Quran पारा 7

वइज़ा समिऊ

وَإِذَا سَمِعُواْ مَا أُنزِلَ إِلَى الرَّسُولِ تَرَى أَعْيُنَهُمْ تَفِيضُ مِنَ الدَّمْعِ مِمَّا عَرَفُواْ مِنَ الْحَقِّ يَقُولُونَ رَبَّنَا آمَنَّا فَاكْتُبْنَا مَعَ الشَّاهِدِينَ {83}

और तू देखता है कि जब यह लोग (इस कु़रान) को सुनते हैं जो हमारे रसूल पर नाजि़ल किया गया है तो उनकी आँखों से बेसाख़्ता (छलक कर) आँसू जारी हो जातें है क्योंकि उन्होंने (अम्र) हक़ को पहचान लिया है (और) अर्ज़ करते हैं कि ऐ मेरे पालने वाले हम तो ईमान ला चुके तो (रसूल की) तसदीक़ करने वालों के साथ हमें भी लिख रख (83)

वइज़ा समिऊ

وَمَا لَنَا لاَ نُؤْمِنُ بِاللّهِ وَمَا جَاءنَا مِنَ الْحَقِّ وَنَطْمَعُ أَن يُدْخِلَنَا رَبَّنَا مَعَ الْقَوْمِ الصَّالِحِينَ {84}

और हमको क्या हो गया है कि हम ख़ुदा और जो हक़ बात हमारे पास आ चुकी है उस पर तो ईमान न लाएँ और (फिर) ख़ुदा से उम्मीद रखें कि वह अपने नेक बन्दों के साथ हमें (बेहिश्त में) पहुँचा ही देगा (84)

वइज़ा समिऊ

فَأَثَابَهُمُ اللّهُ بِمَا قَالُواْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَذَلِكَ جَزَاء الْمُحْسِنِينَ {85}

तो ख़ुदा ने उन्हें उनके (सदक़ दिल से) अर्ज़ करने के सिले में उन्हें वह (हरे भरे) बाग़ात अता फरमाए जिनके (दरख़्तों के) नीचे नहरें जारी हैं (और) वह उसमें हमेशा रहेंगे और (सदक़ दिल से) नेकी करने वालों का यही ऐवज़ है (85)

वइज़ा समिऊ

وَالَّذِينَ كَفَرُواْ وَكَذَّبُواْ بِآيَاتِنَا أُوْلَـئِكَ أَصْحَابُ الْجَحِيمِ {86}

और जिन लोगों ने कुफ्र एख़्तेयार किया और हमारी आयतों को झुठलाया यही लोग जहन्नुमी हैं (86)

वइज़ा समिऊ

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تُحَرِّمُواْ طَيِّبَاتِ مَا أَحَلَّ اللّهُ لَكُمْ وَلاَ تَعْتَدُواْ إِنَّ اللّهَ لاَ يُحِبُّ الْمُعْتَدِينَ {87}

ऐ ईमानदार जो पाक चीज़े ख़ुदा ने तुम्हारे वास्ते हलाल कर दी हैं उनको अपने ऊपर हराम न करो और हद से न बढ़ो क्यों कि ख़ुदा हद से बढ़ जाने वालों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता (87)

वइज़ा समिऊ

وَكُلُواْ مِمَّا رَزَقَكُمُ اللّهُ حَلاَلاً طَيِّبًا وَاتَّقُواْ اللّهَ الَّذِيَ أَنتُم بِهِ مُؤْمِنُونَ {88}

और जो हलाल साफ सुथरी चीज़ें ख़ुदा ने तुम्हें दी हैं उनको (शौक से) खाओ और जिस ख़ुदा पर तुम ईमान लाए हो उससे डरते रहो (88)

वइज़ा समिऊ

لاَ يُؤَاخِذُكُمُ اللّهُ بِاللَّغْوِ فِي أَيْمَانِكُمْ وَلَـكِن يُؤَاخِذُكُم بِمَا عَقَّدتُّمُ الأَيْمَانَ فَكَفَّارَتُهُ إِطْعَامُ عَشَرَةِ مَسَاكِينَ مِنْ أَوْسَطِ مَا تُطْعِمُونَ أَهْلِيكُمْ أَوْ كِسْوَتُهُمْ أَوْ تَحْرِيرُ رَقَبَةٍ فَمَن لَّمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلاَثَةِ أَيَّامٍ ذَلِكَ كَفَّارَةُ أَيْمَانِكُمْ إِذَا حَلَفْتُمْ وَاحْفَظُواْ أَيْمَانَكُمْ كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللّهُ لَكُمْ آيَاتِهِ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ {89}

ख़ुदा तुम्हारे बेकार (बेकार) क़समों (के खाने) पर तो ख़ैर गिरफ्तार न करेगा मगर बाक़सद {सच्ची} पक्की क़सम खाने और उसके खि़लाफ करने पर तो ज़रुर तुम्हारी ले दे करेगा (लो सुनो) उसका जुर्माना जैसा तुम ख़ुद अपने एहलोअयाल को खिलाते हो उसी कि़स्म का औसत दर्जे का दस मोहताजों को खाना खिलाना या उनको कपड़े पहनाना या एक गु़लाम आज़ाद करना है फिर जिससे यह सब न हो सके तो मैं तीन दिन के रोज़े (रखना) ये (तो) तुम्हारी क़समों का जुर्माना है जब तुम क़सम खाओ (और पूरी न करो) और अपनी क़समों (के पूरा न करने) का ख़्याल रखो ख़ुदा अपने एहकाम को तुम्हारे वास्ते यूँ साफ़ साफ़ बयान करता है ताकि तुम शुक्र करो (89)

वइज़ा समिऊ

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إِنَّمَا الْخَمْرُ وَالْمَيْسِرُ وَالأَنصَابُ وَالأَزْلاَمُ رِجْسٌ مِّنْ عَمَلِ الشَّيْطَانِ فَاجْتَنِبُوهُ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ {90}

ऐ ईमानदारों शराब, जुआ और बुत और पाँसे तो बस नापाक (बुरे) शैतानी काम हैं तो तुम लोग इससे बचे रहो ताकि तुम फलाह पाओ (90)

वइज़ा समिऊ

إِنَّمَا يُرِيدُ الشَّيْطَانُ أَن يُوقِعَ بَيْنَكُمُ الْعَدَاوَةَ وَالْبَغْضَاء فِي الْخَمْرِ وَالْمَيْسِرِ وَيَصُدَّكُمْ عَن ذِكْرِ اللّهِ وَعَنِ الصَّلاَةِ فَهَلْ أَنتُم مُّنتَهُونَ {91}

शैतान की तो बस यही तमन्ना है कि शराब और जुए की बदौलत तुममें बाहम अदावत व दुश्मनी डलवा दे और ख़ुदा की याद और नमाज़ से बाज़ रखे तो क्या तुम उससे बाज़ आने वाले हो (91)

वइज़ा समिऊ

وَأَطِيعُواْ اللّهَ وَأَطِيعُواْ الرَّسُولَ وَاحْذَرُواْ فَإِن تَوَلَّيْتُمْ فَاعْلَمُواْ أَنَّمَا عَلَى رَسُولِنَا الْبَلاَغُ الْمُبِينُ {92}

और ख़ुदा का हुक्म मानों और रसूल का हुक्म मानों और (नाफ़रमानी) से बचे रहो इस पर भी अगर तुमने (हुक्म ख़ुदा से) मुँह फेरा तो समझ रखो कि हमारे रसूल पर बस साफ़ साफ़ पैग़ाम पहुँचा देना फर्ज़ है (92)

वइज़ा समिऊ

لَيْسَ عَلَى الَّذِينَ آمَنُواْ وَعَمِلُواْ الصَّالِحَاتِ جُنَاحٌ فِيمَا طَعِمُواْ إِذَا مَا اتَّقَواْ وَّآمَنُواْ وَعَمِلُواْ الصَّالِحَاتِ ثُمَّ اتَّقَواْ وَّآمَنُواْ ثُمَّ اتَّقَواْ وَّأَحْسَنُواْ وَاللّهُ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ {93}

(फिर करो चाहे न करो तुम मुख़तार हो) जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए हैं उन पर जो कुछ खा (पी) चुके उसमें कुछ गुनाह नहीं जब उन्होंने परहेज़गारी की और ईमान ले आए और अच्छे (अच्छे) काम किए फिर परहेज़गारी की और नेकियाँ कीं और ख़ुदा नेकी करने वालों को दोस्त रखता है (93)

वइज़ा समिऊ

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لَيَبْلُوَنَّكُمُ اللّهُ بِشَيْءٍ مِّنَ الصَّيْدِ تَنَالُهُ أَيْدِيكُمْ وَرِمَاحُكُمْ لِيَعْلَمَ اللّهُ مَن يَخَافُهُ بِالْغَيْبِ فَمَنِ اعْتَدَى بَعْدَ ذَلِكَ فَلَهُ عَذَابٌ أَلِيمٌ {94}

ऐ ईमानदारों कुछ शिकार से जिन तक तुम्हारे हाथ और नैज़ें पहुँच सकते हैं ख़ुदा ज़रुर इम्तेहान करेगा ताकि ख़ुदा देख ले कि उससे बे देखे भाले कौन डरता है फिर उसके बाद भी जो ज़्यादती करेगा तो उसके लिए दर्दनाक अज़ाब है (94)

वइज़ा समिऊ

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَقْتُلُواْ الصَّيْدَ وَأَنتُمْ حُرُمٌ وَمَن قَتَلَهُ مِنكُم مُّتَعَمِّدًا فَجَزَاء مِّثْلُ مَا قَتَلَ مِنَ النَّعَمِ يَحْكُمُ بِهِ ذَوَا عَدْلٍ مِّنكُمْ هَدْيًا بَالِغَ الْكَعْبَةِ أَوْ كَفَّارَةٌ طَعَامُ مَسَاكِينَ أَو عَدْلُ ذَلِكَ صِيَامًا لِّيَذُوقَ وَبَالَ أَمْرِهِ عَفَا اللّهُ عَمَّا سَلَف وَمَنْ عَادَ فَيَنتَقِمُ اللّهُ مِنْهُ وَاللّهُ عَزِيزٌ ذُو انْتِقَامٍ {95}

(ऐ ईमानदारों जब तुम हालते एहराम में हो तो शिकार न मारो और तुममें से जो कोई जान बूझ कर शिकार मारेगा तो जिस (जानवर) को मारा है चैपायों में से उसका मसल तुममें से जो दो मुन्सिफ आदमी तजवीज़ कर दें उसका बदला (देना) होगा (और) काबा तक पहुँचा कर कुर्बानी की जाए या (उसका) जुर्माना (उसकी क़ीमत से) मोहताजों को खाना खिलाना या उसके बराबर रोज़े रखना (यह जुर्माना इसलिए है) ताकि अपने किए की सज़ा का मज़ा चखो जो हो चुका उससे तो ख़ुदा ने दरग़ुज़र की और जो फिर ऐसी हरकत करेगा तो ख़ुदा उसकी सज़ा देगा और ख़ुदा ज़बरदस्त बदला लेने वाला है (95)

वइज़ा समिऊ

أُحِلَّ لَكُمْ صَيْدُ الْبَحْرِ وَطَعَامُهُ مَتَاعًا لَّكُمْ وَلِلسَّيَّارَةِ وَحُرِّمَ عَلَيْكُمْ صَيْدُ الْبَرِّ مَا دُمْتُمْ حُرُمًا وَاتَّقُواْ اللّهَ الَّذِيَ إِلَيْهِ تُحْشَرُونَ {96}

तुम्हारे और काफि़ले के वास्ते दरियाई शिकार और उसका खाना तो (हर हालत में) तुम्हारे वास्ते जायज़ कर दिया है मगर खुश्की का शिकार जब तक तुम हालते एहराम में रहो तुम पर हराम है और उस ख़ुदा से डरते रहो जिसकी तरफ (मरने के बाद) उठाए जाओगे (96)

वइज़ा समिऊ

جَعَلَ اللّهُ الْكَعْبَةَ الْبَيْتَ الْحَرَامَ قِيَامًا لِّلنَّاسِ وَالشَّهْرَ الْحَرَامَ وَالْهَدْيَ وَالْقَلاَئِدَ ذَلِكَ لِتَعْلَمُواْ أَنَّ اللّهَ يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ وَأَنَّ اللّهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ {97}

ख़ुदा ने काबा को जो (उसका) मोहतरम घर है और हुरमत दार महीनों को और कुरबानी को और उस जानवर को जिसके गले में (कुर्बानी के वास्ते) पट्टे डाल दिए गए हों लोगों के अमन क़ायम रखने का सबब क़रार दिया यह इसलिए कि तुम जान लो कि ख़ुदा जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है यक़ीनन (सब) जानता है और ये भी (समझ लो) कि बेशक ख़ुदा हर चीज़ से वाकि़फ है (97)

वइज़ा समिऊ

اعْلَمُواْ أَنَّ اللّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ وَأَنَّ اللّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ {98}

जान लो कि यक़ीनन ख़ुदा बड़ा अज़ाब वाला है और ये (भी) कि बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (98)

वइज़ा समिऊ

مَّا عَلَى الرَّسُولِ إِلاَّ الْبَلاَغُ وَاللّهُ يَعْلَمُ مَا تُبْدُونَ وَمَا تَكْتُمُونَ {99}

(हमारे) रसूल पर पैग़ाम पहुँचा देने के सिवा (और) कुछ (फजऱ्) नहीं और जो कुछ तुम ज़ाहिर बा ज़ाहिर करते हो और जो कुछ तुम छुपा कर करते हो ख़ुदा सब जानता है (99)

वइज़ा समिऊ

قُل لاَّ يَسْتَوِي الْخَبِيثُ وَالطَّيِّبُ وَلَوْ أَعْجَبَكَ كَثْرَةُ الْخَبِيثِ فَاتَّقُواْ اللّهَ يَا أُوْلِي الأَلْبَابِ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ {100}

(ऐ रसूल) कह दो कि नापाक (हराम) और पाक (हलाल) बराबर नहीं हो सकता अगरचे नापाक की कसरत तुम्हें भला क्यों न मालूम हो तो ऐसे अक़्लमन्दों अल्लाह से डरते रहो ताकि तुम कामयाब रहो (100)

वइज़ा समिऊ

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَسْأَلُواْ عَنْ أَشْيَاء إِن تُبْدَ لَكُمْ تَسُؤْكُمْ وَإِن تَسْأَلُواْ عَنْهَا حِينَ يُنَزَّلُ الْقُرْآنُ تُبْدَ لَكُمْ عَفَا اللّهُ عَنْهَا وَاللّهُ غَفُورٌ حَلِيمٌ {101}

ऐ ईमान वालों ऐसी चीज़ों के बारे में (रसूल से) न पूछा करो कि अगर तुमको मालूम हो जाए तो तुम्हें बुरी मालूम हो और अगर उनके बारे में कु़रान नाजि़ल होने के वक़्त पूछ बैठोगे तो तुम पर ज़ाहिर कर दी जाएगी (मगर तुमको बुरा लगेगा जो सवालात तुम कर चुके) ख़ुदा ने उनसे दरगुज़र की और ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला बुर्दबार है (101)

वइज़ा समिऊ

قَدْ سَأَلَهَا قَوْمٌ مِّن قَبْلِكُمْ ثُمَّ أَصْبَحُواْ بِهَا كَافِرِينَ {102}

तुमसे पहले भी लोगों ने इस किस्म की बातें (अपने वक़्त के पैग़म्बरों से) पूछी थीं (102)

वइज़ा समिऊ

مَا جَعَلَ اللّهُ مِن بَحِيرَةٍ وَلاَ سَآئِبَةٍ وَلاَ وَصِيلَةٍ وَلاَ حَامٍ وَلَـكِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ يَفْتَرُونَ عَلَى اللّهِ الْكَذِبَ وَأَكْثَرُهُمْ لاَ يَعْقِلُونَ {103}

फिर (जब बरदाश्त न हो सका तो) उसके मुन्किर हो गए ख़ुदा ने न तो कोई बहीरा (कान फटी ऊँटनी) मुक़र्रर किया है न सायवा (साँढ़) न वसीला (जुडवा बच्चे) न हाम (बुढ़ा साँढ़़) मुक़र्रर किया है मगर कुफ़्फ़ार ख़ुदा पर ख़्वाह मा ख़्वाह झूठ (मूठ) बोहतान बाँधते हैं और उनमें के अक्सर नहीं समझते (103)

वइज़ा समिऊ

وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْاْ إِلَى مَا أَنزَلَ اللّهُ وَإِلَى الرَّسُولِ قَالُواْ حَسْبُنَا مَا وَجَدْنَا عَلَيْهِ آبَاءنَا أَوَلَوْ كَانَ آبَاؤُهُمْ لاَ يَعْلَمُونَ شَيْئًا وَلاَ يَهْتَدُونَ {104}

और जब उनसे कहा जाता है कि जो (क़ुरान) ख़ुदा ने नाजि़ल फरमाया है उसकी तरफ और रसूल की आओ (और जो कुछ कहे उसे मानों तो कहते हैं कि हमने जिस (रंग) में अपने बाप दादा को पाया वही हमारे लिए काफी है क्या (ये लोग लकीर के फकीर ही रहेंगे) अगरचे उनके बाप दादा न कुछ जानते ही हों न हिदायत ही पायी हो (104)

वइज़ा समिऊ

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ عَلَيْكُمْ أَنفُسَكُمْ لاَ يَضُرُّكُم مَّن ضَلَّ إِذَا اهْتَدَيْتُمْ إِلَى اللّهِ مَرْجِعُكُمْ جَمِيعًا فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ {105}

ऐ ईमान वालों तुम अपनी ख़बर लो जब तुम राहे रास्त पर हो तो कोई गुमराह हुआ करे तुम्हें नुक़सान नहीं पहुँचा सकता तुम सबके सबको ख़ुदा ही की तरफ लौट कर जाना है तब (उस वक़्त नेक व बद) जो कुछ (दुनिया में) करते थे तुम्हें बता देगा (105)

वइज़ा समिऊ

يِا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ شَهَادَةُ بَيْنِكُمْ إِذَا حَضَرَ أَحَدَكُمُ الْمَوْتُ حِينَ الْوَصِيَّةِ اثْنَانِ ذَوَا عَدْلٍ مِّنكُمْ أَوْ آخَرَانِ مِنْ غَيْرِكُمْ إِنْ أَنتُمْ ضَرَبْتُمْ فِي الأَرْضِ فَأَصَابَتْكُم مُّصِيبَةُ الْمَوْتِ تَحْبِسُونَهُمَا مِن بَعْدِ الصَّلاَةِ فَيُقْسِمَانِ بِاللّهِ إِنِ ارْتَبْتُمْ لاَ نَشْتَرِي بِهِ ثَمَنًا وَلَوْ كَانَ ذَا قُرْبَى وَلاَ نَكْتُمُ شَهَادَةَ اللّهِ إِنَّا إِذًا لَّمِنَ الآثِمِينَ {106}

ऐ ईमान वालों जब तुममें से किसी (के सर) पर मौत खड़ी हो तो वसीयत के वक़्त तुम (मोमिन) में से दो आदिलों की गवाही होनी ज़रुरी है और जब तुम इत्तेफाक़न कहीं का सफर करो और (सफर ही में) तुमको मौत की मुसीबत का सामना हो तो (भी) दो गवाह ग़ैर (मोमिन) सही (और) अगर तुम्हें हक़ हो तो उन दोनों को नमाज़ के बाद रोक लो फिर वह दोनों ख़ुदा की क़सम खाएँ कि हम इस (गवाही) के (ऐवज़ कुछ दाम नहीं लेंगे अगरचे हम जिसकी गवाही देते हैं हमारा अज़ीज़ ही क्यों न) हो और हम खुदा लगती गवाही न छुपाएँगे अगर ऐसा करें तो हम बेशक गुनाहगार हैं (106)

वइज़ा समिऊ

فَإِنْ عُثِرَ عَلَى أَنَّهُمَا اسْتَحَقَّا إِثْمًا فَآخَرَانِ يِقُومَانُ مَقَامَهُمَا مِنَ الَّذِينَ اسْتَحَقَّ عَلَيْهِمُ الأَوْلَيَانِ فَيُقْسِمَانِ بِاللّهِ لَشَهَادَتُنَا أَحَقُّ مِن شَهَادَتِهِمَا وَمَا اعْتَدَيْنَا إِنَّا إِذًا لَّمِنَ الظَّالِمِينَ {107}

अगर इस पर मालूम हो जाए कि वह दोनों (दरोग़ हलफ़ी {झूठी कसम} से) गुनाह के मुस्तहक़ हो गए तो दूसरे दो आदमी उन लोगों में से जिनका हक़ दबाया गया है और (मय्यत) के ज़्यादा क़राबतदार हैं (उनकी तरवीद में) उनकी जगह खड़े हो जाएँ फिर दो नए गवाह ख़ुदा की क़सम खाएँ कि पहले दो गवाहों की निस्बत हमारी गवाही ज़्यादा सच्ची है और हमने (हक़) नहीं छुपाया और अगर ऐसा किया हो तो उस वक़्त बेशक हम ज़ालिम हैं (107)

वइज़ा समिऊ

ذَلِكَ أَدْنَى أَن يَأْتُواْ بِالشَّهَادَةِ عَلَى وَجْهِهَا أَوْ يَخَافُواْ أَن تُرَدَّ أَيْمَانٌ بَعْدَ أَيْمَانِهِمْ وَاتَّقُوا اللّهَ وَاسْمَعُواْ وَاللّهُ لاَ يَهْدِي الْقَوْمَ الْفَاسِقِينَ {108}

ये ज़्यादा क़रीन क़यास है कि इस तरह पर (आख़ेरत के डर से) ठीक ठीक गवाही दें या (दुनिया की रूसवाई का) अन्देशा हो कि कहीं हमारी क़समें दूसरे फरीक़ की क़समों के बाद रद न कर दी जाएँ मुसलमानों ख़ुदा से डरो और (जी लगा कर) सुन लो और ख़ुदा बदचलन लोगों को मंजि़ले मक़सूद तक नहीं पहुँचाता (108)

वइज़ा समिऊ

يَوْمَ يَجْمَعُ اللّهُ الرُّسُلَ فَيَقُولُ مَاذَا أُجِبْتُمْ قَالُواْ لاَ عِلْمَ لَنَا إِنَّكَ أَنتَ عَلاَّمُ الْغُيُوبِ {109}

(उस वक़्त को याद करो) जिस दिन ख़ुदा अपने पैग़म्बरों को जमा करके पूछेगा कि (तुम्हारी उममत की तरफ से तबलीग़े एहकाम का) क्या जवाब दिया गया तो अर्ज़ करेगें कि हम तो (चन्द ज़ाहिरी बातों के सिवा) कुछ नहीं जानते तू तो खुद बड़ा ग़ैब वा है (109)

वइज़ा समिऊ

إِذْ قَالَ اللّهُ يَا عِيسى ابْنَ مَرْيَمَ اذْكُرْ نِعْمَتِي عَلَيْكَ وَعَلَى وَالِدَتِكَ إِذْ أَيَّدتُّكَ بِرُوحِ الْقُدُسِ تُكَلِّمُ النَّاسَ فِي الْمَهْدِ وَكَهْلاً وَإِذْ عَلَّمْتُكَ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَالتَّوْرَاةَ وَالإِنجِيلَ وَإِذْ تَخْلُقُ مِنَ الطِّينِ كَهَيْئَةِ الطَّيْرِ بِإِذْنِي فَتَنفُخُ فِيهَا فَتَكُونُ طَيْرًا بِإِذْنِي وَتُبْرِئُ الأَكْمَهَ وَالأَبْرَصَ بِإِذْنِي وَإِذْ تُخْرِجُ الْمَوتَى بِإِذْنِي وَإِذْ كَفَفْتُ بَنِي إِسْرَائِيلَ عَنكَ إِذْ جِئْتَهُمْ بِالْبَيِّنَاتِ فَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُواْ مِنْهُمْ إِنْ هَـذَا إِلاَّ سِحْرٌ مُّبِينٌ {110}

(वह वक़्त याद करो) जब ख़ुदा फरमाएगा कि ये मरियम के बेटे ईसा हमने जो एहसानात तुम पर और तुम्हारी माँ पर किये उन्हे याद करो जब हमने रूहुलक़ुदूस (जिबरील) से तुम्हारी ताईद की कि तुम झूले में (पड़े पड़े) और अधेड़ होकर (यक सा बातें) करने लगे और जब हमने तुम्हें लिखना और अक़ल व दानाई की बातें और (तौरेत व इन्जील (ये सब चीजे़) सिखायी और जब तुम मेरे हुक्म से मिट्टी से चिडि़या की मूरत बनाते फिर उस पर कुछ दम कर देते तो वह मेरे हुक्म से (सचमुच) चिडि़या बन जाती थी और मेरे हुक्म से मादरज़ाद {पैदायशी} अॅधे और कोढ़ी को अच्छा कर देते थे और जब तुम मेरे हुक्म से मुर्दों को जि़न्दा (करके क़ब्रों से) निकाल खड़ा करते थे और जिस वक़्त तुम बनी इसराईल के पास मौजिज़े लेकर आए और उस वक़्त मैने उनको तुम (पर दस्त दराज़ी करने) से रोका तो उनमें से बाज़ कुफ़्फ़ार कहने लगे ये तो बस खुला हुआ जादू है (110)

वइज़ा समिऊ

وَإِذْ أَوْحَيْتُ إِلَى الْحَوَارِيِّينَ أَنْ آمِنُواْ بِي وَبِرَسُولِي قَالُوَاْ آمَنَّا وَاشْهَدْ بِأَنَّنَا مُسْلِمُونَ {111}

और जब मैने हवारियों से इलहाम किया कि मुझ पर और मेरे रसूल पर ईमान लाओ तो अर्ज़ करने लगे हम ईमान लाए और तू गवाह रहना कि हम तेरे फरमाबरदार बन्दे हैं (111) 

वइज़ा समिऊ

إِذْ قَالَ الْحَوَارِيُّونَ يَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ هَلْ يَسْتَطِيعُ رَبُّكَ أَن يُنَزِّلَ عَلَيْنَا مَآئِدَةً مِّنَ السَّمَاء قَالَ اتَّقُواْ اللّهَ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ {112}

(वह वक़्त याद करो) जब हवारियों ने ईसा से अर्ज़ की कि ऐ मरियम के बेटे ईसा क्या आप का ख़ुदा उस पर क़ादिर है कि हम पर आसमान से (नेअमत की) एक ख़्वान नाजि़ल फरमाए ईसा ने कहा अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो ख़ुदा से डरो (ऐसी फरमाइश जिसमें इम्तेहान मालूम हो न करो) (112)

वइज़ा समिऊ

قَالُواْ نُرِيدُ أَن نَّأْكُلَ مِنْهَا وَتَطْمَئِنَّ قُلُوبُنَا وَنَعْلَمَ أَن قَدْ صَدَقْتَنَا وَنَكُونَ عَلَيْهَا مِنَ الشَّاهِدِينَ {113}

वह अर्ज़ करने लगे हम तो फक़त ये चाहते है कि इसमें से (बरतकन) कुछ खाएँ और हमारे दिल को (आपकी रिसालत का पूरा पूरा) इत्मेनान हो जाए और यक़ीन कर लें कि आपने हमसे (जो कुछ कहा था) सच फरमाया था और हम लोग इस पर गवाह रहें (113) 

वइज़ा समिऊ

قَالَ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ اللَّهُمَّ رَبَّنَا أَنزِلْ عَلَيْنَا مَآئِدَةً مِّنَ السَّمَاء تَكُونُ لَنَا عِيداً لِّأَوَّلِنَا وَآخِرِنَا وَآيَةً مِّنكَ وَارْزُقْنَا وَأَنتَ خَيْرُ الرَّازِقِينَ {114}

(तब) मरियम के बेटे ईसा ने (बारगाहे ख़ुदा में) अर्ज़ की ख़ुदा वन्दा ऐ हमारे पालने वाले हम पर आसमान से एक ख्वान (नेअमत) नाजि़ल फरमा कि वह दिन हम लोगों के लिए हमारे अगलों के लिए और हमारे पिछलों के लिए ईद का करार पाए (और हमारे हक़ में) तेरी तरफ से एक बड़ी निशानी हो और तू हमें रोज़ी दे और तू सब रोज़ी देने वालो से बेहतर है (114) 

वइज़ा समिऊ

قَالَ اللّهُ إِنِّي مُنَزِّلُهَا عَلَيْكُمْ فَمَن يَكْفُرْ بَعْدُ مِنكُمْ فَإِنِّي أُعَذِّبُهُ عَذَابًا لاَّ أُعَذِّبُهُ أَحَدًا مِّنَ الْعَالَمِينَ {115}

खु़दा ने फरमाया मै ख्वान तो तुम पर ज़रुर नाजि़ल करुगाँ (मगर याद रहे कि) फिर तुममें से जो भी शख़्स उसके बाद काफि़र हुआ तो मै उसको यक़ीन ऐसे सख़्त अज़ाब की सज़ा दूँगा कि सारी ख़ुदायी में किसी एक पर भी वैसा (सख़्त) अज़ाब न करुगाँ (115) 

वइज़ा समिऊ

وَإِذْ قَالَ اللّهُ يَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ أَأَنتَ قُلتَ لِلنَّاسِ اتَّخِذُونِي وَأُمِّيَ إِلَـهَيْنِ مِن دُونِ اللّهِ قَالَ سُبْحَانَكَ مَا يَكُونُ لِي أَنْ أَقُولَ مَا لَيْسَ لِي بِحَقٍّ إِن كُنتُ قُلْتُهُ فَقَدْ عَلِمْتَهُ تَعْلَمُ مَا فِي نَفْسِي وَلاَ أَعْلَمُ مَا فِي نَفْسِكَ إِنَّكَ أَنتَ عَلاَّمُ الْغُيُوبِ {116}

और (वह वक़्त भी याद करो) जब क़यामत में ईसा से ख़ुदा फरमाएग कि (क्यों) ऐ मरियम के बेटे ईसा क्या तुमने लोगों से ये कह दिया था कि ख़ुदा को छोड़कर मुझ को और मेरी माँ को ख़ुदा बना लो ईसा अर्ज़ करेगें सुबहान अल्लाह मेरी तो ये मजाल न थी कि मै ऐसी बात मुँह से निकालूँ जिसका मुझे कोई हक़ न हो (अच्छा) अगर मैने कहा होगा तो तुझको ज़रुर मालूम ही होगा क्योंकि तू मेरे दिल की (सब बात) जानता है हाँ अलबत्ता मै तेरे जी की बात नहीं जानता (क्योंकि) इसमें तो शक ही नहीं कि तू ही ग़ैब की बातें ख़ूब जानता है (116)

वइज़ा समिऊ

مَا قُلْتُ لَهُمْ إِلاَّ مَا أَمَرْتَنِي بِهِ أَنِ اعْبُدُواْ اللّهَ رَبِّي وَرَبَّكُمْ وَكُنتُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا مَّا دُمْتُ فِيهِمْ فَلَمَّا تَوَفَّيْتَنِي كُنتَ أَنتَ الرَّقِيبَ عَلَيْهِمْ وَأَنتَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ {117}

तूने मुझे जो कुछ हुक्म दिया उसके सिवा तो मैने उनसे कुछ भी नहीं कहा यही कि ख़ुदा ही की इबादत करो जो मेरा और तुम्हारा सबका पालने वाला है और जब तक मैं उनमें रहा उन की देखभाल करता रहा फिर जब तूने मुझे (दुनिया से) उठा लिया तो तू ही उनका निगेहबान था और तू तो ख़ुद हर चीज़ का गवाह (मौजूद) है (117)

वइज़ा समिऊ

إِن تُعَذِّبْهُمْ فَإِنَّهُمْ عِبَادُكَ وَإِن تَغْفِرْ لَهُمْ فَإِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ {118}

तू अगर उन पर अज़ाब करेगा तो (तू मालिक है) ये तेरे बन्दे हैं और अगर उन्हें बख़्श देगा तो (कोई तेरा हाथ नहीं पकड़ सकता क्योंकि) बेशक तू ज़बरदस्त हिकमत वाला है (118)

वइज़ा समिऊ

قَالَ اللّهُ هَذَا يَوْمُ يَنفَعُ الصَّادِقِينَ صِدْقُهُمْ لَهُمْ جَنَّاتٌ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا رَّضِيَ اللّهُ عَنْهُمْ وَرَضُواْ عَنْهُ ذَلِكَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ {119}

ख़ुदा फरमाएगा कि ये वह दिन है कि सच्चे बन्दों को उनकी सच्चाई (आज) काम आएगी उनके लिए (हरे भरे बहिश्त के) वह बाग़ात है जिनके (दरख़्तो के) नीचे नहरे जारी हैं (और) वह उसमें अबादुल आबाद तक रहेंगे ख़ुदा उनसे राज़ी और वह ख़ुदा से खुश यही बहुत बड़ी कामयाबी है (119)

वइज़ा समिऊ

لِلّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَمَا فِيهِنَّ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ {120}

सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ उनमें है सब ख़ुदा ही की सल्तनत है और वह हर चीज़ पर क़ादिर (व तवाना) है (120)

वइज़ा समिऊ

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

(मै) उस ख़ुदा के नाम से शुरू करता हूँ जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है

वइज़ा समिऊ

الْحَمْدُ لِلّهِ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ وَجَعَلَ الظُّلُمَاتِ وَالنُّورَ ثُمَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ بِرَبِّهِم يَعْدِلُونَ {1}

सब तारीफ ख़ुदा ही को (सज़ावार) है जिसने वहुतेरे आसमान और ज़मीन को पैदा किया और उसमें मुख़्तलिफ कि़स्मों की तारीकी रोशनी बनाई फिर (बावजूद उसके) कुफ्फार (औरों को) अपने परवरदिगार के बराबर करते हैं (1)

वइज़ा समिऊ

هُوَ الَّذِي خَلَقَكُم مِّن طِينٍ ثُمَّ قَضَى أَجَلاً وَأَجَلٌ مُّسمًّى عِندَهُ ثُمَّ أَنتُمْ تَمْتَرُونَ {2}

वह तो वही ख़ुदा है जिसने तुमको मिट्टी से पैदा किया फिर (फिर तुम्हारे मरने का) एक वक़्त मुक़र्रर कर दिया और (अगरचे तुमको मालूम नहीं मगर) उसके नज़दीक (क़यामत) का वक़्त मुक़र्रर है फिर (यही) तुम शक करते हो (2)

वइज़ा समिऊ

وَهُوَ اللّهُ فِي السَّمَاوَاتِ وَفِي الأَرْضِ يَعْلَمُ سِرَّكُمْ وَجَهرَكُمْ وَيَعْلَمُ مَا تَكْسِبُونَ {3}

और वही तो आसमानों में (भी) और ज़मीन में (भी) ख़ुदा है वही तुम्हारे ज़ाहिर व बातिन से (भी) ख़बरदार है और वही जो कुछ भी तुम करते हो जानता है (3) 

वइज़ा समिऊ

وَمَا تَأْتِيهِم مِّنْ آيَةٍ مِّنْ آيَاتِ رَبِّهِمْ إِلاَّ كَانُواْ عَنْهَا مُعْرِضِينَ {4}

और उन (लोगों का) अजब हाल है कि उनके पास ख़ुदा की आयत में से जब कोई आयत आती तो बस ये लोग ज़रुर उससे मुँह फेर लेते थे (4)

वइज़ा समिऊ

فَقَدْ كَذَّبُواْ بِالْحَقِّ لَمَّا جَاءهُمْ فَسَوْفَ يَأْتِيهِمْ أَنبَاء مَا كَانُواْ بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ {5}

चुनान्चे जब उनके पास (क़ुरान बरहक़) आया तो उसको भी झुठलाया तो ये लोग जिसके साथ मसख़रापन कर रहे है उनकी हक़ीक़त उन्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगी (5)

वइज़ा समिऊ

أَلَمْ يَرَوْاْ كَمْ أَهْلَكْنَا مِن قَبْلِهِم مِّن قَرْنٍ مَّكَّنَّاهُمْ فِي الأَرْضِ مَا لَمْ نُمَكِّن لَّكُمْ وَأَرْسَلْنَا السَّمَاء عَلَيْهِم مِّدْرَارًا وَجَعَلْنَا الأَنْهَارَ تَجْرِي مِن تَحْتِهِمْ فَأَهْلَكْنَاهُم بِذُنُوبِهِمْ وَأَنْشَأْنَا مِن بَعْدِهِمْ قَرْنًا آخَرِينَ {6}

क्या उन्हें सूझता नहीं कि हमने उनसे पहले कितने गिरोह (के गिरोह) हलाक कर डाले जिनको हमने रुए ज़मीन मे वह (कू़वत) क़ुदरत अता की थी जो अभी तक तुमको नहीं दी और हमने आसमान तो उन पर मूसलाधार पानी बरसता छोड़ दिया था और उनके (मकानात के) नीचे बहती हुयी नहरें बना दी थी (मगर) फिर भी उनके गुनाहों की वजह से उनको मार डाला और उनके बाद एक दूसरे गिरोह को पैदा कर दिया (6)

वइज़ा समिऊ

وَلَوْ نَزَّلْنَا عَلَيْكَ كِتَابًا فِي قِرْطَاسٍ فَلَمَسُوهُ بِأَيْدِيهِمْ لَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُواْ إِنْ هَـذَا إِلاَّ سِحْرٌ مُّبِينٌ {7}

और (ऐ रसूल) अगर हम कागज़ पर (लिखी लिखाई) किताब (भी) तुम पर नाजि़ल करते और ये लोग उसे अपने हाथों से छू भी लेते फिर भी कुफ्फार (न मानते और) कहते कि ये तो बस खुला हुआ जादू है (7)

वइज़ा समिऊ

وَقَالُواْ لَوْلا أُنزِلَ عَلَيْهِ مَلَكٌ وَلَوْ أَنزَلْنَا مَلَكًا لَّقُضِيَ الأمْرُ ثُمَّ لاَ يُنظَرُونَ {8}

और (ये भी) कहते कि उस (नबी) पर कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं नाजि़ल किया गया (जो साथ साथ रहता) हालाँकि अगर हम फ़रिश्ता भेज देते तो (उनका) काम ही तमाम हो जाता (और) फिर उन्हें मोहलत भी न दी जाती (8)

वइज़ा समिऊ

وَلَوْ جَعَلْنَاهُ مَلَكًا لَّجَعَلْنَاهُ رَجُلاً وَلَلَبَسْنَا عَلَيْهِم مَّا يَلْبِسُونَ {9}

और अगर हम फ़रिश्ते को नबी बनाते तो (आखि़र) उसको भी मर्द सूरत बनाते और जो सुबहे ये लोग कर रहे हैं वही सुबहे (गोया) हम ख़ुद उन पर (उस वक़्त भी) उठा देते (9)

वइज़ा समिऊ

وَلَقَدِ اسْتُهْزِئَ بِرُسُلٍ مِّن قَبْلِكَ فَحَاقَ بِالَّذِينَ سَخِرُواْ مِنْهُم مَّا كَانُواْ بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ {10}

(ऐ रसूल तुम दिल तंग न हो) तुम से पहले (भी) पैग़म्बरों के साथ मसख़रापन किया गया है पस जो लोग मसख़रापन करते थे उनको उस अज़ाब ने जिसके ये लोग हॅसी उड़ाते थे घेर लिया (10)

वइज़ा समिऊ

قُلْ سِيرُواْ فِي الأَرْضِ ثُمَّ انظُرُواْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُكَذِّبِينَ {11}

(ऐ रसूल उनसे) कहो कि ज़रुर रुए ज़मीन पर चल फिर कर देखो तो कि (अम्बिया के) झुठलाने वालो का क्या (बुरा) अन्जाम हुआ (11)

वइज़ा समिऊ

قُل لِّمَن مَّا فِي السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ قُل لِلّهِ كَتَبَ عَلَى نَفْسِهِ الرَّحْمَةَ لَيَجْمَعَنَّكُمْ إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ لاَ رَيْبَ فِيهِ الَّذِينَ خَسِرُواْ أَنفُسَهُمْ فَهُمْ لاَ يُؤْمِنُونَ {12}

(ऐ रसूल उनसे) पूछो तो कि (भला) जो कुछ आसमान और ज़मीन में है किसका है (वह जवाब देगें) तुम ख़ुद कह दो कि ख़ास ख़ुदा का है उसने अपनी ज़ात पर मेहरबानी लाजि़म कर ली है वह तुम सब के सब को क़यामत के दिन जिसके आने मे कुछ शक नहीं ज़रुर जमा करेगा (मगर) जिन लोगों ने अपना आप नुक़सान किया वह तो (क़यामत पर) ईमान न लाएंगे (12)

वइज़ा समिऊ

وَلَهُ مَا سَكَنَ فِي اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ {13}

हालाँकि (ये नहीं समझते कि) जो कुछ रात को और दिन को (रुए ज़मीन पर) रहता (सहता) है (सब) ख़ास उसी का है और वही (सब की) सुनता (और सब कुछ) जानता है (13)

वइज़ा समिऊ

قُلْ أَغَيْرَ اللّهِ أَتَّخِذُ وَلِيًّا فَاطِرِ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَهُوَ يُطْعِمُ وَلاَ يُطْعَمُ قُلْ إِنِّيَ أُمِرْتُ أَنْ أَكُونَ أَوَّلَ مَنْ أَسْلَمَ وَلاَ تَكُونَنَّ مِنَ الْمُشْرِكَينَ {14}

ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या ख़ुदा को जो सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करने वाला है छोड़ कर दूसरे को (अपना) सरपरस्त बनाओ और वही (सब को) रोज़ी देता है और उसको कोई रोज़ी नहीं देता (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मुझे हुक्म दिया गया है कि सब से पहले इस्लाम लाने वाला मैं हूँ और (ये भी कि ख़बरदार) मुशरेकीन से न होना (14)

वइज़ा समिऊ

قُلْ إِنِّيَ أَخَافُ إِنْ عَصَيْتُ رَبِّي عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ {15}

(ऐ रसूल) तुम कहो कि अगर मैं नाफरमानी करुँ तो बेशक एक बड़े (सख़्त) दिल के अज़ाब से डरता हूँ (15)

वइज़ा समिऊ

مَّن يُصْرَفْ عَنْهُ يَوْمَئِذٍ فَقَدْ رَحِمَهُ وَذَلِكَ الْفَوْزُ الْمُبِينُ {16}

उस दिन जिस (के सर) से अज़ाब टल गया तो (समझो कि) ख़ुदा ने उस पर (बड़ा) रहम किया और यही तो सरीही कामयाबी है (16)

वइज़ा समिऊ

وَإِن يَمْسَسْكَ اللّهُ بِضُرٍّ فَلاَ كَاشِفَ لَهُ إِلاَّ هُوَ وَإِن يَمْسَسْكَ بِخَيْرٍ فَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدُيرٌ {17}

और अगर ख़ुदा तुम को किसी कि़स्म की तकलीफ पहुचाए तो उसके सिवा कोई उसका दफा करने वाला नहीं है और अगर तुम्हें कुछ फायदा) पहुॅचाए तो भी (कोई रोक नहीं सकता क्योंकि) वह हर चीज़ पर क़ादिर है (17)

वइज़ा समिऊ

وَهُوَ الْقَاهِرُ فَوْقَ عِبَادِهِ وَهُوَ الْحَكِيمُ الْخَبِيرُ {18}

वही अपने तमाम बन्दों पर ग़ालिब है और वह वाकि़फकार हकीम है (18)

वइज़ा समिऊ

قُلْ أَيُّ شَيْءٍ أَكْبَرُ شَهَادةً قُلِ اللّهِ شَهِيدٌ بِيْنِي وَبَيْنَكُمْ وَأُوحِيَ إِلَيَّ هَذَا الْقُرْآنُ لأُنذِرَكُم بِهِ وَمَن بَلَغَ أَئِنَّكُمْ لَتَشْهَدُونَ أَنَّ مَعَ اللّهِ آلِهَةً أُخْرَى قُل لاَّ أَشْهَدُ قُلْ إِنَّمَا هُوَ إِلَـهٌ وَاحِدٌ وَإِنَّنِي بَرِيءٌ مِّمَّا تُشْرِكُونَ {19}

(ऐ रसूल) तुम पूछो कि गवाही में सबसे बढ़के कौन चीज़ है तुम खुद ही कह दो कि मेरे और तुम्हारे दरम्यिान ख़ुदा गवाह है और मेरे पास ये क़ुरान वही के तौर पर इसलिए नाजि़ल किया गया ताकि मैं तुम्हें और जिसे (उसकी) ख़बर पहुँचे उसके ज़रिए से डराओ क्या तुम यक़ीनन यह गवाही दे सकते हो कि अल्लाह के साथ और दूसरे माबूद भी हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मै तो उसकी गवाही नहीं देता (तुम दिया करो) तुम (उन लोगों से) कहो कि वह तो बस एक ही ख़ुदा है और जिन चीज़ों को तुम (ख़ुदा का) शरीक बनाते हो (19)

वइज़ा समिऊ

الَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يَعْرِفُونَهُ كَمَا يَعْرِفُونَ أَبْنَاءهُمُ الَّذِينَ خَسِرُواْ أَنفُسَهُمْ فَهُمْ لاَ يُؤْمِنُونَ {20}

मै तो उनसे बेज़र हूँ जिन लोगों को हमने किताब अता फरमाई है (यहूद व नसारा) वह तो जिस तरह अपने बाल बच्चों को पहचानते है उसी तरह उस नबी (मोहम्मद) को भी पहचानते हैं (मगर) जिन लोगों ने अपना आप नुक़सान किया वह तो (किसी तरह) इमान न लाएगें (20)

वइज़ा समिऊ

وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرَى عَلَى اللّهِ كَذِبًا أَوْ كَذَّبَ بِآيَاتِهِ إِنَّهُ لاَ يُفْلِحُ الظَّالِمُونَ {21}

और जो शख्स़ ख़ुदा पर झूठ बोहतान बाधें या उसकी आयतों को झुठलाए उससे बढ़के ज़ालिम कौन होगा और ज़ालिमों को हरगिज़ नजात न होगी (21)

वइज़ा समिऊ

وَيَوْمَ نَحْشُرُهُمْ جَمِيعًا ثُمَّ نَقُولُ لِلَّذِينَ أَشْرَكُواْ أَيْنَ شُرَكَآؤُكُمُ الَّذِينَ كُنتُمْ تَزْعُمُونَ {22}

और (उस दिन को याद करो) जिस दिन हम उन सबको जमा करेंगे फिर जिन लोगों ने शिर्क किया उनसे पूछेगें कि जिनको तुम (ख़ुदा का) शरीक ख़्याल करते थे कहाँ हैं (22)

वइज़ा समिऊ

ثُمَّ لَمْ تَكُن فِتْنَتُهُمْ إِلاَّ أَن قَالُواْ وَاللّهِ رَبِّنَا مَا كُنَّا مُشْرِكِينَ {23}

फिर उनकी कोई शरारत (बाक़ी) न रहेगी बल्कि वह तो ये कहेगें क़सम है उस ख़ुदा की जो हमारा पालने वाला है हम किसी को उसका शरीक नहीं बनाते थे (23)

वइज़ा समिऊ

انظُرْ كَيْفَ كَذَبُواْ عَلَى أَنفُسِهِمْ وَضَلَّ عَنْهُم مَّا كَانُواْ يَفْتَرُونَ {24}

(ऐ रसूल भला) देखो तो ये लोग अपने ही ऊपर आप किस तरह झूठ बोलने लगे और ये लोग (दुनिया में) जो कुछ इफ़तेरा परदाज़ी (झूठी बातें) करते थे (24)

वइज़ा समिऊ

وَمِنْهُم مَّن يَسْتَمِعُ إِلَيْكَ وَجَعَلْنَا عَلَى قُلُوبِهِمْ أَكِنَّةً أَن يَفْقَهُوهُ وَفِي آذَانِهِمْ وَقْرًا وَإِن يَرَوْاْ كُلَّ آيَةٍ لاَّ يُؤْمِنُواْ بِهَا حَتَّى إِذَا جَآؤُوكَ يُجَادِلُونَكَ يَقُولُ الَّذِينَ كَفَرُواْ إِنْ هَذَا إِلاَّ أَسَاطِيرُ الأَوَّلِينَ {25}

वह सब ग़ायब हो गयी और बाज़ उनमें के ऐसे भी हैं जो तुम्हारी (बातों की) तरफ कान लगाए रहते हैं और (उनकी हठ धर्मी इस हद को पहुँची है कि गोया हमने ख़ुद उनके दिलों पर परदे डाल दिए हैं और उनके कानों में बहरापन पैदा कर दिया है कि उसे समझ न सकें और अगर वह सारी (ख़़ुदाई के) मौजिज़े भी देखे लें तब भी ईमान न लाएगें यहाँ तक (हठ धर्मी पहुची) कि जब तुम्हारे पास तुम से उलझे हुए आ निकलते हैं तो कुफ़्फ़ार (क़़ुरान लेकर) कहा बैठे है (कि भला इसमें रखा ही क्या है) ये तो अगलों की कहानियों के सिवा कुछ भी नहीं (25)

वइज़ा समिऊ

وَهُمْ يَنْهَوْنَ عَنْهُ وَيَنْأَوْنَ عَنْهُ وَإِن يُهْلِكُونَ إِلاَّ أَنفُسَهُمْ وَمَا يَشْعُرُونَ {26}

और ये लोग (दूसरों को भी) उस के (सुनने से) से रोकते हैं और ख़ुद तो अलग थलग रहते ही हैं और (इन बातों से) बस आप ही अपने को हलाक करते हैं और (अफसोस) समझते नहीं (26) 

वइज़ा समिऊ

وَلَوْ تَرَىَ إِذْ وُقِفُواْ عَلَى النَّارِ فَقَالُواْ يَا لَيْتَنَا نُرَدُّ وَلاَ نُكَذِّبَ بِآيَاتِ رَبِّنَا وَنَكُونَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ {27}

(ऐ रसूल) अगर तुम उन लोगों को उस वक़्त देखते (तो ताज्जुब करते) जब जहन्नुम (के किनारे) पर लाकर खड़े किए जाओगे तो (उसे देखकर) कहेगें ऐ काश हम (दुनिया में) फिर (दुबारा) लौटा भी दिए जाते और अपने परवरदिगार की आयतों को न झुठलाते और हम मोमिनीन से होते (मगर उनकी आरज़ू पूरी न होगी) (27)

वइज़ा समिऊ

بَلْ بَدَا لَهُم مَّا كَانُواْ يُخْفُونَ مِن قَبْلُ وَلَوْ رُدُّواْ لَعَادُواْ لِمَا نُهُواْ عَنْهُ وَإِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ {28}

बल्कि जो (बेइमानी) पहले से छिपाते थे आज (उसकी हक़ीक़त) उन पर खुल गयी और (हम जानते हैं कि) अगर ये लोग (दुनिया में) लौटा भी दिए जाए तो भी जिस चीज़ की मनाही की गयी है उसे करें और ज़रुर करें और इसमें शक नहीं कि ये लोग ज़रुर झूठे हैं (28)

वइज़ा समिऊ

وَقَالُواْ إِنْ هِيَ إِلاَّ حَيَاتُنَا الدُّنْيَا وَمَا نَحْنُ بِمَبْعُوثِينَ {29}

और कुफ्फार ये भी तो कहते हैं कि हमारी इस दुनिया जि़न्दगी के सिवा कुछ भी नहीं और (क़यामत वग़ैरह सब ढकोसला है) हम (मरने के बाद) भी उठाए ही न जायेंगे (29) 

वइज़ा समिऊ

وَلَوْ تَرَى إِذْ وُقِفُواْ عَلَى رَبِّهِمْ قَالَ أَلَيْسَ هَذَا بِالْحَقِّ قَالُواْ بَلَى وَرَبِّنَا قَالَ فَذُوقُواْ العَذَابَ بِمَا كُنتُمْ تَكْفُرُونَ {30}

और (ऐ रसूल) अगर तुम उनको उस वक़्त देखते (तो ताज्जुब करते) जब वे लोग ख़ुदा के सामने खड़े किए जाएगें और ख़ुदा उनसे पूछेगा कि क्या ये (क़यामत का दिन) अब भी सही नहीं है वह (जवाब में) कहेगें कि (दुनिया में) इससे इन्कार करते थे (30) 

वइज़ा समिऊ

قَدْ خَسِرَ الَّذِينَ كَذَّبُواْ بِلِقَاء اللّهِ حَتَّى إِذَا جَاءتْهُمُ السَّاعَةُ بَغْتَةً قَالُواْ يَا حَسْرَتَنَا عَلَى مَا فَرَّطْنَا فِيهَا وَهُمْ يَحْمِلُونَ أَوْزَارَهُمْ عَلَى ظُهُورِهِمْ أَلاَ سَاء مَا يَزِرُونَ {31}

उसकी सज़ा में अज़ाब (के मजे़) चखो बेशक जिन लोगों ने क़यामत के दिन ख़़ुदा की हुज़ूरी को झुठलाया वह बड़े घाटे में हैं यहाँ तक कि जब उनके सर पर क़यामत नागहा (एक दम आ) पहँचेगी तो कहने लगेगें ऐ है अफसोस हम ने तो इसमें बड़ी कोताही की (ये कहते जाएगे) और अपने गुनाहों का पुश्तारा अपनी अपनी पीठ पर लादते जाएगे देखो तो (ये) क्या बुरा बोझ है जिसको ये लादे (लादे फिर रहे) हैं (31)

वइज़ा समिऊ

وَمَا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا إِلاَّ لَعِبٌ وَلَهْوٌ وَلَلدَّارُ الآخِرَةُ خَيْرٌ لِّلَّذِينَ يَتَّقُونَ أَفَلاَ تَعْقِلُونَ {32}

और (ये) दुनियावी जि़न्दगी तो खेल तमाशे के सिवा कुछ भी नहीं और ये तो ज़ाहिर है कि आखि़रत का घर (बेहिश्त) परहेज़गारो के लिए उसके बदर व (कई गुना) बेहतर है तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते (32) 

वइज़ा समिऊ

قَدْ نَعْلَمُ إِنَّهُ لَيَحْزُنُكَ الَّذِي يَقُولُونَ فَإِنَّهُمْ لاَ يُكَذِّبُونَكَ وَلَكِنَّ الظَّالِمِينَ بِآيَاتِ اللّهِ يَجْحَدُونَ {33}

हम खूब जानते हैं कि उन लोगों की बकबक तुम को सदमा पहुँचाती है तो (तुम को समझना चाहिए कि) ये लोग तुम को नहीं झुठलाते बल्कि (ये) ज़ालिम (हक़ीक़तन) ख़ुदा की आयतों से इन्कार करते हैं (33) 

वइज़ा समिऊ

وَلَقَدْ كُذِّبَتْ رُسُلٌ مِّن قَبْلِكَ فَصَبَرُواْ عَلَى مَا كُذِّبُواْ وَأُوذُواْ حَتَّى أَتَاهُمْ نَصْرُنَا وَلاَ مُبَدِّلَ لِكَلِمَاتِ اللّهِ وَلَقدْ جَاءكَ مِن نَّبَإِ الْمُرْسَلِينَ {34}

और (कुछ तुम ही पर नहीं) तुमसे पहले भी बहुतेरे रसूल झुठलाए जा चुके हैं तो उन्होनें अपने झुठलाए जाने और अज़ीयत (व तकलीफ) पर सब्र किया यहाँ तक कि हमारी मदद उनके पास आयी और (क्यों न आती) ख़ुदा की बातों का कोई बदलने वाला नहीं है और पैग़म्बर के हालात तो तुम्हारे पास पहुँच ही चुके हैं (34)

वइज़ा समिऊ

وَإِن كَانَ كَبُرَ عَلَيْكَ إِعْرَاضُهُمْ فَإِنِ اسْتَطَعْتَ أَن تَبْتَغِيَ نَفَقًا فِي الأَرْضِ أَوْ سُلَّمًا فِي السَّمَاء فَتَأْتِيَهُم بِآيَةٍ وَلَوْ شَاء اللّهُ لَجَمَعَهُمْ عَلَى الْهُدَى فَلاَ تَكُونَنَّ مِنَ الْجَاهِلِينَ {35}

अगरचे उन लोगों की रदगिरदानी (मुँह फेरना) तुम पर याक ज़रुर है (लेकिन) अगर तुम्हारा बस चले तो ज़मीन के अन्दर कोई सुरगं ढूढ निकालो या आसमान में सीढ़ी लगाओ और उन्हें कोई मौजिज़ा ला दिखाओ (तो ये भी कर देखो) अगर ख़ुदा चाहता तो उन सब को राहे रास्त पर इकट्ठा कर देता (मगर वह तो इम्तिहान करता है) बस (देखो) तुम हरगिज़ ज़ालिमों में (शामिल) न होना (35) 

वइज़ा समिऊ

إِنَّمَا يَسْتَجِيبُ الَّذِينَ يَسْمَعُونَ وَالْمَوْتَى يَبْعَثُهُمُ اللّهُ ثُمَّ إِلَيْهِ يُرْجَعُونَ {36}

(तुम्हारा कहना तो) सिर्फ वही लोग मानते हैं जो (दिल से) सुनते हैं और मुर्दो को तो ख़ुदा क़यामत ही में उठाएगा फिर उसी की तरफ लौटाए जाएगें (36)

वइज़ा समिऊ

وَقَالُواْ لَوْلاَ نُزِّلَ عَلَيْهِ آيَةٌ مِّن رَّبِّهِ قُلْ إِنَّ اللّهَ قَادِرٌ عَلَى أَن يُنَزِّلٍ آيَةً وَلَـكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لاَ يَعْلَمُونَ {37}

और कुफ़्फ़ार कहते हैं कि (आखि़र) उस नबी पर उसके परवरदिगार की तरफ से कोई मौजिज़ा क्यों नहीं नाजि़ल होता तो तुम (उनसे) कह दो कि ख़ुदा मौजिज़े के नाजि़ल करने पर ज़रुर क़ादिर है मगर उनमें के अक्सर लोग (ख़ुदा की मसलहतों को) नहीं जानते (37)

वइज़ा समिऊ

وَمَا مِن دَآبَّةٍ فِي الأَرْضِ وَلاَ طَائِرٍ يَطِيرُ بِجَنَاحَيْهِ إِلاَّ أُمَمٌ أَمْثَالُكُم مَّا فَرَّطْنَا فِي الكِتَابِ مِن شَيْءٍ ثُمَّ إِلَى رَبِّهِمْ يُحْشَرُونَ {38}

ज़मीन में जो चलने फिरने वाला (हैवान) या अपने दोनों परों से उड़ने वाला परिन्दा है उनकी भी तुम्हारी तरह जमाअतें हैं और सब के सब लौह महफूज़ में मौजूद (हैं) हमने किताब (क़ुरान) में कोई बात नहीं छोड़ी है फिर सब के सब (चरिन्द हों या परिन्द) अपने परवरदिगार के हुज़ूर में लाए जायेंगे। (38)

वइज़ा समिऊ

وَالَّذِينَ كَذَّبُواْ بِآيَاتِنَا صُمٌّ وَبُكْمٌ فِي الظُّلُمَاتِ مَن يَشَإِ اللّهُ يُضْلِلْهُ وَمَن يَشَأْ يَجْعَلْهُ عَلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ {39}

और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठला दिया गोया वह (कुफ्र के घटाटोप) अॅधेरों में गुगें बहरे (पड़े हैं) ख़़ुदा जिसे चाहे उसे गुमराही में छोड़ दे और जिसे चाहे उसे सीधे ढर्रे पर लगा दे (39) 

वइज़ा समिऊ

قُلْ أَرَأَيْتُكُم إِنْ أَتَاكُمْ عَذَابُ اللّهِ أَوْ أَتَتْكُمُ السَّاعَةُ أَغَيْرَ اللّهِ تَدْعُونَ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ {40}

(ऐ रसूल उनसे) पूछो तो कि क्या तुम यह समझते हो कि अगर तुम्हारे सामने ख़ुदा का अज़ाब आ जाए या तुम्हारे सामने क़यामत ही आ खड़ी मौजूद हो तो तुम अगर (अपने दावे में) सच्चे हो तो (बताओ कि मदद के वास्ते) क्या ख़ुद़ा को छोड़कर दूसरे को पुकारोगे (40)

वइज़ा समिऊ

بَلْ إِيَّاهُ تَدْعُونَ فَيَكْشِفُ مَا تَدْعُونَ إِلَيْهِ إِنْ شَاء وَتَنسَوْنَ مَا تُشْرِكُونَ {41}

(दूसरों को तो क्या) बल्कि उसी को पुकारोगे फिर अगर वह चाहेगा तो जिस के वास्ते तुमने उसको पुकारा है उसे दफा कर देगा और (उस वक़्त) तुम दूसरे माबूदों को जिन्हे तुम (ख़ुदा का) शरीक समझते थे भूल जाओगे (41)

वइज़ा समिऊ

وَلَقَدْ أَرْسَلنَا إِلَى أُمَمٍ مِّن قَبْلِكَ فَأَخَذْنَاهُمْ بِالْبَأْسَاء وَالضَّرَّاء لَعَلَّهُمْ يَتَضَرَّعُونَ {42}

और (ऐ रसूल) जो उम्मतें तुमसे पहले गुज़र चुकी हैं हम उनके पास भी बहुतेरे रसूल भेज चुके हैं फिर (जब नाफ़रमानी की) तो हमने उनको सख़्ती (42)

वइज़ा समिऊ

فَلَوْلا إِذْ جَاءهُمْ بَأْسُنَا تَضَرَّعُواْ وَلَـكِن قَسَتْ قُلُوبُهُمْ وَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطَانُ مَا كَانُواْ يَعْمَلُونَ {43}

और तकलीफ़ में गिरफ़्तार किया ताकि वह लोग (हमारी बारगाह में) गिड़गिड़ाए तो जब उन (के सर) पर हमारा अज़ाब आ खड़ा हुआ तो वह लोग क्यों नहीं गिड़गिड़ाए (कि हम अज़ाब दफा कर देते) मगर उनके दिल तो सख़्त हो गए थे ओर उनकी कारस्तानियों को शैतान ने आरास्ता कर दिखाया था (फिर क्योंकर गिड़गिड़ाते) (43)

वइज़ा समिऊ

فَلَمَّا نَسُواْ مَا ذُكِّرُواْ بِهِ فَتَحْنَا عَلَيْهِمْ أَبْوَابَ كُلِّ شَيْءٍ حَتَّى إِذَا فَرِحُواْ بِمَا أُوتُواْ أَخَذْنَاهُم بَغْتَةً فَإِذَا هُم مُّبْلِسُونَ {44}

फिर जिसकी उन्हें नसीहत की गयी थी जब उसको भूल गए तो हमने उन पर (ढील देने के लिए) हर तरह की (दुनियावी) नेअमतों के दरवाज़े खोल दिए यहाँ तक कि जो नेअमते उनको दी गयी थी जब उनको पाकर ख़ुश हुए तो हमने उन्हें नागाहाँ (एक दम) ले डाला तो उस वक़्त वह नाउम्मीद होकर रह गए (44)

वइज़ा समिऊ

فَقُطِعَ دَابِرُ الْقَوْمِ الَّذِينَ ظَلَمُواْ وَالْحَمْدُ لِلّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ {45}

फिर ज़ालिम लोगों की जड़ काट दी गयी और सारे जहाँन के मालिक ख़ुदा का शुक्र है (45)

वइज़ा समिऊ

قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ أَخَذَ اللّهُ سَمْعَكُمْ وَأَبْصَارَكُمْ وَخَتَمَ عَلَى قُلُوبِكُم مَّنْ إِلَـهٌ غَيْرُ اللّهِ يَأْتِيكُم بِهِ انظُرْ كَيْفَ نُصَرِّفُ الآيَاتِ ثُمَّ هُمْ يَصْدِفُونَ {46}

(कि कि़स्सा पाक हुआ) (ऐ रसूल) उनसे पूछो तो कि क्या तुम ये समझते हो कि अगर ख़ुदा तुम्हारे कान और तुम्हारी आँखे लें ले और तुम्हारे दिलों पर मोहर कर दे तो ख़ुदा के सिवा और कौन मौजूद है जो (फिर) तुम्हें ये नेअमतें (वापस) दे (ऐ रसूल) देखो तो हम किस किस तरह अपनी दलीले बयान करते हैं इस पर भी वह लोग मुँह मोडे़ जाते हैं (46)

वइज़ा समिऊ

قُلْ أَرَأَيْتَكُمْ إِنْ أَتَاكُمْ عَذَابُ اللّهِ بَغْتَةً أَوْ جَهْرَةً هَلْ يُهْلَكُ إِلاَّ الْقَوْمُ الظَّالِمُونَ {47}

(ऐ रसूल) उनसे पूछो कि क्या तुम ये समझते हो कि अगर तुम्हारे सर पर ख़ुदा का अज़ाब बेख़बरी में या जानकारी में आ जाए तो क्या गुनाहगारों के सिवा और लोग भी हलाक़ किए जाएगें (हरगिज़ नहीं) (47)

वइज़ा समिऊ

وَمَا نُرْسِلُ الْمُرْسَلِينَ إِلاَّ مُبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَ فَمَنْ آمَنَ وَأَصْلَحَ فَلاَ خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلاَ هُمْ يَحْزَنُونَ {48}

और हम तो रसूलों को सिर्फ इस ग़रज़ से भेजते हैं कि (नेको को जन्नत की) खुशख़बरी दें और (बदो को अज़ाबे जहन्नुम से) डराए फिर जिसने इमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए तो ऐसे लोगों पर (क़यामत में) न कोई ख़ौफ होगा और न वह ग़मग़ीन होगें (48)

वइज़ा समिऊ

وَالَّذِينَ كَذَّبُواْ بِآيَاتِنَا يَمَسُّهُمُ الْعَذَابُ بِمَا كَانُواْ يَفْسُقُونَ {49}

और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया तो चूकि बदकारी करते थे (हमारा) अज़ाब उनको पलट जाएगा (49)

वइज़ा समिऊ

قُل لاَّ أَقُولُ لَكُمْ عِندِي خَزَآئِنُ اللّهِ وَلا أَعْلَمُ الْغَيْبَ وَلا أَقُولُ لَكُمْ إِنِّي مَلَكٌ إِنْ أَتَّبِعُ إِلاَّ مَا يُوحَى إِلَيَّ قُلْ هَلْ يَسْتَوِي الأَعْمَى وَالْبَصِيرُ أَفَلاَ تَتَفَكَّرُونَ {50}

(ऐ रसूल) उनसे कह दो कि मै तो ये नहीं कहता कि मेरे पास ख़ुदा के ख़ज़ाने हैं (कि इमान लाने पर दे दूगा) और न मै गै़ब के (कुल हालात) जानता हूँ और न मै तुमसे ये कहता हूँ कि मै फ़रिश्ता हूँ मै तो बस जो (ख़ुदा की तरफ से) मेरे पास वही की जाती है उसी का पाबन्द हूँ (उनसे पूछो तो) कि अन्धा और आँख वाला बराबर हो सकता है तो क्या तुम (इतना भी) नहीं सोचते (50)

वइज़ा समिऊ

وَأَنذِرْ بِهِ الَّذِينَ يَخَافُونَ أَن يُحْشَرُواْ إِلَى رَبِّهِمْ لَيْسَ لَهُم مِّن دُونِهِ وَلِيٌّ وَلاَ شَفِيعٌ لَّعَلَّهُمْ يَتَّقُونَ {51}

और इस क़ुरान के ज़रिए से तुम उन लोगों को डराओ जो इस बात का ख़ौफ रखते हैं कि वह (मरने के बाद) अपने ख़़ुदा के सामने जमा किये जायेंगे (और यह समझते है कि) उनका ख़ुदा के सिवा न कोई सरपरस्त हे और न कोई सिफारिश करने वाला ताकि ये लोग परहेज़गार बन जाए (51)

वइज़ा समिऊ

وَلاَ تَطْرُدِ الَّذِينَ يَدْعُونَ رَبَّهُم بِالْغَدَاةِ وَالْعَشِيِّ يُرِيدُونَ وَجْهَهُ مَا عَلَيْكَ مِنْ حِسَابِهِم مِّن شَيْءٍ وَمَا مِنْ حِسَابِكَ عَلَيْهِم مِّن شَيْءٍ فَتَطْرُدَهُمْ فَتَكُونَ مِنَ الظَّالِمِينَ {52}

और (ऐ रसूल) जो लोग सुबह व शाम अपने परवरदिगार से उसकी ख़़ुशनूदी की तमन्ना में दुआएं माँगा करते हैं- उनको अपने पास से न धुत्कारो-न उनके (हिसाब किताब की) जवाब देही कुछ उनके जि़म्मे है ताकि तुम उन्हें (इस ख़्याल से) धुत्कार बताओ तो तुम ज़ालिम (के शुमार) में हो जाओगे (52)

वइज़ा समिऊ

وَكَذَلِكَ فَتَنَّا بَعْضَهُم بِبَعْضٍ لِّيَقُولواْ أَهَـؤُلاء مَنَّ اللّهُ عَلَيْهِم مِّن بَيْنِنَا أَلَيْسَ اللّهُ بِأَعْلَمَ بِالشَّاكِرِينَ {53}

और इसी तरह हमने बाज़ आदमियों को बाज़ से आज़माया ताकि वह लोग कहें कि हाए क्या ये लोग हममें से हैं जिन पर ख़़ुदा ने अपना फ़जल व करम किया है (यह तो समझते की) क्या ख़ुदा शुक्र गुज़ारों को भी नही जानता (53)

वइज़ा समिऊ

وَإِذَا جَاءكَ الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِآيَاتِنَا فَقُلْ سَلاَمٌ عَلَيْكُمْ كَتَبَ رَبُّكُمْ عَلَى نَفْسِهِ الرَّحْمَةَ أَنَّهُ مَن عَمِلَ مِنكُمْ سُوءًا بِجَهَالَةٍ ثُمَّ تَابَ مِن بَعْدِهِ وَأَصْلَحَ فَأَنَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ {54}

और जो लोग हमारी आयतों पर ईमान लाए हैं तुम्हारे पास आँए तो तुम सलामुन अलैकुम (तुम पर ख़़ुदा की सलामती हो) कहो तुम्हारे परवरदिगार ने अपने ऊपर रहमत लाजि़म कर ली है बेशक तुम में से जो शख्स़ नादानी से कोई गुनाह कर बैठे उसके बाद फिर तौबा करे और अपनी हालत की (असलाह करे ख़ुदा उसका गुनाह बख़्श देगा क्योंकि) वह यक़ीनी बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (54)

वइज़ा समिऊ

وَكَذَلِكَ نفَصِّلُ الآيَاتِ وَلِتَسْتَبِينَ سَبِيلُ الْمُجْرِمِينَ {55}

और हम (अपनी) आयतों को यू तफ़सील से बयान करते हैं ताकि गुनाहगारों की राह (सब पर) खुल जाए और वह इस पर न चले (55)

वइज़ा समिऊ

قُلْ إِنِّي نُهِيتُ أَنْ أَعْبُدَ الَّذِينَ تَدْعُونَ مِن دُونِ اللّهِ قُل لاَّ أَتَّبِعُ أَهْوَاءكُمْ قَدْ ضَلَلْتُ إِذًا وَمَا أَنَاْ مِنَ الْمُهْتَدِينَ {56}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मुझसे उसकी मनाही की गई है कि मैं ख़ुदा को छोड़कर उन माबूदों की इबादत करुं जिन को तुम पूजा करते हो (ये भी) कह दो कि मै तो तुम्हारी (नफसानी) ख़्वाहिश पर चलने का नहीं (वरना) फिर तो मै गुमराह हो जाऊॅगा और हिदायत याफता लोगों में न रहूँगा (56)

वइज़ा समिऊ

قُلْ إِنِّي عَلَى بَيِّنَةٍ مِّن رَّبِّي وَكَذَّبْتُم بِهِ مَا عِندِي مَا تَسْتَعْجِلُونَ بِهِ إِنِ الْحُكْمُ إِلاَّ لِلّهِ يَقُصُّ الْحَقَّ وَهُوَ خَيْرُ الْفَاصِلِينَ {57}

तुम कह दो कि मै तो अपने परवरदिगार की तरफ से एक रौशन दलील पर हूँ और तुमने उसे झुठला दिया (तो) तुम जिस की जल्दी करते हो (अज़ाब) वह कुछ मेरे पास (एख़्तियार में) तो है नहीं हुकूमत तो बस ज़रुर ख़़ुदा ही के लिए है वह तो (हक़) बयान करता है और वह तमाम फैसला करने वालों से बेहतर है (57)

वइज़ा समिऊ

قُل لَّوْ أَنَّ عِندِي مَا تَسْتَعْجِلُونَ بِهِ لَقُضِيَ الأَمْرُ بَيْنِي وَبَيْنَكُمْ وَاللّهُ أَعْلَمُ بِالظَّالِمِينَ {58}

(उन लोगों से) कह दो कि जिस (अज़ाब) की तुम जल्दी करते हो अगर वह मेरे पास (एख़्तियार में) होता तो मेरे और तुम्हारे दरम्यिान का फैसला कब का चुक गया होता और ख़ुदा तो ज़ालिमों से खूब वाकि़फ है (58)

वइज़ा समिऊ

وَعِندَهُ مَفَاتِحُ الْغَيْبِ لاَ يَعْلَمُهَا إِلاَّ هُوَ وَيَعْلَمُ مَا فِي الْبَرِّ وَالْبَحْرِ وَمَا تَسْقُطُ مِن وَرَقَةٍ إِلاَّ يَعْلَمُهَا وَلاَ حَبَّةٍ فِي ظُلُمَاتِ الأَرْضِ وَلاَ رَطْبٍ وَلاَ يَابِسٍ إِلاَّ فِي كِتَابٍ مُّبِينٍ {59}

और उसके पास ग़ैब की कुन्जिया हैं जिनको उसके सिवा कोई नही जानता और जो कुछ खुश्की और तरी में है उसको (भी) वही जानता है और कोई पत्ता भी नहीं खटकता मगर वह उसे ज़रुर जानता है और ज़मीन की तारिकि़यों में कोई दाना और न कोई ख़ुश्क चीज़ है मगर वह नूरानी किताब (लौहे महफूज़) में मौजूद है (59)

वइज़ा समिऊ

وَهُوَ الَّذِي يَتَوَفَّاكُم بِاللَّيْلِ وَيَعْلَمُ مَا جَرَحْتُم بِالنَّهَارِ ثُمَّ يَبْعَثُكُمْ فِيهِ لِيُقْضَى أَجَلٌ مُّسَمًّى ثُمَّ إِلَيْهِ مَرْجِعُكُمْ ثُمَّ يُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ {60}

वह वही (ख़ुदा) है जो तुम्हें रात को (नींद में एक तरह पर दुनिया से) उठा लेता हे और जो कुछ तूने दिन को किया है जानता है फिर तुम्हें दिन को उठा कर खड़ा करता है ताकि (जि़न्दगी की) (वह) मियाद जो (उसके इल्म में) मुअय्युन है पूरी की जाए फिर (तो आखि़र) तुम सबको उसी की तरफ लौटना है फिर जो कुछ तुम (दुनिया में भला बुरा) करते हो तुम्हें बता देगा (60)

वइज़ा समिऊ

وَهُوَ الْقَاهِرُ فَوْقَ عِبَادِهِ وَيُرْسِلُ عَلَيْكُم حَفَظَةً حَتَّىَ إِذَا جَاء أَحَدَكُمُ الْمَوْتُ تَوَفَّتْهُ رُسُلُنَا وَهُمْ لاَ يُفَرِّطُونَ {61}

वह अपने बन्दों पर ग़ालिब है वह तुम लोगों पर निगेहबान (फ़रिश्ते तैनात करके) भेजता है-यहाँ तक कि जब तुम में से किसी की मौत आए तो हमारे भेजे हुये फ़रिश्ते उसको (दुनिया से) उठा लेते हैं और वह (हमारे तामीले हुक्म में ज़रा भी) कोताही नहीं करते (61)

वइज़ा समिऊ

ثُمَّ رُدُّواْ إِلَى اللّهِ مَوْلاَهُمُ الْحَقِّ أَلاَ لَهُ الْحُكْمُ وَهُوَ أَسْرَعُ الْحَاسِبِينَ {62}

फिर ये लोग अपने सच्चे मालिक ख़़ुदा के पास वापस बुलाए गए-आगाह रहो कि हुक़ूमत ख़ास उसी के लिए है और वह सबसे ज़्यादा हिसाब लेने वाला है (62)

वइज़ा समिऊ

قُلْ مَن يُنَجِّيكُم مِّن ظُلُمَاتِ الْبَرِّ وَالْبَحْرِ تَدْعُونَهُ تَضَرُّعاً وَخُفْيَةً لَّئِنْ أَنجَانَا مِنْ هَـذِهِ لَنَكُونَنَّ مِنَ الشَّاكِرِينَ {63}

(ऐ रसूल) उनसे पूछो कि तुम खुश्की और तरी के (घटाटोप) अॅधेरों से कौन छुटकारा देता है जिससे तुम गिड़ गिड़ाकर और (चुपके) दुआए माँगते हो कि अगर वह हमें (अब की दफ़ा) उस (बला) से छुटकारा दे तो हम ज़रुर उसके शुक्र गुज़ार (बन्दे होकर) रहेगें (63)

वइज़ा समिऊ

قُلِ اللّهُ يُنَجِّيكُم مِّنْهَا وَمِن كُلِّ كَرْبٍ ثُمَّ أَنتُمْ تُشْرِكُونَ {64}

तुम कहो उन (मुसीबतों) से और हर बला में ख़़ुदा तुम्हें नजात देता है (मगर अफसोस) उस पर भी तुम शिर्क करते ही जाते हो (64)

वइज़ा समिऊ

قُلْ هُوَ الْقَادِرُ عَلَى أَن يَبْعَثَ عَلَيْكُمْ عَذَابًا مِّن فَوْقِكُمْ أَوْ مِن تَحْتِ أَرْجُلِكُمْ أَوْ يَلْبِسَكُمْ شِيَعاً وَيُذِيقَ بَعْضَكُم بَأْسَ بَعْضٍ انظُرْ كَيْفَ نُصَرِّفُ الآيَاتِ لَعَلَّهُمْ يَفْقَهُونَ {65}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि वही उस पर अच्छी तरह क़ाबू रखता है कि अगर (चाहे तो) तुम पर अज़ाब तुम्हारे (सर के) ऊपर से नाजि़ल करे या तुम्हारे पाव के नीचे से (उठाकर खड़ा कर दे) या एक गिरोह को दूसरे से भिड़ा दे और तुम में से कुछ लोगों को बाज़ आदमियों की लड़ाई का मज़ा चखा दे ज़रा ग़ौर तो करो हम किस किस तरह अपनी आयतों को उलट पुलट के बयान करते हैं ताकि लोग समझे (65)

वइज़ा समिऊ

وَكَذَّبَ بِهِ قَوْمُكَ وَهُوَ الْحَقُّ قُل لَّسْتُ عَلَيْكُم بِوَكِيلٍ {66}

और उसी (क़ुरान) को तुम्हारी क़ौम ने झुठला दिया हालाँकि वह बरहक़ है (ऐ रसूल) तुम उनसे कहो कि मैं तुम पर कुछ निगेहबान तो हूँ नहीं (66)

वइज़ा समिऊ

لِّكُلِّ نَبَإٍ مُّسْتَقَرٌّ وَسَوْفَ تَعْلَمُونَ {67}

हर ख़बर (के पूरा होने) का एक ख़ास वक़्त मुक़र्रर है और अनक़रीब (जल्दी) ही तुम जान लोगे (67)

वइज़ा समिऊ

وَمَا عَلَى الَّذِينَ يَتَّقُونَ مِنْ حِسَابِهِم مِّن شَيْءٍ وَلَـكِن ذِكْرَى لَعَلَّهُمْ يَتَّقُونَ {69}

और ऐसे लोगों (के हिसाब किताब) का जवाब देही कुछ परहेज़गारो पर तो है नहीं मगर (सिर्फ नसीहतन) याद दिलाना (चाहिए) ताकि ये लोग भी परहेज़गार बनें (69)

वइज़ा समिऊ

وَذَرِ الَّذِينَ اتَّخَذُواْ دِينَهُمْ لَعِبًا وَلَهْوًا وَغَرَّتْهُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا وَذَكِّرْ بِهِ أَن تُبْسَلَ نَفْسٌ بِمَا كَسَبَتْ لَيْسَ لَهَا مِن دُونِ اللّهِ وَلِيٌّ وَلاَ شَفِيعٌ وَإِن تَعْدِلْ كُلَّ عَدْلٍ لاَّ يُؤْخَذْ مِنْهَا أُوْلَـئِكَ الَّذِينَ أُبْسِلُواْ بِمَا كَسَبُواْ لَهُمْ شَرَابٌ مِّنْ حَمِيمٍ وَعَذَابٌ أَلِيمٌ بِمَا كَانُواْ يَكْفُرُونَ {70}

और जिन लोगों ने अपने दीन को खेल और तमाशा बना रखा है और दुनिया की जि़न्दगी ने उन को धोके में डाल रखा है ऐसे लोगों को छोड़ो और क़़ुरान के ज़रिए से उनको नसीहत करते रहो (ऐसा न हो कि कोई) शख्स़ अपने करतूत की बदौलत मुब्तिलाए बला हो जाए (क्योंकि उस वक़्त) तो ख़ुदा के सिवा उसका न कोई सरपरस्त होगा न सिफारिशी और अगर वह अपने गुनाह के ऐवज़ सारे (जहाँन का) बदला भी दे तो भी उनमें से एक न लिया जाएगा जो लोग अपनी करनी की बदौलत मुब्तिलाए बला हुए है उनको पीने के लिए खौलता हुआ गर्म पानी (मिलेगा) और (उन पर) दर्दनाक अज़ाब होगा क्योंकर वह कुफ़्र किया करते थे (70)

वइज़ा समिऊ

قُلْ أَنَدْعُو مِن دُونِ اللّهِ مَا لاَ يَنفَعُنَا وَلاَ يَضُرُّنَا وَنُرَدُّ عَلَى أَعْقَابِنَا بَعْدَ إِذْ هَدَانَا اللّهُ كَالَّذِي اسْتَهْوَتْهُ الشَّيَاطِينُ فِي الأَرْضِ حَيْرَانَ لَهُ أَصْحَابٌ يَدْعُونَهُ إِلَى الْهُدَى ائْتِنَا قُلْ إِنَّ هُدَى اللّهِ هُوَ الْهُدَىَ وَأُمِرْنَا لِنُسْلِمَ لِرَبِّ الْعَالَمِينَ {71}

(ऐ रसूल) उनसे पूछो तो कि क्या हम लोग ख़़ुदा को छोड़कर उन (माबूदों) से मुनाज़ात (दुआ) करे जो न तो हमें नफ़ा पहुचा सकते हैं न हमारा कुछ बिगाड़ ही सकते हैं- और जब ख़ुदा हमारी हिदायत कर चुका) उसके बाद उल्टे पावँ कुफ्र की तरफ उस शख्स़ की तरह फिर जाए जिसे शैतानों ने जंगल में भटका दिया हो और वह हैरान (परेशान) हो (कि कहा जाए क्या करें) और उसके कुछ रफीक़ हो कि उसे राहे रास्त (सीधे रास्ते) की तरफ पुकारते रह जाए कि (उधर) हमारे पास आओ और वह एक न सुने (ऐ रसूल) तुम कह दो कि हिदायत तो बस ख़ुदा की हिदायत है और हमें तो हुक्म ही दिया गया है कि हम सारे जहाँन के परवरदिगार ख़ुदा के फरमाबरदार हैं (71)

वइज़ा समिऊ

وَأَنْ أَقِيمُواْ الصَّلاةَ وَاتَّقُوهُ وَهُوَ الَّذِيَ إِلَيْهِ تُحْشَرُونَ {72}

और ये (भी हुक्म हुआ है) कि पाबन्दी से नमाज़ पढ़ा करो और उसी से डरते रहो और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसके हुज़ूर में तुम सब के सब हाजि़र किए जाओगे (72)

वइज़ा समिऊ

وَهُوَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ بِالْحَقِّ وَيَوْمَ يَقُولُ كُن فَيَكُونُ قَوْلُهُ الْحَقُّ وَلَهُ الْمُلْكُ يَوْمَ يُنفَخُ فِي الصُّوَرِ عَالِمُ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ وَهُوَ الْحَكِيمُ الْخَبِيرُ {73}

वह तो वह (ख़़ुदा है) जिसने ठीक ठीक बहुतेरे आसमान व ज़मीन पैदा किए और जिस दिन (किसी चीज़ को) कहता है कि हो जा तो (फौरन) हो जाती है उसका क़ौल सच्चा है और जिस दिन सूर फूका जाएगा (उस दिन) ख़ास उसी की बादशाहत होगी (वही) ग़ायब हाजि़र (सब) का जानने वाला है और वही दाना वाकि़फकार है (73) 

वइज़ा समिऊ

وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ لأَبِيهِ آزَرَ أَتَتَّخِذُ أَصْنَامًا آلِهَةً إِنِّي أَرَاكَ وَقَوْمَكَ فِي ضَلاَلٍ مُّبِينٍ {74}

(ऐ रसूल) उस वक़्त का याद करो) जब इबराहीम ने अपने (मुँह बोले) बाप आज़र से कहा क्या तुम बुतों को ख़ुदा मानते हो-मै तो तुमको और तुम्हारी क़ौम को खुली गुमराही में देखता हूँ (74)

वइज़ा समिऊ

وَكَذَلِكَ نُرِي إِبْرَاهِيمَ مَلَكُوتَ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَلِيَكُونَ مِنَ الْمُوقِنِينَ {75}

और (जिस तरह हमने इबराहीम को दिखाया था कि बुत क़ाबिले परसतिश (पूजने के क़ाबिल) नहीं) उसी तरह हम इबराहीम को सारे आसमान और ज़मीन की सल्तनत का (इन्तज़ाम) दिखाते रहे ताकि वह (हमारी वहदानियत का) यक़ीन करने वालों से हो जाए (75)

वइज़ा समिऊ

فَلَمَّا جَنَّ عَلَيْهِ اللَّيْلُ رَأَى كَوْكَبًا قَالَ هَـذَا رَبِّي فَلَمَّا أَفَلَ قَالَ لا أُحِبُّ الآفِلِينَ {76}

तो जब उन पर रात की तारीक़ी (अंधेरा) छा गयी तो एक सितारे को देखा तो दफअतन बोल उठे (हाए क्या) यही मेरा ख़ुदा है फिर जब वह डूब गया तो कहने लगे ग़़ुरुब (डूब) हो जाने वाली चीज़ को तो मै (ख़ुदा बनाना) पसन्द नहीं करता (76)

वइज़ा समिऊ

فَلَمَّا رَأَى الْقَمَرَ بَازِغًا قَالَ هَـذَا رَبِّي فَلَمَّا أَفَلَ قَالَ لَئِن لَّمْ يَهْدِنِي رَبِّي لأكُونَنَّ مِنَ الْقَوْمِ الضَّالِّينَ {77}

फिर जब चाँद को जगमगाता हुआ देखा तो बोल उठे (क्या) यही मेरा ख़ुदा है फिर जब वह भी ग़ुरुब हो गया तो कहने लगे कि अगर (कहीं) मेरा (असली) परवरदिगार मेरी हिदायत न करता तो मैं ज़रुर गुमराह लोगों में हो जाता (77)

वइज़ा समिऊ

فَلَمَّا رَأَى الشَّمْسَ بَازِغَةً قَالَ هَـذَا رَبِّي هَـذَا أَكْبَرُ فَلَمَّا أَفَلَتْ قَالَ يَا قَوْمِ إِنِّي بَرِيءٌ مِّمَّا تُشْرِكُونَ {78}

फिर जब आफताब को दमकता हुआ देखा तो कहने लगे (क्या) यही मेरा ख़़ुदा है ये तो सबसे बड़ा (भी) है फिर जब ये भी ग़ुरुब हो गया तो कहने लगे ऐ मेरी क़ौम जिन जिन चीज़ों को तुम लोग (ख़ुदा का) शरीक बनाते हो उनसे मैं बेज़ार हूँ (78)

वइज़ा समिऊ

إِنِّي وَجَّهْتُ وَجْهِيَ لِلَّذِي فَطَرَ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ حَنِيفًا وَمَا أَنَاْ مِنَ الْمُشْرِكِينَ {79}

(ये हरगिज़ नहीं हो सकते) मैने तो बातिल से कतराकर उसकी तरफ से मुँह कर लिया है जिसने बहुतेरे आसमान और ज़मीन पैदा किए और मैं मुशरेकीन से नहीं हूँ (79)

वइज़ा समिऊ

وَحَآجَّهُ قَوْمُهُ قَالَ أَتُحَاجُّونِّي فِي اللّهِ وَقَدْ هَدَانِ وَلاَ أَخَافُ مَا تُشْرِكُونَ بِهِ إِلاَّ أَن يَشَاء رَبِّي شَيْئًا وَسِعَ رَبِّي كُلَّ شَيْءٍ عِلْمًا أَفَلاَ تَتَذَكَّرُونَ {80}

और उनकी क़ौम के लोग उनसे हुज्जत करने लगे तो इबराहीम ने कहा था क्या तुम मुझसे ख़़ुदा के बारे में हुज्जत करते हो हालाँकि वह यक़ीनी मेरी हिदायत कर चुका और तुम मे जिन बुतों को उसका शरीक मानते हो मै उनसे डरता (वरता) नहीं (वह मेरा कुछ नहीं कर सकते) मगर हाॅ मेरा ख़ुदा खुद (करना) चाहे तो अलबत्ता कर सकता है मेरा परवरदिगार तो बाएतबार इल्म के सब पर हावी है तो क्या उस पर भी तुम नसीहत नहीं मानते (80)

वइज़ा समिऊ

وَكَيْفَ أَخَافُ مَا أَشْرَكْتُمْ وَلاَ تَخَافُونَ أَنَّكُمْ أَشْرَكْتُم بِاللّهِ مَا لَمْ يُنَزِّلْ بِهِ عَلَيْكُمْ سُلْطَانًا فَأَيُّ الْفَرِيقَيْنِ أَحَقُّ بِالأَمْنِ إِن كُنتُمْ تَعْلَمُونَ {81}

और जिन्हें तुम ख़़ुदा का शरीक बताते हो मै उन से क्यों डरुँ जब तुम इस बात से नहीं डरते कि तुमने ख़ुदा का शरीक ऐसी चीज़ों को बनाया है जिनकी ख़़ुदा ने कोई सनद तुम पर नहीं नाजि़ल की फिर अगर तुम जानते हो तो (भला बताओ तो सही कि) हम दोनों फरीक़ (गिरोह) में अमन क़ायम रखने का ज़्यादा हक़दार कौन है (81)

वइज़ा समिऊ

الَّذِينَ آمَنُواْ وَلَمْ يَلْبِسُواْ إِيمَانَهُم بِظُلْمٍ أُوْلَـئِكَ لَهُمُ الأَمْنُ وَهُم مُّهْتَدُونَ {82}

जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अपने ईमान को ज़ुल्म (शिर्क) से आलूदा नहीं किया उन्हीं लोगों के लिए अमन (व इतमिनान) है और यही लोग हिदायत याफ़ता हैं (82)

वइज़ा समिऊ

وَتِلْكَ حُجَّتُنَا آتَيْنَاهَا إِبْرَاهِيمَ عَلَى قَوْمِهِ نَرْفَعُ دَرَجَاتٍ مَّن نَّشَاء إِنَّ رَبَّكَ حَكِيمٌ عَلِيمٌ {83}

और ये हमारी (समझाई बुझाई) दलीलें हैं जो हमने इबराहीम को अपनी क़ौम पर (ग़ालिब आने के लिए) अता की थी हम जिसके मरतबे चाहते हैं बुलन्द करते हैं बेशक तुम्हारा परवरदिगार हिक़मत वाला बाख़बर है (83)

वइज़ा समिऊ

وَوَهَبْنَا لَهُ إِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ كُلاًّ هَدَيْنَا وَنُوحًا هَدَيْنَا مِن قَبْلُ وَمِن ذُرِّيَّتِهِ دَاوُودَ وَسُلَيْمَانَ وَأَيُّوبَ وَيُوسُفَ وَمُوسَى وَهَارُونَ وَكَذَلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ {84}

और हमने इबराहीम को इसहाक़ वा याक़ूब (सा बेटा पोता) अता किया हमने सबकी हिदायत की और उनसे पहले नूह को (भी) हम ही ने हिदायत की और उन्हीं (इबराहीम) को औलाद से दाऊद व सुलेमान व अय्यूब व यूसुफ व मूसा व हारुन (सब की हमने हिदायत की) और नेकों कारों को हम ऐसा ही इल्म अता फरमाते हैं (84)

वइज़ा समिऊ

وَزَكَرِيَّا وَيَحْيَى وَعِيسَى وَإِلْيَاسَ كُلٌّ مِّنَ الصَّالِحِينَ {85}

और ज़करिया व यहया व ईसा व इलियास (सब की हिदायत की (और ये) सब (ख़ुदा के) नेक बन्दों से हैं (85)

वइज़ा समिऊ

وَإِسْمَاعِيلَ وَالْيَسَعَ وَيُونُسَ وَلُوطًا وَكُلاًّ فضَّلْنَا عَلَى الْعَالَمِينَ {86}

और इसमाइल व इलियास व युनूस व लूत (की भी हिदायत की) और सब को सारे जहाँन पर फज़ीलत अता की (86)

वइज़ा समिऊ

وَمِنْ آبَائِهِمْ وَذُرِّيَّاتِهِمْ وَإِخْوَانِهِمْ وَاجْتَبَيْنَاهُمْ وَهَدَيْنَاهُمْ إِلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ {87}

और (सिर्फ उन्हीं को नहीं बल्कि) उनके बाप दादाओं और उनकी औलाद और उनके भाई बन्दों में से (बहुतेरों को) और उनके मुन्तखि़ब किया और उन्हें सीधी राह की हिदायत की (87)

वइज़ा समिऊ

ذَلِكَ هُدَى اللّهِ يَهْدِي بِهِ مَن يَشَاء مِنْ عِبَادِهِ وَلَوْ أَشْرَكُواْ لَحَبِطَ عَنْهُم مَّا كَانُواْ يَعْمَلُونَ {88}

(देखो) ये ख़ुदा की हिदायत है अपने बन्दों से जिसको चाहे उसीकी वजह से राह पर लाए और अगर उन लोगों ने शिर्क किया होता तो उनका किया (धरा) सब अकारत हो जाता (88)

वइज़ा समिऊ

أُوْلَـئِكَ الَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ وَالْحُكْمَ وَالنُّبُوَّةَ فَإِن يَكْفُرْ بِهَا هَـؤُلاء فَقَدْ وَكَّلْنَا بِهَا قَوْمًا لَّيْسُواْ بِهَا بِكَافِرِينَ {89}

(पैग़म्बर) वह लोग थे जिनको हमने (आसमानी) किताब और हुकूमत और नुबूवत अता फरमाई पस अगर ये लोग उसे भी न माने तो (कुछ परवाह नहीं) हमने तो उस पर ऐसे लोगों को मुक़र्रर कर दिया हे जो (उनकी तरह) इन्कार करने वाले नहीं (89)

वइज़ा समिऊ

أُوْلَـئِكَ الَّذِينَ هَدَى اللّهُ فَبِهُدَاهُمُ اقْتَدِهْ قُل لاَّ أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ أَجْرًا إِنْ هُوَ إِلاَّ ذِكْرَى لِلْعَالَمِينَ {90}

(ये अगले पैग़म्बर) वह लोग थे जिनकी ख़ुदा ने हिदायत की पस तुम भी उनकी हिदायत की पैरवी करो (ऐ रसूल उन से) कहो कि मै तुम से इस (रिसालत) की मज़दूरी कुछ नहीं चाहता सारे जहाँन के लिए सिर्फ नसीहत है (90)

वइज़ा समिऊ

وَمَا قَدَرُواْ اللّهَ حَقَّ قَدْرِهِ إِذْ قَالُواْ مَا أَنزَلَ اللّهُ عَلَى بَشَرٍ مِّن شَيْءٍ قُلْ مَنْ أَنزَلَ الْكِتَابَ الَّذِي جَاء بِهِ مُوسَى نُورًا وَهُدًى لِّلنَّاسِ تَجْعَلُونَهُ قَرَاطِيسَ تُبْدُونَهَا وَتُخْفُونَ كَثِيراً وَعُلِّمْتُم مَّا لَمْ تَعْلَمُواْ أَنتُمْ وَلاَ آبَاؤُكُمْ قُلِ اللّهُ ثُمَّ ذَرْهُمْ فِي خَوْضِهِمْ يَلْعَبُونَ {91}

और बस और उन लोगों (यहूद) ने ख़़ुदा की जैसी क़दर करनी चाहिए न की इसलिए कि उन लोगों ने (बेहूदे पन से) ये कह दिया कि ख़़ुदा ने किसी बशर (इनसान) पर कुछ नाजि़ल नहीं किया (ऐ रसूल) तुम पूछो तो कि फिर वह किताब जिसे मूसा लेकर आए थे किसने नाजि़ल की जो लोगों के लिए रौशनी और (अज़सरतापा(सर से पैर तक)) हिदायत (थी जिसे तुम लोगों ने अलग-अलग करके काग़जी औराक़ (कागज़ के पन्ने) बना डाला और इसमें को कुछ हिस्सा (जो तुम्हारे मतलब का है वह) तो ज़ाहिर करते हो और बहुतेरे को (जो खि़लाफ मदआ है) छिपाते हो हालाँकि उसी किताब के ज़रिए से तुम्हें वो बातें सिखायी गयी जिन्हें न तुम जानते थे और न तुम्हारे बाप दादा (ऐ रसूल वह तो जवाब देगें नहीं) तुम ही कह दो कि ख़ुदा ने (नाजि़ल फरमाई) उसके बाद उन्हें छोड़ के (पडे़ झक मारा करें (और) अपनी तू तू मै मै में खेलते फिरें (91)

वइज़ा समिऊ

وَهَـذَا كِتَابٌ أَنزَلْنَاهُ مُبَارَكٌ مُّصَدِّقُ الَّذِي بَيْنَ يَدَيْهِ وَلِتُنذِرَ أُمَّ الْقُرَى وَمَنْ حَوْلَهَا وَالَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِالآخِرَةِ يُؤْمِنُونَ بِهِ وَهُمْ عَلَى صَلاَتِهِمْ يُحَافِظُونَ {92}

और (क़ुरान) भी वह किताब है जिसे हमने बाबरकत नाजि़ल किया और उस किताब की तसदीक़ करती है जो उसके सामने (पहले से) मौजूद है और (इस वास्ते नाजि़ल किया है) ताकि तुम उसके ज़रिए से एहले मक्का और उसके एतराफ़ के रहने वालों को (ख़ौफ ख़ुदा से) डराओ और जो लोग आखि़रत पर इमान रखते हैं वह तो उस पर (बे ताम्मुल) इमान लाते है और वही अपनी अपनी नमाज़ में भी पाबन्दी करते हैं (92)

वइज़ा समिऊ

وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرَى عَلَى اللّهِ كَذِبًا أَوْ قَالَ أُوْحِيَ إِلَيَّ وَلَمْ يُوحَ إِلَيْهِ شَيْءٌ وَمَن قَالَ سَأُنزِلُ مِثْلَ مَا أَنَزلَ اللّهُ وَلَوْ تَرَى إِذِ الظَّالِمُونَ فِي غَمَرَاتِ الْمَوْتِ وَالْمَلآئِكَةُ بَاسِطُواْ أَيْدِيهِمْ أَخْرِجُواْ أَنفُسَكُمُ الْيَوْمَ تُجْزَوْنَ عَذَابَ الْهُونِ بِمَا كُنتُمْ تَقُولُونَ عَلَى اللّهِ غَيْرَ الْحَقِّ وَكُنتُمْ عَنْ آيَاتِهِ تَسْتَكْبِرُونَ {93}

और उससे बढ़ कर ज़ालिम कौन होगा जो ख़ुदा पर झूठ (मूठ) इफ़तेरा करके कहे कि हमारे पास वही आयी है हालाँकि उसके पास वही वगै़रह कुछ भी नही आयी या वह शख्स़ दावा करे कि जैसा क़ुरान ख़़ुदा ने नाजि़ल किया है वैसा मै भी (अभी) अनक़रीब (जल्दी) नाजि़ल किए देता हूँ और (ऐ रसूल) काश तुम देखते कि ये ज़ालिम मौत की सख़्तियों में पड़ें हैं और फ़रिश्ते उनकी तरफ (जान निकाल लेने के वास्ते) हाथ लपका रहे हैं और कहते जाते हैं कि अपनी जानें निकालो आज ही तो तुम को रुसवाई के अज़ाब की सज़ा दी जाएगी क्योंकि तुम ख़ुदा पर नाहक़ (नाहक़) झूठ छोड़ा करते थे और उसकी आयतों को (सुनकर उन) से अकड़ा करते थे (93)

वइज़ा समिऊ

وَلَقَدْ جِئْتُمُونَا فُرَادَى كَمَا خَلَقْنَاكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ وَتَرَكْتُم مَّا خَوَّلْنَاكُمْ وَرَاء ظُهُورِكُمْ وَمَا نَرَى مَعَكُمْ شُفَعَاءكُمُ الَّذِينَ زَعَمْتُمْ أَنَّهُمْ فِيكُمْ شُرَكَاء لَقَد تَّقَطَّعَ بَيْنَكُمْ وَضَلَّ عَنكُم مَّا كُنتُمْ تَزْعُمُونَ {94}

और आखि़र तुम हमारे पास इसी तरह तन्हा आए (ना) जिस तरह हमने तुम को पहली बार पैदा किया था और जो (माल व औलाद) हमने तुमको दिया था वह सब अपने पस्त पुश्त (पीछे) छोड़ आए और तुम्हारे साथ तुम्हारे उन सिफारिश करने वालों को भी नहीं देखते जिन को तुम ख़्याल करते थे कि वह तुम्हारी (परवरिश वगै़रह) मै (हमारे) साझेदार है अब तो तुम्हारे बाहरी ताल्लुक़ात मनक़तआ (ख़त्म) हो गए और जो कुछ ख़्याल करते थे वह सब तुम से ग़ायब हो गए (94)

वइज़ा समिऊ

إِنَّ اللّهَ فَالِقُ الْحَبِّ وَالنَّوَى يُخْرِجُ الْحَيَّ مِنَ الْمَيِّتِ وَمُخْرِجُ الْمَيِّتِ مِنَ الْحَيِّ ذَلِكُمُ اللّهُ فَأَنَّى تُؤْفَكُونَ {95}

ख़़ुदा ही तो गुठली और दाने को चीर (करके दरख़्त ऊगाता) है वही मुर्दे में से जि़न्दे को निकालता है और वही जि़न्दा से मुर्दे को निकालने वाला है (लोगों) वही तुम्हारा ख़ुदा है फिर तुम किधर बहके जा रहे हो (95)

वइज़ा समिऊ

فَالِقُ الإِصْبَاحِ وَجَعَلَ اللَّيْلَ سَكَنًا وَالشَّمْسَ وَالْقَمَرَ حُسْبَانًا ذَلِكَ تَقْدِيرُ الْعَزِيزِ الْعَلِيمِ {96}

उसी के लिए सुबह की पौ फटी और उसी ने आराम के लिए रात और हिसाब के लिए सूरज और चाँद बनाए ये ख़ुदाए ग़ालिब व दाना के मुक़र्रर किए हुए किरदा (उसूल) हैं (96)

वइज़ा समिऊ

وَهُوَ الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ النُّجُومَ لِتَهْتَدُواْ بِهَا فِي ظُلُمَاتِ الْبَرِّ وَالْبَحْرِ قَدْ فَصَّلْنَا الآيَاتِ لِقَوْمٍ يَعْلَمُونَ {97}

और वह वही (ख़ुदा) है जिसने तुम्हारे (नफे के) वास्ते सितारे पैदा किए ताकि तुम जॅगलों और दरियाओं की तारिकि़यों (अंधेरों) में उनसे राह मालूम करो जो लोग वाकि़फकार हैं उनके लिए हमने (अपनी क़़ुदरत की) निशानियाँ ख़ूब तफ़सील से बयान कर दी हैं (97)

वइज़ा समिऊ

وَهُوَ الَّذِيَ أَنشَأَكُم مِّن نَّفْسٍ وَاحِدَةٍ فَمُسْتَقَرٌّ وَمُسْتَوْدَعٌ قَدْ فَصَّلْنَا الآيَاتِ لِقَوْمٍ يَفْقَهُونَ {98}

और वह वही ख़़ुदा है जिसने तुम लोगों को एक शख्स़ से पैदा किया फिर (हर शख्स़ के) क़रार की जगह (बाप की पुश्त (पीठ)) और सौंपने की जगह (माँ का पेट) मुक़र्रर है हमने समझदार लोगों के वास्ते (अपनी कु़दरत की) निशानियाँ ख़ूब तफसील से बयान कर दी हैं (98)

वइज़ा समिऊ

وَهُوَ الَّذِيَ أَنزَلَ مِنَ السَّمَاء مَاء فَأَخْرَجْنَا بِهِ نَبَاتَ كُلِّ شَيْءٍ فَأَخْرَجْنَا مِنْهُ خَضِرًا نُّخْرِجُ مِنْهُ حَبًّا مُّتَرَاكِبًا وَمِنَ النَّخْلِ مِن طَلْعِهَا قِنْوَانٌ دَانِيَةٌ وَجَنَّاتٍ مِّنْ أَعْنَابٍ وَالزَّيْتُونَ وَالرُّمَّانَ مُشْتَبِهًا وَغَيْرَ مُتَشَابِهٍ انظُرُواْ إِلِى ثَمَرِهِ إِذَا أَثْمَرَ وَيَنْعِهِ إِنَّ فِي ذَلِكُمْ لآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ {99}

और वह वही (क़ादिर तवाना है) जिसने आसमान से पानी बरसाया फिर हम ही ने उसके ज़रिए से हर चीज़ के कोए निकालें फिर हम ही ने उससे हरी भरी टहनियाँ निकालीं कि उससे हम बाहम गुत्थे दाने निकालते हैं और छुहारे के बोर (मुन्जिर) से लटके हुए गुच्छे पैदा किए और अंगूर और ज़ैतून और अनार के बाग़ात जो बाहम सूरत में एक दूसरे से मिलते जुलते और (मजे़ में) जुदा जुदा जब ये पिघले और पक्के तो उसके फल की तरफ ग़ौर तो करो बेशक अमन में इमानदार लोगों के लिए बहुत सी (ख़़ुदा की) निशानियाँ हैं (99)

वइज़ा समिऊ

وَجَعَلُواْ لِلّهِ شُرَكَاء الْجِنَّ وَخَلَقَهُمْ وَخَرَقُواْ لَهُ بَنِينَ وَبَنَاتٍ بِغَيْرِ عِلْمٍ سُبْحَانَهُ وَتَعَالَى عَمَّا يَصِفُونَ {100}

और उन (कम्बख़्तों) ने जिन्नात को ख़ुदा का शरीक बनाया हालाँकि जिन्नात को भी ख़ुदा ही ने पैदा किया उस पर भी उन लोगों ने बे समझे बूझे ख़ुदा के लिए बेटे बेटियाँ गढ़ डालीं जो बातों में लोग (उसकी शान में) बयान करते हैं उससे वह पाक व पाकीज़ा और बरतर है (100)

वइज़ा समिऊ

بَدِيعُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ أَنَّى يَكُونُ لَهُ وَلَدٌ وَلَمْ تَكُن لَّهُ صَاحِبَةٌ وَخَلَقَ كُلَّ شَيْءٍ وهُوَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ {101}

सारे आसमान और ज़मीन का मव्दित (बनाने वाला) है उसके कोई लड़का क्योंकर हो सकता है जब उसकी कोई बीबी ही नहीं है और उसी ने हर चीज़ को पैदा किया और वही हर चीज़ से खूब वाकि़फ है (101)

वइज़ा समिऊ

ذَلِكُمُ اللّهُ رَبُّكُمْ لا إِلَـهَ إِلاَّ هُوَ خَالِقُ كُلِّ شَيْءٍ فَاعْبُدُوهُ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ وَكِيلٌ {102}

(लोगों) वही अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार है उसके सिवा कोइ्र माबूद नहीं वही हर चीज़ का पैदा करने वाला है तो उसी की इबादत करो और वही हर चीज़ का निगेह बान है (102)

वइज़ा समिऊ

لاَّ تُدْرِكُهُ الأَبْصَارُ وَهُوَ يُدْرِكُ الأَبْصَارَ وَهُوَ اللَّطِيفُ الْخَبِيرُ {103}

उसको आँखें देख नहीं सकती (न दुनिया में न आखि़रत में) और वह (लोगों की) नज़रों को खूब देखता है और वह बड़ा बारीक बीन (देख़ने वाला) ख़बरदार है (103)

वइज़ा समिऊ

قَدْ جَاءكُم بَصَآئِرُ مِن رَّبِّكُمْ فَمَنْ أَبْصَرَ فَلِنَفْسِهِ وَمَنْ عَمِيَ فَعَلَيْهَا وَمَا أَنَاْ عَلَيْكُم بِحَفِيظٍ {104}

तुम्हारे पास तो सुझाने वाली चीज़े आ ही चुकीं फिर जो देखे (समझे) तो अपने दम के लिए और जो अन्धा बने तो (उसका ज़रर (नुकसान) भी) ख़ुद उस पर है और (ऐ रसूल उन से कह दो) कि मै तुम लोगों का कुछ निगेहबान तो हूँ नहीं (104)

वइज़ा समिऊ

وَكَذَلِكَ نُصَرِّفُ الآيَاتِ وَلِيَقُولُواْ دَرَسْتَ وَلِنُبَيِّنَهُ لِقَوْمٍ يَعْلَمُونَ {105}

और हम (अपनी) आयतें यू उलट फेरकर बयान करते है (ताकि हुज्जत तमाम हो) और ताकि वह लोग ज़बानी भी इक़रार कर लें कि तुमने (क़ुरान उनके सामने) पढ़ दिया और ताकि जो लोग जानते है उनके लिए (क़ुरान का) खूब वाजेए करके बयान कर दें (105)

वइज़ा समिऊ

اتَّبِعْ مَا أُوحِيَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ لا إِلَـهَ إِلاَّ هُوَ وَأَعْرِضْ عَنِ الْمُشْرِكِينَ {106}

जो कुछ तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से ‘वही’ की जाए बस उसी पर चलो अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और मुशरिकों से किनारा कश रहो (106)

वइज़ा समिऊ

وَلَوْ شَاء اللّهُ مَا أَشْرَكُواْ وَمَا جَعَلْنَاكَ عَلَيْهِمْ حَفِيظًا وَمَا أَنتَ عَلَيْهِم بِوَكِيلٍ {107}

और अगर ख़़ुदा चाहता तो ये लोग शिर्क ही न करते और हमने तुमको उन लोगों का निगेहबान तो बनाया नहीं है और न तुम उनके जि़म्मेदार हो (107)

वइज़ा समिऊ

وَلاَ تَسُبُّواْ الَّذِينَ يَدْعُونَ مِن دُونِ اللّهِ فَيَسُبُّواْ اللّهَ عَدْوًا بِغَيْرِ عِلْمٍ كَذَلِكَ زَيَّنَّا لِكُلِّ أُمَّةٍ عَمَلَهُمْ ثُمَّ إِلَى رَبِّهِم مَّرْجِعُهُمْ فَيُنَبِّئُهُم بِمَا كَانُواْ يَعْمَلُونَ {108}

और ये (मुशरेकीन) जिन की अल्लाह के सिवा (ख़ुदा समझ कर) इबादत करते हैं उन्हें तुम बुरा न कहा करो वरना ये लोग भी ख़़ुदा को बिना समझें अदावत से बुरा (भला) कह बैठें (और लोग उनकी ख़्वाहिश नफसानी के) इस तरह पाबन्द हुए कि गोया हमने ख़ुद हर गिरोह के आमाल उनको सॅवाकर अच्छे कर दिखाए फिर उन्हें तो (आखि़रकार) अपने परवरदिगार की तरफ लौट कर जाना है तब जो कुछ दुनिया में कर रहे थे ख़़ुदा उन्हें बता देगा (108)

वइज़ा समिऊ

وَأَقْسَمُواْ بِاللّهِ جَهْدَ أَيْمَانِهِمْ لَئِن جَاءتْهُمْ آيَةٌ لَّيُؤْمِنُنَّ بِهَا قُلْ إِنَّمَا الآيَاتُ عِندَ اللّهِ وَمَا يُشْعِرُكُمْ أَنَّهَا إِذَا جَاءتْ لاَ يُؤْمِنُونَ {109}

और उन लोगों ने ख़ुदा की सख़्त सख़्त क़समें खायीं कि अगर उनके पास कोई मौजिजा़ आए तो वह ज़रूर उस पर इमान लाएँगे (ऐ रसूल) तुम कहो कि मौजिज़े तो बस ख़ुदा ही के पास हैं और तुम्हें क्या मालूम ये यक़ीनी बात है कि जब मौजिज़ा भी आएगा तो भी ये ईमान न लाएँगे (109)

वइज़ा समिऊ

وَنُقَلِّبُ أَفْئِدَتَهُمْ وَأَبْصَارَهُمْ كَمَا لَمْ يُؤْمِنُواْ بِهِ أَوَّلَ مَرَّةٍ وَنَذَرُهُمْ فِي طُغْيَانِهِمْ يَعْمَهُونَ {110}

और हम उनके दिल और उनकी आँखें उलट पलट कर देंगे जिस तरह ये लोग कु़रान पर पहली मरतबा ईमान न लाए और हम उन्हें उनकी सरकशी की हालत में छोड़ देंगे कि सरगिरदाँ (परेशान) रहें (110)