَا آيَةَ اللَّيْلِ وَجَعَلْنَا آيَةَ النَّهَارِ مُبْصِرَةً لِتَبْتَغُواْ فَضْلاً مِّن رَّبِّكُمْ وَلِتَعْلَمُواْ عَدَدَ السِّنِينَ وَالْحِسَابَ وَكُلَّ شَيْءٍ فَصَّلْنَاهُ تَفْصِيلاً {12}

और हमने रात और दिन को (अपनी क़ुदरत की) दो निशानियाँ क़रार दिया फिर हमने रात की निशानी (चाँद) को धुँधला बनाया और दिन की निशानी (सूरज) को रौशन बनाया (कि सब चीज़े दिखाई दें) ताकि तुम लोग अपने परवरदिगार का फज़ल ढूँढते फिरों और ताकि तुम बरसों की गिनती और हिसाब को जानो (बूझों) और हमने हर चीज़ को खूब अच्छी तरह तफसील से बयान कर दिया है (12)

सुबहानल्लाजी

وَكُلَّ إِنسَانٍ أَلْزَمْنَاهُ طَآئِرَهُ فِي عُنُقِهِ وَنُخْرِجُ لَهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ كِتَابًا يَلْقَاهُ مَنشُورًا {13}

और हमने हर आदमी के नामए अमल को उसके गले का हार बना दिया है (कि उसकी किस्मत उसके साथ रहे) और क़यामत के दिन हम उसे उसके सामने निकल के रख देगें कि वह उसको एक खुली हुयी किताब अपने रुबरु पाएगा (13)

सुबहानल्लाजी

اقْرَأْ كَتَابَكَ كَفَى بِنَفْسِكَ الْيَوْمَ عَلَيْكَ حَسِيبًا {14}

और हम उससे कहेंगें कि अपना नामए अमल पढ़ले और आज अपने हिसाब के लिए तू आप ही काफी हैं (14)

सुबहानल्लाजी

مَّنِ اهْتَدَى فَإِنَّمَا يَهْتَدي لِنَفْسِهِ وَمَن ضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيْهَا وَلاَ تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَى وَمَا كُنَّا مُعَذِّبِينَ حَتَّى نَبْعَثَ رَسُولاً {15}

जो शख़्स रुबरु होता है तो बस अपने फायदे के लिए शह पर आता है और जो शख़्स गुमराह होता है तो उसने भटक कर अपना आप बिगाड़ा और कोई शख़्स किसी दूसरे (के गुनाह) का बोझ अपने सर नहीं लेगा और हम तो जब तक रसूल को भेजकर तमाम हुज्जत न कर लें किसी पर अज़ाब नहीं किया करते (15)

सुबहानल्लाजी

وَإِذَا أَرَدْنَا أَن نُّهْلِكَ قَرْيَةً أَمَرْنَا مُتْرَفِيهَا فَفَسَقُواْ فِيهَا فَحَقَّ عَلَيْهَا الْقَوْلُ فَدَمَّرْنَاهَا تَدْمِيرًا {16}

और हमको जब किसी बस्ती का वीरान करना मंज़ूर होता है तो हम वहाँ के खुशहालों को (इताअत का) हुक्म देते हैं तो वह लोग उसमें नाफरमानियाँ करने लगे तब वह बस्ती अज़ाब की मुस्तहक़ होगी उस वक़्त हमने उसे अच्छी तरह तबाह व बरबाद कर दिया (16)

सुबहानल्लाजी

وَكَمْ أَهْلَكْنَا مِنَ الْقُرُونِ مِن بَعْدِ نُوحٍ وَكَفَى بِرَبِّكَ بِذُنُوبِ عِبَادِهِ خَبِيرًَا بَصِيرًا {17}

और नूह के बाद से (उस वक़्त तक) हमने कितनी उम्मतों को हलाक कर मारा और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार अपने बन्दों के गुनाहों को जानने और देखने के लिए काफी है (17)

सुबहानल्लाजी

مَّن كَانَ يُرِيدُ الْعَاجِلَةَ عَجَّلْنَا لَهُ فِيهَا مَا نَشَاء لِمَن نُّرِيدُ ثُمَّ جَعَلْنَا لَهُ جَهَنَّمَ يَصْلاهَا مَذْمُومًا مَّدْحُورًا {18}

(और गवाह शाहिद की ज़रुरत नहीं) और जो शख़्स दुनिया का ख़्वाहाँ हो तो हम जिसे चाहते और जो चाहते हैं उसी दुनिया में सिरदस्त {फ़ौरन} उसे अता करते हैं (मगर) फिर हमने उसके लिए तो जहन्नुम ठहरा ही रखा है कि वह उसमें बुरी हालत से रौंदा हुआ दाखि़ल होगा (18)

सुबहानल्लाजी

وَمَنْ أَرَادَ الآخِرَةَ وَسَعَى لَهَا سَعْيَهَا وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَأُولَئِكَ كَانَ سَعْيُهُم مَّشْكُورًا {19}

और जो शख़्स आखि़र का मुतमइनी हो और उसके लिए खूब जैसी चाहिए कोशिश भी की और वह इमानदार भी है तो यही वह लोग हैं जिनकी कोशिश मक़बूल होगी (19)

सुबहानल्लाजी

كُلاًّ نُّمِدُّ هَـؤُلاء وَهَـؤُلاء مِنْ عَطَاء رَبِّكَ وَمَا كَانَ عَطَاء رَبِّكَ مَحْظُورًا {20}

(ऐ रसूल) उनको (ग़रज़ सबको) हम ही तुम्हारे परवरदिगार की (अपनी) बखि़्शश से मदद देते हैं और तुम्हारे परवरदिगार की बखि़्शिश तो (आम है) किसी पर बन्द नहीं (20)

सुबहानल्लाजी

انظُرْ كَيْفَ فَضَّلْنَا بَعْضَهُمْ عَلَى بَعْضٍ وَلَلآخِرَةُ أَكْبَرُ دَرَجَاتٍ وَأَكْبَرُ تَفْضِيلاً {21}

(ऐ रसूल) ज़रा देखो तो कि हमने बाज़ लोगों को बाज़ पर कैसी फज़ीलत दी है और आखि़रत के दर्जे तो यक़ीनन (यहाँ से) कहीं बढ़के है और वहाँ की फज़ीलत भी तो कैसी बढ़ कर है (21)

सुबहानल्लाजी

لاَّ تَجْعَل مَعَ اللّهِ إِلَـهًا آخَرَ فَتَقْعُدَ مَذْمُومًا مَّخْذُولاً {22}

और देखो कहीं ख़ुदा के साथ दूसरे को (उसका) शरीक न बनाना वरना तुम बुरे हाल में ज़लील रुसवा बैठै के बैठें रह जाओगे (22)

सुबहानल्लाजी

وَقَضَى رَبُّكَ أَلاَّ تَعْبُدُواْ إِلاَّ إِيَّاهُ وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا إِمَّا يَبْلُغَنَّ عِندَكَ الْكِبَرَ أَحَدُهُمَا أَوْ كِلاَهُمَا فَلاَ تَقُل لَّهُمَا أُفٍّ وَلاَ تَنْهَرْهُمَا وَقُل لَّهُمَا قَوْلاً كَرِيمًا {23}

और तुम्हारे परवरदिगार ने तो हुक्म ही दिया है कि उसके सिवा किसी दूसरे की इबादत न करना और माँ बाप से नेकी करना अगर उनमें से एक या दोनों तेरे सामने बुढ़ापे को पहुँचे (और किसी बात पर खफा हों) तो (ख़बरदार उनके जवाब में उफ तक) न कहना और न उनको झिड़कना और जो कुछ कहना सुनना हो तो बहुत अदब से कहा करो (23)

सुबहानल्लाजी

وَاخْفِضْ لَهُمَا جَنَاحَ الذُّلِّ مِنَ الرَّحْمَةِ وَقُل رَّبِّ ارْحَمْهُمَا كَمَا رَبَّيَانِي صَغِيرًا {24}

और उनके सामने नियाज़ {रहमत} से ख़ाकसारी का पहलू झुकाए रखो और उनके हक़ में दुआ करो कि मेरे पालने वाले जिस तरह इन दोनों ने मेरे छोटेपन में मेरी मेरी परवरिश की है (24)

सुबहानल्लाजी

رَّبُّكُمْ أَعْلَمُ بِمَا فِي نُفُوسِكُمْ إِن تَكُونُواْ صَالِحِينَ فَإِنَّهُ كَانَ لِلأَوَّابِينَ غَفُورًا {25}

इसी तरह तू भी इन पर रहम फरमा तुम्हारे दिल की बात तुम्हारा परवरदिगार ख़ूब जानता है अगर तुम (वाक़ई) नेक होगे और भूले से उनकी ख़ता की है तो वह तुमको बख़्श देगा क्योंकि वह तो तौबा करने वालों का बड़ा बख़शने वाला है (25)

सुबहानल्लाजी

وَآتِ ذَا الْقُرْبَى حَقَّهُ وَالْمِسْكِينَ وَابْنَ السَّبِيلِ وَلاَ تُبَذِّرْ تَبْذِيرًا {26}

और क़राबतदारों और मोहताज और परदेसी को उनका हक़ दे दो और ख़बरदार फुज़ूल ख़र्ची मत किया करो (26)

सुबहानल्लाजी

إِنَّ الْمُبَذِّرِينَ كَانُواْ إِخْوَانَ الشَّيَاطِينِ وَكَانَ الشَّيْطَانُ لِرَبِّهِ كَفُورًا {27}

क्योंकि फुज़ूलख़र्ची करने वाले यक़ीनन शैतानों के भाई है और शैतान अपने परवरदिगार का बड़ा नाशुक्री करने वाला है (27)

सुबहानल्लाजी

وَإِمَّا تُعْرِضَنَّ عَنْهُمُ ابْتِغَاء رَحْمَةٍ مِّن رَّبِّكَ تَرْجُوهَا فَقُل لَّهُمْ قَوْلاً مَّيْسُورًا {28}

और तुमको अपने परवरदिगार के फज़ल व करम के इन्तज़ार में जिसकी तुम को उम्मीद हो (मजबूरन) उन (ग़रीबों) से मुँह मोड़ना पड़े तो नरमी से उनको समझा दो (28)

सुबहानल्लाजी

وَلاَ تَجْعَلْ يَدَكَ مَغْلُولَةً إِلَى عُنُقِكَ وَلاَ تَبْسُطْهَا كُلَّ الْبَسْطِ فَتَقْعُدَ مَلُومًا مَّحْسُورًا {29}

और अपने हाथ को न तो गर्दन से बँधा हुआ (बहुत तंग) कर लो (कि किसी को कुछ दो ही नहीं) और न बिल्कुल खोल दो कि सब कुछ दे डालो और आखि़र तुम को मलामत ज़दा हसरत से बैठना पड़े (29)

सुबहानल्लाजी

إِنَّ رَبَّكَ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَن يَشَاء وَيَقْدِرُ إِنَّهُ كَانَ بِعِبَادِهِ خَبِيرًا بَصِيرًا {30}

इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार जिसके लिए चाहता है रोज़ी को फराख़ {बढ़ा} देता है और जिसकी रोज़ी चाहता है तंग रखता है इसमें शक नहीं कि वह अपने बन्दों से बहुत बाख़बर और देखभाल रखने वाला है (30)

सुबहानल्लाजी

وَلاَ تَقْتُلُواْ أَوْلادَكُمْ خَشْيَةَ إِمْلاقٍ نَّحْنُ نَرْزُقُهُمْ وَإِيَّاكُم إنَّ قَتْلَهُمْ كَانَ خِطْءًا كَبِيرًا {31}

और (लोगों) मुफलिसी {ग़रीबी} के ख़ौफ से अपनी औलाद को क़त्ल न करो (क्योंकि) उनको और तुम को (सबको) तो हम ही रोज़ी देते हैं बेशक औलाद का क़त्ल करना बहुत सख़्त गुनाह है (31)

सुबहानल्लाजी

وَلاَ تَقْرَبُواْ الزِّنَى إِنَّهُ كَانَ فَاحِشَةً وَسَاء سَبِيلاً {32}

और (देखो) जि़ना के पास भी न फटकना क्योंकि बेशक वह बड़ी बेहयाई का काम है और बहुत बुरा चलन है (32)

सुबहानल्लाजी

وَلاَ تَقْتُلُواْ النَّفْسَ الَّتِي حَرَّمَ اللّهُ إِلاَّ بِالحَقِّ وَمَن قُتِلَ مَظْلُومًا فَقَدْ جَعَلْنَا لِوَلِيِّهِ سُلْطَانًا فَلاَ يُسْرِف فِّي الْقَتْلِ إِنَّهُ كَانَ مَنْصُورًا {33}

और जिस जान का मारना ख़ुदा ने हराम कर दिया है उसके क़त्ल न करना मगर जायज़ तौर पर और जो शख़्स नाहक़ मारा जाए तो हमने उसके वारिस को (क़ातिल पर क़सास का क़ाबू दिया है तो उसे चाहिए कि क़त्ल {ख़ून का बदला लेने) में ज़्यादती न करे बेशक वह मदद दिया जाएगा (33)

सुबहानल्लाजी

وَلاَ تَقْرَبُواْ مَالَ الْيَتِيمِ إِلاَّ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ حَتَّى يَبْلُغَ أَشُدَّهُ وَأَوْفُواْ بِالْعَهْدِ إِنَّ الْعَهْدَ كَانَ مَسْؤُولاً {34}

(कि क़त्ल ही करे और माफ न करे) और यतीम जब तक जवानी को पहुँचे उसके माल के क़रीब भी न पहुँच जाना मगर हाँ इस तरह पर कि (यतीम के हक़ में) बेहतर हो और एहद को पूरा करो क्योंकि (क़यामत में) एहद की ज़रुर पूछ गछ होगी (34)

सुबहानल्लाजी

وَأَوْفُوا الْكَيْلَ إِذا كِلْتُمْ وَزِنُواْ بِالقِسْطَاسِ الْمُسْتَقِيمِ ذَلِكَ خَيْرٌ وَأَحْسَنُ تَأْوِيلاً {35}

और जब नाप तौल कर देना हो तो पैमाने को पूरा भर दिया करो और (जब तौल कर देना हो तो) बिल्कुल ठीक तराजू से तौला करो (मामले में) यही (तरीक़ा) बेहतर है और अन्जाम (भी उसका) अच्छा है (35)

सुबहानल्लाजी

وَلاَ تَقْفُ مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ إِنَّ السَّمْعَ وَالْبَصَرَ وَالْفُؤَادَ كُلُّ أُولـئِكَ كَانَ عَنْهُ مَسْؤُولاً {36}

और जिस चीज़ का कि तुम्हें यक़ीन न हो (ख़्वाह मा ख़्वाह) उसके पीछे न पड़ा करो (क्योंकि) कान और आँख और दिल इन सबकी (क़यामत के दिना यक़ीनन बाज़पुर्स होती है (36)

सुबहानल्लाजी

وَلاَ تَمْشِ فِي الأَرْضِ مَرَحًا إِنَّكَ لَن تَخْرِقَ الأَرْضَ وَلَن تَبْلُغَ الْجِبَالَ طُولاً {37}

और (देखो) ज़मीन पर अकड़ कर न चला करो क्योंकि तू (अपने इस धमाके की चाल से) न तो ज़मीन को हरगिज़ फाड़ डालेगा और न (तनकर चलने से) हरगिज़ लम्बाई में पहाड़ों के बराबर पहुँच सकेगा (37)

सुबहानल्लाजी

كُلُّ ذَلِكَ كَانَ سَيٍّئُهُ عِنْدَ رَبِّكَ مَكْرُوهًا {38}

(ऐ रसूल) इन सब बातों में से जो बुरी बात है वह तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक नापसन्द है (38)

सुबहानल्लाजी

ذَلِكَ مِمَّا أَوْحَى إِلَيْكَ رَبُّكَ مِنَ الْحِكْمَةِ وَلاَ تَجْعَلْ مَعَ اللّهِ إِلَهًا آخَرَ فَتُلْقَى فِي جَهَنَّمَ مَلُومًا مَّدْحُورًا {39}

ये बात तो हिकमत की उन बातों में से जो तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हारे पास ‘वही’ भेजी और ख़ुदा के साथ कोई दूसरा माबूद न बनाना और न तू मलामत ज़दा राइन्द {धुत्कारा} होकर जहन्नुम में झोंक दिया जाएगा (39)

सुबहानल्लाजी

أَفَأَصْفَاكُمْ رَبُّكُم بِالْبَنِينَ وَاتَّخَذَ مِنَ الْمَلآئِكَةِ إِنَاثًا إِنَّكُمْ لَتَقُولُونَ قَوْلاً عَظِيمًا {40}

(ऐ मुशरेकीन मक्का) क्या तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हें चुन चुन कर बेटे दिए हैं और खुद बेटियाँ ली हैं (यानि) फरिश्ते इसमें शक नहीं कि बड़ी (सख़्त) बात कहते हो (40)

सुबहानल्लाजी

وَلَقَدْ صَرَّفْنَا فِي هَـذَا الْقُرْآنِ لِيَذَّكَّرُواْ وَمَا يَزِيدُهُمْ إِلاَّ نُفُورًا {41}

और हमने तो इसी क़ुरान में तरह तरह से बयान कर दिया ताकि लोग किसी तरह समझें मगर उससे तो उनकी नफरत ही बढ़ती गई (41)

सुबहानल्लाजी

قُل لَّوْ كَانَ مَعَهُ آلِهَةٌ كَمَا يَقُولُونَ إِذًا لاَّبْتَغَوْاْ إِلَى ذِي الْعَرْشِ سَبِيلاً {42}

(ऐ रसूल उनसे) तुम कह दो कि अगर ख़ुदा के साथ जैसा ये लोग कहते हैं और माबूद भी होते तो अब तक उन माबूदों ने अर्श तक (पहुँचाने की कोई न कोई राह निकाल ली होती (42)

सुबहानल्लाजी

سُبْحَانَهُ وَتَعَالَى عَمَّا يَقُولُونَ عُلُوًّا كَبِيرًا {43}

जो बेहूदा बातें ये लोग (ख़ुदा की निस्बत) कहा करते हैं वह उनसे बहुत बढ़के पाक व पाकीज़ा और बरतर है (43)

सुबहानल्लाजी

تُسَبِّحُ لَهُ السَّمَاوَاتُ السَّبْعُ وَالأَرْضُ وَمَن فِيهِنَّ وَإِن مِّن شَيْءٍ إِلاَّ يُسَبِّحُ بِحَمْدَهِ وَلَـكِن لاَّ تَفْقَهُونَ تَسْبِيحَهُمْ إِنَّهُ كَانَ حَلِيمًا غَفُورًا {44}

सातों आसमान और ज़मीन और जो लोग इनमें (सब) उसकी तस्बीह करते हैं और (सारे जहाँन) में कोई चीज़ ऐसी नहीं जो उसकी (हम्द व सना) की तस्बीह न करती हो मगर तुम लोग उनकी तस्बीह नहीं समझते इसमें शक नहीं कि वह बड़ा बुर्दबार बख़्शने वाला है (44)

सुबहानल्लाजी

وَإِذَا قَرَأْتَ الْقُرآنَ جَعَلْنَا بَيْنَكَ وَبَيْنَ الَّذِينَ لاَ يُؤْمِنُونَ بِالآخِرَةِ حِجَابًا مَّسْتُورًا {45}

और जब तुम क़ुरान पढ़ते हो तो हम तुम्हारे और उन लोगों के दरम्यिान जो आखि़रत का यक़ीन नहीं रखते एक गहरा पर्दा डाल देते हैं (45)

सुबहानल्लाजी

وَجَعَلْنَا عَلَى قُلُوبِهِمْ أَكِنَّةً أَن يَفْقَهُوهُ وَفِي آذَانِهِمْ وَقْرًا وَإِذَا ذَكَرْتَ رَبَّكَ فِي الْقُرْآنِ وَحْدَهُ وَلَّوْاْ عَلَى أَدْبَارِهِمْ نُفُورًا {46}

और (गोया) हम उनके कानों में गरानी पैदा कर देते हैं कि न सुन सकें जब तुम क़ुरान में अपने परवरदिगार का तन्हा जि़क्र करते हो तो कुफ्फार उलटे पावँ नफरत करके (तुम्हारे पास से) भाग खड़े होते हैं (46)

सुबहानल्लाजी

نَّحْنُ أَعْلَمُ بِمَا يَسْتَمِعُونَ بِهِ إِذْ يَسْتَمِعُونَ إِلَيْكَ وَإِذْ هُمْ نَجْوَى إِذْ يَقُولُ الظَّالِمُونَ إِن تَتَّبِعُونَ إِلاَّ رَجُلاً مَّسْحُورًا {47}

जब ये लोग तुम्हारी तरफ कान लगाते हैं तो जो कुछ ये ग़ौर से सुनते हैं हम तो खूब जानते हैं और जब ये लोग बाहम कान में बात करते हैं तो उस वक़्त ये ज़ालिम (इमानदारों से) कहते हैं कि तुम तो बस एक (दीवाने) आदमी के पीछे पड़े हो जिस पर किसी ने जादू कर दिया है (47)

सुबहानल्लाजी

انظُرْ كَيْفَ ضَرَبُواْ لَكَ الأَمْثَالَ فَضَلُّواْ فَلاَ يَسْتَطِيعْونَ سَبِيلاً {48}

(ऐ रसूल) ज़रा देखो तो ये कम्बख़्त तुम्हारी निस्बत कैसी कैसी फब्तियाँ कहते हैं तो (इसी वजह से) ऐसे गुमराह हुए कि अब (हक़ की) राह किसी तरह पा ही नहीं सकते (48) 

सुबहानल्लाजी

وَقَالُواْ أَئِذَا كُنَّا عِظَامًا وَرُفَاتًا أَإِنَّا لَمَبْعُوثُونَ خَلْقًا جَدِيدًا {49}

और ये लोग कहते हैं कि जब हम (मरने के बाद सड़ गल कर) हड्डियाँ रह जाएँगें और रेज़ा रेज़ा हो जाएँगें तो क्या नये सिरे से पैदा करके उठा खड़े किए जाएँगें (49) 

सुबहानल्लाजी

قُل كُونُواْ حِجَارَةً أَوْ حَدِيدًا {50}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम (मरने के बाद) चाहे पत्थर बन जाओ या लोहा या कोई और चीज़ जो तुम्हारे ख़्याल में बड़ी (सख़्त) हो (50) 

सुबहानल्लाजी

أَوْ خَلْقًا مِّمَّا يَكْبُرُ فِي صُدُورِكُمْ فَسَيَقُولُونَ مَن يُعِيدُنَا قُلِ الَّذِي فَطَرَكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ فَسَيُنْغِضُونَ إِلَيْكَ رُؤُوسَهُمْ وَيَقُولُونَ مَتَى هُوَ قُلْ عَسَى أَن يَكُونَ قَرِيبًا {51}

और उसका जि़न्दा होना दुश्वार हो वह भी ज़रुर जि़न्दा हो गई तो ये लोग अनक़रीब ही तुम से पूछेगें भला हमें दोबारा कौन जि़न्दा करेगा तुम कह दो कि वही (ख़ुदा) जिसने तुमको पहली मरतबा पैदा किया (जब तुम कुछ न थे) इस पर ये लोग तुम्हारे सामने अपने सर मटकाएँगें और कहेगें (अच्छा अगर होगा) तो आखि़र कब तुम कह दो कि बहुत जल्द अनक़रीब ही होगा (51)

सुबहानल्लाजी

يَوْمَ يَدْعُوكُمْ فَتَسْتَجِيبُونَ بِحَمْدِهِ وَتَظُنُّونَ إِن لَّبِثْتُمْ إِلاَّ قَلِيلاً {52}

जिस दिन ख़ुदा तुम्हें (इसराफील के ज़रिए से) बुंलाएगा तो उसकी हम्दो सना करते हुए उसकी तामील करोगे (और क़ब्रों से निकलोगे) और तुम ख़्याल करोगे कि (मरने के बाद क़ब्रों में) बहुत ही कम ठहरे (52) 

सुबहानल्लाजी

وَقُل لِّعِبَادِي يَقُولُواْ الَّتِي هِيَ أَحْسَنُ إِنَّ الشَّيْطَانَ يَنزَغُ بَيْنَهُمْ إِنَّ الشَّيْطَانَ كَانَ لِلإِنْسَانِ عَدُوًّا مُّبِينًا {53}

और (ऐ रसूल) मेरे (सच्चे) बन्दों (मोमिनों से कह दो कि वह (काफिरों से) बात करें तो अच्छे तरीक़े से (सख़्त कलामी न करें) क्योंकि शैतान तो (ऐसी ही) बातों से फसाद डलवाता है इसमें तो शक ही नहीं कि शैतान आदमी का खुला हुआ दुश्मन है (53)

सुबहानल्लाजी

رَّبُّكُمْ أَعْلَمُ بِكُمْ إِن يَشَأْ يَرْحَمْكُمْ أَوْ إِن يَشَأْ يُعَذِّبْكُمْ وَمَا أَرْسَلْنَاكَ عَلَيْهِمْ وَكِيلاً {54}

तुम्हारा परवरदिगार तुम्हारे हाल से खूब वाकि़फ है अगर चाहेगा तुम पर रहम करेगा और अगर चाहेगा तुम पर अज़ाब करेगा और (ऐ रसूल) हमने तुमको कुछ उन लोगों का जि़म्मेदार बनाकर नहीं भेजा है (54)

सुबहानल्लाजी

وَرَبُّكَ أَعْلَمُ بِمَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَلَقَدْ فَضَّلْنَا بَعْضَ النَّبِيِّينَ عَلَى بَعْضٍ وَآتَيْنَا دَاوُودَ زَبُورًا {55}

और जो लोग आसमानों में है और ज़मीन पर हैं (सब को) तुम्हारा परवरदिगार खूब जानता है और हम ने यक़ीनन बाज़ पैग़म्बरों को बाज़ पर फज़ीलत दी और हम ही ने दाऊद को जू़बूर अता की (55)

सुबहानल्लाजी

قُلِ ادْعُواْ الَّذِينَ زَعَمْتُم مِّن دُونِهِ فَلاَ يَمْلِكُونَ كَشْفَ الضُّرِّ عَنكُمْ وَلاَ تَحْوِيلاً {56}

(ऐ रसूल) तुम उनसे कह दों कि ख़ुदा के सिवा और जिन लोगों को माबूद समझते हो उनको (वक़्त पडे़) पुकार के तो देखो कि वह न तो तुम से तुम्हारी तकलीफ ही दफा कर सकते हैं और न उसको बदल सकते हैं (56)

सुबहानल्लाजी

أُولَـئِكَ الَّذِينَ يَدْعُونَ يَبْتَغُونَ إِلَى رَبِّهِمُ الْوَسِيلَةَ أَيُّهُمْ أَقْرَبُ وَيَرْجُونَ رَحْمَتَهُ وَيَخَافُونَ عَذَابَهُ إِنَّ عَذَابَ رَبِّكَ كَانَ مَحْذُورًا {57}

ये लोग जिनको मुशरेकीन (अपना ख़ुदा समझकर) इबादत करते हैं वह खुद अपने परवरदिगार की क़ुरबत के ज़रिए ढूँढते फिरते हैं कि (देखो) इनमें से कौन ज़्यादा कुरबत रखता है और उसकी रहमत की उम्मीद रखते और उसके अज़ाब से डरते हैं इसमें शक नहीं कि तेरे परवरदिगार का अज़ाब डरने की चीज़ है (57)

सुबहानल्लाजी

وَإِن مَّن قَرْيَةٍ إِلاَّ نَحْنُ مُهْلِكُوهَا قَبْلَ يَوْمِ الْقِيَامَةِ أَوْ مُعَذِّبُوهَا عَذَابًا شَدِيدًا كَانَ ذَلِك فِي الْكِتَابِ مَسْطُورًا {58}

और कोई बस्ती नहीं है मगर रोज़ क़यामत से पहले हम उसे तबाह व बरबाद कर छोड़ेगें या (नाफरमानी) की सज़ा में उस पर सख़्त से सख़्त अज़ाब करेगें (और) ये बात किताब (लौहे महफूज़) में लिखी जा चुकी है (58)

सुबहानल्लाजी

وَمَا مَنَعَنَا أَن نُّرْسِلَ بِالآيَاتِ إِلاَّ أَن كَذَّبَ بِهَا الأَوَّلُونَ وَآتَيْنَا ثَمُودَ النَّاقَةَ مُبْصِرَةً فَظَلَمُواْ بِهَا وَمَا نُرْسِلُ بِالآيَاتِ إِلاَّ تَخْوِيفًا {59}

और हमें मौजिज़ात भेजने से किसी चीज़ ने नहीं रोका मगर इसके सिवा कि अगलों ने उन्हें झुठला दिया और हमने क़ौमे समूद को (मौजिज़े से) ऊँटनी अता की जो (हमारी कुदरत की) दिखाने वाली थी तो उन लोगों ने उस पर ज़ुल्म किया यहाँ तक कि मार डाला और हम तो मौजिज़े सिर्फ डराने की ग़रज़ से भेजा करते हैं (59)

सुबहानल्लाजी

وَإِذْ قُلْنَا لَكَ إِنَّ رَبَّكَ أَحَاطَ بِالنَّاسِ وَمَا جَعَلْنَا الرُّؤيَا الَّتِي أَرَيْنَاكَ إِلاَّ فِتْنَةً لِّلنَّاسِ وَالشَّجَرَةَ الْمَلْعُونَةَ فِي القُرْآنِ وَنُخَوِّفُهُمْ فَمَا يَزِيدُهُمْ إِلاَّ طُغْيَانًا كَبِيرًا {60}

और (ऐ रसूल) वह वक़्त याद करो जब तुमसे हमने कह दिया था कि तुम्हारे परवरदिगार ने लोगों को (हर तरफ से) रोक रखा है कि (तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं सकते और हमने जो ख़्वाब तुमाको दिखलाया था तो बस उसे लोगों (के इमान) की आज़माइश का ज़रिया ठहराया था और (इसी तरह) वह दरख़्त जिस पर क़ुरान में लानत की गई है और हम बावजूद कि उन लोगों को (तरह तरह) से डराते हैं मगर हमारा डराना उनकी सख़्त सरकशी को बढ़ाता ही गया (60)

सुबहानल्लाजी

وَإِذْ قُلْنَا لِلْمَلآئِكَةِ اسْجُدُواْ لآدَمَ فَسَجَدُواْ إَلاَّ إِبْلِيسَ قَالَ أَأَسْجُدُ لِمَنْ خَلَقْتَ طِينًا {61}

और जब हम ने फरिश्तौं से कहा कि आदम को सजदा करो तो सबने सजदा किया मगर इबलीस वह (गुरुर से) कहने लगा कि क्या मै ऐसे शख़्स को सजदा करुँ जिसे तूने मिट्टी से पैदा किया है (61)

सुबहानल्लाजी

قَالَ أَرَأَيْتَكَ هَـذَا الَّذِي كَرَّمْتَ عَلَيَّ لَئِنْ أَخَّرْتَنِ إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ لأَحْتَنِكَنَّ ذُرِّيَّتَهُ إَلاَّ قَلِيلاً {62}

और (शेख़ी से) बोला भला देखो तो सही यही वह शख़्स है जिसको तूने मुझ पर फज़ीलत दी है अगर तू मुझ को क़यामत तक की मोहलत दे तो मैं (दावे से कहता हूँ कि) कम लोगों के सिवा इसकी नस्ल की जड़ काटता रहूँगा (62)

सुबहानल्लाजी

قَالَ اذْهَبْ فَمَن تَبِعَكَ مِنْهُمْ فَإِنَّ جَهَنَّمَ جَزَآؤُكُمْ جَزَاء مَّوْفُورًا {63}

ख़ुदा ने फरमाया चल (दूर हो) उनमें से जो शख़्स तेरी पैरवी करेगा तो (याद रहे कि) तुम सबकी सज़ा जहन्नुम है और वह भी पूरी पूरी सज़ा है (63)

सुबहानल्लाजी

وَاسْتَفْزِزْ مَنِ اسْتَطَعْتَ مِنْهُمْ بِصَوْتِكَ وَأَجْلِبْ عَلَيْهِم بِخَيْلِكَ وَرَجِلِكَ وَشَارِكْهُمْ فِي الأَمْوَالِ وَالأَوْلادِ وَعِدْهُمْ وَمَا يَعِدُهُمُ الشَّيْطَانُ إِلاَّ غُرُورًا {64}

और इसमें से जिस पर अपनी (चिकनी चुपड़ी) बात से क़ाबू पा सके वहां और अपने (चेलों के लश्कर) सवार और पैदल (सब) से चढ़ाई कर और माल और औलाद में उनके साथ साझा करे और उनसे (खूब झूटे) वायदे कर और शैतान तो उनसे जो वायदे करता है धोखे (की टट्ट्) के सिवा कुछ नहीं होता (64)

सुबहानल्लाजी

إِنَّ عِبَادِي لَيْسَ لَكَ عَلَيْهِمْ سُلْطَانٌ وَكَفَى بِرَبِّكَ وَكِيلاً {65}

बेशक जो मेरे (ख़ास) बन्दें हैं उन पर तेरा ज़ोर नहीं चल (सकता) और कारसाज़ी में तेरा परवरदिगार काफी है (65)

सुबहानल्लाजी

رَّبُّكُمُ الَّذِي يُزْجِي لَكُمُ الْفُلْكَ فِي الْبَحْرِ لِتَبْتَغُواْ مِن فَضْلِهِ إِنَّهُ كَانَ بِكُمْ رَحِيمًا {66}

लोगों) तुम्हारा परवरदिगार वह (क़ादिरे मुत्तलिक़) है जो तुम्हारे लिए समन्दर में जहाज़ों को चलाता है ताकि तुम उसके फज़ल व करम (रोज़ी) की तलाश करो इसमें शक नहीं कि वह तुम पर बड़ा मेहरबान है (66)

सुबहानल्लाजी

وَإِذَا مَسَّكُمُ الْضُّرُّ فِي الْبَحْرِ ضَلَّ مَن تَدْعُونَ إِلاَّ إِيَّاهُ فَلَمَّا نَجَّاكُمْ إِلَى الْبَرِّ أَعْرَضْتُمْ وَكَانَ الإِنْسَانُ كَفُورًا {67}

और जब समन्दर में कभी तुम को कोई तकलीफ पहुँचे तो जिनकी तुम इबादत किया करते थे ग़ायब हो गए मगर बस वही (एक ख़ुदा याद रहता है) उस पर भी जब ख़ुदा ने तुम को छुटकारा देकर खुशकी तक पहुँचा दिया तो फिर तुम इससे मुँह मोड़ बैठें और इन्सान बड़ा ही नाशुक्रा है (67)

सुबहानल्लाजी

أَفَأَمِنتُمْ أَن يَخْسِفَ بِكُمْ جَانِبَ الْبَرِّ أَوْ يُرْسِلَ عَلَيْكُمْ حَاصِبًا ثُمَّ لاَ تَجِدُواْ لَكُمْ وَكِيلاً {68}

तो क्या तुम उसको इस का भी इत्मिनान हो गया कि वह तुम्हें खुश्की तरफ (ले जाकर) (क़ारुन की तरह) ज़मीन में धंसा दे या तुम पर (क़ौम) लूत की तरह पत्थरों का मेंह बरसा दे फिर (उस वक़्त) तुम किसी को अपना कारसाज़ न पाओगे (68)

सुबहानल्लाजी

أَمْ أَمِنتُمْ أَن يُعِيدَكُمْ فِيهِ تَارَةً أُخْرَى فَيُرْسِلَ عَلَيْكُمْ قَاصِفا مِّنَ الرِّيحِ فَيُغْرِقَكُم بِمَا كَفَرْتُمْ ثُمَّ لاَ تَجِدُواْ لَكُمْ عَلَيْنَا بِهِ تَبِيعًا {69}

या तुमको इसका भी इत्मेनान हो गया कि फिर तुमको दोबारा इसी समन्दर में ले जाएगा उसके बाद हवा का एक ऐसा झोका जो (जहाज़ के) परख़चे उड़ा दे तुम पर भेजे फिर तुम्हें तुम्हारे कुफ्र की सज़ा में डुबा मारे फिर तुम किसी को (ऐसा हिमायती) न पाओगे जो हमारा पीछा करे और (तुम्हें छोड़ा जाए) (69)

सुबहानल्लाजी

وَلَقَدْ كَرَّمْنَا بَنِي آدَمَ وَحَمَلْنَاهُمْ فِي الْبَرِّ وَالْبَحْرِ وَرَزَقْنَاهُم مِّنَ الطَّيِّبَاتِ وَفَضَّلْنَاهُمْ عَلَى كَثِيرٍ مِّمَّنْ خَلَقْنَا تَفْضِيلاً {70}

और हमने यक़ीनन आदम की औलाद को इज़्ज़त दी और खुश्की और तरी में उनको (जानवरों कश्तियों के ज़रिए) लिए लिए फिरे और उन्हें अच्छी अच्छी चीज़ें खाने को दी और अपने बहुतेरे मख़लूक़ात पर उनको अच्छी ख़ासी फज़ीलत दी (70)

सुबहानल्लाजी

يَوْمَ نَدْعُو كُلَّ أُنَاسٍ بِإِمَامِهِمْ فَمَنْ أُوتِيَ كِتَابَهُ بِيَمِينِهِ فَأُوْلَـئِكَ يَقْرَؤُونَ كِتَابَهُمْ وَلاَ يُظْلَمُونَ فَتِيلاً {71}

उस दिन (को याद करो) जब हम तमाम लोगों को उन पेशवाओं के साथ बुलाएँगें तो जिसका नामए अमल उनके दाहिने हाथ में दिया जाएगा तो वह लोग (खुश खुश) अपना नामए अमल पढ़ने लगेगें और उन पर रेशा बराबर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा (71)

सुबहानल्लाजी

وَمَن كَانَ فِي هَـذِهِ أَعْمَى فَهُوَ فِي الآخِرَةِ أَعْمَى وَأَضَلُّ سَبِيلاً {72}

और जो शख़्स इस (दुनिया) में (जान बूझकर) अंधा बना रहा तो वह आखि़रत में भी अंधा ही रहेगा और (नजात) के रास्ते से बहुत दूर भटका सा हुआ (72)

सुबहानल्लाजी

وَإِن كَادُواْ لَيَفْتِنُونَكَ عَنِ الَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ لِتفْتَرِيَ عَلَيْنَا غَيْرَهُ وَإِذًا لاَّتَّخَذُوكَ خَلِيلاً {73}

और (ऐ रसूल) हमने तो (क़ुरान) तुम्हारे पास ‘वही’ के ज़रिए भेजा अगर चे लोग तो तुम्हें इससे बहकाने ही लगे थे ताकि तुम क़ुरान के अलावा फिर (दूसरी बातों का) इफ़तेरा बाँधों और (जब तुम ये कर गुज़रते उस वक़्त ये लोग तुम को अपना सच्चा दोस्त बना लेते (73)

सुबहानल्लाजी

وَلَوْلاَ أَن ثَبَّتْنَاكَ لَقَدْ كِدتَّ تَرْكَنُ إِلَيْهِمْ شَيْئًا قَلِيلاً {74}

और अगर हम तुमको साबित क़दम न रखते तो ज़रुर तुम भी ज़रा (ज़हूर) झुकने ही लगते (74)

सुबहानल्लाजी

إِذاً لَّأَذَقْنَاكَ ضِعْفَ الْحَيَاةِ وَضِعْفَ الْمَمَاتِ ثُمَّ لاَ تَجِدُ لَكَ عَلَيْنَا نَصِيرًا {75}

और (अगर तुम ऐसा करते तो) उस वक़्त हम तुमको जि़न्दगी में भी और मरने पर भी दोहरे (अज़ाब) का मज़ा चखा देते और फिर तुम को हमारे मुक़ाबले में कोई मददगार भी न मिलता (75)

सुबहानल्लाजी

وَإِن كَادُواْ لَيَسْتَفِزُّونَكَ مِنَ الأَرْضِ لِيُخْرِجوكَ مِنْهَا وَإِذًا لاَّ يَلْبَثُونَ خِلافَكَ إِلاَّ قَلِيلاً {76}

और ये लोग तो तुम्हें (सर ज़मीन मक्के) से दिल बर्दाश्त करने ही लगे थे ताकि तुम को वहाँ से (शाम की तरफ) निकाल बाहर करें और ऐसा होता तो तुम्हारे पीछे में ये लोग चन्द रोज़ के सिवा ठहरने भी न पाते (76)

सुबहानल्लाजी

سُنَّةَ مَن قَدْ أَرْسَلْنَا قَبْلَكَ مِن رُّسُلِنَا وَلاَ تَجِدُ لِسُنَّتِنَا تَحْوِيلاً {77}

तुमसे पहले जितने रसूल हमने भेजे हैं उनका बराबर यही दस्तूर रहा है और जो दस्तूर हमारे (ठहराए हुए) हैं उनमें तुम तग़्य्युर तबद्दुल {रद्दो बदल} न पाओगे (77)

सुबहानल्लाजी

أَقِمِ الصَّلاَةَ لِدُلُوكِ الشَّمْسِ إِلَى غَسَقِ اللَّيْلِ وَقُرْآنَ الْفَجْرِ إِنَّ قُرْآنَ الْفَجْرِ كَانَ مَشْهُودًا {78}

(ऐ रसूल) सूरज के ढलने से रात के अँधेरे तक नमाज़े ज़ोहर, अ०, मग़रिब, इशा पढ़ा करो और नमाज़ सुबह (भी) क्योंकि सुबह की नमाज़ पर (दिन और रात दोनों के फरिश्तौं की) गवाही होती है (78)

सुबहानल्लाजी

وَمِنَ اللَّيْلِ فَتَهَجَّدْ بِهِ نَافِلَةً لَّكَ عَسَى أَن يَبْعَثَكَ رَبُّكَ مَقَامًا مَّحْمُودًا {79}

और रात के ख़ास हिस्से में नमाजे़ तहज्जुद पढ़ा करो ये सुन्नत तुम्हारी खास फज़ीलत हैं क़रीब है कि क़यामत के दिन ख़ुदा तुमको मक़ामे महमूद तक पहुँचा दे (79)

सुबहानल्लाजी

وَقُل رَّبِّ أَدْخِلْنِي مُدْخَلَ صِدْقٍ وَأَخْرِجْنِي مُخْرَجَ صِدْقٍ وَاجْعَل لِّي مِن لَّدُنكَ سُلْطَانًا نَّصِيرًا {80}

और ये दुआ माँगा करो कि ऐ मेरे परवरदिगार मुझे (जहाँ) पहुँचा अच्छी तरह पहुँचा और मुझे (जहाँ से निकाल) तो अच्छी तरह निकाल और मुझे ख़ास अपनी बारगाह से एक हुकूमत अता फरमा जिस से (हर कि़स्म की) मदद पहुँचे (80)

सुबहानल्लाजी

وَقُلْ جَاء الْحَقُّ وَزَهَقَ الْبَاطِلُ إِنَّ الْبَاطِلَ كَانَ زَهُوقًا {81}

और (ऐ रसूल) कह दो कि (दीन) हक़ आ गया और बातिल नेस्तनाबूद हुआ इसमें शक नहीं कि बातिल मिटने वाला ही था (81)

सुबहानल्लाजी

وَنُنَزِّلُ مِنَ الْقُرْآنِ مَا هُوَ شِفَاء وَرَحْمَةٌ لِّلْمُؤْمِنِينَ وَلاَ يَزِيدُ الظَّالِمِينَ إَلاَّ خَسَارًا {82}

और हम तो क़ुरान में वही चीज़ नाजि़ल करते हैं जो मोमिनों के लिए (सरासर) शिफा और रहमत है (मगर) नाफरमानों को तो घाटे के सिवा कुछ बढ़ाता ही नहीं (82)

सुबहानल्लाजी

وَإِذَا أَنْعَمْنَا عَلَى الإِنسَانِ أَعْرَضَ وَنَأَى بِجَانِبِهِ وَإِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ كَانَ يَؤُوسًا {83}

और जब हमने आदमी को नेअमत अता फरमाई तो (उल्टे) उसने (हमसे) मुँह फेरा और पहलू बचाने लगा और जब उसे कोई तकलीफ छू भी गई तो मायूस हो बैठा (83)

सुबहानल्लाजी

قُلْ كُلٌّ يَعْمَلُ عَلَى شَاكِلَتِهِ فَرَبُّكُمْ أَعْلَمُ بِمَنْ هُوَ أَهْدَى سَبِيلاً {84}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि हर (एक अपने तरीक़े पर कारगुज़ारी करता है फिर तुम में से जो शख़्स बिल्कुल ठीक सीधी राह पर है तुम्हारा परवरदिगार (उससे) खूब वाकि़फ है (84)

सुबहानल्लाजी

وَيَسْأَلُونَكَ عَنِ الرُّوحِ قُلِ الرُّوحُ مِنْ أَمْرِ رَبِّي وَمَا أُوتِيتُم مِّن الْعِلْمِ إِلاَّ قَلِيلاً {85}

और (ऐ रसूल) तुमसे लोग रुह के बारे में सवाल करते हैं तुम (उनके जवाब में) कह दो कि रूह (भी) मेरे परदिगार के हुक्म से (पैदा हुई है) और तुमको बहुत थोड़ा सा इल्म दिया गया है (85)

सुबहानल्लाजी

وَلَئِن شِئْنَا لَنَذْهَبَنَّ بِالَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ ثُمَّ لاَ تَجِدُ لَكَ بِهِ عَلَيْنَا وَكِيلاً {86}

(इसकी हक़ीकत नहीं समझ सकते) और (ऐ रसूल) अगर हम चाहे तो जो (क़ुरान) हमने तुम्हारे पास ‘वही’ के ज़रिए भेजा है (दुनिया से) उठा ले जाएँ फिर तुम अपने वास्ते हमारे मुक़ाबले में कोई मददगार न पाओगे (86)

सुबहानल्लाजी

إِلاَّ رَحْمَةً مِّن رَّبِّكَ إِنَّ فَضْلَهُ كَانَ عَلَيْكَ كَبِيرًا {87}

मगर ये सिर्फ तुम्हारे परवरदिगार की रहमत है (कि उसने ऐसा किया) इसमें शक नहीं कि उसका तुम पर बड़ा फज़ल व करम है (87)

सुबहानल्लाजी

قُل لَّئِنِ اجْتَمَعَتِ الإِنسُ وَالْجِنُّ عَلَى أَن يَأْتُواْ بِمِثْلِ هَـذَا الْقُرْآنِ لاَ يَأْتُونَ بِمِثْلِهِ وَلَوْ كَانَ بَعْضُهُمْ لِبَعْضٍ ظَهِيرًا {88}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि (अगर सारे दुनिया जहाँन के) आदमी और जिन इस बात पर इकट्ठे हो कि उस क़ुरान का मिसल ले आएँ तो (ना मुमकिन) उसके बराबर नहीं ला सकते अगरचे (उसको कोशिश में) एक का एक मददगार भी बने (88)

सुबहानल्लाजी

وَلَقَدْ صَرَّفْنَا لِلنَّاسِ فِي هَـذَا الْقُرْآنِ مِن كُلِّ مَثَلٍ فَأَبَى أَكْثَرُ النَّاسِ إِلاَّ كُفُورًا {89}

और हमने तो लोगों (के समझाने) के वास्ते इस क़ुरान में हर कि़स्म की मसलें अदल बदल के बयान कर दीं उस पर भी अक्सर लोग बग़ैर नाशुक्री किए नहीं रहते (89)

सुबहानल्लाजी

وَقَالُواْ لَن نُّؤْمِنَ لَكَ حَتَّى تَفْجُرَ لَنَا مِنَ الأَرْضِ يَنبُوعًا {90}

(ऐ रसूल कुफ्फार मक्के ने) तुमसे कहा कि जब तक तुम हमारे वास्ते ज़मीन से चश्मा (न) बहा निकालोगे हम तो तुम पर हरगिज़ इमान न लाएँगें (90)

सुबहानल्लाजी

أَوْ تَكُونَ لَكَ جَنَّةٌ مِّن نَّخِيلٍ وَعِنَبٍ فَتُفَجِّرَ الأَنْهَارَ خِلالَهَا تَفْجِيرًا {91}

या (ये नहीं तो) खजूरों और अँगूरों का तुम्हारा कोई बाग़ हो उसमें तुम बीच बीच में नहरे जारी करके दिखा दो (91)

सुबहानल्लाजी

أَوْ تُسْقِطَ السَّمَاء كَمَا زَعَمْتَ عَلَيْنَا كِسَفًا أَوْ تَأْتِيَ بِاللّهِ وَالْمَلآئِكَةِ قَبِيلاً {92}

या जैसा तुम गुमान रखते थे हम पर आसमान ही को टुकड़े (टुकड़े) करके गिराओ या ख़ुदा और फरिश्तों को (अपने क़ौल की तस्दीक़) में हमारे सामने (गवाही में ला खड़ा कर दिया (92)

सुबहानल्लाजी

أَوْ يَكُونَ لَكَ بَيْتٌ مِّن زُخْرُفٍ أَوْ تَرْقَى فِي السَّمَاء وَلَن نُّؤْمِنَ لِرُقِيِّكَ حَتَّى تُنَزِّلَ عَلَيْنَا كِتَابًا نَّقْرَؤُهُ قُلْ سُبْحَانَ رَبِّي هَلْ كُنتُ إَلاَّ بَشَرًا رَّسُولاً {93}

और जब तक तुम हम पर ख़ुदा के यहाँ से एक किताब न नाजि़ल करोगे कि हम उसे खुद पढ़ भी लें उस वक़्त तक हम तुम्हारे (आसमान पर चढ़ने के भी) क़ायल न होगें (ऐ रसूल) तुम कह दो कि सुबहान अल्लाह मै एक आदमी (ख़ुदा के) रसूल के सिवा आखि़र और क्या हूँ (93)

सुबहानल्लाजी

وَمَا مَنَعَ النَّاسَ أَن يُؤْمِنُواْ إِذْ جَاءهُمُ الْهُدَى إِلاَّ أَن قَالُواْ أَبَعَثَ اللّهُ بَشَرًا رَّسُولاً {94}

(जो ये बेहूदा बातें करते हो) और जब लोगों के पास हिदायत आ चुकी तो उनको इमान लाने से इसके सिवा किसी चीज़ ने न रोका कि वह कहने लगे कि क्या ख़ुदा ने आदमी को रसूल बनाकर भेजा है (94)

सुबहानल्लाजी

قُل لَّوْ كَانَ فِي الأَرْضِ مَلآئِكَةٌ يَمْشُونَ مُطْمَئِنِّينَ لَنَزَّلْنَا عَلَيْهِم مِّنَ السَّمَاء مَلَكًا رَّسُولاً {95}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर ज़मीन पर फ़रिश्ते (बसे हुये) होते कि इत्मेनान से चलते फिरते तो हम उन लोगों के पास फ़रिश्ते ही को रसूल बनाकर नाजि़ल करते (95)

सुबहानल्लाजी

قُلْ كَفَى بِاللّهِ شَهِيدًا بَيْنِي وَبَيْنَكُمْ إِنَّهُ كَانَ بِعِبَادِهِ خَبِيرًا بَصِيرًا {96}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि हमारे तुम्हारे दरम्यिान गवाही के वास्ते बस ख़ुदा काफी है इसमें शक नहीं कि वह अपने बन्दों के हाल से खूब वाकि़फ और देखता रहता है (96)

सुबहानल्लाजी

وَمَن يَهْدِ اللّهُ فَهُوَ الْمُهْتَدِ وَمَن يُضْلِلْ فَلَن تَجِدَ لَهُمْ أَوْلِيَاء مِن دُونِهِ وَنَحْشُرُهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ عَلَى وُجُوهِهِمْ عُمْيًا وَبُكْمًا وَصُمًّا مَّأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ كُلَّمَا خَبَتْ زِدْنَاهُمْ سَعِيرًا {97}

और ख़ुदा जिसकी हिदायत करे वही हिदायत याफता है और जिसको गुमराही में छोड़ दे तो (याद रखो कि) फिर उसके सिवा किसी को उसका सरपरस्त न पाआगे और क़यामत के दिन हम उन लोगों का मुँह के बल औंधे और गूँगें और बहरे क़ब्रों से उठाएँगें उनका ठिकाना जहन्नुम है कि जब कभी बुझने को होगी तो हम उन लोगों पर (उसे) और भड़का देंगे (97) 

सुबहानल्लाजी

ذَلِكَ جَزَآؤُهُم بِأَنَّهُمْ كَفَرُواْ بِآيَاتِنَا وَقَالُواْ أَئِذَا كُنَّا عِظَامًا وَرُفَاتًا أَإِنَّا لَمَبْعُوثُونَ خَلْقًا جَدِيدًا {98}

ये सज़ा उनकी इस वज़ह से है कि उन लोगों ने हमारी आयतों से इन्कार किया और कहने लगे कि जब हम (मरने के बाद सड़ गल) कर हड्डियाँ और रेज़ा रेज़ा हो जाएँगीं तो क्या फिर हम नये सिरे से पैदा करके उठाए जाएँगें (98)

सुबहानल्लाजी

أَوَلَمْ يَرَوْاْ أَنَّ اللّهَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ قَادِرٌ عَلَى أَن يَخْلُقَ مِثْلَهُمْ وَجَعَلَ لَهُمْ أَجَلاً لاَّ رَيْبَ فِيهِ فَأَبَى الظَّالِمُونَ إَلاَّ كُفُورًا {99}

क्या उन लोगों ने इस पर भी नहीं ग़ौर किया कि वह ख़ुदा जिसने सारे आसमान और ज़मीन बनाए इस पर भी (ज़रुर) क़ादिर है कि उनके ऐसे आदमी दोबारा पैदा करे और उसने उन (की मौत) की एक मियाद मुक़र्रर कर दी है जिसमें ज़रा भी शक नहीं उस पर भी ये ज़ालिम इन्कार किए बग़ैर न रहे (99)

सुबहानल्लाजी

قُل لَّوْ أَنتُمْ تَمْلِكُونَ خَزَآئِنَ رَحْمَةِ رَبِّي إِذًا لَّأَمْسَكْتُمْ خَشْيَةَ الإِنفَاقِ وَكَانَ الإنسَانُ قَتُورًا {100}

(ऐ रसूल) इनसे कहो कि अगर मेरे परवरदिगार के रहमत के ख़ज़ाने भी तुम्हारे एख़तियार में होते तो भी तुम खर्च हो जाने के डर से (उनको) बन्द रखते और आदमी बड़ा ही तंग दिल है (100)

सुबहानल्लाजी

وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى تِسْعَ آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ فَاسْأَلْ بَنِي إِسْرَائِيلَ إِذْ جَاءهُمْ فَقَالَ لَهُ فِرْعَونُ إِنِّي لَأَظُنُّكَ يَا مُوسَى مَسْحُورًا {101}

और हमने यक़ीनन मूसा को खुले हुए नौ मौजिज़े अता किए तो (ऐ रसूल) बनी इसराईल से (यही) पूछ देखो कि जब मूसा उनके पास आए तो फिरआऊन ने उनसे कहा कि ऐ मूसा मै तो समझता हूँ कि किसी ने तुम पर जादू करके दीवाना बना दिया है (101)

सुबहानल्लाजी

قَالَ لَقَدْ عَلِمْتَ مَا أَنزَلَ هَـؤُلاء إِلاَّ رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ بَصَآئِرَ وَإِنِّي لَأَظُنُّكَ يَا فِرْعَونُ مَثْبُورًا {102}

मूसा ने कहा तुम ये ज़रुर जानते हो कि ये मौजिज़े सारे आसमान व ज़मीन के परवरदिगार ने नाजि़ल किए (और वह भी लोगों की) सूझ बूझ की बातें हैं और ऐ फिरआऊन मै तो ख़्याल करता हूँ कि तुम पर शामत आई है (102)

सुबहानल्लाजी

فَأَرَادَ أَن يَسْتَفِزَّهُم مِّنَ الأَرْضِ فَأَغْرَقْنَاهُ وَمَن مَّعَهُ جَمِيعًا {103}

फिर फिरआऊन ने ये ठान लिया कि बनी इसराईल को (सर ज़मीने) मिस्र से निकाल बाहर करे तो हमने फिरआऊन और जो लोग उसके साथ थे सब को डुबो मारा (103)

सुबहानल्लाजी

وَقُلْنَا مِن بَعْدِهِ لِبَنِي إِسْرَائِيلَ اسْكُنُواْ الأَرْضَ فَإِذَا جَاء وَعْدُ الآخِرَةِ جِئْنَا بِكُمْ لَفِيفًا {104}

और उसके बाद हमने बनी इसराईल से कहा कि (अब तुम ही) इस मुल्क में (खूब आराम से) रहो सहो फिर जब आखि़रत का वायदा आ पहुँचेगा तो हम तुम सबको समेट कर ले आएँगें (104)

सुबहानल्लाजी

وَبِالْحَقِّ أَنزَلْنَاهُ وَبِالْحَقِّ نَزَلَ وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلاَّ مُبَشِّرًا وَنَذِيرًا {105}

और (ऐ रसूल) हमने इस क़ुरान को बिल्कुल ठीक नाजि़ल किया और बिल्कुल ठीक नाजि़ल हुआ और तुमको तो हमने (जन्नत की) खुशखबरी देने वाला और (अज़ाब से) डराने वाला (रसूल) बनाकर भेजा है (105)

सुबहानल्लाजी

وَقُرْآناً فَرَقْنَاهُ لِتَقْرَأَهُ عَلَى النَّاسِ عَلَى مُكْثٍ وَنَزَّلْنَاهُ تَنزِيلاً {106}

और क़ुरान को हमने थोड़ा थोड़ा करके इसलिए नाजि़ल किया कि तुम लोगों के सामने (ज़रुरत पड़ने पर) मोहलत दे देकर उसको पढ़ दिया करो (106)

सुबहानल्लाजी

قُلْ آمِنُواْ بِهِ أَوْ لاَ تُؤْمِنُواْ إِنَّ الَّذِينَ أُوتُواْ الْعِلْمَ مِن قَبْلِهِ إِذَا يُتْلَى عَلَيْهِمْ يَخِرُّونَ لِلأَذْقَانِ سُجَّدًا {107}

और (इसी वजह से) हमने उसको रफ्ता रफ्ता नाजि़ल किया तुम कह दो कि ख़्वाह तुम इस पर ईमान लाओ या न लाओ इसमें शक नहीं कि जिन लोगों को उसके क़ब्ल ही (आसमानी किताबों का इल्म अता किया गया है उनके सामने जब ये पढ़ा जाता है तो ठुडडियों से (मुँह के बल) सजदे में गिर पड़तें हैं (107)

सुबहानल्लाजी

وَيَقُولُونَ سُبْحَانَ رَبِّنَا إِن كَانَ وَعْدُ رَبِّنَا لَمَفْعُولاً {108}

और कहते हैं कि हमारा परवरदिगार (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है बेशक हमारे परवरदिगार का वायदा पूरा होना ज़रुरी था (108)

सुबहानल्लाजी

وَيَخِرُّونَ لِلأَذْقَانِ يَبْكُونَ وَيَزِيدُهُمْ خُشُوعًا {109}

और ये लोग (सजदे के लिए) मुँह के बल गिर पड़तें हैं और रोते चले जाते हैं और ये क़ुरान उन की ख़ाकसारी के बढ़ाता जाता है (109) (सजदा)

सुबहानल्लाजी

قُلِ ادْعُواْ اللّهَ أَوِ ادْعُواْ الرَّحْمَـنَ أَيًّا مَّا تَدْعُواْ فَلَهُ الأَسْمَاء الْحُسْنَى وَلاَ تَجْهَرْ بِصَلاَتِكَ وَلاَ تُخَافِتْ بِهَا وَابْتَغِ بَيْنَ ذَلِكَ سَبِيلاً {110}

(ऐ रसूल) तुम (उनसे) कह दो कि (तुम को एख़तियार है) ख़्वाह उसे अल्लाह (कहकर) पुकारो या रहमान कह कर पुकारो (ग़रज़) जिस नाम को भी पुकारो उसके तो सब नाम अच्छे (से अच्छे) हैं और (ऐ रसूल) न तो अपनी नमाज़ बहुत चिल्ला कर पढ़ो न और न बिल्कुल चुपके से बल्कि उसके दरम्यिान एक औसत तरीका एख़्तेयार कर लो (110)

सुबहानल्लाजी

وَقُلِ الْحَمْدُ لِلّهِ الَّذِي لَمْ يَتَّخِذْ وَلَدًا وَلَم يَكُن لَّهُ شَرِيكٌ فِي الْمُلْكِ وَلَمْ يَكُن لَّهُ وَلِيٌّ مِّنَ الذُّلَّ وَكَبِّرْهُ تَكْبِيرًا {111}

और कहो कि हर तरह की तारीफ उसी ख़ुदा को (सज़ावार) है जो न तो कोई औलाद रखता है और न (सारे जहाँन की) सल्तनत में उसका कोई साझेदार है और न उसे किसी तरह की कमज़ोरी है न कोई उसका सरपरस्त हो और उसकी बड़ाई अच्छी तरह करते रहा करो (111)

सुबहानल्लाजी

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से शुरु करता हूँ जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है

सुबहानल्लाजी

الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي أَنزَلَ عَلَى عَبْدِهِ الْكِتَابَ وَلَمْ يَجْعَل لَّهُ عِوَجَا {1}

हर तरह की तारीफ ख़ुदा ही को (सज़ावार) है जिसने अपने बन्दे (मोहम्मद) पर किताब (क़ुरान) नाजि़ल की और उसमें किसी तरह की कज़ी (ख़राबी) न रखी (1)

सुबहानल्लाजी

قَيِّمًا لِّيُنذِرَ بَأْسًا شَدِيدًا مِن لَّدُنْهُ وَيُبَشِّرَ الْمُؤْمِنِينَ الَّذِينَ يَعْمَلُونَ الصَّالِحَاتِ أَنَّ لَهُمْ أَجْرًا حَسَنًا {2}

बल्कि हर तरह से सधा ताकि जो सख़्त अज़ाब ख़ुदा की बारगाह से काफिरों पर नाजि़ल होने वाला है उससे लोगों को डराए और जिन मोमिनीन ने अच्छे अच्छे काम किए हैं उनको इस बात की खुशख़बरी दे की उनके लिए बहुत अच्छा अज्र (व सवाब) मौजूद है (2)

सुबहानल्लाजी

مَاكِثِينَ فِيهِ أَبَدًا {3}

जिसमें वह हमेशा (बाइत्मेनान) तमाम रहेगें (3)

सुबहानल्लाजी

وَيُنذِرَ الَّذِينَ قَالُوا اتَّخَذَ اللَّهُ وَلَدًا {4}

और जो लोग इसके क़ाएल हैं कि ख़ुदा औलाद रखता है उनको (अज़ाब से) डराओ (4)

सुबहानल्लाजी

مَّا لَهُم بِهِ مِنْ عِلْمٍ وَلَا لِآبَائِهِمْ كَبُرَتْ كَلِمَةً تَخْرُجُ مِنْ أَفْوَاهِهِمْ إِن يَقُولُونَ إِلَّا كَذِبًا {5}

न तो उन्हीं को उसकी कुछ खबर है और न उनके बाप दादाओं ही को थी (ये) बड़ी सख़्त बात है जो उनके मुँह से निकलती है ये लोग झूठ मूठ के सिवा (कुछ और) बोलते ही नहीं (5)

सुबहानल्लाजी

فَلَعَلَّكَ بَاخِعٌ نَّفْسَكَ عَلَى آثَارِهِمْ إِن لَّمْ يُؤْمِنُوا بِهَذَا الْحَدِيثِ أَسَفًا {6}

तो (ऐ रसूल) अगर ये लोग इस बात को न माने तो शायद तुम मारे अफसोस के उनके पीछे अपनी जान दे डालोगे (6)

सुबहानल्लाजी

إِنَّا جَعَلْنَا مَا عَلَى الْأَرْضِ زِينَةً لَّهَا لِنَبْلُوَهُمْ أَيُّهُمْ أَحْسَنُ عَمَلًا {7}

और जो कुछ रुए ज़मीन पर है हमने उसकी ज़ीनत (रौनक़) क़रार दी ताकि हम लोगों का इम्तिहान लें कि उनमें से कौन सबसे अच्छा चलन का है (7)

सुबहानल्लाजी

وَإِنَّا لَجَاعِلُونَ مَا عَلَيْهَا صَعِيدًا جُرُزًا {8}

और (फिर) हम एक न एक दिन जो कुछ भी इस पर है (सबको मिटा करके) चटियल मैदान बना देगें (8)

सुबहानल्लाजी

أَمْ حَسِبْتَ أَنَّ أَصْحَابَ الْكَهْفِ وَالرَّقِيمِ كَانُوا مِنْ آيَاتِنَا عَجَبًا {9}

(ऐ रसूल) क्या तुम ये ख़्याल करते हो कि असहाब कहफ व रक़ीम (खोह) और (तख़्ती वाले) हमारी (क़ुदरत की) निशानियों में से एक अजीब (निशानी) थे (9)

सुबहानल्लाजी

إِذْ أَوَى الْفِتْيَةُ إِلَى الْكَهْفِ فَقَالُوا رَبَّنَا آتِنَا مِن لَّدُنكَ رَحْمَةً وَهَيِّئْ لَنَا مِنْ أَمْرِنَا رَشَدًا {10}

कि एक बारगी कुछ जवान ग़ार में आ पहुँचे और दुआ की-ऐ हमारे परवरदिगार हमें अपनी बारगाह से रहमत अता फरमा-और हमारे वास्ते हमारे काम में कामयाबी इनायत कर (10)

सुबहानल्लाजी

فَضَرَبْنَا عَلَى آذَانِهِمْ فِي الْكَهْفِ سِنِينَ عَدَدًا {11}

तब हमने कई बरस तक ग़ार में उनके कानों पर पर्दे डाल दिए (उन्हें सुला दिया) (11)

सुबहानल्लाजी

ثُمَّ بَعَثْنَاهُمْ لِنَعْلَمَ أَيُّ الْحِزْبَيْنِ أَحْصَى لِمَا لَبِثُوا أَمَدًا {12}

फिर हमने उन्हें चैकाया ताकि हम देखें कि दो गिरोहों में से किसी को (ग़ार में) ठहरने की मुद्दत खूब याद है (12)

सुबहानल्लाजी

نَحْنُ نَقُصُّ عَلَيْكَ نَبَأَهُم بِالْحَقِّ إِنَّهُمْ فِتْيَةٌ آمَنُوا بِرَبِّهِمْ وَزِدْنَاهُمْ هُدًى {13}

(ऐ रसूल) अब हम उनका हाल तुमसे बिल्कुल ठीक तहक़ीक़ातन {यक़ीन के साथ} बयान करते हैं वह चन्द जवान थे कि अपने (सच्चे) परवरदिगार पर इमान लाए थे और हम ने उनकी सोच समझ और ज़्यादा कर दी है (13)

सुबहानल्लाजी

وَرَبَطْنَا عَلَى قُلُوبِهِمْ إِذْ قَامُوا فَقَالُوا رَبُّنَا رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ لَن نَّدْعُوَ مِن دُونِهِ إِلَهًا لَقَدْ قُلْنَا إِذًا شَطَطًا {14}

और हमने उनकी दिलों पर (सब्र व इस्तेक़लाल की) गिराह लगा दी (कि जब दकि़यानूस बादशाह ने कुफ्र पर मजबूर किया) तो उठ खड़े हुए (और बे ताम्मुल {खटके}) कहने लगे हमारा परवरदिगार तो बस सारे आसमान व ज़मीन का मालिक है हम तो उसके सिवा किसी माबूद की हरगिज़ इबादत न करेगें (14)

सुबहानल्लाजी

هَؤُلَاء قَوْمُنَا اتَّخَذُوا مِن دُونِهِ آلِهَةً لَّوْلَا يَأْتُونَ عَلَيْهِم بِسُلْطَانٍ بَيِّنٍ فَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرَى عَلَى اللَّهِ كَذِبًا {15}

अगर हम ऐसा करे तो यक़ीनन हमने अक़ल से दूर की बात कही (अफसोस एक) ये हमारी क़ौम के लोग हैं कि जिन्होने ख़ुदा को छोड़कर (दूसरे) माबूद बनाए हैं (फिर) ये लोग उनके (माबूद होने) की कोई सरीही (खुली) दलील क्यों नहीं पेश करते और जो शख़्स ख़ुदा पर झूट बोहतान बाँधे उससे ज़्यादा ज़ालिम और कौन होगा (15)

सुबहानल्लाजी

وَإِذِ اعْتَزَلْتُمُوهُمْ وَمَا يَعْبُدُونَ إِلَّا اللَّهَ فَأْوُوا إِلَى الْكَهْفِ يَنشُرْ لَكُمْ رَبُّكُم مِّن رَّحمته ويُهَيِّئْ لَكُم مِّنْ أَمْرِكُم مِّرْفَقًا {16}

(फिर बाहम कहने लगे कि) जब तुमने उन लोगों से और ख़ुदा के सिवा जिन माबूदों की ये लोग परसतिश करते हैं उनसे किनारा कशी करली तो चलो (फलाँ) ग़ार में जा बैठो और तुम्हारा परवरदिगार अपनी रहमत तुम पर वसीह कर देगा और तुम्हारा काम में तुम्हारे लिए आसानी के सामान मुहय्या करेगा (16)

सुबहानल्लाजी

وَتَرَى الشَّمْسَ إِذَا طَلَعَت تَّزَاوَرُ عَن كَهْفِهِمْ ذَاتَ الْيَمِينِ وَإِذَا غَرَبَت تَّقْرِضُهُمْ ذَاتَ الشِّمَالِ وَهُمْ فِي فَجْوَةٍ مِّنْهُ ذَلِكَ مِنْ آيَاتِ اللَّهِ مَن يَهْدِ اللَّهُ فَهُوَ الْمُهْتَدِ وَمَن يُضْلِلْ فَلَن تَجِدَ لَهُ وَلِيًّا مُّرْشِدًا {17}

(ग़रज़ ये ठान कर ग़ार में जा पहुँचे) कि जब सूरज निकलता है तो देखेगा कि वह उनके ग़ार से दाहिनी तरफ झुक कर निकलता है और जब ग़ुरुब {डूबता} होता है तो उनसे बायीं तरफ कतरा जाता है और वह लोग (मजे़ से) ग़ार के अन्दर एक वसीइ {बड़ी} जगह में (लेटे) हैं ये ख़ुदा (की कुदरत) की निशानियों में से (एक निशानी) है जिसको हिदायत करे वही हिदायत याफ्ता है और जिस को गुमराह करे तो फिर उसका कोई सरपरस्त रहनुमा हरगिज़ न पाओगे (17)

सुबहानल्लाजी

وَتَحْسَبُهُمْ أَيْقَاظًا وَهُمْ رُقُودٌ وَنُقَلِّبُهُمْ ذَاتَ الْيَمِينِ وَذَاتَ الشِّمَالِ وَكَلْبُهُم بَاسِطٌ ذِرَاعَيْهِ بِالْوَصِيدِ لَوِ اطَّلَعْتَ عَلَيْهِمْ لَوَلَّيْتَ مِنْهُمْ فِرَارًا وَلَمُلِئْتَ مِنْهُمْ رُعْبًا {18}

तू उनको समझेगा कि वह जागते हैं हाकि वह (गहरी नींद में) सो रहे हैं और हम कभी दाहिनी तरफ और कभी बायी तरफ उनकी करवट बदलवा देते हैं और उनका कुत्ता अपने आगे के दोनो पाँव फैलाए चैखट पर डटा बैठा है (उनकी ये हालत है कि) अगर कहीं तू उनको झाक कर देखे तो उलटे पाँव ज़रुर भाग खड़े हो और तेरे दिल में दहशत समा जाए (18)

सुबहानल्लाजी

وَكَذَلِكَ بَعَثْنَاهُمْ لِيَتَسَاءلُوا بَيْنَهُمْ قَالَ قَائِلٌ مِّنْهُمْ كَمْ لَبِثْتُمْ قَالُوا لَبِثْنَا يَوْمًا أَوْ بَعْضَ يَوْمٍ قَالُوا رَبُّكُمْ أَعْلَمُ بِمَا لَبِثْتُمْ فَابْعَثُوا أَحَدَكُم بِوَرِقِكُمْ هَذِهِ إِلَى الْمَدِينَةِ فَلْيَنظُرْ أَيُّهَا أَزْكَى طَعَامًا فَلْيَأْتِكُم بِرِزْقٍ مِّنْهُ وَلْيَتَلَطَّفْ وَلَا يُشْعِرَنَّ بِكُمْ أَحَدًا {19}

और (जिस तरह अपनी कुदरत से उनको सुलाया) उसी तरह (अपनी कुदरत से) उनको (जगा) उठाया ताकि आपस में कुछ पूछ गछ करें (ग़रज़) उनमें एक बोलने वाला बोल उठा कि (भई आखि़र इस ग़ार में) तुम कितनी मुद्दत ठहरे कहने लगे (अरे ठहरे क्या बस) एक दिन से भी कम उसके बाद कहने लगे कि जितनी देर तुम ग़ार में ठहरे उसको तुम्हारे परवरदिगार ही (कुछ तुम से) बेहतर जानता है (अच्छा) तो अब अपने में से किसी को अपना ये रुपया देकर शहर की तरफ भेजो तो वह (जाकर) देख भाल ले कि वहाँ कौन सा खाना बहुत अच्छा है फिर उसमें से (ज़रुरत भर) खाना तुम्हारे वास्ते ले आए और उसे चाहिए कि वह आहिस्ता चुपके से आ जाए और किसी को तुम्हारी ख़बर न होने दे (19)

सुबहानल्लाजी

إِنَّهُمْ إِن يَظْهَرُوا عَلَيْكُمْ يَرْجُمُوكُمْ أَوْ يُعِيدُوكُمْ فِي مِلَّتِهِمْ وَلَن تُفْلِحُوا إِذًا أَبَدًا {20}

इसमें शक नहीं कि अगर उन लोगों को तुम्हारी इत्तेलाअ हो गई तो बस फिर तुम को संगसार ही कर देंगें या फिर तुम को अपने दीन की तरफ फेर कर ले जाएँगे और अगर ऐसा हुआ तो फिर तुम कभी कामयाब न होगे (20)

सुबहानल्लाजी

وَكَذَلِكَ أَعْثَرْنَا عَلَيْهِمْ لِيَعْلَمُوا أَنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ وَأَنَّ السَّاعَةَ لَا رَيْبَ فِيهَا إِذْ يَتَنَازَعُونَ بَيْنَهُمْ أَمْرَهُمْ فَقَالُوا ابْنُوا عَلَيْهِم بُنْيَانًا رَّبُّهُمْ أَعْلَمُ بِهِمْ قَالَ الَّذِينَ غَلَبُوا عَلَى أَمْرِهِمْ لَنَتَّخِذَنَّ عَلَيْهِم مَّسْجِدًا {21}

और हमने यूँ उनकी क़ौम के लोगों को उनकी हालत पर इत्तेलाअ (ख़बर) कराई ताकि वह लोग देख लें कि ख़ुदा को वायदा यक़ीनन सच्चा है और ये (भी समझ लें) कि क़यामत (के आने) में कुछ भी शुभा नहीं अब (इत्तिलाआ होने के बाद) उनके बारे में लोग बाहम झगड़ने लगे तो कुछ लोगों ने कहा कि उनके (ग़ार) पर (बतौर यादगार) कोई इमारत बना दो उनका परवरदिगार तो उनके हाल से खूब वाकि़फ है ही और उनके बारे में जिन (मोमिनीन) की राए ग़ालिब रही उन्होंने कहा कि हम तो उन (के ग़ार) पर एक मस्जिद बनाएँगें (21)

सुबहानल्लाजी

سَيَقُولُونَ ثَلَاثَةٌ رَّابِعُهُمْ كَلْبُهُمْ وَيَقُولُونَ خَمْسَةٌ سَادِسُهُمْ كَلْبُهُمْ رَجْمًا بِالْغَيْبِ وَيَقُولُونَ سَبْعَةٌ وَثَامِنُهُمْ كَلْبُهُمْ قُل رَّبِّي أَعْلَمُ بِعِدَّتِهِم مَّا يَعْلَمُهُمْ إِلَّا قَلِيلٌ فَلَا تُمَارِ فِيهِمْ إِلَّا مِرَاء ظَاهِرًا وَلَا تَسْتَفْتِ فِيهِم مِّنْهُمْ أَحَدًا {22}

क़रीब है कि लोग (नुसैरे नज़रान) कहेगें कि वह तीन आदमी थे चैथा उनका कुत्ता (क़तमीर) है और कुछ लोग (आकि़ब वग़ैरह) कहते हैं कि वह पाँच आदमी थे छठा उनका कुत्ता है (ये सब) ग़ैब में अटकल लगाते हैं और कुछ लोग कहते हैं कि सात आदमी हैं और आठवाँ उनका कुत्ता है (ऐ रसूल) तुम कह दो की उनका सुमार मेरा परवरदिगार ही ख़ब जानता है उन (की गिनती) के थोडे़ ही लोग जानते हैं तो (ऐ रसूल) तुम (उन लोगों से) असहाब कहफ के बारे में सरसरी गुफ्तगू के सिवा (ज़्यादा) न झगड़ों और उनके बारे में उन लोगों से किसी से कुछ पूछ गछ नहीं (22)

सुबहानल्लाजी

وَلَا تَقُولَنَّ لِشَيْءٍ إِنِّي فَاعِلٌ ذَلِكَ غَدًا {23}

और किसी काम की निस्बत न कहा करो कि मै इसको कल करुँगा (23)

सुबहानल्लाजी

إِلَّا أَن يَشَاء اللَّهُ وَاذْكُر رَّبَّكَ إِذَا نَسِيتَ وَقُلْ عَسَى أَن يَهْدِيَنِ رَبِّي لِأَقْرَبَ مِنْ هَذَا رَشَدًا {24}

मगर इन्शा अल्लाह कह कर और अगर (इन्शा अल्लाह कहना) भूल जाओ तो (जब याद आए) अपने परवरदिगार को याद कर लो (इन्शा अल्लाह कह लो) और कहो कि उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे ऐसी बात की हिदायत फरमाए जो रहनुमाई में उससे भी ज़्यादा क़रीब हो (24)

सुबहानल्लाजी

وَلَبِثُوا فِي كَهْفِهِمْ ثَلَاثَ مِئَةٍ سِنِينَ وَازْدَادُوا تِسْعًا {25}

और असहाब कहफ अपने ग़ार में नौ ऊपर तीन सौ बरस रहे (25)

सुबहानल्लाजी

قُلِ اللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا لَبِثُوا لَهُ غَيْبُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ أَبْصِرْ بِهِ وَأَسْمِعْ مَا لَهُم مِّن دُونِهِ مِن وَلِيٍّ وَلَا يُشْرِكُ فِي حُكْمِهِ أَحَدًا {26}

(ऐ रसूल) अगर वह लोग इस पर भी न मानें तो तुम कह दो कि ख़ुदा उनके ठहरने की मुद्दत से बखूबी वाकि़फ है सारे आसमान और ज़मीन का ग़ैब उसी के वास्ते ख़ास है (अल्लाह हो अकबर) वो कैसा देखने वाला क्या ही सुनने वाला है उसके सिवा उन लोगों का कोई सरपरस्त नहीं और वह अपने हुक्म में किसी को अपना दख़ील {शरीक} नहीं बनाता (26)

सुबहानल्लाजी

وَاتْلُ مَا أُوحِيَ إِلَيْكَ مِن كِتَابِ رَبِّكَ لَا مُبَدِّلَ لِكَلِمَاتِهِ وَلَن تَجِدَ مِن دُونِهِ مُلْتَحَدًا {27}

और (ऐ रसूल) जो किताब तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से वही के ज़रिए से नाजि़ल हुई है उसको पढ़ा करो उसकी बातों को कोई बदल नहीं सकता और तुम उसके सिवा कहीं कोई हरगिज़ पनाह की जगह (भी) न पाओगे (27)

सुबहानल्लाजी

وَاصْبِرْ نَفْسَكَ مَعَ الَّذِينَ يَدْعُونَ رَبَّهُم بِالْغَدَاةِ وَالْعَشِيِّ يُرِيدُونَ وَجْهَهُ وَلَا تَعْدُ عَيْنَاكَ عَنْهُمْ تُرِيدُ زِينَةَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَلَا تُطِعْ مَنْ أَغْفَلْنَا قَلْبَهُ عَن ذِكْرِنَا وَاتَّبَعَ هَوَاهُ وَكَانَ أَمْرُهُ فُرُطًا {28}

और (ऐ रसूल) जो लोग अपने परवरदिगार को सुबह सवेरे और झटपट वक़्त शाम को याद करते हैं और उसकी खुशनूदी के ख़्वाहाँ हैं उनके उनके साथ तुम खुद (भी) अपने नफस पर जब्र करो और उनकी तरफ से अपनी नज़र (तवज्जो) न फेरो कि तुम दुनिया में जि़न्दगी की आराइश चाहने लगो और जिसके दिल को हमने (गोया खुद) अपने जि़क्र से ग़ाफिल कर दिया है और वह अपनी ख़्वाहिशे नफसानी के पीछे पड़ा है और उसका काम सरासर ज़्यादती है उसका कहना हरगिज़ न मानना (28) 

सुबहानल्लाजी

وَقُلِ الْحَقُّ مِن رَّبِّكُمْ فَمَن شَاء فَلْيُؤْمِن وَمَن شَاء فَلْيَكْفُرْ إِنَّا أَعْتَدْنَا لِلظَّالِمِينَ نَارًا أَحَاطَ بِهِمْ سُرَادِقُهَا وَإِن يَسْتَغِيثُوا يُغَاثُوا بِمَاء كَالْمُهْلِ يَشْوِي الْوُجُوهَ بِئْسَ الشَّرَابُ وَسَاءتْ مُرْتَفَقًا {29}

और (ऐ रसूल) तुम कह दों कि सच्ची बात (कलमए तौहीद) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से (नाजि़ल हो चुकी है) बस जो चाहे माने और जो चाहे न माने (मगर) हमने ज़ालिमों के लिए वह आग (दहका के) तैयार कर रखी है जिसकी क़नातें उन्हं घेर लेगी और अगर वह लोग दोहाई करेगें तो उनकी फरियाद रसी खौलते हुए पानी से की जाएगी जो मसलन पिघले हुए ताबें की तरह होगा (और) वह मुँह को भून डालेगा क्या बुरा पानी है और (जहन्नुम भी) क्या बुरी जगह है (29)

सुबहानल्लाजी

إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ إِنَّا لَا نُضِيعُ أَجْرَ مَنْ أَحْسَنَ عَمَلًا {30}

इसमें शक नहीं कि जिन लोगों ने इमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम करते रहे तो हम हरगिज़ अच्छे काम वालो के अज्र को अकारत नहीं करते (30)

सुबहानल्लाजी

أُوْلَئِكَ لَهُمْ جَنَّاتُ عَدْنٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهِمُ الْأَنْهَارُ يُحَلَّوْنَ فِيهَا مِنْ أَسَاوِرَ مِن ذَهَبٍ وَيَلْبَسُونَ ثِيَابًا خُضْرًا مِّن سُندُسٍ وَإِسْتَبْرَقٍ مُّتَّكِئِينَ فِيهَا عَلَى الْأَرَائِكِ نِعْمَ الثَّوَابُ وَحَسُنَتْ مُرْتَفَقًا {31}

ये वही लोग हैं जिनके (रहने सहने के) लिए सदाबहार (बेहश्त के) बाग़ात हैं उनके (मकानात के) नीचे नहरें जारी होगीं वह उन बाग़ात में दमकते हुए कुन्दन के कंगन से सँवारे जाँएगें और उन्हें बारीक रेशम (क्रेब) और दबीज़ रेशम (वाफते) के धानी जोड़े पहनाए जाएँगें और तख़्तों पर तकिए लगाए (बैठे) होगें क्या ही अच्छा बदला है और (बेहिश्त भी आसाइश की) कैसी अच्छी जगह है (31)

सुबहानल्लाजी

وَاضْرِبْ لَهُم مَّثَلًا رَّجُلَيْنِ جَعَلْنَا لِأَحَدِهِمَا جَنَّتَيْنِ مِنْ أَعْنَابٍ وَحَفَفْنَاهُمَا بِنَخْلٍ وَجَعَلْنَا بَيْنَهُمَا زَرْعًا {32}

और (ऐ रसूल) इन लोगों से उन दो शख़्सों की मिसाल बयान करो कि उनमें से एक को हमने अंगूर के दो बाग़ दे रखे है और हमने चारो ओर खजूर के पेड़ लगा दिये है और उन दोनों बाग़ के दरम्यिान खेती भी लगाई है (32)

सुबहानल्लाजी

كِلْتَا الْجَنَّتَيْنِ آتَتْ أُكُلَهَا وَلَمْ تَظْلِمْ مِنْهُ شَيْئًا وَفَجَّرْنَا خِلَالَهُمَا نَهَرًا {33}

वह दोनों बाग़ खूब फल लाए और फल लाने में कुछ कमी नहीं की और हमने उन दोनों बाग़ों के दरम्यिान नहर भी जारी कर दी है (33)

सुबहानल्लाजी

وَكَانَ لَهُ ثَمَرٌ فَقَالَ لِصَاحِبِهِ وَهُوَ يُحَاوِرُهُ أَنَا أَكْثَرُ مِنكَ مَالًا وَأَعَزُّ نَفَرًا {34}

और उसे फल मिला तो अपने साथी से जो उससे बातें कर रहा था बोल उठा कि मै तो तुझसे माल में (भी) ज़्यादा हूँ और जत्थे में भी बढ़ कर हूँ (34)

सुबहानल्लाजी

وَدَخَلَ جَنَّتَهُ وَهُوَ ظَالِمٌ لِّنَفْسِهِ قَالَ مَا أَظُنُّ أَن تَبِيدَ هَذِهِ أَبَدًا {35}

और ये बातें करता हुआ अपने बाग़ मे भी जा पहुँचा हालाकि उसकी आदत ये थी कि (कुफ्र की वजह से) अपने ऊपर आप ज़ुल्म कर रहा था (ग़रज़ वह कह बैठा) कि मुझे तो इसका गुमान नहीं तो कि कभी भी ये बाग़ उजड़ जाए (35)

सुबहानल्लाजी

وَمَا أَظُنُّ السَّاعَةَ قَائِمَةً وَلَئِن رُّدِدتُّ إِلَى رَبِّي لَأَجِدَنَّ خَيْرًا مِّنْهَا مُنقَلَبًا {36}

और मै तो ये भी नहीं ख़्याल करता कि क़यामत क़ायम होगी और (बिलग़रज़ हुयी भी तो) जब मै अपने परवरदिगार की तरफ लौटाया जाऊँगा तो यक़ीनन इससे कहीं अच्छी जगह पाऊँगा (36)

सुबहानल्लाजी

قَالَ لَهُ صَاحِبُهُ وَهُوَ يُحَاوِرُهُ أَكَفَرْتَ بِالَّذِي خَلَقَكَ مِن تُرَابٍ ثُمَّ مِن نُّطْفَةٍ ثُمَّ سَوَّاكَ رَجُلًا {37}

उसका साथी जो उससे बातें कर रहा था कहने लगा कि क्या तू उस परवरदिगार का मुन्किर है जिसने (पहले) तुझे मिट्टी से पैदा किया फिर नुत्फे से फिर तुझे बिल्कुल ठीक मर्द (आदमी) बना दिया (37)

सुबहानल्लाजी

لَّكِنَّا هُوَ اللَّهُ رَبِّي وَلَا أُشْرِكُ بِرَبِّي أَحَدًا {38}

हम तो (कहते हैं कि) वही ख़ुदा मेरा परवरदिगार है और मै तो अपने परवरदिगार का किसी को शरीक नहीं बनाता (38)

सुबहानल्लाजी

وَلَوْلَا إِذْ دَخَلْتَ جَنَّتَكَ قُلْتَ مَا شَاء اللَّهُ لَا قُوَّةَ إِلَّا بِاللَّهِ إِن تُرَنِ أَنَا أَقَلَّ مِنكَ مَالًا وَوَلَدًا {39}

और जब तू अपने बाग़ में आया तो (ये) क्यों न कहा कि ये सब (माशा अल्लाह ख़ुदा ही के चाहने से हुआ है (मेरा कुछ भी नहीं क्योंकि) बग़ैर ख़ुदा की (मदद) के (किसी में) कुछ सकत नहीं अगर माल और औलाद की राह से तू मुझे कम समझता है (39)

सुबहानल्लाजी

فَعَسَى رَبِّي أَن يُؤْتِيَنِ خَيْرًا مِّن جَنَّتِكَ وَيُرْسِلَ عَلَيْهَا حُسْبَانًا مِّنَ السَّمَاء فَتُصْبِحَ صَعِيدًا زَلَقًا {40}

तो अनक़ीरब ही मेरा परवरदिगार मुझे वह बाग़ अता फरमाएगा जो तेरे बाग़ से कहीं बेहतर होगा और तेरे बाग़ पर कोई ऐसी आफत आसमान से नाजि़ल करे कि (ख़ाक सियाह) होकर चटियल चिकना सफ़ाचट मैदान हो जाए (40)

सुबहानल्लाजी

أَوْ يُصْبِحَ مَاؤُهَا غَوْرًا فَلَن تَسْتَطِيعَ لَهُ طَلَبًا {41}

उसका पानी नीचे उतर (के खुश्क) हो जाए फिर तो उसको किसी तरह तलब न कर सके (41)

सुबहानल्लाजी

وَأُحِيطَ بِثَمَرِهِ فَأَصْبَحَ يُقَلِّبُ كَفَّيْهِ عَلَى مَا أَنفَقَ فِيهَا وَهِيَ خَاوِيَةٌ عَلَى عُرُوشِهَا وَيَقُولُ يَا لَيْتَنِي لَمْ أُشْرِكْ بِرَبِّي أَحَدًا {42}

(चुनान्चे अज़ाब नाजि़ल हुआ) और उसके (बाग़ के) फल (आफत में) घेर लिए गए तो उस माल पर जो बाग़ की तैयारी में सर्फ़ (खर्च) किया था (अफसोस से) हाथ मलने लगा और बाग़ की ये हालत थी कि अपनी टहनियों पर औंधा गिरा हुआ पड़ा था तो कहने लगा काश मै अपने परवरदिगार का किसी को शरीक न बनाता (42)

सुबहानल्लाजी

وَلَمْ تَكُن لَّهُ فِئَةٌ يَنصُرُونَهُ مِن دُونِ اللَّهِ وَمَا كَانَ مُنتَصِرًا {43}

और ख़ुदा के सिवा उसका कोई जत्था भी न था कि उसकी मदद करता और न वह बदला ले सकता था इसी जगह से (साबित हो गया (43)

सुबहानल्लाजी

هُنَالِكَ الْوَلَايَةُ لِلَّهِ الْحَقِّ هُوَ خَيْرٌ ثَوَابًا وَخَيْرٌ عُقْبًا {44}

कि सरपरस्ती ख़ास ख़ुदा ही के लिए है जो सच्चा है वही बेहतर सवाब (देने) वाला है और अन्जाम के जंगल से भी वही बेहतर है (44)

सुबहानल्लाजी

وَاضْرِبْ لَهُم مَّثَلَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا كَمَاء أَنزَلْنَاهُ مِنَ السَّمَاء فَاخْتَلَطَ بِهِ نَبَاتُ الْأَرْضِ فَأَصْبَحَ هَشِيمًا تَذْرُوهُ الرِّيَاحُ وَكَانَ اللَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ مُّقْتَدِرًا {45}

और (ऐ रसूल) इनसे दुनिया की जि़न्दगी की मसल भी बयान कर दो कि उसके हालत पानी की सी है जिसे हमने आसमान से बरसाया तो ज़मीन की उगाने की ताक़त उसमें मिल गई और (खूब फली फूली) फिर आखि़र रेज़ा रेज़ा (भूसा) हो गई कि उसको हवाएँ उड़ाए फिरती है और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (45)

सुबहानल्लाजी

الْمَالُ وَالْبَنُونَ زِينَةُ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَالْبَاقِيَاتُ الصَّالِحَاتُ خَيْرٌ عِندَ رَبِّكَ ثَوَابًا وَخَيْرٌ أَمَلًا {46}

(ऐ रसूल) माल और औलाद (इस ज़रा सी) दुनिया की जि़न्दगी की ज़ीनत हैं और बाक़ी रहने वाली नेकियाँ तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक सवाब में उससे कही ज़्यादा अच्छी हैं और तमन्नाएँ व आरजू की राह से (भी) बेहतर हैं (46)

सुबहानल्लाजी

وَيَوْمَ نُسَيِّرُ الْجِبَالَ وَتَرَى الْأَرْضَ بَارِزَةً وَحَشَرْنَاهُمْ فَلَمْ نُغَادِرْ مِنْهُمْ أَحَدًا {47}

और (उस दिन से डरो) जिस दिन हम पहाड़ों को चलाएँगें और तुम ज़मीन को खुला मैदान (पहाड़ों से) खाली देखोगे और हम इन सभी को इकट्ठा करेगे तो उनमें से एक को न छोड़ेगें (47)

सुबहानल्लाजी

وَعُرِضُوا عَلَى رَبِّكَ صَفًّا لَّقَدْ جِئْتُمُونَا كَمَا خَلَقْنَاكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ بَلْ زَعَمْتُمْ أَلَّن نَّجْعَلَ لَكُم مَّوْعِدًا {48}

सबके सब तुम्हारे परवरदिगार के सामने कतार पे क़तार पेश किए जाएँगें और (उस वक़्त हम याद दिलाएँगे कि जिस तरह हमने तुमको पहली बार पैदा किया था (उसी तरह) तुम लोगों को (आखि़र) हमारे पास आना पड़ा मगर तुम तो ये ख़्याल करते थे कि हम तुम्हारे (दोबारा पैदा करने के) लिए कोई वक़्त ही न ठहराएँगें (48)

सुबहानल्लाजी

وَوُضِعَ الْكِتَابُ فَتَرَى الْمُجْرِمِينَ مُشْفِقِينَ مِمَّا فِيهِ وَيَقُولُونَ يَا وَيْلَتَنَا مَالِ هَذَا الْكِتَابِ لَا يُغَادِرُ صَغِيرَةً وَلَا كَبِيرَةً إِلَّا أَحْصَاهَا وَوَجَدُوا مَا عَمِلُوا حَاضِرًا وَلَا يَظْلِمُ رَبُّكَ أَحَدًا {49}

और लोगों के आमाल की किताब (सामने) रखी जाएँगी तो तुम गुनेहगारों को देखोगे कि जो कुछ उसमें (लिखा) है (देख देख कर) सहमे हुए हैं और कहते जाते हैं हाए हमारी क़यामत ये कैसी किताब है कि न छोटे ही गुनाह को बे क़लमबन्द किए छोड़ती है न बड़े गुनाह को और जो कुछ इन लोगों ने (दुनिया में) किया था वह सब (लिखा हुआ) मौजूद पाएँगें और तेरा परवरदिगार किसी पर (ज़र्रा बराबर) ज़़ुल्म न करेगा (49)

सुबहानल्लाजी

وَإِذْ قُلْنَا لِلْمَلَائِكَةِ اسْجُدُوا لِآدَمَ فَسَجَدُوا إِلَّا إِبْلِيسَ كَانَ مِنَ الْجِنِّ فَفَسَقَ عَنْ أَمْرِ رَبِّهِ أَفَتَتَّخِذُونَهُ وَذُرِّيَّتَهُ أَوْلِيَاء مِن دُونِي وَهُمْ لَكُمْ عَدُوٌّ بِئْسَ لِلظَّالِمِينَ بَدَلًا {50}

और (वह वक़्त याद करो) जब हमने फरिश्तौं को हुक्म दिया कि आदम को सजदा करो तो इबलीस के सिवा सबने सजदा किया (ये इबलीस) जिन्नात से था तो अपने परवरदिगार के हुक्म से निकल भागा तो (लोगों) क्या मुझे छोड़कर उसको और उसकी औलाद को अपना दोस्त बनाते हो हालाँकि वह तुम्हारा (क़दीमी) दुश्मन हैं ज़ालिमों (ने ख़ुदा के बदले शैतान को अपना दोस्त बनाया ये उन) का क्या बुरा ऐवज़ है (50)

सुबहानल्लाजी

مَا أَشْهَدتُّهُمْ خَلْقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَلَا خَلْقَ أَنفُسِهِمْ وَمَا كُنتُ مُتَّخِذَ الْمُضِلِّينَ عَضُدًا {51}

मैने न तो आसमान व ज़मीन के पैदा करने के वक़्त उनको (मदद के लिए) बुलाया था और न खुद उनके पैदा करने के वक़्त और मै (ऐसा गया गुज़रा) न था कि मै गुमराह करने वालों को मददगार बनाता (51)

सुबहानल्लाजी

وَيَوْمَ يَقُولُ نَادُوا شُرَكَائِيَ الَّذِينَ زَعَمْتُمْ فَدَعَوْهُمْ فَلَمْ يَسْتَجِيبُوا لَهُمْ وَجَعَلْنَا بَيْنَهُم مَّوْبِقًا {52}

और (उस दिन से डरो) जिस दिन ख़ुदा फरमाएगा कि अब तुम जिन लोगों को मेरा शरीक़ ख्याल करते थे उनको (मदद के लिए) पुकारो तो वह लोग उनको पुकारेगें मगर वह लोग उनकी कुछ न सुनेगें और हम उन दोनों के बीच में महलक {खतरनाक} आड़ बना देंगे (52)

सुबहानल्लाजी

وَرَأَى الْمُجْرِمُونَ النَّارَ فَظَنُّوا أَنَّهُم مُّوَاقِعُوهَا وَلَمْ يَجِدُوا عَنْهَا مَصْرِفًا {53}

और गुनेहगार लोग (देखकर समझ जाएँगें कि ये इसमें सोके जाएँगे और उससे गरीज़ {बचने की} की राह न पाएँगें (53)

सुबहानल्लाजी

وَلَقَدْ صَرَّفْنَا فِي هَذَا الْقُرْآنِ لِلنَّاسِ مِن كُلِّ مَثَلٍ وَكَانَ الْإِنسَانُ أَكْثَرَ شَيْءٍ جَدَلًا {54}

और हमने तो इस क़ुरान में लोगों (के समझाने) के वास्ते हर तरह की मिसालें फेर बदल कर बयान कर दी है मगर इन्सान तो तमाम मख़लूक़ात से ज़्यादा झगड़ालू है (54)

सुबहानल्लाजी

وَمَا مَنَعَ النَّاسَ أَن يُؤْمِنُوا إِذْ جَاءهُمُ الْهُدَى وَيَسْتَغْفِرُوا رَبَّهُمْ إِلَّا أَن تَأْتِيَهُمْ سُنَّةُ الْأَوَّلِينَ أَوْ يَأْتِيَهُمُ الْعَذَابُ قُبُلًا {55}

और जब लोगों के पास हिदायत आ चुकी तो (फिर) उनको इमान लाने और अपने परवरदिगार से मग़फिरत की दुआ माँगने से (उसके सिवा और कौन) अम्र मायने है कि अगलों की सी रीत रस्म उनको भी पेश आई या हमारा अज़ाब उनके सामने से (मौजूद) हो (55)

सुबहानल्लाजी

وَمَا نُرْسِلُ الْمُرْسَلِينَ إِلَّا مُبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَ وَيُجَادِلُ الَّذِينَ كَفَرُوا بِالْبَاطِلِ لِيُدْحِضُوا بِهِ الْحَقَّ وَاتَّخَذُوا آيَاتِي وَمَا أُنذِرُوا هُزُوًا {56}

और हम तो पैग़म्बरों को सिर्फ इसलिए भेजते हैं कि (अच्छों को निजात की) खुशख़बरी सुनाए और (बन्दों को अज़ाब से) डराए और जो लोग काफिर हैं झूटी झूटी बातों का सहारा पकड़ के झगड़ा करते है ताकि उसकी बदौलत हक़ को (उसकी जगह से उखाड़ फेकें और उन लोगों ने मेरी आयतों को जिस (अज़ाब से) ये लोग डराए गए हॅसी ठ्ठ्ठा {मज़ाक} बना रखा है (56)

सुबहानल्लाजी

وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّن ذُكِّرَ بِآيَاتِ رَبِّهِ فَأَعْرَضَ عَنْهَا وَنَسِيَ مَا قَدَّمَتْ يَدَاهُ إِنَّا جَعَلْنَا عَلَى قُلُوبِهِمْ أَكِنَّةً أَن يَفْقَهُوهُ وَفِي آذَانِهِمْ وَقْرًا وَإِن تَدْعُهُمْ إِلَى الْهُدَى فَلَن يَهْتَدُوا إِذًا أَبَدًا {57}

और उससे बढ़कर और कौन ज़ालिम होगा जिसको ख़ुदा की आयतें याद दिलाई जाए और वह उनसे रद गिरदानी {मुँह फेर ले} करे और अपने पहले करतूतों को जो उसके हाथों ने किए हैं भूल बैठे (गोया) हमने खुद उनके दिलों पर परदे डाल दिए हैं कि वह (हक़ बात को) न समझ सकें और (गोया) उनके कानों में गिरानी पैदा कर दी है कि (सुन न सकें) और अगर तुम उनको राहे रास्त की तरफ़ बुलाओ भी तो ये हरगिज़ कभी रुबरु होने वाले नहीं हैं (57)

सुबहानल्लाजी

وَرَبُّكَ الْغَفُورُ ذُو الرَّحْمَةِ لَوْ يُؤَاخِذُهُم بِمَا كَسَبُوا لَعَجَّلَ لَهُمُ الْعَذَابَ بَل لَّهُم مَّوْعِدٌ لَّن يَجِدُوا مِن دُونِهِ مَوْئِلًا {58}

और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है अगर उनकी करतूतों की सज़ा में धर पकड़ करता तो फौरन (दुनिया ही में) उन पर अज़ाब नाजि़ल कर देता मगर उनके लिए तो एक मियाद (मुक़र्रर) है जिससे खुदा के सिवा कहीं पनाह की जगह न पाएगें (58)

सुबहानल्लाजी

وَتِلْكَ الْقُرَى أَهْلَكْنَاهُمْ لَمَّا ظَلَمُوا وَجَعَلْنَا لِمَهْلِكِهِم مَّوْعِدًا {59}

और ये बस्तियाँ (जिन्हें तुम अपनी आँखों से देखते हो) जब उन लोगों ने सरकशी तो हमने उन्हें हलाक कर मारा और हमने उनकी हलाकत की मियाद मुक़र्रर कर दी थी (59)

सुबहानल्लाजी

وَإِذْ قَالَ مُوسَى لِفَتَاهُ لَا أَبْرَحُ حَتَّى أَبْلُغَ مَجْمَعَ الْبَحْرَيْنِ أَوْ أَمْضِيَ حُقُبًا {60}

(ऐ रसूल) वह वाक़या याद करो जब मूसा खिज़्र की मुलाक़ात को चले तो अपने जवान वसी यूशा से बोले कि जब तक में दोनों दरियाओं के मिलने की जगह न पहुँच जाऊँ (चलने से) बाज़ न आऊँगा (60)

सुबहानल्लाजी

فَلَمَّا بَلَغَا مَجْمَعَ بَيْنِهِمَا نَسِيَا حُوتَهُمَا فَاتَّخَذَ سَبِيلَهُ فِي الْبَحْرِ سَرَبًا {61}

ख़्वाह (अगर मुलाक़ात न हो तो) बरसों यूँ ही चलता जाऊँगा फिर जब ये दोनों उन दोनों दरियाओं के मिलने की जगह पहुँचे तो अपनी (भुनी हुयी) मछली छोड़ चले तो उसने दरिया में सुरंग बनाकर अपनी राह ली (61)

सुबहानल्लाजी

فَلَمَّا جَاوَزَا قَالَ لِفَتَاهُ آتِنَا غَدَاءنَا لَقَدْ لَقِينَا مِن سَفَرِنَا هَذَا نَصَبًا {62}

फिर जब कुछ और आगे बढ़ गए तो मूसा ने अपने जवान (वसी) से कहा (अजी हमारा नाश्ता तो हमें दे दो हमारे (आज के) इस सफर से तो हमको बड़ी थकन हो गई (62)

सुबहानल्लाजी

قَالَ أَرَأَيْتَ إِذْ أَوَيْنَا إِلَى الصَّخْرَةِ فَإِنِّي نَسِيتُ الْحُوتَ وَمَا أَنسَانِيهُ إِلَّا الشَّيْطَانُ أَنْ أَذْكُرَهُ وَاتَّخَذَ سَبِيلَهُ فِي الْبَحْرِ عَجَبًا {63}

(यूशा ने) कहा क्या आप ने देखा भी कि जब हम लोग (दरिया के किनारे) उस पत्थर के पास ठहरे तो मै (उसी जगह) मछली छोड़ आया और मुझे आप से उसका जि़क्र करना शैतान ने भुला दिया और मछली ने अजीब तरह से दरिया में अपनी राह ली (63)

सुबहानल्लाजी

قَالَ ذَلِكَ مَا كُنَّا نَبْغِ فَارْتَدَّا عَلَى آثَارِهِمَا قَصَصًا {64}

मूसा ने कहा वही तो वह (जगह) है जिसकी हम जुस्तजू {तलाश} में थे फिर दोनों अपने क़दम के निशानों पर देखते देखते उलटे पाँव फिरे (64)

सुबहानल्लाजी

فَوَجَدَا عَبْدًا مِّنْ عِبَادِنَا آتَيْنَاهُ رَحْمَةً مِنْ عِندِنَا وَعَلَّمْنَاهُ مِن لَّدُنَّا عِلْمًا {65}

तो (जहाँ मछली थी) दोनों ने हमारे बन्दों में से एक (ख़ास) बन्दा खिज्र को पाया जिसको हमने अपनी बारगाह से रहमत (विलायत) का हिस्सा अता किया था (65)

सुबहानल्लाजी

قَالَ لَهُ مُوسَى هَلْ أَتَّبِعُكَ عَلَى أَن تُعَلِّمَنِ مِمَّا عُلِّمْتَ رُشْدًا {66}

और हमने उसे इल्म लदुन्नी (अपने ख़ास इल्म) में से कुछ सिखाया था मूसा ने उन (खि़ज्र) से कहा क्या (आपकी इजाज़त है कि) मै इस ग़रज़ से आपके साथ साथ रहूँ (66)

सुबहानल्लाजी

قَالَ إِنَّكَ لَن تَسْتَطِيعَ مَعِيَ صَبْرًا {67}

कि जो रहनुमाई का इल्म आपको है (ख़ुदा की तरफ से) सिखाया गया है उसमें से कुछ मुझे भी सिखा दीजिए खिज्र ने कहा (मै सिखा दूँगा मगर) आपसे मेरे साथ सब्र न हो सकेगा (67)

सुबहानल्लाजी

وَكَيْفَ تَصْبِرُ عَلَى مَا لَمْ تُحِطْ بِهِ خُبْرًا {68}

और (सच तो ये है) जो चीज़ आपके इल्मी अहाते से बाहर हो (68)

सुबहानल्लाजी

قَالَ سَتَجِدُنِي إِن شَاء اللَّهُ صَابِرًا وَلَا أَعْصِي لَكَ أَمْرًا {69}

उस पर आप सब्र क्यों कर कर सकते हैं मूसा ने कहा (आप इत्मिनान रखिए) अगर ख़ुदा ने चाहा तो आप मुझे साबिर आदमी पाएँगें (69)

सुबहानल्लाजी

قَالَ فَإِنِ اتَّبَعْتَنِي فَلَا تَسْأَلْنِي عَن شَيْءٍ حَتَّى أُحْدِثَ لَكَ مِنْهُ ذِكْرًا {70}

और मै आपके किसी हुक्म की नाफरमानी न करुँगा खिज्र ने कहा अच्छा तो अगर आप को मेरे साथ रहना है तो जब तक मै खुद आपसे किसी बात का जि़क्र न छेड़ो (70)

सुबहानल्लाजी

فَانطَلَقَا حَتَّى إِذَا رَكِبَا فِي السَّفِينَةِ خَرَقَهَا قَالَ أَخَرَقْتَهَا لِتُغْرِقَ أَهْلَهَا لَقَدْ جِئْتَ شَيْئًا إِمْرًا {71}

आप मुझसे किसी चीज़ के बारे में न पूछियेगा ग़रज़ ये दोनो (मिलकर) चल खड़े हुए यहाँ तक कि (एक दरिया में) जब दोनों कश्ती में सवार हुए तो खि़ज्र ने कश्ती में छेद कर दिया मूसा ने कहा (आप ने तो ग़ज़ब कर दिया) क्या कश्ती में इस ग़रज़ से सुराख़ किया है (71)

सुबहानल्लाजी

قَالَ أَلَمْ أَقُلْ إِنَّكَ لَن تَسْتَطِيعَ مَعِيَ صَبْرًا {72}

कि लोगों को डुबा दीजिए ये तो आप ने बड़ी अजीब बात की है-खि़ज्र ने कहा क्या मैने आप से (पहले ही) न कह दिया था (72)

सुबहानल्लाजी

قَالَ لَا تُؤَاخِذْنِي بِمَا نَسِيتُ وَلَا تُرْهِقْنِي مِنْ أَمْرِي عُسْرًا {73}

कि आप मेरे साथ हरगिज़ सब्र न कर सकेगे-मूसा ने कहा अच्छा जो हुआ सो हुआ आप मेरी गिरफत न कीजिए और मुझ पर मेरे इस मामले में इतनी सख़्ती न कीजिए (73)

सुबहानल्लाजी

فَانطَلَقَا حَتَّى إِذَا لَقِيَا غُلَامًا فَقَتَلَهُ قَالَ أَقَتَلْتَ نَفْسًا زَكِيَّةً بِغَيْرِ نَفْسٍ لَّقَدْ جِئْتَ شَيْئًا نُّكْرًا {74}

(ख़ैर ये तो हो गया) फिर दोनों के दोनों आगे चले यहाँ तक कि दोनों एक लड़के से मिले तो उस बन्दे ख़ुदा ने उसे जान से मार डाला मूसा ने कहा (ऐ माज़ अल्लाह) क्या आपने एक मासूम शख़्स को मार डाला और वह भी किसी के (ख़ौफ के) बदले में नहीं आपने तो यक़ीनी एक अजीब हरकत की (74)