Quran पारा 25

इलेहि युरद

إِلَيْهِ يُرَدُّ عِلْمُ السَّاعَةِ وَمَا تَخْرُجُ مِن ثَمَرَاتٍ مِّنْ أَكْمَامِهَا وَمَا تَحْمِلُ مِنْ أُنثَى وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلْمِهِ وَيَوْمَ يُنَادِيهِمْ أَيْنَ شُرَكَائِي قَالُوا آذَنَّاكَ مَا مِنَّا مِن شَهِيدٍ {47}

क़यामत के इल्म का हवाला उसी की तरफ़ है (यानि वही जानता है) और बगै़र उसके इल्म व (इरादे) के न तो फल अपने पौरों से निकलते हैं और न किसी औरत को हमल रखता है और न वह बच्चा जनती है और जिस दिन (ख़़ुदा) उन (मुशरेकीन) को पुकारेगा और पूछेगा कि मेरे शरीक कहाँ हैं- वह कहेंगे हम तो तुझ से अर्ज़ कर चूके हैं कि हम में से कोई (उनसे) वाकिफ़ ही नहीं (47)

इलेहि युरद

وَضَلَّ عَنْهُم مَّا كَانُوا يَدْعُونَ مِن قَبْلُ وَظَنُّوا مَا لَهُم مِّن مَّحِيصٍ {48}

और इससे पहले जिन माबूदों की परसतिश करते थे वह ग़ायब हो गये और ये लोग समझ जाएगें कि उनके लिए अब मुख़लिसी नहीं (48)

इलेहि युरद

لَا يَسْأَمُ الْإِنسَانُ مِن دُعَاء الْخَيْرِ وَإِن مَّسَّهُ الشَّرُّ فَيَؤُوسٌ قَنُوطٌ {49}

इन्सान भलाई की दुआए मांगने से तो कभी उकताता नहीं और अगर उसको कोई तकलीफ़ पहुँच जाए तो (फौरन) न उम्मीद और बेआस हो जाता है (49)

इलेहि युरद

وَلَئِنْ أَذَقْنَاهُ رَحْمَةً مِّنَّا مِن بَعْدِ ضَرَّاء مَسَّتْهُ لَيَقُولَنَّ هَذَا لِي وَمَا أَظُنُّ السَّاعَةَ قَائِمَةً وَلَئِن رُّجِعْتُ إِلَى رَبِّي إِنَّ لِي عِندَهُ لَلْحُسْنَى فَلَنُنَبِّئَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بِمَا عَمِلُوا وَلَنُذِيقَنَّهُم مِّنْ عَذَابٍ غَلِيظٍ {50}

और अगर उसको कोई तकलीफ़ पहुँच जाने के बाद हम उसको अपनी रहमत का मज़ा चखाएँ तो यक़ीनी कहने लगता है कि ये तो मेरे लिए ही है और मैं नहीं ख़याल करता कि कभी क़यामत बरपा होगी और अगर (क़यामत हो भी और) मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाया भी जाऊँ तो भी मेरे लिए यक़ीनन उसके यहाँ भलाई ही तो है जो आमाल करते रहे हम उनको (क़यामत में) ज़रूर बता देंगें और उनको सख़्त अज़ाब का मज़ा चख़ाएगें (50)

इलेहि युरद

وَإِذَا أَنْعَمْنَا عَلَى الْإِنسَانِ أَعْرَضَ وَنَأى بِجَانِبِهِ وَإِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ فَذُو دُعَاء عَرِيضٍ {51}

(वह अलग) और जब हम इन्सान पर एहसान करते हैं तो (हमारी तरफ़ से) मुँह फेर लेता है और मुँह बदलकर चल देता है और जब उसे तकलीफ़ पहुँचती है तो लम्बी चैड़ी दुआएँ करने लगता है (51)

इलेहि युरद

قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِن كَانَ مِنْ عِندِ اللَّهِ ثُمَّ كَفَرْتُم بِهِ مَنْ أَضَلُّ مِمَّنْ هُوَ فِي شِقَاقٍ بَعِيدٍ {52}

(ऐ रसूल) तुम कहो कि भला देखो तो सही कि अगर ये (क़़ुरआन) ख़ुदा की बारगाह से (आया) हो और फिर तुम उससे इन्कार करो तो जो (ऐसे) परले दर्जे की मुख़ालेफ़त में (पड़ा) हो उससे बढ़कर और कौन गुमराह हो सकता है (52)

इलेहि युरद

سَنُرِيهِمْ آيَاتِنَا فِي الْآفَاقِ وَفِي أَنفُسِهِمْ حَتَّى يَتَبَيَّنَ لَهُمْ أَنَّهُ الْحَقُّ أَوَلَمْ يَكْفِ بِرَبِّكَ أَنَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ {53}

हम अनक़रीब ही अपनी (क़ु़दरत) की निशानियाँ अतराफ़ (आलम) में और ख़़ुद उनमें भी दिखा देगें यहाँ तक कि उन पर ज़ाहिर हो जाएगा कि वही यक़ीनन हक़ है क्या तुम्हारा परवरदिगार इसके लिए काफ़ी नहीं कि वह हर चीज़ पर क़ाबू रखता है (53)

इलेहि युरद

أَلَا إِنَّهُمْ فِي مِرْيَةٍ مِّن لِّقَاء رَبِّهِمْ أَلَا إِنَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ مُّحِيطٌ {54}

देखो ये लोग अपने परवरदिगार के रूबरू हाजि़र होने से शक में (पड़े) हैं सुन रखो वह हर चीज़ पर हावी है (54)

इलेहि युरद

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से शुरू करता हूँ जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

इलेहि युरद

حم {1}

हा मीम (1)

इलेहि युरद

عسق {2}

ऐन सीन काफ़ (2) 

इलेहि युरद

كَذَلِكَ يُوحِي إِلَيْكَ وَإِلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكَ اللَّهُ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ {3}

(ऐ रसूल) ग़ालिब व दाना ख़़ुदा तुम्हारी तरफ़ और जो (पैग़म्बर) तुमसे पहले गुज़रे उनकी तरफ़ यूँ ही वही भेजता रहता है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है ग़रज़ सब कुछ उसी का है (3)

इलेहि युरद

لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ {4}

और वह तो (बड़ा) आलीशान (और) बुज़ुर्ग है (4)

इलेहि युरद

تَكَادُ السَّمَاوَاتُ يَتَفَطَّرْنَ مِن فَوْقِهِنَّ وَالْمَلَائِكَةُ يُسَبِّحُونَ بِحَمْدِ رَبِّهِمْ وَيَسْتَغْفِرُونَ لِمَن فِي الْأَرْضِ أَلَا إِنَّ اللَّهَ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ {5}

(उनकी बातों से) क़रीब है कि सारे आसमान (उसकी हैबत के मारे) अपने ऊपर वार से फट पड़े और फ़रिश्ते तो अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तसबीह करते हैं और जो लोग ज़मीन में हैं उनके लिए (गुनाहों की) माफी माँगा करते हैं सुन रखो कि ख़़ुदा ही यक़ीनन बड़ा बक्शने वाला मेहरबान है (5)

इलेहि युरद

وَالَّذِينَ اتَّخَذُوا مِن دُونِهِ أَولِيَاء اللَّهُ حَفِيظٌ عَلَيْهِمْ وَمَا أَنتَ عَلَيْهِم بِوَكِيلٍ {6}

और जिन लोगों ने ख़़ुदा को छोड़ कर (और) अपने सरपरस्त बना रखे हैं ख़़ुदा उनकी निगरानी कर रहा है (ऐ रसूल) तुम उनके निगेहबान नहीं हो (6)

इलेहि युरद

وَكَذَلِكَ أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ قُرْآنًا عَرَبِيًّا لِّتُنذِرَ أُمَّ الْقُرَى وَمَنْ حَوْلَهَا وَتُنذِرَ يَوْمَ الْجَمْعِ لَا رَيْبَ فِيهِ فَرِيقٌ فِي الْجَنَّةِ وَفَرِيقٌ فِي السَّعِيرِ {7}

और हमने तुम्हारे पास अरबी क़़ुरआन यूँ भेजा ताकि तुम मक्का वालों को और जो लोग इसके इर्द गिर्द रहते हैं उनको डराओ और (उनको) क़यामत के दिन से भी डराओ जिस (के आने) में कुछ भी शक नहीं (उस दिन) एक फरीक़ (मानने वाला) जन्नत में होगा और फरीक़ (सानी) दोज़ख़ में (7)

इलेहि युरद

وَلَوْ شَاء اللَّهُ لَجَعَلَهُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً وَلَكِن يُدْخِلُ مَن يَشَاء فِي رَحْمَتِهِ وَالظَّالِمُونَ مَا لَهُم مِّن وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ {8}

और अगर ख़़ुदा चाहता तो इन सबको एक ही गिरोह बना देता मगर वह तो जिसको चाहता है (हिदायत करके) अपनी रहमत में दाखि़ल कर लेता है और ज़ालिमों का तो (उस दिन) न कोई यार है और न मददगार (8)

इलेहि युरद

أَمِ اتَّخَذُوا مِن دُونِهِ أَوْلِيَاء فَاللَّهُ هُوَ الْوَلِيُّ وَهُوَ يُحْيِي المَوْتَى وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ {9}

क्या उन लोगों ने ख़़ुदा के सिवा (दूसरे) कारसाज़ बनाए हैं तो कारसाज़ बस ख़़ुदा ही है और वही मुर्दों को जि़न्दा करेगा और वही हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है (9)

इलेहि युरद

وَمَا اخْتَلَفْتُمْ فِيهِ مِن شَيْءٍ فَحُكْمُهُ إِلَى اللَّهِ ذَلِكُمُ اللَّهُ رَبِّي عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَإِلَيْهِ أُنِيبُ {10}

और तुम लोग जिस चीज़ में बाहम एख़्तेलाफ़ात रखते हो उसका फैसला ख़ुदा ही के हवाले है वही ख़ुदा तो मेरा परवरदिगार है मैं उसी पर भरोसा रखता हूँ और उसी की तरफ़ रूजू करता हूँ (10)

इलेहि युरद

فَاطِرُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ جَعَلَ لَكُم مِّنْ أَنفُسِكُمْ أَزْوَاجًا وَمِنَ الْأَنْعَامِ أَزْوَاجًا يَذْرَؤُكُمْ فِيهِ لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ وَهُوَ السَّمِيعُ البَصِيرُ {11}

सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करने वाला (वही) है उसी ने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही जिन्स के जोड़े बनाए और चारपायों के जोड़े भी (उसी ने बनाए) उस (तरफ़) में तुमको फैलाता रहता है कोई चीज़ उसकी मिसल नहीं और वह हर चीज़ को सुनता देखता है (11)

इलेहि युरद

لَهُ مَقَالِيدُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَن يَشَاء وَيَقْدِرُ إِنَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ {12}

सारे आसमान व ज़मीन की कुन्जियाँ उसके पास हैं जिसके लिए चाहता है रोज़ी को फराख़ कर देता है (जिसके लिए) चाहता है तंग कर देता है बेशक वह हर चीज़ से ख़ूब वाकि़फ़ है (12)

इलेहि युरद

شَرَعَ لَكُم مِّنَ الدِّينِ مَا وَصَّى بِهِ نُوحًا وَالَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ وَمَا وَصَّيْنَا بِهِ إِبْرَاهِيمَ وَمُوسَى وَعِيسَى أَنْ أَقِيمُوا الدِّينَ وَلَا تَتَفَرَّقُوا فِيهِ كَبُرَ عَلَى الْمُشْرِكِينَ مَا تَدْعُوهُمْ إِلَيْهِ اللَّهُ يَجْتَبِي إِلَيْهِ مَن يَشَاء وَيَهْدِي إِلَيْهِ مَن يُنِيبُ {13}

उसने तुम्हारे लिए दीन का वही रास्ता मुक़र्रर किया जिस (पर चलने का) नूह को हुक्म दिया था और (ऐ रसूल) उसी की हमने तुम्हारे पास वही भेजी है और उसी का इबराहीम और मूसा और ईसा को भी हुक्म दिया था (वह) ये (है कि) दीन को क़ायम रखना और उसमें तफ़रक़ा न डालना जिस दीन की तरफ़ तुम मुशरेकीन को बुलाते हो वह उन पर बहुत याक़ ग़ुज़रता है ख़़ुदा जिसको चाहता है अपनी बारगाह का बरगुज़ीदा कर लेता है और जो उसकी तरफ़ रूजू करे (अपनी तरफ़ (पहुँचने) का रास्ता दिखा देता है (13)

इलेहि युरद

وَمَا تَفَرَّقُوا إِلَّا مِن بَعْدِ مَا جَاءهُمُ الْعِلْمُ بَغْيًا بَيْنَهُمْ وَلَوْلَا كَلِمَةٌ سَبَقَتْ مِن رَّبِّكَ إِلَى أَجَلٍ مُّسَمًّى لَّقُضِيَ بَيْنَهُمْ وَإِنَّ الَّذِينَ أُورِثُوا الْكِتَابَ مِن بَعْدِهِمْ لَفِي شَكٍّ مِّنْهُ مُرِيبٍ {14}

और ये लोग मुतफ़र्रिक़ हुए भी तो इल्म (हक़) आ चुकने के बाद और (वह भी) महज़ आपस की जि़द से और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से एक वक़्ते मुक़र्रर तक के लिए (क़यामत का) वायदा न हो चुका होता तो उनमें कबका फैसला हो चुका होता और जो लोग उनके बाद (ख़़ुदा की) किताब के वारिस हुए वह उसकी तरफ़ से बहुत सख़्त शुबहे में (पड़े हुए) हैं (14)

इलेहि युरद

فَلِذَلِكَ فَادْعُ وَاسْتَقِمْ كَمَا أُمِرْتَ وَلَا تَتَّبِعْ أَهْوَاءهُمْ وَقُلْ آمَنتُ بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ مِن كِتَابٍ وَأُمِرْتُ لِأَعْدِلَ بَيْنَكُمُ اللَّهُ رَبُّنَا وَرَبُّكُمْ لَنَا أَعْمَالُنَا وَلَكُمْ أَعْمَالُكُمْ لَا حُجَّةَ بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمُ اللَّهُ يَجْمَعُ بَيْنَنَا وَإِلَيْهِ الْمَصِيرُ {15}

तो (ऐ रसूल) तुम (लोगों को) उसी (दीन) की तरफ़ बुलाते रहे जो और जैसा तुमको हुक्म हुआ है (उसी पर क़ायम रहो और उनकी नफ़सियानी ख़्वाहिशों की पैरवी न करो और साफ़ साफ़ कह दो कि जो किताब ख़़ुदा ने नाजि़ल की है उस पर मैं ईमान रखता हूँ और मुझे हुक्म हुआ है कि मैं तुम्हारे एख़्तेलाफात के (दरमेयान) इन्साफ़ (से फ़ैसला) करूँ ख़़ुदा ही हमारा भी परवरदिगार है और वही तुम्हारा भी परवरदिगार है हमारी कारगुज़ारियाँ हमारे ही लिए हैं और तुम्हारी कारस्तानियाँ तुम्हारे वास्ते हममें और तुममें तो कुछ हुज्जत (व तक़रार की ज़रूरत) नहीं ख़़ुदा ही हम (क़यामत में) सबको इकट्ठा करेगा (15)

इलेहि युरद

وَالَّذِينَ يُحَاجُّونَ فِي اللَّهِ مِن بَعْدِ مَا اسْتُجِيبَ لَهُ حُجَّتُهُمْ دَاحِضَةٌ عِندَ رَبِّهِمْ وَعَلَيْهِمْ غَضَبٌ وَلَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ {16}

और उसी की तरफ़ लौट कर जाना है और जो लोग उसके मान लिए जाने के बाद ख़ुदा के बारे में (ख़्वाहमख़्वाह) झगड़ा करते हैं उनके परवरदिगार के नज़दीक उनकी दलील लग़ो बातिल है और उन पर (ख़ु़दा का) ग़ज़ब और उनके लिए सख़्त अज़ाब है (16)

इलेहि युरद

اللَّهُ الَّذِي أَنزَلَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ وَالْمِيزَانَ وَمَا يُدْرِيكَ لَعَلَّ السَّاعَةَ قَرِيبٌ {17}

ख़़ुदा ही तो है जिसने सच्चाई के साथ किताब नाजि़ल की और अदल (व इन्साफ़ भी नाजि़ल किया) और तुमको क्या मालूम शायद क़यामत क़रीब ही हो (17)

इलेहि युरद

يَسْتَعْجِلُ بِهَا الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِهَا وَالَّذِينَ آمَنُوا مُشْفِقُونَ مِنْهَا وَيَعْلَمُونَ أَنَّهَا الْحَقُّ أَلَا إِنَّ الَّذِينَ يُمَارُونَ فِي السَّاعَةِ لَفِي ضَلَالٍ بَعِيدٍ {18}

(फिर ये ग़फ़लत कैसी) जो लोग इस पर ईमान नहीं रखते वह तो इसके लिए जल्दी कर रहे हैं और जो मोमिन हैं वह उससे डरते हैं और जानते हैं कि क़यामत यक़ीनी बरहक़ है आगाह रहो कि जो लोग क़यामत के बारे में शक किया करते हैं वह बड़े परले दर्जे की गुमराही में हैं (18)

इलेहि युरद

اللَّهُ لَطِيفٌ بِعِبَادِهِ يَرْزُقُ مَن يَشَاء وَهُوَ الْقَوِيُّ العَزِيزُ {19}

और ख़ुदा अपने बन्दों (के हाल) पर बड़ा मेहरबान है जिसको (जितनी) रोज़ी चाहता है देता है वह ज़ेार वाला ज़बरदस्त है (19)

इलेहि युरद

مَن كَانَ يُرِيدُ حَرْثَ الْآخِرَةِ نَزِدْ لَهُ فِي حَرْثِهِ وَمَن كَانَ يُرِيدُ حَرْثَ الدُّنْيَا نُؤتِهِ مِنْهَا وَمَا لَهُ فِي الْآخِرَةِ مِن نَّصِيبٍ {20}

जो शख़्स आख़ेरत की खेती का तालिब हो हम उसके लिए उसकी खेती में अफ़ज़ाइश करेंगे और दुनिया की खेती का ख़ास्तगार हो तो हम उसको उसी में से देंगे मगर आखे़रत में फिर उसका कुछ हिस्सा न होगा (20)

इलेहि युरद

أَمْ لَهُمْ شُرَكَاء شَرَعُوا لَهُم مِّنَ الدِّينِ مَا لَمْ يَأْذَن بِهِ اللَّهُ وَلَوْلَا كَلِمَةُ الْفَصْلِ لَقُضِيَ بَيْنَهُمْ وَإِنَّ الظَّالِمِينَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ {21}

क्या उन लोगों के (बनाए हुए) ऐसे शरीक हैं जिन्होंने उनके लिए ऐसा दीन मुक़र्रर किया है जिसकी ख़़ुदा ने इजाज़त नहीं दी और अगर फ़ैसले (के दिन) का वायदा न होता तो उनमें यक़ीनी अब तक फैसला हो चुका होता और ज़ालिमों के वास्ते ज़रूर दर्दनाक अज़ाब है (21)

इलेहि युरद

تَرَى الظَّالِمِينَ مُشْفِقِينَ مِمَّا كَسَبُوا وَهُوَ وَاقِعٌ بِهِمْ وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فِي رَوْضَاتِ الْجَنَّاتِ لَهُم مَّا يَشَاؤُونَ عِندَ رَبِّهِمْ ذَلِكَ هُوَ الْفَضْلُ الكَبِيرُ {22}

(क़यामत के दिन) देखोगे कि ज़ालिम लोग अपने आमाल (के वबाल) से डर रहे होंगे और वह उन पर पड़ कर रहेगा और जिन्होने ईमान क़़ुबूल किया और अच्छे काम किए वह बेहिश्त के बाग़ों में होंगे वह जो कुछ चाहेंगे उनके लिए उनके परवरदिगार की बारगाह में (मौजूद) है यही तो (ख़़ुदा का) बड़ा फज़ल है (22)

इलेहि युरद

ذَلِكَ الَّذِي يُبَشِّرُ اللَّهُ عِبَادَهُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ قُل لَّا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ أَجْرًا إِلَّا الْمَوَدَّةَ فِي الْقُرْبَى وَمَن يَقْتَرِفْ حَسَنَةً نَّزِدْ لَهُ فِيهَا حُسْنًا إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ شَكُورٌ {23}

यही (ईनाम) है जिसकी ख़़ुदा अपने उन बन्दों को ख़ुशख़बरी देता है जो ईमान लाए और नेक काम करते रहे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं इस (तबलीग़े रिसालत) का अपने क़रातबदारों (एहले बैत) की मोहब्बत के सिवा तुमसे कोई सिला नहीं मांगता और जो शख़्स नेकी हासिल करेगा हम उसके लिए उसकी ख़ूबी में इज़ाफा कर देंगे बेशक वह बड़ा बख्शने वाला क़दरदान है (23)

इलेहि युरद

أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَى عَلَى اللَّهِ كَذِبًا فَإِن يَشَأِ اللَّهُ يَخْتِمْ عَلَى قَلْبِكَ وَيَمْحُ اللَّهُ الْبَاطِلَ وَيُحِقُّ الْحَقَّ بِكَلِمَاتِهِ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ {24}

क्या ये लोग (तुम्हारी निस्बत कहते हैं कि इस (रसूल) ने ख़़ुदा पर झूठा बोहतान बाँधा है तो अगर (ऐसा) होता तो) ख़़ुदा चाहता तो तुम्हारे दिल पर मोहर लगा देता (कि तुम बात ही न कर सकते) और ख़ुदा तो झूठ को नेस्तनाबूद और अपनी बातों से हक़ को साबित करता है वह यक़ीनी दिलों के राज़ से ख़ूब वाकि़फ है (24)

इलेहि युरद

وَهُوَ الَّذِي يَقْبَلُ التَّوْبَةَ عَنْ عِبَادِهِ وَيَعْفُو عَنِ السَّيِّئَاتِ وَيَعْلَمُ مَا تَفْعَلُونَ {25}

और वही तो है जो अपने बन्दों की तौबा क़ुबूल करता है और गुनाहों को माफ़ करता है और तुम लोग जो कुछ भी करते हो वह जानता है (25)

इलेहि युरद

وَيَسْتَجِيبُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَيَزِيدُهُم مِّن فَضْلِهِ وَالْكَافِرُونَ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ {26}

और जो लोग ईमान लाए और अच्छे अच्छे काम करते रहे उनकी (दुआ) क़़ुबूल करता है फज़ल व क़रम से उनको बढ़ कर देता है और काफ़िरों के लिए सख़्त अज़ाब है (26)

इलेहि युरद

وَلَوْ بَسَطَ اللَّهُ الرِّزْقَ لِعِبَادِهِ لَبَغَوْا فِي الْأَرْضِ وَلَكِن يُنَزِّلُ بِقَدَرٍ مَّا يَشَاء إِنَّهُ بِعِبَادِهِ خَبِيرٌ بَصِيرٌ {27}

और अगर ख़ुदा ने अपने बन्दों की रोज़ी में फराख़ी कर दे तो वह लोग ज़रूर (रूए) ज़मीन से सरकशी करने लगें मगर वह तो बाक़दरे मुनासिब जिसकी रोज़ी (जितनी) चाहता है नाजि़ल करता है वह बेशक अपने बन्दों से ख़बरदार (और उनको) देखता है (27)

इलेहि युरद

وَهُوَ الَّذِي يُنَزِّلُ الْغَيْثَ مِن بَعْدِ مَا قَنَطُوا وَيَنشُرُ رَحْمَتَهُ وَهُوَ الْوَلِيُّ الْحَمِيدُ {28}

और वही तो है जो लोगों के नाउम्मीद हो जाने के बाद मेंह बरसाता है और अपनी रहमत (बारिश की बरकतों) को फैला देता है और वही कारसाज़ (और) हम्द व सना के लायक़ है (28)

इलेहि युरद

وَمِنْ آيَاتِهِ خَلْقُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَثَّ فِيهِمَا مِن دَابَّةٍ وَهُوَ عَلَى جَمْعِهِمْ إِذَا يَشَاء قَدِيرٌ {29}

और उसी की (क़ु़दरत की) निशानियों में से सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करना और उन जानदारों का भी जो उसने आसमान व ज़मीन में फैला रखे हैं और जब चाहे उनके जमा कर लेने पर (भी) क़ादिर है (29)

इलेहि युरद

وَمَا أَصَابَكُم مِّن مُّصِيبَةٍ فَبِمَا كَسَبَتْ أَيْدِيكُمْ وَيَعْفُو عَن كَثِيرٍ {30}

और जो मुसीबत तुम पर पड़ती है वह तुम्हारे अपने ही हाथों की करतूत से और (उस पर भी) वह बहुत कुछ माफ़ कर देता है (30) 

इलेहि युरद

وَمَا أَنتُم بِمُعْجِزِينَ فِي الْأَرْضِ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ اللَّهِ مِن وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ {31}

और तुम लोग ज़मीन में (रह कर) तो ख़ुदा को किसी तरह हरा नहीं सकते और ख़ुदा के सिवा तुम्हारा न कोई दोस्त है और न मददगार (31)

इलेहि युरद

وَمِنْ آيَاتِهِ الْجَوَارِ فِي الْبَحْرِ كَالْأَعْلَامِ {32}

और उसी की (क़़ुदरत) की निशानियों में से समन्दर में (चलने वाले) (बादबानी जहाज़) है जो गोया पहाड़ हैं (32)

इलेहि युरद

إِن يَشَأْ يُسْكِنِ الرِّيحَ فَيَظْلَلْنَ رَوَاكِدَ عَلَى ظَهْرِهِ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِّكُلِّ صَبَّارٍ شَكُورٍ {33}

अगर ख़ुदा चाहे तो हवा को ठहरा दे तो जहाज़ भी समन्दर की सतह पर (खड़े के खड़े) रह जाएँ बेशक तमाम सब्र और शुक्र करने वालों के वास्ते इन बातों में (ख़ुदा की क़़ुदरत की) बहुत सी निशानियाँ हैं (33) 

इलेहि युरद

أَوْ يُوبِقْهُنَّ بِمَا كَسَبُوا وَيَعْفُ عَن كَثِيرٍ {34}

(या वह चाहे तो) उनको उनके आमाल (बद) के सबब तबाह कर दे (34)

इलेहि युरद

وَيَعْلَمَ الَّذِينَ يُجَادِلُونَ فِي آيَاتِنَا مَا لَهُم مِّن مَّحِيصٍ {35}

और वह बहुत कुछ माफ़ करता है और जो लोग हमारी निशानियों में (ख़्वाहमाख़्वाह) झगड़ा करते हैं वह अच्छी तरह समझ लें कि उनको किसी तरह (अज़ाब से) छुटकारा नहीं (35)

इलेहि युरद

فَمَا أُوتِيتُم مِّن شَيْءٍ فَمَتَاعُ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَمَا عِندَ اللَّهِ خَيْرٌ وَأَبْقَى لِلَّذِينَ آمَنُوا وَعَلَى رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ {36}

(लोगों) तुमको जो कुछ (माल) दिया गया है वह दुनिया की जि़न्दगी का (चन्द रोज़) साज़ोसामान है और जो कुछ ख़ुदा के यहाँ है वह कहीं बेहतर और पायदार है (मगर ये) ख़ास उन ही लोगों के लिए है जो ईमान लाए और अपने परवरदिगार पर भरोसा रखते हैं (36)

इलेहि युरद

وَالَّذِينَ يَجْتَنِبُونَ كَبَائِرَ الْإِثْمِ وَالْفَوَاحِشَ وَإِذَا مَا غَضِبُوا هُمْ يَغْفِرُونَ {37}

और जो लोग बड़े बड़े गुनाहों और बेहयाई की बातों से बचे रहते हैं और ग़ुस्सा आ जाता है तो माफ़ कर देते हैं (37)

इलेहि युरद

وَالَّذِينَ اسْتَجَابُوا لِرَبِّهِمْ وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ وَأَمْرُهُمْ شُورَى بَيْنَهُمْ وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنفِقُونَ {38}

और जो अपने परवरदिगार का हुक्म मानते हैं और नमाज़ पढ़ते हैं और उनके कुल काम आपस के मशवरे से होते हैं और जो कुछ हमने उन्हें अता किया है उसमें से (राहे ख़ुदा में) ख़र्च करते हैं (38)

इलेहि युरद

وَالَّذِينَ إِذَا أَصَابَهُمُ الْبَغْيُ هُمْ يَنتَصِرُونَ {39}

और (वह ऐसे हैं) कि जब उन पर किसी किस्म की ज़्यादती की जाती है तो बस वाजिबी बदला ले लेते हैं (39)

इलेहि युरद

وَجَزَاء سَيِّئَةٍ سَيِّئَةٌ مِّثْلُهَا فَمَنْ عَفَا وَأَصْلَحَ فَأَجْرُهُ عَلَى اللَّهِ إِنَّهُ لَا يُحِبُّ الظَّالِمِينَ {40}

और बुराई का बदला तो वैसी ही बुराई है उस पर भी जो शख़्स माफ़ कर दे और (मामले की) इसलाह कर दें तो इसका सवाब ख़ुदा के जि़म्मे है बेशक वह ज़ुल्म करने वालों को पसन्द नहीं करता (40)

इलेहि युरद

وَلَمَنِ انتَصَرَ بَعْدَ ظُلْمِهِ فَأُوْلَئِكَ مَا عَلَيْهِم مِّن سَبِيلٍ {41}

और जिस पर ज़़ुल्म हुआ हो अगर वह उसके बाद इन्तेक़ाम ले तो ऐसे लोगों पर कोई इल्ज़ाम नहीं (41)

इलेहि युरद

إِنَّمَا السَّبِيلُ عَلَى الَّذِينَ يَظْلِمُونَ النَّاسَ وَيَبْغُونَ فِي الْأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ أُوْلَئِكَ لَهُم عَذَابٌ أَلِيمٌ {42}

इल्ज़ाम तो बस उन्हीं लोगों पर होगा जो लोगों पर ज़़ुल्म करते हैं और रूए ज़मीन में नाहक़ ज़्यादतियाँ करते फिरते हैं उन्हीं लोगों के लिए दर्दनाक अज़ाब है (42)

इलेहि युरद

وَلَمَن صَبَرَ وَغَفَرَ إِنَّ ذَلِكَ لَمِنْ عَزْمِ الْأُمُورِ {43}

और जो सब्र करे और कुसूर माफ़ कर दे तो बेशक ये बड़े हौसले के काम हैं (43)

इलेहि युरद

وَمَن يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِن وَلِيٍّ مِّن بَعْدِهِ وَتَرَى الظَّالِمِينَ لَمَّا رَأَوُا الْعَذَابَ يَقُولُونَ هَلْ إِلَى مَرَدٍّ مِّن سَبِيلٍ {44}

और जिसको ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे तो उसके बाद उसका कोई सरपरस्त नहीं और तुम ज़ालिमों को देखोगे कि जब (दोज़ख़) का अज़ाब देखेंगे तो कहेंगे कि भला (दुनिया में) फिर लौट कर जाने की कोई सबील है (44)

इलेहि युरद

وَتَرَاهُمْ يُعْرَضُونَ عَلَيْهَا خَاشِعِينَ مِنَ الذُّلِّ يَنظُرُونَ مِن طَرْفٍ خَفِيٍّ وَقَالَ الَّذِينَ آمَنُوا إِنَّ الْخَاسِرِينَ الَّذِينَ خَسِرُوا أَنفُسَهُمْ وَأَهْلِيهِمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ أَلَا إِنَّ الظَّالِمِينَ فِي عَذَابٍ مُّقِيمٍ {45}

और तुम उनको देखोगे कि दोज़ख़ के सामने लाए गये हैं (और) जि़ल्लत के मारे कटे जाते हैं (और) कनक्खियों से देखे जाते हैं और मोमिनीन कहेंगे कि हकीक़त में वही बड़े घाटे में हैं जिन्होने क़यामत के दिन अपने आप को और अपने घर वालों को ख़सारे में डाला देखो ज़ुल्म करने वाले दाएमी अज़ाब में रहेंगे (45)

इलेहि युरद

وَمَا كَانَ لَهُم مِّنْ أَوْلِيَاء يَنصُرُونَهُم مِّن دُونِ اللَّهِ وَمَن يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِن سَبِيلٍ {46}

और ख़ुदा के सिवा न उनके सरपरस्त ही होंगे जो उनकी मदद को आएँ और जिसको ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे तो उसके लिए (हिदायत की) कोई राह नहीं (46)

इलेहि युरद

اسْتَجِيبُوا لِرَبِّكُم مِّن قَبْلِ أَن يَأْتِيَ يَوْمٌ لَّا مَرَدَّ لَهُ مِنَ اللَّهِ مَا لَكُم مِّن مَّلْجَأٍ يَوْمَئِذٍ وَمَا لَكُم مِّن نَّكِيرٍ {47}

(लोगों) उस दिन के पहले जो ख़ुदा की तरफ़ से आयेगा और किसी तरह (टाले न टलेगा) अपने परवरदिगार का हुक्म मान लो (क्यों कि) उस दिन न तो तुमको कहीं पनाह की जगह मिलेगी और न तुमसे (गुनाह का) इन्कार ही बन पड़ेगा (47)

इलेहि युरद

فَإِنْ أَعْرَضُوا فَمَا أَرْسَلْنَاكَ عَلَيْهِمْ حَفِيظًا إِنْ عَلَيْكَ إِلَّا الْبَلَاغُ وَإِنَّا إِذَا أَذَقْنَا الْإِنسَانَ مِنَّا رَحْمَةً فَرِحَ بِهَا وَإِن تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ فَإِنَّ الْإِنسَانَ كَفُورٌ {48}

फिर अगर मुँह फेर लें तो (ऐ रसूल) हमने तुमको उनका निगेहबान बनाकर नहीं भेजा तुम्हारा काम तो सिर्फ़ (एहकाम का) पहुँचा देना है और जब हम इन्सान को अपनी रहमत का मज़ा चखाते हैं तो वह उससे ख़ुश हो जाता है और अगर उनको उन्हीं के हाथों की पहली करतूतों की बदौलत कोई तकलीफ़ पहुँचती (सब एहसान भूल गए) बेशक इन्सान बड़ा नाशुक्रा है (48)

इलेहि युरद

لِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ يَخْلُقُ مَا يَشَاء يَهَبُ لِمَنْ يَشَاء إِنَاثًا وَيَهَبُ لِمَن يَشَاء الذُّكُورَ {49}

सारे आसमान व ज़मीन की हुकूमत ख़ास ख़ुदा ही की है जो चाहता है पैदा करता है (और) जिसे चाहता है (फ़क़त) बेटियाँ देता है और जिसे चाहता है (महज़) बेटा अता करता है (49)

इलेहि युरद

أَوْ يُزَوِّجُهُمْ ذُكْرَانًا وَإِنَاثًا وَيَجْعَلُ مَن يَشَاء عَقِيمًا إِنَّهُ عَلِيمٌ قَدِيرٌ {50}

या उनको बेटे बेटियाँ (औलाद की) दोनों किस्में इनायत करता है और जिसको चाहता है बांझ बना देता है बेशक वह बड़ा वाकिफ़कार क़ादिर है (50)

इलेहि युरद

وَمَا كَانَ لِبَشَرٍ أَن يُكَلِّمَهُ اللَّهُ إِلَّا وَحْيًا أَوْ مِن وَرَاء حِجَابٍ أَوْ يُرْسِلَ رَسُولًا فَيُوحِيَ بِإِذْنِهِ مَا يَشَاء إِنَّهُ عَلِيٌّ حَكِيمٌ {51}

और किसी आदमी के लिए ये मुमकिन नहीं कि ख़ुदा उससे बात करे मगर वही के ज़रिए से (जैसे) (दाऊद) परदे के पीछे से जैसे (मूसा) या कोई फ़रिश्ता भेज दे (जैसे मोहम्मद) ग़रज़ वह अपने एख़्तेयार से जो चाहता है पैग़ाम भेज देता है बेशक वह आलीशान हिकमत वाला है (51)

इलेहि युरद

وَكَذَلِكَ أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ رُوحًا مِّنْ أَمْرِنَا مَا كُنتَ تَدْرِي مَا الْكِتَابُ وَلَا الْإِيمَانُ وَلَكِن جَعَلْنَاهُ نُورًا نَّهْدِي بِهِ مَنْ نَّشَاء مِنْ عِبَادِنَا وَإِنَّكَ لَتَهْدِي إِلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ {52}

और इसी तरह हमने अपने हुक्म को रूह (क़ुरआन) तुम्हारी तरफ ‘वही’ के ज़रिए से भेजे तो तुम न किताब ही को जानते थे कि क्या है और न ईमान को मगर इस (क़ुरआन) को एक नूर बनाया है कि इससे हम अपने बन्दों में से जिसकी चाहते हैं हिदायत करते हैं और इसमें शक नहीं कि तुम (ऐ रसूल) सीधा ही रास्ता दिखाते हो (52) 

इलेहि युरद

صِرَاطِ اللَّهِ الَّذِي لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ أَلَا إِلَى اللَّهِ تَصِيرُ الأمُورُ {53}

(यानि) उसका रास्ता कि जो आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है सुन रखो सब काम ख़ुदा ही की तरफ़ रूजू होंगे और वही फैसला करेगा (53)

इलेहि युरद

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

इलेहि युरद

حم {1}

हा मीम (1)

इलेहि युरद

وَالْكِتَابِ الْمُبِينِ {2}

रौशन किताब (क़़ुरआन) की क़सम (2)

इलेहि युरद

إِنَّا جَعَلْنَاهُ قُرْآنًا عَرَبِيًّا لَّعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ {3}

हमने इस किताब को अरबी ज़बान कु़रआन ज़रूर बनाया है ताकि तुम समझो (3)

इलेहि युरद

وَإِنَّهُ فِي أُمِّ الْكِتَابِ لَدَيْنَا لَعَلِيٌّ حَكِيمٌ {4}

और बेशक ये (क़़ुरआन) असली किताब (लौह महफूज़) में (भी जो) मेरे पास है लिखी हुयी है (और) यक़ीनन बड़े रूतबे की (और) पुरअज़ हिकमत है (4)

इलेहि युरद

أَفَنَضْرِبُ عَنكُمُ الذِّكْرَ صَفْحًا أَن كُنتُمْ قَوْمًا مُّسْرِفِينَ {5}

भला इस वजह से कि तुम ज़्यादती करने वाले लोग हो हम तुमको नसीहत करने से मुँह मोड़ेंगे (हरगिज़ नहीं) (5) 

इलेहि युरद

وَكَمْ أَرْسَلْنَا مِن نَّبِيٍّ فِي الْأَوَّلِينَ {6}

और हमने अगले लोगों को बहुत से पैग़म्बर भेजे थे (6)

इलेहि युरद

وَمَا يَأْتِيهِم مِّن نَّبِيٍّ إِلَّا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُون {7}

और कोई पैग़म्बर उनके पास ऐसा नहीं आया जिससे इन लोगों ने ठट्ठे नहीं किए हो (7)

इलेहि युरद

فَأَهْلَكْنَا أَشَدَّ مِنْهُم بَطْشًا وَمَضَى مَثَلُ الْأَوَّلِينَ {8}

तो उनमें से जो ज़्यादा ज़ोरावर थे तो उनको हमने हलाक कर मारा और (दुनिया में) अगलों के अफ़साने जारी हो गए (8)

इलेहि युरद

وَلَئِن سَأَلْتَهُم مَّنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ لَيَقُولُنَّ خَلَقَهُنَّ الْعَزِيزُ الْعَلِيمُ {9}

और (ऐ रसूल) अगर तुम उनसे पूछो कि सारे आसमान व ज़मीन को किसने पैदा किया तो वह ज़रूर कह देंगे कि उनको बड़े वाकि़फ़कार ज़बरदस्त (ख़ुदा ने) पैदा किया है (9)

इलेहि युरद

الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ مَهْدًا وَجَعَلَ لَكُمْ فِيهَا سُبُلًا لَّعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ {10}

जिसने तुम लोगों के वास्ते ज़मीन का बिछौना बनाया और (फिर) उसमें तुम्हारे नफ़े के लिए रास्ते बनाए ताकि तुम राह मालूम करो (10)

इलेहि युरद

وَالَّذِي نَزَّلَ مِنَ السَّمَاء مَاء بِقَدَرٍ فَأَنشَرْنَا بِهِ بَلْدَةً مَّيْتًا كَذَلِكَ تُخْرَجُونَ {11}

और जिसने एक (मुनासिब) अन्दाजे़ के साथ आसमान से पानी बरसाया फिर हम ही ने उसके (ज़रिए) से मुर्दा (परती) शहर को जि़न्दा (आबाद) किया उसी तरह तुम भी (क़यामत के दिन क़ब्रों से) निकाले जाओगे (11)

इलेहि युरद

وَالَّذِي خَلَقَ الْأَزْوَاجَ كُلَّهَا وَجَعَلَ لَكُم مِّنَ الْفُلْكِ وَالْأَنْعَامِ مَا تَرْكَبُونَ {12}

और जिसने हर किस्म की चीज़े पैदा कीं और तुम्हारे लिए कश्तियाँ बनायीं और चारपाए (पैदा किए) जिन पर तुम सवार होते हो (12)

इलेहि युरद

لِتَسْتَوُوا عَلَى ظُهُورِهِ ثُمَّ تَذْكُرُوا نِعْمَةَ رَبِّكُمْ إِذَا اسْتَوَيْتُمْ عَلَيْهِ وَتَقُولُوا سُبْحانَ الَّذِي سَخَّرَ لَنَا هَذَا وَمَا كُنَّا لَهُ مُقْرِنِينَ {13}

ताकि तुम उसकी पीठ पर चढ़ो और जब उस पर (अच्छी तरह) सीधे हो बैठो तो अपने परवरदिगार का एहसान माना करो और कहो कि वह (ख़ुदा हर ऐब से) पाक है जिसने इसको हमारा ताबेदार बनाया हालांकि हम तो ऐसे (ताक़तवर) न थे कि उस पर क़ाबू पाते (13)

इलेहि युरद

وَإِنَّا إِلَى رَبِّنَا لَمُنقَلِبُونَ {14}

और हमको तो यक़ीनन अपने परवरदिगार की तरफ़ लौट कर जाना है (14)

इलेहि युरद

وَجَعَلُوا لَهُ مِنْ عِبَادِهِ جُزْءًا إِنَّ الْإِنسَانَ لَكَفُورٌ مُّبِينٌ {15}

और उन लोगों ने उसके बन्दों में से उसके लिए औलाद क़रार दी है इसमें शक नहीं कि इन्सान खुल्लम खुल्ला बड़ा ही नाशुक्रा है (15)

इलेहि युरद

أَمِ اتَّخَذَ مِمَّا يَخْلُقُ بَنَاتٍ وَأَصْفَاكُم بِالْبَنِينَ {16}

क्या उसने अपनी मख़लूक़ात में से ख़ुद तो बेटियाँ ली हैं और तुमको चुनकर बेटे दिए हैं (16)

इलेहि युरद

وَإِذَا بُشِّرَ أَحَدُهُم بِمَا ضَرَبَ لِلرَّحْمَنِ مَثَلًا ظَلَّ وَجْهُهُ مُسْوَدًّا وَهُوَ كَظِيمٌ {17}

हालांकि जब उनमें किसी शख़्स को उस चीज़ (बेटी) की ख़ुशख़बरी दी जाती है जिसकी मिसल उसने ख़ुदा के लिए बयान की है तो वह (ग़ुस्से के मारे) सियाह हो जाता है और ताव पेंच खाने लगता है (17)

इलेहि युरद

أَوَمَن يُنَشَّأُ فِي الْحِلْيَةِ وَهُوَ فِي الْخِصَامِ غَيْرُ مُبِينٍ {18}

क्या वह (औरत) जो ज़ेवरों में पाली पोसी जाए और झगड़े में (अच्छी तरह) बात तक न कर सकें (ख़ुदा की बेटी हो सकती है) (18)

इलेहि युरद

وَجَعَلُوا الْمَلَائِكَةَ الَّذِينَ هُمْ عِبَادُ الرَّحْمَنِ إِنَاثًا أَشَهِدُوا خَلْقَهُمْ سَتُكْتَبُ شَهَادَتُهُمْ وَيُسْأَلُونَ {19}

और उन लोगों ने फ़रिश्तों को कि वह भी ख़ुदा के बन्दे हैं (ख़ुदा की) बेटियाँ बनायी हैं लोग फ़रिश्तों की पैदाइश क्यों खड़े देख रहे थे अभी उनकी शहादत क़लम बन्द कर ली जाती है (19)

इलेहि युरद

وَقَالُوا لَوْ شَاء الرَّحْمَنُ مَا عَبَدْنَاهُم مَّا لَهُم بِذَلِكَ مِنْ عِلْمٍ إِنْ هُمْ إِلَّا يَخْرُصُونَ {20}

और (क़यामत) में उनसे बाज़पुर्स की जाएगी और कहते हैं कि अगर ख़ुदा चाहता तो हम उनकी परसतिश न करते उनको उसकी कुछ ख़बर ही नहीं ये लोग तो बस अटकल पच्चू बातें किया करते हैं (20) 

इलेहि युरद

أَمْ آتَيْنَاهُمْ كِتَابًا مِّن قَبْلِهِ فَهُم بِهِ مُسْتَمْسِكُونَ {21}

या हमने उनको उससे पहले कोई किताब दी थी कि ये लोग उसे मज़बूत थामें हुए हैं (21)

इलेहि युरद

بَلْ قَالُوا إِنَّا وَجَدْنَا آبَاءنَا عَلَى أُمَّةٍ وَإِنَّا عَلَى آثَارِهِم مُّهْتَدُونَ {22}

बल्कि ये लोग तो ये कहते हैं कि हमने अपने बाप दादाओं को एक तरीके़ पर पाया और हम उनको क़दम ब क़दम ठीक रास्ते पर चले जा रहें हैं (22)

इलेहि युरद

وَكَذَلِكَ مَا أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ فِي قَرْيَةٍ مِّن نَّذِيرٍ إِلَّا قَالَ مُتْرَفُوهَا إِنَّا وَجَدْنَا آبَاءنَا عَلَى أُمَّةٍ وَإِنَّا عَلَى آثَارِهِم مُّقْتَدُونَ {23}

और (ऐ रसूल) इसी तरह हमने तुमसे पहले किसी बस्ती में कोई डराने वाला (पैग़म्बर) नहीं भेजा मगर वहाँ के ख़ुशहाल लोगों ने यही कहा कि हमने अपने बाप दादाओं को एक तरीके़ पर पाया, और हम यक़ीनी उनके क़दम ब क़दम चले जा रहे हैं (23)

इलेहि युरद

قَالَ أَوَلَوْ جِئْتُكُم بِأَهْدَى مِمَّا وَجَدتُّمْ عَلَيْهِ آبَاءكُمْ قَالُوا إِنَّا بِمَا أُرْسِلْتُم بِهِ كَافِرُونَ {24}

(इस पर) उनके पैग़म्बर ने कहा भी जिस तरीक़े पर तुमने अपने बाप दादाओं को पाया अगरचे मैं तुम्हारे पास इससे बेहतर राहे रास्त पर लाने वाला दीन लेकर आया हूँ (तो भी न मानोगे) वह बोले (कुछ हो मगर) हम तो उस दीन को जो तुम देकर भेजे गए हो मानने वाले नहीं (24)

इलेहि युरद

فَانتَقَمْنَا مِنْهُمْ فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُكَذِّبِينَ {25}

तो हमने उनसे बदला लिया (तो ज़रा) देखो तो कि झुठलाने वालों का क्या अन्जाम हुआ (25) 

इलेहि युरद

وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ لِأَبِيهِ وَقَوْمِهِ إِنَّنِي بَرَاء مِّمَّا تَعْبُدُونَ {26}

(और वह वख़्त याद करो) जब इबराहीम ने अपने (मुँह बोले) बाप (आज़र) और अपनी क़ौम से कहा कि जिन चीज़ों को तुम लोग पूजते हो मैं यक़ीनन उससे बेज़ार हूँ (26)

इलेहि युरद

إِلَّا الَّذِي فَطَرَنِي فَإِنَّهُ سَيَهْدِينِ {27}

मगर उसकी इबादत करता हूँ, जिसने मुझे पैदा किया तो वही बहुत जल्द मेरी हिदायत करेगा (27)

इलेहि युरद

وَجَعَلَهَا كَلِمَةً بَاقِيَةً فِي عَقِبِهِ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ {28}

और उसी (ईमान) को इबराहीम ने अपनी औलाद में हमेशा बाक़ी रहने वाली बात छोड़ गए ताकि वह (ख़ुदा की तरफ़ रूजू) करें (28)

इलेहि युरद

بَلْ مَتَّعْتُ هَؤُلَاء وَآبَاءهُمْ حَتَّى جَاءهُمُ الْحَقُّ وَرَسُولٌ مُّبِينٌ {29}

बल्कि मैं उनको और उनके बाप दादाओं को फायदा पहुँचाता रहा यहाँ तक कि उनके पास (दीने) हक़ और साफ़ साफ़ बयान करने वाला रसूल आ पहुँचा (29)

इलेहि युरद

وَلَمَّا جَاءهُمُ الْحَقُّ قَالُوا هَذَا سِحْرٌ وَإِنَّا بِهِ كَافِرُونَ {30}

और जब उनके पास (दीन) हक़ आ गया तो कहने लगे ये तो जादू है और हम तो हरगिज़ इसके मानने वाले नहीं (30)

इलेहि युरद

وَقَالُوا لَوْلَا نُزِّلَ هَذَا الْقُرْآنُ عَلَى رَجُلٍ مِّنَ الْقَرْيَتَيْنِ عَظِيمٍ {31}

और कहने लगे कि ये क़़ुरआन इन दो बस्तियों (मक्के ताएफ) में से किसी बड़े आदमी पर क्यों नहीं नाजि़ल किया गया (31)

इलेहि युरद

أَهُمْ يَقْسِمُونَ رَحْمَةَ رَبِّكَ نَحْنُ قَسَمْنَا بَيْنَهُم مَّعِيشَتَهُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَرَفَعْنَا بَعْضَهُمْ فَوْقَ بَعْضٍ دَرَجَاتٍ لِيَتَّخِذَ بَعْضُهُم بَعْضًا سُخْرِيًّا وَرَحْمَتُ رَبِّكَ خَيْرٌ مِّمَّا يَجْمَعُونَ {32}

ये लोग तुम्हारे परवरदिगार की रहमत को (अपने तौर पर) बाँटते हैं हमने तो इनके दरमियान उनकी रोज़ी दुनयावी जि़न्दगी में बाँट ही दी है और एक के दूसरे पर दर्जे बुलन्द किए हैं ताकि इनमें का एक दूसरे से खि़दमत ले और जो माल (मतआ) ये लोग जमा करते फिरते हैं ख़ुदा की रहमत (पैग़म्बर) इससे कहीं बेहतर है (32)

इलेहि युरद

وَلَوْلَا أَن يَكُونَ النَّاسُ أُمَّةً وَاحِدَةً لَجَعَلْنَا لِمَن يَكْفُرُ بِالرَّحْمَنِ لِبُيُوتِهِمْ سُقُفًا مِّن فَضَّةٍ وَمَعَارِجَ عَلَيْهَا يَظْهَرُونَ {33}

और अगर ये बात न होती कि (आखि़र) सब लोग एक ही तरीक़े के हो जाएँगे तो हम उनके लिए जो ख़ुदा से इन्कार करते हैं उनके घरों की छतें और वही सीढि़याँ जिन पर वह चढ़ते हैं (उतरते हैं) (33)

इलेहि युरद

وَلِبُيُوتِهِمْ أَبْوَابًا وَسُرُرًا عَلَيْهَا يَتَّكِؤُونَ {34}

और उनके घरों के दरवाज़े और वह तख़्त जिन पर तकिये लगाते हैं चाँदी और सोने के बना देते (34)

इलेहि युरद

وَزُخْرُفًا وَإِن كُلُّ ذَلِكَ لَمَّا مَتَاعُ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَالْآخِرَةُ عِندَ رَبِّكَ لِلْمُتَّقِينَ {35}

ये सब साज़ो सामान, तो बस दुनियावी जि़न्दगी के (चन्द रोज़ा) साज़ो सामान हैं (जो मिट जाएँगे) और आख़ेरत (का सामान) तो तुम्हारे परवरदिगार के यहाँ ख़ास परहेज़गारों के लिए है (35)

इलेहि युरद

وَمَن يَعْشُ عَن ذِكْرِ الرَّحْمَنِ نُقَيِّضْ لَهُ شَيْطَانًا فَهُوَ لَهُ قَرِينٌ {36}

और जो शख़्स ख़ुदा की चाह से अन्धा बनता है हम (गोया ख़ुद) उसके वास्ते शैतान मुक़र्रर कर देते हैं तो वही उसका (हर दम का) साथी है (36) 

इलेहि युरद

وَإِنَّهُمْ لَيَصُدُّونَهُمْ عَنِ السَّبِيلِ وَيَحْسَبُونَ أَنَّهُم مُّهْتَدُونَ {37}

और वह (शयातीन) उन लोगों को (ख़ुदा की) राह से रोकते रहते हैं बावजूद इसके वह उसी ख़्याल में हैं कि वह यक़ीनी राहे रास्त पर हैं (37)

इलेहि युरद

حَتَّى إِذَا جَاءنَا قَالَ يَا لَيْتَ بَيْنِي وَبَيْنَكَ بُعْدَ الْمَشْرِقَيْنِ فَبِئْسَ الْقَرِينُ {38}

यहाँ तक कि जब (क़यामत में) हमारे पास आएगा तो (अपने साथी शैतान से) कहेगा काश मुझमें और तुममें पूरब पश्चिम का फ़ासला होता ग़रज़ (शैतान भी) क्या ही बुरा रफीक़ है (38)

इलेहि युरद

وَلَن يَنفَعَكُمُ الْيَوْمَ إِذ ظَّلَمْتُمْ أَنَّكُمْ فِي الْعَذَابِ مُشْتَرِكُونَ {39}

और जब तुम नाफ़रमानियाँ कर चुके तो (शैयातीन के साथ) तुम्हारा अज़ाब में शरीक होना भी आज तुमको (अज़ाब की कमी में) कोई फायदा नहीं पहुँचा सकता (39)

इलेहि युरद

أَفَأَنتَ تُسْمِعُ الصُّمَّ أَوْ تَهْدِي الْعُمْيَ وَمَن كَانَ فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ {40}

तो (ऐ रसूल) क्या तुम बहरों को सुना सकते हो या अन्धे को और उस शख़्स को जो सरीही गुमराही में पड़ा हो रास्ता दिखा सकते हो (हरगिज़ नहीं) (40)

इलेहि युरद

فَإِمَّا نَذْهَبَنَّ بِكَ فَإِنَّا مِنْهُم مُّنتَقِمُونَ {41}

तो अगर हम तुमको (दुनिया से) ले भी जाएँ तो भी हमको उनसे बदला लेना ज़रूरी है (41)

इलेहि युरद

أَوْ نُرِيَنَّكَ الَّذِي وَعَدْنَاهُمْ فَإِنَّا عَلَيْهِم مُّقْتَدِرُونَ {42}

या (तुम्हारी जि़न्दगी ही में) जिस अज़ाब का हमने उनसे वायदा किया है तुमको दिखा दें तो उन पर हर तरह क़ाबू रखते हैं (42)

इलेहि युरद

فَاسْتَمْسِكْ بِالَّذِي أُوحِيَ إِلَيْكَ إِنَّكَ عَلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ {43}

तो तुम्हारे पास जो वही भेजी गयी है तुम उसे मज़बूत पकड़े रहो इसमें शक नहीं कि तुम सीधी राह पर हो (43) 

इलेहि युरद

وَإِنَّهُ لَذِكْرٌ لَّكَ وَلِقَوْمِكَ وَسَوْفَ تُسْأَلُونَ {44}

और ये (क़ुरआन) तुम्हारे लिए और तुम्हारी क़ौम के लिए नसीहत है और अनक़रीब ही तुम लोगों से इसकी बाज़पुर्स की जाएगी (44)

इलेहि युरद

وَاسْأَلْ مَنْ أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ مِن رُّسُلِنَا أَجَعَلْنَا مِن دُونِ الرَّحْمَنِ آلِهَةً يُعْبَدُونَ {45}

और हमने तुमसे पहले अपने जितने पैग़म्बर भेजे हैं उन सब से दरियाफ्त कर देखो क्या हमने ख़ुदा कि सिवा और माबूद बनाएा थे कि उनकी इबादत की जाए (45)

इलेहि युरद

وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا مُوسَى بِآيَاتِنَا إِلَى فِرْعَوْنَ وَمَلَئِهِ فَقَالَ إِنِّي رَسُولُ رَبِّ الْعَالَمِينَ {46}

और हम ही ने यक़ीनन मूसा को अपनी निशानियाँ देकर फ़िरऔन और उसके दरबारियों के पास (पैग़म्बर बनाकर) भेजा था तो मूसा ने कहा कि मैं सारे जहाँन के पालने वाले (ख़ुदा) का रसूल हूँ (46) 

इलेहि युरद

فَلَمَّا جَاءهُم بِآيَاتِنَا إِذَا هُم مِّنْهَا يَضْحَكُونَ {47}

तो जब मूसा उन लोगों के पास हमारे मौजिज़े लेकर आए तो वह लोग उन मौजिज़ों की हँसी उड़ाने लगे (47)

इलेहि युरद

وَمَا نُرِيهِم مِّنْ آيَةٍ إِلَّا هِيَ أَكْبَرُ مِنْ أُخْتِهَا وَأَخَذْنَاهُم بِالْعَذَابِ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ {48}

और हम जो मौजिज़ा उन को दिखाते थे वह दूसरे से बढ़ कर होता था और आखि़र हमने उनको अज़ाब में गिरफ़्तार किया ताकि ये लोग बाज़ आएँ (48)

इलेहि युरद

وَقَالُوا يَا أَيُّهَا السَّاحِرُ ادْعُ لَنَا رَبَّكَ بِمَا عَهِدَ عِندَكَ إِنَّنَا لَمُهْتَدُونَ {49}

और (जब) अज़ाब में गिरफ़्तार हुए तो (मूसा से) कहने लगे ऐ जादूगर इस एहद के मुताबिक़ जो तुम्हारे परवरदिगार ने तुमसे किया है हमारे वास्ते दुआ कर (49)

इलेहि युरद

فَلَمَّا كَشَفْنَا عَنْهُمُ الْعَذَابَ إِذَا هُمْ يَنكُثُونَ {50}

(अगर अब की छूटे) तो हम ज़रूर ऊपर आ जाएँगे फिर जब हमने उनसे अज़ाब को हटा दिया तो वह फौरन (अपना) अहद तोड़ बैठे (50)

इलेहि युरद

وَنَادَى فِرْعَوْنُ فِي قَوْمِهِ قَالَ يَا قَوْمِ أَلَيْسَ لِي مُلْكُ مِصْرَ وَهَذِهِ الْأَنْهَارُ تَجْرِي مِن تَحْتِي أَفَلَا تُبْصِرُونَ {51}

और फ़िरऔन ने अपने लोगों में पुकार कर कहा ऐ मेरी क़ौम क्या (ये) मुल्क मिस्र हमारा नहीं और (क्या) ये नहरें जो हमारे (शाही महल के) नीचे बह रही हैं (हमारी नहीं) तो क्या तुमको इतना भी नहीं सूझता (51) 

इलेहि युरद

أَمْ أَنَا خَيْرٌ مِّنْ هَذَا الَّذِي هُوَ مَهِينٌ وَلَا يَكَادُ يُبِينُ {52}

या (सूझता है कि) मैं इस शख़्स (मूसा) से जो एक ज़लील आदमी है और (हकले पन की वजह से) साफ़ गुफ़्तगू भी नहीं कर सकता (52) 

इलेहि युरद

فَلَوْلَا أُلْقِيَ عَلَيْهِ أَسْوِرَةٌ مِّن ذَهَبٍ أَوْ جَاء مَعَهُ الْمَلَائِكَةُ مُقْتَرِنِينَ {53}

कहीं बहुत बेहतर हूँ (अगर ये बेहतर है तो इसके लिए सोने के कंगन) (ख़़ुदा के हाँ से) क्यों नहीं उतारे गये या उसके साथ फ़रिश्ते जमा होकर आते (53) 

इलेहि युरद

فَاسْتَخَفَّ قَوْمَهُ فَأَطَاعُوهُ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ {54}

ग़रज़ फ़िरऔन ने (बातें बनाकर) अपनी क़ौम की अक़ल मार दी और वह लोग उसके ताबेदार बन गये बेशक वह लोग बदकार थे ही (54)

इलेहि युरद

فَلَمَّا آسَفُونَا انتَقَمْنَا مِنْهُمْ فَأَغْرَقْنَاهُمْ أَجْمَعِينَ {55}

ग़रज़ जब उन लोगों ने हमको झुझंला दिया तो हमने भी उनसे बदला लिया तो हमने उन सब (के सब) को डुबो दिया (55)

इलेहि युरद

فَجَعَلْنَاهُمْ سَلَفًا وَمَثَلًا لِلْآخِرِينَ {56}

फिर हमने उनको गया गुज़रा और पिछलों के वास्ते इबरत बना दिया (56)

इलेहि युरद

وَلَمَّا ضُرِبَ ابْنُ مَرْيَمَ مَثَلًا إِذَا قَوْمُكَ مِنْهُ يَصِدُّونَ {57}

और(ऐ रसूल) जब मरियम के बेटे (ईसा) की मिसाल बयान की गयी तो उससे तुम्हारी क़ौम के लोग खिलखिला कर हंसने लगे (57)

इलेहि युरद

وَقَالُوا أَآلِهَتُنَا خَيْرٌ أَمْ هُوَ مَا ضَرَبُوهُ لَكَ إِلَّا جَدَلًا بَلْ هُمْ قَوْمٌ خَصِمُونَ {58}

और बोल उठे कि भला हमारे माबूद अच्छे हैं या वह (ईसा) उन लोगों ने जो ईसा की मिसाल तुमसे बयान की है तो सिर्फ़ झगड़ने को (58) 

इलेहि युरद

إِنْ هُوَ إِلَّا عَبْدٌ أَنْعَمْنَا عَلَيْهِ وَجَعَلْنَاهُ مَثَلًا لِّبَنِي إِسْرَائِيلَ {59}

बल्कि (हक़ तो यह है कि) ये लोग हैं झगड़ालू ईसा तो बस हमारे एक बन्दे थे जिन पर हमने एहसान किया (नबी बनाया और मौजिज़े दिये) और उनको हमने बनी इसराईल के लिए (अपनी क़ुदरत का) नमूना बनाया (59)

इलेहि युरद

وَلَوْ نَشَاء لَجَعَلْنَا مِنكُم مَّلَائِكَةً فِي الْأَرْضِ يَخْلُفُونَ {60}

और अगर हम चाहते तो तुम ही लोगों में से (किसी को) फ़रिश्ते बना देते जो तुम्हारी जगह ज़मीन में रहते (60)

इलेहि युरद

وَإِنَّهُ لَعِلْمٌ لِّلسَّاعَةِ فَلَا تَمْتَرُنَّ بِهَا وَاتَّبِعُونِ هَذَا صِرَاطٌ مُّسْتَقِيمٌ {61}

और वह तो यक़ीनन क़यामत की एक रौशन दलील है तुम लोग इसमें हरगिज़ शक न करो और मेरी पैरवी करो यही सीधा रास्ता है (61)

इलेहि युरद

وَلَا يَصُدَّنَّكُمُ الشَّيْطَانُ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُّبِينٌ {62}

और (कहीं) शैतान तुम लोगों को (इससे) रोक न दे वही यक़ीनन तुम्हारा खुल्लम खुल्ला दुश्मन है (62)

इलेहि युरद

وَلَمَّا جَاء عِيسَى بِالْبَيِّنَاتِ قَالَ قَدْ جِئْتُكُم بِالْحِكْمَةِ وَلِأُبَيِّنَ لَكُم بَعْضَ الَّذِي تَخْتَلِفُونَ فِيهِ فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ {63}

और जब ईसा वाज़ेए व रौशन मौजिज़े लेकर आये तो (लोगों से) कहा मैं तुम्हारे पास दानाई (की किताब) लेकर आया हूँ ताकि बाज़ बातें जिन में तुम लोग एख़्तेलाफ़ करते थे तुमको साफ़-साफ़ बता दूँ तो तुम लोग ख़ुदा से डरो और मेरा कहा मानो (63)

इलेहि युरद

إِنَّ اللَّهَ هُوَ رَبِّي وَرَبُّكُمْ فَاعْبُدُوهُ هَذَا صِرَاطٌ مُّسْتَقِيمٌ {64}

बेशक ख़़ुदा ही मेरा और तुम्हार परवरदिगार है तो उसी की इबादत करो यही सीधा रास्ता है (64)

इलेहि युरद

فَاخْتَلَفَ الْأَحْزَابُ مِن بَيْنِهِمْ فَوَيْلٌ لِّلَّذِينَ ظَلَمُوا مِنْ عَذَابِ يَوْمٍ أَلِيمٍ {65}

तो इनमें से कई फिरक़े उनसे एख़्तेलाफ़ करने लगे तो जिन लोगों ने ज़़ुल्म किया उन पर दर्दनांक दिन के अज़ब से अफ़सोस है (65)

इलेहि युरद

هَلْ يَنظُرُونَ إِلَّا السَّاعَةَ أَن تَأْتِيَهُم بَغْتَةً وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ {66}

क्या ये लोग बस क़यामत के ही मुन्तज़िर बैठे हैं कि अचानक ही उन पर आ जाए और उन को ख़बर तक न हो (66)

इलेहि युरद

الْأَخِلَّاء يَوْمَئِذٍ بَعْضُهُمْ لِبَعْضٍ عَدُوٌّ إِلَّا الْمُتَّقِينَ {67}

(दिली) दोस्त इस दिन (बाहम) एक दूसरे के दुशमन होगें मगर परहेज़गार कि वह दोस्त ही रहेगें (67)

इलेहि युरद

يَا عِبَادِ لَا خَوْفٌ عَلَيْكُمُ الْيَوْمَ وَلَا أَنتُمْ تَحْزَنُونَ {68}

और ख़़ुदा उनसे कहेगा ऐ मेरे बन्दों आज न तो तुमको कोई ख़ौफ है और न तुम ग़मग़ीन होगे (68)

इलेहि युरद

الَّذِينَ آمَنُوا بِآيَاتِنَا وَكَانُوا مُسْلِمِينَ {69}

(यह) वह लोग हैं जो हमारी आयतों पर ईमान लाए और (हमारे) फ़रमाबरदार थे (69)

इलेहि युरद

ادْخُلُوا الْجَنَّةَ أَنتُمْ وَأَزْوَاجُكُمْ تُحْبَرُونَ {70}

तो तुम अपनी बीवियों समैत एजाज़ व इकराम से बेहिश्त में दाखिल हो जाओ (70)

इलेहि युरद

يُطَافُ عَلَيْهِم بِصِحَافٍ مِّن ذَهَبٍ وَأَكْوَابٍ وَفِيهَا مَا تَشْتَهِيهِ الْأَنفُسُ وَتَلَذُّ الْأَعْيُنُ وَأَنتُمْ فِيهَا خَالِدُونَ {71}

उन पर सोने की एक रिक़ाबियों और प्यालियों का दौर चलेगा और वहाँ जिस चीज़ को जी चाहे और जिससे आँखें लज़्ज़त उठाएं (सब मौजूद हैं) और तुम उसमें हमेशा रहोगे (71)

इलेहि युरद

وَتِلْكَ الْجَنَّةُ الَّتِي أُورِثْتُمُوهَا بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ {72}

और ये जन्नत जिसके तुम वारिस (हिस्सेदार) कर दिये गये हो तुम्हारी क़ारगुज़ारियों का सिला है (72)

इलेहि युरद

لَكُمْ فِيهَا فَاكِهَةٌ كَثِيرَةٌ مِنْهَا تَأْكُلُونَ {73}

वहाँ तुम्हारे वास्ते बहुत से मेवे हैं जिनको तुम खाओगे (73)

इलेहि युरद

إِنَّ الْمُجْرِمِينَ فِي عَذَابِ جَهَنَّمَ خَالِدُونَ {74}

(गुनाहगार कुफ़्फ़ार) तो यक़ीकन जहन्नुम के अज़ाब में हमेशा रहेगें (74)

इलेहि युरद

لَا يُفَتَّرُ عَنْهُمْ وَهُمْ فِيهِ مُبْلِسُونَ {75}

जो उनसे कभी नाग़ा न किया जाएगा और वह इसी अज़ाब में नाउम्मीद होकर रहेंगें (75)

इलेहि युरद

وَمَا ظَلَمْنَاهُمْ وَلَكِن كَانُوا هُمُ الظَّالِمِينَ {76}

और हमने उन पर कोई ज़ुल्म नहीं किया बल्कि वह लोग ख़ुद अपने ऊपर ज़ुल्म कर रहे हैं (76)

इलेहि युरद

وَنَادَوْا يَا مَالِكُ لِيَقْضِ عَلَيْنَا رَبُّكَ قَالَ إِنَّكُم مَّاكِثُونَ {77}

और (जहन्नुमी) पुकारेगें कि ऐ मालिक (दरोग़ा ए जहन्नुम कोई तरकीब करो) तुम्हारा परवरदिगार हमें मौत ही दे दे वह जवाब देगा कि तुमको इसी हाल में रहना है (77)

इलेहि युरद

لَقَدْ جِئْنَاكُم بِالْحَقِّ وَلَكِنَّ أَكْثَرَكُمْ لِلْحَقِّ كَارِهُونَ {78}

(ऐ कुफ़्फ़ार मक्का) हम तो तुम्हारे पास हक़ लेकर आयें हैं तुम मे से बहुत से हक़ (बात से चिढ़ते) हैं (78)

इलेहि युरद

أَمْ أَبْرَمُوا أَمْرًا فَإِنَّا مُبْرِمُونَ {79}

क्या उन लोगों ने कोई बात ठान ली है हमने भी (कुछ ठान लिया है) (79)

इलेहि युरद

أَمْ يَحْسَبُونَ أَنَّا لَا نَسْمَعُ سِرَّهُمْ وَنَجْوَاهُم بَلَى وَرُسُلُنَا لَدَيْهِمْ يَكْتُبُونَ {80}

क्या ये लोग कुछ समझते हैं कि हम उनके भेद और उनकी सरग़ोशियों को नहीं सुनते हाँ (ज़रूर सुनते हैं) और हमारे फ़रिश्ते उनके पास हैं और उनकी सब बातें लिखते जाते हैं (80)

इलेहि युरद

قُلْ إِن كَانَ لِلرَّحْمَنِ وَلَدٌ فَأَنَا أَوَّلُ الْعَابِدِينَ {81}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर ख़़ुदा की कोई औलाद होती तो मैं सबसे पहले उसकी इबादत को तैयार हूँ (81)

इलेहि युरद

سُبْحَانَ رَبِّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ رَبِّ الْعَرْشِ عَمَّا يَصِفُونَ {82}

ये लोग जो कुछ बयान करते हैं सारे आसमान व ज़मीन का मालिक अर्श का मालिक (ख़़ुदा) उससे पाक व पाक़ीज़ा है (82)

इलेहि युरद

فَذَرْهُمْ يَخُوضُوا وَيَلْعَبُوا حَتَّى يُلَاقُوا يَوْمَهُمُ الَّذِي يُوعَدُونَ {83}

तो तुम उन्हें छोड़ दो कि पड़े बक बक करते और खेलते रहते हैं यहाँ तक कि जिस दिन का उनसे वायदा किया जाता है (83)

इलेहि युरद

وَهُوَ الَّذِي فِي السَّمَاء إِلَهٌ وَفِي الْأَرْضِ إِلَهٌ وَهُوَ الْحَكِيمُ الْعَلِيمُ {84}

उनके सामने आ मौजूद हो और आसमान में भी (उसी की इबादत की जाती है और वही ज़मीन में भी माबूद है और वही वाकिफ़कार हिकमत वाला है (84)

इलेहि युरद

وَتَبَارَكَ الَّذِي لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا وَعِندَهُ عِلْمُ السَّاعَةِ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ {85}

और वही बहुत बाबरकत है जिसके लिए सारे आसमान व ज़मीन और दोनों के दरमियान की हुक़ुमत है और क़यामत की ख़बर भी उसी को है और तुम लोग उसकी तरफ लौटाए जाओगे (85) 

इलेहि युरद

وَلَا يَمْلِكُ الَّذِينَ يَدْعُونَ مِن دُونِهِ الشَّفَاعَةَ إِلَّا مَن شَهِدَ بِالْحَقِّ وَهُمْ يَعْلَمُونَ {86}

और ख़ु़दा के सिवा जिनकी ये लोग इबादत करतें हैं वह तो सिफ़ारिश का भी एख़्तेयार नहीं रख़ते मगर (हाँ) जो लोग समझ बूझ कर हक़ बात (तौहीद) की गवाही दें (तो खैर) (86)

इलेहि युरद

وَلَئِن سَأَلْتَهُم مَّنْ خَلَقَهُمْ لَيَقُولُنَّ اللَّهُ فَأَنَّى يُؤْفَكُونَ {87}

और अगर तुम उनसे पूछोगे कि उनको किसने पैदा किया तो ज़रूर कह देगें कि अल्लाह ने फिर (बावजूद इसके) ये कहाँ बहके जा रहे हैं (87)

इलेहि युरद

وَقِيلِهِ يَارَبِّ إِنَّ هَؤُلَاء قَوْمٌ لَّا يُؤْمِنُونَ {88}

और (उसी को) रसूल के उस क़ौल का भी इल्म है कि परवरदिगार ये लोग हरगिज़ ईमान न लाएँगे (88)

इलेहि युरद

فَاصْفَحْ عَنْهُمْ وَقُلْ سَلَامٌ فَسَوْفَ يَعْلَمُونَ {89}

तो तुम उनसे मुँह फेर लो और कह दो कि तुम को सलाम तो उन्हें अनक़रीब ही (शरारत का नतीजा) मालूम हो जाएगा (89)

इलेहि युरद

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से शुरू करता हूँ जो बड़ा मेहरबान निहायत रहमवाला है

इलेहि युरद

حم {1}

हा मीम (1)

इलेहि युरद

وَالْكِتَابِ الْمُبِينِ {2}

वाज़ेए व रौशन किताब (कु़रआन) की क़सम (2)

इलेहि युरद

إِنَّا أَنزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةٍ مُّبَارَكَةٍ إِنَّا كُنَّا مُنذِرِينَ {3}

हमने इसको मुबारक रात (शबे क़द्र) में नाजि़ल किया बेशक हम (अज़ाब से) डराने वाले थे (3)

इलेहि युरद

فِيهَا يُفْرَقُ كُلُّ أَمْرٍ حَكِيمٍ {4}

इसी रात को तमाम दुनिया के हिक़मत व मसलेहत के (साल भर के) काम फ़ैसले किये जाते हैं (4)

इलेहि युरद

أَمْرًا مِّنْ عِندِنَا إِنَّا كُنَّا مُرْسِلِينَ {5}

यानि हमारे यहाँ से हुक्म होकर (बेशक) हम ही (पैग़म्बरों के) भेजने वाले हैं (5)

इलेहि युरद

رَحْمَةً مِّن رَّبِّكَ إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ {6}

ये तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी है, वह बेशक बड़ा सुनने वाला वाकि़फ़कार है (6)

इलेहि युरद

رَبِّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا إِن كُنتُم مُّوقِنِينَ {7}

सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ इन दोनों के दरमियान है सबका मालिक (7) 

इलेहि युरद

لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ يُحْيِي وَيُمِيتُ رَبُّكُمْ وَرَبُّ آبَائِكُمُ الْأَوَّلِينَ {8}

अगर तुममें यक़ीन करने की सलाहियत है (तो करो) उसके सिवा कोई माबूद नहीं - वही जिलाता है वही मारता है तुम्हारा मालिक और तुम्हारे (अगले) बाप दादाओं का भी मालिक है (8) 

इलेहि युरद

بَلْ هُمْ فِي شَكٍّ يَلْعَبُونَ {9}

लेकिन ये लोग तो शक में पड़े खेल रहे हैं (9) 

इलेहि युरद

فَارْتَقِبْ يَوْمَ تَأْتِي السَّمَاء بِدُخَانٍ مُّبِينٍ {10}

तो तुम उस दिन का इन्तेज़ार करो कि आसमान से ज़ाहिर ब ज़ाहिर धुआँ निकलेगा (10) 

इलेहि युरद

يَغْشَى النَّاسَ هَذَا عَذَابٌ أَلِيمٌ {11}

(और) लोगों को ढाँक लेगा ये दर्दनाक अज़ाब है (11)

इलेहि युरद

رَبَّنَا اكْشِفْ عَنَّا الْعَذَابَ إِنَّا مُؤْمِنُونَ {12}

कुफ़्फ़ार भी घबराकर कहेंगे कि परवरदिगार हमसे अज़ाब को दूर दफ़ा कर दे हम भी ईमान लाते हैं (12)

इलेहि युरद

أَنَّى لَهُمُ الذِّكْرَى وَقَدْ جَاءهُمْ رَسُولٌ مُّبِينٌ {13}

(उस वक़्त) भला क्या उनको नसीहत होगी जब उनके पास पैग़म्बर आ चुके जो साफ़ साफ़ बयान कर देते थे (13)

इलेहि युरद

ثُمَّ تَوَلَّوْا عَنْهُ وَقَالُوا مُعَلَّمٌ مَّجْنُونٌ {14}

इस पर भी उन लोगों ने उससे मुँह फेरा और कहने लगे ये तो (सिखाया) पढ़ाया हुआ दीवाना है (14)

इलेहि युरद

إِنَّا كَاشِفُو الْعَذَابِ قَلِيلًا إِنَّكُمْ عَائِدُونَ {15}

(अच्छा ख़ैर) हम थोड़े दिन के लिए अज़ाब को टाल देते हैं मगर हम जानते हैं तुम ज़रूर फिर कुफ्र करोगे (15)

इलेहि युरद

يَوْمَ نَبْطِشُ الْبَطْشَةَ الْكُبْرَى إِنَّا مُنتَقِمُونَ {16}

हम बेशक (उनसे) पूरा बदला तो बस उस दिन लेगें जिस दिन सख़्त पकड़ पकड़ेंगे (16)

इलेहि युरद

وَلَقَدْ فَتَنَّا قَبْلَهُمْ قَوْمَ فِرْعَوْنَ وَجَاءهُمْ رَسُولٌ كَرِيمٌ {17}

और उनसे पहले हमने क़ौमे फ़िरऔन की आज़माइश की और उनके पास एक आली क़दर पैग़म्बर (मूसा) आए (17)

इलेहि युरद

أَنْ أَدُّوا إِلَيَّ عِبَادَ اللَّهِ إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ {18}

(और कहा) कि ख़ुदा के बन्दों (बनी इसराईल) को मेरे हवाले कर दो मैं (ख़ुदा की तरफ़ से) तुम्हारा एक अमानतदार पैग़म्बर हूँ (18)

इलेहि युरद

وَأَنْ لَّا تَعْلُوا عَلَى اللَّهِ إِنِّي آتِيكُم بِسُلْطَانٍ مُّبِينٍ {19}

और ख़ुदा के सामने सरकशी न करो मैं तुम्हारे पास वाज़ेए व रौशन दलीलें ले कर आया हूँ (19)

इलेहि युरद

وَإِنِّي عُذْتُ بِرَبِّي وَرَبِّكُمْ أَن تَرْجُمُونِ {20}

और इस बात से कि तुम मुझे संगसार करो मैं अपने और तुम्हारे परवरदिगार (ख़ुदा) की पनाह मांगता हूँ (20)

इलेहि युरद

وَإِنْ لَّمْ تُؤْمِنُوا لِي فَاعْتَزِلُونِ {21}

और अगर तुम मुझ पर ईमान नहीं लाए तो तुम मुझसे अलग हो जाओ (21)

इलेहि युरद

فَدَعَا رَبَّهُ أَنَّ هَؤُلَاء قَوْمٌ مُّجْرِمُونَ {22}

(मगर वह सुनाने लगे) तब मूसा ने अपने परवरदिगार से दुआ की कि ये बड़े शरीर लोग हैं (22)

इलेहि युरद

فَأَسْرِ بِعِبَادِي لَيْلًا إِنَّكُم مُّتَّبَعُونَ {23}

तो ख़ुदा ने हुक्म दिया कि तुम मेरे बन्दों (बनी इसराईल) को रातों रात लेकर चले जाओ और तुम्हारा पीछा भी ज़रूर किया जाएगा (23)

इलेहि युरद

وَاتْرُكْ الْبَحْرَ رَهْوًا إِنَّهُمْ جُندٌ مُّغْرَقُونَ {24}

और दरिया को अपनी हालत पर ठहरा हुआ छोड़ कर (पार हो) जाओ (तुम्हारे बाद) उनका सारा लशकर डुबो दिया जाएगा (24)

इलेहि युरद

كَمْ تَرَكُوا مِن جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ {25}

वह लोग (ख़ुदा जाने) कितने बाग़ और चश्में और खेतियाँ (25)

इलेहि युरद

وَزُرُوعٍ وَمَقَامٍ كَرِيمٍ {26}

और नफ़ीस मकानात और आराम की चीज़ें (26)

इलेहि युरद

وَنَعْمَةٍ كَانُوا فِيهَا فَاكِهِينَ {27}

जिनमें वह ऐश और चैन किया करते थे छोड़ गये यूँ ही हुआ (27)

इलेहि युरद

كَذَلِكَ وَأَوْرَثْنَاهَا قَوْمًا آخَرِينَ {28}

और उन तमाम चीज़ों का दूसरे लोगों को मालिक बना दिया (28)

इलेहि युरद

فَمَا بَكَتْ عَلَيْهِمُ السَّمَاء وَالْأَرْضُ وَمَا كَانُوا مُنظَرِينَ {29}

तो उन लोगों पर आसमान व ज़मीन को भी रोना न आया और न उन्हें मोहलत ही दी गयी (29)

इलेहि युरद

وَلَقَدْ نَجَّيْنَا بَنِي إِسْرَائِيلَ مِنَ الْعَذَابِ الْمُهِينِ {30}

और हमने बनी इसराईल को जि़ल्लत के अज़ाब से फ़िरऔन (के पन्जे) से नजात दी (30) 

इलेहि युरद

مِن فِرْعَوْنَ إِنَّهُ كَانَ عَالِيًا مِّنَ الْمُسْرِفِينَ {31}

वह बेशक सरकश और हद से बाहर निकल गया था (31)

इलेहि युरद

وَلَقَدِ اخْتَرْنَاهُمْ عَلَى عِلْمٍ عَلَى الْعَالَمِينَ {32}

और हमने बनी इसराईल को समझ बूझ कर सारे जहाँन से बरगुज़ीदा किया था (32)

इलेहि युरद

وَآتَيْنَاهُم مِّنَ الْآيَاتِ مَا فِيهِ بَلَاء مُّبِينٌ {33}

और हमने उनको ऐसी निशानियाँ दी थीं जिनमें (उनकी) सरीही आज़माइश थी (33)

इलेहि युरद

إِنَّ هَؤُلَاء لَيَقُولُونَ {34}

ये (कुफ़्फ़ारे मक्का) (मुसलमानों से) कहते हैं (34)

इलेहि युरद

إِنْ هِيَ إِلَّا مَوْتَتُنَا الْأُولَى وَمَا نَحْنُ بِمُنشَرِينَ {35}

कि हमें तो सिर्फ एक बार मरना है और फिर हम दोबारा (जि़न्दा करके) उठाए न जाएँगे (35)

इलेहि युरद

فَأْتُوا بِآبَائِنَا إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ {36}

तो अगर तुम सच्चे हो तो हमारे बाप दादाओं को (जि़न्दा करके) ले आओ (36)

इलेहि युरद

أَهُمْ خَيْرٌ أَمْ قَوْمُ تُبَّعٍ وَالَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ أَهْلَكْنَاهُمْ إِنَّهُمْ كَانُوا مُجْرِمِينَ {37}

भला ये लोग (क़ूवत में) अच्छे हैं या तुब्बा की क़ौम और वह लोग जो उनसे पहले हो चुके हमने उन सबको हलाक कर दिया (क्योंकि) वह ज़रूर गुनाहगार थे (37)

इलेहि युरद

وَمَا خَلَقْنَا السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا لَاعِبِينَ {38}

और हमने सारे आसमान व ज़मीन और जो चीज़े उन दोनों के दरमियान में हैं उनको खेलते हुए नहीं बनाया (38)

इलेहि युरद

مَا خَلَقْنَاهُمَا إِلَّا بِالْحَقِّ وَلَكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ {39}

इन दोनों को हमने बस ठीक (मसलहत से) पैदा किया मगर उनमें के बहुतेरे लोग नहीं जानते (39)

इलेहि युरद

إِنَّ يَوْمَ الْفَصْلِ مِيقَاتُهُمْ أَجْمَعِينَ {40}

बेशक फ़ैसला (क़यामत) का दिन उन सब (के दोबार जि़न्दा होने) का मुक़र्रर वक़्त है (40)

इलेहि युरद

يَوْمَ لَا يُغْنِي مَوْلًى عَن مَّوْلًى شَيْئًا وَلَا هُمْ يُنصَرُونَ {41}

जिस दिन कोई दोस्त किसी दोस्त के कुछ काम न आएगा और न उन की मदद की जाएगी (41)

इलेहि युरद

إِلَّا مَن رَّحِمَ اللَّهُ إِنَّهُ هُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ {42}

मगर जिन पर ख़ुदा रहम फरमाए बेशक वह (ख़ुदा) सब पर ग़ालिब बड़ा रहम करने वाला है (42)

इलेहि युरद

إِنَّ شَجَرَةَ الزَّقُّومِ {43}

(आख़ेरत में) थोहड़ का दरख़्त (43)

इलेहि युरद

طَعَامُ الْأَثِيمِ {44}

ज़रूर गुनेहगार का खाना होगा (44)

इलेहि युरद

كَالْمُهْلِ يَغْلِي فِي الْبُطُونِ {45}

जैसे पिघला हुआ तांबा वह पेटों में इस तरह उबाल खाएगा (45)

इलेहि युरद

كَغَلْيِ الْحَمِيمِ {46}

जैसे खौलता हुआ पानी उबाल खाता है (46)

इलेहि युरद

خُذُوهُ فَاعْتِلُوهُ إِلَى سَوَاء الْجَحِيمِ {47}

(फ़रिश्तों को हुक्म होगा) इसको पकड़ो और घसीटते हुए दोज़ख़ के बीचों बीच में ले जाओ (47)

इलेहि युरद

ثُمَّ صُبُّوا فَوْقَ رَأْسِهِ مِنْ عَذَابِ الْحَمِيمِ {48}

फिर उसके सर पर खौलते हुए पानी का अज़ाब डालो फिर उससे ताआनन कहा जाएगा अब मज़ा चखो (48)

इलेहि युरद

ذُقْ إِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْكَرِيمُ {49}

बेशक तू तो बड़ा इज़्ज़त वाला सरदार है (49)

इलेहि युरद

إِنَّ هَذَا مَا كُنتُم بِهِ تَمْتَرُونَ {50}

ये वही दोज़ख़ तो है जिसमें तुम लोग शक किया करते थे (50)

इलेहि युरद

إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي مَقَامٍ أَمِينٍ {51}

बेशक परहेज़गार लोग अमन की जगह (51)

इलेहि युरद

فِي جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ {52}

(यानि) बाग़ों और चश्मों में होंगे (52) 

इलेहि युरद

يَلْبَسُونَ مِن سُندُسٍ وَإِسْتَبْرَقٍ مُّتَقَابِلِينَ {53}

रेशम की कभी बारीक और कभी दबीज़ पोशाकें पहने हुए एक दूसरे के आमने सामने बैठे होंगे (53)

इलेहि युरद

كَذَلِكَ وَزَوَّجْنَاهُم بِحُورٍ عِينٍ {54}

ऐसा ही होगा और हम बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरों से उनके जोड़े लगा देंगे (54)

इलेहि युरद

يَدْعُونَ فِيهَا بِكُلِّ فَاكِهَةٍ آمِنِينَ {55}

वहाँ इत्मेनान से हर किस्म के मेवे मंगवा कर खायेंगे (55)

इलेहि युरद

لَا يَذُوقُونَ فِيهَا الْمَوْتَ إِلَّا الْمَوْتَةَ الْأُولَى وَوَقَاهُمْ عَذَابَ الْجَحِيمِ {56}

वहाँ पहली दफ़ा की मौत के सिवा उनको मौत की तलख़ी चख़नी ही न पड़ेगी और ख़ुदा उनको दोज़ख़ के अज़ाब से महफूज़ रखेगा (56)

इलेहि युरद

فَضْلًا مِّن رَّبِّكَ ذَلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ {57}

(ये) तुम्हारे परवरदिगार का फज़ल है यही तो बड़ी कामयाबी है (57)

इलेहि युरद

فَإِنَّمَا يَسَّرْنَاهُ بِلِسَانِكَ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ {58}

तो हमने इस क़़ुरआन को तुम्हारी ज़बान में (इसलिए) आसान कर दिया है ताकि ये लोग नसीहत पकड़ें तो (58) 

इलेहि युरद

فَارْتَقِبْ إِنَّهُم مُّرْتَقِبُونَ {59}

(नतीजे के) तुम भी मुन्तजि़र रहो ये लोग भी मुन्तजि़र हैं (59)

इलेहि युरद

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है 

इलेहि युरद

حم {1}

हा मीम (1)

इलेहि युरद

تَنزِيلُ الْكِتَابِ مِنَ اللَّهِ الْعَزِيزِ الْحَكِيمِ {2}

ये किताब (क़ुरआन) ख़ुदा की तरफ़ से नाजि़ल हुई है जो ग़ालिब और दाना है (2)

इलेहि युरद

إِنَّ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ لَآيَاتٍ لِّلْمُؤْمِنِينَ {3}

बेशक आसमान और ज़मीन में ईमान वालों के लिए (क़ुदरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं (3)

इलेहि युरद

وَفِي خَلْقِكُمْ وَمَا يَبُثُّ مِن دَابَّةٍ آيَاتٌ لِّقَوْمٍ يُوقِنُونَ {4}

और तुम्हारी पैदाइश में (भी) और जिन जानवरों को वह (ज़मीन पर) फैलाता रहता है (उनमें भी) यक़ीन करने वालों के वास्ते बहुत सी निशानियाँ हैं (4)

इलेहि युरद

وَاخْتِلَافِ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ وَمَا أَنزَلَ اللَّهُ مِنَ السَّمَاء مِن رِّزْقٍ فَأَحْيَا بِهِ الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا وَتَصْرِيفِ الرِّيَاحِ آيَاتٌ لِّقَوْمٍ يَعْقِلُونَ {5}

और रात दिन के आने जाने में और ख़ुदा ने आसमान से जो (ज़रिया) रिज़क (पानी) नाजि़ल फ़रमाया फिर उससे ज़मीन को उसके मर जाने के बाद जि़न्दा किया (उसमें) और हवाओं फेर बदल में अक़्लमन्द लोगों के लिए बहुत सी निशानियाँ हैं (5)

इलेहि युरद

تِلْكَ آيَاتُ اللَّهِ نَتْلُوهَا عَلَيْكَ بِالْحَقِّ فَبِأَيِّ حَدِيثٍ بَعْدَ اللَّهِ وَآيَاتِهِ يُؤْمِنُونَ {6}

ये ख़ुदा की आयतें हैं जिनको हम ठीक (ठीक) तुम्हारे सामने पढ़ते हैं तो ख़ुदा और उसकी आयतों के बाद कौन सी बात होगी (6)

इलेहि युरद

وَيْلٌ لِّكُلِّ أَفَّاكٍ أَثِيمٍ {7}

जिस पर ये लोग ईमान लाएंगे हर झूठे गुनाहगार पर अफ़सोस है (7)

इलेहि युरद

يَسْمَعُ آيَاتِ اللَّهِ تُتْلَى عَلَيْهِ ثُمَّ يُصِرُّ مُسْتَكْبِرًا كَأَن لَّمْ يَسْمَعْهَا فَبَشِّرْهُ بِعَذَابٍ أَلِيمٍ {8}

कि ख़ुदा की आयतें उसके सामने पढ़ी जाती हैं और वह सुनता भी है फिर ग़़ुरूर से (कुफ़्र पर) अड़ा रहता है गोया उसने उन आयतों को सुना ही नहीं तो (ऐ रसूल) तुम उसे दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशख़बरी दे दो (8)

इलेहि युरद

وَإِذَا عَلِمَ مِنْ آيَاتِنَا شَيْئًا اتَّخَذَهَا هُزُوًا أُوْلَئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ مُّهِينٌ {9}

और जब हमारी आयतों में से किसी आयत पर वाकि़फ़ हो जाता है तो उसकी हँसी उड़ाता है ऐसे ही लोगों के वास्ते ज़लील करने वाला अज़ाब है (9)

इलेहि युरद

مِن وَرَائِهِمْ جَهَنَّمُ وَلَا يُغْنِي عَنْهُم مَّا كَسَبُوا شَيْئًا وَلَا مَا اتَّخَذُوا مِن دُونِ اللَّهِ أَوْلِيَاء وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ {10}

जहन्नुम तो उनके पीछे ही (पीछे) है और जो कुछ वह आमाल करते रहे न तो वही उनके कुछ काम आएँगे और न जिनको उन्होंने ख़ुदा को छोड़कर (अपने) सरपरस्त बनाए थे और उनके लिए बड़ा (सख़्त) अज़ाब है (10) 

इलेहि युरद

هَذَا هُدًى وَالَّذِينَ كَفَرُوا بِآيَاتِ رَبِّهِمْ لَهُمْ عَذَابٌ مَّن رِّجْزٍ أَلِيمٌ {11}

ये (क़़ुरआन) है और जिन लोगों ने अपने परवरदिगार की आयतों से इन्कार किया उनके लिए सख़्त किस्म का दर्दनाक अज़ाब होगा (11)

इलेहि युरद

اللَّهُ الَّذِي سخَّرَ لَكُمُ الْبَحْرَ لِتَجْرِيَ الْفُلْكُ فِيهِ بِأَمْرِهِ وَلِتَبْتَغُوا مِن فَضْلِهِ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ {12}

ख़ुदा ही तो है जिसने दरिया को तुम्हारे क़ाबू में कर दिया ताकि उसके हुक्म से उसमें कश्तियाँ चलें और ताकि उसके फज़ल (व करम) से (मआश की) तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो (12)

इलेहि युरद

وَسَخَّرَ لَكُم مَّا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا مِّنْهُ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لَّقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ {13}

और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है सबको अपने (हुक्म) से तुम्हारे काम में लगा दिया है जो लोग ग़ौर करते हैं उनके लिए इसमें (क़़ुदरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं (13)

इलेहि युरद

قُل لِّلَّذِينَ آمَنُوا يَغْفِرُوا لِلَّذِينَ لا يَرْجُون أَيَّامَ اللَّهِ لِيَجْزِيَ قَوْمًا بِما كَانُوا يَكْسِبُونَ {14}

(ऐ रसूल) मोमिनों से कह दो कि जो लोग ख़ुदा के दिनों की (जो जज़ा के लिए मुक़र्रर हैं) तवक़्क़ो नहीं रखते उनसे दरगुज़र करें ताकि वह लोगों के आमाल का बदला दे (14)

इलेहि युरद

مَنْ عَمِلَ صَالِحًا فَلِنَفْسِهِ وَمَنْ أَسَاء فَعَلَيْهَا ثُمَّ إِلَى رَبِّكُمْ تُرْجَعُونَ {15}

जो शख़्स नेक काम करता है तो ख़ास अपने लिए और बुरा काम करेगा तो उस का बवाल उसी पर होगा फिर (आखि़र) तुम अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाए जाओगे (15)

इलेहि युरद

وَلَقَدْ آتَيْنَا بَنِي إِسْرَائِيلَ الْكِتَابَ وَالْحُكْمَ وَالنُّبُوَّةَ وَرَزَقْنَاهُم مِّنَ الطَّيِّبَاتِ وَفَضَّلْنَاهُمْ عَلَى الْعَالَمِينَ {16}

और हमने बनी इसराईल को किताब (तौरेत) और हुकूमत और नबूवत अता की और उन्हें उम्दा उम्दा चीज़ें खाने को दीं और उनको सारे जहाँन पर फ़ज़ीलत दी (16)

इलेहि युरद

وَآتَيْنَاهُم بَيِّنَاتٍ مِّنَ الْأَمْرِ فَمَا اخْتَلَفُوا إِلَّا مِن بَعْدِ مَا جَاءهُمْ الْعِلْمُ بَغْيًا بَيْنَهُمْ إِنَّ رَبَّكَ يَقْضِي بَيْنَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فِيمَا كَانُوا فِيهِ يَخْتَلِفُونَ {17}

और उनको दीन की खुली हुई दलीलें इनायत की तो उन लोगों ने इल्म आ चुकने के बाद बस आपस की जि़द में एक दूसरे से एख़्तेलाफ़ किया कि ये लोग जिन बातों से एख़्तेलाफ़ कर रहें हैं क़यामत के दिन तुम्हारा परवरदिगार उनमें फैसला कर देगा (17)

इलेहि युरद

ثُمَّ جَعَلْنَاكَ عَلَى شَرِيعَةٍ مِّنَ الْأَمْرِ فَاتَّبِعْهَا وَلَا تَتَّبِعْ أَهْوَاء الَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ {18}

फिर (ऐ रसूल) हमने तुमको दीन के खुले रास्ते पर क़ायम किया है तो इसी (रास्ते) पर चले जाओ और नादानों की ख़्वाहिशों की पैरवी न करो (18)

इलेहि युरद

إِنَّهُمْ لَن يُغْنُوا عَنكَ مِنَ اللَّهِ شَيئًا وإِنَّ الظَّالِمِينَ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاء بَعْضٍ وَاللَّهُ وَلِيُّ الْمُتَّقِينَ {19}

ये लोग ख़ुदा के सामने तुम्हारे कुछ भी काम न आएँगे और ज़ालिम लोग एक दूसरे के मददगार हैं और ख़ुदा तो परहेज़गारों का मददगार है (19)

इलेहि युरद

هَذَا بَصَائِرُ لِلنَّاسِ وَهُدًى وَرَحْمَةٌ لِّقَوْمِ يُوقِنُونَ {20}

ये (क़़ुरआन) लोगों (की) हिदायत के लिए दलीलो का मजमूआ है और बातें करने वाले लोगों के लिए (अज़सरतापा) हिदायत व रहमत है (20)

इलेहि युरद

أًمْ حَسِبَ الَّذِينَ اجْتَرَحُوا السَّيِّئَاتِ أّن نَّجْعَلَهُمْ كَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ سَوَاء مَّحْيَاهُم وَمَمَاتُهُمْ سَاء مَا يَحْكُمُونَ {21}

जो लोग बुरा काम किया करते हैं क्या वह ये समझते हैं कि हम उनको उन लोगों के बराबर कर देंगे जो ईमान लाए और अच्छे अच्छे काम भी करते रहे और उन सब का जीना मरना एक सा होगा ये लोग (क्या) बुरे हुक्म लगाते हैं (21)

इलेहि युरद

وَخَلَقَ اللَّهُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِالْحَقِّ وَلِتُجْزَى كُلُّ نَفْسٍ بِمَا كَسَبَتْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ {22}

और ख़ुदा ने सारे आसमान व ज़मीन को हिकमत व मसलेहत से पैदा किया और ताकि हर शख़्स को उसके किये का बदला दिया जाए और उन पर (किसी तरह का) ज़़ुल्म नहीं किया जाएगा (22)

इलेहि युरद

أَفَرَأَيْتَ مَنِ اتَّخَذَ إِلَهَهُ هَوَاهُ وَأَضَلَّهُ اللَّهُ عَلَى عِلْمٍ وَخَتَمَ عَلَى سَمْعِهِ وَقَلْبِهِ وَجَعَلَ عَلَى بَصَرِهِ غِشَاوَةً فَمَن يَهْدِيهِ مِن بَعْدِ اللَّهِ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ {23}

भला तुमने उस शख़्स को भी देखा है जिसने अपनी नफसियानी ख़वाहिशों को माबूद बना रखा है और (उसकी हालत) समझ बूझ कर ख़ुदा ने उसे गुमराही में छोड़ दिया है और उसके कान और दिल पर अलामत मुक़र्रर कर दी है (कि ये ईमान न लाएगा) और उसकी आँख पर पर्दा डाल दिया है फिर ख़ुदा के बाद उसकी हिदायत कौन कर सकता है तो क्या तुम लोग (इतना भी) ग़ौर नहीं करते (23)

इलेहि युरद

وَقَالُوا مَا هِيَ إِلَّا حَيَاتُنَا الدُّنْيَا نَمُوتُ وَنَحْيَا وَمَا يُهْلِكُنَا إِلَّا الدَّهْرُ وَمَا لَهُم بِذَلِكَ مِنْ عِلْمٍ إِنْ هُمْ إِلَّا يَظُنُّونَ {24}

और वह लोग कहते हैं कि हमारी जि़न्दगी तो बस दुनिया ही की है (यहीं) मरते हैं और (यहीं) जीते हैं और हमको बस ज़माना ही (जिलाता) मारता है और उनको इसकी कुछ ख़बर तो है नहीं ये लोग तो बस अटकल की बातें करते हैं (24)

इलेहि युरद

وَإِذَا تُتْلَى عَلَيْهِمْ آيَاتُنَا بَيِّنَاتٍ مَّا كَانَ حُجَّتَهُمْ إِلَّا أَن قَالُوا ائْتُوا بِآبَائِنَا إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ {25}

और जब उनके सामने हमारी खुली खुली आयतें पढ़ी जाती हैं तो उनकी कट हुज्जती बस यही होती है कि वह कहते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो हमारे बाप दादाओं को (जिला कर) ले तो आओ (25)

इलेहि युरद

قُلِ اللَّهُ يُحْيِيكُمْ ثُمَّ يُمِيتُكُمْ ثُمَّ يَجْمَعُكُمْ إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ لَا رَيبَ فِيهِ وَلَكِنَّ أَكَثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ {26}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ख़ुदा ही तुमको जि़न्दा (पैदा) करता है और वही तुमको मारता है फिर वही तुमको क़यामत के दिन जिस (के होने) में किसी तरह का शक नहीं जमा करेगा मगर अक्सर लोग नहीं जानते (26)

इलेहि युरद

وَلَلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرضِ وَيَومَ تَقُومُ السَّاعَةُ يَوْمَئِذٍ يَخْسَرُ الْمُبْطِلُونَ {27}

और सारे आसमान व ज़मीन की बादशाहत ख़ास ख़ुदा की है और जिस रोज़ क़यामत बरपा होगी उस रोज़ एहले बातिल बड़े घाटे में रहेंगे (27)

इलेहि युरद

وَتَرَى كُلَّ أُمَّةٍ جَاثِيَةً كُلُّ أُمَّةٍ تُدْعَى إِلَى كِتَابِهَا الْيَوْمَ تُجْزَوْنَ مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ {28}

और (ऐ रसूल) तुम हर उम्मत को देखोगे कि (फैसले की मुन्तजि़र अदब से) घूटनों के बल बैठी होगी और हर उम्मत अपने नामाए आमाल की तरफ़ बुलाइ जाएगी जो कुछ तुम लोग करते थे आज तुमको उसका बदला दिया जाएगा (28)

इलेहि युरद

هَذَا كِتَابُنَا يَنطِقُ عَلَيْكُم بِالْحَقِّ إِنَّا كُنَّا نَسْتَنسِخُ مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ {29}

ये हमारी किताब (जिसमें आमाल लिखे हैं) तुम्हारे मुक़ाबले में ठीक ठीक बोल रही है जो कुछ भी तुम करते थे हम लिखवाते जाते थे (29)

इलेहि युरद

فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فَيُدْخِلُهُمْ رَبُّهُمْ فِي رَحْمَتِهِ ذَلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْمُبِينُ {30}

ग़रज़ जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किये तो उनको उनका परवरदिगार अपनी रहमत (से बेहिश्त) में दाखि़ल करेगा यही तो सरीही कामयाबी है (30)

इलेहि युरद

وَأَمَّا الَّذِينَ كَفَرُوا أَفَلَمْ تَكُنْ آيَاتِي تُتْلَى عَلَيْكُمْ فَاسْتَكْبَرْتُمْ وَكُنتُمْ قَوْمًا مُّجْرِمِينَ {31}

और जिन्होंने कुफ्र एख़्तेयार किया (उनसे कहा जाएगा) तो क्या तुम्हारे सामने हमारी आयतें नहीं पढ़ी जाती थीं (ज़रूर) तो तुमने तकब्बुर किया और तुम लोग तो गुनेहगार हो गए (31)

इलेहि युरद

وَإِذَا قِيلَ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ وَالسَّاعَةُ لَا رَيْبَ فِيهَا قُلْتُم مَّا نَدْرِي مَا السَّاعَةُ إِن نَّظُنُّ إِلَّا ظَنًّا وَمَا نَحْنُ بِمُسْتَيْقِنِينَ {32}

और जब (तुम से) कहा जाता था कि ख़ुदा का वायदा सच्चा है और क़यामत (के आने) में कुछ शुबहा नहीं तो तुम कहते थे कि हम नहीं जानते कि क़यामत क्या चीज़ है हम तो बस (उसे) एक ख़्याली बात समझते हैं और हम तो (उसका) यक़ीन नहीं रखते (32)

इलेहि युरद

وَبَدَا لَهُمْ سَيِّئَاتُ مَا عَمِلُوا وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُون {33}

और उनके करतूतों की बुराईयाँ उस पर ज़ाहिर हो जाएँगी और जिस (अज़ाब) की ये हँसी उड़ाया करते थे उन्हें (हर तरफ़ से) घेर लेगा (33)

इलेहि युरद

وَقِيلَ الْيَوْمَ نَنسَاكُمْ كَمَا نَسِيتُمْ لِقَاء يَوْمِكُمْ هَذَا وَمَأْوَاكُمْ النَّارُ وَمَا لَكُم مِّن نَّاصِرِينَ {34}

और (उनसे) कहा जाएगा कि जिस तरह तुमने उस दिन के आने को भुला दिया था उसी तरह आज हम तुमको अपनी रहमत से अमदन भुला देंगे और तुम्हारा ठिकाना दोज़ख़ है और कोई तुम्हारा मददगार नहीं (34)

इलेहि युरद

ذَلِكُم بِأَنَّكُمُ اتَّخَذْتُمْ آيَاتِ اللَّهِ هُزُوًا وَغَرَّتْكُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا فَالْيَوْمَ لَا يُخْرَجُونَ مِنْهَا وَلَا هُمْ يُسْتَعْتَبُونَ {35}

ये इस सबब से कि तुम लोगों ने ख़ुदा की आयतों को हँसी ठट्ठा बना रखा था और दुनयावी जि़न्दगी ने तुमको धोखे में डाल दिया था ग़रज़ ये लोग न तो आज दुनिया से निकाले जाएँगे और न उनको इसका मौका दिया जाएगा कि (तौबा करके ख़ुदा को) राज़ी कर ले (35)

इलेहि युरद

فَلِلَّهِ الْحَمْدُ رَبِّ السَّمَاوَاتِ وَرَبِّ الْأَرْضِ رَبِّ الْعَالَمِينَ {36}

पस सब तारीफ़ ख़ुदा ही के लिए सज़ावार है जो सारे आसमान का मालिक और ज़मीन का मालिक (ग़रज़) सारे जहाँन का मालिक है (36)

इलेहि युरद

وَلَهُ الْكِبْرِيَاء فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ {37}

और सारे आसमान व ज़मीन में उसके लिए बड़ाई है और वही (सब पर) ग़ालिब हिकमत वाला है (37)