Quran पारा 21

उतलु मा ऊहिया

اتْلُ مَا أُوحِيَ إِلَيْكَ مِنَ الْكِتَابِ وَأَقِمِ الصَّلَاةَ إِنَّ الصَّلَاةَ تَنْهَى عَنِ الْفَحْشَاء وَالْمُنكَرِ وَلَذِكْرُ اللَّهِ أَكْبَرُ وَاللَّهُ يَعْلَمُ مَا تَصْنَعُونَ {45}

(ऐ रसूल) जो किताब तुम्हारे पास नाजि़ल की गयी है उसकी तिलावत करो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो बेशक नमाज़ बेहयाई और बुरे कामों से बाज़ रखती है और ख़ुदा की याद यक़ीनी बड़ा मरतबा रखती है और तुम लोग जो कुछ करते हो ख़ुदा उससे वाकि़फ है (45)

उतलु मा ऊहिया

وَلَا تُجَادِلُوا أَهْلَ الْكِتَابِ إِلَّا بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ إِلَّا الَّذِينَ ظَلَمُوا مِنْهُمْ وَقُولُوا آمَنَّا بِالَّذِي أُنزِلَ إِلَيْنَا وَأُنزِلَ إِلَيْكُمْ وَإِلَهُنَا وَإِلَهُكُمْ وَاحِدٌ وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ {46}

और (ऐ इमानदारों) एहले किताब से मनाजि़रा न किया करो मगर उमदा और शाएस्ता अलफाज़ व उनवान से लेकिन उनमें से जिन लोगों ने तुम पर ज़ुल्म किया (उनके साथ रिआयत न करो) और साफ़ साफ़ कह दो कि जो किताब हम पर नाजि़ल हुयी और जो किताब तुम पर नाजि़ल हुयी है हम तो सब पर इमान ला चुके और हमारा माबूद और तुम्हारा माबूद एक ही है और हम उसी के फरमाबरदार है (46)

उतलु मा ऊहिया

وَكَذَلِكَ أَنزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ فَالَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يُؤْمِنُونَ بِهِ وَمِنْ هَؤُلَاء مَن يُؤْمِنُ بِهِ وَمَا يَجْحَدُ بِآيَاتِنَا إِلَّا الْكَافِرُونَ {47}

और (ऐ रसूल जिस तरह अगले पैग़म्बरों पर किताबें उतारी) उसी तरह हमने तुम्हारे पास किताब नाजि़ल की तो जिन लोगों को हमने (पहले) किताब अता की है वह उस पर भी इमान रखते हैं और (अरबो) में से बाज़ वह हैं जो उस पर इमान रखते हैं और हमारी आयतों के तो बस पक्के कट्टर काफ़िर ही मुनकिर है (47)

उतलु मा ऊहिया

وَمَا كُنتَ تَتْلُو مِن قَبْلِهِ مِن كِتَابٍ وَلَا تَخُطُّهُ بِيَمِينِكَ إِذًا لَّارْتَابَ الْمُبْطِلُونَ {48}

और (ऐ रसूल) क़ुरआन से पहले न तो तुम कोई किताब ही पढ़ते थे और न अपने हाथ से तुम लिखा करते थे ऐसा होता तो ये झूठे ज़रुर (तुम्हारी नबुवत में) शक करते (48)

उतलु मा ऊहिया

بَلْ هُوَ آيَاتٌ بَيِّنَاتٌ فِي صُدُورِ الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ وَمَا يَجْحَدُ بِآيَاتِنَا إِلَّا الظَّالِمُونَ {49}

मगर जिन लोगों को (ख़ुदा की तरफ़ से) इल्म अता हुआ है उनके दिल में ये (क़ुरआन) वाजेए व रौशन आयतें हैं और सरकशी के सिवा हमारी आयतो से कोई इन्कार नहीं करता (49)

उतलु मा ऊहिया

وَقَالُوا لَوْلَا أُنزِلَ عَلَيْهِ آيَاتٌ مِّن رَّبِّهِ قُلْ إِنَّمَا الْآيَاتُ عِندَ اللَّهِ وَإِنَّمَا أَنَا نَذِيرٌ مُّبِينٌ {50}

और (कुफ़्फ़ार अरब) कहते हैं कि इस (रसूल) पर उसके परवरदिगार की तरफ़ से मौजिज़े क्यों नही नाजि़ल होते (ऐ रसूल उनसे) कह दो कि मौजिज़े तो बस ख़ुदा ही के पास हैं और मै तो सिर्फ़ साफ़ साफ़ (अज़ाबे ख़ुदा से) डराने वाला हूँ (50)

उतलु मा ऊहिया

أَوَلَمْ يَكْفِهِمْ أَنَّا أَنزَلْنَا عَلَيْكَ الْكِتَابَ يُتْلَى عَلَيْهِمْ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَرَحْمَةً وَذِكْرَى لِقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ {51}

क्या उनके लिए ये काफ़ी नहीं कि हमने तुम पर क़ुरआन नाजि़ल किया जो उनके सामने पढ़ा जाता है इसमें शक नहीं कि इमानदार लोगों के लिए इसमें (ख़ुदा की बड़ी) मेहरबानी और (अच्छी ख़ासी) नसीहत है (51)

उतलु मा ऊहिया

قُلْ كَفَى بِاللَّهِ بَيْنِي وَبَيْنَكُمْ شَهِيدًا يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَالَّذِينَ آمَنُوا بِالْبَاطِلِ وَكَفَرُوا بِاللَّهِ أُوْلَئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ {52}

तुम कह दो कि मेरे और तुम्हारे दरम्यिान गवाही के वास्ते ख़ुदा ही काफी है जो सारे आसमान व ज़मीन की चीज़ों को जानता है-और जिन लोगों ने बातिल को माना और ख़ुदा से इन्कार किया वही लोग बड़े घाटे में रहेंगे (52) 

उतलु मा ऊहिया

وَيَسْتَعْجِلُونَكَ بِالْعَذَابِ وَلَوْلَا أَجَلٌ مُّسَمًّى لَجَاءهُمُ الْعَذَابُ وَلَيَأْتِيَنَّهُم بَغْتَةً وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ {53}

और (ऐ रसूल) तुमसे लोग अज़ाब के नाजि़ल होने की जल्दी करते हैं और अगर (अज़ाब का) वक़्त मुअय्यन न होता तो यक़ीनन उन काफ़िरों तक अज़ाब आ जाता और (आखि़र एक दिन) उन पर अचानक ज़रुर आ पड़ेगा और उनको ख़बर भी न होगी (53)

उतलु मा ऊहिया

يَسْتَعْجِلُونَكَ بِالْعَذَابِ وَإِنَّ جَهَنَّمَ لَمُحِيطَةٌ بِالْكَافِرِينَ {54}

ये लोग तुमसे अज़ाब की जल्दी करते हैं और ये यक़ीनी बात है कि दोज़ख़ काफ़िरों को (इस तरह) घेर कर रहेगी (कि रुक न सकेंगे) (54)

उतलु मा ऊहिया

يَوْمَ يَغْشَاهُمُ الْعَذَابُ مِن فَوْقِهِمْ وَمِن تَحْتِ أَرْجُلِهِمْ وَيَقُولُ ذُوقُوا مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ {55}

जिस दिन अज़ाब उनके सर के ऊपर से और उनके पाँव के नीचे से उनको ढांके होगा और ख़़ुदा (उनसे) फ़रमाएगा कि जो जो कारस्तानियाँ तुम (दुनिया में) करते थे अब उनका मज़ा चखो (55)

उतलु मा ऊहिया

يَا عِبَادِيَ الَّذِينَ آمَنُوا إِنَّ أَرْضِي وَاسِعَةٌ فَإِيَّايَ فَاعْبُدُونِ {56}

ऐ मेरे ईमानदार बन्दों मेरी ज़मीन तो यक़ीनन कुशादा है तो तुम मेरी ही इबादत करो (56)

उतलु मा ऊहिया

كُلُّ نَفْسٍ ذَائِقَةُ الْمَوْتِ ثُمَّ إِلَيْنَا تُرْجَعُونَ {57}

हर शख़्स (एक न एक दिन) मौत का मज़ा चखने वाला है फिर तुम सब आखि़र हमारी ही तरफ़ लौटाए जाओगे (57)

उतलु मा ऊहिया

وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَنُبَوِّئَنَّهُم مِّنَ الْجَنَّةِ غُرَفًا تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا نِعْمَ أَجْرُ الْعَامِلِينَ {58}

और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उनको हम बेहेश्त के झरोखों में जगह देगें जिनके नीचे नहरें जारी हैं जिनमें वह हमेशा रहेंगे (अच्छे चलन वालो की भी क्या ख़ूब ख़री मज़दूरी है) (58)

उतलु मा ऊहिया

الَّذِينَ صَبَرُوا وَعَلَى رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ {59}

जिन्होंने (दुनिया में मुसिबतों पर) सब्र किया और अपने परवरदिगार पर भरोसा रखते हैं (59)

उतलु मा ऊहिया

وَكَأَيِّن مِن دَابَّةٍ لَا تَحْمِلُ رِزْقَهَا اللَّهُ يَرْزُقُهَا وَإِيَّاكُمْ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ {60}

और ज़मीन पर चलने वालों में बहुतेरे ऐसे हैं जो अपनी रोज़ी अपने ऊपर लादे नहीं फिरते ख़़ुदा ही उनको भी रोज़ी देता है और तुम को भी और वह बड़ा सुनने वाला वाकि़फकार है (60)

उतलु मा ऊहिया

وَلَئِن سَأَلْتَهُم مَّنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ لَيَقُولُنَّ اللَّهُ فَأَنَّى يُؤْفَكُونَ {61}

(ऐ रसूल) अगर तुम उनसे पूछो कि (भला) किसने सारे आसमान व ज़मीन को पैदा किया और चाँद और सूरज को काम में लगाया तो वह ज़रुर यही कहेंगे कि अल्लाह ने फिर वह कहाँ बहके चले जाते हैं (61)

उतलु मा ऊहिया

اللَّهُ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَن يَشَاء مِنْ عِبَادِهِ وَيَقْدِرُ لَهُ إِنَّ اللَّهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ {62}

ख़ुदा ही अपने बन्दों में से जिसकी रोज़ी चाहता है कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है तंग कर देता है इसमें शक नहीं कि ख़़ुदा ही हर चीज़ से वाकि़फ़ है (62)

उतलु मा ऊहिया

وَلَئِن سَأَلْتَهُم مَّن نَّزَّلَ مِنَ السَّمَاء مَاء فَأَحْيَا بِهِ الْأَرْضَ مِن بَعْدِ مَوْتِهَا لَيَقُولُنَّ اللَّهُ قُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْقِلُونَ {63}

और (ऐ रसूल) अगर तुम उससे पूछो कि किसने आसमान से पानी बरसाया फिर उसके ज़रिये से ज़मीन को इसके मरने (परती होने) के बाद जि़न्दा (आबाद) किया तो वह ज़रुर यही कहेंगे कि अल्लाह ने (ऐ रसूल) तुम कह दो अल्हम दो लिल्लाह-मगर उनमे से बहुतेरे (इतना भी) नहीं समझते (63)

उतलु मा ऊहिया

وَمَا هَذِهِ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا إِلَّا لَهْوٌ وَلَعِبٌ وَإِنَّ الدَّارَ الْآخِرَةَ لَهِيَ الْحَيَوَانُ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ {64}

और ये दुनिया की जि़न्दगी तो खेल तमाशे के सिवा कुछ नहीं और मगर ये लोग समझें बूझें तो इसमे शक नहीं कि अबदी जि़न्दगी (की जगह) तो बस आख़ेरत का घर है (बाक़ी लग़ो) (64)

उतलु मा ऊहिया

فَإِذَا رَكِبُوا فِي الْفُلْكِ دَعَوُا اللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ فَلَمَّا نَجَّاهُمْ إِلَى الْبَرِّ إِذَا هُمْ يُشْرِكُونَ {65}

फिर जब ये लोग कश्ती में सवार होते हैं तो निहायत ख़ुलूस से उसकी इबादत करने वाले बन कर ख़़ुदा से दुआ करते हैं फिर जब उन्हें खुश्कीमें (पहुँचा कर) नजात देता है तो फौरन शिर्क करने लगते हैं (65)

उतलु मा ऊहिया

لِيَكْفُرُوا بِمَا آتَيْنَاهُمْ وَلِيَتَمَتَّعُوا فَسَوْفَ يَعْلَمُونَ {66}

ताकि जो (नेअमतें) हमने उन्हें अता की हैं उनका इन्कार कर बैठें और ताकि (दुनिया में) ख़ूब चैन कर लें तो अनक़रीब ही (इसका नतीजा) उन्हें मालूम हो जाएगा (66)

उतलु मा ऊहिया

أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّا جَعَلْنَا حَرَمًا آمِنًا وَيُتَخَطَّفُ النَّاسُ مِنْ حَوْلِهِمْ أَفَبِالْبَاطِلِ يُؤْمِنُونَ وَبِنِعْمَةِ اللَّهِ يَكْفُرُونَ {67}

क्या उन लोगों ने इस पर ग़ौर नहीं किया कि हमने हरम (मक्का) को अमन व इत्मेनान की जगह बनाया हालाँ कि उनके गिर्द व नवाह से लोग उचक ले जाते हैं तो क्या ये लोग झूठे माबूदों पर ईमान लाते हैं और ख़़ुदा की नेअमत की नाशुक्री करते हैं (67)

उतलु मा ऊहिया

وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرَى عَلَى اللَّهِ كَذِبًا أَوْ كَذَّبَ بِالْحَقِّ لَمَّا جَاءهُ أَلَيْسَ فِي جَهَنَّمَ مَثْوًى لِّلْكَافِرِينَ {68}

और जो शख़्स ख़़ुदा पर झूठ बोहतान बॅाधे या जब उसके पास कोई सच्ची बात आए तो झुठला दे इससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा क्या (इन) काफ़िरों का ठिकाना जहन्नुम में नहीं है (ज़रुर है) (68)

उतलु मा ऊहिया

وَالَّذِينَ جَاهَدُوا فِينَا لَنَهْدِيَنَّهُمْ سُبُلَنَا وَإِنَّ اللَّهَ لَمَعَ الْمُحْسِنِينَ {69}

और जिन लोगों ने हमारी राह में जिहाद किया उन्हें हम ज़रुर अपनी राह की हिदायत करेंगे और इसमें शक नही कि ख़़ुदा नेकोकारों का साथी है (69)

उतलु मा ऊहिया

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरु करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला हैं 

उतलु मा ऊहिया

الم {1}

अलिफ़ लाम मीम (1)

उतलु मा ऊहिया

غُلِبَتِ الرُّومُ {2}

(यहाँ से) बहुत क़रीब के मुल्क में रोमी (नसारा एहले फ़ारस आतिश परस्तों से) हार गए (2)

उतलु मा ऊहिया

فِي أَدْنَى الْأَرْضِ وَهُم مِّن بَعْدِ غَلَبِهِمْ سَيَغْلِبُونَ {3}

मगर ये लोग अनक़रीब ही अपने हार जाने के बाद चन्द सालों में फिर (एहले फ़ारस पर) ग़ालिब आ जाएँगे (3)

उतलु मा ऊहिया

فِي بِضْعِ سِنِينَ لِلَّهِ الْأَمْرُ مِن قَبْلُ وَمِن بَعْدُ وَيَوْمَئِذٍ يَفْرَحُ الْمُؤْمِنُونَ {4}

क्योंकि (इससे) पहले और बाद (ग़रज़ हर ज़माने में) हर अम्र का एख़्तेयार ख़ुदा ही को है और उस दिन ईमानदार लोग ख़ुदा की मदद से खुश हो जाएँगे (4)

उतलु मा ऊहिया

بِنَصْرِ اللَّهِ يَنصُرُ مَن يَشَاء وَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ {5}

वह जिसकी चाहता है मदद करता है और वह (सब पर) ग़ालिब रहम करने वाला है (5)

उतलु मा ऊहिया

وَعْدَ اللَّهِ لَا يُخْلِفُ اللَّهُ وَعْدَهُ وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ {6}

(ये) ख़़ुदा का वायदा है) ख़़ुदा अपने वायदे के खि़लाफ नहीं किया करता मगर अकसर लोग नहीं जानते हैं (6)

उतलु मा ऊहिया

يَعْلَمُونَ ظَاهِرًا مِّنَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَهُمْ عَنِ الْآخِرَةِ هُمْ غَافِلُونَ {7}

ये लोग बस दुनियावी जि़न्दगी की ज़ाहिरी हालत को जानते हैं और ये लोग आख़ेरत से बिल्कुल ग़ाफिल हैं (7)

उतलु मा ऊहिया

أَوَلَمْ يَتَفَكَّرُوا فِي أَنفُسِهِمْ مَا خَلَقَ اللَّهُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا إِلَّا بِالْحَقِّ وَأَجَلٍ مُّسَمًّى وَإِنَّ كَثِيراً مِّنَ النَّاسِ بِلِقَاء رَبِّهِمْ لَكَافِرُونَ {8}

क्या उन लोगों ने अपने दिल में (इतना भी) ग़ौर नहीं किया कि ख़ुदा ने सारे आसमान और ज़मीन को और जो चीजे़ उन दोनों के दरमेयान में हैं बस बिल्कुल ठीक और एक मुक़र्रर मियाद के वास्ते पैदा किया है और कुछ शक नहीं कि बहुतेरे लोग तो अपने परवरदिगार की (बारगाह) के हुज़ूर में (क़यामत) ही को किसी तरह नहीं मानते (8)

उतलु मा ऊहिया

أَوَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَيَنظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ كَانُوا أَشَدَّ مِنْهُمْ قُوَّةً وَأَثَارُوا الْأَرْضَ وَعَمَرُوهَا أَكْثَرَ مِمَّا عَمَرُوهَا وَجَاءتْهُمْ رُسُلُهُم بِالْبَيِّنَاتِ فَمَا كَانَ اللَّهُ لِيَظْلِمَهُمْ وَلَكِن كَانُوا أَنفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ {9}

क्या ये लोग रुए ज़मीन पर चले फिरे नहीं कि देखते कि जो लोग इनसे पहले गुज़र गए उनका अन्जाम कैसा (बुरा) हुआ हांलाँकि जो लोग उनसे पहले क़ूवत में भी कहीं ज़्यादा थे और जिस क़दर ज़मीन उन लोगों ने आबाद की है उससे कहीं ज़्यादा (ज़मीन की) उन लोगों ने काश्त भी की थी और उसको आबाद भी किया था और उनके पास भी उनके पैग़म्बर वाज़ेए व रौशन मौजिज़े लेकर आ चुके थे (मगर उन लोगों ने न माना) तो ख़ुदा ने उन पर कोई ज़ुल्म नहीं किया मगर वह लोग (कुफ़्र व सरकशी से) आप अपने ऊपर ज़ुल्म करते रहे (9)

उतलु मा ऊहिया

ثُمَّ كَانَ عَاقِبَةَ الَّذِينَ أَسَاؤُوا السُّوأَى أَن كَذَّبُوا بِآيَاتِ اللَّهِ وَكَانُوا بِهَا يَسْتَهْزِئُون {10}

फिर जिन लोगों ने बुराई की थी उनका अन्जाम बुरा ही हुआ क्योंकि उन लोगों ने ख़ुदा की आयतों को झुठलाया था और उनके साथ मसखरा पन किया किए (10)

उतलु मा ऊहिया

اللَّهُ يَبْدَأُ الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيدُهُ ثُمَّ إِلَيْهِ تُرْجَعُونَ {11}

ख़ुदा ही ने मख़लूकात को पहली बार पैदा किया फिर वही दुबारा (पैदा करेगा) फिर तुम सब लोग उसी की तरफ़ लौटाए जाओगे (11)

उतलु मा ऊहिया

وَيَوْمَ تَقُومُ السَّاعَةُ يُبْلِسُ الْمُجْرِمُونَ {12}

और जिस दिन क़यामत बरपा होगी (उस दिन) गुनेहगार लोग ना उम्मीद होकर रह जाएँगे (12)

उतलु मा ऊहिया

وَلَمْ يَكُن لَّهُم مِّن شُرَكَائِهِمْ شُفَعَاء وَكَانُوا بِشُرَكَائِهِمْ كَافِرِينَ {13}

और उनके (बनाए हुए ख़ुदा के) शरीकों में से कोई उनका सिफ़ारिशी न होगा और ये लोग ख़़ुद भी अपने शरीकों से इन्कार कर जाएँगे (13) 

उतलु मा ऊहिया

وَيَوْمَ تَقُومُ السَّاعَةُ يَوْمَئِذٍ يَتَفَرَّقُونَ {14}

और जिस दिन क़यामत बरपा होगी उस दिन (मोमिनों से) कुफ़्फ़ार जुदा हो जाएँगें (14) 

उतलु मा ऊहिया

فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فَهُمْ فِي رَوْضَةٍ يُحْبَرُونَ {15}

फिर जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए तो वह बाग़े बेहेशत में निहाल कर दिए जाएँगे (15) 

उतलु मा ऊहिया

وَأَمَّا الَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا وَلِقَاء الْآخِرَةِ فَأُوْلَئِكَ فِي الْعَذَابِ مُحْضَرُونَ {16}

मगर जिन लोगों के कुफ़्र एख़्तेयार किया और हमारी आयतों और आख़ेरत की हुज़ूरी को झुठलाया तो ये लोग अज़ाब में गिरफ्तार किए जाएँगे (16)

उतलु मा ऊहिया

فَسُبْحَانَ اللَّهِ حِينَ تُمْسُونَ وَحِينَ تُصْبِحُونَ {17}

फिर जिस वक़्त तुम लोगों की शाम हो और जिस वक़्त तुम्हारी सुबह हो ख़ुदा की पाकीज़गी ज़ाहिर करो (17)

उतलु मा ऊहिया

وَلَهُ الْحَمْدُ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَعَشِيًّا وَحِينَ تُظْهِرُونَ {18}

और सारे आसमान व ज़मीन में तीसरे पहर को और जिस वक़्त तुम लोगों की दोपहर हो जाए वही क़ाबिले तारीफ़ है (18)

उतलु मा ऊहिया

يُخْرِجُ الْحَيَّ مِنَ الْمَيِّتِ وَيُخْرِجُ الْمَيِّتَ مِنَ الْحَيِّ وَيُحْيِي الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا وَكَذَلِكَ تُخْرَجُونَ {19}

वही जि़न्दा को मुर्दे से निकालता है और वही मुर्दे को जिन्द़ा से पैदा करता है और ज़मीन को मरने (परती होने) के बाद जि़न्दा (आबाद) करता है और इसी तरह तुम लोग भी (मरने के बाद निकाले जाओगे) (19)

उतलु मा ऊहिया

وَمِنْ آيَاتِهِ أَنْ خَلَقَكُم مِّن تُرَابٍ ثُمَّ إِذَا أَنتُم بَشَرٌ تَنتَشِرُونَ {20}

और उस (की कु़दरत) की निशानियों में ये भी है कि उसने तुमको मिट्टी से पैदा किया फिर यकायक तुम आदमी बनकर (ज़मीन पर) चलने फिरने लगे (20) 

उतलु मा ऊहिया

وَمِنْ آيَاتِهِ أَنْ خَلَقَ لَكُم مِّنْ أَنفُسِكُمْ أَزْوَاجًا لِّتَسْكُنُوا إِلَيْهَا وَجَعَلَ بَيْنَكُم مَّوَدَّةً وَرَحْمَةً إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ {21}

और उसी की (क़़ुदरत) की निशानियों में से एक ये (भी) है कि उसने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी ही जिन्स की बीवियाँ पैदा की ताकि तुम उनके साथ रहकर चैन करो और तुम लोगों के दरमेयान प्यार और उलफ़त पैदा कर दी इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर करने वालों के वास्ते (क़ु़दरते ख़़ुदा की) यक़ीनी बहुत सी निशानियाँ हैं (21)

उतलु मा ऊहिया

وَمِنْ آيَاتِهِ خَلْقُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَاخْتِلَافُ أَلْسِنَتِكُمْ وَأَلْوَانِكُمْ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِّلْعَالِمِينَ {22}

और उस (की क़़ुदरत) की निशानियों में आसमानो और ज़मीन का पैदा करना और तुम्हारी ज़बानो और रंगतो का एख़तेलाफ भी है यकी़नन इसमें वाकि़फकारों के लिए बहुत सी निशानियाँ हैं (22)

उतलु मा ऊहिया

وَمِنْ آيَاتِهِ مَنَامُكُم بِاللَّيْلِ وَالنَّهَارِ وَابْتِغَاؤُكُم مِّن فَضْلِهِ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يَسْمَعُونَ {23}

और रात और दिन को तुम्हारा सोना और उसके फज़ल व करम (रोज़ी) की तलाश करना भी उसकी (क़़ुदरत की) निशानियों से है बेशक जो लोग सुनते हैं उनके लिए इसमें (क़़ुदरते ख़़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं (23)

उतलु मा ऊहिया

وَمِنْ آيَاتِهِ يُرِيكُمُ الْبَرْقَ خَوْفًا وَطَمَعًا وَيُنَزِّلُ مِنَ السَّمَاء مَاء فَيُحْيِي بِهِ الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يَعْقِلُونَ {24}

और उसी की (क़़ुदरत की) निशानियों में से एक ये भी है कि वह तुमको डराने वाला उम्मीद लाने के वास्ते बिजली दिखाता है और आसमान से पानी बरसाता है और उसके ज़रिए से ज़मीन को उसके परती होने के बाद आबाद करता है बेशक अक़्लमंदों के वास्ते इसमें (क़ुदरते ख़़ुदा की) बहुत सी दलीलें हैं (24) 

उतलु मा ऊहिया

وَمِنْ آيَاتِهِ أَن تَقُومَ السَّمَاء وَالْأَرْضُ بِأَمْرِهِ ثُمَّ إِذَا دَعَاكُمْ دَعْوَةً مِّنَ الْأَرْضِ إِذَا أَنتُمْ تَخْرُجُونَ {25}

और उसी की (क़़ुदरत की) निशानियों में से एक ये भी है कि आसमान और ज़मीन उसके हुक्म से क़ायम हैं फिर (मरने के बाद) जिस वक़्त तुमको एक बार बुलाएगा तो तुम सबके सब ज़मीन से (जि़न्दा हो होकर) निकल पड़ोगे (25)

उतलु मा ऊहिया

وَلَهُ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ كُلٌّ لَّهُ قَانِتُونَ {26}

और जो लोग आसमानों में है सब उसी के है और सब उसी के ताबेए फरमान हैं (26)

उतलु मा ऊहिया

وَهُوَ الَّذِي يَبْدَأُ الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيدُهُ وَهُوَ أَهْوَنُ عَلَيْهِ وَلَهُ الْمَثَلُ الْأَعْلَى فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ {27}

और वह ऐसा (क़ादिरे मुत्तलिक़ है जो मख़लूकात को पहली बार पैदा करता है फिर दोबारा (क़यामत के दिन) पैदा करेगा और ये उस पर बहुत आसान है और सारे आसमान व जमीन सबसे बालातर उसी की शान है और वही (सब पर) ग़ालिब हिकमत वाला है (27) 

उतलु मा ऊहिया

ضَرَبَ لَكُم مَّثَلًا مِنْ أَنفُسِكُمْ هَل لَّكُم مِّن مَّا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُم مِّن شُرَكَاء فِي مَا رَزَقْنَاكُمْ فَأَنتُمْ فِيهِ سَوَاء تَخَافُونَهُمْ كَخِيفَتِكُمْ أَنفُسَكُمْ كَذَلِكَ نُفَصِّلُ الْآيَاتِ لِقَوْمٍ يَعْقِلُونَ {28}

और हमने (तुम्हारे समझाने के वास्ते) तुम्हारी ही एक मिसाल बयान की है हमने जो कुछ तुम्हे अता किया है क्या उसमें तुम्हारी लौन्डी गु़लामों में से कोई (भी) तुम्हारा शरीक है कि (वह और) तुम उसमें बराबर हो जाओ (और क्या) तुम उनसे ऐसा ही ख़ौफ रखते हो जितना तुम्हें अपने लोगों का (हक़ हिस्सा न देने में) ख़ौफ होता है फिर बन्दों को खुदा का शरीक क्यों बनाते हो) अक़्ल मन्दों के वास्ते हम यूँ अपनी आयतों को तफ़सीलदार बयान करते हैं (28)

उतलु मा ऊहिया

بَلِ اتَّبَعَ الَّذِينَ ظَلَمُوا أَهْوَاءهُم بِغَيْرِ عِلْمٍ فَمَن يَهْدِي مَنْ أَضَلَّ اللَّهُ وَمَا لَهُم مِّن نَّاصِرِينَ {29}

मगर सरकशों ने तो बगै़र समझे बूझे अपनी नफ़सियानी ख़्वाहिशों की पैरवी कर ली (और ख़़ुदा का शरीक ठहरा दिया) ग़रज़ ख़ुदा जिसे गुमराही में छोड़ दे (फिर) उसे कौन राहे रास्त पर ला सकता है और उनका कोई मददगार (भी) नहीं (29) 

उतलु मा ऊहिया

فَأَقِمْ وَجْهَكَ لِلدِّينِ حَنِيفًا فِطْرَةَ اللَّهِ الَّتِي فَطَرَ النَّاسَ عَلَيْهَا لَا تَبْدِيلَ لِخَلْقِ اللَّهِ ذَلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ {30}

तो (ऐ रसूल) तुम बातिल से कतरा के अपना रुख़ दीन की तरफ़ किए रहो यही ख़ुदा की बनावट है जिस पर उसने लोगों को पैदा किया है ख़़ुदा की (दुरुस्त की हुयी) बनावट में तग़य्युर तबद्दुल {उलट फेर} नहीं हो सकता यही मज़बूत और (बिल्कुल सीधा) दीन है मगर बहुत से लोग नहीं जानते हैं (30) 

उतलु मा ऊहिया

مُنِيبِينَ إِلَيْهِ وَاتَّقُوهُ وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَلَا تَكُونُوا مِنَ الْمُشْرِكِينَ {31}

उसी की तरफ़ रुजू होकर (ख़ुदा की इबादत करो) और उसी से डरते रहो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो और मुशरेकीन से न हो जाना (31) 

उतलु मा ऊहिया

مِنَ الَّذِينَ فَرَّقُوا دِينَهُمْ وَكَانُوا شِيَعًا كُلُّ حِزْبٍ بِمَا لَدَيْهِمْ فَرِحُونَ {32}

जिन्होंने अपने (असली) दीन में तफरेक़ा परवाज़ी की और मुख़्तलिफ़ फिरके़ के बन गए जो (दीन) जिस फिरके़ के पास है उसी में निहाल है (32)

उतलु मा ऊहिया

وَإِذَا مَسَّ النَّاسَ ضُرٌّ دَعَوْا رَبَّهُم مُّنِيبِينَ إِلَيْهِ ثُمَّ إِذَا أَذَاقَهُم مِّنْهُ رَحْمَةً إِذَا فَرِيقٌ مِّنْهُم بِرَبِّهِمْ يُشْرِكُونَ {33}

और जब लोगों को कोई मुसीबत छू भी गयी तो उसी की तरफ़ रुजू होकर अपने परवरदिगार को पुकारने लगते हैं फिर जब वह अपनी रहमत की लज़्ज़त चखा देता है तो उन्हीं में से कुछ लोग अपने परवरदिगार के साथ शिर्क करने लगते हैं (33)

उतलु मा ऊहिया

لِيَكْفُرُوا بِمَا آتَيْنَاهُمْ فَتَمَتَّعُوا فَسَوْفَ تَعْلَمُونَ {34}

ताकि जो (नेअमत) हमने उन्हें दी है उसकी नाशुक्री करें ख़ैर (दुनिया में चन्दरोज़ चैन कर लो) फिर तो बहुत जल्द (अपने किए का मज़ा) तुम्हे मालूम ही होगा (34)

उतलु मा ऊहिया

أَمْ أَنزَلْنَا عَلَيْهِمْ سُلْطَانًا فَهُوَ يَتَكَلَّمُ بِمَا كَانُوا بِهِ يُشْرِكُونَ {35}

क्या हमने उन लोगों पर कोई दलील नाजि़ल की है जो उस (के हक़ होने) को बयान करती है जिसे ये लोग ख़ुदा का शरीक ठहराते हैं (हरगि़ज नहीं) (35)

उतलु मा ऊहिया

وَإِذَا أَذَقْنَا النَّاسَ رَحْمَةً فَرِحُوا بِهَا وَإِن تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ إِذَا هُمْ يَقْنَطُونَ {36}

और जब हमने लोगों को (अपनी रहमत की लज़्ज़त) चखा दी तो वह उससे खुश हो गए और जब उन्हें अपने हाथों की अगली कारसतानियो की बदौलत कोई मुसीबत पहुँची तो यकबारगी मायूस होकर बैठे रहते हैं (36)

उतलु मा ऊहिया

أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّ اللَّهَ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَن يَشَاء وَيَقْدِرُ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ {37}

क्या उन लोगों ने (इतना भी) ग़ौर नहीं किया कि खु़दा ही जिसकी रोज़ी चाहता है कुशादा कर देता है और (जिसकी चाहता है) तंग करता है-कुछ शक नहीं कि इसमें इमानरदार लोगों के वास्ते (कुदरत ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं (37)

उतलु मा ऊहिया

فَآتِ ذَا الْقُرْبَى حَقَّهُ وَالْمِسْكِينَ وَابْنَ السَّبِيلِ ذَلِكَ خَيْرٌ لِّلَّذِينَ يُرِيدُونَ وَجْهَ اللَّهِ وَأُوْلَئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ {38}

(तो ऐ रसूल अपनी) क़राबतदार (फातिमा ज़हरा) का हक़ फिदक़ दे दो और मोहताज व परदेसियों का (भी) जो लोग ख़़ुदा की ख़ुशनूदी के ख़्वाहाँ हैं उन के हक़ में सब से बेहतर यही है और ऐसे ही लोग आख़ेरत में दिली मुरादे पाएँगें (38)

उतलु मा ऊहिया

وَمَا آتَيْتُم مِّن رِّبًا لِّيَرْبُوَ فِي أَمْوَالِ النَّاسِ فَلَا يَرْبُو عِندَ اللَّهِ وَمَا آتَيْتُم مِّن زَكَاةٍ تُرِيدُونَ وَجْهَ اللَّهِ فَأُوْلَئِكَ هُمُ الْمُضْعِفُونَ {39}

और तुम लोग जो सूद देते हो ताकि लोगों के माल (दौलत) में तरक्क़ी हो तो (याद रहे कि ऐसा माल) ख़ुदा के यहाँ फूलता फलता नही और तुम लोग जो ख़़ुदा की ख़ुशनूदी के इरादे से ज़कात देते हो तो ऐसे ही लोग (ख़ुदा की बारगाह से) दूना दून लेने वाले हैं (39)

उतलु मा ऊहिया

اللَّهُ الَّذِي خَلَقَكُمْ ثُمَّ رَزَقَكُمْ ثُمَّ يُمِيتُكُمْ ثُمَّ يُحْيِيكُمْ هَلْ مِن شُرَكَائِكُم مَّن يَفْعَلُ مِن ذَلِكُم مِّن شَيْءٍ سُبْحَانَهُ وَتَعَالَى عَمَّا يُشْرِكُونَ {40}

ख़ुदा वह (क़ादिर तवाना है) जिसने तुमको पैदा किया फिर उसी ने रोज़ी दी फिर वही तुमको मार डालेगा फिर वही तुमको (दोबारा) जि़न्दा करेगा भला तुम्हारे (बनाए हुए ख़ुदा के) शरीकों में से कोई भी ऐसा है जो इन कामों में से कुछ भी कर सके जिसे ये लोग (उसका) शरीक बनाते हैं (40)

उतलु मा ऊहिया

ظَهَرَ الْفَسَادُ فِي الْبَرِّ وَالْبَحْرِ بِمَا كَسَبَتْ أَيْدِي النَّاسِ لِيُذِيقَهُم بَعْضَ الَّذِي عَمِلُوا لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ {41}

वह उससे पाक व पाकीज़ा और बरतर है ख़़ुद लोगों ही के अपने हाथों की कारस्तानियों की बदौलत ख़ुश्क व तर में फ़साद फैल गया ताकि जो कुछ ये लोग कर चुके हैं ख़़ुदा उन को उनमें से बाज़ करतूतों का मज़ा चखा दे ताकि ये लोग अब भी बाज़ आएँ (41)

उतलु मा ऊहिया

قُلْ سِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَانظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِن قَبْلُ كَانَ أَكْثَرُهُم مُّشْرِكِينَ {42}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ज़रा रुए ज़मीन पर चल फिरकर देखो तो कि जो लोग उसके क़ब्ल गुज़र गए उनके (अफ़आल) का अंजाम क्या हुआ उनमें से बहुतेरे तो मुशरिक ही हैं (42)

उतलु मा ऊहिया

فَأَقِمْ وَجْهَكَ لِلدِّينِ الْقَيِّمِ مِن قَبْلِ أَن يَأْتِيَ يَوْمٌ لَّا مَرَدَّ لَهُ مِنَ اللَّهِ يَوْمَئِذٍ يَصَّدَّعُونَ {43}

तो (ऐ रसूल) तुम उस दिन के आने से पहले जो ख़ुदा की तरफ़ से आकर रहेगा (और) कोई उसे रोक नहीं सकता अपना रुख़ मज़बूत (और सीधे दीन की तरफ़ किए रहो उस दिन लोग (परेशान होकर) अलग अलग हो जाएँगें (43)

उतलु मा ऊहिया

مَن كَفَرَ فَعَلَيْهِ كُفْرُهُ وَمَنْ عَمِلَ صَالِحًا فَلِأَنفُسِهِمْ يَمْهَدُونَ {44}

जो काफि़र बन बैठा उस पर उस के कुफ़्र का वबाल है और जिन्होने अच्छे काम किए वह अपने ही आसाइश का सामान कर रहें है (44)

उतलु मा ऊहिया

لِيَجْزِيَ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ مِن فَضْلِهِ إِنَّهُ لَا يُحِبُّ الْكَافِرِينَ {45}

ताकि जो लोग ईमान लाए और अच्छे अच्छे काम किए उनको ख़़ुदा अपने फज़ल व (करम) से अच्छी जज़ा अता करेगा वह यक़ीनन कुफ़्फ़ार से उलफ़त नहीं रखता (45)

उतलु मा ऊहिया

وَمِنْ آيَاتِهِ أَن يُرْسِلَ الرِّيَاحَ مُبَشِّرَاتٍ وَلِيُذِيقَكُم مِّن رَّحْمَتِهِ وَلِتَجْرِيَ الْفُلْكُ بِأَمْرِهِ وَلِتَبْتَغُوا مِن فَضْلِهِ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ {46}

उसी की (क़ुदरत) की निशानियों में से एक ये भी है कि वह हवाओं को (बारिश) की ख़ुशख़बरी के वास्ते (क़ब्ल से) भेज दिया करता है और ताकि तुम्हें अपनी रहमत की लज़्ज़त चखाए और इसलिए भी कि (इसकी बदौलत) कश्तियाँ उसके हुक्म से चल खड़ी हो और ताकि तुम उसके फज़ल व करम से (अपनी रोज़ी) की तलाश करो और इसलिए भी ताकि तुम शुक्र करो (46)

उतलु मा ऊहिया

وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ رُسُلًا إِلَى قَوْمِهِمْ فَجَاؤُوهُم بِالْبَيِّنَاتِ فَانتَقَمْنَا مِنَ الَّذِينَ أَجْرَمُوا وَكَانَ حَقًّا عَلَيْنَا نَصْرُ الْمُؤْمِنِينَ {47}

औ (ऐ रसूल) हमने तुमसे पहले और भी बहुत से पैग़म्बर उनकी क़ौमों के पास भेजे तो वह पैग़म्बर वाज़ेए व रौशन मोजिज़े लेकर आए (मगर उन लोगों ने न माना) तो उन मुजरिमों से हमने (खू़ब) बदला लिया और हम पर तो मोमिनीन की मदद करना लाजि़म था ही (47)

उतलु मा ऊहिया

اللَّهُ الَّذِي يُرْسِلُ الرِّيَاحَ فَتُثِيرُ سَحَابًا فَيَبْسُطُهُ فِي السَّمَاء كَيْفَ يَشَاء وَيَجْعَلُهُ كِسَفًا فَتَرَى الْوَدْقَ يَخْرُجُ مِنْ خِلَالِهِ فَإِذَا أَصَابَ بِهِ مَن يَشَاء مِنْ عِبَادِهِ إِذَا هُمْ يَسْتَبْشِرُونَ {48}

ख़ुदा ही (क़ादिर तवाना) है जो हवाओं को भेजता है तो वह बादलों को उड़ाए उड़ाए फिरती हैं फिर वही ख़ुदा बादल को जिस तरह चाहता है आसमान में फैला देता है और (कभी) उसको टुकड़े (टुकड़े) कर देता है फिर तुम देखते हो कि बूँदियां उसके दरमियान से निकल पड़ती हैं फिर जब ख़़ुदा उन्हें अपने बन्दों में से जिस पर चहता है बरसा देता है तो वह लोग ख़ुशियाँ मनाने लगते हैं (48)

उतलु मा ऊहिया

وَإِن كَانُوا مِن قَبْلِ أَن يُنَزَّلَ عَلَيْهِم مِّن قَبْلِهِ لَمُبْلِسِينَ {49}

अगरचे ये लोग उन पर (बाराने रहमत) नाजि़ल होने से पहले (बारिश से) शुरु ही से बिल्कुल मायूस (और मज़बूर) थे (49)

उतलु मा ऊहिया

فَانظُرْ إِلَى آثَارِ رَحْمَتِ اللَّهِ كَيْفَ يُحْيِي الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا إِنَّ ذَلِكَ لَمُحْيِي الْمَوْتَى وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ {50}

ग़रज़ ख़ुदा की रहमत के आसार की तरफ़ देखो तो कि वह क्योकर ज़मीन को उसकी परती होने के बाद आबाद करता है बेशक यक़ीनी वही मुर्दो केा जि़न्दा करने वाला और वही हर चीज़ पर क़ादिर है (50)

उतलु मा ऊहिया

وَلَئِنْ أَرْسَلْنَا رِيحًا فَرَأَوْهُ مُصْفَرًّا لَّظَلُّوا مِن بَعْدِهِ يَكْفُرُونَ {51}

और अगर हम (खेती की नुकसान देह) हवा भेजें फिर लेाग खेती को (उसी हवा की वजह से) ज़र्द (परस मुर्दा) देखें तो वह लोग इसके बाद (फ़ौरन) नाशुक्री करने लगें (51)

उतलु मा ऊहिया

فَإِنَّكَ لَا تُسْمِعُ الْمَوْتَى وَلَا تُسْمِعُ الصُّمَّ الدُّعَاء إِذَا وَلَّوْا مُدْبِرِينَ {52}

(ऐ रसूल) तुम तो (अपनी) आवाज़ न मुर्दो ही को सुना सकते हो और न बहरों को सुना सकते हो (ख़ुसूसन) जब वह पीठ फेरकर चले जाएँ (52)

उतलु मा ऊहिया

وَمَا أَنتَ بِهَادِي الْعُمْيِ عَن ضَلَالَتِهِمْ إِن تُسْمِعُ إِلَّا مَن يُؤْمِنُ بِآيَاتِنَا فَهُم مُّسْلِمُونَ {53}

और न तुम अंधों को उनकी गुमराही से (फेरकर) राह पर ला सकते हो तो तुम तो बस उन्हीं लोगों को सुना (समझा) सकते हो जो हमारी आयतों को दिल से मानें फिर यही लोग इस्लाम लाने वाले हैं (53)

उतलु मा ऊहिया

اللَّهُ الَّذِي خَلَقَكُم مِّن ضَعْفٍ ثُمَّ جَعَلَ مِن بَعْدِ ضَعْفٍ قُوَّةً ثُمَّ جَعَلَ مِن بَعْدِ قُوَّةٍ ضَعْفًا وَشَيْبَةً يَخْلُقُ مَا يَشَاء وَهُوَ الْعَلِيمُ الْقَدِيرُ {54}

खु़दा ही तो है जिसने तुम्हें (एक निहायत) कमज़ोर चीज़ (नुत्फे) से पैदा किया फिर उसी ने (तुम में) बचपने की कमज़ोरी के बाद (शबाब की) क़ूवत अता की फिर उसी ने (तुममें जवानी की) क़ूवत के बाद कमज़ोरी और बुढ़ापा पैदा कर दिया वह जो चाहता पैदा करता है-और वही बड़ा वाक़िफ़कार और (हर चीज़ पर) क़ाबू रखता है (54)

उतलु मा ऊहिया

وَيَوْمَ تَقُومُ السَّاعَةُ يُقْسِمُ الْمُجْرِمُونَ مَا لَبِثُوا غَيْرَ سَاعَةٍ كَذَلِكَ كَانُوا يُؤْفَكُونَ {55}

और जिस दिन क़यामत बरपा होगी तो गुनाहगार लोग कसमें खाएँगें कि वह (दुनिया में) घड़ी भर से ज़्यादा नहीं ठहरे यूँ ही लोग (दुनिया में भी) इफ़तेरा परदाजि़याँ करते रहे (55)

उतलु मा ऊहिया

وَقَالَ الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ وَالْإِيمَانَ لَقَدْ لَبِثْتُمْ فِي كِتَابِ اللَّهِ إِلَى يَوْمِ الْبَعْثِ فَهَذَا يَوْمُ الْبَعْثِ وَلَكِنَّكُمْ كُنتُمْ لَا تَعْلَمُونَ {56}

और जिन लोगों को (ख़़ुदा की बारगाह से) इल्म और ईमान दिया गया है जवाब देगें कि (हाए) तुम तो ख़ुदा की किताब के मुताबिक़ रोज़े क़यामत तक (बराबर) ठहरे रहे फिर ये तो क़यामत का ही दिन है मगर तुम लोग तो उसका यक़ीन ही न रखते थे (56)

उतलु मा ऊहिया

فَيَوْمَئِذٍ لَّا يَنفَعُ الَّذِينَ ظَلَمُوا مَعْذِرَتُهُمْ وَلَا هُمْ يُسْتَعْتَبُونَ {57}

तो उस दिन सरकश लोगों को न उनकी उज्र माअज़ेरत कुछ काम आएगी और न उनकी सुनवाई होगी (57)

उतलु मा ऊहिया

وَلَقَدْ ضَرَبْنَا لِلنَّاسِ فِي هَذَا الْقُرْآنِ مِن كُلِّ مَثَلٍ وَلَئِن جِئْتَهُم بِآيَةٍ لَيَقُولَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا إِنْ أَنتُمْ إِلَّا مُبْطِلُونَ {58}

और हमने तो इस कु़रआन में (लोगों के समझाने को) हर तरह की मिसाल बयान कर दी और अगर तुम उनके पास कोई सा मौजिज़ा ले आओ (58)

उतलु मा ऊहिया

كَذَلِكَ يَطْبَعُ اللَّهُ عَلَى قُلُوبِ الَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ {59}

तो भी यक़ीनन कुफ़्फ़ार यही बोल उठेंगे कि तुम लोग निरे दग़ाबाज़ हो जो लोग समझ (और इल्म) नहीं रखते उनके दिलों पर नज़र करके ख़़ुदा यूँ तसदीक़ करता है (कि ये ईमान न लाएँगें) (59)

उतलु मा ऊहिया

فَاصْبِرْ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ وَلَا يَسْتَخِفَّنَّكَ الَّذِينَ لَا يُوقِنُونَ {60}

तो (ऐ रसूल) तुम सब्र करो बेशक ख़ुदा का वायदा सच्चा है और (कहीं) ऐसा न हो कि जो (तुम्हारी) तसदीक़ नहीं करते तुम्हें (बहका कर) ख़फ़ीफ़ करे दें (60)

उतलु मा ऊहिया

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

खु़दा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है 

उतलु मा ऊहिया

الم {1}

अलिफ़ लाम मीम (1) 

उतलु मा ऊहिया

تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ الْحَكِيمِ {2}

ये सूरा हिकमत से भरी हुयी किताबा की आयतें है (2)

उतलु मा ऊहिया

هُدًى وَرَحْمَةً لِّلْمُحْسِنِينَ {3}

जो (अज़सरतापा) उन लोगों के लिए हिदायत व रहमत है (3)

उतलु मा ऊहिया

الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُم بِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ {4}

जो पाबन्दी से नमाज़ अदा करते हैं और ज़कात देते हैं और वही लोग आखि़रत का भी यक़ीन रखते हैं (4)

उतलु मा ऊहिया

أُوْلَئِكَ عَلَى هُدًى مِّن رَّبِّهِمْ وَأُوْلَئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ {5}

यही लोग अपने परवरदिगार की हिदायत पर आमिल हैं और यही लोग (क़यामत में) अपनी दिली मुरादें पाएँगे (5) 

उतलु मा ऊहिया

وَمِنَ النَّاسِ مَن يَشْتَرِي لَهْوَ الْحَدِيثِ لِيُضِلَّ عَن سَبِيلِ اللَّهِ بِغَيْرِ عِلْمٍ وَيَتَّخِذَهَا هُزُوًا أُولَئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ مُّهِينٌ {6}

और लोगों में बाज़ (नज़र बिन हारिस) ऐसा है जो बेहूदा कि़स्से (कहानियाँ) ख़रीदता है ताकि बग़ैर समझे बूझे (लोगों को) ख़़ुदा की (सीधी) राह से भड़का दे और आयातें ख़़ुदा से मसख़रापन करे ऐसे ही लोगों के लिए बड़ा रुसवा करने वाला अज़ाब है (6)

उतलु मा ऊहिया

وَإِذَا تُتْلَى عَلَيْهِ آيَاتُنَا وَلَّى مُسْتَكْبِرًا كَأَن لَّمْ يَسْمَعْهَا كَأَنَّ فِي أُذُنَيْهِ وَقْرًا فَبَشِّرْهُ بِعَذَابٍ أَلِيمٍ {7}

और जब उसके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो शेखी के मारे मुँह फेरकर (इस तरह) चल देता है गोया उसने इन आयतों को सुना ही नहीं जैसे उसके दोनो कानों में ठेठी है तो (ऐ रसूल) तुम उसको दर्दनाक अज़ाब की (अभी से) खुशख़बरी दे दे (7)

उतलु मा ऊहिया

إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُمْ جَنَّاتُ النَّعِيمِ {8}

बेशक जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे काम किए उनके लिए नेअमत के (हरे भरे बेहश्ती) बाग़ हैं कि यो उनमें हमेशा रहेंगे (8)

उतलु मा ऊहिया

خَالِدِينَ فِيهَا وَعْدَ اللَّهِ حَقًّا وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ {9}

ये ख़ुदा का पक्का वायदा है और वह तो (सब पर) ग़ालिब हिकमत वाला है (9)

उतलु मा ऊहिया

خَلَقَ السَّمَاوَاتِ بِغَيْرِ عَمَدٍ تَرَوْنَهَا وَأَلْقَى فِي الْأَرْضِ رَوَاسِيَ أَن تَمِيدَ بِكُمْ وَبَثَّ فِيهَا مِن كُلِّ دَابَّةٍ وَأَنزَلْنَا مِنَ السَّمَاء مَاء فَأَنبَتْنَا فِيهَا مِن كُلِّ زَوْجٍ كَرِيمٍ {10}

तुम उन्हें देख रहे हो कि उसी ने बग़ैर सुतून के आसमानों को बना डाला और उसी ने ज़मीन पर (भारी भारी) पहाड़ों के लंगर डाल दिए कि (मुबादा) तुम्हें लेकर किसी तरफ जुम्बिश करे और उसी ने हर तरह चल फिर करने वाले (जानवर) ज़मीन में फैलाए और हमने आसमान से पानी बरसाया और (उसके ज़रिए से) ज़मीन में हर रंग के नफ़ीस जोड़े पैदा किए (10)

उतलु मा ऊहिया

هَذَا خَلْقُ اللَّهِ فَأَرُونِي مَاذَا خَلَقَ الَّذِينَ مِن دُونِهِ بَلِ الظَّالِمُونَ فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ {11}

(ऐ रसूल उनसे कह दो कि) ये तो खु़दा की खि़लक़त है कि (भला) तुम लोग मुझे दिखाओं तो कि जो (जो माबूद) ख़ु़दा के सिवा तुमने बना रखे है उन्होंने क्या पैदा किया बल्कि सरकश लोग (कुफ़्फ़ार) सरीही गुमराही में (पडे़) हैं (11) 

उतलु मा ऊहिया

وَلَقَدْ آتَيْنَا لُقْمَانَ الْحِكْمَةَ أَنِ اشْكُرْ لِلَّهِ وَمَن يَشْكُرْ فَإِنَّمَا يَشْكُرُ لِنَفْسِهِ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ اللَّهَ غَنِيٌّ حَمِيدٌ {12}

और यक़ीनन हम ने लुक़मान को हिकमत अता की (और हुक्म दिया था कि) तुम ख़़ुदा का शुक्र करो और जो ख़़ुदा का शशुक्र करेगा-वह अपने ही फायदे के लिए शुक्र करता है और जिसने नाशुक्री की तो (अपना बिगाड़ा) क्योंकी ख़़ुदा तो (बहरहाल) बे परवाह (और) क़ाबिल हमदो सना है (12)

उतलु मा ऊहिया

وَإِذْ قَالَ لُقْمَانُ لِابْنِهِ وَهُوَ يَعِظُهُ يَا بُنَيَّ لَا تُشْرِكْ بِاللَّهِ إِنَّ الشِّرْكَ لَظُلْمٌ عَظِيمٌ {13}

और (वह वक़्त याद करो) जब लुक़मान ने अपने बेटे से उसकी नसीहत करते हुए कहा ऐ बेटा (ख़बरदार कभी किसी को) ख़़ुदा का शरीक न बनाना (क्योंकि) शिर्क यक़ीनी बड़ा सख़्त गुनाह है (13)

उतलु मा ऊहिया

وَوَصَّيْنَا الْإِنسَانَ بِوَالِدَيْهِ حَمَلَتْهُ أُمُّهُ وَهْنًا عَلَى وَهْنٍ وَفِصَالُهُ فِي عَامَيْنِ أَنِ اشْكُرْ لِي وَلِوَالِدَيْكَ إِلَيَّ الْمَصِيرُ {14}

(जिस की बख्शिश नहीं) और हमने इन्सान को जिसे उसकी माँ ने दुख पर दुख सह के पेट में रखा (इसके अलावा) दो बरस में (जाके) उसकी दूध बढ़ाई की (अपने और) उसके माँ बाप के बारे में ताक़ीद की कि मेरा भी शुक्रिया अदा करो और अपने वालदैन का (भी) और आखि़र सबको मेरी तरफ लौट कर जाना है (14) 

उतलु मा ऊहिया

وَإِن جَاهَدَاكَ عَلى أَن تُشْرِكَ بِي مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ فَلَا تُطِعْهُمَا وَصَاحِبْهُمَا فِي الدُّنْيَا مَعْرُوفًا وَاتَّبِعْ سَبِيلَ مَنْ أَنَابَ إِلَيَّ ثُمَّ إِلَيَّ مَرْجِعُكُمْ فَأُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ {15}

और अगर तेरे माँ बाप तुझे इस बात पर मजबूर करें कि तू मेरा शरीक ऐसी चीज़ को क़रार दे जिसका तुझे इल्म भी नहीं तो तू (इसमें) उनकी इताअत न करो (मगर तकलीफ़ न पहुँचाना) और दुनिया (के कामों) में उनका अच्छी तरह साथ दे और उन लोगों के तरीक़े पर चल जो (हर बात में) मेरी (ही) तरफ रुजू करे फिर (तो आखि़र) तुम सबकी रुजू मेरी ही तरफ है तब (दुनिया में) जो कुछ तुम करते थे (15)

उतलु मा ऊहिया

يَا بُنَيَّ إِنَّهَا إِن تَكُ مِثْقَالَ حَبَّةٍ مِّنْ خَرْدَلٍ فَتَكُن فِي صَخْرَةٍ أَوْ فِي السَّمَاوَاتِ أَوْ فِي الْأَرْضِ يَأْتِ بِهَا اللَّهُ إِنَّ اللَّهَ لَطِيفٌ خَبِيرٌ {16}

(उस वक़्त उसका अन्जाम) बता दूँगा ऐ बेटा इसमें शक नहीं कि वह अमल (अच्छा हो या बुरा) अगर राई के बराबर भी हो और फिर वह किसी सख़्त पत्थर के अन्दर या आसमान में या ज़मीन मे (छुपा हुआ) हो तो भी ख़ुदा उसे (क़यामत के दिन) हाजि़र कर देगा बेशक ख़ुदा बड़ा बारीकबीन वाकि़फकार है (16)

उतलु मा ऊहिया

يَا بُنَيَّ أَقِمِ الصَّلَاةَ وَأْمُرْ بِالْمَعْرُوفِ وَانْهَ عَنِ الْمُنكَرِ وَاصْبِرْ عَلَى مَا أَصَابَكَ إِنَّ ذَلِكَ مِنْ عَزْمِ الْأُمُورِ {17}

ऐ बेटा नमाज़ पाबन्दी से पढ़ा कर और (लोगों से) अच्छा काम करने को कहो और बुरे काम से रोको और जो मुसीबत तुम पर पडे़ उस पर सब्र करो (क्योंकि) बेशक ये बड़ी हिम्मत का काम है (17) 

उतलु मा ऊहिया

وَلَا تُصَعِّرْ خَدَّكَ لِلنَّاسِ وَلَا تَمْشِ فِي الْأَرْضِ مَرَحًا إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ كُلَّ مُخْتَالٍ فَخُورٍ {18}

और लोगों के सामने (गु़रुर से) अपना मुँह न फुलाना और ज़मीन पर अकड़कर न चलना क्योंकि ख़ुदा किसी अकड़ने वाले और इतराने वाले को दोस्त नहीं रखता और अपनी चाल ढाल में मियाना रवी एख़्तेयार करो (18)

उतलु मा ऊहिया

وَاقْصِدْ فِي مَشْيِكَ وَاغْضُضْ مِن صَوْتِكَ إِنَّ أَنكَرَ الْأَصْوَاتِ لَصَوْتُ الْحَمِيرِ {19}

और दूसरो से बोलने में अपनी आवाज़ धीमी रखो क्योंकि आवाज़ों में तो सब से बुरी आवाज़ (चीख़ने की वजह से) गधों की है (19)

उतलु मा ऊहिया

أَلَمْ تَرَوْا أَنَّ اللَّهَ سَخَّرَ لَكُم مَّا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَأَسْبَغَ عَلَيْكُمْ نِعَمَهُ ظَاهِرَةً وَبَاطِنَةً وَمِنَ النَّاسِ مَن يُجَادِلُ فِي اللَّهِ بِغَيْرِ عِلْمٍ وَلَا هُدًى وَلَا كِتَابٍ مُّنِيرٍ {20}

क्या तुम लोगों ने इस पर ग़ौर नहीं किया कि जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा ही ने यक़ीनी तुम्हारा ताबेए कर दिया है और तुम पर अपनी ज़ाहिरी और बातिनी नेअमतें पूरी कर दीं और बाज़ लोग (नुसर बिन हारिस वगै़रह) ऐसे भी हैं जो (ख़्वाह मा ख़्वाह) ख़़ुदा के बारे में झगड़ते हैं (हालांकि उनके पास) न इल्म है और न हिदायत है और न कोई रौशन किताब है (20)

उतलु मा ऊहिया

وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اتَّبِعُوا مَا أَنزَلَ اللَّهُ قَالُوا بَلْ نَتَّبِعُ مَا وَجَدْنَا عَلَيْهِ آبَاءنَا أَوَلَوْ كَانَ الشَّيْطَانُ يَدْعُوهُمْ إِلَى عَذَابِ السَّعِيرِ {21}

और जब उनसे कहा जाता है कि जो (किताब) ख़़ुदा ने नाजि़ल की है उसकी पैरवी करो तो (छूटते ही) कहते हैं कि नहीं हम तो उसी (तरीक़े से चलेंगे) जिस पर हमने अपने बाप दादाओं को पाया भला अगरये शैतान उनके बाप दादाओं को जहन्नुम के अज़ाब की तरफ बुलाता रहा हो (तो भी उन्ही की पैरवी करेंगे) (21)

उतलु मा ऊहिया

وَمَن يُسْلِمْ وَجْهَهُ إِلَى اللَّهِ وَهُوَ مُحْسِنٌ فَقَدِ اسْتَمْسَكَ بِالْعُرْوَةِ الْوُثْقَى وَإِلَى اللَّهِ عَاقِبَةُ الْأُمُورِ {22}

और जो शख़्स ख़ुदा के आगे अपना सर (तस्लीम) ख़म करे और वह नेकोकार (भी) हो तो बेशक उसने (ईमान की) मज़बूत रस्सी पकड़ ली और (आखि़र तो) सब कामों का अन्जाम ख़ु़दा ही की तरफ है (22)

उतलु मा ऊहिया

وَمَن كَفَرَ فَلَا يَحْزُنكَ كُفْرُهُ إِلَيْنَا مَرْجِعُهُمْ فَنُنَبِّئُهُم بِمَا عَمِلُوا إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ {23}

और (ऐ रसूल) जो काफिर बन बैठे तो तुम उसके कुफ्र से कुढ़ों नही उन सबको तो हमारी तरफ लौट कर आना है तो जो कुछ उन लोगों ने किया है (उसका नतीजा) हम बता देगें बेशक ख़ुदा दिलों के राज़ से (भी) खूब वाकि़फ है (23)

उतलु मा ऊहिया

نُمَتِّعُهُمْ قَلِيلًا ثُمَّ نَضْطَرُّهُمْ إِلَى عَذَابٍ غَلِيظٍ {24}

हम उन्हें चन्द रोज़ों तक चैन करने देगें फिर उन्हें मजबूर करके सख़्त अज़ाब की तरफ खीच लाएँगें (24)

उतलु मा ऊहिया

وَلَئِن سَأَلْتَهُم مَّنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ لَيَقُولُنَّ اللَّهُ قُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ {25}

और (ऐ रसूल) तुम अगर उनसे पूछो कि सारे आसमान और ज़मीन को किसने पैदा किया तो ज़रुर कह देगे कि अल्लाह ने (ऐ रसूल) इस पर तुम कह दो अल्हमदोलिल्लाह मगर उनमें से अक्सर (इतना भी) नहीं जानते हैं (25) 

उतलु मा ऊहिया

لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ إِنَّ اللَّهَ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ {26}

जो कुछ सारे आसमान और ज़मीन में है (सब) ख़़ुदा ही का है बेशक ख़ुदा तो (हर चीज़ से) बेपरवा (और बहरहाल) क़ाबिले हम्दो सना है (26)

उतलु मा ऊहिया

وَلَوْ أَنَّمَا فِي الْأَرْضِ مِن شَجَرَةٍ أَقْلَامٌ وَالْبَحْرُ يَمُدُّهُ مِن بَعْدِهِ سَبْعَةُ أَبْحُرٍ مَّا نَفِدَتْ كَلِمَاتُ اللَّهِ إِنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ {27}

और जितने दरख़्त ज़मीन में हैं सब के सब क़लम बन जाएँ और समन्दर उसकी सियाही बनें और उसके (ख़त्म होने के) बाद और सात समन्दर (सियाही हो जाएँ और ख़ुदा का इल्म और उसकी बातें लिखी जाएँ) तो भी ख़ुदा की बातें ख़त्म न होगीं बेशक ख़ुदा सब पर ग़ालिब (और) दाना (बीना) है (27) 

उतलु मा ऊहिया

مَّا خَلْقُكُمْ وَلَا بَعْثُكُمْ إِلَّا كَنَفْسٍ وَاحِدَةٍ إِنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ بَصِيرٌ {28}

तुम सबका पैदा करना और फिर (मरने के बाद) जिला उठाना एक शख़्स के (पैदा करने और जिला उठाने के) बराबर है बेशक ख़़ुदा (तुम सब की) सुनता और सब कुछ देख रहा है (28)

उतलु मा ऊहिया

أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ يُولِجُ اللَّيْلَ فِي النَّهَارِ وَيُولِجُ النَّهَارَ فِي اللَّيْلِ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ كُلٌّ يَجْرِي إِلَى أَجَلٍ مُّسَمًّى وَأَنَّ اللَّهَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ {29}

क्या तूने ये भी ख़्याल न किया कि ख़ुदा ही रात को (बढ़ा के) दिन में दाखि़ल कर देता है (तो रात बढ़ जाती है) और दिन को (बढ़ा के) रात में दाखि़ल कर देता है (तो दिन बढ़ जाता है) उसी ने आफताब व माहताब को (गोया) तुम्हारा ताबेए बना दिया है कि एक मुक़र्रर मीयाद तक (यूँ ही) चलता रहेगा और (क्या तूने ये भी ख़्याल न किया कि) जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़ूब वाकिफकार है (29) 

उतलु मा ऊहिया

ذَلِكَ بِأَنَّ اللَّهَ هُوَ الْحَقُّ وَأَنَّ مَا يَدْعُونَ مِن دُونِهِ الْبَاطِلُ وَأَنَّ اللَّهَ هُوَ الْعَلِيُّ الْكَبِيرُ {30}

ये (सब बातें) इस सबब से हैं कि ख़ुदा ही यक़ीनी बरहक़ (माबूद) है और उस के सिवा जिसको लोग पुकारते हैं यक़ीनी बिल्कुल बातिल और इसमें शक नहीं कि ख़ुदा ही आलीशान और बड़ा रुतबे वाला है (30) 

उतलु मा ऊहिया

أَلَمْ تَرَ أَنَّ الْفُلْكَ تَجْرِي فِي الْبَحْرِ بِنِعْمَتِ اللَّهِ لِيُرِيَكُم مِّنْ آيَاتِهِ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِّكُلِّ صَبَّارٍ شَكُورٍ {31}

क्या तूने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि ख़ुदा ही के फज़ल से कश्ती दरिया में बहती चलती रहती है ताकि (लकड़ी में ये क़ूवत देकर) तुम लोगों को अपनी (कु़दरत की) बाज़ निशानियाँ दिखा दे बेशक उस में भी तमाम सब्र व शुक्र करने वाले (बन्दों) के लिए (कुदरत ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ दिखा दे बेशक इसमें भी तमाम सब्र व शुक्र करने वाले (बन्दों) के लिए (क़ुदरते ख़़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं (31)

उतलु मा ऊहिया

وَإِذَا غَشِيَهُم مَّوْجٌ كَالظُّلَلِ دَعَوُا اللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ فَلَمَّا نَجَّاهُمْ إِلَى الْبَرِّ فَمِنْهُم مُّقْتَصِدٌ وَمَا يَجْحَدُ بِآيَاتِنَا إِلَّا كُلُّ خَتَّارٍ كَفُورٍ {32}

और जब उन्हें मौज (ऊँची होकर) साएबानों की तरह (ऊपर से) दाख लेती है तो निरा खुरा उसी का अक़ीदा रखकर ख़़ुदा को पुकारने लगते हैं फिर जब ख़़ुदा उनको नजात देकर खुश्की तक पहुँचा देता है तो उनमें से बाज़ तो कुछ देर एतदाल पर रहते हैं (और बाज़ पक्के काफिर) और हमारी (क़ुदरत की) निशानियों से इन्कार तो बस बदएहद और नाशुक्रे ही लोग करते हैं (32)

उतलु मा ऊहिया

يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُوا رَبَّكُمْ وَاخْشَوْا يَوْمًا لَّا يَجْزِي وَالِدٌ عَن وَلَدِهِ وَلَا مَوْلُودٌ هُوَ جَازٍ عَن وَالِدِهِ شَيْئًا إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا وَلَا يَغُرَّنَّكُم بِاللَّهِ الْغَرُورُ {33}

लोगों अपने परवरदिगार से डरो और उस दिन का ख़ौफ रखो जब न कोई बाप अपने बेटे के काम आएगा और न कोई बेटा अपने बाप के कुछ काम आ सकेगा ख़़ुदा का (क़यामत का) वायदा बिल्कुल पक्का है तो (कहीं) तुम लोगों को दुनिया की (चन्द रोज़ा) जि़न्दगी धोखे में न डाले और न कहीं तुम्हें फरेब देने वाला (शैतान) कुछ फ़रेब दे (33)

उतलु मा ऊहिया

إِنَّ اللَّهَ عِندَهُ عِلْمُ السَّاعَةِ وَيُنَزِّلُ الْغَيْثَ وَيَعْلَمُ مَا فِي الْأَرْحَامِ وَمَا تَدْرِي نَفْسٌ مَّاذَا تَكْسِبُ غَدًا وَمَا تَدْرِي نَفْسٌ بِأَيِّ أَرْضٍ تَمُوتُ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرٌ {34}

बेशक ख़़ुदा ही के पास क़यामत (के आने) का इल्म है और वही (जब मौक़ा मुनासिब देखता है) पानी बरसाता है और जो कुछ औरतों के पेट में (नर मादा) है जानता है और कोई शख़्स (इतना भी तो) नहीं जानता कि वह ख़़ुद कल क्या करेगा और कोई शख़्स ये (भी) नहीं जानता है कि वह किस सर ज़मीन पर मरे (गड़े) गा बेशक ख़़ुदा (सब बातों से) आगाह ख़बरदार है (34)

उतलु मा ऊहिया

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

(ख़ुदा के नाम से शुरु करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

उतलु मा ऊहिया

ِ الم {1}

अलिफ़ लाम मीम (1)

उतलु मा ऊहिया

تَنزِيلُ الْكِتَابِ لَا رَيْبَ فِيهِ مِن رَّبِّ الْعَالَمِينَ {2}

इसमे कुछ शक नहीं कि किताब क़ुरान का नाजि़ल करना सारे जहाँ के परवरदिगार की तरफ से है (2)

उतलु मा ऊहिया

أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَاهُ بَلْ هُوَ الْحَقُّ مِن رَّبِّكَ لِتُنذِرَ قَوْمًا مَّا أَتَاهُم مِّن نَّذِيرٍ مِّن قَبْلِكَ لَعَلَّهُمْ يَهْتَدُونَ {3}

क्या ये लोग (ये कहते हैं कि इसको इस शख़्स (रसूल) ने अपनी जी से गढ़ लिया है नहीं ये बिल्कुल तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से बरहक़ है ताकि तुम उन लोगों को (ख़ुदा के अज़ाब से) डराओ जिनके पास तुमसे पहले कोई डराने वाला आया ही नहीं ताकि ये लोग राह पर आएँ (3)

उतलु मा ऊहिया

اللَّهُ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ ثُمَّ اسْتَوَى عَلَى الْعَرْشِ مَا لَكُم مِّن دُونِهِ مِن وَلِيٍّ وَلَا شَفِيعٍ أَفَلَا تَتَذَكَّرُونَ {4}

ख़़ुदा ही तो है जिसने सारे आसमान और ज़मीन और जितनी चीज़े इन दोनो के दरम्यिान हैं छहः दिन में पैदा की फिर अर्श (के बनाने) पर आमादा हुआ उसके सिवा न कोई तुम्हारा सरपरस्त है न कोई सिफारिशी तो क्या तुम (इससे भी) नसीहत व इबरत हासिल नहीं करते (4)

उतलु मा ऊहिया

يُدَبِّرُ الْأَمْرَ مِنَ السَّمَاء إِلَى الْأَرْضِ ثُمَّ يَعْرُجُ إِلَيْهِ فِي يَوْمٍ كَانَ مِقْدَارُهُ أَلْفَ سَنَةٍ مِّمَّا تَعُدُّونَ {5}

आसमान से ज़मीन तक के हर अम्र का वही मुद्ब्बिर (व मुन्तजि़म) है फिर ये बन्दोबस्त उस दिन जिस की मिक़दार तुम्हारे शुमार से हज़ार बरस से होगी उसी की बारगाह में पेश होगा (5)

उतलु मा ऊहिया

ذَلِكَ عَالِمُ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ {6}

वही (मुदब्बिर) पोशीदा और ज़ाहिर का जानने वाला (सब पर) ग़ालिब मेहरबान है (6)

उतलु मा ऊहिया

الَّذِي أَحْسَنَ كُلَّ شَيْءٍ خَلَقَهُ وَبَدَأَ خَلْقَ الْإِنسَانِ مِن طِينٍ {7}

वह (क़ादिर) जिसने जो चीज़ बनाई (निख सुख से) ख़ूब (दुरुस्त) बनाई और इन्सान की इबतेदाई खि़लक़त मिट्टी से की (7)

उतलु मा ऊहिया

ثُمَّ جَعَلَ نَسْلَهُ مِن سُلَالَةٍ مِّن مَّاء مَّهِينٍ {8}

उसकी नस्ल (इन्सानी जिस्म के) खुलासा यानी (नुत्फे के से) ज़लील पानी से बनाई (8)

उतलु मा ऊहिया

ثُمَّ سَوَّاهُ وَنَفَخَ فِيهِ مِن رُّوحِهِ وَجَعَلَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْأَبْصَارَ وَالْأَفْئِدَةَ قَلِيلًا مَّا تَشْكُرُونَ {9}

फिर उस (के पुतले) को दुरुस्त किया और उसमें अपनी तरफ से रुह फूँकी और तुम लोगों के (सुनने के) लिए कान और (देखने के लिए) आँखें और (समझने के लिए) दिल बनाएँ (इस पर भी) तुम लोग बहुत कम शुक्र करते हो (9)

उतलु मा ऊहिया

وَقَالُوا أَئِذَا ضَلَلْنَا فِي الْأَرْضِ أَئِنَّا لَفِي خَلْقٍ جَدِيدٍ بَلْ هُم بِلِقَاء رَبِّهِمْ كَافِرُونَ {10}

और ये लोग कहते हैं कि जब हम ज़मीन में नापैद हो जाएँगे तो क्या हम फिर नया जन्म लेगे (क़यामत से नही) बल्कि ये लोग अपने परवरदिगार के (सामने हुज़ूरी ही) से इन्कार रखते हैं (10)

उतलु मा ऊहिया

قُلْ يَتَوَفَّاكُم مَّلَكُ الْمَوْتِ الَّذِي وُكِّلَ بِكُمْ ثُمَّ إِلَى رَبِّكُمْ تُرْجَعُونَ {11}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मल्कुलमौत जो तुम्हारे ऊपर तैनात है वही तुम्हारी रूहे क़ब्ज़ करेगा उसके बाद तुम सबके सब अपने परवरदिगार की तरफ लौटाए जाओगे (11)

उतलु मा ऊहिया

وَلَوْ تَرَى إِذِ الْمُجْرِمُونَ نَاكِسُو رُؤُوسِهِمْ عِندَ رَبِّهِمْ رَبَّنَا أَبْصَرْنَا وَسَمِعْنَا فَارْجِعْنَا نَعْمَلْ صَالِحًا إِنَّا مُوقِنُونَ {12}

और (ऐ रसूल) तुम को बहुत अफसोस होगा अगर तुम मुजरिमों को देखोगे कि वह (हिसाब के वक़्त) अपने परवरदिगार की बारगाह में अपने सर झुकाए खड़े हैं और(अज्र कर रहे हैं) परवरदिगार हमने (अच्छी तरह देखा और सुन लिया तू हमें दुनिया में एक दफा फिर लौटा दे कि हम नेक काम करें (12)

उतलु मा ऊहिया

وَلَوْ شِئْنَا لَآتَيْنَا كُلَّ نَفْسٍ هُدَاهَا وَلَكِنْ حَقَّ الْقَوْلُ مِنِّي لَأَمْلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ {13}

और अब तो हमको (क़यामत का)पे पूरा पूरा यक़ीन है और (ख़ुदा फरमाएगा कि) अगर हम चाहते तो दुनिया ही में हर शख़्स को (मजबूर करके) राहे रास्त पर ले आते मगर मेरी तरफ से (रोजे़ अज़ा) ये बात क़रार पा चुकी है कि मै जहन्नुम को जिन्नात और आदमियों से भर दूँगा (13)

उतलु मा ऊहिया

فَذُوقُوا بِمَا نَسِيتُمْ لِقَاء يَوْمِكُمْ هَذَا إِنَّا نَسِينَاكُمْ وَذُوقُوا عَذَابَ الْخُلْدِ بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ {14}

तो चूँकि तुम आज के दिन हुज़ूरी को भूले बैठे थे तो अब उसका मज़ा चखो हमने तुमको क़सदन भुला दिया और जैसी जैसी तुम्हारी करतूतें थीं (उनके बदले) अब हमेशा के अज़ाब के मज़े चखो (14)

उतलु मा ऊहिया

إِنَّمَا يُؤْمِنُ بِآيَاتِنَا الَّذِينَ إِذَا ذُكِّرُوا بِهَا خَرُّوا سُجَّدًا وَسَبَّحُوا بِحَمْدِ رَبِّهِمْ وَهُمْ لَا يَسْتَكْبِرُونَ {15}

हमारी आयतों पर इमान बस वही लोग लाते हैं कि जिस वक़्त उन्हें वह (आयते) याद दिलायी गयीं तो फौरन सजदे में गिर पड़ने और अपने परवरदिगार की हम्दो सना की तस्बीह पढ़ने लगे और ये लोग तकब्बुर नही करते (15) (सजदा)

उतलु मा ऊहिया

تَتَجَافَى جُنُوبُهُمْ عَنِ الْمَضَاجِعِ يَدْعُونَ رَبَّهُمْ خَوْفًا وَطَمَعًا وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنفِقُونَ {16}

(रात) के वक़्त उनके पहलू बिस्तरों से आशना नहीं होते और (अज़ाब के) ख़ौफ और (रहमत की) उम्मीद पर अपने परवरदिगार की इबादत करते हैं और हमने जो कुछ उन्हें अता किया है उसमें से (ख़ु़दा की) राह में ख़र्च करते हैं (16)

उतलु मा ऊहिया

فَلَا تَعْلَمُ نَفْسٌ مَّا أُخْفِيَ لَهُم مِّن قُرَّةِ أَعْيُنٍ جَزَاء بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ {17}

उन लोगों की कारगुज़ारियों के बदले में कैसी कैसी आँखों की ठन्डक उनके लिए ढकी छिपी रखी है उसको कोई शख़्स जानता ही नहीं (17)

उतलु मा ऊहिया

أَفَمَن كَانَ مُؤْمِنًا كَمَن كَانَ فَاسِقًا لَّا يَسْتَوُونَ {18}

तो क्या जो शख़्स ईमानदार है उस शख़्स के बराबर हो जाएगा जो बदकार है (हरगिज़ नहीं) ये दोनों बराबर नही हो सकते (18)

उतलु मा ऊहिया

أَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فَلَهُمْ جَنَّاتُ الْمَأْوَى نُزُلًا بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ {19}

लेकिन जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे अच्छे काम किए उनके लिए तो रहने सहने के लिए (बेहश्त के) बाग़ात हैं ये सामाने जि़याफ़त उन कारगुज़ारियों का बदला है जो वह (दुनिया में) कर चुके थे (19)

उतलु मा ऊहिया

وَأَمَّا الَّذِينَ فَسَقُوا فَمَأْوَاهُمُ النَّارُ كُلَّمَا أَرَادُوا أَن يَخْرُجُوا مِنْهَا أُعِيدُوا فِيهَا وَقِيلَ لَهُمْ ذُوقُوا عَذَابَ النَّارِ الَّذِي كُنتُم بِهِ تُكَذِّبُونَ {20}

और जिन लोगों ने बदकारी की उनका ठिकाना तो (बस) जहन्नुम है वह जब उसमें से निकल जाने का इरादा करेंगे तो उसी में फिर ढकेल दिए जाएँगे और उन से कहा जाएगा कि दोज़ख़ के जिस अज़ाब को तुम झुठलाते थे अब उसके मज़े चखो (20)

उतलु मा ऊहिया

وَلَنُذِيقَنَّهُمْ مِنَ الْعَذَابِ الْأَدْنَى دُونَ الْعَذَابِ الْأَكْبَرِ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ {21}

और हम यक़ीनी (क़यामत के) बड़े अज़ाब से पहले दुनिया के (मामूली) अज़ाब का मज़ा चखाएँगें जो अनक़रीब होगा ताकि ये लोग अब भी (मेरी तरफ) रुज़ू करें (21) 

उतलु मा ऊहिया

وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّن ذُكِّرَ بِآيَاتِ رَبِّهِ ثُمَّ أَعْرَضَ عَنْهَا إِنَّا مِنَ الْمُجْرِمِينَ مُنتَقِمُونَ {22}

और जिस शख़्स को उसके परवरदिगार की आयतें याद दिलायी जाएँ और वह उनसे मुँह फेर उससे बढ़कर और ज़ालिम कौन होगा हम गुनाहगारों से इन्तक़ाम लेगें और ज़रुर लेंगे (22)

उतलु मा ऊहिया

وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ فَلَا تَكُن فِي مِرْيَةٍ مِّن لِّقَائِهِ وَجَعَلْنَاهُ هُدًى لِّبَنِي إِسْرَائِيلَ {23}

और (ऐ रसूल) हमने तो मूसा को भी (आसमानी किताब) तौरेत अता की थी तुम भी इस किताब (कुरान) के (अल्लाह की तरफ से) मिलने में शक में न पड़े रहो और हमने इस (तौरेत) तो तुम को भी बनी इसराईल के लिए रहनुमा क़रार दिया था (23)

उतलु मा ऊहिया

وَجَعَلْنَا مِنْهُمْ أَئِمَّةً يَهْدُونَ بِأَمْرِنَا لَمَّا صَبَرُوا وَكَانُوا بِآيَاتِنَا يُوقِنُونَ {24}

और उन्ही (बनी इसराईल) में से हमने कुछ लोगों को चूँकि उन्होंने (मुसीबतों पर) सब्र किया था पेशवा बनाया जो हमारे हुक़्म से (लोगो की) हिदायत करते थे और (इसके अलावा) हमारी आयतो का दिल से यक़ीन रखते थे (24)

उतलु मा ऊहिया

إِنَّ رَبَّكَ هُوَ يَفْصِلُ بَيْنَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فِيمَا كَانُوا فِيهِ يَخْتَلِفُونَ {25}

(ऐ रसूल) हसमें शक नहीं कि जिन बातों में लोग (दुनिया में) बाहम झगड़ते रहते हैं क़यामत के दिन तुम्हारा परवरदिगार क़तई फैसला कर देगा (25) 

उतलु मा ऊहिया

أَوَلَمْ يَهْدِ لَهُمْ كَمْ أَهْلَكْنَا مِن قَبْلِهِم مِّنَ الْقُرُونِ يَمْشُونَ فِي مَسَاكِنِهِمْ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ أَفَلَا يَسْمَعُونَ {26}

क्या उन लोगों को ये मालूम नहीं कि हमने उनसे पहले कितनी उम्मतों को हलाक कर डाला जिन के घरों में ये लोग चल फिर रहें हैं बेशक उसमे (कुदरते ख़़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं तो क्या ये लोग सुनते नहीं हैं (26)

उतलु मा ऊहिया

أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّا نَسُوقُ الْمَاء إِلَى الْأَرْضِ الْجُرُزِ فَنُخْرِجُ بِهِ زَرْعًا تَأْكُلُ مِنْهُ أَنْعَامُهُمْ وَأَنفُسُهُمْ أَفَلَا يُبْصِرُونَ {27}

क्या इन लोगों ने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हम चटियल मैदान (इफ़तादा) ज़मीन की तरफ पानी को जारी करते हैं फिर उसके ज़रिए से हम घास पात लगाते हैं जिसे उनके जानवर और ये ख़ुद भी खाते हैं तो क्या ये लोग इतना भी नहीं देखते (27)

उतलु मा ऊहिया

وَيَقُولُونَ مَتَى هَذَا الْفَتْحُ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ {28}

और ये लोग कहते है कि अगर तुम लोग सच्चे हो (कि क़यामत आएगी) तो (आखि़र) ये फैसला कब होगा (28)

उतलु मा ऊहिया

قُلْ يَوْمَ الْفَتْحِ لَا يَنفَعُ الَّذِينَ كَفَرُوا إِيمَانُهُمْ وَلَا هُمْ يُنظَرُونَ {29}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि फैसले के दिन कुफ़्फ़ार को उनका ईमान लाना कुछ काम न आएगा और न उनको (इसकी) मोहलत दी जाएगी (29)

उतलु मा ऊहिया

فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ وَانتَظِرْ إِنَّهُم مُّنتَظِرُونَ {30}

ग़रज़ तुम उनकी बातों का ख़्याल छोड़ दो और तुम मुन्तजि़र रहो (आखि़र) वह लोग भी तो इन्तज़ार कर रहे हैं (30)

उतलु मा ऊहिया

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

खुदा के नाम से शुरू करता हूँ, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है। 

उतलु मा ऊहिया

يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ اتَّقِ اللَّهَ وَلَا تُطِعِ الْكَافِرِينَ وَالْمُنَافِقِينَ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمًا {1}

ऐ नबी खुदा ही से डरते रहो और काफिरों और मुनाफिक़ों की बात न मानो इसमें शक नहीं कि खु़दा बड़ा वाकि़फकार हकीम है। (1)

उतलु मा ऊहिया

وَاتَّبِعْ مَا يُوحَى إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ إِنَّ اللَّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا {2}

और तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम्हारे पास जो “वही” की जाती है (बस) उसी की पैरवी करो तुम लोग जो कुछ कर रहे हो खु़दा उससे यक़ीनी अच्छा तरह आगाह है। (2)

उतलु मा ऊहिया

وَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّهِ وَكَفَى بِاللَّهِ وَكِيلًا {3}

और खु़दा ही पर भरोसा रखो और खु़दा ही कारसाजी के लिए काफी है (3)

उतलु मा ऊहिया

مَّا جَعَلَ اللَّهُ لِرَجُلٍ مِّن قَلْبَيْنِ فِي جَوْفِهِ وَمَا جَعَلَ أَزْوَاجَكُمُ اللَّائِي تُظَاهِرُونَ مِنْهُنَّ أُمَّهَاتِكُمْ وَمَا جَعَلَ أَدْعِيَاءكُمْ أَبْنَاءكُمْ ذَلِكُمْ قَوْلُكُم بِأَفْوَاهِكُمْ وَاللَّهُ يَقُولُ الْحَقَّ وَهُوَ يَهْدِي السَّبِيلَ {4}

ख़ुदा ने किसी आदमी के सीने में दो दिल नहीं पैदा किये कि (एक ही वक़्त दो इरादे कर सके) और न उसने तुम्हारी बीवियों को जिन से तुम जे़हार करते हो तुम्हारी माएँ बना दी और न उसने तुम्हारे लै पालकों को तुम्हारे बेटे बना दिये। ये तो फ़क़त तुम्हारी मुँह बोली बात (और ज़ुबानी जमा खर्च) है और (चाहे किसी को बुरी लगे या अच्छी) खु़दा तो सच्ची कहता है और सीधी राह दिखाता है। (4)

उतलु मा ऊहिया

ادْعُوهُمْ لِآبَائِهِمْ هُوَ أَقْسَطُ عِندَ اللَّهِ فَإِن لَّمْ تَعْلَمُوا آبَاءهُمْ فَإِخْوَانُكُمْ فِي الدِّينِ وَمَوَالِيكُمْ وَلَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ فِيمَا أَخْطَأْتُم بِهِ وَلَكِن مَّا تَعَمَّدَتْ قُلُوبُكُمْ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا {5}

लै पालकों का उनके (असली) बापों के नाम से पुकारा करो यही खु़दा के नज़दीक बहुत ठीक है हाँ अगर तुम लोग उनके असली बापों को न जानते हो तो तुम्हारे दीनी भाई और दोस्त हैं (उन्हें भाई या दोस्त कहकर पुकारा करो) और हाँ इसमें भूल चूक जाओ तो अलबत्ता उसका तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं है मगर जब तुम दिल से जानबूझ कर करो (तो ज़रूर गुनाह है) और खु़दा तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है। (5)

उतलु मा ऊहिया

النَّبِيُّ أَوْلَى بِالْمُؤْمِنِينَ مِنْ أَنفُسِهِمْ وَأَزْوَاجُهُ أُمَّهَاتُهُمْ وَأُوْلُو الْأَرْحَامِ بَعْضُهُمْ أَوْلَى بِبَعْضٍ فِي كِتَابِ اللَّهِ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُهَاجِرِينَ إِلَّا أَن تَفْعَلُوا إِلَى أَوْلِيَائِكُم مَّعْرُوفًا كَانَ ذَلِكَ فِي الْكِتَابِ مَسْطُورًا {6}

नबी तो मोमिनीन से खु़द उनकी जानों से भी बढ़कर हक़ रखते हैं (क्योंकि वह गोया उम्मत के मेहरबान बाप हैं) और उनकी बीवियाँ (गोया) उनकी माएँ हैं और मोमिनीन व मुहाजिरीन में से (जो लोग बाहम) क़राबतदार हैं। किताबें खु़दा की रूह से (ग़ैरों की निस्बत) एक दूसरे के (तर्के के) ज्यादा हक़दार हैं मगर (जब) तुम अपने दोस्तों के साथ सुलूक करना चाहो (तो दूसरी बात है) ये तो किताबे (खु़दा) में लिखा हुआ (मौजूद) है (6)

उतलु मा ऊहिया

وَإِذْ أَخَذْنَا مِنَ النَّبِيِّينَ مِيثَاقَهُمْ وَمِنكَ وَمِن نُّوحٍ وَإِبْرَاهِيمَ وَمُوسَى وَعِيسَى ابْنِ مَرْيَمَ وَأَخَذْنَا مِنْهُم مِّيثَاقًا غَلِيظًا {7}

और (ऐ रसूल वह वक़्त याद करो) जब हमने और पैग़म्बरों से और ख़ास तुमसे और नूह और इबराहीम और मूसा और मरियम के बेटे ईसा से एहदो पैमाने लिया और उन लोगों से हमने सख़्त एहद लिया था (7)

उतलु मा ऊहिया

لِيَسْأَلَ الصَّادِقِينَ عَن صِدْقِهِمْ وَأَعَدَّ لِلْكَافِرِينَ عَذَابًا أَلِيمًا {8}

ताकि (क़यामत के दिन) सच्चों (पैग़म्बरों) से उनकी सच्चाई तबलीग़े रिसालत का हाल दरियाफ्त करें और काफिरों के वास्ते तो उसने दर्दनाक अज़ाब तैयार ही कर रखा है। (8)

उतलु मा ऊहिया

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اذْكُرُوا نِعْمَةَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ جَاءتْكُمْ جُنُودٌ فَأَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِيحًا وَجُنُودًا لَّمْ تَرَوْهَا وَكَانَ اللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرًا {9}

(ऐ ईमानदारों खु़दा की) उन नेअमतों को याद करो जो उसने तुम पर नाजि़ल की हैं (जंगे खन्दक में) जब तुम पर (काफिरों का) लशकर (उमड़ के) आ पड़ा तो (हमने तुम्हारी मदद की) उन पर आँधी भेजी और (इसके अलावा फरिश्तों का ऐसा लश्कर भेजा) जिसको तुमने देखा तक नहीं और तुम जो कुछ कर रहे थे खु़दा उसे खू़ब देख रहा था (9)

उतलु मा ऊहिया

إِذْ جَاؤُوكُم مِّن فَوْقِكُمْ وَمِنْ أَسْفَلَ مِنكُمْ وَإِذْ زَاغَتْ الْأَبْصَارُ وَبَلَغَتِ الْقُلُوبُ الْحَنَاجِرَ وَتَظُنُّونَ بِاللَّهِ الظُّنُونَا {10}

जिस वक़्त वह लोग तुम पर तुम्हारे ऊपर से आ पड़े और तुम्हारे नीचे की तरफ से भी पिल गए और जिस वक़्त (उनकी कसरत से) तुम्हारी आँखें ख़ैरा हो गयीं थी और (ख़ौफ से) कलेजे मुँह को आ गए थे और ख़ुदा पर तरह-तरह के (बुरे) ख़्याल करने लगे थे। (10)

उतलु मा ऊहिया

هُنَالِكَ ابْتُلِيَ الْمُؤْمِنُونَ وَزُلْزِلُوا زِلْزَالًا شَدِيدًا {11}

यहाँ पर मोमिनों का इम्तिहान लिया गया था और ख़ूब अच्छी तरह झिंझोड़े गए थे। (11)

उतलु मा ऊहिया

وَإِذْ يَقُولُ الْمُنَافِقُونَ وَالَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ مَّا وَعَدَنَا اللَّهُ وَرَسُولُهُ إِلَّا غُرُورًا {12}

और जिस वक़्त मुनाफेक़ीन और वह लोग जिनके दिलों में (कुफ्र का) मरज़ था कहने लगे थे कि खु़दा ने और उसके रसूल ने जो हमसे वायदे किए थे वह बस बिल्कुल धोखे की टट्टी था। (12)

उतलु मा ऊहिया

وَإِذْ قَالَت طَّائِفَةٌ مِّنْهُمْ يَا أَهْلَ يَثْرِبَ لَا مُقَامَ لَكُمْ فَارْجِعُوا وَيَسْتَأْذِنُ فَرِيقٌ مِّنْهُمُ النَّبِيَّ يَقُولُونَ إِنَّ بُيُوتَنَا عَوْرَةٌ وَمَا هِيَ بِعَوْرَةٍ إِن يُرِيدُونَ إِلَّا فِرَارًا {13}

और अब उनमें का एक गिरोह कहने लगा था कि ऐ मदीने वालों अब (दुश्मन के मुक़ाबलें में) तुम्हारे कहीं ठिकाना नहीं तो (बेहतर है कि अब भी) पलट चलो और उनमें से कुछ लोग रसूल से (घर लौट जाने की) इजाज़त माँगने लगे थे कि हमारे घर (मर्दों से) बिल्कुल ख़ाली (गै़र महफूज़) पड़े हुए हैं - हालाँकि वह ख़ाली (ग़ैर महफूज़) न थे (बल्कि) वह लोग तो (इसी बहाने से) बस भागना चाहते हैं (13)

उतलु मा ऊहिया

وَلَوْ دُخِلَتْ عَلَيْهِم مِّنْ أَقْطَارِهَا ثُمَّ سُئِلُوا الْفِتْنَةَ لَآتَوْهَا وَمَا تَلَبَّثُوا بِهَا إِلَّا يَسِيرًا {14}

और अगर ऐसा ही लश्कर उन लोगों पर मदीने के एतराफ से आ पड़े और उन से फसाद (ख़ाना जंगी) करने की दरख़्वास्त की जाए तो ये लोग उसके लिए (फौरन) आ मौजूद हों (14)

उतलु मा ऊहिया

وَلَقَدْ كَانُوا عَاهَدُوا اللَّهَ مِن قَبْلُ لَا يُوَلُّونَ الْأَدْبَارَ وَكَانَ عَهْدُ اللَّهِ مَسْؤُولًا {15}

और (उस वक़्त) अपने घरों में भी बहुत कम तवक़्कु़फ़ करेंगे (मगर ये तो जिहाद है) हालाँकि उन लोगों ने पहले ही खु़दा से एहद किया था कि हम दुश्मन के मुक़ाबले में (अपनी) पीठ न फेरेगें और खु़दा के एहद की पूछगछ तो (एक न एक दिन) होकर रहेगी (15)

उतलु मा ऊहिया

قُل لَّن يَنفَعَكُمُ الْفِرَارُ إِن فَرَرْتُم مِّنَ الْمَوْتِ أَوِ الْقَتْلِ وَإِذًا لَّا تُمَتَّعُونَ إِلَّا قَلِيلًا {16}

(ऐ रसूल उनसे) कह दो कि अगर तुम मौत का क़त्ल (के ख़ौफ) से भागे भी तो (यह) भागना तुम्हें हरगिज़ कुछ भी मुफ़ीद न होगा और अगर तुम भागकर बच भी गए तो बस यही न की दुनिया में चन्द रोज़ा और चैनकर लो (16)

उतलु मा ऊहिया

قُلْ مَن ذَا الَّذِي يَعْصِمُكُم مِّنَ اللَّهِ إِنْ أَرَادَ بِكُمْ سُوءًا أَوْ أَرَادَ بِكُمْ رَحْمَةً وَلَا يَجِدُونَ لَهُم مِّن دُونِ اللَّهِ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا {17}

(ऐ रसूल) तुम उनसे कह दो कि अगर खुदावन्द तुम्हारे साथ बुराई का इरादा कर बैठे तो तुम्हें उसके (अज़ाब) से कौन ऐसा है जो बचाए या भलाई ही करना चाहे (तो कौन रोक सकता है) और ये लोग खु़दा के सिवा न तो किसी को अपना सरपरस्त पाएँगे और न मद्दगार (17)

उतलु मा ऊहिया

قَدْ يَعْلَمُ اللَّهُ الْمُعَوِّقِينَ مِنكُمْ وَالْقَائِلِينَ لِإِخْوَانِهِمْ هَلُمَّ إِلَيْنَا وَلَا يَأْتُونَ الْبَأْسَ إِلَّا قَلِيلًا {18}

तुममें से जो लोग (दूसरों को जिहाद से) रोकते हैं खु़दा उनको खू़ब जानता है और (उनको भी खू़ब जानता है) जो अपने भाई बन्दों से कहते हैं कि हमारे पास चले भी आओ और खु़द भी (फक़त पीछा छुड़ाने को लड़ाई के खेत) में बस एक ज़रा सा आकर तुमसे अपनी जान चुराई (18)

उतलु मा ऊहिया

أَشِحَّةً عَلَيْكُمْ فَإِذَا جَاء الْخَوْفُ رَأَيْتَهُمْ يَنظُرُونَ إِلَيْكَ تَدُورُ أَعْيُنُهُمْ كَالَّذِي يُغْشَى عَلَيْهِ مِنَ الْمَوْتِ فَإِذَا ذَهَبَ الْخَوْفُ سَلَقُوكُم بِأَلْسِنَةٍ حِدَادٍ أَشِحَّةً عَلَى الْخَيْرِ أُوْلَئِكَ لَمْ يُؤْمِنُوا فَأَحْبَطَ اللَّهُ أَعْمَالَهُمْ وَكَانَ ذَلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرًا {19}

और चल दिए और जब (उन पर) कोई ख़ौफ (का मौक़ा) आ पड़ा तो देखते हो कि (आस से) तुम्हारी तरफ देखते हैं (और) उनकी आँखें इस तरह घूमती हैं जैसे किसी शख्स पर मौत की बेहोशी छा जाए फिर वह ख़ौफ (का मौक़ा) जाता रहा और ईमानदारों की फतेह हुयी तो माले (ग़नीमत) पर गिरते पड़ते फौरन तुम पर अपनी तेज़ ज़बानों से ताना कसने लगे ये लोग (शुरू) से ईमान ही नहीं लाए (फक़त ज़बानी जमा ख़र्च थी) तो खु़दा ने भी इनका किया कराया सब अकारत कर दिया और ये तो खु़दा के वास्ते एक (निहायत) आसान बात थी (19)

उतलु मा ऊहिया

يَحْسَبُونَ الْأَحْزَابَ لَمْ يَذْهَبُوا وَإِن يَأْتِ الْأَحْزَابُ يَوَدُّوا لَوْ أَنَّهُم بَادُونَ فِي الْأَعْرَابِ يَسْأَلُونَ عَنْ أَنبَائِكُمْ وَلَوْ كَانُوا فِيكُم مَّا قَاتَلُوا إِلَّا قَلِيلًا {20}

(मदीने का मुहासेरा करने वाले चल भी दिए मगर) ये लोग अभी यही समझ रहे हैं कि (काफि़रों के) लश्कर अभी नहीं गए और अगर कहीं (कुफ्फार का) लश्कर फिर आ पहुँचे तो ये लोग चाहेंगे कि काश वह जंगलों में गँवारों में जा बसते और (वहीं से बैठे बैठे) तुम्हारे हालात दरयाफ़्त करते रहते और अगर उनको तुम लोगों में रहना पड़ता तो फ़क़त (पीछा छुड़ाने को) ज़रा ज़हूर (कहीं) लड़ते (20)

उतलु मा ऊहिया

لَقَدْ كَانَ لَكُمْ فِي رَسُولِ اللَّهِ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ لِّمَن كَانَ يَرْجُو اللَّهَ وَالْيَوْمَ الْآخِرَ وَذَكَرَ اللَّهَ كَثِيراً {21}

(मुसलमानों) तुम्हारे वास्ते तो खु़द रसूल अल्लाह का (ख़न्दक़ में बैठना) एक अच्छा नमूना था (मगर हाँ यह) उस शख़्स के वास्ते है जो खु़दा और रोजे़ आखे़रत की उम्मीद रखता हो और खु़दा की याद बाकसरत करता हो (21)

उतलु मा ऊहिया

وَلَمَّا رَأَى الْمُؤْمِنُونَ الْأَحْزَابَ قَالُوا هَذَا مَا وَعَدَنَا اللَّهُ وَرَسُولُهُ وَصَدَقَ اللَّهُ وَرَسُولُهُ وَمَا زَادَهُمْ إِلَّا إِيمَانًا وَتَسْلِيمًا {22}

और जब सच्चे ईमानदारों ने (कुफ्फार के) जमघटों को देखा तो (बेतकल्लुफ़) कहने लगे कि ये वही चीज़ तो है जिसका हम से खु़दा ने और उसके रसूल ने वायदा किया था (इसकी परवाह क्या है) और खु़दा ने और उसके रसूल ने बिल्कुल ठीक कहा था और (इसके देखने से) उनका ईमानदार और उनकी इताअत और भी जि़न्दा हो गयी (22)

उतलु मा ऊहिया

مِنَ الْمُؤْمِنِينَ رِجَالٌ صَدَقُوا مَا عَاهَدُوا اللَّهَ عَلَيْهِ فَمِنْهُم مَّن قَضَى نَحْبَهُ وَمِنْهُم مَّن يَنتَظِرُ وَمَا بَدَّلُوا تَبْدِيلًا {23}

ईमानदारों में से कुछ लोग ऐसे भी हैं कि खु़दा से उन्होंने (जानिसारी का) जो एहद किया था उसे पूरा कर दिखाया ग़रज़ उनमें से बाज़ वह हैं जो (मर कर) अपना वक़्त पूरा कर गए और उनमें से बाज़ (हुक्मे खु़दा के) मुन्तजि़र बैठे हैं और उन लोगों ने (अपनी बात) ज़रा भी नहीं बदली (23)

उतलु मा ऊहिया

لِيَجْزِيَ اللَّهُ الصَّادِقِينَ بِصِدْقِهِمْ وَيُعَذِّبَ الْمُنَافِقِينَ إِن شَاء أَوْ يَتُوبَ عَلَيْهِمْ إِنَّ اللَّهَ كَانَ غَفُورًا رَّحِيمًا {24}

ये इम्तेहान इसलिए था ताकि खु़द सच्चे (इमानदारों) को उनकी सच्चाई की जज़ाए ख़ैर दे और अगर चाहे तो मुनाफेक़ीन की सज़ा करे या (अगर वह लागे तौबा करें तो) खु़दा उनकी तौबा कु़बूल फरमाए इसमें शक नहीं कि खु़दा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (24)

उतलु मा ऊहिया

وَرَدَّ اللَّهُ الَّذِينَ كَفَرُوا بِغَيْظِهِمْ لَمْ يَنَالُوا خَيْرًا وَكَفَى اللَّهُ الْمُؤْمِنِينَ الْقِتَالَ وَكَانَ اللَّهُ قَوِيًّا عَزِيزًا {25}

और खु़दा ने (अपनी कु़दरत से) क़ाफिरों को मदीने से फेर दिया (और वह लोग) अपनी झुंझलाहट में (फिर गए) और इन्हें कुछ फायदे भी न हुआ और खु़दा ने (अपनी मेहरबानी से) मोमिनीन को लड़ने की नौबत न आने दी और खु़दा तो (बड़ा) ज़बरदस्त (और) ग़ालिब हैं (25)

उतलु मा ऊहिया

وَأَنزَلَ الَّذِينَ ظَاهَرُوهُم مِّنْ أَهْلِ الْكِتَابِ مِن صَيَاصِيهِمْ وَقَذَفَ فِي قُلُوبِهِمُ الرُّعْبَ فَرِيقًا تَقْتُلُونَ وَتَأْسِرُونَ فَرِيقًا {26}

और एहले किताब में से जिन लोगों (बनी कु़रैज़ा) ने उन (कुफ्फार) की मदद की थी खु़दा उनको उनके कि़लों से (बेदख़ल करके) नीचे उतार लाया और उनके दिलों में (तुम्हारा) ऐसा रोब बैठा दिया कि तुम उनके कुछ लोगों को क़त्ल करने लगे (26)

उतलु मा ऊहिया

وَأَوْرَثَكُمْ أَرْضَهُمْ وَدِيَارَهُمْ وَأَمْوَالَهُمْ وَأَرْضًا لَّمْ تَطَؤُوهَا وَكَانَ اللَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرًا {27}

और कुछ को क़ैदी (और गु़लाम) बनाने और तुम ही लोगों को उनकी ज़मीन और उनके घर और उनके माल और उस ज़मीन (खै़बर) का खु़दा ने मालिक बना दिया जिसमें तुमने क़दम तक नहीं रखा था और खु़दा तो हर चीज़ पर क़ादिर वतवाना है (27)

उतलु मा ऊहिया

يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ قُل لِّأَزْوَاجِكَ إِن كُنتُنَّ تُرِدْنَ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا وَزِينَتَهَا فَتَعَالَيْنَ أُمَتِّعْكُنَّ وَأُسَرِّحْكُنَّ سَرَاحًا جَمِيلًا {28}

ऐ रसूल अपनी बीवियों से कह दो कि अगर तुम (फक़त) दुनियावी जि़न्दगी और उसकी आराइश व ज़ीनत की ख्वाहाॅ हो तो उधर आओ मैं तुम लोगों को कुछ साज़ो सामान दे दूँ और उनवाने शाइस्ता से रूख़सत कर दूँ (28)

उतलु मा ऊहिया

وَإِن كُنتُنَّ تُرِدْنَ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَالدَّارَ الْآخِرَةَ فَإِنَّ اللَّهَ أَعَدَّ لِلْمُحْسِنَاتِ مِنكُنَّ أَجْرًا عَظِيمًا {29}

और अगर तुम लोग खु़दा और उसके रसूल और आखे़रत के घर की ख्वाहाॅ हो तो (अच्छी तरह ख्याल रखो कि) तुम लोगों में से नेकोकार औरतों के लिए खु़दा ने यक़ीनन् बड़ा (बड़ा) अज्र व (सवाब) मुहय्या कर रखा है (29)

उतलु मा ऊहिया

يَا نِسَاء النَّبِيِّ مَن يَأْتِ مِنكُنَّ بِفَاحِشَةٍ مُّبَيِّنَةٍ يُضَاعَفْ لَهَا الْعَذَابُ ضِعْفَيْنِ وَكَانَ ذَلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرًا {30}

ऐ पैग़म्बर की बीबियों तुममें से जो कोई किसी सरीही ना शाइस्ता हरकत की का मुरतिब हुयी तो (याद रहे कि) उसका अज़ाब भी दुगना बढ़ा दिया जाएगा और खु़दा के वास्ते (निहायत) आसान है (30)