Quran पारा 27
काला फ़मा खत्बुकुम
قَالَ فَمَا خَطْبُكُمْ أَيُّهَا الْمُرْسَلُونَ {31}
तब इबराहीम ने पूछा कि (ऐ ख़ुदा के) भेजे हुए फ़रिश्तों आखि़र तुम्हें क्या मुहिम दर पेश है (31)
काला फ़मा खत्बुकुम
قَالُوا إِنَّا أُرْسِلْنَا إِلَى قَوْمٍ مُّجْرِمِينَ {32}
वह बोले हम तो गुनाहगारों (क़ौमे लूत) की तरफ़ भेजे गए हैं (32)
काला फ़मा खत्बुकुम
لِنُرْسِلَ عَلَيْهِمْ حِجَارَةً مِّن طِينٍ {33}
ताकि उन पर मिटटी के पथरीले खरन्जे बरसाएँ (33 th)
काला फ़मा खत्बुकुम
مُسَوَّمَةً عِندَ رَبِّكَ لِلْمُسْرِفِينَ {34}
जिन पर हद से बढ़ जाने वालों के लिए तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से निशान लगा दिए गए हैं (34)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَأَخْرَجْنَا مَن كَانَ فِيهَا مِنَ الْمُؤْمِنِينَ {35}
ग़रज़ वहाँ जितने लोग मोमिनीन थे उनको हमने निकाल दिया (35)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَمَا وَجَدْنَا فِيهَا غَيْرَ بَيْتٍ مِّنَ الْمُسْلِمِينَ {36}
और वहाँ तो हमने एक के सिवा मुसलमानों का कोई घर पाया भी नहीं (36)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَتَرَكْنَا فِيهَا آيَةً لِّلَّذِينَ يَخَافُونَ الْعَذَابَ الْأَلِيمَ {37}
और जो लोग दर्दनाक अज़ाब से डरते हैं उनके लिए वहाँ (इबरत की) निशानी छोड़ दी और मूसा (के हाल) में भी (निशानी है) (37)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَفِي مُوسَى إِذْ أَرْسَلْنَاهُ إِلَى فِرْعَوْنَ بِسُلْطَانٍ مُّبِينٍ {38}
जब हमने उनको फ़िरऔन के पास खुला हुआ मौजिज़ा देकर भेजा (38)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَتَوَلَّى بِرُكْنِهِ وَقَالَ سَاحِرٌ أَوْ مَجْنُونٌ {39}
तो उसने अपने लशकर के बिरते पर मुँह मोड़ लिया और कहने लगा ये तो (अच्छा ख़ासा) जादूगर या सौदाई है (39)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَأَخَذْنَاهُ وَجُنُودَهُ فَنَبَذْنَاهُمْ فِي الْيَمِّ وَهُوَ مُلِيمٌ {40}
तो हमने उसको और उसके लशकर को ले डाला फिर उन सबको दरिया में पटक दिया (40)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَفِي عَادٍ إِذْ أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمُ الرِّيحَ الْعَقِيمَ {41}
और वह तो क़ाबिले मलामत काम करता ही था और आद की क़ौम (के हाल) में भी निशानी है हमने उन पर एक बे बरकत आँधी चलायी (41)
काला फ़मा खत्बुकुम
مَا تَذَرُ مِن شَيْءٍ أَتَتْ عَلَيْهِ إِلَّا جَعَلَتْهُ كَالرَّمِيمِ {42}
कि जिस चीज़ पर चलती उसको बोसीदा हडडी की तरह रेज़ा रेज़ा किए बग़ैर न छोड़ती (42)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَفِي ثَمُودَ إِذْ قِيلَ لَهُمْ تَمَتَّعُوا حَتَّى حِينٍ {43}
और समूद (के हाल) में भी (क़ुदरत की निशानी) है जब उससे कहा गया कि एक ख़ास वक़्त तक ख़ूब चैन कर लो (43)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَعَتَوْا عَنْ أَمْرِ رَبِّهِمْ فَأَخَذَتْهُمُ الصَّاعِقَةُ وَهُمْ يَنظُرُونَ {44}
तो उन्होने अपने परवरदिगार के हुक्म से सरकशी की तो उन्हें एक रोज़ कड़क और बिजली ने ले डाला और देखते ही रह गए (44)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَمَا اسْتَطَاعُوا مِن قِيَامٍ وَمَا كَانُوا مُنتَصِرِينَ {45}
फिर न वह उठने की ताक़त रखते थे और न बदला ही ले सकते थे (45)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَقَوْمَ نُوحٍ مِّن قَبْلُ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ {46}
और (उनसे) पहले (हम) नूह की क़ौम को (हलाक कर चुके थे) बेशक वह बदकार लोग थे (46)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَالسَّمَاء بَنَيْنَاهَا بِأَيْدٍ وَإِنَّا لَمُوسِعُونَ {47}
और हमने आसमानों को अपने बल बूते से बनाया और बेशक हममें सब क़ुदरत है (47)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَالْأَرْضَ فَرَشْنَاهَا فَنِعْمَ الْمَاهِدُونَ {48}
और ज़मीन को भी हम ही ने बिछाया तो हम कैसे अच्छे बिछाने वाले हैं (48)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَمِن كُلِّ شَيْءٍ خَلَقْنَا زَوْجَيْنِ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ {49}
और हम ही ने हर चीज़ की दो दो कि़स्में बनायीं ताकि तुम लोग नसीहत हासिल करो (49)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَفِرُّوا إِلَى اللَّهِ إِنِّي لَكُم مِّنْهُ نَذِيرٌ مُّبِينٌ {50}
तो ख़ुदा ही की तरफ़ भागो मैं तुमको यक़ीनन उसकी तरफ़ से खुल्लम खुल्ला डराने वाला हूँ (50)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلَا تَجْعَلُوا مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ إِنِّي لَكُم مِّنْهُ نَذِيرٌ مُّبِينٌ {51}
और ख़ुदा के साथ दूसरा माबूद न बनाओ मैं तुमको यक़ीनन उसकी तरफ़ से खुल्लम खुल्ला डराने वाला हूँ (51)
काला फ़मा खत्बुकुम
كَذَلِكَ مَا أَتَى الَّذِينَ مِن قَبْلِهِم مِّن رَّسُولٍ إِلَّا قَالُوا سَاحِرٌ أَوْ مَجْنُونٌ {52}
इसी तरह उनसे पहले लोगों के पास जो पैग़म्बर आता तो वह उसको जादूगर कहते या सिड़ी दीवाना (बताते) (52)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَتَوَاصَوْا بِهِ بَلْ هُمْ قَوْمٌ طَاغُونَ {53}
ये लोग एक दूसरे को ऐसी बात की वसीयत करते आते हैं (नहीं) बल्कि ये लोग हैं ही सरकश (53)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَتَوَلَّ عَنْهُمْ فَمَا أَنتَ بِمَلُومٍ {54}
तो (ऐ रसूल) तुम इनसे मुँह फेर लो तुम पर तो कुछ इल्ज़ाम नहीं है (54)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَذَكِّرْ فَإِنَّ الذِّكْرَى تَنفَعُ الْمُؤْمِنِينَ {55}
और नसीहत किए जाओ क्योंकि नसीहत मोमिनीन को फ़ायदा देती है (55)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَمَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَالْإِنسَ إِلَّا لِيَعْبُدُونِ {56}
और मैने जिनों और आदमियों को इसी ग़रज़ से पैदा किया कि वह मेरी इबादत करें (56)
काला फ़मा खत्बुकुम
مَا أُرِيدُ مِنْهُم مِّن رِّزْقٍ وَمَا أُرِيدُ أَن يُطْعِمُونِ {57}
न तो मैं उनसे रोज़ी का तालिब हूँ और न ये चाहता हूँ कि मुझे खाना खिलाएँ (57)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنَّ اللَّهَ هُوَ الرَّزَّاقُ ذُو الْقُوَّةِ الْمَتِينُ {58}
ख़ुदा ख़ुद बड़ा रोज़ी देने वाला ज़ोरावर (और) ज़बरदस्त है (58)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَإِنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا ذَنُوبًا مِّثْلَ ذَنُوبِ أَصْحَابِهِمْ فَلَا يَسْتَعْجِلُونِ {59}
तो (इन) ज़ालिमों के वास्ते भी अज़ाब का कुछ हिस्सा है जिस तरह उनके साथियों के लिए हिस्सा था तो इनको हम से जल्दी न करनी चाहिए (59)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَوَيْلٌ لِّلَّذِينَ كَفَرُوا مِن يَوْمِهِمُ الَّذِي يُوعَدُونَ {60}
तो जिस दिन का इन काफि़रों से वायदा किया जाता है इससे इनके लिए ख़राबी है (60)
काला फ़मा खत्बुकुम
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
काला फ़मा खत्बुकुम
وَالطُّورِ {1}
(कोहे) तूर की क़सम (1)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَكِتَابٍ مَّسْطُورٍ {2}
और उसकी किताब (लौहे महफूज़) की (2)
काला फ़मा खत्बुकुम
فِي رَقٍّ مَّنشُورٍ {3}
जो क़ुशादा औराक़ में लिखी हुयी है (3)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَالْبَيْتِ الْمَعْمُورِ {4}
और बैतुल मामूर की (जो काबा के सामने फ़रिश्तों का कि़ब्ला है) (4)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَالسَّقْفِ الْمَرْفُوعِ {5}
और ऊँची छत (आसमान) की (5)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَالْبَحْرِ الْمَسْجُورِ {6}
और जोश व ख़रोश वाले समुन्द्र की (6)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنَّ عَذَابَ رَبِّكَ لَوَاقِعٌ {7}
कि तुम्हारे परवरदिगार का अज़ाब बेशक वाके़ए होकर रहेगा (7)
काला फ़मा खत्बुकुम
مَا لَهُ مِن دَافِعٍ {8}
(और) इसका कोई रोकने वाला नहीं (8)
काला फ़मा खत्बुकुम
يَوْمَ تَمُورُ السَّمَاء مَوْرًا {9}
जिस दिन आसमान चक्कर खाने लगेगा (9)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَتَسِيرُ الْجِبَالُ سَيْرًا {10}
और पहाड़ उड़ने लागेंगें(10)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَوَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ {11}
तो उस दिन झुठलाने वालों की ख़राबी है (11)
काला फ़मा खत्बुकुम
الَّذِينَ هُمْ فِي خَوْضٍ يَلْعَبُونَ {12}
जो लोग बातिल में पड़े खेल रहे हैं (12)
काला फ़मा खत्बुकुम
يَوْمَ يُدَعُّونَ إِلَى نَارِ جَهَنَّمَ دَعًّا {13}
जिस दिन जहन्नुम की आग की तरफ़ उनको ढकेल ढकेल ले जाएँगे (13)
काला फ़मा खत्बुकुम
هَذِهِ النَّارُ الَّتِي كُنتُم بِهَا تُكَذِّبُونَ {14}
(और उनसे कहा जाएगा) यही वह जहन्नुम है जिसे तुम झुठलाया करते थे (14)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَفَسِحْرٌ هَذَا أَمْ أَنتُمْ لَا تُبْصِرُونَ {15}
तो क्या ये जादू है या तुमको नज़र ही नहीं आता (15)
काला फ़मा खत्बुकुम
اصْلَوْهَا فَاصْبِرُوا أَوْ لَا تَصْبِرُوا سَوَاء عَلَيْكُمْ إِنَّمَا تُجْزَوْنَ مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ {16}
इसी में घुसो फिर सब्र करो या बेसबरी करो (दोनों) तुम्हारे लिए यकसाँ हैं तुम्हें तो बस उन्हीं कामों का बदला मिलेगा जो तुम किया करते थे (16)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَنَعِيمٍ {17}
बेशक परहेज़गार लोग बाग़ों और नेअमतों में होंगे (17)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَاكِهِينَ بِمَا آتَاهُمْ رَبُّهُمْ وَوَقَاهُمْ رَبُّهُمْ عَذَابَ الْجَحِيمِ {18}
जो (जो नेअमतें) उनके परवरदिगार ने उन्हें दी हैं उनके मज़े ले रहे हैं और उनका परवरदिगार उन्हें दोज़ख़ के अज़ाब से बचाएगा (18)
काला फ़मा खत्बुकुम
كُلُوا وَاشْرَبُوا هَنِيئًا بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ {19}
जो जो कारगुज़ारियाँ तुम कर चुके हो उनके सिले में (आराम से) तख़्तों पर जो बराबर बिछे हुए हैं (19)
काला फ़मा खत्बुकुम
مُتَّكِئِينَ عَلَى سُرُرٍ مَّصْفُوفَةٍ وَزَوَّجْنَاهُم بِحُورٍ عِينٍ {20}
तकिए लगाकर ख़ूब मज़े से खाओ पियो और हम बड़ी बड़ी आँखों वाली हूर से उनका ब्याह रचाएँगे (20)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَالَّذِينَ آمَنُوا وَاتَّبَعَتْهُمْ ذُرِّيَّتُهُم بِإِيمَانٍ أَلْحَقْنَا بِهِمْ ذُرِّيَّتَهُمْ وَمَا أَلَتْنَاهُم مِّنْ عَمَلِهِم مِّن شَيْءٍ كُلُّ امْرِئٍ بِمَا كَسَبَ رَهِينٌ {21}
और जिन लोगों ने ईमान क़़ुबूल किया और उनकी औलाद ने भी ईमान में उनका साथ दिया तो हम उनकी औलाद को भी उनके दर्जे पहुँचा देंगे और हम उनकी कारगुज़ारियों में से कुछ भी कम न करेंगे हर शख़्स अपने आमाल के बदले में गिरवी है (21)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَمْدَدْنَاهُم بِفَاكِهَةٍ وَلَحْمٍ مِّمَّا يَشْتَهُونَ {22}
और जिस कि़स्म के मेवे और गोश्त को उनका जी चाहेगा हम उन्हें बढ़ाकर अता करेंगे (22)
काला फ़मा खत्बुकुम
يَتَنَازَعُونَ فِيهَا كَأْسًا لَّا لَغْوٌ فِيهَا وَلَا تَأْثِيمٌ {23}
वहाँ एक दूसरे से शराब का जाम ले लिया करेंगे जिसमें न कोई बेहूदगी है और न गुनाह (23)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَيَطُوفُ عَلَيْهِمْ غِلْمَانٌ لَّهُمْ كَأَنَّهُمْ لُؤْلُؤٌ مَّكْنُونٌ {24}
(और खि़दमत के लिए) नौजवान लड़के उनके आस पास चक्कर लगाया करेंगे वह (हुस्न व जमाल में) गोया एहतियात से रखे हुए मोती हैं (24)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلَى بَعْضٍ يَتَسَاءلُونَ {25}
और एक दूसरे की तरफ रूख़ करके (लुत्फ़ की) बातें करेंगे (25)
काला फ़मा खत्बुकुम
قَالُوا إِنَّا كُنَّا قَبْلُ فِي أَهْلِنَا مُشْفِقِينَ {26}
(उनमें से कुछ) कहेंगे कि हम इससे पहले अपने घर में (ख़ुदा से बहुत) डरा करते थे (26)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَمَنَّ اللَّهُ عَلَيْنَا وَوَقَانَا عَذَابَ السَّمُومِ {27}
तो ख़ुदा ने हम पर बड़ा एहसान किया और हमको (जहन्नुम की) लौ के अज़ाब से बचा लिया (27)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنَّا كُنَّا مِن قَبْلُ نَدْعُوهُ إِنَّهُ هُوَ الْبَرُّ الرَّحِيمُ {28}
इससे क़ब्ल हम उनसे दुआएँ किया करते थे बेशक वह एहसान करने वाला मेहरबान है (28)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَذَكِّرْ فَمَا أَنتَ بِنِعْمَتِ رَبِّكَ بِكَاهِنٍ وَلَا مَجْنُونٍ {29}
तो (ऐ रसूल) तुम नसीहत किए जाओ तो तुम अपने परवरदिगार के फज़ल से न काहिन हो और न मजनून किया (29)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَمْ يَقُولُونَ شَاعِرٌ نَّتَرَبَّصُ بِهِ رَيْبَ الْمَنُونِ {30}
क्या (तुमको) ये लोग कहते हैं कि (ये) शायर हैं (और) हम तो उसके बारे में ज़माने के हवादिस का इन्तेज़ार कर रहे हैं (30)
काला फ़मा खत्बुकुम
قُلْ تَرَبَّصُوا فَإِنِّي مَعَكُم مِّنَ الْمُتَرَبِّصِينَ {31}
तुम कह दो कि (अच्छा) तुम भी इन्तेज़ार करो मैं भी इन्तेज़ार करता हूँ (31)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَمْ تَأْمُرُهُمْ أَحْلَامُهُم بِهَذَا أَمْ هُمْ قَوْمٌ طَاغُونَ {32}
क्या उनकी अक़्लें उन्हें ये (बातें) बताती हैं या ये लोग हैं ही सरकश (32)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَمْ يَقُولُونَ تَقَوَّلَهُ بَل لَّا يُؤْمِنُونَ {33}
क्या ये लोग कहते हैं कि इसने क़ुरान ख़ुद गढ़ लिया है बात ये है कि ये लोग ईमान ही नहीं रखते (33)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَلْيَأْتُوا بِحَدِيثٍ مِّثْلِهِ إِن كَانُوا صَادِقِينَ {34}
तो अगर ये लोग सच्चे हैं तो ऐसा ही कलाम बना तो लाएँ (34)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَمْ خُلِقُوا مِنْ غَيْرِ شَيْءٍ أَمْ هُمُ الْخَالِقُونَ {35}
क्या ये लोग किसी के (पैदा किये) बग़ैर ही पैदा हो गए हैं या यही लोग (मक़लूक़ात के) पैदा करने वाले हैं (35)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَمْ خَلَقُوا السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بَل لَّا يُوقِنُونَ {36}
या इन्होने ही ने सारे आसमान व ज़मीन पैदा किए हैं (नहीं) बल्कि ये लोग यक़ीन ही नहीं रखते (36)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَمْ عِندَهُمْ خَزَائِنُ رَبِّكَ أَمْ هُمُ الْمُصَيْطِرُونَ {37}
क्या तुम्हारे परवरदिगार के ख़ज़ाने इन्हीं के पास हैं या यही लोग हाकिम हैं (37)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَمْ لَهُمْ سُلَّمٌ يَسْتَمِعُونَ فِيهِ فَلْيَأْتِ مُسْتَمِعُهُم بِسُلْطَانٍ مُّبِينٍ {38}
या उनके पास कोई सीढ़ी है जिस पर (चढ़ कर आसमान से) सुन आते हैं जो सुन आया करता हो तो वह कोई सरीही दलील पेश करे (38)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَمْ لَهُ الْبَنَاتُ وَلَكُمُ الْبَنُونَ {39}
क्या ख़ुदा के लिए बेटियाँ हैं और तुम लोगों के लिए बेटे (39)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَمْ تَسْأَلُهُمْ أَجْرًا فَهُم مِّن مَّغْرَمٍ مُّثْقَلُونَ {40}
या तुम उनसे (तबलीग़े रिसालत की) उजरत माँगते हो कि ये लोग क़र्ज़ के बोझ से दबे जाते हैं (40)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَمْ عِندَهُمُ الْغَيْبُ فَهُمْ يَكْتُبُونَ {41}
या इन लोगों के पास ग़ैब (का इल्म) है कि वह लिख लेते हैं (41)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَمْ يُرِيدُونَ كَيْدًا فَالَّذِينَ كَفَرُوا هُمُ الْمَكِيدُونَ {42}
या ये लोग कुछ दाँव चलाना चाहते हैं तो जो लोग काफि़र हैं वह ख़ुद अपने दांव में फँसे हैं (42)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَمْ لَهُمْ إِلَهٌ غَيْرُ اللَّهِ سُبْحَانَ اللَّهِ عَمَّا يُشْرِكُونَ {43}
या ख़ुदा के सिवा इनका कोई (दूसरा) माबूद है जिन चीज़ों को ये लोग (ख़ुदा का) शरीक बनाते हैं वह उससे पाक और पाक़ीज़ा है (43)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَإِن يَرَوْا كِسْفًا مِّنَ السَّمَاء سَاقِطًا يَقُولُوا سَحَابٌ مَّرْكُومٌ {44}
और अगर ये लोग आसमान से कोई अज़ाब (अज़ाब का) टुकड़ा गिरते हुए देखें तो बोल उठेंगे ये तो दलदार बादल है (44)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَذَرْهُمْ حَتَّى يُلَاقُوا يَوْمَهُمُ الَّذِي فِيهِ يُصْعَقُونَ {45}
तो (ऐ रसूल) तुम इनको इनकी हालत पर छोड़ दो यहाँ तक कि वह जिसमें ये बेहोश हो जाएँगे (45)
काला फ़मा खत्बुकुम
يَوْمَ لَا يُغْنِي عَنْهُمْ كَيْدُهُمْ شَيْئًا وَلَا هُمْ يُنصَرُونَ {46}
इनके सामने आ जाए जिस दिन न इनकी मक्कारी ही कुछ काम आएगी और न इनकी मदद ही की जाएगी (46)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَإِنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا عَذَابًا دُونَ ذَلِكَ وَلَكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ {47}
और इसमें शक नहीं कि ज़ालिमों के लिए इसके अलावा और भी अज़ाब है मगर उनमें बहुतेरे नहीं जानते हैं (47)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَاصْبِرْ لِحُكْمِ رَبِّكَ فَإِنَّكَ بِأَعْيُنِنَا وَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ حِينَ تَقُومُ {48}
और (ऐ रसूल) तुम अपने परवरदिगार के हुक्म से इन्तेज़ार में सब्र किए रहो तो तुम बिल्कुल हमारी निगेहदाश्त में हो तो जब तुम उठा करो तो अपने परवरदिगार की हम्द की तस्बीह किया करो (48)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَمِنَ اللَّيْلِ فَسَبِّحْهُ وَإِدْبَارَ النُّجُومِ {49}
और कुछ रात को भी और सितारों के ग़़ुरूब होने के बाद तस्बीह किया करो (49)
काला फ़मा खत्बुकुम
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
काला फ़मा खत्बुकुम
وَالنَّجْمِ إِذَا هَوَى {1}
तारे की क़सम जब टूटा (1)
काला फ़मा खत्बुकुम
مَا ضَلَّ صَاحِبُكُمْ وَمَا غَوَى {2}
कि तुम्हारे रफ़ीक़ (मोहम्मद) न गुमराह हुए और न बहके (2)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَمَا يَنطِقُ عَنِ الْهَوَى {3}
और वह तो अपनी नफ़सियानी ख़्वाहिश से कुछ भी नहीं कहते (3)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنْ هُوَ إِلَّا وَحْيٌ يُوحَى {4}
ये तो बस वही है जो भेजी जाती है (4)
काला फ़मा खत्बुकुम
عَلَّمَهُ شَدِيدُ الْقُوَى {5}
इनको निहायत ताक़तवर (फ़रिश्ते जिबरील) ने तालीम दी है (5)
काला फ़मा खत्बुकुम
ذُو مِرَّةٍ فَاسْتَوَى {6}
जो बड़ा ज़बरदस्त है और जब ये (आसमान के) ऊँचे (मुशरक़ो) किनारे पर था तो वह अपनी (असली सूरत में) सीधा खड़ा हुआ (6)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَهُوَ بِالْأُفُقِ الْأَعْلَى {7}
फिर करीब हो (और आगे) बढ़ा (7)
काला फ़मा खत्बुकुम
ثُمَّ دَنَا فَتَدَلَّى {8}
(फिर जिबरील व मोहम्मद में) दो कमान का फ़ासला रह गया (8)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَكَانَ قَابَ قَوْسَيْنِ أَوْ أَدْنَى {9}
बल्कि इससे भी क़रीब था (9)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَأَوْحَى إِلَى عَبْدِهِ مَا أَوْحَى {10}
ख़ुदा ने अपने बन्दे की तरफ जो ‘वही’ भेजी सो भेजी (10)
काला फ़मा खत्बुकुम
مَا كَذَبَ الْفُؤَادُ مَا رَأَى {11}
तो जो कुछ उन्होने देखा उनके दिल ने झूठ न जाना (11)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَفَتُمَارُونَهُ عَلَى مَا يَرَى {12}
तो क्या वह (रसूल) जो कुछ देखता है तुम लोग उसमें झगड़ते हो (12)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلَقَدْ رَآهُ نَزْلَةً أُخْرَى {13}
और उन्होने तो उस (जिबरील) को एक बार (शबे मेराज) और देखा है (13)
काला फ़मा खत्बुकुम
عِندَ سِدْرَةِ الْمُنْتَهَى {14}
सिदरतुल मुनतहा के नज़दीक (14)
काला फ़मा खत्बुकुम
عِندَهَا جَنَّةُ الْمَأْوَى {15}
उसी के पास तो रहने की बेहिश्त है (15)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِذْ يَغْشَى السِّدْرَةَ مَا يَغْشَى {16}
जब छा रहा था सिदरा पर जो छा रहा था (16)
काला फ़मा खत्बुकुम
مَا زَاغَ الْبَصَرُ وَمَا طَغَى {17}
(उस वक़्त भी) उनकी आँख न तो और तरफ़ माएल हुयी और न हद से आगे बढ़ी (17)
काला फ़मा खत्बुकुम
لَقَدْ رَأَى مِنْ آيَاتِ رَبِّهِ الْكُبْرَى {18}
और उन्होने यक़ीनन अपने परवरदिगार (की क़ुदरत) की बड़ी बड़ी निशानियाँ देखीं (18)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَفَرَأَيْتُمُ اللَّاتَ وَالْعُزَّى {19}
तो भला तुम लोगों ने लात व उज़्ज़ा और तीसरे पिछले मनात को देखा (19)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَمَنَاةَ الثَّالِثَةَ الْأُخْرَى {20}
(भला ये ख़ुदा हो सकते हैं) (20)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَلَكُمُ الذَّكَرُ وَلَهُ الْأُنثَى {21}
क्या तुम्हारे तो बेटे हैं और उसके लिए बेटियाँ (21)
काला फ़मा खत्बुकुम
تِلْكَ إِذًا قِسْمَةٌ ضِيزَى {22}
ये तो बहुत बेइन्साफ़ी की तक़सीम है (22)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنْ هِيَ إِلَّا أَسْمَاء سَمَّيْتُمُوهَا أَنتُمْ وَآبَاؤُكُم مَّا أَنزَلَ اللَّهُ بِهَا مِن سُلْطَانٍ إِن يَتَّبِعُونَ إِلَّا الظَّنَّ وَمَا تَهْوَى الْأَنفُسُ وَلَقَدْ جَاءهُم مِّن رَّبِّهِمُ الْهُدَى {23}
ये तो बस सिर्फ़ नाम ही नाम है जो तुमने और तुम्हारे बाप दादाओं ने गढ़ लिए हैं, ख़ुदा ने तो इसकी कोई सनद नाजि़ल नहीं की ये लोग तो बस अटकल और अपनी नफ़सानी ख़्वाहिश के पीछे चल रहे हैं हालाँकि उनके पास उनके परवरदिगार की तरफ़ से हिदायत भी आ चुकी है (23)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَمْ لِلْإِنسَانِ مَا تَمَنَّى {24}
क्या जिस चीज़ की इन्सान तमन्ना करे वह उसे ज़रूर मिलती है (24)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَلِلَّهِ الْآخِرَةُ وَالْأُولَى {25}
आख़ेरत और दुनिया तो ख़ास ख़ुदा ही के एख़्तेयार में हैं (25)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَكَم مِّن مَّلَكٍ فِي السَّمَاوَاتِ لَا تُغْنِي شَفَاعَتُهُمْ شَيْئًا إِلَّا مِن بَعْدِ أَن يَأْذَنَ اللَّهُ لِمَن يَشَاء وَيَرْضَى {26}
और आसमानों में बहुत से फ़रिश्ते हैं जिनकी सिफ़ारिश कुछ भी काम न आती, मगर ख़ुदा जिसके लिए चाहे इजाज़त दे दे और पसन्द करे उसके बाद (सिफ़ारिश कर सकते हैं) (26)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ لَيُسَمُّونَ الْمَلَائِكَةَ تَسْمِيَةَ الْأُنثَى {27}
जो लोग आख़ेरत पर ईमान नहीं रखते वह फ़रिश्ते के नाम रखते हैं औरतों के से नाम हालाँकि उन्हें इसकी कुछ ख़बर नहीं (27)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَمَا لَهُم بِهِ مِنْ عِلْمٍ إِن يَتَّبِعُونَ إِلَّا الظَّنَّ وَإِنَّ الظَّنَّ لَا يُغْنِي مِنَ الْحَقِّ شَيْئًا {28}
वह लोग तो बस गुमान (ख़्याल) के पीछे चल रहे हैं, हालाँकि गुमान यक़ीन के बदले में कुछ भी काम नहीं आया करता, (28)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَأَعْرِضْ عَن مَّن تَوَلَّى عَن ذِكْرِنَا وَلَمْ يُرِدْ إِلَّا الْحَيَاةَ الدُّنْيَا {29}
तो जो हमारी याद से रदगिरदानी करे ओर सिर्फ़ दुनिया की जि़न्दगी ही का तालिब हो तुम भी उससे मुँह फेर लो (29)
काला फ़मा खत्बुकुम
ذَلِكَ مَبْلَغُهُم مِّنَ الْعِلْمِ إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعْلَمُ بِمَن ضَلَّ عَن سَبِيلِهِ وَهُوَ أَعْلَمُ بِمَنِ اهْتَدَى {30}
उनके इल्म की यही इन्तिहा है तुम्हारा परवरदिगार, जो उसके रास्ते से भटक गया उसको भी ख़ूब जानता है, और जो राहे रास्त पर है उनसे भी ख़ूब वाकि़फ है (30)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ لِيَجْزِيَ الَّذِينَ أَسَاؤُوا بِمَا عَمِلُوا وَيَجْزِيَ الَّذِينَ أَحْسَنُوا بِالْحُسْنَى {31}
और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा ही का है, ताकि जिन लोगों ने बुराई की हो उनको उनकी कारस्तानियों की सज़ा दे और जिन लोगों ने नेकी की है (उनकी नेकी की जज़ा दे) (31)
काला फ़मा खत्बुकुम
الَّذِينَ يَجْتَنِبُونَ كَبَائِرَ الْإِثْمِ وَالْفَوَاحِشَ إِلَّا اللَّمَمَ إِنَّ رَبَّكَ وَاسِعُ الْمَغْفِرَةِ هُوَ أَعْلَمُ بِكُمْ إِذْ أَنشَأَكُم مِّنَ الْأَرْضِ وَإِذْ أَنتُمْ أَجِنَّةٌ فِي بُطُونِ أُمَّهَاتِكُمْ فَلَا تُزَكُّوا أَنفُسَكُمْ هُوَ أَعْلَمُ بِمَنِ اتَّقَى {32}
जो सग़ीरा गुनाहों के सिवा कबीरा गुनाहों से और बेहयाई की बातों से बचे रहते हैं बेशक तुम्हारा परवरदिगार बड़ी बख्शिश वाला है वही तुमको ख़ूब जानता है जब उसने तुमको मिटटी से पैदा किया और जब तुम अपनी माँ के पेट में बच्चे थे तो (तकब्बुर) से अपने नफ़्स की पाकीज़गी न जताया करो जो परहेज़गार है उसको वह ख़ूब जानता है (32)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَفَرَأَيْتَ الَّذِي تَوَلَّى {33}
भला (ऐ रसूल) तुमने उस शख़्स को भी देखा जिसने रदगिरदानी की (33)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَعْطَى قَلِيلًا وَأَكْدَى {34}
और थोड़ा सा (ख़ुदा की राह में) दिया और फिर बन्द कर दिया (34)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَعِندَهُ عِلْمُ الْغَيْبِ فَهُوَ يَرَى {35}
क्या उसके पास इल्मे ग़ैब है कि वह देख रहा है (35)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَمْ لَمْ يُنَبَّأْ بِمَا فِي صُحُفِ مُوسَى {36}
क्या उसको उन बातों की ख़बर नहीं पहुँची जो मूसा के सहीफ़ों में है (36)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَإِبْرَاهِيمَ الَّذِي وَفَّى {37}
और इबराहीम के (सहीफ़ों में) (37)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَلَّا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَى {38}
जिन्होने (अपना हक़) (पूरा अदा) किया इन सहीफ़ों में ये है, कि कोई शख़्स दूसरे (के गुनाह) का बोझ नहीं उठाएगा (38)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَن لَّيْسَ لِلْإِنسَانِ إِلَّا مَا سَعَى {39}
और ये कि इन्सान को वही मिलता है जिसकी वह कोशिश करता है (39)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَنَّ سَعْيَهُ سَوْفَ يُرَى {40}
और ये कि उनकी कोशिश अनक़रीब ही (क़यामत में) देखी जाएगी (40)
काला फ़मा खत्बुकुम
ثُمَّ يُجْزَاهُ الْجَزَاء الْأَوْفَى {41}
फिर उसका पूरा पूरा बदला दिया जाएगा (41)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَنَّ إِلَى رَبِّكَ الْمُنتَهَى {42}
और ये कि (सबको आखि़र) तुम्हारे परवरदिगार ही के पास पहुँचना है (42)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَنَّهُ هُوَ أَضْحَكَ وَأَبْكَى {43}
और ये कि वही हँसाता और रूलाता है (43)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَنَّهُ هُوَ أَمَاتَ وَأَحْيَا {44}
और ये कि वही मारता और जिलाता है (44)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَنَّهُ خَلَقَ الزَّوْجَيْنِ الذَّكَرَ وَالْأُنثَى {45}
और ये कि वही नर और मादा दो किस्म (के हैवान) नुत्फे से जब (रहम में) डाला जाता है (45)
काला फ़मा खत्बुकुम
مِن نُّطْفَةٍ إِذَا تُمْنَى {46}
पैदा करता है (46)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَنَّ عَلَيْهِ النَّشْأَةَ الْأُخْرَى {47}
और ये कि उसी पर (कयामत में) दोबारा उठाना लाजि़म है (47)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَنَّهُ هُوَ أَغْنَى وَأَقْنَى {48}
और ये कि वही मालदार बनाता है और सरमाया अता करता है, (48)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَنَّهُ هُوَ رَبُّ الشِّعْرَى {49}
और ये कि वही शोअराए का मालिक है (49)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَنَّهُ أَهْلَكَ عَادًا الْأُولَى {50}
और ये कि उसी ने पहले (क़ौमे) आद को हलाक किया (50)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَثَمُودَ فَمَا أَبْقَى {51}
और समूद को भी ग़रज़ किसी को बाक़ी न छोड़ा (51)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَقَوْمَ نُوحٍ مِّن قَبْلُ إِنَّهُمْ كَانُوا هُمْ أَظْلَمَ وَأَطْغَى {52}
और (उसके) पहले नूह की क़ौम को बेशक ये लोग बड़े ही ज़ालिम और बड़े ही सरकश थे (52)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَالْمُؤْتَفِكَةَ أَهْوَى {53}
और उसी ने (क़ौमे लूत की) उलटी हुयी बस्तियों को दे पटका (53)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَغَشَّاهَا مَا غَشَّى {54}
(फिर उन पर) जो छाया सो छाया (54)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكَ تَتَمَارَى {55}
तो तू (ऐ इन्सान आखि़र) अपने परवरदिगार की कौन सी नेअमत पर शक किया करेगा (55)
काला फ़मा खत्बुकुम
هَذَا نَذِيرٌ مِّنَ النُّذُرِ الْأُولَى {56}
ये (मोहम्मद भी अगले डराने वाले पैग़म्बरों में से एक डरने वाला) पैग़म्बर है (56)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَزِفَتْ الْآزِفَةُ {57}
कयामत क़रीब आ गयी (57)
काला फ़मा खत्बुकुम
لَيْسَ لَهَا مِن دُونِ اللَّهِ كَاشِفَةٌ {58}
ख़ुदा के सिवा उसे कोई टाल नहीं सकता (58)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَفَمِنْ هَذَا الْحَدِيثِ تَعْجَبُونَ {59}
तो क्या तुम लोग इस बात से ताज्जुब करते हो और हँसते हो (59)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَتَضْحَكُونَ وَلَا تَبْكُونَ {60}
और रोते नहीं हो (60)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَنتُمْ سَامِدُونَ {61}
और तुम इस क़दर ग़ाफि़ल हो तो ख़ुदा के आगे सजदे किया करो (61)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَاسْجُدُوا لِلَّهِ وَاعْبُدُوا {62}
और (उसी की) इबादत किया करो (62) सजदा
काला फ़मा खत्बुकुम
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
काला फ़मा खत्बुकुम
اقْتَرَبَتِ السَّاعَةُ وَانشَقَّ الْقَمَرُ {1}
क़यामत क़रीब आ गयी और चाँद दो टुकड़े हो गया (1)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَإِن يَرَوْا آيَةً يُعْرِضُوا وَيَقُولُوا سِحْرٌ مُّسْتَمِرٌّ {2}
और अगर ये कुफ़्फ़ार कोई मौजिज़ा देखते हैं, तो मुँह फेर लेते हैं, और कहते हैं कि ये तो बड़ा ज़बरदस्त जादू है (2)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَكَذَّبُوا وَاتَّبَعُوا أَهْوَاءهُمْ وَكُلُّ أَمْرٍ مُّسْتَقِرٌّ {3}
और उन लोगों ने झुठलाया और अपनी नफ़सियानी ख़्वाहिशों की पैरवी की, और हर काम का वक़्त मुक़र्रर है (3)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلَقَدْ جَاءهُم مِّنَ الْأَنبَاء مَا فِيهِ مُزْدَجَرٌ {4}
और उनके पास तो वह हालात पहुँच चुके हैं जिनमें काफ़ी तम्बीह थीं (4)
काला फ़मा खत्बुकुम
حِكْمَةٌ بَالِغَةٌ فَمَا تُغْنِ النُّذُرُ {5}
और इन्तेहा दर्जे की दानाई मगर (उनको तो) डराना कुछ फ़ायदा नहीं देता (5)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَتَوَلَّ عَنْهُمْ يَوْمَ يَدْعُ الدَّاعِ إِلَى شَيْءٍ نُّكُرٍ {6}
तो (ऐ रसूल) तुम भी उनसे किनाराकश रहो, जिस दिन एक बुलाने वाला (इसराफ़ील) एक अजनबी और नागवार चीज़ की तरफ़ बुलाएगा (6)
काला फ़मा खत्बुकुम
خُشَّعًا أَبْصَارُهُمْ يَخْرُجُونَ مِنَ الْأَجْدَاثِ كَأَنَّهُمْ جَرَادٌ مُّنتَشِرٌ {7}
तो (निदामत से) आँखें नीचे किए हुए कब्रों से निकल पड़ेंगे गोया वह फैली हुयी टिड्डियाँ हैं (7)
काला फ़मा खत्बुकुम
مُّهْطِعِينَ إِلَى الدَّاعِ يَقُولُ الْكَافِرُونَ هَذَا يَوْمٌ عَسِرٌ {8}
(और) बुलाने वाले की तरफ़ गर्दनें बढ़ाए दौड़ते जाते होंगे, कुफ़्फ़ार कहेंगे ये तो बड़ा सख़्त दिन है (8)
काला फ़मा खत्बुकुम
كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ فَكَذَّبُوا عَبْدَنَا وَقَالُوا مَجْنُونٌ وَازْدُجِرَ {9}
इनसे पहले नूह की क़ौम ने भी झुठलाया था, तो उन्होने हमारे (ख़ास) बन्दे (नूह) को झुठलाया, और कहने लगे ये तो दीवाना है (9)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَدَعَا رَبَّهُ أَنِّي مَغْلُوبٌ فَانتَصِرْ {10}
और उनको झिड़कियाँ भी दी गयीं, तो उन्होंने अपने परवरदिगार से दुआ की कि (बारे इलाहा मैं) इनके मुक़ाबले में कमज़ोर हूँ (10)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَفَتَحْنَا أَبْوَابَ السَّمَاء بِمَاء مُّنْهَمِرٍ {11}
तो अब तू ही (इनसे) बदला ले तो हमने मूसलाधार पानी से आसमान के दरवाज़े खोल दिए (11)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَفَجَّرْنَا الْأَرْضَ عُيُونًا فَالْتَقَى الْمَاء عَلَى أَمْرٍ قَدْ قُدِرَ {12}
और ज़मीन से चश्में जारी कर दिए, तो एक काम के लिए जो मुक़र्रर हो चुका था (दोनों) पानी मिलकर एक हो गया (12)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَحَمَلْنَاهُ عَلَى ذَاتِ أَلْوَاحٍ وَدُسُرٍ {13}
और हमने एक कश्ती पर जो तख़्तों और कीलों से तैयार की गयी थी सवार किया (13)
काला फ़मा खत्बुकुम
تَجْرِي بِأَعْيُنِنَا جَزَاء لِّمَن كَانَ كُفِرَ {14}
और वह हमारी निगरानी में चल रही थी (ये) उस शख़्स (नूह) का बदला लेने के लिए जिसको लोग न मानते थे (14)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلَقَد تَّرَكْنَاهَا آيَةً فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ {15}
और हमने उसको एक इबरत बना कर छोड़ा तो कोई है जो इबरत हासिल करे (15)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ {16}
तो (उनको) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था (16)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ {17}
और हमने तो क़ुरआन को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया है तो कोई है जो नसीहत हासिल करे (17)
काला फ़मा खत्बुकुम
كَذَّبَتْ عَادٌ فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ {18}
आद (की क़ौम ने) (अपने पैग़म्बर) को झुठलाया तो (उनका) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था, (18)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِيحًا صَرْصَرًا فِي يَوْمِ نَحْسٍ مُّسْتَمِرٍّ {19}
हमने उन पर बहुत सख़्त मनहूस दिन में बड़े ज़न्नाटे की आँधी चलायी (19)
काला फ़मा खत्बुकुम
تَنزِعُ النَّاسَ كَأَنَّهُمْ أَعْجَازُ نَخْلٍ مُّنقَعِرٍ {20}
जो लोगों को (अपनी जगह से) इस तरह उखाड़ फेकती थी गोया वह उखड़े हुए खजूर के तने हैं (20)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ {21}
तो (उनको) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था (21)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ {22}
और हमने तो क़ुरआन को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया, तो कोई है जो नसीहत हासिल करे (22)
काला फ़मा खत्बुकुम
كَذَّبَتْ ثَمُودُ بِالنُّذُرِ {23}
(क़ौम) समूद ने डराने वाले (पैग़म्बरों) को झुठलाया (23)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَقَالُوا أَبَشَرًا مِّنَّا وَاحِدًا نَّتَّبِعُهُ إِنَّا إِذًا لَّفِي ضَلَالٍ وَسُعُرٍ {24}
तो कहने लगे कि भला एक आदमी की जो हम ही में से हो उसकी पैरवीं करें ऐसा करें तो गुमराही और दीवानगी में पड़ गए (24)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَأُلْقِيَ الذِّكْرُ عَلَيْهِ مِن بَيْنِنَا بَلْ هُوَ كَذَّابٌ أَشِرٌ {25}
क्या हम सबमें बस उसी पर वही नाजि़ल हुयी है (नहीं) बल्कि ये तो बड़ा झूठा तअल्ली करने वाला है (25)
काला फ़मा खत्बुकुम
سَيَعْلَمُونَ غَدًا مَّنِ الْكَذَّابُ الْأَشِرُ {26}
उनको अनक़रीब कल ही मालूम हो जाएगा कि कौन बड़ा झूठा तकब्बुर करने वाला है (26)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنَّا مُرْسِلُو النَّاقَةِ فِتْنَةً لَّهُمْ فَارْتَقِبْهُمْ وَاصْطَبِرْ {27}
(ऐ सालेह) हम उनकी आज़माइश के लिए ऊँटनी भेजने वाले हैं तो तुम उनको देखते रहो और (थोड़ा) सब्र करो (27)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَنَبِّئْهُمْ أَنَّ الْمَاء قِسْمَةٌ بَيْنَهُمْ كُلُّ شِرْبٍ مُّحْتَضَرٌ {28}
और उनको ख़बर कर दो कि उनमें पानी की बारी मुक़र्रर कर दी गयी है हर (बारी वाले को अपनी) बारी पर हाजि़र होना चाहिए (28)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَنَادَوْا صَاحِبَهُمْ فَتَعَاطَى فَعَقَرَ {29}
तो उन लोगों ने अपने रफीक़ (क़ेदार) को बुलाया तो उसने पकड़ कर (ऊँटनी की) कूचें काट डालीं (29)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ {30}
तो (देखो) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था (30)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ صَيْحَةً وَاحِدَةً فَكَانُوا كَهَشِيمِ الْمُحْتَظِرِ {31}
हमने उन पर एक सख़्त चिंघाड़ (का अज़ाब) भेज दिया तो वह बाड़े वालो के सूखे हुए चूर चूर भूसे की तरह हो गए (31)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ {32}
और हमने क़ुरआन को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया है तो कोई है जो नसीहत हासिल करे (32)
काला फ़मा खत्बुकुम
كَذَّبَتْ قَوْمُ لُوطٍ بِالنُّذُرِ {33}
लूत की क़ौम ने भी डराने वाले (पैग़म्बरों) को झुठलाया (33)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ حَاصِبًا إِلَّا آلَ لُوطٍ نَّجَّيْنَاهُم بِسَحَرٍ {34}
तो हमने उन पर कंकर भरी हवा चलाई मगर लूत के लड़के बाले को हमने उनको अपने फज़ल व करम से पिछले ही को बचा लिया (34)
काला फ़मा खत्बुकुम
نِعْمَةً مِّنْ عِندِنَا كَذَلِكَ نَجْزِي مَن شَكَرَ {35}
हम शुक्र करने वालों को ऐसा ही बदला दिया करते हैं (35)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلَقَدْ أَنذَرَهُم بَطْشَتَنَا فَتَمَارَوْا بِالنُّذُرِ {36}
और लूत ने उनको हमारी पकड़ से भी डराया था मगर उन लोगों ने डराते ही में शक किया (36)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلَقَدْ رَاوَدُوهُ عَن ضَيْفِهِ فَطَمَسْنَا أَعْيُنَهُمْ فَذُوقُوا عَذَابِي وَنُذُرِ {37}
और उनसे उनके मेहमान (फ़रिश्ते) के बारे में नाजायज़ मतलब की ख़्वाहिश की तो हमने उनकी आँखें अन्धी कर दीं तो मेरे अज़ाब और डराने का मज़ा चखो (37)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلَقَدْ صَبَّحَهُم بُكْرَةً عَذَابٌ مُّسْتَقِرٌّ {38}
और सुबह सवेरे ही उन पर अज़ाब आ गया जो किसी तरह टल ही नहीं सकता था (38)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَذُوقُوا عَذَابِي وَنُذُرِ {39}
तो मेरे अज़ाब और डराने के (पड़े) मज़े चखो (39)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ {40}
और हमने तो क़ुरआन को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया तो कोई है जो नसीहत हासिल करे (40)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلَقَدْ جَاء آلَ فِرْعَوْنَ النُّذُرُ {41}
और फि़रऔन के पास भी डराने वाले (पैग़म्बर) आए (41)
काला फ़मा खत्बुकुम
كَذَّبُوا بِآيَاتِنَا كُلِّهَا فَأَخَذْنَاهُمْ أَخْذَ عَزِيزٍ مُّقْتَدِرٍ {42}
तो उन लोगों ने हमारी कुल निशानियों को झुठलाया तो हमने उनको इस तरह सख़्त पकड़ा जिस तरह एक ज़बरदस्त साहिबे क़ुदरत पकड़ा करता है (42)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَكُفَّارُكُمْ خَيْرٌ مِّنْ أُوْلَئِكُمْ أَمْ لَكُم بَرَاءةٌ فِي الزُّبُرِ {43}
(ऐ एहले मक्का) क्या उन लोगों से भी तुम्हारे कुफ्फ़ार बढ़ कर हैं या तुम्हारे वास्ते (पहली) किताबों में माफ़ी (लिखी हुयी) है (43)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَمْ يَقُولُونَ نَحْنُ جَمِيعٌ مُّنتَصِرٌ {44}
क्या ये लोग कहते हैं कि हम बहुत क़वी जमाअत हैं (44)
काला फ़मा खत्बुकुम
سَيُهْزَمُ الْجَمْعُ وَيُوَلُّونَ الدُّبُرَ {45}
अनक़रीब ही ये जमाअत शिकस्त खाएगी और ये लोग पीठ फेर कर भाग जाएँगे (45)
काला फ़मा खत्बुकुम
بَلِ السَّاعَةُ مَوْعِدُهُمْ وَالسَّاعَةُ أَدْهَى وَأَمَرُّ {46}
बात ये है कि इनके वायदे का वक़्त क़यामत है और क़यामत बड़ी सख़्त और बड़ी तल्ख़ (चीज़) है (46)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنَّ الْمُجْرِمِينَ فِي ضَلَالٍ وَسُعُرٍ {47}
बेशक गुनाहगार लोग गुमराही और दीवानगी में (मुब्तिला) हैं (47)
काला फ़मा खत्बुकुम
يَوْمَ يُسْحَبُونَ فِي النَّارِ عَلَى وُجُوهِهِمْ ذُوقُوا مَسَّ سَقَرَ {48}
उस रोज़ ये लोग अपने अपने मुँह के बल (जहन्नुम की) आग में घसीटे जाएँगे (और उनसे कहा जाएगा) अब जहन्नुम की आग का मज़ा चखो (48)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنَّا كُلَّ شَيْءٍ خَلَقْنَاهُ بِقَدَرٍ {49}
बेशक हमने हर चीज़ एक मुक़र्रर अन्दाज़ से पैदा की है (49)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَمَا أَمْرُنَا إِلَّا وَاحِدَةٌ كَلَمْحٍ بِالْبَصَرِ {50}
और हमारा हुक्म तो बस आँख के झपकने की तरह एक बात होती है (50)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلَقَدْ أَهْلَكْنَا أَشْيَاعَكُمْ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ {51}
और हम तुम्हारे हम मशरबो को हलाक कर चुके हैं तो कोई है जो नसीहत हासिल करे (51)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَكُلُّ شَيْءٍ فَعَلُوهُ فِي الزُّبُرِ {52}
और अगर चे ये लोग जो कुछ कर चुके हैं (इनके) आमाल नामों में (दर्ज) है (52)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَكُلُّ صَغِيرٍ وَكَبِيرٍ مُسْتَطَرٌ {53}
(यानि) हर छोटा और बड़ा काम लिख दिया गया है (53)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَنَهَرٍ {54}
बेशक परहेज़गार लोग (बेहिश्त के) बाग़ों और नहरों में (54)
काला फ़मा खत्बुकुम
فِي مَقْعَدِ صِدْقٍ عِندَ مَلِيكٍ مُّقْتَدِرٍ {55}
(यानि) पसन्दीदा मक़ाम में हर तरह की क़ुदरत रखने वाले बादशाह की बारगाह में (मुक़र्रिब) होंगे (55)
काला फ़मा खत्बुकुम
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ
ख़ुदा के नाम (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
काला फ़मा खत्बुकुम
الرَّحْمَنُ {1}
बड़ा मेहरबान (ख़ुदा) (1)
काला फ़मा खत्बुकुम
عَلَّمَ الْقُرْآنَ {2}
उसी ने क़ुरआन की तालीम फ़रमाई (2)
काला फ़मा खत्बुकुम
خَلَقَ الْإِنسَانَ {3}
उसी ने इन्सान को पैदा किया (3)
काला फ़मा खत्बुकुम
عَلَّمَهُ الْبَيَانَ {4}
उसी ने उनको (अपना मतलब) ब्यान करना सिखाया (4)
काला फ़मा खत्बुकुम
الشَّمْسُ وَالْقَمَرُ بِحُسْبَانٍ {5}
सूरज और चाँद एक मुक़र्रर हिसाब से चल रहे हैं (5)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَالنَّجْمُ وَالشَّجَرُ يَسْجُدَانِ {6}
और बूटियाँ बेलें, और दरख़्त (उसी को) सजदा करते हैं (6)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَالسَّمَاء رَفَعَهَا وَوَضَعَ الْمِيزَانَ {7}
और उसी ने आसमान बुलन्द किया और तराजू (इन्साफ़) को क़ायम किया (7)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَلَّا تَطْغَوْا فِي الْمِيزَانِ {8}
ताकि तुम लोग तराज़ू (से तौलने) में हद से तजाउज़ न करो (8)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَقِيمُوا الْوَزْنَ بِالْقِسْطِ وَلَا تُخْسِرُوا الْمِيزَانَ {9}
और ईन्साफ़ के साथ ठीक तौलो और तौल कम न करो (9)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَالْأَرْضَ وَضَعَهَا لِلْأَنَامِ {10}
और उसी ने लोगों के नफे़ के लिए ज़मीन बनायी (10)
काला फ़मा खत्बुकुम
فِيهَا فَاكِهَةٌ وَالنَّخْلُ ذَاتُ الْأَكْمَامِ {11}
कि उसमें मेवे और खजूर के दरख़्त हैं जिसके ख़ोशों में गि़लाफ़ होते हैं (11)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَالْحَبُّ ذُو الْعَصْفِ وَالرَّيْحَانُ {12}
और अनाज जिसके साथ भुस होता है और ख़ुशबूदार फूल (12)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {13}
तो (ऐ गिरोह जिन व इन्स) तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमतों को न मानोगे (13)
काला फ़मा खत्बुकुम
خَلَقَ الْإِنسَانَ مِن صَلْصَالٍ كَالْفَخَّارِ {14}
उसी ने इन्सान को ठीकरे की तरह खन खनाती हुयी मिटटी से पैदा किया (14)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَخَلَقَ الْجَانَّ مِن مَّارِجٍ مِّن نَّارٍ {15}
और उसी ने जिन्नात को आग के शोले से पैदा किया (15)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {16}
तो (ऐ गिरोह जिन व इन्स) तुम अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमतों से मुकरोगे (16)
काला फ़मा खत्बुकुम
رَبُّ الْمَشْرِقَيْنِ وَرَبُّ الْمَغْرِبَيْنِ {17}
वही जाड़े गर्मी के दोनों मशरिको का मालिक है और दोनों मग़रिबों का (भी) मालिक है (17)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {18}
तो (ऐ जिनों) और (आदमियों) तुम अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे (18)
काला फ़मा खत्बुकुम
مَرَجَ الْبَحْرَيْنِ يَلْتَقِيَانِ {19}
उसी ने दरिया बहाए जो बाहम मिल जाते हैं (19)
काला फ़मा खत्बुकुम
بَيْنَهُمَا بَرْزَخٌ لَّا يَبْغِيَانِ {20}
दो के दरम्यिान एक हद्दे फ़ासिल (आड़) है जिससे तजाउज़ नहीं कर सकते (20)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {21}
तो (ऐ जिन व इन्स) तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत को झुठलाओगे (21)
काला फ़मा खत्बुकुम
يَخْرُجُ مِنْهُمَا اللُّؤْلُؤُ وَالْمَرْجَانُ {22}
इन दोनों दरियाओं से मोती और मूँगे निकलते हैं (22)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {23}
(तो जिन व इन्स) तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमत को न मानोगे (23)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلَهُ الْجَوَارِ الْمُنشَآتُ فِي الْبَحْرِ كَالْأَعْلَامِ {24}
और जहाज़ जो दरिया में पहाड़ों की तरह ऊँचे खड़े रहते हैं उसी के हैं (24)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {25}
तो (ऐ जिन व इन्स) तुम अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत को झुठलाओगे (25)
काला फ़मा खत्बुकुम
كُلُّ مَنْ عَلَيْهَا فَانٍ {26}
जो (मख़लूक) ज़मीन पर है सब फ़ना होने वाली है (26)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَيَبْقَى وَجْهُ رَبِّكَ ذُو الْجَلَالِ وَالْإِكْرَامِ {27}
और सिर्फ तुम्हारे परवरदिगार की ज़ात जो अज़मत और करामत वाली है बाक़ी रहेगी (27)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {28}
तो तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे (28)
काला फ़मा खत्बुकुम
يَسْأَلُهُ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ كُلَّ يَوْمٍ هُوَ فِي شَأْنٍ {29}
और जितने लोग सारे आसमान व ज़मीन में हैं (सब) उसी से माँगते हैं वह हर रोज़ (हर वक़्त) मख़लूक के एक न एक काम में है (29)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {30}
तो तुम दोनों अपने सरपरस्त की कौन कौन सी नेअमत से मुकरोगे (30)
काला फ़मा खत्बुकुम
سَنَفْرُغُ لَكُمْ أَيُّهَا الثَّقَلَانِ {31}
(ऐ दोनों गिरोहों) हम अनक़रीब ही तुम्हारी तरफ़ मुतावज्जे होंगे (31)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {32}
तो तुम दोनों अपने पालने वाले की किस किस नेअमत को न मानोगे (32)
काला फ़मा खत्बुकुम
يَا مَعْشَرَ الْجِنِّ وَالْإِنسِ إِنِ اسْتَطَعْتُمْ أَن تَنفُذُوا مِنْ أَقْطَارِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ فَانفُذُوا لَا تَنفُذُونَ إِلَّا بِسُلْطَانٍ {33}
ऐ गिरोह जिन व इन्स अगर तुममें क़ुदरत है कि आसमानों और ज़मीन के किनारों से (होकर कहीं) निकल (कर मौत या अज़ाब से भाग) सको तो निकल जाओ (मगर) तुम तो बग़ैर क़ूवत और ग़लबे के निकल ही नहीं सकते (हालाँकि तुममें न क़ूवत है और न ही ग़लबा) (33)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {34}
तो तुम अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत को झुठलाओगे (34)
काला फ़मा खत्बुकुम
يُرْسَلُ عَلَيْكُمَا شُوَاظٌ مِّن نَّارٍ وَنُحَاسٌ فَلَا تَنتَصِرَانِ {35}
(गुनाहगार जिनों और आदमियों जहन्नुम में) तुम दोनो पर आग का सब्ज़ शोला और सियाह धुआँ छोड़ दिया जाएगा तो तुम दोनों (किस तरह) रोक नहीं सकोगे (35)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {36}
फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे (36)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَإِذَا انشَقَّتِ السَّمَاء فَكَانَتْ وَرْدَةً كَالدِّهَانِ {37}
फिर जब आसमान फट कर (क़यामत में) तेल की तरह लाल हो जाऐगा (37)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {38}
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से मुकरोगे (38)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَيَوْمَئِذٍ لَّا يُسْأَلُ عَن ذَنبِهِ إِنسٌ وَلَا جَانٌّ {39}
तो उस दिन न तो किसी इन्सान से उसके गुनाह के बारे में पूछा जाएगा न किसी जिन से (39)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {40}
तो तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत को न मानोगे (40)
काला फ़मा खत्बुकुम
يُعْرَفُ الْمُجْرِمُونَ بِسِيمَاهُمْ فَيُؤْخَذُ بِالنَّوَاصِي وَالْأَقْدَامِ {41}
गुनाहगार लोग तो अपने चेहरों ही से पहचान लिए जाएँगे तो पेशानी के पटटे और पाँव पकड़े (जहन्नुम में डाल दिये जाएँगे) (41)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {42}
आखि़र तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे (42)
काला फ़मा खत्बुकुम
هَذِهِ جَهَنَّمُ الَّتِي يُكَذِّبُ بِهَا الْمُجْرِمُونَ {43}
(फिर उनसे कहा जाएगा) यही वह जहन्नुम है जिसे गुनाहगार लोग झुठलाया करते थे (43)
काला फ़मा खत्बुकुम
يَطُوفُونَ بَيْنَهَا وَبَيْنَ حَمِيمٍ آنٍ {44}
ये लोग दोज़ख़ और हद दरजा खौलते हुए पानी के दरमियान (बेक़रार दौड़ते) चक्कर लगाते फिरेंगे (44)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {45}
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत को न मानोगे (45)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلِمَنْ خَافَ مَقَامَ رَبِّهِ جَنَّتَانِ {46}
और जो शख़्स अपने परवरदिगार के सामने खड़े होने से डरता रहा उसके लिए दो दो बाग़ हैं (46)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {47}
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमत से इन्कार करोगे (47)
काला फ़मा खत्बुकुम
ذَوَاتَا أَفْنَانٍ {48}
दोनों बाग़ (दरख़्तों की) टहनियों से हरे भरे (मेवों से लदे) हुए (48)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {49}
फिर दोनों अपने सरपरस्त की किस किस नेअमतों को झुठलाओगे (49)
काला फ़मा खत्बुकुम
فِيهِمَا عَيْنَانِ تَجْرِيَانِ {50}
इन दोनों में दो चश्में जारी होंगे (50)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {51}
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से मुकरोगे (51)
काला फ़मा खत्बुकुम
فِيهِمَا مِن كُلِّ فَاكِهَةٍ زَوْجَانِ {52}
इन दोनों बाग़ों में सब मेवे दो दो किस्म के होंगे (52)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {53}
तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे (53)
काला फ़मा खत्बुकुम
مُتَّكِئِينَ عَلَى فُرُشٍ بَطَائِنُهَا مِنْ إِسْتَبْرَقٍ وَجَنَى الْجَنَّتَيْنِ دَانٍ {54}
यह लोग उन फर्शों पर जिनके असतर अतलस के होंगे तकिये लगाकर बैठे होंगे तो दोनों बाग़ों के मेवे (इस क़दर) क़रीब होंगे (कि अगर चाहे तो लगे हुए खालें) (54)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {55}
तो तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत को न मानोगे (55)
काला फ़मा खत्बुकुम
فِيهِنَّ قَاصِرَاتُ الطَّرْفِ لَمْ يَطْمِثْهُنَّ إِنسٌ قَبْلَهُمْ وَلَا جَانٌّ {56}
इसमें (पाक दामन ग़ैर की तरफ आँख उठा कर न देखने वाली औरतें होंगी जिनको उन से पहले न किसी इन्सान ने हाथ लगाया होगा) और जिन ने (56)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {57}
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन किन नेअमतों को झुठलाओगे (57)
काला फ़मा खत्बुकुम
كَأَنَّهُنَّ الْيَاقُوتُ وَالْمَرْجَانُ {58}
(ऐसी हसीन) गोया वह (मुजस्सिम) याक़ूत व मूँगे हैं (58)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {59}
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन किन नेअमतों से मुकरोगे (59)
काला फ़मा खत्बुकुम
هَلْ جَزَاء الْإِحْسَانِ إِلَّا الْإِحْسَانُ {60}
भला नेकी का बदला नेकी के सिवा कुछ और भी है (60)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {61}
फिर तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत को झुठलाओगे (61)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَمِن دُونِهِمَا جَنَّتَانِ {62}
उन दोनों बाग़ों के अलावा दो बाग़ और हैं (62)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {63}
तो तुम दोनों अपने पालने वाले की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे (63)
काला फ़मा खत्बुकुम
مُدْهَامَّتَانِ {64}
दोनों निहायत गहरे सब्ज़ व शादाब (64)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {65}
तो तुम दोनों अपने सरपरस्त की किन किन नेअमतों को न मानोगे (65)
काला फ़मा खत्बुकुम
فِيهِمَا عَيْنَانِ نَضَّاخَتَانِ {66}
उन दोनों बाग़ों में दो चश्में जोश मारते होंगे (66)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {67}
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से मुकरोगे (67)
काला फ़मा खत्बुकुम
فِيهِمَا فَاكِهَةٌ وَنَخْلٌ وَرُمَّانٌ {68}
उन दोनों में मेवें हैं खुरमें और अनार (68)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {69}
तो तुम दोनों अपने मालिक की किन किन नेअमतों को झुठलाओगे (69)
काला फ़मा खत्बुकुम
فِيهِنَّ خَيْرَاتٌ حِسَانٌ {70}
उन बाग़ों में ख़ुश ख़ुल्क और ख़ूबसूरत औरतें होंगी (70)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {71}
तो तुम दोनों अपने मालिक की किन किन नेअमतों को झुठलाओगे (71)
काला फ़मा खत्बुकुम
حُورٌ مَّقْصُورَاتٌ فِي الْخِيَامِ {72}
वह हूरें हैं जो ख़ेमों में छुपी बैठी हैं (72)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {73}
फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमत से इन्कार करोगे (73)
काला फ़मा खत्बुकुम
لَمْ يَطْمِثْهُنَّ إِنسٌ قَبْلَهُمْ وَلَا جَانٌّ {74}
उनसे पहले उनको किसी इन्सान ने उनको छुआ तक नहीं और न जिन ने (74)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {75}
फिर तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत से मुकरोगे (75)
काला फ़मा खत्बुकुम
مُتَّكِئِينَ عَلَى رَفْرَفٍ خُضْرٍ وَعَبْقَرِيٍّ حِسَانٍ {76}
ये लोग सब्ज़ क़ालीनों और नफ़ीस व हसीन मसनदों पर तकिए लगाए (बैठे) होंगे (76)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَبِأَيِّ آلَاء رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ {77}
फिर तुम अपने परवरदिगार की किन किन नेअमतों से इन्कार करोगे (77)
काला फ़मा खत्बुकुम
تَبَارَكَ اسْمُ رَبِّكَ ذِي الْجَلَالِ وَالْإِكْرَامِ {78}
(ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार जो साहिबे जलाल व करामत है उसी का नाम बड़ा बाबरकत है (78)
काला फ़मा खत्बुकुम
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
काला फ़मा खत्बुकुम
إِذَا وَقَعَتِ الْوَاقِعَةُ {1}
जब क़यामत बरपा होगी और उसके वाकि़या होने में ज़रा झूट नहीं (1)
काला फ़मा खत्बुकुम
لَيْسَ لِوَقْعَتِهَا كَاذِبَةٌ {2}
(उस वक़्त लोगों में फ़र्क ज़ाहिर होगा) (2)
काला फ़मा खत्बुकुम
خَافِضَةٌ رَّافِعَةٌ {3}
कि किसी को पस्त करेगी किसी को बुलन्द (3)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِذَا رُجَّتِ الْأَرْضُ رَجًّا {4}
जब ज़मीन बड़े ज़ोरों में हिलने लगेगी (4)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَبُسَّتِ الْجِبَالُ بَسًّا {5}
और पहाड़ (टकरा कर) बिल्कुल चूर चूर हो जाएँगे (5)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَكَانَتْ هَبَاء مُّنبَثًّا {6}
फिर ज़र्रे बन कर उड़ने लगेंगे (6)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَكُنتُمْ أَزْوَاجًا ثَلَاثَةً {7}
और तुम लोग तीन किस्म हो जाओगे (7)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَأَصْحَابُ الْمَيْمَنَةِ مَا أَصْحَابُ الْمَيْمَنَةِ {8}
तो दाहिने हाथ (में आमाल नामा लेने) वाले (वाह) दाहिने हाथ वाले क्या (चैन में) हैं (8)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَصْحَابُ الْمَشْأَمَةِ مَا أَصْحَابُ الْمَشْأَمَةِ {9}
और बाएं हाथ (में आमाल नामा लेने) वाले (अफ़सोस) बाएं हाथ वाले क्या (मुसीबत में) हैं (9)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَالسَّابِقُونَ السَّابِقُونَ {10}
और जो आगे बढ़ जाने वाले हैं (वाह क्या कहना) वह आगे ही बढ़ने वाले थे (10)
काला फ़मा खत्बुकुम
أُوْلَئِكَ الْمُقَرَّبُونَ {11}
यही लोग (ख़ुदा के) मुक़र्रिब हैं (11)
काला फ़मा खत्बुकुम
فِي جَنَّاتِ النَّعِيمِ {12}
आराम व आसाइश के बाग़ों में बहुत से (12)
काला फ़मा खत्बुकुम
ثُلَّةٌ مِّنَ الْأَوَّلِينَ {13}
तो अगले लोगों में से होंगे (13)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَقَلِيلٌ مِّنَ الْآخِرِينَ {14}
और कुछ थोडे से पिछले लोगों में से मोती (14)
काला फ़मा खत्बुकुम
عَلَى سُرُرٍ مَّوْضُونَةٍ {15}
और याक़ूत से जड़े हुए सोने के तारों से बने हुए (15)
काला फ़मा खत्बुकुम
مُتَّكِئِينَ عَلَيْهَا مُتَقَابِلِينَ {16}
तख़्ते पर एक दूसरे के सामने तकिए लगाए (बैठे) होंगे (16)
काला फ़मा खत्बुकुम
يَطُوفُ عَلَيْهِمْ وِلْدَانٌ مُّخَلَّدُونَ {17}
नौजवान लड़के जो (बेहिश्त में) हमेशा (लड़के ही बने) रहेंगे (17)
काला फ़मा खत्बुकुम
بِأَكْوَابٍ وَأَبَارِيقَ وَكَأْسٍ مِّن مَّعِينٍ {18}
(शरबत वग़ैरह के) सागर और चमकदार टोटीदार कंटर और शफ़्फ़ाफ़ शराब के जाम लिए हुए उनके पास चक्कर लगाते होंगे (18)
काला फ़मा खत्बुकुम
لَا يُصَدَّعُونَ عَنْهَا وَلَا يُنزِفُونَ {19}
जिसके (पीने) से न तो उनको (ख़ुमार से) दर्दसर होगा और न वह बदहवास मदहोश होंगे (19)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَفَاكِهَةٍ مِّمَّا يَتَخَيَّرُونَ {20}
और जिस कि़स्म के मेवे पसन्द करें (20)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلَحْمِ طَيْرٍ مِّمَّا يَشْتَهُونَ {21}
और जिस कि़स्म के परिन्दे का गोश्त उनका जी चाहे (सब मौजूद है) (21)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَحُورٌ عِينٌ {22}
और बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरें (22)
काला फ़मा खत्बुकुम
كَأَمْثَالِ اللُّؤْلُؤِ الْمَكْنُونِ {23}
जैसे एहतेयात से रखे हुए मोती (23)
काला फ़मा खत्बुकुम
جَزَاء بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ {24}
ये बदला है उनके (नेक) आमाल का (24)
काला फ़मा खत्बुकुम
لَا يَسْمَعُونَ فِيهَا لَغْوًا وَلَا تَأْثِيمًا {25}
वहाँ न तो बेहूदा बात सुनेंगे और न गुनाह की बात (25)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِلَّا قِيلًا سَلَامًا سَلَامًا {26}
(फहश) बस उनका कलाम सलाम ही सलाम होगा (26)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَصْحَابُ الْيَمِينِ مَا أَصْحَابُ الْيَمِينِ {27}
और दाहिने हाथ वाले (वाह) दाहिने हाथ वालों का क्या कहना है (27)
काला फ़मा खत्बुकुम
فِي سِدْرٍ مَّخْضُودٍ {28}
बे काँटे की बेरो और लदे गुथे हुए (28)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَطَلْحٍ مَّنضُودٍ {29}
केलों और लम्बी लम्बी छाँव (29)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَظِلٍّ مَّمْدُودٍ {30}
और झरनो के पानी (30)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَمَاء مَّسْكُوبٍ {31}
और अनारों (31)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَفَاكِهَةٍ كَثِيرَةٍ {32}
मेवो में होंगे (32)
काला फ़मा खत्बुकुम
لَّا مَقْطُوعَةٍ وَلَا مَمْنُوعَةٍ {33}
जो न कभी खत्म होंगे और न उनकी कोई रोक टोक (33)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَفُرُشٍ مَّرْفُوعَةٍ {34}
और ऊँचे ऊँचे (नरम गद्दो के) फर्शों में (मज़े करते) होंगे (34)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنَّا أَنشَأْنَاهُنَّ إِنشَاء {35}
(उनको) वह हूरें मिलेंगी जिसको हमने नित नया पैदा किया है (35)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَجَعَلْنَاهُنَّ أَبْكَارًا {36}
तो हमने उन्हें कु़ँवारियाँ प्यारी प्यारी हमजोलियाँ बनाया (36)
काला फ़मा खत्बुकुम
عُرُبًا أَتْرَابًا {37}
(ये सब सामान) (37)
काला फ़मा खत्बुकुम
لِّأَصْحَابِ الْيَمِينِ {38}
दाहिने हाथ (में नामए आमाल लेने) वालों के वास्ते है (38)
काला फ़मा खत्बुकुम
ثُلَّةٌ مِّنَ الْأَوَّلِينَ {39}
(इनमें) बहुत से तो अगले लोगों में से (39)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَثُلَّةٌ مِّنَ الْآخِرِينَ {40}
और बहुत से पिछले लोगों में से (40)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَصْحَابُ الشِّمَالِ مَا أَصْحَابُ الشِّمَالِ {41}
और बाएं हाथ (में नामए आमाल लेने) वाले (अफ़सोस) बाएं हाथ वाले क्या (मुसीबत में) हैं (41)
काला फ़मा खत्बुकुम
فِي سَمُومٍ وَحَمِيمٍ {42}
(दोज़ख़ की) लौ और खौलते हुए पानी (42)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَظِلٍّ مِّن يَحْمُومٍ {43}
और काले सियाह धुएँ के साये में होंगे (43)
काला फ़मा खत्बुकुम
لَّا بَارِدٍ وَلَا كَرِيمٍ {44}
जो न ठन्डा और न ख़ुश आइन्द (44)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنَّهُمْ كَانُوا قَبْلَ ذَلِكَ مُتْرَفِينَ {45}
ये लोग इससे पहले (दुनिया में) ख़ूब ऐश उड़ा चुके थे (45)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَكَانُوا يُصِرُّونَ عَلَى الْحِنثِ الْعَظِيمِ {46}
और बड़े गुनाह (शिर्क) पर अड़े रहते थे (46)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَكَانُوا يَقُولُونَ أَئِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَعِظَامًا أَئِنَّا لَمَبْعُوثُونَ {47}
और कहा करते थे कि भला जब हम मर जाएँगे और (सड़ गल कर) मिटटी और हडिडयाँ (ही हडिडयाँ) रह जाएँगे (47)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَوَ آبَاؤُنَا الْأَوَّلُونَ {48}
तो क्या हमें या हमारे अगले बाप दादाओं को फिर उठना है (48)
काला फ़मा खत्बुकुम
قُلْ إِنَّ الْأَوَّلِينَ وَالْآخِرِينَ {49}
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगले और पिछले (49)
काला फ़मा खत्बुकुम
لَمَجْمُوعُونَ إِلَى مِيقَاتِ يَوْمٍ مَّعْلُومٍ {50}
सब के सब रोजे़ मुअय्यन की मियाद पर ज़रूर इकट्ठे किए जाएँगे (50)
काला फ़मा खत्बुकुम
ثُمَّ إِنَّكُمْ أَيُّهَا الضَّالُّونَ الْمُكَذِّبُونَ {51}
फिर तुमको बेशक ऐ गुमराहों झुठलाने वालों (51)
काला फ़मा खत्बुकुम
لَآكِلُونَ مِن شَجَرٍ مِّن زَقُّومٍ {52}
यक़ीनन (जहन्नुम में) थोहड़ के दरख़्तों में से खाना होगा (52)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَمَالِؤُونَ مِنْهَا الْبُطُونَ {53}
तो तुम लोगों को उसी से (अपना) पेट भरना होगा (53)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَشَارِبُونَ عَلَيْهِ مِنَ الْحَمِيمِ {54}
फिर उसके ऊपर खौलता हुआ पानी पीना होगा (54)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَشَارِبُونَ شُرْبَ الْهِيمِ {55}
और पियोगे भी तो प्यासे ऊँट का सा (डग डगा के) पीना (55)
काला फ़मा खत्बुकुम
هَذَا نُزُلُهُمْ يَوْمَ الدِّينِ {56}
क़यामत के दिन यही उनकी मेहमानी होगी (56)
काला फ़मा खत्बुकुम
نَحْنُ خَلَقْنَاكُمْ فَلَوْلَا تُصَدِّقُونَ {57}
तुम लोगों को (पहली बार भी) हम ही ने पैदा किया है (57)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَفَرَأَيْتُم مَّا تُمْنُونَ {58}
फिर तुम लोग (दोबार की) क्यों नहीं तस्दीक़ करते (58)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَأَنتُمْ تَخْلُقُونَهُ أَمْ نَحْنُ الْخَالِقُونَ {59}
तो जिस नुत्फे़ को तुम (औरतों के रहम में डालते हो) क्या तुमने देख भाल लिया है क्या तुम उससे आदमी बनाते हो या हम बनाते हैं (59)
काला फ़मा खत्बुकुम
نَحْنُ قَدَّرْنَا بَيْنَكُمُ الْمَوْتَ وَمَا نَحْنُ بِمَسْبُوقِينَ {60}
हमने तुम लोगों में मौत को मुक़र्रर कर दिया है और हम उससे आजिज़ नहीं हैं (60)
काला फ़मा खत्बुकुम
عَلَى أَن نُّبَدِّلَ أَمْثَالَكُمْ وَنُنشِئَكُمْ فِي مَا لَا تَعْلَمُونَ {61}
कि तुम्हारे ऐसे और लोग बदल डालें और तुम लोगों को इस (सूरत) में पैदा करें जिसे तुम मुत्तलक़ नहीं जानते (61)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلَقَدْ عَلِمْتُمُ النَّشْأَةَ الْأُولَى فَلَوْلَا تَذكَّرُونَ {62}
और तुमने पैहली पैदाइश तो समझ ही ली है (कि हमने की) फिर तुम ग़ौर क्यों नहीं करते (62)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَفَرَأَيْتُم مَّا تَحْرُثُونَ {63}
भला देखो तो कि जो कुछ तुम लोग बोते हो क्या (63)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَأَنتُمْ تَزْرَعُونَهُ أَمْ نَحْنُ الزَّارِعُونَ {64}
तुम लोग उसे उगाते हो या हम उगाते हैं अगर हम चाहते (64)
काला फ़मा खत्बुकुम
لَوْ نَشَاء لَجَعَلْنَاهُ حُطَامًا فَظَلْتُمْ تَفَكَّهُونَ {65}
तो उसे चूर चूर कर देते तो तुम बातें ही बनाते रह जाते (65)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنَّا لَمُغْرَمُونَ {66}
कि (हाए) हम तो (मुफ्त) तावान में फॅसे (नहीं) (66)
काला फ़मा खत्बुकुम
بَلْ نَحْنُ مَحْرُومُونَ {67}
हम तो बदनसीब हैं (67)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَفَرَأَيْتُمُ الْمَاء الَّذِي تَشْرَبُونَ {68}
तो क्या तुमने पानी पर भी नज़र डाली जो (दिन रात) पीते हो (68)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَأَنتُمْ أَنزَلْتُمُوهُ مِنَ الْمُزْنِ أَمْ نَحْنُ الْمُنزِلُونَ {69}
क्या उसको बादल से तुमने बरसाया है या हम बरसाते हैं (69)
काला फ़मा खत्बुकुम
لَوْ نَشَاء جَعَلْنَاهُ أُجَاجًا فَلَوْلَا تَشْكُرُونَ {70}
अगर हम चाहें तो उसे खारी बना दें तो तुम लोग शुक्र क्यों नहीं करते (70)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَفَرَأَيْتُمُ النَّارَ الَّتِي تُورُونَ {71}
तो क्या तुमने आग पर भी ग़ौर किया जिसे तुम लोग लकड़ी से निकालते हो (71)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَأَنتُمْ أَنشَأْتُمْ شَجَرَتَهَا أَمْ نَحْنُ الْمُنشِؤُونَ {72}
क्या उसके दरख़्त को तुमने पैदा किया या हम पैदा करते हैं (72)
काला फ़मा खत्बुकुम
نَحْنُ جَعَلْنَاهَا تَذْكِرَةً وَمَتَاعًا لِّلْمُقْوِينَ {73}
हमने आग को (जहन्नुम की) याद देहानी और मुसाफिरों के नफ़े के (वास्ते पैदा किया) (73)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَسَبِّحْ بِاسْمِ رَبِّكَ الْعَظِيمِ {74}
तो (ऐ रसूल) तुम अपने बुज़ुर्ग परवरदिगार की तस्बीह करो (74)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَلَا أُقْسِمُ بِمَوَاقِعِ النُّجُومِ {75}
तो मैं तारों के मनाजि़ल की क़सम खाता हूँ (75)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَإِنَّهُ لَقَسَمٌ لَّوْ تَعْلَمُونَ عَظِيمٌ {76}
और अगर तुम समझो तो ये बड़ी क़सम है (76)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنَّهُ لَقُرْآنٌ كَرِيمٌ {77}
कि बेशक ये बड़े रूतबे का क़ुरआन है (77)
काला फ़मा खत्बुकुम
فِي كِتَابٍ مَّكْنُونٍ {78}
जो किताब (लौहे महफूज़) में (लिखा हुआ) है (78)
काला फ़मा खत्बुकुम
لَّا يَمَسُّهُ إِلَّا الْمُطَهَّرُونَ {79}
इसको बस वही लोग छूते हैं जो पाक हैं (79)
काला फ़मा खत्बुकुम
تَنزِيلٌ مِّن رَّبِّ الْعَالَمِينَ {80}
सारे जहाँ के परवरदिगार की तरफ से (मोहम्मद पर) नाजि़ल हुआ है (80)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَفَبِهَذَا الْحَدِيثِ أَنتُم مُّدْهِنُونَ {81}
तो क्या तुम लोग इस कलाम से इन्कार रखते हो (81)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَتَجْعَلُونَ رِزْقَكُمْ أَنَّكُمْ تُكَذِّبُونَ {82}
और तुमने अपनी रोज़ी ये करार दे ली है कि (उसको) झुठलाते हो (82)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَلَوْلَا إِذَا بَلَغَتِ الْحُلْقُومَ {83}
तो क्या जब जान गले तक पहुँचती है (83)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَنتُمْ حِينَئِذٍ تَنظُرُونَ {84}
और तुम उस वक़्त (की हालत) पड़े देखा करते हो (84)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَنَحْنُ أَقْرَبُ إِلَيْهِ مِنكُمْ وَلَكِن لَّا تُبْصِرُونَ {85}
और हम इस (मरने वाले) से तुमसे भी ज़्यादा नज़दीक होते हैं लेकिन तुमको दिखाई नहीं देता (85)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَلَوْلَا إِن كُنتُمْ غَيْرَ مَدِينِينَ {86}
तो अगर तुम किसी के दबाव में नहीं हो (86)
काला फ़मा खत्बुकुम
تَرْجِعُونَهَا إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ {87}
तो अगर (अपने दावे में) तुम सच्चे हो तो रूह को फेर क्यों नहीं देते (87)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَأَمَّا إِن كَانَ مِنَ الْمُقَرَّبِينَ {88}
पस अगर वह (मरने वाला ख़ुदा के) मुक़र्रेबीन से है (88)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَرَوْحٌ وَرَيْحَانٌ وَجَنَّةُ نَعِيمٍ {89}
तो (उस के लिए) आराम व आसाइश है और खुशबूदार फूल और नेअमत के बाग़ (89)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَمَّا إِن كَانَ مِنَ أَصْحَابِ الْيَمِينِ {90}
और अगर वह दाहिने हाथ वालों में से है (90)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَسَلَامٌ لَّكَ مِنْ أَصْحَابِ الْيَمِينِ {91}
तो (उससे कहा जाएगा कि) तुम पर दाहिने हाथ वालों की तरफ़ से सलाम हो (91)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَأَمَّا إِن كَانَ مِنَ الْمُكَذِّبِينَ الضَّالِّينَ {92}
और अगर झुठलाने वाले गुमराहों में से है (92)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَنُزُلٌ مِّنْ حَمِيمٍ {93}
तो (उसकी) मेहमानी खौलता हुआ पानी है (93)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَتَصْلِيَةُ جَحِيمٍ {94}
और जहन्नुम में दाखिल कर देना (94)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنَّ هَذَا لَهُوَ حَقُّ الْيَقِينِ {95}
बेशक ये (ख़बर) यक़ीनन सही है (95)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَسَبِّحْ بِاسْمِ رَبِّكَ الْعَظِيمِ {96}
तो (ऐ रसूल) तुम अपने बुज़ुर्ग परवरदिगार की तस्बीह करो (96)
काला फ़मा खत्बुकुम
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ
काला फ़मा खत्बुकुम
ِ سَبَّحَ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ {1}
जो जो चीज़ सारे आसमान व ज़मीन मे है सब ख़ुदा की तसबीह करती है और वही ग़ालिब हिकमत वाला है (1)
काला फ़मा खत्बुकुम
لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ يُحْيِي وَيُمِيتُ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ {2}
सारे आसमान व ज़मीन की बादशाही उसी की है वही जिलाता है वही मारता है और वही हर चीज़ पर कादिर है (2)
काला फ़मा खत्बुकुम
هُوَ الْأَوَّلُ وَالْآخِرُ وَالظَّاهِرُ وَالْبَاطِنُ وَهُوَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ {3}
वही सबसे पहले और सबसे आखि़र है और (अपनी क़ूवतों से) सब पर ज़ाहिर और (निगाहों से) पोशीदा है और वही सब चीज़ों को जानता (3)
काला फ़मा खत्बुकुम
هُوَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ ثُمَّ اسْتَوَى عَلَى الْعَرْشِ يَعْلَمُ مَا يَلِجُ فِي الْأَرْضِ وَمَا يَخْرُجُ مِنْهَا وَمَا يَنزِلُ مِنَ السَّمَاء وَمَا يَعْرُجُ فِيهَا وَهُوَ مَعَكُمْ أَيْنَ مَا كُنتُمْ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ {4}
वह वही तो है जिसने सारे आसमान व ज़मीन को छहः दिन में पैदा किए फिर अर्श (के बनाने) पर आमादा हुआ जो चीज़ ज़मीन में दाखिल होती है और जो उससे निकलती है और जो चीज़ आसमान से नाजि़ल होती है और जो उसकी तरफ़ चढ़ती है (सब) उसको मालूम है और तुम (चाहे) जहाँ कहीं रहो वह तुम्हारे साथ है और जो कुछ भी तुम करते हो ख़ुदा उसे देख रहा है (4)
काला फ़मा खत्बुकुम
لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَإِلَى اللَّهِ تُرْجَعُ الأمُورُ {5}
सारे आसमान व ज़मीन की बादशाही ख़ास उसी की है और ख़ुदा ही की तरफ़ कुल उमूर की रूजू होती है (5)
काला फ़मा खत्बुकुम
يُولِجُ اللَّيْلَ فِي النَّهَارِ وَيُولِجُ النَّهَارَ فِي اللَّيْلِ وَهُوَ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ {6}
वही रात को (घटा कर) दिन में दाखिल करता है तो दिन बढ़ जाता है और दिन (घटाकर) रात में दाखि़ल करता है (तो रात बढ़ जाती है) और दिलों के भेदों तक से ख़ूब वाकि़फ़ है (6)
काला फ़मा खत्बुकुम
آمِنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَأَنفِقُوا مِمَّا جَعَلَكُم مُّسْتَخْلَفِينَ فِيهِ فَالَّذِينَ آمَنُوا مِنكُمْ وَأَنفَقُوا لَهُمْ أَجْرٌ كَبِيرٌ {7}
(लोगों) ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान लाओ और जिस (माल) में उसने तुमको अपना नायब बनाया है उसमें से से कुछ (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करो तो तुम में से जो लोग ईमान लाए और (राहे ख़ुदा में) ख़र्च करते रहें उनके लिए बड़ा अज्र है (7)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَمَا لَكُمْ لَا تُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَالرَّسُولُ يَدْعُوكُمْ لِتُؤْمِنُوا بِرَبِّكُمْ وَقَدْ أَخَذَ مِيثَاقَكُمْ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ {8}
और तुम्हें क्या हो गया है कि ख़ुदा पर ईमान नहीं लाते हो हालाँकि रसूल तुम्हें बुला रहें हैं कि अपने परवरदिगार पर ईमान लाओ और अगर तुमको बावर हो तो (यक़ीन करो कि) ख़ुदा तुम से (इसका) इक़रार ले चुका (8)
काला फ़मा खत्बुकुम
هُوَ الَّذِي يُنَزِّلُ عَلَى عَبْدِهِ آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ لِيُخْرِجَكُم مِّنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ وَإِنَّ اللَّهَ بِكُمْ لَرَؤُوفٌ رَّحِيمٌ {9}
वही तो है जो अपने बन्दे (मोहम्मद) पर वाज़ेए व रौशन आयतें नाजि़ल करता है ताकि तुम लोगों को (कुफ्ऱ की) तारिक़ीयों से निकाल कर (ईमान की) रौशनी में ले जाए और बेशक ख़ुदा तुम पर बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है (9)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَمَا لَكُمْ أَلَّا تُنفِقُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَلِلَّهِ مِيرَاثُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ لَا يَسْتَوِي مِنكُم مَّنْ أَنفَقَ مِن قَبْلِ الْفَتْحِ وَقَاتَلَ أُوْلَئِكَ أَعْظَمُ دَرَجَةً مِّنَ الَّذِينَ أَنفَقُوا مِن بَعْدُ وَقَاتَلُوا وَكُلًّا وَعَدَ اللَّهُ الْحُسْنَى وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ {10}
और तुमको क्या हो गया कि (अपना माल) ख़ुदा की राह में ख़र्च नहीं करते हालाँकि सारे आसमान व ज़मीन का मालिक व वारिस ख़ुदा ही है तुममें से जिस शख़्स ने फ़तेह (मक्का) से पहले (अपना माल) ख़र्च किया और जेहाद किया (और जिसने बाद में किया) वह बराबर नहीं उनका दर्जा उन लोगों से कहीं बढ़ कर है जिन्होंने बाद में ख़र्च किया और जेहाद किया और (यूँ तो) ख़ुदा ने नेकी और सवाब का वायदा तो सबसे किया है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़ूब वाकि़फ़ है (10)
काला फ़मा खत्बुकुम
مَن ذَا الَّذِي يُقْرِضُ اللَّهَ قَرْضًا حَسَنًا فَيُضَاعِفَهُ لَهُ وَلَهُ أَجْرٌ كَرِيمٌ {11}
कौन ऐसा है जो ख़ुदा को ख़ालिस नियत से क़र्जे हसना दे तो ख़ुदा उसके लिए (अज्र को) दूना कर दे और उसके लिए बहुत मुअज़्जि़ज़ सिला (जन्नत) तो है ही (11)
काला फ़मा खत्बुकुम
يَوْمَ تَرَى الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ يَسْعَى نُورُهُم بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَبِأَيْمَانِهِم بُشْرَاكُمُ الْيَوْمَ جَنَّاتٌ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا ذَلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ {12}
जिस दिन तुम मोमिन मर्द और मोमिन औरतों को देखोगे कि उन (के ईमान) का नूर उनके आगे आगे और दाहिने तरफ़ चल रहा होगा तो उनसे कहा (जाएगा) तुमको बशारत हो कि आज तुम्हारे लिए वह बाग़ है जिनके नीचे नहरें जारी हैं जिनमें हमेशा रहोगे यही तो बड़ी कामयाबी है (12)
काला फ़मा खत्बुकुम
يَوْمَ يَقُولُ الْمُنَافِقُونَ وَالْمُنَافِقَاتُ لِلَّذِينَ آمَنُوا انظُرُونَا نَقْتَبِسْ مِن نُّورِكُمْ قِيلَ ارْجِعُوا وَرَاءكُمْ فَالْتَمِسُوا نُورًا فَضُرِبَ بَيْنَهُم بِسُورٍ لَّهُ بَابٌ بَاطِنُهُ فِيهِ الرَّحْمَةُ وَظَاهِرُهُ مِن قِبَلِهِ الْعَذَابُ {13}
उस दिन मुनाफि़क मर्द और मुनाफि़क औरतें ईमानदारों से कहेंगे एक नज़र (शफ़क़्क़त) हमारी तरफ़ भी करो कि हम भी तुम्हारे नूर से कुछ रौशनी हासिल करें तो (उनसे) कहा जाएगा कि तुम अपने पीछे (दुनिया में) लौट जाओ और (वही) किसी और नूर की तलाश करो फिर उनके बीच में एक दीवार खड़ी कर दी जाएगी जिसमें एक दरवाज़ा होगा (और) उसके अन्दर की जानिब तो रहमत है और बाहर की तरफ़ अज़ाब तो मुनाफि़क़ीन मोमिनीन से पुकार कर कहेंगे (13)
काला फ़मा खत्बुकुम
يُنَادُونَهُمْ أَلَمْ نَكُن مَّعَكُمْ قَالُوا بَلَى وَلَكِنَّكُمْ فَتَنتُمْ أَنفُسَكُمْ وَتَرَبَّصْتُمْ وَارْتَبْتُمْ وَغَرَّتْكُمُ الْأَمَانِيُّ حَتَّى جَاء أَمْرُ اللَّهِ وَغَرَّكُم بِاللَّهِ الْغَرُورُ {14}
(क्यों भाई) क्या हम कभी तुम्हारे साथ न थे तो मोमिनीन कहेंगे थे तो ज़रूर मगर तुम ने तो ख़ुद अपने आपको बला में डाला और (हमारे हक़ में गर्दिशों के) मुन्तजि़र हैं और (दीन में) शक किया किए और तुम्हें (तुम्हारी) तमन्नाओं ने धोखे में रखा यहाँ तक कि ख़ुदा का हुक्म आ पहुँचा और एक बड़े दग़ाबाज़ (शैतान) ने ख़ुदा के बारे में तुमको फ़रेब दिया (14)
काला फ़मा खत्बुकुम
فَالْيَوْمَ لَا يُؤْخَذُ مِنكُمْ فِدْيَةٌ وَلَا مِنَ الَّذِينَ كَفَرُوا مَأْوَاكُمُ النَّارُ هِيَ مَوْلَاكُمْ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ {15}
तो आज न तो तुमसे कोई मुआवज़ा लिया जाएगा और न काफि़रों से तुम सबका ठिकाना (बस) जहन्नुम है वही तुम्हारे वास्ते सज़ावार है और (क्या) बुरी जगह है (15)
काला फ़मा खत्बुकुम
أَلَمْ يَأْنِ لِلَّذِينَ آمَنُوا أَن تَخْشَعَ قُلُوبُهُمْ لِذِكْرِ اللَّهِ وَمَا نَزَلَ مِنَ الْحَقِّ وَلَا يَكُونُوا كَالَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ مِن قَبْلُ فَطَالَ عَلَيْهِمُ الْأَمَدُ فَقَسَتْ قُلُوبُهُمْ وَكَثِيرٌ مِّنْهُمْ فَاسِقُونَ {16}
क्या ईमानदारों के लिए अभी तक इसका वक़्त नहीं आया कि ख़ुदा की याद और क़ुरआन के लिए जो (ख़ुदा की तरफ़ से) नाजि़ल हुआ है उनके दिल नरम हों और वह उन लोगों के से न हो जाएँ जिनको उन से पहले किताब (तौरेत, इन्जील) दी गयी थी तो (जब) एक ज़माना दराज़ गुज़र गया तो उनके दिल सख़्त हो गए और इनमें से बहुतेरे बदकार हैं (16)
काला फ़मा खत्बुकुम
اعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ يُحْيِي الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا قَدْ بَيَّنَّا لَكُمُ الْآيَاتِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ {17}
जान रखो कि ख़ुदा ही ज़मीन को उसके मरने (उफ़तादा होने) के बाद जि़न्दा (आबाद) करता है हमने तुमसे अपनी (क़ुदरत की) निशानियाँ खोल खोल कर बयान कर दी हैं ताकि तुम समझो (17)
काला फ़मा खत्बुकुम
إِنَّ الْمُصَّدِّقِينَ وَالْمُصَّدِّقَاتِ وَأَقْرَضُوا اللَّهَ قَرْضًا حَسَنًا يُضَاعَفُ لَهُمْ وَلَهُمْ أَجْرٌ كَرِيمٌ {18}
बेशक ख़ैरात देने वाले मर्द और ख़ैरात देने वाली औरतें और (जो लोग) ख़ुदा की नीयत से ख़ालिस क़र्ज़ देते हैं उनको दोगुना (अज्र) दिया जाएगा और उनका बहुत मुअजि़ज़ सिला (जन्नत) तो है ही (18)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَالَّذِينَ آمَنُوا بِاللَّهِ وَرُسُلِهِ أُوْلَئِكَ هُمُ الصِّدِّيقُونَ وَالشُّهَدَاء عِندَ رَبِّهِمْ لَهُمْ أَجْرُهُمْ وَنُورُهُمْ وَالَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا أُوْلَئِكَ أَصْحَابُ الْجَحِيمِ {19}
और जो लोग ख़ुदा और उसके रसूलों पर ईमान लाए यही लोग अपने परवरदिगार के नज़दीक सिद्दीक़ों और शहीदों के दरजे में होंगे उनके लिए उन्ही (सिद्दीकों और शहीदों) का अज्र और उन्हीं का नूर होगा और जिन लोगों ने कुफ़्र किया और हमारी आयतों को झुठलाया वही लोग जहन्नुमी हैं (19)
काला फ़मा खत्बुकुम
اعْلَمُوا أَنَّمَا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا لَعِبٌ وَلَهْوٌ وَزِينَةٌ وَتَفَاخُرٌ بَيْنَكُمْ وَتَكَاثُرٌ فِي الْأَمْوَالِ وَالْأَوْلَادِ كَمَثَلِ غَيْثٍ أَعْجَبَ الْكُفَّارَ نَبَاتُهُ ثُمَّ يَهِيجُ فَتَرَاهُ مُصْفَرًّا ثُمَّ يَكُونُ حُطَامًا وَفِي الْآخِرَةِ عَذَابٌ شَدِيدٌ وَمَغْفِرَةٌ مِّنَ اللَّهِ وَرِضْوَانٌ وَمَا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا إِلَّا مَتَاعُ الْغُرُورِ {20}
जान रखो कि दुनियावी जि़न्दगी महज़ खेल और तमाशा और ज़ाहिरी ज़ीनत (व आसाइश) और आपस में एक दूसरे पर फ़ख्ऱ करना और माल और औलाद की एक दूसरे से ज़्यादा ख़्वाहिशश है (दुनयावी जि़न्दगी की मिसाल तो) बारिश की सी मिसाल है जिस (की वजह) से किसानों की खेती (लहलहाती और) उनको ख़ुश कर देती थी फिर सूख जाती है तो तू उसको देखता है कि ज़र्द हो जाती है फिर चूर चूर हो जाती है और आखि़रत में (कुफ्फ़ार के लिए) सख़्त अज़ाब है और (मोमिनों के लिए) ख़ुदा की तरफ़ से बख़शिश और ख़ुशनूदी और दुनयावी जि़न्दगी तो बस फ़रेब का साज़ो सामान है (20)
काला फ़मा खत्बुकुम
سَابِقُوا إِلَى مَغْفِرَةٍ مِّن رَّبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا كَعَرْضِ السَّمَاء وَالْأَرْضِ أُعِدَّتْ لِلَّذِينَ آمَنُوا بِاللَّهِ وَرُسُلِهِ ذَلِكَ فَضْلُ اللَّهِ يُؤْتِيهِ مَن يَشَاء وَاللَّهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيمِ {21}
तुम अपने परवरदिगार के (सबब) बख़शिश की और बेहिश्त की तरफ़ लपक के आगे बढ़ जाओ जिसका अज्र आसमान और ज़मीन के अज्र के बराबर है जो उन लोगों के लिए तैयार की गयी है जो ख़ुदा पर और उसके रसूलों पर ईमान लाए हैं ये ख़ुदा का फज़ल है जिसे चाहे अता करे और ख़ुदा का फज़ल (व क़रम) तो बहुत बड़ा है (21)
काला फ़मा खत्बुकुम
مَا أَصَابَ مِن مُّصِيبَةٍ فِي الْأَرْضِ وَلَا فِي أَنفُسِكُمْ إِلَّا فِي كِتَابٍ مِّن قَبْلِ أَن نَّبْرَأَهَا إِنَّ ذَلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرٌ {22}
जितनी मुसीबतें रूए ज़मीन पर और ख़ुद तुम लोगों पर नाजि़ल होती हैं (वह सब) क़ब्ल इसके कि हम उन्हें पैदा करें किताब (लौह महफूज़) में (लिखी हुयी) हैं बेशक ये ख़ुदा पर आसान है (22)
काला फ़मा खत्बुकुम
لِكَيْلَا تَأْسَوْا عَلَى مَا فَاتَكُمْ وَلَا تَفْرَحُوا بِمَا آتَاكُمْ وَاللَّهُ لَا يُحِبُّ كُلَّ مُخْتَالٍ فَخُورٍ {23}
ताकि जब कोई चीज़ तुमसे जाती रहे तो तुम उसका रंज न किया करो और जब कोई चीज़ (नेअमत) ख़ुदा तुमको दे तो उस पर न इतराया करो और ख़ुदा किसी इतराने वाले शेख़ीबाज़ को दोस्त नहीं रखता (23)
काला फ़मा खत्बुकुम
الَّذِينَ يَبْخَلُونَ وَيَأْمُرُونَ النَّاسَ بِالْبُخْلِ وَمَن يَتَوَلَّ فَإِنَّ اللَّهَ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ {24}
जो ख़ुद भी बुख़्ल करते हैं और दूसरे लोगों को भी बुख़्ल करना सिखाते हैं और जो शख़्स (इन बातों से) रूगरदानी करे तो ख़ुदा भी बेपरवा सज़ावारे हम्दोसना है (24)
काला फ़मा खत्बुकुम
لَقَدْ أَرْسَلْنَا رُسُلَنَا بِالْبَيِّنَاتِ وَأَنزَلْنَا مَعَهُمُ الْكِتَابَ وَالْمِيزَانَ لِيَقُومَ النَّاسُ بِالْقِسْطِ وَأَنزَلْنَا الْحَدِيدَ فِيهِ بَأْسٌ شَدِيدٌ وَمَنَافِعُ لِلنَّاسِ وَلِيَعْلَمَ اللَّهُ مَن يَنصُرُهُ وَرُسُلَهُ بِالْغَيْبِ إِنَّ اللَّهَ قَوِيٌّ عَزِيزٌ {25}
हमने यक़ीनन अपने पैग़म्बरों को वाज़े व रौशन मोजिज़े देकर भेजा और उनके साथ किताब और (इन्साफ़ की) तराज़ू नाजि़ल किया ताकि लोग इन्साफ़ पर क़ायम रहे और हम ही ने लोहे को नाजि़ल किया जिसके ज़रिए से सख़्त लड़ाई और लोगों के बहुत से नफ़े (की बातें) हैं और ताकि ख़ुदा देख ले कि बेदेखे भाले ख़ुदा और उसके रसूलों की कौन मदद करता है बेशक ख़ुदा बहुत ज़बरदस्त ग़ालिब है (25)
काला फ़मा खत्बुकुम
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا نُوحًا وَإِبْرَاهِيمَ وَجَعَلْنَا فِي ذُرِّيَّتِهِمَا النُّبُوَّةَ وَالْكِتَابَ فَمِنْهُم مُّهْتَدٍ وَكَثِيرٌ مِّنْهُمْ فَاسِقُونَ {26}
और बेशक हम ही ने नूह और इबराहीम को (पैग़म्बर बनाकर) भेजा और उनही दोनों की औलाद में नबूवत और किताब मुक़र्रर की तो उनमें के बाज़ हिदायत याफ़्ता हैं और उन के बहुतेरे बदकार हैं (26)
काला फ़मा खत्बुकुम
ثُمَّ قَفَّيْنَا عَلَى آثَارِهِم بِرُسُلِنَا وَقَفَّيْنَا بِعِيسَى ابْنِ مَرْيَمَ وَآتَيْنَاهُ الْإِنجِيلَ وَجَعَلْنَا فِي قُلُوبِ الَّذِينَ اتَّبَعُوهُ رَأْفَةً وَرَحْمَةً وَرَهْبَانِيَّةً ابْتَدَعُوهَا مَا كَتَبْنَاهَا عَلَيْهِمْ إِلَّا ابْتِغَاء رِضْوَانِ اللَّهِ فَمَا رَعَوْهَا حَقَّ رِعَايَتِهَا فَآتَيْنَا الَّذِينَ آمَنُوا مِنْهُمْ أَجْرَهُمْ وَكَثِيرٌ مِّنْهُمْ فَاسِقُونَ {27}
फिर उनके पीछे ही उनके क़दम ब क़दम अपने और पैग़म्बर भेजे और उनके पीछे मरियम के बेटे ईसा को भेजा और उनको इन्जील अता की और जिन लोगों ने उनकी पैरवी की उनके दिलों में शफ़क़्क़त और मेहरबानी डाल दी और रहबानियत (लज़्ज़ात से किनाराकशी) उन लोगों ने ख़ुद एक नयी बात निकाली थी हमने उनको उसका हुक़्म नहीं दिया था मगर (उन लोगों ने) ख़ुदा की ख़ुशनूदी हासिल करने की ग़रज़ से (ख़ुद ईजाद किया) तो उसको भी जैसा बनाना चाहिए था न बना सके तो जो लोग उनमें से इमान लाए उनको हमने उनका अज्र दिया उनमें के बहुतेरे तो बदकार ही हैं (27)
काला फ़मा खत्बुकुम
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَآمِنُوا بِرَسُولِهِ يُؤْتِكُمْ كِفْلَيْنِ مِن رَّحْمَتِهِ وَيَجْعَل لَّكُمْ نُورًا تَمْشُونَ بِهِ وَيَغْفِرْ لَكُمْ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ {28}
ऐ ईमानदारों ख़ुदा से डरो और उसके रसूल (मोहम्मद) पर ईमान लाओ तो ख़ुदा तुमको अपनी रहमत के दो हिस्से अज्र अता फ़रमाएगा और तुमको ऐसा नूर इनायत फ़रमाएगा जिस (की रौशनी) में तुम चलोगे और तुमको बख़्श भी देगा और ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (28)
काला फ़मा खत्बुकुम
لِئَلَّا يَعْلَمَ أَهْلُ الْكِتَابِ أَلَّا يَقْدِرُونَ عَلَى شَيْءٍ مِّن فَضْلِ اللَّهِ وَأَنَّ الْفَضْلَ بِيَدِ اللَّهِ يُؤْتِيهِ مَن يَشَاء وَاللَّهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيمِ {29}
(ये इसलिए कहा जाता है) ताकि एहले किताब ये न समझें कि ये मोमिनीन ख़ुदा के फज़ल (व क़रम) पर कुछ भी क़ुदरत नहीं रखते और ये तो यक़ीनी बात है कि फज़ल ख़ुदा ही के कब्ज़े में है वह जिसको चाहे अता फरमाए और ख़ुदा तो बड़े फज़ल (व क़रम) का मालिक है (29)