Quran पारा 29

तबारकल्लजी

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

तबारकल्लजी

تَبَارَكَ الَّذِي بِيَدِهِ الْمُلْكُ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ {1}

जिस (ख़ुदा) के कब्ज़े में (सारे जहाँन की) बादशाहत है वह बड़ी बरकत वाला है और वह हर चीज़ पर क़ादिर है (1)

तबारकल्लजी

الَّذِي خَلَقَ الْمَوْتَ وَالْحَيَاةَ لِيَبْلُوَكُمْ أَيُّكُمْ أَحْسَنُ عَمَلًا وَهُوَ الْعَزِيزُ الْغَفُورُ {2}

जिसने मौत और जि़न्दगी को पैदा किया ताकि तुम्हें आज़माए कि तुममें से काम में सबसे अच्छा कौन है और वह ग़ालिब (और) बड़ा बख़्शने वाला है (2)

तबारकल्लजी

الَّذِي خَلَقَ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ طِبَاقًا مَّا تَرَى فِي خَلْقِ الرَّحْمَنِ مِن تَفَاوُتٍ فَارْجِعِ الْبَصَرَ هَلْ تَرَى مِن فُطُورٍ {3}

जिसने सात आसमान तले ऊपर बना डाले भला तुझे ख़ुदा की आफ़रिनश में कोई कसर नज़र आती है तो फिर आँख उठाकर देख भला तुझे कोई शिगाफ़ नज़र आता है (3)

तबारकल्लजी

ثُمَّ ارْجِعِ الْبَصَرَ كَرَّتَيْنِ يَنقَلِبْ إِلَيْكَ الْبَصَرُ خَاسِأً وَهُوَ حَسِيرٌ {4}

फिर दुबारा आँख उठा कर देखो तो (हर बार तेरी) नज़र नाकाम और थक कर तेरी तरफ़ पलट आएगी (4)

तबारकल्लजी

وَلَقَدْ زَيَّنَّا السَّمَاء الدُّنْيَا بِمَصَابِيحَ وَجَعَلْنَاهَا رُجُومًا لِّلشَّيَاطِينِ وَأَعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَابَ السَّعِيرِ {5}

और हमने नीचे वाले (पहले) आसमान को (तारों के) चिराग़ों से ज़ीनत दी है और हमने उनको शैतानों के मारने का आला बनाया और हमने उनके लिए दहकती हुयी आग का अज़ाब तैयार कर रखा है (5)

तबारकल्लजी

وَلِلَّذِينَ كَفَرُوا بِرَبِّهِمْ عَذَابُ جَهَنَّمَ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ {6}

और जो लोग अपने परवरदिगार के मुनकिर हैं उनके लिए जहन्नुम का अज़ाब है और वह (बहुत) बुरा ठिकाना है (6)

तबारकल्लजी

إِذَا أُلْقُوا فِيهَا سَمِعُوا لَهَا شَهِيقًا وَهِيَ تَفُورُ {7}

जब ये लोग इसमें डाले जाएँगे तो उसकी बड़ी चीख़ सुनेंगे और वह जोश मार रही होगी (7)

तबारकल्लजी

تَكَادُ تَمَيَّزُ مِنَ الْغَيْظِ كُلَّمَا أُلْقِيَ فِيهَا فَوْجٌ سَأَلَهُمْ خَزَنَتُهَا أَلَمْ يَأْتِكُمْ نَذِيرٌ {8}

बल्कि गोया मारे जोश के फट पड़ेगी जब उसमें (उनका) कोई गिरोह डाला जाएगा तो उनसे दारोग़ए जहन्नुम पूछेगा क्या तुम्हारे पास कोई डराने वाला पैग़म्बर नहीं आया था (8)

तबारकल्लजी

قَالُوا بَلَى قَدْ جَاءنَا نَذِيرٌ فَكَذَّبْنَا وَقُلْنَا مَا نَزَّلَ اللَّهُ مِن شَيْءٍ إِنْ أَنتُمْ إِلَّا فِي ضَلَالٍ كَبِيرٍ {9}

वह कहेंगे हाँ हमारे पास डराने वाला तो ज़रूर आया था मगर हमने उसको झुठला दिया और कहा कि ख़ुदा ने तो कुछ नाजि़ल ही नहीं किया तुम तो बड़ी (गहरी) गुमराही में (पड़े) हो (9)

तबारकल्लजी

وَقَالُوا لَوْ كُنَّا نَسْمَعُ أَوْ نَعْقِلُ مَا كُنَّا فِي أَصْحَابِ السَّعِيرِ {10}

और (ये भी) कहेंगे कि अगर (उनकी बात) सुनते या समझते तब तो (आज) दोज़खि़यों में न होते (10)

तबारकल्लजी

فَاعْتَرَفُوا بِذَنبِهِمْ فَسُحْقًا لِّأَصْحَابِ السَّعِيرِ {11}

ग़रज़ वह अपने गुनाह का इक़रार कर लेंगे तो दोज़खि़यों को ख़ुदा की रहमत से दूरी है (11)

तबारकल्लजी

إِنَّ الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُم بِالْغَيْبِ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ كَبِيرٌ {12}

बेशक जो लोग अपने परवरदिगार से बेदेखे भाले डरते हैं उनके लिए मग़फेरत और बड़ा भारी अज्र है (12)

तबारकल्लजी

وَأَسِرُّوا قَوْلَكُمْ أَوِ اجْهَرُوا بِهِ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ {13}

और तुम अपनी बात छिपकर कहो या खुल्लम खुल्ला वह तो दिल के भेदों तक से ख़ूब वाकि़फ़ है (13)

तबारकल्लजी

أَلَا يَعْلَمُ مَنْ خَلَقَ وَهُوَ اللَّطِيفُ الْخَبِيرُ {14}

भला जिसने पैदा किया वह तो बेख़बर और वह तो बड़ा बारीकबीन वाकि़फ़कार है (14)

तबारकल्लजी

هُوَ الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ ذَلُولًا فَامْشُوا فِي مَنَاكِبِهَا وَكُلُوا مِن رِّزْقِهِ وَإِلَيْهِ النُّشُورُ {15}

वही तो है जिसने ज़मीन को तुम्हारे लिए नरम (व हमवार) कर दिया तो उसके अतराफ़ व जवानिब में चलो फिरो और उसकी (दी हुयी) रोज़ी खाओ (15)

तबारकल्लजी

أَأَمِنتُم مَّن فِي السَّمَاء أَن يَخْسِفَ بِكُمُ الأَرْضَ فَإِذَا هِيَ تَمُورُ {16}

और फिर उसी की तरफ क़ब्र से उठ कर जाना है क्या तुम उस शख़्स से जो आसमान में (हुकूमत करता है) इस बात से बेख़ौफ़ हो कि तुमको ज़मीन में धॅसा दे फिर वह एकबारगी उलट पुलट करने लगे (16)

तबारकल्लजी

أَمْ أَمِنتُم مَّن فِي السَّمَاء أَن يُرْسِلَ عَلَيْكُمْ حَاصِبًا فَسَتَعْلَمُونَ كَيْفَ نَذِيرِ {17}

या तुम इस बात से बेख़ौफ हो कि जो आसमान में (सल्तनत करता) है कि तुम पर पत्थर भरी आँधी चलाए तो तुम्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगा कि मेरा डराना कैसा है (17)

तबारकल्लजी

وَلَقَدْ كَذَّبَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ فَكَيْفَ كَانَ نَكِيرِ {18}

और जो लोग उनसे पहले थे उन्होने झुठलाया था तो (देखो) कि मेरी नाख़ुशी कैसी थी (18)

तबारकल्लजी

أَوَلَمْ يَرَوْا إِلَى الطَّيْرِ فَوْقَهُمْ صَافَّاتٍ وَيَقْبِضْنَ مَا يُمْسِكُهُنَّ إِلَّا الرَّحْمَنُ إِنَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ بَصِيرٌ {19}

क्या उन लोगों ने अपने सरों पर चिडि़यों को उड़ते नहीं देखा जो परों को फैलाए रहती हैं और समेट लेती हैं कि ख़ुदा के सिवा उन्हें कोई रोके नहीं रह सकता बेशक वह हर चीज़ को देख रहा है (19)

तबारकल्लजी

أَمَّنْ هَذَا الَّذِي هُوَ جُندٌ لَّكُمْ يَنصُرُكُم مِّن دُونِ الرَّحْمَنِ إِنِ الْكَافِرُونَ إِلَّا فِي غُرُورٍ {20}

भला ख़ुदा के सिवा ऐसा कौन है जो तुम्हारी फ़ौज बनकर तुम्हारी मदद करे काफि़र लोग तो धोखे ही (धोखे) में हैं भला ख़ुदा अगर अपनी (दी हुयी) रोज़ी रोक ले तो कौन ऐसा है जो तुम्हें रिज़क़ दे (20)

तबारकल्लजी

أَمَّنْ هَذَا الَّذِي يَرْزُقُكُمْ إِنْ أَمْسَكَ رِزْقَهُ بَل لَّجُّوا فِي عُتُوٍّ وَنُفُورٍ {21}

मगर ये कुफ़्फ़ार तो सरकशी और नफ़रत (के भँवर) में फँसे हुए हैं भला जो शख़्स औंधे मुँह के बाल चले वह ज़्यादा हिदायत याफ्ता होगा (21)

तबारकल्लजी

أَفَمَن يَمْشِي مُكِبًّا عَلَى وَجْهِهِ أَهْدَى أَمَّن يَمْشِي سَوِيًّا عَلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ {22}

या वह शख़्स जो सीधा बराबर राहे रास्त पर चल रहा हो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ख़ुदा तो वही है जिसने तुमको नित नया पैदा किया (22)

तबारकल्लजी

قُلْ هُوَ الَّذِي أَنشَأَكُمْ وَجَعَلَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْأَبْصَارَ وَالْأَفْئِدَةَ قَلِيلًا مَّا تَشْكُرُونَ {23}

और तुम्हारे वास्ते कान और आँख और दिल बनाए (मगर) तुम तो बहुत कम शुक्र अदा करते हो (23)

तबारकल्लजी

قُلْ هُوَ الَّذِي ذَرَأَكُمْ فِي الْأَرْضِ وَإِلَيْهِ تُحْشَرُونَ {24}

कह दो कि वही तो है जिसने तुमको ज़मीन में फैला दिया और उसी के सामने जमा किए जाओगे (24)

तबारकल्लजी

وَيَقُولُونَ مَتَى هَذَا الْوَعْدُ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ {25}

और कुफ़्फ़ार कहते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो (आखि़र) ये वायदा कब (पूरा) होगा (25)

तबारकल्लजी

قُلْ إِنَّمَا الْعِلْمُ عِندَ اللَّهِ وَإِنَّمَا أَنَا نَذِيرٌ مُّبِينٌ {26}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि (इसका) इल्म तो बस ख़ुदा ही को है और मैं तो सिर्फ साफ़ साफ़ (अज़ाब से) डराने वाला हूँ (26)

तबारकल्लजी

فَلَمَّا رَأَوْهُ زُلْفَةً سِيئَتْ وُجُوهُ الَّذِينَ كَفَرُوا وَقِيلَ هَذَا الَّذِي كُنتُم بِهِ تَدَّعُونَ {27}

तो जब ये लोग उसे करीब से देख लेंगे (ख़ौफ के मारे) काफ़िरों के चेहरे बिगड़ जाएँगे और उनसे कहा जाएगा ये वही है जिसके तुम ख़वास्तग़ार थे (27)

तबारकल्लजी

قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ أَهْلَكَنِيَ اللَّهُ وَمَن مَّعِيَ أَوْ رَحِمَنَا فَمَن يُجِيرُ الْكَافِرِينَ مِنْ عَذَابٍ أَلِيمٍ {28}

(ऐ रसूल) तुम कह दो भला देखो तो कि अगर ख़ुदा मुझको और मेरे साथियों को हलाक कर दे या हम पर रहम फ़रमाए तो काफि़रों को दर्दनाक अज़ाब से कौन पनाह देगा (28)

तबारकल्लजी

قُلْ هُوَ الرَّحْمَنُ آمَنَّا بِهِ وَعَلَيْهِ تَوَكَّلْنَا فَسَتَعْلَمُونَ مَنْ هُوَ فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ {29}

तुम कह दो कि वही (ख़ुदा) बड़ा रहम करने वाला है जिस पर हम ईमान लाए हैं और हमने तो उसी पर भरोसा कर लिया है तो अनक़रीब ही तुम्हें मालूम हो जाएगा कि कौन सरीही गुमराही में (पड़ा) है (29)

तबारकल्लजी

قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ أَصْبَحَ مَاؤُكُمْ غَوْرًا فَمَن يَأْتِيكُم بِمَاء مَّعِينٍ {30}

ऐ रसूल तुम कह दो कि भला देखो तो कि अगर तुम्हारा पानी ज़मीन के अन्दर चला जाए कौन ऐसा है जो तुम्हारे लिए पानी का चश्मा बहा लाए (30)

तबारकल्लजी

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

तबारकल्लजी

ن وَالْقَلَمِ وَمَا يَسْطُرُونَ {1}

नून क़लम की और उस चीज़ की जो लिखती हैं (उसकी) क़सम है (1)

तबारकल्लजी

مَا أَنتَ بِنِعْمَةِ رَبِّكَ بِمَجْنُونٍ {2}

कि तुम अपने परवरदिगार के फ़ज़ल (व करम) से दीवाने नहीं हो (2)

तबारकल्लजी

وَإِنَّ لَكَ لَأَجْرًا غَيْرَ مَمْنُونٍ {3}

और तुम्हारे वास्ते यक़ीनन वह अज्र है जो कभी ख़त्म ही न होगा (3)

तबारकल्लजी

وَإِنَّكَ لَعَلى خُلُقٍ عَظِيمٍ {4}

और बेशक तुम्हारे एख़लाक़ बड़े आला दर्जे के हैं (4)

तबारकल्लजी

فَسَتُبْصِرُ وَيُبْصِرُونَ {5}

तो अनक़रीब ही तुम भी देखोगे और ये कुफ़्फ़ार भी देख लेंगे (5)

तबारकल्लजी

بِأَييِّكُمُ الْمَفْتُونُ {6}

कि तुममें दीवाना कौन है (6)

तबारकल्लजी

إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعْلَمُ بِمَن ضَلَّ عَن سَبِيلِهِ وَهُوَ أَعْلَمُ بِالْمُهْتَدِينَ {7}

बेशक तुम्हारा परवरदिगार इनसे ख़ूब वाकि़फ़ है जो उसकी राह से भटके हुए हैं और वही हिदायत याफ़्ता लोगों को भी ख़ूब जानता है (7)

तबारकल्लजी

فَلَا تُطِعِ الْمُكَذِّبِينَ {8}

तो तुम झुठलाने वालों का कहना न मानना (8)

तबारकल्लजी

وَدُّوا لَوْ تُدْهِنُ فَيُدْهِنُونَ {9}

वह लोग ये चाहते हैं कि अगर तुम नरमी एख़्तेयार करो तो वह भी नरम हो जाएँ (9)

तबारकल्लजी

وَلَا تُطِعْ كُلَّ حَلَّافٍ مَّهِينٍ {10}

और तुम (कहीं) ऐसे के कहने में न आना जो बहुत क़समें खाता ज़लील औक़ात ऐबजू (10)

तबारकल्लजी

هَمَّازٍ مَّشَّاء بِنَمِيمٍ {11}

जो आला दर्जे का चुग़लख़ोर माल का बहुत बख़ील (11)

तबारकल्लजी

مَنَّاعٍ لِّلْخَيْرِ مُعْتَدٍ أَثِيمٍ {12}

हद से बढ़ने वाला गुनेहगार तुन्द मिजाज़ (12)

तबारकल्लजी

عُتُلٍّ بَعْدَ ذَلِكَ زَنِيمٍ {13}

और उसके अलावा बदज़ात (हरमज़ादा) भी है (13)

तबारकल्लजी

أَن كَانَ ذَا مَالٍ وَبَنِينَ {14}

चूँकि माल बहुत से बेटे रखता है (14)

तबारकल्लजी

إِذَا تُتْلَى عَلَيْهِ آيَاتُنَا قَالَ أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ {15}

जब उसके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो बोल उठता है कि ये तो अगलों के अफ़साने हैं (15)

तबारकल्लजी

سَنَسِمُهُ عَلَى الْخُرْطُومِ {16}

हम अनक़रीब इसकी नाक पर दाग़ लगाएँगे (16)

तबारकल्लजी

إِنَّا بَلَوْنَاهُمْ كَمَا بَلَوْنَا أَصْحَابَ الْجَنَّةِ إِذْ أَقْسَمُوا لَيَصْرِمُنَّهَا مُصْبِحِينَ {17}

जिस तरह हमने एक बाग़ वालों का इम्तेहान लिया था उसी तरह उनका इम्तेहान लिया जब उन्होने क़समें खा खाकर कहा कि सुबह होते हम उसका मेवा ज़रूर तोड़ डालेंगे (17)

तबारकल्लजी

وَلَا يَسْتَثْنُونَ {18}

और इंशाअल्लाह न कहा (18)

तबारकल्लजी

فَطَافَ عَلَيْهَا طَائِفٌ مِّن رَّبِّكَ وَهُمْ نَائِمُونَ {19}

तो ये लोग पड़े सो ही रहे थे कि तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (रातों रात) एक बला चक्कर लगा गयी (19)

तबारकल्लजी

فَأَصْبَحَتْ كَالصَّرِيمِ {20}

तो वह (सारा बाग़ जलकर) ऐसा हो गया जैसे बहुत काली रात (20)

तबारकल्लजी

فَتَنَادَوا مُصْبِحِينَ {21}

फिर ये लोग नूर के तड़के लगे बाहम गुल मचाने (21)

तबारकल्लजी

أَنِ اغْدُوا عَلَى حَرْثِكُمْ إِن كُنتُمْ صَارِمِينَ {22}

कि अगर तुमको फल तोड़ना है तो अपने बाग़ में सवेरे से चलो (22)

तबारकल्लजी

فَانطَلَقُوا وَهُمْ يَتَخَافَتُونَ {23}

ग़रज़ वह लोग चले और आपस में चुपके चुपके कहते जाते थे (23)

तबारकल्लजी

أَن لَّا يَدْخُلَنَّهَا الْيَوْمَ عَلَيْكُم مِّسْكِينٌ {24}

कि आज यहाँ तुम्हारे पास कोई फ़क़ीर न आने पाए (24)

तबारकल्लजी

وَغَدَوْا عَلَى حَرْدٍ قَادِرِينَ {25}

तो वह लोग रोक थाम के एहतमाम के साथ फल तोड़ने की ठाने हुए सवेरे ही जा पहुँचे (25)

तबारकल्लजी

فَلَمَّا رَأَوْهَا قَالُوا إِنَّا لَضَالُّونَ {26}

फिर जब उसे (जला हुआ सियाह) देखा तो कहने लगे हम लोग भटक गए (26)

तबारकल्लजी

بَلْ نَحْنُ مَحْرُومُونَ {27}

(ये हमारा बाग़ नहीं फिर ये सोचकर बोले) बात ये है कि हम लोग बड़े बदनसीब हैं (27)

तबारकल्लजी

قَالَ أَوْسَطُهُمْ أَلَمْ أَقُل لَّكُمْ لَوْلَا تُسَبِّحُونَ {28}

जो उनमें से मुनसिफ़ मिजाज़ था कहने लगा क्यों मैंने तुमसे नहीं कहा था कि तुम लोग (ख़ुदा की) तसबीह क्यों नहीं करते (28)

तबारकल्लजी

قَالُوا سُبْحَانَ رَبِّنَا إِنَّا كُنَّا ظَالِمِينَ {29}

वह बोले हमारा परवरदिगार पाक है बेशक हमीं ही कुसूरवार हैं (29)

तबारकल्लजी

فَأَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلَى بَعْضٍ يَتَلَاوَمُونَ {30}

फिर लगे एक दूसरे के मुँह दर मुँह मलामत करने (30)

तबारकल्लजी

قَالُوا يَا وَيْلَنَا إِنَّا كُنَّا طَاغِينَ {31}

(आखि़र) सबने इक़रार किया कि हाए अफ़सोस बेशक हम ही ख़ुद सरकश थे (31)

तबारकल्लजी

عَسَى رَبُّنَا أَن يُبْدِلَنَا خَيْرًا مِّنْهَا إِنَّا إِلَى رَبِّنَا رَاغِبُونَ {32}

उम्मीद है कि हमारा परवरदिगार हमें इससे बेहतर बाग़ इनायत फ़रमाए हम अपने परवरदिगार की तरफ़ रूजू करते हैं (32)

तबारकल्लजी

كَذَلِكَ الْعَذَابُ وَلَعَذَابُ الْآخِرَةِ أَكْبَرُ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ {33}

(देखो) यूँ अज़ाब होता है और आख़ेरत का अज़ाब तो इससे कहीं बढ़ कर है अगर ये लोग समझते हों (33)

तबारकल्लजी

إِنَّ لِلْمُتَّقِينَ عِندَ رَبِّهِمْ جَنَّاتِ النَّعِيمِ {34}

बेशक परहेज़गार लोग अपने परवरदिगार के यहाँ ऐशो आराम के बाग़ों में होंगे (34)

तबारकल्लजी

أَفَنَجْعَلُ الْمُسْلِمِينَ كَالْمُجْرِمِينَ {35}

तो क्या हम फ़रमाबरदारों को नाफ़रमानो के बराबर कर देंगे (35)

तबारकल्लजी

مَا لَكُمْ كَيْفَ تَحْكُمُونَ {36}

(हरगिज़ नहीं) तुम्हें क्या हो गया है तुम तुम कैसा हुक़्म लगाते हो (36)

तबारकल्लजी

أَمْ لَكُمْ كِتَابٌ فِيهِ تَدْرُسُونَ {37}

या तुम्हारे पास कोई ईमानी किताब है जिसमें तुम पढ़ लेते हो (37)

तबारकल्लजी

إِنَّ لَكُمْ فِيهِ لَمَا تَخَيَّرُونَ {38}

कि जो चीज़ पसन्द करोगे तुम को वहाँ ज़रूर मिलेगी (38)

तबारकल्लजी

أَمْ لَكُمْ أَيْمَانٌ عَلَيْنَا بَالِغَةٌ إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ إِنَّ لَكُمْ لَمَا تَحْكُمُونَ {39}

या तुमने हमसे क़समें ले रखी हैं जो रोज़े क़यामत तक चली जाएगी कि जो कुछ तुम हुक्म दोगे वही तुम्हारे लिए ज़रूर हाजि़र होगा (39)

तबारकल्लजी

سَلْهُم أَيُّهُم بِذَلِكَ زَعِيمٌ {40}

उनसे पूछो तो कि उनमें इसका कौन जि़म्मेदार है (40)

तबारकल्लजी

أَمْ لَهُمْ شُرَكَاء فَلْيَأْتُوا بِشُرَكَائِهِمْ إِن كَانُوا صَادِقِينَ {41}

या (इस बाब में) उनके और लोग भी शरीक हैं तो अगर ये लोग सच्चे हैं तो अपने शरीकों को सामने लाएँ (41)

तबारकल्लजी

يَوْمَ يُكْشَفُ عَن سَاقٍ وَيُدْعَوْنَ إِلَى السُّجُودِ فَلَا يَسْتَطِيعُونَ {42}

जिस दिन पिंडली खोल दी जाए और (काफि़र) लोग सजदे के लिए बुलाए जाएँगे तो (सजदा) न कर सकेंगे (42) 

तबारकल्लजी

خَاشِعَةً أَبْصَارُهُمْ تَرْهَقُهُمْ ذِلَّةٌ وَقَدْ كَانُوا يُدْعَوْنَ إِلَى السُّجُودِ وَهُمْ سَالِمُونَ {43}

उनकी आँखें झुकी हुयी होंगी रूसवाई उन पर छाई होगी और (दुनिया में) ये लोग सजदे के लिए बुलाए जाते और हटटे कटटे तन्दरूस्त थे (43) 

तबारकल्लजी

فَذَرْنِي وَمَن يُكَذِّبُ بِهَذَا الْحَدِيثِ سَنَسْتَدْرِجُهُم مِّنْ حَيْثُ لَا يَعْلَمُونَ {44}

तो मुझे उस कलाम के झुठलाने वाले से समझ लेने दो हम उनको आहिस्ता आहिस्ता इस तरह पकड़ लेंगे कि उनको ख़बर भी न होगी (44)

तबारकल्लजी

وَأُمْلِي لَهُمْ إِنَّ كَيْدِي مَتِينٌ {45}

और मैं उनको मोहलत दिये जाता हूँ बेशक मेरी तदबीर मज़बूत है (45)

तबारकल्लजी

أَمْ تَسْأَلُهُمْ أَجْرًا فَهُم مِّن مَّغْرَمٍ مُّثْقَلُونَ {46}

(ऐ रसूल) क्या तुम उनसे (तबलीग़े रिसालत का) कुछ सिला माँगते हो कि उन पर तावान का बोझ पड़ रहा है (46)

तबारकल्लजी

أَمْ عِندَهُمُ الْغَيْبُ فَهُمْ يَكْتُبُونَ {47}

या उनके इस ग़ैब (की ख़बर) है कि ये लोग लिख लिया करते हैं (47)

तबारकल्लजी

فَاصْبِرْ لِحُكْمِ رَبِّكَ وَلَا تَكُن كَصَاحِبِ الْحُوتِ إِذْ نَادَى وَهُوَ مَكْظُومٌ {48}

तो तुम अपने परवरदिगार के हुक्म के इन्तेज़ार में सब्र करो और मछली (का निवाला होने) वाले (यूनुस) के ऐसे न हो जाओ कि जब वह ग़ुस्से में भरे हुए थे और अपने परवरदिगार को पुकारा (48)

तबारकल्लजी

لَوْلَا أَن تَدَارَكَهُ نِعْمَةٌ مِّن رَّبِّهِ لَنُبِذَ بِالْعَرَاء وَهُوَ مَذْمُومٌ {49}

अगर तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी उनकी यावरी न करती तो चटियल मैदान में डाल दिए जाते और उनका बुरा हाल होता (49)

तबारकल्लजी

فَاجْتَبَاهُ رَبُّهُ فَجَعَلَهُ مِنَ الصَّالِحِينَ {50}

तो उनके परवरदिगार ने उनको बरगुज़ीदा करके नेकोकारों से बना दिया (50)

तबारकल्लजी

وَإِن يَكَادُ الَّذِينَ كَفَرُوا لَيُزْلِقُونَكَ بِأَبْصَارِهِمْ لَمَّا سَمِعُوا الذِّكْرَ وَيَقُولُونَ إِنَّهُ لَمَجْنُونٌ {51}

और कुफ़्फ़ार जब क़ुरआन को सुनते हैं तो मालूम होता है कि ये लोग तुम्हें घूर घूर कर (राह रास्त से) ज़रूर फिसला देंगे (51)

तबारकल्लजी

وَمَا هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ لِّلْعَالَمِينَ {52}

और कहते हैं कि ये तो सिड़ी हैं और ये (क़ुरआन) तो सारे जहाँन की नसीहत है (52)

तबारकल्लजी

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

तबारकल्लजी

الْحَاقَّةُ {1}

सच मुच होने वाली (क़यामत) (1)

तबारकल्लजी

مَا الْحَاقَّةُ {2}

और सच मुच होने वाली क्या चीज़ है (2)

तबारकल्लजी

وَمَا أَدْرَاكَ مَا الْحَاقَّةُ {3}

और तुम्हें क्या मालूम कि वह सच मुच होने वाली क्या है (3)

तबारकल्लजी

كَذَّبَتْ ثَمُودُ وَعَادٌ بِالْقَارِعَةِ {4}

(वही) खड़ खड़ाने वाली (जिस) को आद व समूद ने झुठलाया (4)

तबारकल्लजी

فَأَمَّا ثَمُودُ فَأُهْلِكُوا بِالطَّاغِيَةِ {5}

ग़रज़ समूद तो चिंघाड़ से हलाक कर दिए गए (5)

तबारकल्लजी

وَأَمَّا عَادٌ فَأُهْلِكُوا بِرِيحٍ صَرْصَرٍ عَاتِيَةٍ {6}

रहे आद तो वह बहुत शदीद तेज़ आँधी से हलाक कर दिए गए (6)

तबारकल्लजी

سَخَّرَهَا عَلَيْهِمْ سَبْعَ لَيَالٍ وَثَمَانِيَةَ أَيَّامٍ حُسُومًا فَتَرَى الْقَوْمَ فِيهَا صَرْعَى كَأَنَّهُمْ أَعْجَازُ نَخْلٍ خَاوِيَةٍ {7}

ख़ुदा ने उसे सात रात और आठ दिन लगाकर उन पर चलाया तो लोगों को इस तरह ढहे (मुर्दे) पड़े देखता कि गोया वह खजूरों के खोखले तने हैं (7)

तबारकल्लजी

فَهَلْ تَرَى لَهُم مِّن بَاقِيَةٍ {8}

तू क्या इनमें से किसी को भी बचा खुचा देखता है (8) 

तबारकल्लजी

وَجَاء فِرْعَوْنُ وَمَن قَبْلَهُ وَالْمُؤْتَفِكَاتُ بِالْخَاطِئَةِ {9}

और फि़रऔन और जो लोग उससे पहले थे और वह लोग (क़ौमे लूत) जो उलटी हुयी बस्तियों के रहने वाले थे सब गुनाह के काम करते थे (9)

तबारकल्लजी

فَعَصَوْا رَسُولَ رَبِّهِمْ فَأَخَذَهُمْ أَخْذَةً رَّابِيَةً {10}

तो उन लोगों ने अपने परवरदिगार के रसूल की नाफ़रमानी की तो ख़ुदा ने भी उनकी बड़ी सख़्ती से ले दे कर डाली (10)

तबारकल्लजी

إِنَّا لَمَّا طَغَى الْمَاء حَمَلْنَاكُمْ فِي الْجَارِيَةِ {11}

जब पानी चढ़ने लगा तो हमने तुमको कश्ती पर सवार किया (11)

तबारकल्लजी

لِنَجْعَلَهَا لَكُمْ تَذْكِرَةً وَتَعِيَهَا أُذُنٌ وَاعِيَةٌ {12}

ताकि हम उसे तुम्हारे लिए यादगार बनाएं और उसे याद रखने वाले कान सुनकर याद रखें (12)

तबारकल्लजी

فَإِذَا نُفِخَ فِي الصُّورِ نَفْخَةٌ وَاحِدَةٌ {13}

फिर जब सूर में एक (बार) फूँक मार दी जाएगी (13)

तबारकल्लजी

وَحُمِلَتِ الْأَرْضُ وَالْجِبَالُ فَدُكَّتَا دَكَّةً وَاحِدَةً {14}

और ज़मीन और पहाड़ उठाकर एक बारगी (टकरा कर) रेज़ा रेज़ा कर दिए जाएँगे तो उस रोज़ क़यामत आ ही जाएगी (14)

तबारकल्लजी

فَيَوْمَئِذٍ وَقَعَتِ الْوَاقِعَةُ {15}

और आसमान फट जाएगा (15)

तबारकल्लजी

وَانشَقَّتِ السَّمَاء فَهِيَ يَوْمَئِذٍ وَاهِيَةٌ {16}

तो वह उस दिन बहुत फुस फुसा होगा और फ़रिश्ते उनके किनारे पर होंगे (16)

तबारकल्लजी

وَالْمَلَكُ عَلَى أَرْجَائِهَا وَيَحْمِلُ عَرْشَ رَبِّكَ فَوْقَهُمْ يَوْمَئِذٍ ثَمَانِيَةٌ {17}

और तुम्हारे परवरदिगार के अर्श को उस दिन आठ फ़रिश्ते अपने सरों पर उठाए होंगे (17)

तबारकल्लजी

يَوْمَئِذٍ تُعْرَضُونَ لَا تَخْفَى مِنكُمْ خَافِيَةٌ {18}

उस दिन तुम सब के सब (ख़ुदा के सामने) पेश किए जाओगे और तुम्हारी कोई पोशीदा बात छुपी न रहेगी (18)

तबारकल्लजी

فَأَمَّا مَنْ أُوتِيَ كِتَابَهُ بِيَمِينِهِ فَيَقُولُ هَاؤُمُ اقْرَؤُوا كِتَابِيهْ {19}

तो जिसको (उसका नामए आमाल) दाहिने हाथ में दिया जाएगा तो वह (लोगो से) कहेगा लीजिए मेरा नामए आमाल पढि़ए (19)

तबारकल्लजी

إِنِّي ظَنَنتُ أَنِّي مُلَاقٍ حِسَابِيهْ {20}

तो मैं तो जानता था कि मुझे मेरा हिसाब (किताब) ज़रूर मिलेगा (20) 

तबारकल्लजी

فَهُوَ فِي عِيشَةٍ رَّاضِيَةٍ {21}

फिर वह दिल पसन्द ऐश में होगा (21) 

तबारकल्लजी

فِي جَنَّةٍ عَالِيَةٍ {22}

बड़े आलीशान बाग़ में (22)

तबारकल्लजी

قُطُوفُهَا دَانِيَةٌ {23}

जिनके फल बहुत झुके हुए क़रीब होंगे (23)

तबारकल्लजी

كُلُوا وَاشْرَبُوا هَنِيئًا بِمَا أَسْلَفْتُمْ فِي الْأَيَّامِ الْخَالِيَةِ {24}

जो कारगुज़ारियाँ तुम गुजि़शता अय्याम मे करके आगे भेज चुके हो उसके सिले में मज़े से खाओ पियो (24)

तबारकल्लजी

وَأَمَّا مَنْ أُوتِيَ كِتَابَهُ بِشِمَالِهِ فَيَقُولُ يَا لَيْتَنِي لَمْ أُوتَ كِتَابِيهْ {25}

और जिसका नामए आमाल उनके बाएँ हाथ में दिया जाएगा तो वह कहेगा ऐ काश मुझे मेरा नामए अमल न दिया जाता (25) 

तबारकल्लजी

وَلَمْ أَدْرِ مَا حِسَابِيهْ {26}

और मुझे न मालूल होता कि मेरा हिसाब क्या है (26)

तबारकल्लजी

يَا لَيْتَهَا كَانَتِ الْقَاضِيَةَ {27}

ऐ काश मौत ने (हमेशा के लिए मेरा) काम तमाम कर दिया होता (27) 

तबारकल्लजी

مَا أَغْنَى عَنِّي مَالِيهْ {28}

(अफ़सोस) मेरा माल मेरे कुछ भी काम न आया (28) 

तबारकल्लजी

هَلَكَ عَنِّي سُلْطَانِيهْ {29}

(हाए) मेरी सल्तनत ख़ाक में मिल गयी (फिर हुक़्म होगा) (29) 

तबारकल्लजी

خُذُوهُ فَغُلُّوهُ {30}

इसे गिरफ़्तार करके तौक़ पहना दो (30) 

तबारकल्लजी

ثُمَّ الْجَحِيمَ صَلُّوهُ {31}

फिर इसे जहन्नुम में झोंक दो (31) 

तबारकल्लजी

ثُمَّ فِي سِلْسِلَةٍ ذَرْعُهَا سَبْعُونَ ذِرَاعًا فَاسْلُكُوهُ {32}

फिर एक ज़ंजीर में जिसकी नाप सत्तर गज़ की है उसे ख़ूब जकड़ दो (32) 

तबारकल्लजी

إِنَّهُ كَانَ لَا يُؤْمِنُ بِاللَّهِ الْعَظِيمِ {33}

(क्यों कि) ये न तो बुज़ुर्ग ख़ुदा ही पर ईमान लाता था और न मोहताज के खिलाने पर आमादा (लोगों को) करता था (33) 

तबारकल्लजी

وَلَا يَحُضُّ عَلَى طَعَامِ الْمِسْكِينِ {34}

तो आज न उसका कोई ग़मख़्वार है (34) 

तबारकल्लजी

فَلَيْسَ لَهُ الْيَوْمَ هَاهُنَا حَمِيمٌ {35}

और न पीप के सिवा (उसके लिए) कुछ खाना है (35) 

तबारकल्लजी

وَلَا طَعَامٌ إِلَّا مِنْ غِسْلِينٍ {36}

जिसको गुनेहगारों के सिवा कोई नहीं खाएगा (36) 

तबारकल्लजी

لَا يَأْكُلُهُ إِلَّا الْخَاطِؤُونَ {37}

तो मुझे उन चीज़ों की क़सम है (37) 

तबारकल्लजी

فَلَا أُقْسِمُ بِمَا تُبْصِرُونَ {38}

जो तुम्हें दिखाई देती हैं (38) 

तबारकल्लजी

وَمَا لَا تُبْصِرُونَ {39}

और जो तुम्हें नहीं सुझाई देती कि बेशक ये (क़ुरआन) (39) 

तबारकल्लजी

إِنَّهُ لَقَوْلُ رَسُولٍ كَرِيمٍ {40}

एक मोअजि़ज़ फरिश्ते का लाया हुआ पैग़ाम है (40) 

तबारकल्लजी

وَمَا هُوَ بِقَوْلِ شَاعِرٍ قَلِيلًا مَا تُؤْمِنُونَ {41}

और ये किसी शायर की तुक बन्दी नहीं तुम लोग तो बहुत कम ईमान लाते हो (41) 

तबारकल्लजी

وَلَا بِقَوْلِ كَاهِنٍ قَلِيلًا مَا تَذَكَّرُونَ {42}

और न किसी काहिन की (ख़्याली) बात है तुम लोग तो बहुत कम ग़ौर करते हो (42) 

तबारकल्लजी

تَنزِيلٌ مِّن رَّبِّ الْعَالَمِينَ {43}

सारे जहाँन के परवरदिगार का नाजि़ल किया हुआ (क़लाम) है (43) 

तबारकल्लजी

وَلَوْ تَقَوَّلَ عَلَيْنَا بَعْضَ الْأَقَاوِيلِ {44}

अगर रसूल हमारी निस्बत कोई झूठ बात बना लाते (44)

तबारकल्लजी

لَأَخَذْنَا مِنْهُ بِالْيَمِينِ {45}

तो हम उनका दाहिना हाथ पकड़ लेते (45) 

तबारकल्लजी

ثُمَّ لَقَطَعْنَا مِنْهُ الْوَتِينَ {46}

फिर हम ज़रूर उनकी गर्दन उड़ा देते (46) 

तबारकल्लजी

فَمَا مِنكُم مِّنْ أَحَدٍ عَنْهُ حَاجِزِينَ {47}

तो तुममें से कोई उनसे (मुझे रोक न सकता) (47) 

तबारकल्लजी

وَإِنَّهُ لَتَذْكِرَةٌ لِّلْمُتَّقِينَ {48}

ये तो परहेज़गारों के लिए नसीहत है (48) 

तबारकल्लजी

وَإِنَّا لَنَعْلَمُ أَنَّ مِنكُم مُّكَذِّبِينَ {49}

और हम ख़ूब जानते हैं कि तुम में से कुछ लोग (इसके) झुठलाने वाले हैं (49) 

तबारकल्लजी

وَإِنَّهُ لَحَسْرَةٌ عَلَى الْكَافِرِينَ {50}

और इसमें शक नहीं कि ये काफि़रों की हसरत का बाएस है (50) 

तबारकल्लजी

وَإِنَّهُ لَحَقُّ الْيَقِينِ {51}

और इसमें शक नहीं कि ये यक़ीनन बरहक़ है (51) 

तबारकल्लजी

فَسَبِّحْ بِاسْمِ رَبِّكَ الْعَظِيمِ {52}

तो तुम अपने परवरदिगार की तसबीह करो (52)

तबारकल्लजी

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

तबारकल्लजी

سَأَلَ سَائِلٌ بِعَذَابٍ وَاقِعٍ {1}

एक माँगने वाले ने काफ़िरों के लिए होकर रहने वाले अज़ाब को माँगा (1) 

तबारकल्लजी

لِّلْكَافِرينَ لَيْسَ لَهُ دَافِعٌ {2}

जिसको कोई टाल नहीं सकता (2) 

तबारकल्लजी

مِّنَ اللَّهِ ذِي الْمَعَارِجِ {3}

जो दर्जे वाले ख़ुदा की तरफ़ से (होने वाला) था (3) 

तबारकल्लजी

تَعْرُجُ الْمَلَائِكَةُ وَالرُّوحُ إِلَيْهِ فِي يَوْمٍ كَانَ مِقْدَارُهُ خَمْسِينَ أَلْفَ سَنَةٍ {4}

जिसकी तरफ फ़रिश्ते और रूहुल अमीन चढ़ते हैं (और ये) एक दिन में इतनी मुसाफ़त तय करते हैं जिसका अन्दाज़ा पचास हज़ार बरस का होगा (4) 

तबारकल्लजी

فَاصْبِرْ صَبْرًا جَمِيلًا {5}

तो तुम अच्छी तरह इन तक़लीफों को बरदाश्त करते रहो (5) 

तबारकल्लजी

إِنَّهُمْ يَرَوْنَهُ بَعِيدًا {6}

वह (क़यामत) उनकी निगाह में बहुत दूर है (6)

तबारकल्लजी

وَنَرَاهُ قَرِيبًا {7}

और हमारी नज़र में नज़दीक है (7) 

तबारकल्लजी

يَوْمَ تَكُونُ السَّمَاء كَالْمُهْلِ {8}

जिस दिन आसमान पिघले हुए ताँबे का सा हो जाएगा (8) 

तबारकल्लजी

وَتَكُونُ الْجِبَالُ كَالْعِهْنِ {9}

और पहाड़ धुनके हुए ऊन का सा (9) 

तबारकल्लजी

وَلَا يَسْأَلُ حَمِيمٌ حَمِيمًا {10}

बावजूद कि एक दूसरे को देखते होंगे (10)

तबारकल्लजी

يُبَصَّرُونَهُمْ يَوَدُّ الْمُجْرِمُ لَوْ يَفْتَدِي مِنْ عَذَابِ يَوْمِئِذٍ بِبَنِيهِ {11}

कोई किसी दोस्त को न पूछेगा गुनेहगार तो आरज़ू करेगा कि काश उस दिन के अज़ाब के बदले उसके बेटों (11)

तबारकल्लजी

وَصَاحِبَتِهِ وَأَخِيهِ {12}

और उसकी बीवी और उसके भाई (12) 

तबारकल्लजी

وَفَصِيلَتِهِ الَّتِي تُؤْويهِ {13}

और उसके कुनबे को जिसमें वह रहता था (13) 

तबारकल्लजी

وَمَن فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا ثُمَّ يُنجِيهِ {14}

और जितने आदमी ज़मीन पर हैं सब को ले ले और उसको छुटकारा दे दें (14) 

तबारकल्लजी

كَلَّا إِنَّهَا لَظَى {15}

(मगर) ये हरगिज़ न होगा (15) 

तबारकल्लजी

نَزَّاعَةً لِّلشَّوَى {16}

जहन्नुम की वह भड़कती आग है कि खाल उधेड़ कर रख देगी (16) 

तबारकल्लजी

تَدْعُو مَنْ أَدْبَرَ وَتَوَلَّى {17}

(और) उन लोगों को अपनी तरफ़ बुलाती होगी (17) 

तबारकल्लजी

وَجَمَعَ فَأَوْعَى {18}

जिन्होंने (दीन से) पीठ फेरी और मुँह मोड़ा और (माल जमा किया) (18) 

तबारकल्लजी

إِنَّ الْإِنسَانَ خُلِقَ هَلُوعًا {19}

और बन्द कर रखा बेशक इन्सान बड़ा लालची पैदा हुआ है (19) 

तबारकल्लजी

إِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ جَزُوعًا {20}

जब उसे तक़लीफ छू भी गयी तो घबरा गया (20) 

तबारकल्लजी

وَإِذَا مَسَّهُ الْخَيْرُ مَنُوعًا {21}

और जब उसे ज़रा फराग़ी हासिल हुयी तो बख़ील बन बैठा (21) 

तबारकल्लजी

إِلَّا الْمُصَلِّينَ {22}

मगर जो लोग नमाज़ पढ़ते हैं (22) 

तबारकल्लजी

الَّذِينَ هُمْ عَلَى صَلَاتِهِمْ دَائِمُونَ {23}

जो अपनी नमाज़ का इल्तज़ाम रखते हैं (23) 

तबारकल्लजी

وَالَّذِينَ فِي أَمْوَالِهِمْ حَقٌّ مَّعْلُومٌ {24}

और जिनके माल में माँगने वाले और न माँगने वाले के (24) 

तबारकल्लजी

لِّلسَّائِلِ وَالْمَحْرُومِ {25}

लिए एक मुक़र्रर हिस्सा है (25) 

तबारकल्लजी

وَالَّذِينَ يُصَدِّقُونَ بِيَوْمِ الدِّينِ {26}

और जो लोग रोज़े जज़ा की तस्दीक़ करते हैं (26) 

तबारकल्लजी

وَالَّذِينَ هُم مِّنْ عَذَابِ رَبِّهِم مُّشْفِقُونَ {27}

और जो लोग अपने परवरदिगार के अज़ाब से डरते रहते हैं (27) 

तबारकल्लजी

إِنَّ عَذَابَ رَبِّهِمْ غَيْرُ مَأْمُونٍ {28}

बेशक उनको परवरदिगार के अज़ाब से बेख़ौफ न होना चाहिए (28) 

तबारकल्लजी

وَالَّذِينَ هُمْ لِفُرُوجِهِمْ حَافِظُونَ {29}

और जो लोग अपनी शर्मगाहों को अपनी बीवियों और अपनी लौन्डियों के सिवा से हिफाज़त करते हैं (29)

तबारकल्लजी

إِلَّا عَلَى أَزْوَاجِهِمْ أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُمْ فَإِنَّهُمْ غَيْرُ مَلُومِينَ {30}

तो इन लोगों की हरगिज़ मलामत न की जाएगी (30) 

तबारकल्लजी

فَمَنِ ابْتَغَى وَرَاء ذَلِكَ فَأُوْلَئِكَ هُمُ الْعَادُونَ {31}

तो जो लोग उनके सिवा और के ख़ास्तगार हों तो यही लोग हद से बढ़ जाने वाले हैं (31) 

तबारकल्लजी

وَالَّذِينَ هُمْ لِأَمَانَاتِهِمْ وَعَهْدِهِمْ رَاعُونَ {32}

और जो लोग अपनी अमानतों और अहदों का लेहाज़ रखते हैं (32) 

तबारकल्लजी

وَالَّذِينَ هُم بِشَهَادَاتِهِمْ قَائِمُونَ {33}

और जो लोग अपनी शहादतों पर क़ायम रहते हैं (33) 

तबारकल्लजी

وَالَّذِينَ هُمْ عَلَى صَلَاتِهِمْ يُحَافِظُونَ {34}

और जो लोग अपनी नमाज़ो का ख़्याल रखते हैं (34) 

तबारकल्लजी

أُوْلَئِكَ فِي جَنَّاتٍ مُّكْرَمُونَ {35}

यही लोग बेहिश्त के बाग़ों में इज़्ज़त से रहेंगे (35) 

तबारकल्लजी

فَمَالِ الَّذِينَ كَفَرُوا قِبَلَكَ مُهْطِعِينَ {36}

तो (ऐ रसूल) काफ़िरों को क्या हो गया है (36) 

तबारकल्लजी

عَنِ الْيَمِينِ وَعَنِ الشِّمَالِ عِزِينَ {37}

कि तुम्हारे पास गिरोह गिरोह दाहिने से बाएँ से दौड़े चले आ रहे हैं (37) 

तबारकल्लजी

أَيَطْمَعُ كُلُّ امْرِئٍ مِّنْهُمْ أَن يُدْخَلَ جَنَّةَ نَعِيمٍ {38}

क्या इनमें से हर शख़्स इस का मुतमइनी है कि चैन के बाग़ (बेहिश्त) में दाखि़ल होगा (38) 

तबारकल्लजी

كَلَّا إِنَّا خَلَقْنَاهُم مِّمَّا يَعْلَمُونَ {39}

हरगिज़ नहीं हमने उनको जिस (गन्दी) चीज़ से पैदा किया ये लोग जानते हैं (39) 

तबारकल्लजी

فَلَا أُقْسِمُ بِرَبِّ الْمَشَارِقِ وَالْمَغَارِبِ إِنَّا لَقَادِرُونَ {40}

तो मैं मशरिकों और मग़रिबों के परवरदिगार की क़सम खाता हूँ कि हम ज़रूर इस बात की कु़दरत रखते हैं (40)

तबारकल्लजी

عَلَى أَن نُّبَدِّلَ خَيْرًا مِّنْهُمْ وَمَا نَحْنُ بِمَسْبُوقِينَ {41}

कि उनके बदले उनसे बेहतर लोग ला (बसाएँ) और हम आजिज़ नहीं हैं (41) 

तबारकल्लजी

فَذَرْهُمْ يَخُوضُوا وَيَلْعَبُوا حَتَّى يُلَاقُوا يَوْمَهُمُ الَّذِي يُوعَدُونَ {42}

तो तुम उनको छोड़ दो कि बातिल में पड़े खेलते रहें यहाँ तक कि जिस दिन का उनसे वायदा किया जाता है उनके सामने आ मौजूद हो (42) 

तबारकल्लजी

يَوْمَ يَخْرُجُونَ مِنَ الْأَجْدَاثِ سِرَاعًا كَأَنَّهُمْ إِلَى نُصُبٍ يُوفِضُونَ {43}

उसी दिन ये लोग क़ब्रों से निकल कर इस तरह दौड़ेंगे गोया वह किसी झन्डे की तरफ़ दौड़े चले जाते हैं (43)

तबारकल्लजी

خَاشِعَةً أَبْصَارُهُمْ تَرْهَقُهُمْ ذِلَّةٌ ذَلِكَ الْيَوْمُ الَّذِي كَانُوا يُوعَدُونَ {44}

(निदामत से) उनकी आँखें झुकी होंगी उन पर रूसवाई छाई हुयी होगी ये वही दिन है जिसका उनसे वायदा किया जाता था (44)

तबारकल्लजी

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

तबारकल्लजी

إِنَّا أَرْسَلْنَا نُوحًا إِلَى قَوْمِهِ أَنْ أَنذِرْ قَوْمَكَ مِن قَبْلِ أَن يَأْتِيَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ {1}

हमने नूह को उसकी क़ौम के पास (पैग़म्बर बनाकर) भेजा कि क़ब्ल उसके कि उनकी क़ौम पर दर्दनाक अज़ाब आए उनको उससे डराओ (1) 

तबारकल्लजी

قَالَ يَا قَوْمِ إِنِّي لَكُمْ نَذِيرٌ مُّبِينٌ {2}

तो नूह (अपनी क़ौम से) कहने लगे ऐ मेरी क़ौम मैं तो तुम्हें साफ़ साफ़ डराता (और समझाता) हूँ (2)

तबारकल्लजी

أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ وَاتَّقُوهُ وَأَطِيعُونِ {3}

कि तुम लोग ख़ुदा की इबादत करो और उसी से डरो और मेरी इताअत करो (3)

तबारकल्लजी

يَغْفِرْ لَكُم مِّن ذُنُوبِكُمْ وَيُؤَخِّرْكُمْ إِلَى أَجَلٍ مُّسَمًّى إِنَّ أَجَلَ اللَّهِ إِذَا جَاء لَا يُؤَخَّرُ لَوْ كُنتُمْ تَعْلَمُونَ {4}

ख़ुदा तुम्हारे गुनाह बख़्श देगा और तुम्हें (मौत के) मुक़र्रर वक़्त तक बाक़ी रखेगा, बेशक जब ख़ुदा का मुक़र्रर किया हुआ वक़्त आ जाता है तो पीछे हटाया नहीं जा सकता अगर तुम समझते होते (4)

तबारकल्लजी

قَالَ رَبِّ إِنِّي دَعَوْتُ قَوْمِي لَيْلًا وَنَهَارًا {5}

(जब लोगों ने न माना तो) अर्ज़ की परवरदिगार मैं अपनी क़ौम को (ईमान की तरफ़) बुलाता रहा (5)

तबारकल्लजी

فَلَمْ يَزِدْهُمْ دُعَائِي إِلَّا فِرَارًا {6}

लेकिन वह मेरे बुलाने से और ज़्यादा गुरेज़ ही करते रहे (6)

तबारकल्लजी

وَإِنِّي كُلَّمَا دَعَوْتُهُمْ لِتَغْفِرَ لَهُمْ جَعَلُوا أَصَابِعَهُمْ فِي آذَانِهِمْ وَاسْتَغْشَوْا ثِيَابَهُمْ وَأَصَرُّوا وَاسْتَكْبَرُوا اسْتِكْبَارًا {7}

और मैने जब उनको बुलाया कि (ये तौबा करें और) तू उन्हें माफ़ कर दे तो उन्होने अपने कानों में उंगलियाँ दे लीं और मुझसे छिपने को कपड़े ओढ़ लिए और अड़ गए और बहुत शिद्दत से अकड़ बैठे (7)

तबारकल्लजी

ثُمَّ إِنِّي دَعَوْتُهُمْ جِهَارًا {8}

फिर मैंने उनको बिल एलान बुलाया फिर उनको ज़ाहिर ब ज़ाहिर समझाया (8)

तबारकल्लजी

ثُمَّ إِنِّي أَعْلَنتُ لَهُمْ وَأَسْرَرْتُ لَهُمْ إِسْرَارًا {9}

और उनकी पोशीदा भी फ़हमाईश की कि मैंने उनसे कहा (9)

तबारकल्लजी

فَقُلْتُ اسْتَغْفِرُوا رَبَّكُمْ إِنَّهُ كَانَ غَفَّارًا {10}

अपने परवरदिगार से मग़फे़रत की दुआ माँगो बेशक वह बड़ा बख़्शने वाला है (10)

तबारकल्लजी

يُرْسِلِ السَّمَاء عَلَيْكُم مِّدْرَارًا {11}

(और) तुम पर आसमान से मूसलाधार पानी बरसाएगा (11)

तबारकल्लजी

وَيُمْدِدْكُمْ بِأَمْوَالٍ وَبَنِينَ وَيَجْعَل لَّكُمْ جَنَّاتٍ وَيَجْعَل لَّكُمْ أَنْهَارًا {12}

और माल और औलाद में तरक़्क़ी देगा, और तुम्हारे लिए बाग़ बनाएगा, और तुम्हारे लिए नहरें जारी करेगा (12)

तबारकल्लजी

مَّا لَكُمْ لَا تَرْجُونَ لِلَّهِ وَقَارًا {13}

तुम्हें क्या हो गया है कि तुम ख़ुदा की अज़मत का ज़रा भी ख़्याल नहीं करते (13)

तबारकल्लजी

وَقَدْ خَلَقَكُمْ أَطْوَارًا {14}

हालाँकि उसी ने तुमको तरह तरह का पैदा किया (14)

तबारकल्लजी

أَلَمْ تَرَوْا كَيْفَ خَلَقَ اللَّهُ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ طِبَاقًا {15}

क्या तुमने ग़ौर नहीं किया कि ख़ुदा ने सात आसमान ऊपर तलें क्यों कर बनाए (15)

तबारकल्लजी

وَجَعَلَ الْقَمَرَ فِيهِنَّ نُورًا وَجَعَلَ الشَّمْسَ سِرَاجًا {16}

और उसी ने उसमें चाँद को नूर बनाया और सूरज को रौशन चिराग़ बना दिया (16)

तबारकल्लजी

وَاللَّهُ أَنبَتَكُم مِّنَ الْأَرْضِ نَبَاتًا {17}

और ख़ुदा ही तुमको ज़मीन से पैदा किया (17)

तबारकल्लजी

ثُمَّ يُعِيدُكُمْ فِيهَا وَيُخْرِجُكُمْ إِخْرَاجًا {18}

फिर तुमको उसी में दोबारा ले जाएगा और (क़यामत में उसी से) निकाल कर खड़ा करेगा (18)

तबारकल्लजी

وَاللَّهُ جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ بِسَاطًا {19}

और ख़ुदा ही ने ज़मीन को तुम्हारे लिए फर्श बनाया (19)

तबारकल्लजी

لِتَسْلُكُوا مِنْهَا سُبُلًا فِجَاجًا {20}

ताकि तुम उसके बड़े बड़े कुशादा रास्तों में चलो फिरो (20)

तबारकल्लजी

قَالَ نُوحٌ رَّبِّ إِنَّهُمْ عَصَوْنِي وَاتَّبَعُوا مَن لَّمْ يَزِدْهُ مَالُهُ وَوَلَدُهُ إِلَّا خَسَارًا {21}

(फिर) नूह ने अर्ज़ की परवरदिगार इन लोगों ने मेरी नाफ़रमानी की उस शख़्स के ताबेदार बन के जिसने उनके माल और औलाद में नुक़सान के सिवा फ़ायदा न पहुँचाया (21)

तबारकल्लजी

وَمَكَرُوا مَكْرًا كُبَّارًا {22}

और उन्होंने (मेरे साथ) बड़ी मक्कारियाँ की (22)

तबारकल्लजी

وَقَالُوا لَا تَذَرُنَّ آلِهَتَكُمْ وَلَا تَذَرُنَّ وَدًّا وَلَا سُوَاعًا وَلَا يَغُوثَ وَيَعُوقَ وَنَسْرًا {23}

और (उलटे) कहने लगे कि आपने माबूदों को हरगिज़ न छोड़ना और न वद को और सुआ को और न यगूस और यऊक़ व नस्र को छोड़ना (23)

तबारकल्लजी

وَقَدْ أَضَلُّوا كَثِيراً وَلَا تَزِدِ الظَّالِمِينَ إِلَّا ضَلَالًا {24}

और उन्होंने बहुतेरों को गुमराह कर छोड़ा और तू (उन) ज़ालिमों की गुमराही को और बढ़ा दे (24) 

तबारकल्लजी

مِمَّا خَطِيئَاتِهِمْ أُغْرِقُوا فَأُدْخِلُوا نَارًا فَلَمْ يَجِدُوا لَهُم مِّن دُونِ اللَّهِ أَنصَارًا {25}

(आखि़र) वह अपने गुनाहों की बदौलत (पहले तो) डुबाए गए फिर जहन्नुम में झोंके गए तो उन लोगों ने ख़ुदा के सिवा किसी को अपना मददगार न पाया (25)

तबारकल्लजी

وَقَالَ نُوحٌ رَّبِّ لَا تَذَرْ عَلَى الْأَرْضِ مِنَ الْكَافِرِينَ دَيَّارًا {26}

और नूह ने अर्ज़ की परवरदिगार (इन) काफि़रों में रूए ज़मीन पर किसी को बसा हुआ न रहने दे (26)

तबारकल्लजी

إِنَّكَ إِن تَذَرْهُمْ يُضِلُّوا عِبَادَكَ وَلَا يَلِدُوا إِلَّا فَاجِرًا كَفَّارًا {27}

क्योंकि अगर तू उनको छोड़ देगा तो ये (फिर) तेरे बन्दों को गुमराह करेंगे और उनकी औलाद भी गुनाहगार और कट्टी काफ़िर ही होगी (27)

तबारकल्लजी

رَبِّ اغْفِرْ لِي وَلِوَالِدَيَّ وَلِمَن دَخَلَ بَيْتِيَ مُؤْمِنًا وَلِلْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ وَلَا تَزِدِ الظَّالِمِينَ إِلَّا تَبَارًا {28}

परवरदिगार मुझको और मेरे माँ बाप को और जो मोमिन मेरे घर में आए उनको और तमाम ईमानदार मर्दों और मोमिन औरतों को बख़्श दे और (इन) ज़ालिमों की बस तबाही को और ज़्यादा कर (28)

तबारकल्लजी

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

तबारकल्लजी

قُلْ أُوحِيَ إِلَيَّ أَنَّهُ اسْتَمَعَ نَفَرٌ مِّنَ الْجِنِّ فَقَالُوا إِنَّا سَمِعْنَا قُرْآنًا عَجَبًا {1}

(ऐ रसूल लोगों से) कह दो कि मेरे पास ‘वही’ आयी है कि जिनों की एक जमाअत ने (क़ुरआन को) जी लगाकर सुना तो कहने लगे कि हमने एक अजीब क़ुरआन सुना है (1)

तबारकल्लजी

يَهْدِي إِلَى الرُّشْدِ فَآمَنَّا بِهِ وَلَن نُّشْرِكَ بِرَبِّنَا أَحَدًا {2}

जो भलाई की राह दिखाता है तो हम उस पर ईमान ले आए और अब तो हम किसी को अपने परवरदिगार का शरीक न बनाएँगे (2)

तबारकल्लजी

وَأَنَّهُ تَعَالَى جَدُّ رَبِّنَا مَا اتَّخَذَ صَاحِبَةً وَلَا وَلَدًا {3}

और ये कि हमारे परवरदिगार की शान बहुत बड़ी है उसने न (किसी को) बीवी बनाया और न बेटा बेटी (3)

तबारकल्लजी

وَأَنَّهُ كَانَ يَقُولُ سَفِيهُنَا عَلَى اللَّهِ شَطَطًا {4}

और ये कि हममें से बाज़ बेवकूफ़ ख़ुदा के बारे में हद से ज़्यादा लग़ो बातें निकाला करते थे (4)

तबारकल्लजी

وَأَنَّا ظَنَنَّا أَن لَّن تَقُولَ الْإِنسُ وَالْجِنُّ عَلَى اللَّهِ كَذِبًا {5}

और ये कि हमारा तो ख़्याल था कि आदमी और जिन ख़ुदा की निस्बत झूठी बात नहीं बोल सकते (5)

तबारकल्लजी

وَأَنَّهُ كَانَ رِجَالٌ مِّنَ الْإِنسِ يَعُوذُونَ بِرِجَالٍ مِّنَ الْجِنِّ فَزَادُوهُمْ رَهَقًا {6}

और ये कि आदमियों में से कुछ लोग जिन्नात में से बाज़ लोगों की पनाह पकड़ा करते थे तो (इससे) उनकी सरकशी और बढ़ गयी (6)

तबारकल्लजी

وَأَنَّهُمْ ظَنُّوا كَمَا ظَنَنتُمْ أَن لَّن يَبْعَثَ اللَّهُ أَحَدًا {7}

और ये कि जैसा तुम्हारा ख़्याल है वैसा उनका भी एतक़ाद था कि ख़ुदा हरगिज़ किसी को दोबारा नहीं जि़न्दा करेगा (7)

तबारकल्लजी

وَأَنَّا لَمَسْنَا السَّمَاء فَوَجَدْنَاهَا مُلِئَتْ حَرَسًا شَدِيدًا وَشُهُبًا {8}

और ये कि हमने आसमान को टटोला तो उसको भी बहुत क़वी निगेहबानों और शोलो से भरा हुआ पाया (8)

तबारकल्लजी

وَأَنَّا كُنَّا نَقْعُدُ مِنْهَا مَقَاعِدَ لِلسَّمْعِ فَمَن يَسْتَمِعِ الْآنَ يَجِدْ لَهُ شِهَابًا رَّصَدًا {9}

और ये कि पहले हम वहाँ बहुत से मक़ामात में (बातें) सुनने के लिए बैठा करते थे मगर अब कोई सुनना चाहे तो अपने लिए शोले तैयार पाएगा (9)

तबारकल्लजी

وَأَنَّا لَا نَدْرِي أَشَرٌّ أُرِيدَ بِمَن فِي الْأَرْضِ أَمْ أَرَادَ بِهِمْ رَبُّهُمْ رَشَدًا {10}

और ये कि हम नहीं समझते कि उससे अहले ज़मीन के हक़ में बुराई मक़सूद है या उनके परवरदिगार ने उनकी भलाई का इरादा किया है (10)

तबारकल्लजी

وَأَنَّا مِنَّا الصَّالِحُونَ وَمِنَّا دُونَ ذَلِكَ كُنَّا طَرَائِقَ قِدَدًا {11}

और ये कि हममें से कुछ लोग तो नेकोकार हैं और कुछ लोग और तरह के हम लोगों के भी तो कई तरह के फिरकें हैं (11)

तबारकल्लजी

وَأَنَّا ظَنَنَّا أَن لَّن نُّعجِزَ اللَّهَ فِي الْأَرْضِ وَلَن نُّعْجِزَهُ هَرَبًا {12}

और ये कि हम समझते थे कि हम ज़मीन में (रह कर) ख़ुदा को हरगिज़ हरा नहीं सकते हैं और न भाग कर उसको आजिज़ कर सकते हैं (12)

तबारकल्लजी

وَأَنَّا لَمَّا سَمِعْنَا الْهُدَى آمَنَّا بِهِ فَمَن يُؤْمِن بِرَبِّهِ فَلَا يَخَافُ بَخْسًا وَلَا رَهَقًا {13}

और ये कि जब हमने हिदायत (की किताब) सुनी तो उन पर ईमान लाए तो जो शख़्स अपने परवरदिगार पर ईमान लाएगा तो उसको न नुक़सान का ख़ौफ़ है और न ज़़ुल्म का (13)

तबारकल्लजी

وَأَنَّا مِنَّا الْمُسْلِمُونَ وَمِنَّا الْقَاسِطُونَ فَمَنْ أَسْلَمَ فَأُوْلَئِكَ تَحَرَّوْا رَشَدًا {14}

और ये कि हम में से कुछ लोग तो फ़रमाबरदार हैं और कुछ लोग नाफ़रमान तो जो लोग फ़रमाबरदार हैं तो वह सीधे रास्ते पर चलें और रहें (14)

तबारकल्लजी

وَأَمَّا الْقَاسِطُونَ فَكَانُوا لِجَهَنَّمَ حَطَبًا {15}

नाफ़रमान तो वह जहन्नुम के कुन्दे बने (15)

तबारकल्लजी

وَأَلَّوِ اسْتَقَامُوا عَلَى الطَّرِيقَةِ لَأَسْقَيْنَاهُم مَّاء غَدَقًا {16}

और (ऐ रसूल तुम कह दो) कि अगर ये लोग सीधी राह पर क़ायम रहते तो हम ज़रूर उनको अलग़ारों पानी से सेराब करते (16)

तबारकल्लजी

لِنَفْتِنَهُمْ فِيهِ وَمَن يُعْرِضْ عَن ذِكْرِ رَبِّهِ يَسْلُكْهُ عَذَابًا صَعَدًا {17}

ताकि उससे उनकी आज़माईश करें और जो शख़्स अपने परवरदिगार की याद से मुँह मोड़ेगा तो वह उसको सख़्त अज़ाब में झोंक देगा (17)

तबारकल्लजी

وَأَنَّ الْمَسَاجِدَ لِلَّهِ فَلَا تَدْعُوا مَعَ اللَّهِ أَحَدًا {18}

और ये कि मस्जिदें ख़ास ख़ुदा की हैं तो लोगों ख़ुदा के साथ किसी की इबादन न करना (18)

तबारकल्लजी

وَأَنَّهُ لَمَّا قَامَ عَبْدُ اللَّهِ يَدْعُوهُ كَادُوا يَكُونُونَ عَلَيْهِ لِبَدًا {19}

और ये कि जब उसका बन्दा (मोहम्मद) उसकी इबादत को खड़ा होता है तो लोग उसके गिर्द हुजूम करके गिर पड़ते हैं (19)

तबारकल्लजी

قُلْ إِنَّمَا أَدْعُو رَبِّي وَلَا أُشْرِكُ بِهِ أَحَدًا {20}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो अपने परवरदिगार की इबादत करता हूँ और उसका किसी को शरीक नहीं बनाता (20) 

तबारकल्लजी

قُلْ إِنِّي لَا أَمْلِكُ لَكُمْ ضَرًّا وَلَا رَشَدًا {21}

(ये भी) कह दो कि मैं तुम्हारे हक़ में न बुराई ही का एख़्तेयार रखता हूँ और न भलाई का (21)

तबारकल्लजी

قُلْ إِنِّي لَن يُجِيرَنِي مِنَ اللَّهِ أَحَدٌ وَلَنْ أَجِدَ مِن دُونِهِ مُلْتَحَدًا {22}

(ये भी) कह दो कि मुझे ख़ुदा (के अज़ाब) से कोई भी पनाह नहीं दे सकता और न मैं उसके सिवा कहीं पनाह की जगह देखता हूँ (22)

तबारकल्लजी

إِلَّا بَلَاغًا مِّنَ اللَّهِ وَرِسَالَاتِهِ وَمَن يَعْصِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَإِنَّ لَهُ نَارَ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا {23}

ख़ुदा की तरफ़ से (एहकाम के) पहुँचा देने और उसके पैग़ामों के सिवा (कुछ नहीं कर सकता) और जिसने ख़ुदा और उसके रसूल की नाफ़रमानी की तो उसके लिए यक़ीनन जहन्नुम की आग है जिसमें वह हमेशा और अबादुल आबाद तक रहेगा (23)

तबारकल्लजी

حَتَّى إِذَا رَأَوْا مَا يُوعَدُونَ فَسَيَعْلَمُونَ مَنْ أَضْعَفُ نَاصِرًا وَأَقَلُّ عَدَدًا {24}

यहाँ तक कि जब ये लोग उन चीज़ों को देख लेंगे जिनका उनसे वायदा किया जाता है तो उनको मालूम हो जाएगा कि किसके मददगार कमज़ोर और किसका शुमार कम है (24)

तबारकल्लजी

قُلْ إِنْ أَدْرِي أَقَرِيبٌ مَّا تُوعَدُونَ أَمْ يَجْعَلُ لَهُ رَبِّي أَمَدًا {25}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं नहीं जानता कि जिस दिन का तुमसे वायदा किया जाता है क़रीब है या मेरे परवरदिगार ने उसकी मुद्दत दराज़ कर दी है (25)

तबारकल्लजी

عَالِمُ الْغَيْبِ فَلَا يُظْهِرُ عَلَى غَيْبِهِ أَحَدًا {26}

(वही) ग़ैबवाँ है और अपनी ग़ैब की बाते किसी पर ज़ाहिर नहीं करता (26)

तबारकल्लजी

إِلَّا مَنِ ارْتَضَى مِن رَّسُولٍ فَإِنَّهُ يَسْلُكُ مِن بَيْنِ يَدَيْهِ وَمِنْ خَلْفِهِ رَصَدًا {27}

मगर जिस पैग़म्बर को पसन्द फ़रमाए तो उसके आगे और पीछे निगेहबान फरिश्ते मुक़र्रर कर देता है (27)

तबारकल्लजी

لِيَعْلَمَ أَن قَدْ أَبْلَغُوا رِسَالَاتِ رَبِّهِمْ وَأَحَاطَ بِمَا لَدَيْهِمْ وَأَحْصَى كُلَّ شَيْءٍ عَدَدًا {28}

ताकि देख ले कि उन्होंने अपने परवरदिगार के पैग़ामात पहुँचा दिए और (यूँ तो) जो कुछ उनके पास है वह सब पर हावी है और उसने तो एक एक चीज़ गिन रखी हैं (28)

तबारकल्लजी

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

तबारकल्लजी

يَا أَيُّهَا الْمُزَّمِّلُ {1}

ऐ (मेरे) चादर लपेटे रसूल (1)

तबारकल्लजी

قُمِ اللَّيْلَ إِلَّا قَلِيلًا {2}

रात को (नमाज़ के वास्ते) खड़े रहो मगर (पूरी रात नहीं) (2)

तबारकल्लजी

نِصْفَهُ أَوِ انقُصْ مِنْهُ قَلِيلًا {3}

थोड़ी रात या आधी रात या इससे भी कुछ कम कर दो या उससे कुछ बढ़ा दो (3)

तबारकल्लजी

أَوْ زِدْ عَلَيْهِ وَرَتِّلِ الْقُرْآنَ تَرْتِيلًا {4}

और क़ुरआन को बाक़ायदा ठहर ठहर कर पढ़ा करो (4)

तबारकल्लजी

إِنَّا سَنُلْقِي عَلَيْكَ قَوْلًا ثَقِيلًا {5}

हम अनक़रीब तुम पर एक भारी हुक़्म नाजि़ल करेंगे इसमें शक नहीं कि रात को उठना (5)

तबारकल्लजी

إِنَّ نَاشِئَةَ اللَّيْلِ هِيَ أَشَدُّ وَطْءًا وَأَقْوَمُ قِيلًا {6}

ख़ूब (नफ़्स का) पामाल करना और बहुत ठिकाने से जि़क्र का वक़्त है (6)

तबारकल्लजी

إِنَّ لَكَ فِي اَلنَّهَارِ سَبْحًا طَوِيلًا {7}

दिन को तो तुम्हारे बहुत बड़े बड़े अशग़ाल हैं (7)

तबारकल्लजी

وَاذْكُرِ اسْمَ رَبِّكَ وَتَبَتَّلْ إِلَيْهِ تَبْتِيلًا {8}

तो तुम अपने परवरदिगार के नाम का जि़क्र करो और सबसे टूट कर उसी के हो रहो (8)

तबारकल्लजी

رَبُّ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ فَاتَّخِذْهُ وَكِيلًا {9}

(वही) मशरिक और मग़रिब का मालिक है उसके सिवा कोई माबूद नहीं तो तुम उसी को कारसाज़ बनाओ (9)

तबारकल्लजी

وَاصْبِرْ عَلَى مَا يَقُولُونَ وَاهْجُرْهُمْ هَجْرًا جَمِيلًا {10}

और जो कुछ लोग बका करते हैं उस पर सब्र करो और उनसे बा उनवाने शाएस्ता अलग थलग रहो (10)

तबारकल्लजी

وَذَرْنِي وَالْمُكَذِّبِينَ أُولِي النَّعْمَةِ وَمَهِّلْهُمْ قَلِيلًا {11}

और मुझे उन झुठलाने वालों से जो दौलतमन्द हैं समझ लेने दो और उनको थोड़ी सी मोहलत दे दो (11)

तबारकल्लजी

إِنَّ لَدَيْنَا أَنكَالًا وَجَحِيمًا {12}

बेशक हमारे पास बेडि़याँ (भी) हैं और जलाने वाली आग (भी) (12)

तबारकल्लजी

وَطَعَامًا ذَا غُصَّةٍ وَعَذَابًا أَلِيمًا {13}

और गले में फँसने वाला खाना (भी) और दुख देने वाला अज़ाब (भी) (13)

तबारकल्लजी

يَوْمَ تَرْجُفُ الْأَرْضُ وَالْجِبَالُ وَكَانَتِ الْجِبَالُ كَثِيبًا مَّهِيلًا {14}

जिस दिन ज़मीन और पहाड़ लरज़ने लगेंगे और पहाड़ रेत के टीले से भुर भुरे हो जाएँगे (14)

तबारकल्लजी

إِنَّا أَرْسَلْنَا إِلَيْكُمْ رَسُولًا شَاهِدًا عَلَيْكُمْ كَمَا أَرْسَلْنَا إِلَى فِرْعَوْنَ رَسُولًا {15}

(ऐ मक्का वालों) हमने तुम्हारे पास (उसी तरह) एक रसूल (मोहम्मद) को भेजा जो तुम्हारे मामले में गवाही दे जिस तरह फ़िरऔन के पास एक रसूल (मूसा) को भेजा था (15)

तबारकल्लजी

فَعَصَى فِرْعَوْنُ الرَّسُولَ فَأَخَذْنَاهُ أَخْذًا وَبِيلًا {16}

तो फ़िरऔन ने उस रसूल की नाफ़रमानी की तो हमने भी (उसकी सज़ा में) उसको बहुत सख़्त पकड़ा (16)

तबारकल्लजी

فَكَيْفَ تَتَّقُونَ إِن كَفَرْتُمْ يَوْمًا يَجْعَلُ الْوِلْدَانَ شِيبًا {17}

तो अगर तुम भी न मानोगे तो उस दिन (के अज़ाब) से क्यों कर बचोगे जो बच्चों को बूढ़ा बना देगा (17)

तबारकल्लजी

السَّمَاء مُنفَطِرٌ بِهِ كَانَ وَعْدُهُ مَفْعُولًا {18}

जिस दिन आसमान फट पड़ेगा (ये) उसका वायदा पूरा होकर रहेगा (18)

तबारकल्लजी

إِنَّ هَذِهِ تَذْكِرَةٌ فَمَن شَاء اتَّخَذَ إِلَى رَبِّهِ سَبِيلًا {19}

बेशक ये नसीहत है तो जो शख़्स चाहे अपने परवरदिगार की राह एख़्तेयार करे (19)

तबारकल्लजी

إِنَّ رَبَّكَ يَعْلَمُ أَنَّكَ تَقُومُ أَدْنَى مِن ثُلُثَيِ اللَّيْلِ وَنِصْفَهُ وَثُلُثَهُ وَطَائِفَةٌ مِّنَ الَّذِينَ مَعَكَ وَاللَّهُ يُقَدِّرُ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ عَلِمَ أَن لَّن تُحْصُوهُ فَتَابَ عَلَيْكُمْ فَاقْرَؤُوا مَا تَيَسَّرَ مِنَ الْقُرْآنِ عَلِمَ أَن سَيَكُونُ مِنكُم مَّرْضَى وَآخَرُونَ يَضْرِبُونَ فِي الْأَرْضِ يَبْتَغُونَ مِن فَضْلِ اللَّهِ وَآخَرُونَ يُقَاتِلُونَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ فَاقْرَؤُوا مَا تَيَسَّرَ مِنْهُ وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ وَأَقْرِضُوا اللَّهَ قَرْضًا حَسَنًا وَمَا تُقَدِّمُوا لِأَنفُسِكُم مِّنْ خَيْرٍ تَجِدُوهُ عِندَ اللَّهِ هُوَ خَيْرًا وَأَعْظَمَ أَجْرًا وَاسْتَغْفِرُوا اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ {20}

(ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार चाहता है कि तुम और तुम्हारे चन्द साथ के लोग (कभी) दो तिहाई रात के क़रीब और (कभी) आधी रात और (कभी) तिहाई रात (नमाज़ में) खड़े रहते हो और ख़ुदा ही रात और दिन का अच्छी तरह अन्दाज़ा कर सकता है उसे मालूम है कि तुम लोग उस पर पूरी तरह से हावी नहीं हो सकते तो उसने तुम पर मेहरबानी की तो जितना आसानी से हो सके उतना (नमाज़ में) क़ुरआन पढ़ लिया करो और वह जानता है कि अनक़रीब तुममें से बाज़ बीमार हो जाएँगे और बाज़ ख़ुदा के फ़ज़ल की तलाश में रूए ज़मीन पर सफ़र एख़्तेयार करेंगे और कुछ लोग ख़ुदा की राह में जेहाद करेंगे तो जितना तुम आसानी से हो सके पढ़ लिया करो और नमाज़ पाबन्दी से पढ़ो और ज़कात देते रहो और ख़ुदा को क़र्ज़े हसना दो और जो नेक अमल अपने वास्ते (ख़ुदा के सामने) पेश करोगे उसको ख़ुदा के हाँ बेहतर और सिले में बुज़ुर्ग तर पाओगे और ख़ुदा से मग़फे़रत की दुआ माँगो बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (20)

तबारकल्लजी

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

तबारकल्लजी

يَا أَيُّهَا الْمُدَّثِّرُ {1}

ऐ (मेरे) कपड़ा ओढ़ने वाले (रसूल) उठो (1)

तबारकल्लजी

قُمْ فَأَنذِرْ {2}

और लोगों को (अज़ाब से) डराओ (2)

तबारकल्लजी

وَرَبَّكَ فَكَبِّرْ {3}

और अपने परवरदिगार की बड़ाई करो (3)

तबारकल्लजी

وَثِيَابَكَ فَطَهِّرْ {4}

और अपने कपड़े पाक रखो (4)

तबारकल्लजी

وَالرُّجْزَ فَاهْجُرْ {5}

और गन्दगी से अलग रहो (5)

तबारकल्लजी

وَلَا تَمْنُن تَسْتَكْثِرُ {6}

और इसी तरह एहसान न करो कि ज़्यादा के ख़ास्तगार बनो (6)

तबारकल्लजी

وَلِرَبِّكَ فَاصْبِرْ {7}

और अपने परवरदिगार के लिए सब्र करो (7)

तबारकल्लजी

فَإِذَا نُقِرَ فِي النَّاقُورِ {8}

फिर जब सूर फूँका जाएगा (8)

तबारकल्लजी

فَذَلِكَ يَوْمَئِذٍ يَوْمٌ عَسِيرٌ {9}

तो वह दिन काफि़रों पर सख़्त दिन होगा (9)

तबारकल्लजी

عَلَى الْكَافِرِينَ غَيْرُ يَسِيرٍ {10}

आसान नहीं होगा (10)

तबारकल्लजी

ذَرْنِي وَمَنْ خَلَقْتُ وَحِيدًا {11}

(ऐ रसूल) मुझे और उस शख़्स को छोड़ दो जिसे मैने अकेला पैदा किया (11)

तबारकल्लजी

وَجَعَلْتُ لَهُ مَالًا مَّمْدُودًا {12}

और उसे बहुत सा माल दिया (12)

तबारकल्लजी

وَبَنِينَ شُهُودًا {13}

और नज़र के सामने रहने वाले बेटे (दिए) (13)

तबारकल्लजी

وَمَهَّدتُّ لَهُ تَمْهِيدًا {14}

और उसे हर तरह के सामान से वुसअत दी (14)

तबारकल्लजी

ثُمَّ يَطْمَعُ أَنْ أَزِيدَ {15}

फिर उस पर भी वह तमाअ रखता है कि मैं और बढ़ाऊँ (15)

तबारकल्लजी

كَلَّا إِنَّهُ كَانَ لِآيَاتِنَا عَنِيدًا {16}

ये हरगिज़ न होगा ये तो मेरी आयतों का दुशमन था (16)

तबारकल्लजी

سَأُرْهِقُهُ صَعُودًا {17}

तो मैं अनक़रीब उस सख़्त अज़ाब में मुब्तिला करूँगा (17)

तबारकल्लजी

إِنَّهُ فَكَّرَ وَقَدَّرَ {18}

उसने फ़िक्र की और ये तजवीज़ की (18)

तबारकल्लजी

فَقُتِلَ كَيْفَ قَدَّرَ {19}

तो ये (कम्बख़्त) मार डाला जाए (19)

तबारकल्लजी

ثُمَّ قُتِلَ كَيْفَ قَدَّرَ {20}

उसने क्यों कर तजवीज़ की (20)

तबारकल्लजी

ثُمَّ نَظَرَ {21}

फिर ग़ौर किया (21)

तबारकल्लजी

ثُمَّ عَبَسَ وَبَسَرَ {22}

फिर त्योरी चढ़ाई और मुँह बना लिया (22)

तबारकल्लजी

ثُمَّ أَدْبَرَ وَاسْتَكْبَرَ {23}

फिर पीठ फेर कर चला गया और अकड़ बैठा (23)

तबारकल्लजी

فَقَالَ إِنْ هَذَا إِلَّا سِحْرٌ يُؤْثَرُ {24}

फिर कहने लगा ये बस जादू है जो (अगलों से) चला आता है (24)

तबारकल्लजी

إِنْ هَذَا إِلَّا قَوْلُ الْبَشَرِ {25}

ये तो बस आदमी का कलाम है (25) 

तबारकल्लजी

سَأُصْلِيهِ سَقَرَ {26}

(ख़ुदा का नहीं) मैं उसे अनक़रीब जहन्नुम में झोंक दूँगा (26)

तबारकल्लजी

وَمَا أَدْرَاكَ مَا سَقَرُ {27}

और तुम क्या जानों कि जहन्नुम क्या है (27)

तबारकल्लजी

لَا تُبْقِي وَلَا تَذَرُ {28}

वह न बाक़ी रखेगी न छोड़ देगी (28)

तबारकल्लजी

لَوَّاحَةٌ لِّلْبَشَرِ {29}

और बदन को जला कर सियाह कर देगी (29)

तबारकल्लजी

عَلَيْهَا تِسْعَةَ عَشَرَ {30}

उस पर उन्नीस (फ़रिश्ते मुअय्यन) हैं (30)

तबारकल्लजी

وَمَا جَعَلْنَا أَصْحَابَ النَّارِ إِلَّا مَلَائِكَةً وَمَا جَعَلْنَا عِدَّتَهُمْ إِلَّا فِتْنَةً لِّلَّذِينَ كَفَرُوا لِيَسْتَيْقِنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ وَيَزْدَادَ الَّذِينَ آمَنُوا إِيمَانًا وَلَا يَرْتَابَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ وَالْمُؤْمِنُونَ وَلِيَقُولَ الَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ وَالْكَافِرُونَ مَاذَا أَرَادَ اللَّهُ بِهَذَا مَثَلًا كَذَلِكَ يُضِلُّ اللَّهُ مَن يَشَاء وَيَهْدِي مَن يَشَاء وَمَا يَعْلَمُ جُنُودَ رَبِّكَ إِلَّا هُوَ وَمَا هِيَ إِلَّا ذِكْرَى لِلْبَشَرِ {31}

और हमने जहन्नुम का निगेहबान तो बस फरिश्तों को बनाया है और उनका ये शुमार भी काफ़िरों की आज़माइश के लिए मुक़र्रर किया ताकि एहले किताब (फौरन) यक़ीन कर लें और मोमिनो का ईमान और ज़्यादा हो और अहले किताब और मोमिनीन (किसी तरह) शक न करें और जिन लोगों के दिल में (निफ़ाक का) मर्ज़ है (वह) और काफ़िर लोग कह बैठे कि इस मसल (के बयान करने) से ख़ुदा का क्या मतलब है यूँ ख़ुदा जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसे चाहता है हिदायत करता है और तुम्हारे परवरदिगार के लशकरों को उसके सिवा कोई नहीं जानता और ये तो आदमियों के लिए बस नसीहत है (31)

तबारकल्लजी

كَلَّا وَالْقَمَرِ {32}

सुन रखो (हमें) चाँद की क़सम (32)

तबारकल्लजी

وَاللَّيْلِ إِذْ أَدْبَرَ {33}

और रात की जब जाने लगे (33)

तबारकल्लजी

وَالصُّبْحِ إِذَا أَسْفَرَ {34}

और सुबह की जब रौशन हो जाए (34)

तबारकल्लजी

إِنَّهَا لَإِحْدَى الْكُبَرِ {35}

कि वह (जहन्नुम) भी एक बहुत बड़ी (आफ़त) है (35)

तबारकल्लजी

نَذِيرًا لِّلْبَشَرِ {36}

(और) लोगों के डराने वाली है (36)

तबारकल्लजी

لِمَن شَاء مِنكُمْ أَن يَتَقَدَّمَ أَوْ يَتَأَخَّرَ {37}

(सबके लिए नही बल्कि) तुममें से वह जो शख़्स (नेकी की तरफ़) आगे बढ़ना (37)

तबारकल्लजी

كُلُّ نَفْسٍ بِمَا كَسَبَتْ رَهِينَةٌ {38}

और (बुराई से) पीछे हटना चाहे हर शख़्स अपने आमाल के बदले गिर्द है (38)

तबारकल्लजी

إِلَّا أَصْحَابَ الْيَمِينِ {39}

मगर दाहिने हाथ (में नामए अमल लेने) वाले (39)

तबारकल्लजी

فِي جَنَّاتٍ يَتَسَاءلُونَ {40}

(बेहिश्त के) बाग़ों में गुनेहगारों से बाहम पूछ रहे होंगे (40) 

तबारकल्लजी

عَنِ الْمُجْرِمِينَ {41}

कि आखि़र तुम्हें दोज़ख़ में कौन सी चीज़ (घसीट) लायी (41)

तबारकल्लजी

مَا سَلَكَكُمْ فِي سَقَرَ {42}

वह लोग कहेंगे (42)

तबारकल्लजी

قَالُوا لَمْ نَكُ مِنَ الْمُصَلِّينَ {43}

कि हम न तो नमाज़ पढ़ा करते थे (43)

तबारकल्लजी

وَلَمْ نَكُ نُطْعِمُ الْمِسْكِينَ {44}

और न मोहताजों को खाना खिलाते थे (44)

तबारकल्लजी

وَكُنَّا نَخُوضُ مَعَ الْخَائِضِينَ {45}

और एहले बातिल के साथ हम भी बड़े काम में घुस पड़ते थे (45)

तबारकल्लजी

وَكُنَّا نُكَذِّبُ بِيَوْمِ الدِّينِ {46}

और रोज़ जज़ा को झुठलाया करते थे (और यूँ ही रहे) (46)

तबारकल्लजी

حَتَّى أَتَانَا الْيَقِينُ {47}

यहाँ तक कि हमें मौत आ गयी (47) 

तबारकल्लजी

فَمَا تَنفَعُهُمْ شَفَاعَةُ الشَّافِعِينَ {48}

तो (उस वक़्त) उन्हें सिफ़ारिश करने वालों की सिफ़ारिश कुछ काम न आएगी (48)

तबारकल्लजी

فَمَا لَهُمْ عَنِ التَّذْكِرَةِ مُعْرِضِينَ {49}

और उन्हें क्या हो गया है कि नसीहत से मुँह मोड़े हुए हैं (49)

तबारकल्लजी

كَأَنَّهُمْ حُمُرٌ مُّسْتَنفِرَةٌ {50}

गोया वह वहशी गधे हैं (50)

तबारकल्लजी

فَرَّتْ مِن قَسْوَرَةٍ {51}

कि शेर से (दुम दबा कर) भागते हैं (51)

तबारकल्लजी

بَلْ يُرِيدُ كُلُّ امْرِئٍ مِّنْهُمْ أَن يُؤْتَى صُحُفًا مُّنَشَّرَةً {52}

असल ये है कि उनमें से हर शख़्स इसका मुतमइनी है कि उसे खुली हुयी (आसमानी) किताबें अता की जाएँ (52)

तबारकल्लजी

كَلَّا بَل لَا يَخَافُونَ الْآخِرَةَ {53}

ये तो हरगिज़ न होगा बल्कि ये तो आख़ेरत ही से नहीं डरते (53)

तबारकल्लजी

كَلَّا إِنَّهُ تَذْكِرَةٌ {54}

हाँ हाँ बेशक ये (क़ुरआन सरा सर) नसीहत है (54)

तबारकल्लजी

فَمَن شَاء ذَكَرَهُ {55}

तो जो चाहे उसे याद रखे (55)

तबारकल्लजी

وَمَا يَذْكُرُونَ إِلَّا أَن يَشَاء اللَّهُ هُوَ أَهْلُ التَّقْوَى وَأَهْلُ الْمَغْفِرَةِ {56}

और ख़ुदा की मशीयत के बग़ैर ये लोग याद रखने वाले नहीं वही (बन्दों के) डराने के क़ाबिल और बक़शिश का मालिक है (56)

तबारकल्लजी

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

तबारकल्लजी

لَا أُقْسِمُ بِيَوْمِ الْقِيَامَةِ {1}

मैं रोजे़ क़यामत की क़सम खाता हूँ (1)

तबारकल्लजी

وَلَا أُقْسِمُ بِالنَّفْسِ اللَّوَّامَةِ {2}

(और बुराई से) मलामत करने वाले जी की क़सम खाता हूँ (कि तुम सब दोबारा) ज़रूर जि़न्दा किए जाओगे (2)

तबारकल्लजी

أَيَحْسَبُ الْإِنسَانُ أَلَّن نَجْمَعَ عِظَامَهُ {3}

क्या इन्सान ये ख़्याल करता है (कि हम उसकी हड्डियों को बोसीदा होने के बाद) जमा न करेंगे हाँ (ज़रूर करेंगें) (3)

तबारकल्लजी

بَلَى قَادِرِينَ عَلَى أَن نُّسَوِّيَ بَنَانَهُ {4}

हम इस पर क़ादिर हैं कि हम उसकी पोर पोर दुरूस्त करें (4)

तबारकल्लजी

بَلْ يُرِيدُ الْإِنسَانُ لِيَفْجُرَ أَمَامَهُ {5}

मगर इन्सान तो ये जानता है कि अपने आगे भी (हमेशा) बुराई करता जाए (5)

तबारकल्लजी

يَسْأَلُ أَيَّانَ يَوْمُ الْقِيَامَةِ {6}

पूछता है कि क़यामत का दिन कब होगा (6)

तबारकल्लजी

فَإِذَا بَرِقَ الْبَصَرُ {7}

तो जब आँखे चकाचैन्ध में आ जाएँगी (7)

तबारकल्लजी

وَخَسَفَ الْقَمَرُ {8}

और चाँद गहन में लग जाएगा (8)

तबारकल्लजी

وَجُمِعَ الشَّمْسُ وَالْقَمَرُ {9}

और सूरज और चाँद इकट्ठा कर दिए जाएँगे (9)

तबारकल्लजी

يَقُولُ الْإِنسَانُ يَوْمَئِذٍ أَيْنَ الْمَفَرُّ {10}

तो इन्सान कहेगा आज कहाँ भाग कर जाऊँ (10)

तबारकल्लजी

كَلَّا لَا وَزَرَ {11}

यक़ीन जानों कहीं पनाह नहीं (11)

तबारकल्लजी

إِلَى رَبِّكَ يَوْمَئِذٍ الْمُسْتَقَرُّ {12}

उस रोज़ तुम्हारे परवरदिगार ही के पास ठिकाना है (12)

तबारकल्लजी

يُنَبَّأُ الْإِنسَانُ يَوْمَئِذٍ بِمَا قَدَّمَ وَأَخَّرَ {13}

उस दिन आदमी को जो कुछ उसके आगे पीछे किया है बता दिया जाएगा (13)

तबारकल्लजी

بَلِ الْإِنسَانُ عَلَى نَفْسِهِ بَصِيرَةٌ {14}

बल्कि इन्सान तो अपने ऊपर आप गवाह है (14)

तबारकल्लजी

وَلَوْ أَلْقَى مَعَاذِيرَهُ {15}

अगरचे वह अपने गुनाहों की उज्र व ज़रूर माज़ेरत पढ़ा करता रहे (15)

तबारकल्लजी

لَا تُحَرِّكْ بِهِ لِسَانَكَ لِتَعْجَلَ بِهِ {16}

(ऐ रसूल) वही के जल्दी याद करने वास्ते अपनी ज़बान को हरकत न दो (16)

तबारकल्लजी

إِنَّ عَلَيْنَا جَمْعَهُ وَقُرْآنَهُ {17}

उसका जमा कर देना और पढ़वा देना तो यक़ीनी हमारे जि़म्मे है (17)

तबारकल्लजी

فَإِذَا قَرَأْنَاهُ فَاتَّبِعْ قُرْآنَهُ {18}

तो जब हम उसको (जिबरील की ज़बानी) पढ़ें तो तुम भी (पूरा) सुनने के बाद इसी तरह पढ़ा करो (18)

तबारकल्लजी

ثُمَّ إِنَّ عَلَيْنَا بَيَانَهُ {19}

फिर उस (के मुश्किलात का समझा देना भी हमारे जि़म्में है) (19)

तबारकल्लजी

كَلَّا بَلْ تُحِبُّونَ الْعَاجِلَةَ {20}

मगर (लोगों) हक़ तो ये है कि तुम लोग दुनिया को दोस्त रखते हो (20)

तबारकल्लजी

وَتَذَرُونَ الْآخِرَةَ {21}

और आख़ेरत को छोड़े बैठे हो (21)

तबारकल्लजी

وُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ نَّاضِرَةٌ {22}

उस रोज़ बहुत से चेहरे तो तरो ताज़ा बशशाश होंगे (22)

तबारकल्लजी

إِلَى رَبِّهَا نَاظِرَةٌ {23}

(और) अपने परवरदिगार (की नेअमत) को देख रहे होंगे (23)

तबारकल्लजी

وَوُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ بَاسِرَةٌ {24}

और बहुतेरे मुँह उस दिन उदास होंगे (24)

तबारकल्लजी

تَظُنُّ أَن يُفْعَلَ بِهَا فَاقِرَةٌ {25}

समझ रहें हैं कि उन पर मुसीबत पड़ने वाली है कि कमर तोड़ देगी (25)

तबारकल्लजी

كَلَّا إِذَا بَلَغَتْ التَّرَاقِيَ {26}

सुन लो जब जान (बदन से खिंच के) हँसली तक आ पहुँचेगी (26)

तबारकल्लजी

وَقِيلَ مَنْ رَاقٍ {27}

और कहा जाएगा कि (इस वक़्त) कोई झाड़ फूँक करने वाला है (27)

तबारकल्लजी

وَظَنَّ أَنَّهُ الْفِرَاقُ {28}

और मरने वाले ने समझा कि अब (सबसे) जुदाई है (28)

तबारकल्लजी

وَالْتَفَّتِ السَّاقُ بِالسَّاقِ {29}

और (मौत की तकलीफ़ से) पिन्डली से पिन्डली लिपट जाएगी (29)

तबारकल्लजी

إِلَى رَبِّكَ يَوْمَئِذٍ الْمَسَاقُ {30}

उस दिन तुमको अपने परवरदिगार की बारगाह में चलना है (30)

तबारकल्लजी

فَلَا صَدَّقَ وَلَا صَلَّى {31}

तो उसने (ग़फलत में) न (कलामे ख़ुदा की) तसदीक़ की न नमाज़ पढ़ी (31)

तबारकल्लजी

وَلَكِن كَذَّبَ وَتَوَلَّى {32}

मगर झुठलाया और (ईमान से) मुँह फेरा (32)

तबारकल्लजी

ثُمَّ ذَهَبَ إِلَى أَهْلِهِ يَتَمَطَّى {33}

अपने घर की तरफ़ इतराता हुआ चला (33)

तबारकल्लजी

أَوْلَى لَكَ فَأَوْلَى {34}

अफ़सोस है तुझ पर फिर अफ़सोस है फिर तुफ़ है (34)

तबारकल्लजी

ثُمَّ أَوْلَى لَكَ فَأَوْلَى {35}

तुझ पर फिर तुफ़ है (35)

तबारकल्लजी

أَيَحْسَبُ الْإِنسَانُ أَن يُتْرَكَ سُدًى {36}

क्या इन्सान ये समझता है कि वह यूँ ही छोड़ दिया जाएगा (36)

तबारकल्लजी

أَلَمْ يَكُ نُطْفَةً مِّن مَّنِيٍّ يُمْنَى {37}

क्या वह (इब्तेदन) मनी का एक क़तरा न था जो रहम में डाली जाती है (37)

तबारकल्लजी

ثُمَّ كَانَ عَلَقَةً فَخَلَقَ فَسَوَّى {38}

फिर लोथड़ा हुआ फिर ख़ुदा ने उसे बनाया (38)

तबारकल्लजी

فَجَعَلَ مِنْهُ الزَّوْجَيْنِ الذَّكَرَ وَالْأُنثَى {39}

फिर उसे दुरूस्त किया फिर उसकी दो किस्में बनायीं (एक) मर्द और (एक) औरत (39)

तबारकल्लजी

أَلَيْسَ ذَلِكَ بِقَادِرٍ عَلَى أَن يُحْيِيَ الْمَوْتَى {40}

क्या इस पर क़ादिर नहीं कि (क़यामत में) मुर्दों को जि़न्दा कर दे (40)

तबारकल्लजी

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

तबारकल्लजी

هَلْ أَتَى عَلَى الْإِنسَانِ حِينٌ مِّنَ الدَّهْرِ لَمْ يَكُن شَيْئًا مَّذْكُورًا {1}

बेशक इन्सान पर एक ऐसा वक़्त आ चुका है कि वह कोई चीज़ क़ाबिले जि़क्र न था (1)

तबारकल्लजी

إِنَّا خَلَقْنَا الْإِنسَانَ مِن نُّطْفَةٍ أَمْشَاجٍ نَّبْتَلِيهِ فَجَعَلْنَاهُ سَمِيعًا بَصِيرًا {2}

हमने इन्सान को मख़लूत नुत्फे़ से पैदा किया कि उसे आज़माये तो हमने उसे सुनता देखता बनाया (2)

तबारकल्लजी

إِنَّا هَدَيْنَاهُ السَّبِيلَ إِمَّا شَاكِرًا وَإِمَّا كَفُورًا {3}

और उसको रास्ता भी दिखा दिया (अब वह) ख़्वाह शुक्र गुज़ार हो ख़्वाह न शुक्रा (3)

तबारकल्लजी

إِنَّا أَعْتَدْنَا لِلْكَافِرِينَ سَلَاسِلَا وَأَغْلَالًا وَسَعِيرًا {4}

हमने काफि़रों के ज़ंजीरे, तौक और दहकती हुयी आग तैयार कर रखी है (4)

तबारकल्लजी

إِنَّ الْأَبْرَارَ يَشْرَبُونَ مِن كَأْسٍ كَانَ مِزَاجُهَا كَافُورًا {5}

बेशक नेकोकार लोग शराब के वह सागर पियेंगे जिसमें काफू़र की आमेजि़श होगी ये एक चश्मा है जिसमें से ख़ुदा के (ख़ास) बन्दे पियेंगे (5)

तबारकल्लजी

عَيْنًا يَشْرَبُ بِهَا عِبَادُ اللَّهِ يُفَجِّرُونَهَا تَفْجِيرًا {6}

और जहाँ चाहेंगे बहा ले जाएँगे (6)

तबारकल्लजी

يُوفُونَ بِالنَّذْرِ وَيَخَافُونَ يَوْمًا كَانَ شَرُّهُ مُسْتَطِيرًا {7}

ये वह लोग हैं जो नज़रें पूरी करते हैं और उस दिन से जिनकी सख़्ती हर तरह फैली होगी डरते हैं (7)

तबारकल्लजी

وَيُطْعِمُونَ الطَّعَامَ عَلَى حُبِّهِ مِسْكِينًا وَيَتِيمًا وَأَسِيرًا {8}

और उसकी मोहब्बत में मोहताज और यतीम और असीर को खाना खिलाते हैं (8)

तबारकल्लजी

إِنَّمَا نُطْعِمُكُمْ لِوَجْهِ اللَّهِ لَا نُرِيدُ مِنكُمْ جَزَاء وَلَا شُكُورًا {9}

(और कहते हैं कि) हम तो तुमको बस ख़ालिस ख़ुदा के लिए खिलाते हैं हम न तुम से बदले के ख़ास्तगार हैं और न शुक्र गुज़ारी के (9)

तबारकल्लजी

إِنَّا نَخَافُ مِن رَّبِّنَا يَوْمًا عَبُوسًا قَمْطَرِيرًا {10}

हमको तो अपने परवरदिगार से उस दिन का डर है जिसमें मुँह बन जाएँगे (और) चेहरे पर हवाइयाँ उड़ती होंगी (10)

तबारकल्लजी

فَوَقَاهُمُ اللَّهُ شَرَّ ذَلِكَ الْيَوْمِ وَلَقَّاهُمْ نَضْرَةً وَسُرُورًا {11}

तो ख़ुदा उन्हें उस दिन की तकलीफ़ से बचा लेगा और उनको ताज़गी और ख़ुशदिली अता फ़रमाएगा (11)

तबारकल्लजी

وَجَزَاهُم بِمَا صَبَرُوا جَنَّةً وَحَرِيرًا {12}

और उनके सब्र के बदले (बेहिश्त के) बाग़ और रेशम (की पोशाक) अता फ़रमाएगा (12)

तबारकल्लजी

مُتَّكِئِينَ فِيهَا عَلَى الْأَرَائِكِ لَا يَرَوْنَ فِيهَا شَمْسًا وَلَا زَمْهَرِيرًا {13}

वहाँ वह तख़्तों पर तकिए लगाए (बैठे) होंगे न वहाँ (आफ़ताब की) धूप देखेंगे और न शिद्दत की सर्दी (13)

तबारकल्लजी

وَدَانِيَةً عَلَيْهِمْ ظِلَالُهَا وَذُلِّلَتْ قُطُوفُهَا تَذْلِيلًا {14}

और घने दरख़्तों के साए उन पर झुके हुए होंगे और मेवों के गुच्छे उनके बहुत क़रीब हर तरह उनके एख़्तेयार में (14)

तबारकल्लजी

وَيُطَافُ عَلَيْهِم بِآنِيَةٍ مِّن فِضَّةٍ وَأَكْوَابٍ كَانَتْ قَوَارِيرَا {15}

और उनके सामने चाँदी के साग़र और शीशे के निहायत शफ़्फ़ाफ़ गिलास का दौर चल रहा होगा (15)

तबारकल्लजी

قَوَارِيرَ مِن فِضَّةٍ قَدَّرُوهَا تَقْدِيرًا {16}

और शीशे भी (काँच के नहीं) चाँदी के जो ठीक अन्दाज़े के मुताबिक बनाए गए हैं (16)

तबारकल्लजी

وَيُسْقَوْنَ فِيهَا كَأْسًا كَانَ مِزَاجُهَا زَنجَبِيلًا {17}

और वहाँ उन्हें ऐसी शराब पिलाई जाएगी जिसमें जनजबील (के पानी) की आमेजि़श होगी (17)

तबारकल्लजी

عَيْنًا فِيهَا تُسَمَّى سَلْسَبِيلًا {18}

ये बेहश्त में एक चश्मा है जिसका नाम सलसबील है (18)

तबारकल्लजी

وَيَطُوفُ عَلَيْهِمْ وِلْدَانٌ مُّخَلَّدُونَ إِذَا رَأَيْتَهُمْ حَسِبْتَهُمْ لُؤْلُؤًا مَّنثُورًا {19}

और उनके सामने हमेशा एक हालत पर रहने वाले नौजवाल लड़के चक्कर लगाते होंगे कि जब तुम उनको देखो तो समझो कि बिखरे हुए मोती हैं (19)

तबारकल्लजी

وَإِذَا رَأَيْتَ ثَمَّ رَأَيْتَ نَعِيمًا وَمُلْكًا كَبِيرًا {20}

और जब तुम वहाँ निगाह उठाओगे तो हर तरह की नेअमत और अज़ीमुशशान सल्तनत देखोगे (20)

तबारकल्लजी

عَالِيَهُمْ ثِيَابُ سُندُسٍ خُضْرٌ وَإِسْتَبْرَقٌ وَحُلُّوا أَسَاوِرَ مِن فِضَّةٍ وَسَقَاهُمْ رَبُّهُمْ شَرَابًا طَهُورًا {21}

उनके ऊपर सब्ज़ क्रेब और अतलस की पोशाक होगी और उन्हें चाँदी के कंगन पहनाए जाएँगे और उनका परवरदिगार उन्हें निहायत पाकीज़ा शाराब पिलाएगा (21)

तबारकल्लजी

إِنَّ هَذَا كَانَ لَكُمْ جَزَاء وَكَانَ سَعْيُكُم مَّشْكُورًا {22}

ये यक़ीनी तुम्हारे लिए होगा और तुम्हारी (कारगुज़ारियों के) सिले में और तुम्हारी कोशिश क़ाबिले शुक्र गुज़ारी है (22) 

तबारकल्लजी

إِنَّا نَحْنُ نَزَّلْنَا عَلَيْكَ الْقُرْآنَ تَنزِيلًا {23}

(ऐ रसूल) हमने तुम पर क़ुरआन को रफ़्ता रफ़्ता करके नाजि़ल किया (23)

तबारकल्लजी

فَاصْبِرْ لِحُكْمِ رَبِّكَ وَلَا تُطِعْ مِنْهُمْ آثِمًا أَوْ كَفُورًا {24}

तो तुम अपने परवरदिगार के हुक्म के इन्तज़ार में सब्र किए रहो और उन लोगों में से गुनाहगार और नाशुक्रे की पैरवी न करना (24)

तबारकल्लजी

وَاذْكُرِ اسْمَ رَبِّكَ بُكْرَةً وَأَصِيلًا {25}

सुबह शाम अपने परवरदिगार का नाम लेते रहो (25)

तबारकल्लजी

وَمِنَ اللَّيْلِ فَاسْجُدْ لَهُ وَسَبِّحْهُ لَيْلًا طَوِيلًا {26}

और कुछ रात गए उसका सजदा करो और बड़ी रात तक उसकी तस्बीह करते रहो (26)

तबारकल्लजी

إِنَّ هَؤُلَاء يُحِبُّونَ الْعَاجِلَةَ وَيَذَرُونَ وَرَاءهُمْ يَوْمًا ثَقِيلًا {27}

ये लोग यक़ीनन दुनिया को पसन्द करते हैं और बड़े भारी दिन को अपने पसे पुश्त छोड़ बैठे हैं (27)

तबारकल्लजी

نَحْنُ خَلَقْنَاهُمْ وَشَدَدْنَا أَسْرَهُمْ وَإِذَا شِئْنَا بَدَّلْنَا أَمْثَالَهُمْ تَبْدِيلًا {28}

हमने उनको पैदा किया और उनके आज़ा को मज़बूत बनाया और अगर हम चाहें तो उनके बदले उन्हीं के जैसे लोग ले आएँ (28)

तबारकल्लजी

إِنَّ هَذِهِ تَذْكِرَةٌ فَمَن شَاء اتَّخَذَ إِلَى رَبِّهِ سَبِيلًا {29}

बेशक ये कु़रआन सरासर नसीहत है तो जो शख़्स चाहे अपने परवरदिगार की राह ले (29)

तबारकल्लजी

وَمَا تَشَاؤُونَ إِلَّا أَن يَشَاء اللَّهُ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمًا {30}

और जब तक ख़ुदा को मंज़ूर न हो तुम लोग कुछ भी चाह नहीं सकते बेशक ख़ुदा बड़ा वाकि़फकार दाना है (30)

तबारकल्लजी

يُدْخِلُ مَن يَشَاء فِي رَحْمَتِهِ وَالظَّالِمِينَ أَعَدَّ لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا {31}

जिसको चाहे अपनी रहमत में दाखि़ल कर ले और ज़ालिमों के वास्ते उसने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है (31)

तबारकल्लजी

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

तबारकल्लजी

وَالْمُرْسَلَاتِ عُرْفًا {1}

हवाओं की क़सम जो (पहले) धीमी चलती हैं (1)

तबारकल्लजी

فَالْعَاصِفَاتِ عَصْفًا {2}

फिर ज़ोर पकड़ के आँधी हो जाती हैं (2)

तबारकल्लजी

وَالنَّاشِرَاتِ نَشْرًا {3}

और (बादलों को) उभार कर फैला देती हैं (3)

तबारकल्लजी

فَالْفَارِقَاتِ فَرْقًا {4}

फिर (उनको) फाड़ कर जुदा कर देती हैं (4)

तबारकल्लजी

فَالْمُلْقِيَاتِ ذِكْرًا {5}

फिर फरिश्तों की क़सम जो वही लाते हैं (5)

तबारकल्लजी

عُذْرًا أَوْ نُذْرًا {6}

ताकि हुज्जत तमाम हो और डरा दिया जाए (6)

तबारकल्लजी

إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَوَاقِعٌ {7}

कि जिस बात का तुमसे वायदा किया जाता है वह ज़रूर होकर रहेगा (7)

तबारकल्लजी

فَإِذَا النُّجُومُ طُمِسَتْ {8}

फिर जब तारों की चमक जाती रहेगी (8)

तबारकल्लजी

وَإِذَا السَّمَاء فُرِجَتْ {9}

और जब आसमान फट जाएगा (9)

तबारकल्लजी

وَإِذَا الْجِبَالُ نُسِفَتْ {10}

और जब पहाड़ (रूई की तरह) उड़े उड़े फिरेंगे (10)

तबारकल्लजी

وَإِذَا الرُّسُلُ أُقِّتَتْ {11}

और जब पैग़म्बर लोग एक मुअय्यन वक़्त पर जमा किए जाएँगे (11)

तबारकल्लजी

لِأَيِّ يَوْمٍ أُجِّلَتْ {12}

(फिर) भला इन (बातों) में किस दिन के लिए ताख़ीर की गयी है (12)

तबारकल्लजी

لِيَوْمِ الْفَصْلِ {13}

फ़ैसले के दिन के लिए (13)

तबारकल्लजी

وَمَا أَدْرَاكَ مَا يَوْمُ الْفَصْلِ {14}

और तुमको क्या मालूम की फ़ैसले का दिन क्या है (14)

तबारकल्लजी

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ {15}

उस दिन झुठलाने वालों की मिट्टी ख़राब है (15)

तबारकल्लजी

أَلَمْ نُهْلِكِ الْأَوَّلِينَ {16}

क्या हमने अगलों को हलाक नहीं किया (16)

तबारकल्लजी

ثُمَّ نُتْبِعُهُمُ الْآخِرِينَ {17}

फिर उनके पीछे पीछे पिछलों को भी चलता करेंगे (17)

तबारकल्लजी

كَذَلِكَ نَفْعَلُ بِالْمُجْرِمِينَ {18}

हम गुनेहगारों के साथ ऐसा ही किया करते हैं (18)

तबारकल्लजी

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ {19}

उस दिन झुठलाने वालों की मिट्टी ख़राब है (19)

तबारकल्लजी

أَلَمْ نَخْلُقكُّم مِّن مَّاء مَّهِينٍ {20}

क्या हमने तुमको ज़लील पानी (मनी) से पैदा नहीं किया (20)

तबारकल्लजी

فَجَعَلْنَاهُ فِي قَرَارٍ مَّكِينٍ {21}

फिर हमने उसको एक मुअय्यन वक़्त तक (21)

तबारकल्लजी

إِلَى قَدَرٍ مَّعْلُومٍ {22}

एक महफूज़ मक़ाम (रहम) में रखा (22)

तबारकल्लजी

فَقَدَرْنَا فَنِعْمَ الْقَادِرُونَ {23}

फिर (उसका) एक अन्दाज़ा मुक़र्रर किया तो हम कैसा अच्छा अन्दाज़ा मुक़र्रर करने वाले हैं (23)

तबारकल्लजी

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ {24}

उन दिन झुठलाने वालों की ख़राबी है (24)

तबारकल्लजी

أَلَمْ نَجْعَلِ الْأَرْضَ كِفَاتًا {25}

क्या हमने ज़मीन को जि़न्दों और मुर्दों को समेटने वाली नहीं बनाया (25)

तबारकल्लजी

أَحْيَاء وَأَمْوَاتًا {26}

और उसमें ऊँचे ऊँचे अटल पहाड़ रख दिए (26)

तबारकल्लजी

وَجَعَلْنَا فِيهَا رَوَاسِيَ شَامِخَاتٍ وَأَسْقَيْنَاكُم مَّاء فُرَاتًا {27}

और तुम लोगों को मीठा पानी पिलाया (27)

तबारकल्लजी

وَيْلٌ يوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ {28}

उस दिन झुठलाने वालों की ख़राबी है (28)

तबारकल्लजी

انطَلِقُوا إِلَى مَا كُنتُم بِهِ تُكَذِّبُونَ {29}

जिस चीज़ को तुम झुठलाया करते थे अब उसकी तरफ़ चलो (29)

तबारकल्लजी

انطَلِقُوا إِلَى ظِلٍّ ذِي ثَلَاثِ شُعَبٍ {30}

(धुएँ के) साये की तरफ़ चलो जिसके तीन हिस्से हैं (30) 

तबारकल्लजी

لَا ظَلِيلٍ وَلَا يُغْنِي مِنَ اللَّهَبِ {31}

जिसमें न ठन्डक है और न जहन्नुम की लपक से बचाएगा (31)

तबारकल्लजी

إِنَّهَا تَرْمِي بِشَرَرٍ كَالْقَصْرِ {32}

उससे इतने बड़े बड़े अँगारे बरसते होंगे जैसे महल (32)

तबारकल्लजी

كَأَنَّهُ جِمَالَتٌ صُفْرٌ {33}

गोया ज़र्द रंग के ऊँट हैं (33)

तबारकल्लजी

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ {34}

उस दिन झुठलाने वालों की ख़राबी है (34)

तबारकल्लजी

هَذَا يَوْمُ لَا يَنطِقُونَ {35}

ये वह दिन होगा कि लोग लब तक न हिला सकेंगे (35)

तबारकल्लजी

وَلَا يُؤْذَنُ لَهُمْ فَيَعْتَذِرُونَ {36}

और उनको इजाज़त दी जाएगी कि कुछ उज्र माअज़ेरत कर सकें (36)

तबारकल्लजी

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ {37}

उस दिन झुठलाने वालों की तबाही है (37)

तबारकल्लजी

هَذَا يَوْمُ الْفَصْلِ جَمَعْنَاكُمْ وَالْأَوَّلِينَ {38}

यही फैसले का दिन है (जिस में) हमने तुमको और अगलों को इकट्ठा किया है (38)

तबारकल्लजी

فَإِن كَانَ لَكُمْ كَيْدٌ فَكِيدُونِ {39}

तो अगर तुम्हें कोई दाँव करना हो तो आओ चल चुको (39)

तबारकल्लजी

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ {40}

उस दिन झुठलाने वालों की ख़राबी है (40)

तबारकल्लजी

إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي ظِلَالٍ وَعُيُونٍ {41}

बेशक परहेज़गार लोग (दरख़्तों की) घनी छाँव में होंगे (41)

तबारकल्लजी

وَفَوَاكِهَ مِمَّا يَشْتَهُونَ {42}

और चश्मों और आदमियों में जो उन्हें मरग़ूब हो (42)

तबारकल्लजी

كُلُوا وَاشْرَبُوا هَنِيئًا بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ {43}

(दुनिया में) जो अमल करते थे उसके बदले में मज़े से खाओ पियो (43)

तबारकल्लजी

إِنَّا كَذَلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنينَ {44}

मुबारक हम नेकोकारों को ऐसा ही बदला दिया करते हैं (44)

तबारकल्लजी

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ {45}

उस दिन झुठलाने वालों की ख़राबी है (45)

तबारकल्लजी

كُلُوا وَتَمَتَّعُوا قَلِيلًا إِنَّكُم مُّجْرِمُونَ {46}

(झुठलाने वालों) चन्द दिन चैन से खा पी लो तुम बेशक गुनेहगार हो (46)

तबारकल्लजी

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ {47}

उस दिन झुठलाने वालों की मिट्टी ख़राब है (47)

तबारकल्लजी

وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ ارْكَعُوا لَا يَرْكَعُونَ {48}

और जब उनसे कहा जाता है कि रूकूउ करों तो रूकूउ नहीं करते (48)

तबारकल्लजी

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ {49}

उस दिन झुठलाने वालों की ख़राबी है (49)

तबारकल्लजी

فَبِأَيِّ حَدِيثٍ بَعْدَهُ يُؤْمِنُونَ {50}

अब इसके बाद ये किस बात पर ईमान लाएँगे (50)