Quran पारा 6

ला युहिब्बुल्लाह

لاَّ يُحِبُّ اللّهُ الْجَهْرَ بِالسُّوَءِ مِنَ الْقَوْلِ إِلاَّ مَن ظُلِمَ وَكَانَ اللّهُ سَمِيعًا عَلِيمًا {148}

ख़ुदा (किसी के) हाँक पुकार कर बुरा कहने को पसन्द नहीं करता मगर मज़लूम (ज़ालिम की बुराई बयान कर सकता है) और ख़ुदा तो (सबकी) सुनता है (और हर एक को) जानता है (148) 

ला युहिब्बुल्लाह

إِن تُبْدُواْ خَيْرًا أَوْ تُخْفُوهُ أَوْ تَعْفُواْ عَن سُوَءٍ فَإِنَّ اللّهَ كَانَ عَفُوًّا قَدِيرًا {149}

अगर खुल्लम खुल्ला नेकी करते हो या छुपा कर या किसी की बुराई से दरगुज़र करते हो तो तो ख़ुदा भी बड़ा दरगुज़र करने वाला (और) क़ादिर है (149) 

ला युहिब्बुल्लाह

إِنَّ الَّذِينَ يَكْفُرُونَ بِاللّهِ وَرُسُلِهِ وَيُرِيدُونَ أَن يُفَرِّقُواْ بَيْنَ اللّهِ وَرُسُلِهِ وَيقُولُونَ نُؤْمِنُ بِبَعْضٍ وَنَكْفُرُ بِبَعْضٍ وَيُرِيدُونَ أَن يَتَّخِذُواْ بَيْنَ ذَلِكَ سَبِيلاً {150}

बेशक जो लोग ख़ुदा और उसके रसूलों से इन्कार करते हैं और ख़ुदा और उसके रसूलों में तफ़रक़ा डालना चाहते हैं और कहते हैं कि हम बाज़ (पैग़म्बरों) पर ईमान लाए हैं और बाज़ का इन्कार करते हैं और चाहते हैं कि इस (कुफ़्र व इमान) के दरमियान एक दूसरी राह निकलें (150) 

ला युहिब्बुल्लाह

أُوْلَـئِكَ هُمُ الْكَافِرُونَ حَقًّا وَأَعْتَدْنَا لِلْكَافِرِينَ عَذَابًا مُّهِينًا {151}

यही लोग हक़ीक़तन काफि़र हैं और हमने काफि़रों के वास्ते ज़िल्लत देने वाला अज़ाब तैयार कर रखा है (151) 

ला युहिब्बुल्लाह

وَالَّذِينَ آمَنُواْ بِاللّهِ وَرُسُلِهِ وَلَمْ يُفَرِّقُواْ بَيْنَ أَحَدٍ مِّنْهُمْ أُوْلَـئِكَ سَوْفَ يُؤْتِيهِمْ أُجُورَهُمْ وَكَانَ اللّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا {152}

और जो लोग ख़ुदा और उसके रसूलों पर ईमान लाए और उनमें से किसी में तफ़रक़ा नहीं करते तो ऐसे ही लोगों को ख़ुदा बहुत जल्द उनका अज्र अता फ़रमाएगा और ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (152) 

ला युहिब्बुल्लाह

يَسْأَلُكَ أَهْلُ الْكِتَابِ أَن تُنَزِّلَ عَلَيْهِمْ كِتَابًا مِّنَ السَّمَاء فَقَدْ سَأَلُواْ مُوسَى أَكْبَرَ مِن ذَلِكَ فَقَالُواْ أَرِنَا اللّهِ جَهْرَةً فَأَخَذَتْهُمُ الصَّاعِقَةُ بِظُلْمِهِمْ ثُمَّ اتَّخَذُواْ الْعِجْلَ مِن بَعْدِ مَا جَاءتْهُمُ الْبَيِّنَاتُ فَعَفَوْنَا عَن ذَلِكَ وَآتَيْنَا مُوسَى سُلْطَانًا مُّبِينًا {153}

(ऐ रसूल) अहले किताब (यहूदी) जो तुमसे (ये) दरख़्वास्त करते हैं कि तुम उनपर एक किताब आसमान से उतरवा दो (तुम उसका ख़्याल न करो क्योंकि) ये लोग मूसा से तो इससे कहीं बढ़ (बढ़) के दरख़्वास्त कर चुके हैं चुनान्चे कहने लगे कि हमें ख़ुदा को खुल्लम खुल्ला दिखा दो तब उनकी शरारत की वजह से बिजली ने ले डाला फिर (बावजूद के) उन लोगों के पास तौहीद की वाज़े और रौशन (दलीलें) आ चुकी थी उसके बाद भी उन लोगों ने बछड़े को (ख़ुदा) बना लिया फिर हमने उससे भी दरगुज़र किया और मूसा को हमने सरीही ग़लबा अता किया (153) 

ला युहिब्बुल्लाह

وَرَفَعْنَا فَوْقَهُمُ الطُّورَ بِمِيثَاقِهِمْ وَقُلْنَا لَهُمُ ادْخُلُواْ الْبَابَ سُجَّدًا وَقُلْنَا لَهُمْ لاَ تَعْدُواْ فِي السَّبْتِ وَأَخَذْنَا مِنْهُم مِّيثَاقًا غَلِيظًا {154}

और हमने उनके अहद व पैमान की वजह से उनके (सर) पर (कोहे) तूर को लटका दिया और हमने उनसे कहा कि (शहर के) दरवाज़े में सजदा करते हुए दाखि़ल हो और हमने (ये भी) कहा कि तुम हफ़्ते के दिन (हमारे हुक्म से) तजावुज़ न करना और हमने उनसे बहुत मज़बूत एहदो पैमान ले लिया (154) 

ला युहिब्बुल्लाह

فَبِمَا نَقْضِهِم مِّيثَاقَهُمْ وَكُفْرِهِم بَآيَاتِ اللّهِ وَقَتْلِهِمُ الأَنْبِيَاء بِغَيْرِ حَقًّ وَقَوْلِهِمْ قُلُوبُنَا غُلْفٌ بَلْ طَبَعَ اللّهُ عَلَيْهَا بِكُفْرِهِمْ فَلاَ يُؤْمِنُونَ إِلاَّ قَلِيلاً {155}

फिर उनके अपने एहद तोड़ डालने और एहकामे ख़ुदा से इन्कार करने और नाहक़ अम्बिया को क़त्ल करने और इतरा कर ये कहने की वजह से कि हमारे दिलों पर गि़लाफ़ चढे़ हुए हैं (ये तो नहीं) बल्कि ख़ुदा ने उनके कुफ़्र की वजह से उनके दिलों पर मोहर कर दी है तो चन्द आदमियों के सिवा ये लोग ईमान नहीं लाते (155) 

ला युहिब्बुल्लाह

وَبِكُفْرِهِمْ وَقَوْلِهِمْ عَلَى مَرْيَمَ بُهْتَانًا عَظِيمًا {156}

और उनके काफि़र होने और मरियम पर बहुत बड़ा बोहतान बाँधने कि वजह से (156) 

ला युहिब्बुल्लाह

وَقَوْلِهِمْ إِنَّا قَتَلْنَا الْمَسِيحَ عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ رَسُولَ اللّهِ وَمَا قَتَلُوهُ وَمَا صَلَبُوهُ وَلَـكِن شُبِّهَ لَهُمْ وَإِنَّ الَّذِينَ اخْتَلَفُواْ فِيهِ لَفِي شَكٍّ مِّنْهُ مَا لَهُم بِهِ مِنْ عِلْمٍ إِلاَّ اتِّبَاعَ الظَّنِّ وَمَا قَتَلُوهُ يَقِينًا {157}

और उनके यह कहने की वजह से कि हमने मरियम के बेटे ईसा (स.) ख़ुदा के रसूल को क़त्ल कर डाला हालाँकि न तो उन लोगों ने उसे क़त्ल ही किया न सूली ही दी उनके लिए (एक दूसरा शख़्स ईसा) से मुशाबेह कर दिया गया और जो लोग इस बारे में इख़्तेलाफ़ करते हैं यक़ीनन वह लोग (उसके हालत) की तरफ़ से धोखे में (आ पड़े) हैं उनको उस (वाकि़ये) की ख़बर ही नहीं मगर फ़क़्त अटकल के पीछे (पड़े) हैं और ईसा को उन लोगों ने यक़ीनन क़त्ल नहीं किया (157) 

ला युहिब्बुल्लाह

بَل رَّفَعَهُ اللّهُ إِلَيْهِ وَكَانَ اللّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا {158}

बल्कि ख़ुदा ने उन्हें अपनी तरफ़ उठा लिया और ख़ुदा तो बड़ा ज़बरदस्त तदबीर वाला है (158) 

ला युहिब्बुल्लाह

وَإِن مِّنْ أَهْلِ الْكِتَابِ إِلاَّ لَيُؤْمِنَنَّ بِهِ قَبْلَ مَوْتِهِ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكُونُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا {159}

और (जब ईसा मेहदी मौऊद के ज़हूर के वक़्त आसमान से उतरेंगे तो) अहले किताब में से कोई शख़्स ऐसा न होगा जो उनपर उनके मरने के क़ब्ल ईमान न लाए और ख़ुद ईसा क़यामत के दिन उनके खि़लाफ़ गवाही देंगे (159) 

ला युहिब्बुल्लाह

فَبِظُلْمٍ مِّنَ الَّذِينَ هَادُواْ حَرَّمْنَا عَلَيْهِمْ طَيِّبَاتٍ أُحِلَّتْ لَهُمْ وَبِصَدِّهِمْ عَن سَبِيلِ اللّهِ كَثِيراً {160}

ग़रज़ यहूदयों की (उन सब) शरारतों और गुनाह की वजह से हमने उनपर वह साफ़ सुथरी चीजें जो उनके लिए हलाल की गयी थीं हराम कर दी और उनके ख़ुदा की राह से बहुत से लोगों को रोकने कि वजह से भी (160) 

ला युहिब्बुल्लाह

وَأَخْذِهِمُ الرِّبَا وَقَدْ نُهُواْ عَنْهُ وَأَكْلِهِمْ أَمْوَالَ النَّاسِ بِالْبَاطِلِ وَأَعْتَدْنَا لِلْكَافِرِينَ مِنْهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا {161}

और बावजूद मुमानिअत सूद खा लेने और नाहक़ ज़बरदस्ती लोगों के माल खाने की वजह से उनमें से जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया उनके वास्ते हमने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है (161) 

ला युहिब्बुल्लाह

لَّـكِنِ الرَّاسِخُونَ فِي الْعِلْمِ مِنْهُمْ وَالْمُؤْمِنُونَ يُؤْمِنُونَ بِمَا أُنزِلَ إِلَيكَ وَمَا أُنزِلَ مِن قَبْلِكَ وَالْمُقِيمِينَ الصَّلاَةَ وَالْمُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَالْمُؤْمِنُونَ بِاللّهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ أُوْلَـئِكَ سَنُؤْتِيهِمْ أَجْرًا عَظِيمًا {162}

लेकिन (ऐ रसूल) उनमें से जो लोग इल्म (दीन) में बड़े मज़बूत पाए पर फ़ायज़ हैं वह और ईमान वाले तो जो (किताब) तुमपर नाजि़ल हुयी है (सब पर ईमान रखते हैं) और से नमाज़ पढ़ते हैं और ज़कात अदा करते हैं और ख़ुदा और रोज़े आख़ेरत का यक़ीन रखते हैं ऐसे ही लोगों को हम अनक़रीब बहुत बड़ा अज्र अता फ़रमाएंगे (162) 

ला युहिब्बुल्लाह

إِنَّا أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ كَمَا أَوْحَيْنَا إِلَى نُوحٍ وَالنَّبِيِّينَ مِن بَعْدِهِ وَأَوْحَيْنَا إِلَى إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ وَالأَسْبَاطِ وَعِيسَى وَأَيُّوبَ وَيُونُسَ وَهَارُونَ وَسُلَيْمَانَ وَآتَيْنَا دَاوُودَ زَبُورًا {163}

(ऐ रसूल) हमने तुम्हारे पास (भी) तो इसी तरह ‘वही’ भेजी जिस तरह नूह और उसके बाद वाले पैग़म्बरों पर भेजी थी और जिस तरह इबराहीम और इस्माइल और इसहाक़ और याक़ूब और औलादे याक़ूब व ईसा व अय्यूब व युनुस व हारून व सुलेमान के पास ‘वही’ भेजी थी और हमने दाऊद को ज़ुबूर अता की (163)

ला युहिब्बुल्लाह

وَرُسُلاً قَدْ قَصَصْنَاهُمْ عَلَيْكَ مِن قَبْلُ وَرُسُلاً لَّمْ نَقْصُصْهُمْ عَلَيْكَ وَكَلَّمَ اللّهُ مُوسَى تَكْلِيمًا {164}

जिनका हाल हमने तुमसे पहले ही बयान कर दिया और बहुत से ऐसे रसूल (भेजे) जिनका हाल तुमसे बयान नहीं किया और ख़ुदा ने मूसा से (बहुत सी) बातें भी कीं (164) 

ला युहिब्बुल्लाह

رُّسُلاً مُّبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَ لِئَلاَّ يَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَى اللّهِ حُجَّةٌ بَعْدَ الرُّسُلِ وَكَانَ اللّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا {165}

और हमने नेक लोगों को बेहिश्त की ख़ुशख़बरी देने वाले और बुरे लोगों को अज़ाब से डराने वाले पैग़म्बर (भेजे) ताकि पैग़म्बरों के आने के बाद लोगों की ख़ुदा पर कोई हुज्जत बाक़ी न रह जाए और ख़ुदा तो बड़ा ज़बरदस्त हकीम है (ये कुफ़्फ़ार नहीं मानते न मानें) (165) 

ला युहिब्बुल्लाह

لَّـكِنِ اللّهُ يَشْهَدُ بِمَا أَنزَلَ إِلَيْكَ أَنزَلَهُ بِعِلْمِهِ وَالْمَلآئِكَةُ يَشْهَدُونَ وَكَفَى بِاللّهِ شَهِيدًا {166}

मगर ख़ुदा तो इस पर गवाही देता है जो कुछ तुम पर नाजि़ल किया है ख़ूब समझ बूझ कर नाजि़ल किया है (बल्कि) उसकी गवाही तो फ़रिश्ते तक देते हैं हालाँकि ख़ुदा गवाही के लिए काफ़ी है (166) 

ला युहिब्बुल्लाह

إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ وَصَدُّواْ عَن سَبِيلِ اللّهِ قَدْ ضَلُّواْ ضَلاَلاً بَعِيدًا {167}

बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया और ख़ुदा की राह से (लोगों) को रोका वह राहे रास्त से भटक के बहुत दूर जा पडे़ (167) 

ला युहिब्बुल्लाह

إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ وَظَلَمُواْ لَمْ يَكُنِ اللّهُ لِيَغْفِرَ لَهُمْ وَلاَ لِيَهْدِيَهُمْ طَرِيقاً {168}

बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया और (उस पर) ज़ुल्म (भी) करते रहे न तो ख़ुदा उनको बख़्शेगा ही और न ही उन्हें किसी तरीक़े की हिदायत करेगा (168) 

ला युहिब्बुल्लाह

إِلاَّ طَرِيقَ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا وَكَانَ ذَلِكَ عَلَى اللّهِ يَسِيرًا {169}

मगर (हाँ) जहन्नुम का रास्ता (दिखा देगा) जिसमें ये लोग हमेशा (पड़े) रहेंगे और ये तो ख़ुदा के वास्ते बहुत ही आसान बात है (169) 

ला युहिब्बुल्लाह

يَا أَيُّهَا النَّاسُ قَدْ جَاءكُمُ الرَّسُولُ بِالْحَقِّ مِن رَّبِّكُمْ فَآمِنُواْ خَيْرًا لَّكُمْ وَإِن تَكْفُرُواْ فَإِنَّ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَكَانَ اللّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا {170}

ऐ लोगों तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से रसूल (मोहम्मद (स०)) दीने हक़ के साथ आ चुके हैं ईमान लाओ (यही) तुम्हारे हक़ में बेहतर है और अगर इन्कार करोगे तो (समझ रखो कि) जो कुछ ज़मीन और आसमानों में है सब ख़ुदा ही का है और ख़ुदा बड़ा वाकि़फ़कार हकीम है (170) 

ला युहिब्बुल्लाह

يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لاَ تَغْلُواْ فِي دِينِكُمْ وَلاَ تَقُولُواْ عَلَى اللّهِ إِلاَّ الْحَقِّ إِنَّمَا الْمَسِيحُ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ رَسُولُ اللّهِ وَكَلِمَتُهُ أَلْقَاهَا إِلَى مَرْيَمَ وَرُوحٌ مِّنْهُ فَآمِنُواْ بِاللّهِ وَرُسُلِهِ وَلاَ تَقُولُواْ ثَلاَثَةٌ انتَهُواْ خَيْرًا لَّكُمْ إِنَّمَا اللّهُ إِلَـهٌ وَاحِدٌ سُبْحَانَهُ أَن يَكُونَ لَهُ وَلَدٌ لَّهُ مَا فِي السَّمَاوَات وَمَا فِي الأَرْضِ وَكَفَى بِاللّهِ وَكِيلاً {171}

ऐ एहले किताब अपने दीन में हद (एतदाल) से तजावुज़ न करो और ख़ुदा की शान में सच के सिवा (कोई दूसरी बात) न कहो मरियम के बेटे ईसा मसीह (न ख़ुदा थे न ख़ुदा के बेटे) बस ख़ुदा के एक रसूल और उसके कलमे (हुक्म) थे जिसे ख़ुदा ने मरियम के पास भेज दिया था (कि हामला हो जा) और ख़ुदा की तरफ़ से एक जान थे बस ख़ुदा और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और तीन (ख़ुदा) के क़ायल न बनो (तसलीस से) बाज़ रहो (और) अपनी भलाई (तौहीद) का क़सद करो अल्लाह तो बस यक्ता माबूद है वह उस (नुक़्स) से पाक व पाकीज़ा है उसका कोई लड़का हो (उसे लड़के की हाजत ही क्या है) जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है सब तो उसी का है और ख़ुदा तो कारसाज़ी में काफ़ी है (171) 

ला युहिब्बुल्लाह

لَّن يَسْتَنكِفَ الْمَسِيحُ أَن يَكُونَ عَبْداً لِّلّهِ وَلاَ الْمَلآئِكَةُ الْمُقَرَّبُونَ وَمَن يَسْتَنكِفْ عَنْ عِبَادَتِهِ وَيَسْتَكْبِرْ فَسَيَحْشُرُهُمْ إِلَيهِ جَمِيعًا {172}

न तो मसीह ही ख़ुदा का बन्दा होने से हरगिज़ इन्कार कर सकते हैं और न (ख़ुदा के) मुक़र्रर फ़रिश्ते और (याद रहे) जो शख़्स उसके बन्दा होने से इन्कार करेगा और शेख़ी करेगा तो अनक़रीब ही ख़ुदा उन सबको अपनी तरफ़ उठा लेगा (और हर एक को उसके काम की जज़ा व सज़ा देगा) (172) 

ला युहिब्बुल्लाह

فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُواْ وَعَمِلُواْ الصَّالِحَاتِ فَيُوَفِّيهِمْ أُجُورَهُمْ وَيَزيدُهُم مِّن فَضْلِهِ وَأَمَّا الَّذِينَ اسْتَنكَفُواْ وَاسْتَكْبَرُواْ فَيُعَذِّبُهُمْ عَذَابًا أَلُيمًا وَلاَ يَجِدُونَ لَهُم مِّن دُونِ اللّهِ وَلِيًّا وَلاَ نَصِيرًا {173}

बस जिन लोगों ने ईमान कु़बूल किया है और अच्छे (अच्छे) काम किए हैं उनका उन्हें सवाब पूरा पूरा भर देगा बल्कि अपने फ़ज़ल (व करम) से कुछ और ज़्यादा ही देगा और लोग उसका बन्दा होने से इन्कार करते थे और शेख़ी करते थे उन्हें तो दर्दनाक अज़ाब में मुब्तिला करेगा और लुत्फ़ ये है कि वह लोग ख़ुदा के सिवा न अपना सरपरस्त ही पायेगें और न मददगार (173) 

ला युहिब्बुल्लाह

يَا أَيُّهَا النَّاسُ قَدْ جَاءكُم بُرْهَانٌ مِّن رَّبِّكُمْ وَأَنزَلْنَا إِلَيْكُمْ نُورًا مُّبِينًا {174}

ऐ लोगों इसमें तो शक ही नहीं कि तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (दीने हक़ की) दलील आ चुकी और हम तुम्हारे पास एक चमकता हुआ नूर नाजि़ल कर चुके हैं (174) 

ला युहिब्बुल्लाह

فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُواْ بِاللّهِ وَاعْتَصَمُواْ بِهِ فَسَيُدْخِلُهُمْ فِي رَحْمَةٍ مِّنْهُ وَفَضْلٍ وَيَهْدِيهِمْ إِلَيْهِ صِرَاطًا مُّسْتَقِيمًا {175}

बस जो लोग ख़ुदा पर ईमान लाए और उसी से लगे लिपटे रहे तो ख़ुदा भी उन्हें अनक़रीब ही अपनी रहमत व फ़ज़ल के शादाब बाग़ो में पहुँचा देगा और उन्हे अपने हुज़ूरी का सीधा रास्ता दिखा देगा (175) 

ला युहिब्बुल्लाह

يَسْتَفْتُونَكَ قُلِ اللّهُ يُفْتِيكُمْ فِي الْكَلاَلَةِ إِنِ امْرُؤٌ هَلَكَ لَيْسَ لَهُ وَلَدٌ وَلَهُ أُخْتٌ فَلَهَا نِصْفُ مَا تَرَكَ وَهُوَ يَرِثُهَا إِن لَّمْ يَكُن لَّهَا وَلَدٌ فَإِن كَانَتَا اثْنَتَيْنِ فَلَهُمَا الثُّلُثَانِ مِمَّا تَرَكَ وَإِن كَانُواْ إِخْوَةً رِّجَالاً وَنِسَاء فَلِلذَّكَرِ مِثْلُ حَظِّ الأُنثَيَيْنِ يُبَيِّنُ اللّهُ لَكُمْ أَن تَضِلُّواْ وَاللّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ {176}

(ऐ रसूल) तुमसे लोग फ़तवा तलब करते हैं तुम कह दो कि कलाला (भाई बहन) के बारे में ख़ुदा तो ख़ुद तुम्हे फ़तवा देता है कि अगर कोई ऐसा शख़्स मर जाए कि उसके न कोई लड़का बाला हो (न माँ बाप) और उसके (सिर्फ) एक बहन हो तो उसका तरके से आधा होगा (और अगर ये बहन मर जाए) और उसके कोई औलाद न हो (न माँ बाप) तो उसका वारिस बस यही भाई होगा और अगर दो बहनें (ज़्यादा) हों तो उनको (भाई के) तरके से दो तिहाई मिलेगा और अगर किसी के वारिस भाई बहन दोनों (मिले जुले) हों तो मर्द को औरत के हिस्से का दुगना मिलेगा तुम लोगों के भटकने के ख़्याल से ख़ुदा अपने एहकाम वाजे करके बयान फ़रमाता है और ख़ुदा तो हर चीज़ से वाकि़फ़ है (176)

ला युहिब्बुल्लाह

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ

(मैं) उस ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है 

ला युहिब्बुल्लाह

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ أَوْفُواْ بِالْعُقُودِ أُحِلَّتْ لَكُم بَهِيمَةُ الأَنْعَامِ إِلاَّ مَا يُتْلَى عَلَيْكُمْ غَيْرَ مُحِلِّي الصَّيْدِ وَأَنتُمْ حُرُمٌ إِنَّ اللّهَ يَحْكُمُ مَا يُرِيدُ {1}

ऐ ईमानदारों (अपने) इक़रारों को पूरा करो (देखो) तुम्हारे वास्ते चैपाए जानवर हलाल कर दिये गये उन के सिवा जो तुमको पढ़ कर सुनाए जाएगे हलाल कर दिए गए मगर जब तुम हालते एहराम में हो तो शिकार को हलाल न समझना बेशक ख़ुदा जो चाहता है हुक्म देता है (1) 

ला युहिब्बुल्लाह

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تُحِلُّواْ شَعَآئِرَ اللّهِ وَلاَ الشَّهْرَ الْحَرَامَ وَلاَ الْهَدْيَ وَلاَ الْقَلآئِدَ وَلا آمِّينَ الْبَيْتَ الْحَرَامَ يَبْتَغُونَ فَضْلاً مِّن رَّبِّهِمْ وَرِضْوَانًا وَإِذَا حَلَلْتُمْ فَاصْطَادُواْ وَلاَ يَجْرِمَنَّكُمْ شَنَآنُ قَوْمٍ أَن صَدُّوكُمْ عَنِ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ أَن تَعْتَدُواْ وَتَعَاوَنُواْ عَلَى الْبرِّ وَالتَّقْوَى وَلاَ تَعَاوَنُواْ عَلَى الإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ وَاتَّقُواْ اللّهَ إِنَّ اللّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ {2}

ऐ ईमानदारों (देखो) न ख़ुदा की निशानियों की बेतौक़ीरी करो और न हुरमत वाले महीने की और न क़ुरबानी की और न पट्टे वाले जानवरों की (जो नज़रे ख़ुदा के लिए निशान देकर मिना में ले जाते हैं) और न ख़ानाए काबा की तवाफ़ (व जि़यारत) का क़स्द करने वालों की जो अपने परवरदिगार की ख़ुशनूदी और फ़ज़ल (व करम) के जोयाँ हैं और जब तुम (एहराम) खोल दो तो शिकार कर सकते हो और किसी क़बीले की यह अदावत कि तुम्हें उन लोगों ने ख़ानाए काबा (में जाने) से रोका था इस जुर्म में न फॅसवा दे कि तुम उनपर ज़्यादती करने लगो और (तुम्हारा तो फ़र्ज यह है कि ) नेकी और परहेज़गारी में एक दूसरे की मदद किया करो और गुनाह और ज़्यादती में बाहम किसी की मदद न करो और ख़ुदा से डरते रहो (क्योंकि) ख़ुदा तो यक़ीनन बड़ा सख़्त अज़ाब वाला है (2) 

ला युहिब्बुल्लाह

حُرِّمَتْ عَلَيْكُمُ الْمَيْتَةُ وَالْدَّمُ وَلَحْمُ الْخِنْزِيرِ وَمَا أُهِلَّ لِغَيْرِ اللّهِ بِهِ وَالْمُنْخَنِقَةُ وَالْمَوْقُوذَةُ وَالْمُتَرَدِّيَةُ وَالنَّطِيحَةُ وَمَا أَكَلَ السَّبُعُ إِلاَّ مَا ذَكَّيْتُمْ وَمَا ذُبِحَ عَلَى النُّصُبِ وَأَن تَسْتَقْسِمُواْ بِالأَزْلاَمِ ذَلِكُمْ فِسْقٌ الْيَوْمَ يَئِسَ الَّذِينَ كَفَرُواْ مِن دِينِكُمْ فَلاَ تَخْشَوْهُمْ وَاخْشَوْنِ الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ الإِسْلاَمَ دِينًا فَمَنِ اضْطُرَّ فِي مَخْمَصَةٍ غَيْرَ مُتَجَانِفٍ لِّإِثْمٍ فَإِنَّ اللّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ {3}

(लोगों) मरा हुआ जानवर और ख़ून और सुअर का गोश्त और जिस (जानवर) पर (जि़बाह) के वक़्त ख़ुदा के सिवा किसी दूसरे का नाम लिया जाए और गर्दन मरोड़ा हुआ और चोट खाकर मरा हुआ और जो कुएं (वगै़रह) में गिरकर मर जाए और जो सींग से मार डाला गया हो और जिसको दरिन्दे ने फाड़ खाया हो मगर जिसे तुमने मरने के क़ब्ल जि़बाह कर लो और (जो जानवर) बुतों (के थान) पर चढ़ा कर ज़िबाह किया जाए और जिसे तुम (पाँसे) के तीरों से बाहम हिस्सा बाटो(ग़रज़ यह सब चीज़ें) तुम पर हराम की गयी हैं ये गुनाह की बात है (मुसलमानों) अब तो कुफ़्फ़ार तुम्हारे दीन से (फिर जाने से) मायूस हो गए तो तुम उनसे तो डरो ही नहीं बल्कि सिर्फ मुझी से डरो आज मैंने तुम्हारे दीन को कामिल कर दिया और तुमपर अपनी नेअमत पूरी कर दी और तुम्हारे (इस) दीने इस्लाम को पसन्द किया बस जो शख़्स भूख़ में मजबूर हो जाए और गुनाह की तरफ़ माएल भी न हो (और कोई चीज़ खा ले) तो ख़ुदा बेशक बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (3) 

ला युहिब्बुल्लाह

يَسْأَلُونَكَ مَاذَا أُحِلَّ لَهُمْ قُلْ أُحِلَّ لَكُمُ الطَّيِّبَاتُ وَمَا عَلَّمْتُم مِّنَ الْجَوَارِحِ مُكَلِّبِينَ تُعَلِّمُونَهُنَّ مِمَّا عَلَّمَكُمُ اللّهُ فَكُلُواْ مِمَّا أَمْسَكْنَ عَلَيْكُمْ وَاذْكُرُواْ اسْمَ اللّهِ عَلَيْهِ وَاتَّقُواْ اللّهَ إِنَّ اللّهَ سَرِيعُ الْحِسَابِ {4}

(ऐ रसूल) तुमसे लोग पूछतें हैं कि कौन (कौन) चीज़ उनके लिए हलाल की गयी है तुम (उनसे) कह दो कि तुम्हारे लिए पाकीज़ा चीजें हलाल की गयीं और शिकारी जानवर जो तुमने शिकार के लिए सधा रखें है और जो (तरीके़) ख़ुदा ने तुम्हें बताये हैं उनमें के कुछ तुमने उन जानवरों को भी सिखाया हो तो ये शिकारी जानवर जिस शिकार को तुम्हारे लिए पकड़ रखें उसको (बेताम्मुल) खाओ और (जानवर को छोंड़ते वक़्त) ख़ुदा का नाम ले लिया करो और ख़ुदा से डरते रहो (क्योंकि) इसमें तो शक ही नहीं कि ख़ुदा बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है (4) 

ला युहिब्बुल्लाह

الْيَوْمَ أُحِلَّ لَكُمُ الطَّيِّبَاتُ وَطَعَامُ الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ حِلٌّ لَّكُمْ وَطَعَامُكُمْ حِلُّ لَّهُمْ وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ الْمُؤْمِنَاتِ وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ مِن قَبْلِكُمْ إِذَا آتَيْتُمُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ مُحْصِنِينَ غَيْرَ مُسَافِحِينَ وَلاَ مُتَّخِذِي أَخْدَانٍ وَمَن يَكْفُرْ بِالإِيمَانِ فَقَدْ حَبِطَ عَمَلُهُ وَهُوَ فِي الآخِرَةِ مِنَ الْخَاسِرِينَ {5}

आज तमाम पाकीज़ा चीजें तुम्हारे लिए हलाल कर दी गयी हैं और एहले किताब की ख़ुश्क चीजे़ं गेहूँ (वगैरह) तुम्हारे लिए हलाल हैं और तुम्हारी ख़ुश्क चीजें गेहॅू (वगैरह) उनके लिए हलाल हैं और आज़ाद पाक दामन औरतें और उन लोगों में की आज़ाद पाक दामन औरतें जिनको तुमसे पहले किताब दी जा चुकी है जब तुम उनको उनके मेहर दे दो (और) पाक दामिनी का इरादा करो न तो खुल्लम खुल्ला जि़नाकारी का और न चोरी छिपे से आशनाई का और जिस शख़्स ने ईमान से इन्कार किया तो उसका सब किया (धरा) अकारत हो गया और (तुल्फ़ तो ये है कि) आख़ेरत में भी वही घाटे में रहेगा (5) 

ला युहिब्बुल्लाह

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إِذَا قُمْتُمْ إِلَى الصَّلاةِ فاغْسِلُواْ وُجُوهَكُمْ وَأَيْدِيَكُمْ إِلَى الْمَرَافِقِ وَامْسَحُواْ بِرُؤُوسِكُمْ وَأَرْجُلَكُمْ إِلَى الْكَعْبَينِ وَإِن كُنتُمْ جُنُبًا فَاطَّهَّرُواْ وَإِن كُنتُم مَّرْضَى أَوْ عَلَى سَفَرٍ أَوْ جَاء أَحَدٌ مَّنكُم مِّنَ الْغَائِطِ أَوْ لاَمَسْتُمُ النِّسَاء فَلَمْ تَجِدُواْ مَاء فَتَيَمَّمُواْ صَعِيدًا طَيِّبًا فَامْسَحُواْ بِوُجُوهِكُمْ وَأَيْدِيكُم مِّنْهُ مَا يُرِيدُ اللّهُ لِيَجْعَلَ عَلَيْكُم مِّنْ حَرَجٍ وَلَـكِن يُرِيدُ لِيُطَهَّرَكُمْ وَلِيُتِمَّ نِعْمَتَهُ عَلَيْكُمْ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ {6}

ऐ इमानदारों जब तुम नमाज़ के लिये आमादा हो तो अपने मुँह और कोहनियों तक हाथ धो लिया करो और अपने सरों का और टखनों तक पॉवों का मसाह कर लिया करो और अगर तुम हालते जनाबत में हो तो तुम तहारत (ग़ुस्ल) कर लो (हाँ) और अगर तुम बीमार हो या सफ़र में हो या तुममें से किसी को पैख़ाना निकल आए या औरतों से हमबिस्तरी की हो और तुमको पानी न मिल सके तो पाक ख़ाक से तैमूम कर लो यानि (दोनों हाथ मारकर) उससे अपने मुँह और अपने हाथों का मसा कर लो (देखो तो ख़ुदा ने कैसी आसानी कर दी) ख़ुदा तो ये चाहता ही नहीं कि तुम पर किसी तरह की तंगी करे बल्कि वो ये चाहता है कि पाक व पाकीज़ा कर दे और तुमपर अपनी नेअमते पूरी कर दे ताकि तुम शुक्रगुज़ार बन जाओ (6)

ला युहिब्बुल्लाह

وَاذْكُرُواْ نِعْمَةَ اللّهِ عَلَيْكُمْ وَمِيثَاقَهُ الَّذِي وَاثَقَكُم بِهِ إِذْ قُلْتُمْ سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا وَاتَّقُواْ اللّهَ إِنَّ اللّهَ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ {7}

और जो एहसानात ख़ुदा ने तुमपर किए हैं उनको और उस (एहद व पैमान) को याद करो जिसका तुमसे पक्का इक़रार ले चुका है जब तुमने कहा था कि हमने (एहकामे ख़ुदा को) सुना और दिल से मान लिया और ख़ुदा से डरते रहो क्योंकि इसमें ज़रा भी शक नहीं कि ख़ुदा दिलों के राज़ से भी बाख़बर है (7)

ला युहिब्बुल्लाह

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ كُونُواْ قَوَّامِينَ لِلّهِ شُهَدَاء بِالْقِسْطِ وَلاَ يَجْرِمَنَّكُمْ شَنَآنُ قَوْمٍ عَلَى أَلاَّ تَعْدِلُواْ اعْدِلُواْ هُوَ أَقْرَبُ لِلتَّقْوَى وَاتَّقُواْ اللّهَ إِنَّ اللّهَ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ {8}

ऐ ईमानदारों ख़ुदा (की ख़ुशनूदी) के लिए इन्साफ़ के साथ गवाही देने के लिए तैयार रहो और तुम्हें किसी क़बीले की अदावत इस जुर्म में न फॅसवा दे कि तुम नाइन्साफी करने लगो (ख़बरदार बल्कि) तुम (हर हाल में) इन्साफ़ करो यही परहेज़गारी से बहुत क़रीब है और ख़ुदा से डरो क्योंकि जो कुछ तुम करते हो (अच्छा या बुरा) ख़ुदा उसे ज़रूर जानता है (8)

ला युहिब्बुल्लाह

وَعَدَ اللّهُ الَّذِينَ آمَنُواْ وَعَمِلُواْ الصَّالِحَاتِ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ عَظِيمٌ {9}

और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए ख़ुदा ने वायदा किया है कि उनके लिए (आखि़रत में) मग़फे़रत और बड़ा सवाब है (9)

ला युहिब्बुल्लाह

وَالَّذِينَ كَفَرُواْ وَكَذَّبُواْ بِآيَاتِنَا أُوْلَـئِكَ أَصْحَابُ الْجَحِيمِ {10}

और जिन लोगों ने कुफ्ऱ इख़्तेयार किया और हमारी आयतों को झुठलाया वह जहन्नुमी हैं ((10)

ला युहिब्बुल्लाह

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اذْكُرُواْ نِعْمَتَ اللّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ هَمَّ قَوْمٌ أَن يَبْسُطُواْ إِلَيْكُمْ أَيْدِيَهُمْ فَكَفَّ أَيْدِيَهُمْ عَنكُمْ وَاتَّقُواْ اللّهَ وَعَلَى اللّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُونَ {11}

ऐ इमानदारों ख़ुदा ने जो एहसानात तुमपर किए हैं उनको याद करो और ख़ूसूसन जब एक क़बीले ने तुम पर दस्त दराज़ी का इरादा किया था तो ख़ुदा ने उनके हाथों को तुम तक पहँचने से रोक दिया और ख़ुदा से डरते रहो और मोमिनीन को ख़ुदा ही पर भरोसा रखना चाहिए (11)

ला युहिब्बुल्लाह

وَلَقَدْ أَخَذَ اللّهُ مِيثَاقَ بَنِي إِسْرَائِيلَ وَبَعَثْنَا مِنهُمُ اثْنَيْ عَشَرَ نَقِيبًا وَقَالَ اللّهُ إِنِّي مَعَكُمْ لَئِنْ أَقَمْتُمُ الصَّلاَةَ وَآتَيْتُمُ الزَّكَاةَ وَآمَنتُم بِرُسُلِي وَعَزَّرْتُمُوهُمْ وَأَقْرَضْتُمُ اللّهَ قَرْضًا حَسَنًا لَّأُكَفِّرَنَّ عَنكُمْ سَيِّئَاتِكُمْ وَلأُدْخِلَنَّكُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ فَمَن كَفَرَ بَعْدَ ذَلِكَ مِنكُمْ فَقَدْ ضَلَّ سَوَاء السَّبِيلِ {12}

और इसमें भी शक नहीं कि ख़ुदा ने बनी इसराईल से (भी ईमान का) एहद व पैमान ले लिया था और हम (ख़ुदा) ने इनमें के बारह सरदार उनपर मुक़र्रर किए और ख़ुदा ने बनी इसराईल से फ़रमाया था कि मैं तो यक़ीनन तुम्हारे साथ हॅू अगर तुम भी पाबन्दी से नमाज़ पढ़ते और ज़कात देते रहो और हमारे पैग़म्बरों पर ईमान लाओ और उनकी मदद करते रहो और ख़ुदा (की ख़ुशनूदी के वास्ते लोगों को) क़र्जे हसना देते रहो तो मैं भी तुम्हारे गुनाह तुमसे ज़रूर दूर करूंगा और तुमको बेहिश्त के उन (हरे भरे ) बाग़ों में जा पहँच जाऊंगा जिनके (दरख़्तों के) नीचे नहरें जारी हैं फिर तुममें से जो शख़्स इसके बाद भी इन्कार करे तो यक़ीनन वह राहे रास्त से भटक गया (12)

ला युहिब्बुल्लाह

فَبِمَا نَقْضِهِم مِّيثَاقَهُمْ لَعنَّاهُمْ وَجَعَلْنَا قُلُوبَهُمْ قَاسِيَةً يُحَرِّفُونَ الْكَلِمَ عَن مَّوَاضِعِهِ وَنَسُواْ حَظًّا مِّمَّا ذُكِّرُواْ بِهِ وَلاَ تَزَالُ تَطَّلِعُ عَلَىَ خَآئِنَةٍ مِّنْهُمْ إِلاَّ قَلِيلاً مِّنْهُمُ فَاعْفُ عَنْهُمْ وَاصْفَحْ إِنَّ اللّهَ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ {13}

बस हमने उनकी एहद शिकनी की वजह से उनपर लानत की और उनके दिलों को (गोया) हमने ख़ुद सख़्त बना दिया कि (हमारे) कलमात को उनके असली मायनों से बदल कर दूसरे मायनो में इस्तेमाल करते हैं और जिन जिन बातों की उन्हें नसीहत की गयी थी उनमें से एक बड़ा हिस्सा भुला बैठे और (ऐ रसूल) अब तो उनमें से चन्द आदमियों के सिवा एक न एक की ख़्यानत पर बराबर मुत्तेला होते रहते हो तो तुम उन (के क़सूर) को माफ़ कर दो और (उनसे) दरगुज़र करो (क्योंकि) ख़ुदा एहसान करने वालों को ज़रूर दोस्त रखता है (13)

ला युहिब्बुल्लाह

وَمِنَ الَّذِينَ قَالُواْ إِنَّا نَصَارَى أَخَذْنَا مِيثَاقَهُمْ فَنَسُواْ حَظًّا مِّمَّا ذُكِّرُواْ بِهِ فَأَغْرَيْنَا بَيْنَهُمُ الْعَدَاوَةَ وَالْبَغْضَاء إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ وَسَوْفَ يُنَبِّئُهُمُ اللّهُ بِمَا كَانُواْ يَصْنَعُونَ {14}

और जो लोग कहते हैं कि हम नसरानी हैं उनसे (भी) हमने इमान का एहद (व पैमान) लिया था मगर जिन जिन बातों की उन्हें नसीहत की गयी थी उनमें से एक बड़ा हिस्सा (रिसालत) भुला बैठे तो हमने भी (उसकी सज़ा में) क़यामत तक उनमें बाहम अदावत व दुशमनी की बुनियाद डाल दी और ख़ुदा उन्हें बहुत जल्द (क़यामत के दिन) बता देगा कि वह क्या क्या करते थे (14)

ला युहिब्बुल्लाह

يَا أَهْلَ الْكِتَابِ قَدْ جَاءكُمْ رَسُولُنَا يُبَيِّنُ لَكُمْ كَثِيراً مِّمَّا كُنتُمْ تُخْفُونَ مِنَ الْكِتَابِ وَيَعْفُو عَن كَثِيرٍ قَدْ جَاءكُم مِّنَ اللّهِ نُورٌ وَكِتَابٌ مُّبِينٌ {15}

ऐ एहले किताब तुम्हारे पास हमारा पैगम्बर (मोहम्मद स0) आ चुका जो किताबे ख़ुदा की उन बातों में से जिन्हें तुम छुपाया करते थे बहुतेरी तो साफ़ साफ़ बयान कर देगा और बहुतेरी से (अमदन) दरगुज़र करेगा तुम्हरे पास तो ख़ुदा की तरफ़ से एक (चमकता हुआ) नूर और साफ़ साफ़ बयान करने वाली किताब (कु़रान) आ चुकी है (15)

ला युहिब्बुल्लाह

يَهْدِي بِهِ اللّهُ مَنِ اتَّبَعَ رِضْوَانَهُ سُبُلَ السَّلاَمِ وَيُخْرِجُهُم مِّنِ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ بِإِذْنِهِ وَيَهْدِيهِمْ إِلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ {16}

जो लोग ख़ुदा की ख़ुशनूदी के पाबन्द हैं उनको तो उसके ज़रिए से राहे निजात की हिदायत करता है और अपने हुक्म से (कुफ़्र की) तारीकी से निकालकर (ईमान की) रौशनी में लाता है और राहे रास्त पर पहँचा देता है (16)

ला युहिब्बुल्लाह

لَّقَدْ كَفَرَ الَّذِينَ قَآلُواْ إِنَّ اللّهَ هُوَ الْمَسِيحُ ابْنُ مَرْيَمَ قُلْ فَمَن يَمْلِكُ مِنَ اللّهِ شَيْئًا إِنْ أَرَادَ أَن يُهْلِكَ الْمَسِيحَ ابْنَ مَرْيَمَ وَأُمَّهُ وَمَن فِي الأَرْضِ جَمِيعًا وَلِلّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا يَخْلُقُ مَا يَشَاء وَاللّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ {17}

जो लोग उसके क़ायल हैं कि मरियम के बेटे मसीह बस ख़ुदा हैं वह ज़रूर काफि़र हो गए (ऐ रसूल) उनसे पूछो तो कि भला अगर ख़ुदा मरियम के बेटे मसीह और उनकी माँ को और जितने लोग ज़मीन में हैं सबको मार डालना चाहे तो कौन ऐसा है जिसका ख़ुदा से भी ज़ोर चले (और रोक दे) और सारे आसमान और ज़मीन में और जो कुछ भी उनके दरम्यिान में है सब ख़ुदा ही की सल्तनत है जो चाहता है पैदा करता है और ख़ुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर है (17)

ला युहिब्बुल्लाह

وَقَالَتِ الْيَهُودُ وَالنَّصَارَى نَحْنُ أَبْنَاء اللّهِ وَأَحِبَّاؤُهُ قُلْ فَلِمَ يُعَذِّبُكُم بِذُنُوبِكُم بَلْ أَنتُم بَشَرٌ مِّمَّنْ خَلَقَ يَغْفِرُ لِمَن يَشَاء وَيُعَذِّبُ مَن يَشَاء وَلِلّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا وَإِلَيْهِ الْمَصِيرُ {18}

और नसरानी और यहूदी तो कहते हैं कि हम ही ख़ुदा के बेटे और उसके चहेते हैं (ऐ रसूल) उनसे तुम कह दो (कि अगर ऐसा है) तो फिर तुम्हें तुम्हारे गुनाहों की सज़ा क्यों देता है (तुम्हारा ख़्याल लग़ो है) बल्कि तुम भी उसकी मख़लूक़ात से एक बशर हो ख़ुदा जिसे चाहेगा बख्श देगा और जिसको चाहेगा सज़ा देगा आसमान और ज़मीन और जो कुछ उन दोनों के दरम्यिान में है सब ख़ुदा ही का मुल्क है और सबको उसी की तरफ़ लौट कर जाना है (18)

ला युहिब्बुल्लाह

يَا أَهْلَ الْكِتَابِ قَدْ جَاءكُمْ رَسُولُنَا يُبَيِّنُ لَكُمْ عَلَى فَتْرَةٍ مِّنَ الرُّسُلِ أَن تَقُولُواْ مَا جَاءنَا مِن بَشِيرٍ وَلاَ نَذِيرٍ فَقَدْ جَاءكُم بَشِيرٌ وَنَذِيرٌ وَاللّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ {19}

ऐ एहले किताब जब पैग़म्बरों की आमद में बहुत रूकावट हुयी तो हमारा रसूल तुम्हारे पास आया जो एहकामे ख़ुदा को साफ़ साफ़ बयान करता है ताकि तुम कहीं ये न कह बैठो कि हमारे पास तो न कोई ख़ुशख़बरी देने वाला (पैग़म्बर) आया न (अज़ाब से) डराने वाला अब तो (ये नहीं कह सकते क्योंकि) यक़ीनन तुम्हारे पास ख़ुशख़बरी देने वाला और डराने वाला पैग़म्बर आ गया और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (19)

ला युहिब्बुल्लाह

وَإِذْ قَالَ مُوسَى لِقَوْمِهِ يَا قَوْمِ اذْكُرُواْ نِعْمَةَ اللّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ جَعَلَ فِيكُمْ أَنبِيَاء وَجَعَلَكُم مُّلُوكًا وَآتَاكُم مَّا لَمْ يُؤْتِ أَحَدًا مِّن الْعَالَمِينَ {20}

ऐ रसूल उनको वह वक़्त याद (दिलाओ) जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा था कि ऐ मेरी क़ौम जो नेअमते ख़ुदा ने तुमको दी है उसको याद करो इसलिए कि उसने तुम्हीं लोगों से बहुतेरे पैग़म्बर बनाए और तुम ही लोगों को बादशाह (भी) बनाया और तुम्हें वह नेअमतें दी हैं जो सारी ख़ुदायी में किसी एक को न दीं (20)

ला युहिब्बुल्लाह

يَا قَوْمِ ادْخُلُوا الأَرْضَ المُقَدَّسَةَ الَّتِي كَتَبَ اللّهُ لَكُمْ وَلاَ تَرْتَدُّوا عَلَى أَدْبَارِكُمْ فَتَنقَلِبُوا خَاسِرِينَ {21}

ऐ मेरी क़ौम (शाम) की उस मुक़द्दस ज़मीन में जाओ जहाँ ख़ुदा ने तुम्हारी तक़दीर में (हुकूमत) लिख दी है और दुशमन के मुक़ाबले पीठ न फेरो (क्योंकि) इसमें तो तुम ख़ुद उलटा घाटा उठाओगे (21)

ला युहिब्बुल्लाह

قَالُوا يَا مُوسَى إِنَّ فِيهَا قَوْمًا جَبَّارِينَ وَإِنَّا لَن نَّدْخُلَهَا حَتَّىَ يَخْرُجُواْ مِنْهَا فَإِن يَخْرُجُواْ مِنْهَا فَإِنَّا دَاخِلُونَ {22}

वह लोग कहने लगे कि ऐ मूसा इस मुल्क में तो बड़े ज़बरदस्त (सरकश) लोग रहते हैं और जब तक वह लोग इसमें से निकल न जाए हम तो उसमें कभी पॉव भी न रखेंगे हाँ अगर वह लोग ख़ुद इसमें से निकल जाए तो अलबत्ता हम ज़रूर जाएगे (22)

ला युहिब्बुल्लाह

قَالَ رَجُلاَنِ مِنَ الَّذِينَ يَخَافُونَ أَنْعَمَ اللّهُ عَلَيْهِمَا ادْخُلُواْ عَلَيْهِمُ الْبَابَ فَإِذَا دَخَلْتُمُوهُ فَإِنَّكُمْ غَالِبُونَ وَعَلَى اللّهِ فَتَوَكَّلُواْ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ {23}

(मगर) वह आदमी (यूशा क़लिब) जो ख़ुदा का ख़ौफ़ रखते थे और जिनपर ख़ुदा ने ख़ास अपना फ़ज़ल (करम) किया था बेधड़क बोल उठे कि (अरे) उनपर हमला करके (बैतुल मुक़दस के फाटक में तो घुस पड़ो फिर देखो तो यह ऐसे बोदे हैं कि) इधर तुम फाटक में घुसे और (ये सब भाग खड़े हुए और) तुम्हारी जीत हो गयी और अगर सच्चे ईमानदार हो तो ख़ुदा ही पर भरोसा रखो (23)

ला युहिब्बुल्लाह

قَالُواْ يَا مُوسَى إِنَّا لَن نَّدْخُلَهَا أَبَدًا مَّا دَامُواْ فِيهَا فَاذْهَبْ أَنتَ وَرَبُّكَ فَقَاتِلا إِنَّا هَاهُنَا قَاعِدُونَ {24}

वह कहने लगे एक मूसा (चाहे जो कुछ हो) जब तक वह लोग इसमें हैं हम तो उसमें हरगिज़ (लाख बरस) पॉव न रखेंगे हाँ तुम जाओ और तुम्हारा ख़ुदा जाए ओर दोनों (जाकर) लड़ो हम तो यहीं जमे बैठे हैं (24)

ला युहिब्बुल्लाह

قَالَ رَبِّ إِنِّي لا أَمْلِكُ إِلاَّ نَفْسِي وَأَخِي فَافْرُقْ بَيْنَنَا وَبَيْنَ الْقَوْمِ الْفَاسِقِينَ {25}

तब मूसा ने अर्ज़ की ख़ुदावन्दा तू ख़ूब वाकि़फ़ है कि अपनी ज़ाते ख़ास और अपने भाई के सिवा किसी पर मेरा क़ाबू नहीं बस अब हमारे और उन नाफ़रमान लोगों के दरमियान जुदाई डाल दे (25)

ला युहिब्बुल्लाह

قَالَ فَإِنَّهَا مُحَرَّمَةٌ عَلَيْهِمْ أَرْبَعِينَ سَنَةً يَتِيهُونَ فِي الأَرْضِ فَلاَ تَأْسَ عَلَى الْقَوْمِ الْفَاسِقِينَ {26}

हमारा उनका साथ नहीं हो सकता (ख़ुदा ने फ़रमाया) (अच्छा) तो उनकी सज़ा यह है कि उनको चालीस बरस तक की हुकूमत नसीब न होगा (और उस मुद्दते दराज़ तक) यह लोग (मिस्र के) जंगल में सरगरदा रहेंगे तो फिर तुम इन बदचलन बन्दों पर अफ़सोस न करना (26) 

ला युहिब्बुल्लाह

وَاتْلُ عَلَيْهِمْ نَبَأَ ابْنَيْ آدَمَ بِالْحَقِّ إِذْ قَرَّبَا قُرْبَانًا فَتُقُبِّلَ مِن أَحَدِهِمَا وَلَمْ يُتَقَبَّلْ مِنَ الآخَرِ قَالَ لَأَقْتُلَنَّكَ قَالَ إِنَّمَا يَتَقَبَّلُ اللّهُ مِنَ الْمُتَّقِينَ {27}

(ऐ रसूल) तुम इन लोगों से आदम के दो बेटों (हाबील, क़ाबील) का सच्चा क़स्द बयान कर दो कि जब उन दोनों ने ख़ुदा की दरगाह में नियाज़ें चढ़ाई तो (उनमें से) एक (हाबील) की (नज़र तो) क़ुबूल हुयी और दूसरे (क़ाबील) की नज़र न क़ुबूल हुयी तो (मारे हसद के) हाबील से कहने लगा मैं तो तुझे ज़रूर मार डालूंगा उसने जवाब दिया कि (भाई इसमें अपना क्या बस है) ख़ुदा तो सिर्फ परहेज़गारों की नज़र कु़बूल करता है (27)

ला युहिब्बुल्लाह

لَئِن بَسَطتَ إِلَيَّ يَدَكَ لِتَقْتُلَنِي مَا أَنَاْ بِبَاسِطٍ يَدِيَ إِلَيْكَ لَأَقْتُلَكَ إِنِّي أَخَافُ اللّهَ رَبَّ الْعَالَمِينَ {28}

अगर तुम मेरे क़त्ल के इरादे से मेरी तरफ़ अपना हाथ बढ़ाओगे (तो ख़ैर बढ़ाओ) (मगर) मैं तो तुम्हारे क़त्ल के ख़्याल से अपना हाथ बढ़ाने वाला नहीं (क्योंकि) मैं तो उस ख़ुदा से जो सारे जहाँन का पालने वाला है ज़रूर डरता हॅू (28)

ला युहिब्बुल्लाह

إِنِّي أُرِيدُ أَن تَبُوءَ بِإِثْمِي وَإِثْمِكَ فَتَكُونَ مِنْ أَصْحَابِ النَّارِ وَذَلِكَ جَزَاء الظَّالِمِينَ {29}

मैं तो ज़रूर ये चाहता हॅू कि मेरे गुनाह और तेरे गुनाह दोनों तेरे सर हो जाए तो तू (अच्छा ख़ासा) जहन्नुमी बन जाए और ज़ालिमों की तो यही सज़ा है (29)

ला युहिब्बुल्लाह

فَطَوَّعَتْ لَهُ نَفْسُهُ قَتْلَ أَخِيهِ فَقَتَلَهُ فَأَصْبَحَ مِنَ الْخَاسِرِينَ {30}

फिर तो उसके नफ़्स ने अपने भाई के क़त्ल पर उसे भड़का ही दिया आखि़र उस (कम्बख़्त ने) उसको मार ही डाला तो घाटा उठाने वालों में से हो गया (30)

ला युहिब्बुल्लाह

فَبَعَثَ اللّهُ غُرَابًا يَبْحَثُ فِي الأَرْضِ لِيُرِيَهُ كَيْفَ يُوَارِي سَوْءةَ أَخِيهِ قَالَ يَا وَيْلَتَا أَعَجَزْتُ أَنْ أَكُونَ مِثْلَ هَـذَا الْغُرَابِ فَأُوَارِيَ سَوْءةَ أَخِي فَأَصْبَحَ مِنَ النَّادِمِينَ {31}

(तब उसे फि़क्र हुयी कि लाश को क्या करे) तो ख़ुदा ने एक कौवे को भेजा कि वह ज़मीन को कुरेदने लगा ताकि उसे (क़ाबील) को दिखा दे कि उसे अपने भाई की लाश क्योंकर छुपानी चाहिए (ये देखकर) वह कहने लगा हाए अफ़सोस क्या मैं उस से भी आजिज़ हॅू कि उस कौवे की बराबरी कर सकॅू कि (बला से यह भी होता) तो अपने भाई की लाश छुपा देता अलगरज़ वह (अपनी हरकत से) बहुत पछताया (31) 

ला युहिब्बुल्लाह

مِنْ أَجْلِ ذَلِكَ كَتَبْنَا عَلَى بَنِي إِسْرَائِيلَ أَنَّهُ مَن قَتَلَ نَفْسًا بِغَيْرِ نَفْسٍ أَوْ فَسَادٍ فِي الأَرْضِ فَكَأَنَّمَا قَتَلَ النَّاسَ جَمِيعًا وَمَنْ أَحْيَاهَا فَكَأَنَّمَا أَحْيَا النَّاسَ جَمِيعًا وَلَقَدْ جَاءتْهُمْ رُسُلُنَا بِالبَيِّنَاتِ ثُمَّ إِنَّ كَثِيراً مِّنْهُم بَعْدَ ذَلِكَ فِي الأَرْضِ لَمُسْرِفُونَ {32}

इसी सबब से तो हमने बनी इसराईल पर वाजिब कर दिया था कि जो श्शख़्स किसी को न जान के बदले में और न मुल्क में फ़साद फैलाने की सज़ा में (बल्कि नाहक़) क़त्ल कर डालेगा तो गोया उसने सब लोगों को क़त्ल कर डाला और जिसने एक आदमी को जिला दिया तो गोया उसने सब लोगों को जिला लिया और उन (बनी इसराईल) के पास तो हमारे पैग़म्बर (कैसे कैसे) रौशन मौजिज़े लेकर आ चुके हैं (मगर) फिर उसके बाद भी यक़ीनन उसमें से बहुतेरे ज़मीन पर ज़्यादतिया करते रहे (32) 

ला युहिब्बुल्लाह

إِنَّمَا جَزَاء الَّذِينَ يُحَارِبُونَ اللّهَ وَرَسُولَهُ وَيَسْعَوْنَ فِي الأَرْضِ فَسَادًا أَن يُقَتَّلُواْ أَوْ يُصَلَّبُواْ أَوْ تُقَطَّعَ أَيْدِيهِمْ وَأَرْجُلُهُم مِّنْ خِلافٍ أَوْ يُنفَوْاْ مِنَ الأَرْضِ ذَلِكَ لَهُمْ خِزْيٌ فِي الدُّنْيَا وَلَهُمْ فِي الآخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيمٌ {33}

जो लोग ख़ुदा और उसके रसूल से लड़ते भिड़ते हैं (और एहकाम को नहीं मानते) और फ़साद फैलाने की ग़रज़ से मुल्को (मुल्को) दौड़ते फिरते हैं उनकी सज़ा बस यही है कि (चुन चुनकर) या तो मार डाले जाए या उन्हें सूली दे दी जाए या उनके हाथ पॉव हेर फेर कर एक तरफ़ का हाथ दूसरी तरफ़ का पॉव काट डाले जाए या उन्हें (अपने वतन की) सरज़मीन से शहर बदर कर दिया जाए यह रूसवाई तो उनकी दुनिया में हुयी और फिर आख़ेरत में तो उनके लिए बहुत बड़ा अज़ाब ही है (33)

ला युहिब्बुल्लाह

إِلاَّ الَّذِينَ تَابُواْ مِن قَبْلِ أَن تَقْدِرُواْ عَلَيْهِمْ فَاعْلَمُواْ أَنَّ اللّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ {34}

मगर (हाँ) जिन लोगों ने इससे पहले कि तुम इनपर क़ाबू पाओ तौबा कर लीे तो उनका गुनाह बख़्श दिया जाएगा क्योंकि समझ लो कि ख़ुदा बेशक बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (34)

ला युहिब्बुल्लाह

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اتَّقُواْ اللّهَ وَابْتَغُواْ إِلَيهِ الْوَسِيلَةَ وَجَاهِدُواْ فِي سَبِيلِهِ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ {35}

ऐ ईमानदारों ख़ुदा से डरते रहो और उसके (तक़र्रब {क़रीब होने} के) ज़रिये की जुस्तजू में रहो और उसकी राह में जेहाद करो ताकि तुम कामयाब हो जाओ (35)

ला युहिब्बुल्लाह

إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ لَوْ أَنَّ لَهُم مَّا فِي الأَرْضِ جَمِيعًا وَمِثْلَهُ مَعَهُ لِيَفْتَدُواْ بِهِ مِنْ عَذَابِ يَوْمِ الْقِيَامَةِ مَا تُقُبِّلَ مِنْهُمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ {36}

इसमें शक नहीं कि जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया अगर उनके पास ज़मीन में जो कुछ (माल ख़ज़ाना) है (वह) सब बल्कि उतना और भी उसके साथ हो कि रोज़े क़यामत के अज़ाब का मुआवेज़ा दे दे (और ख़ुद बच जाए) तब भी (उसका ये मुआवेज़ा) कु़बूल न किया जाएगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है (36)

ला युहिब्बुल्लाह

يُرِيدُونَ أَن يَخْرُجُواْ مِنَ النَّارِ وَمَا هُم بِخَارِجِينَ مِنْهَا وَلَهُمْ عَذَابٌ مُّقِيمٌ {37}

वह लोग तो चाहेंगे कि किसी तरह जहन्नुम की आग से निकल भागे मगर वहाँ से तो वह निकल ही नहीं सकते और उनके लिए तो दाएमी अज़ाब है (37)

ला युहिब्बुल्लाह

وَالسَّارِقُ وَالسَّارِقَةُ فَاقْطَعُواْ أَيْدِيَهُمَا جَزَاء بِمَا كَسَبَا نَكَالاً مِّنَ اللّهِ وَاللّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ {38}

और चोर ख़्वाह मर्द हो या औरत तुम उनके करतूत की सज़ा में उनका (दाहिना) हाथ काट डालो ये (उनकी सज़ा) ख़ुदा की तरफ़ से है और ख़ुदा (तो) बड़ा ज़बरदस्त हिकमत वाला है (38)

ला युहिब्बुल्लाह

فَمَن تَابَ مِن بَعْدِ ظُلْمِهِ وَأَصْلَحَ فَإِنَّ اللّهَ يَتُوبُ عَلَيْهِ إِنَّ اللّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ {39}

हाँ जो अपने गुनाह के बाद तौबा कर ले और अपने चाल चलन दुरूस्त कर लें तो बेशक ख़ुदा भी तौबा कु़बूल कर लेता है क्योंकि ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (39)

ला युहिब्बुल्लाह

أَلَمْ تَعْلَمْ أَنَّ اللّهَ لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ يُعَذِّبُ مَن يَشَاء وَيَغْفِرُ لِمَن يَشَاء وَاللّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ {40}

ऐ शख़्स क्या तू नहीं जानता कि सारे आसमान व ज़मीन (ग़रज़ दुनिया जहान) में ख़ास ख़ुदा की हुकूमत है जिसे चाहे अज़ाब करे और जिसे चाहे माफ़ कर दे और ख़ुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर है (40)

ला युहिब्बुल्लाह

يَا أَيُّهَا الرَّسُولُ لاَ يَحْزُنكَ الَّذِينَ يُسَارِعُونَ فِي الْكُفْرِ مِنَ الَّذِينَ قَالُواْ آمَنَّا بِأَفْوَاهِهِمْ وَلَمْ تُؤْمِن قُلُوبُهُمْ وَمِنَ الَّذِينَ هِادُواْ سَمَّاعُونَ لِلْكَذِبِ سَمَّاعُونَ لِقَوْمٍ آخَرِينَ لَمْ يَأْتُوكَ يُحَرِّفُونَ الْكَلِمَ مِن بَعْدِ مَوَاضِعِهِ يَقُولُونَ إِنْ أُوتِيتُمْ هَـذَا فَخُذُوهُ وَإِن لَّمْ تُؤْتَوْهُ فَاحْذَرُواْ وَمَن يُرِدِ اللّهُ فِتْنَتَهُ فَلَن تَمْلِكَ لَهُ مِنَ اللّهِ شَيْئًا أُوْلَـئِكَ الَّذِينَ لَمْ يُرِدِ اللّهُ أَن يُطَهِّرَ قُلُوبَهُمْ لَهُمْ فِي الدُّنْيَا خِزْيٌ وَلَهُمْ فِي الآخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيمٌ {41}

ऐ रसूल जो लोग कुफ़्र की तरफ़ लपक के चले जाते हैं तुम उनका ग़म न खाओ उनमें बाज़ तो ऐसे हैं कि अपने मुँह से बे तकल्लुफ़ कह देते हैं कि हम ईमान लाए हालाँकि उनके दिल बेईमान हैं और बाज़ यहूदी ऐसे हैं कि (जासूसी की ग़रज़ से) झूठी बातें बहुत (शौक से) सुनते हैं ताकि कुफ़्फ़ार के दूसरे गिरोह को जो (अभी तक) तुम्हारे पास नहीं आए हैं सुनाए ये लोग (तौरैत के) अल्फ़ाज़ की उनके असली मायने (मालूम होने) के बाद भी तहरीफ़ करते हैं (और लोगों से) कहते हैं कि (ये तौरैत का हुक्म है) अगर मोहम्मद (स०) की तरफ़ से (भी) तुम्हें यही हुक्म दिया जाय तो उसे मान लेना और अगर यह हुक्म तुमको न दिया जाए तो उससे अलग ही रहना और (ऐ रसूल) जिसको ख़ुदा ख़राब करना चाहता है तो उसके वास्ते ख़ुदा से तुम्हारा कुछ ज़ोर नहीं चल सकता यह लोग तो वही हैं जिनके दिलों को ख़ुदा ने (गुनाहों से) पाक करने का इरादा ही नहीं किया (बल्कि) उनके लिए तो दुनिया में भी रूसवाई है और आख़ेरत में भी (उनके लिए) बड़ा (भारी) अज़ाब होगा (41)

ला युहिब्बुल्लाह

سَمَّاعُونَ لِلْكَذِبِ أَكَّالُونَ لِلسُّحْتِ فَإِن جَآؤُوكَ فَاحْكُم بَيْنَهُم أَوْ أَعْرِضْ عَنْهُمْ وَإِن تُعْرِضْ عَنْهُمْ فَلَن يَضُرُّوكَ شَيْئًا وَإِنْ حَكَمْتَ فَاحْكُم بَيْنَهُمْ بِالْقِسْطِ إِنَّ اللّهَ يُحِبُّ الْمُقْسِطِينَ {42}

ये (कम्बख़्त) झूठी बातों को बड़े शौक़ से सुनने वाले और बड़े ही हरामख़ोर हैं तो (ऐ रसूल (स०)) अगर ये लोग तुम्हारे पास (कोई मामला लेकर) आए तो तुमको इख़्तेयार है ख़्वाह उनके दरम्यिान फै़सला कर दो या उनसे किनाराकशी करो और अगर तुम किनाराकश रहोगे तो (कुछ ख़्याल न करो) ये लोग तुम्हारा हरगिज़ कुछ बिगाड़ नहीं सकते और अगर उनमें फै़सला करो तो इन्साफ़ से फै़सला करो क्योंकि ख़ुदा इन्साफ़ करने वालों को दोस्त रखता है (42)

ला युहिब्बुल्लाह

وَكَيْفَ يُحَكِّمُونَكَ وَعِندَهُمُ التَّوْرَاةُ فِيهَا حُكْمُ اللّهِ ثُمَّ يَتَوَلَّوْنَ مِن بَعْدِ ذَلِكَ وَمَا أُوْلَـئِكَ بِالْمُؤْمِنِينَ {43}

और जब ख़ुद उनके पास तौरेत है और उसमें ख़ुदा का हुक्म (मौजूद) है तो फिर तुम्हारे पास फैसला कराने को क्यों आते हैं और (लुत्फ़ तो ये है कि) इसके बाद फिर (तुम्हारे हुक्म से) फिर जाते हैं ओर सच तो यह है कि यह लोग ईमानदार ही नहीं हैं (43)

ला युहिब्बुल्लाह

إِنَّا أَنزَلْنَا التَّوْرَاةَ فِيهَا هُدًى وَنُورٌ يَحْكُمُ بِهَا النَّبِيُّونَ الَّذِينَ أَسْلَمُواْ لِلَّذِينَ هَادُواْ وَالرَّبَّانِيُّونَ وَالأَحْبَارُ بِمَا اسْتُحْفِظُواْ مِن كِتَابِ اللّهِ وَكَانُواْ عَلَيْهِ شُهَدَاء فَلاَ تَخْشَوُاْ النَّاسَ وَاخْشَوْنِ وَلاَ تَشْتَرُواْ بِآيَاتِي ثَمَنًا قَلِيلاً وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَا أَنزَلَ اللّهُ فَأُوْلَـئِكَ هُمُ الْكَافِرُونَ {44}

बेशक हम ने तौरेत नाजि़ल की जिसमें (लोगों की) हिदायत और नूर (ईमान) है उसी के मुताबिक़ ख़ुदा के फ़रमाबरदार बन्दे (अम्बियाए बनी इसराईल) यहूदियों को हुक्म देते रहे और अल्लाह वाले और उलेमाए (यहूद) भी किताबे ख़ुदा से (हुक्म देते थे) जिसके वह मुहाफि़ज़ बनाए गए थे और वह उसके गवाह भी थे बस (ऐ मुसलमानों) तुम लोगों से (ज़रा भी) न डरो (बल्कि) मुझ ही से डरो और मेरी आयतों के बदले में (दुनिया की दौलत जो दर हक़ीक़त बहुत थोड़ी क़ीमत है) न लो और (समझ लो कि) जो ख़्स ख़ुदा की नाजि़ल की हुयी (किताब) के मुताबिक़ हुक्म न दे तो ऐसे ही लोग काफि़र हैं (44)

ला युहिब्बुल्लाह

وَكَتَبْنَا عَلَيْهِمْ فِيهَا أَنَّ النَّفْسَ بِالنَّفْسِ وَالْعَيْنَ بِالْعَيْنِ وَالأَنفَ بِالأَنفِ وَالأُذُنَ بِالأُذُنِ وَالسِّنَّ بِالسِّنِّ وَالْجُرُوحَ قِصَاصٌ فَمَن تَصَدَّقَ بِهِ فَهُوَ كَفَّارَةٌ لَّهُ وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَا أنزَلَ اللّهُ فَأُوْلَـئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ {45}

और हम ने तौरेत में यहूदियों पर यह हुक्म फर्ज़ कर दिया था कि जान के बदले जान और आँख के बदले आँख और नाक के बदले नाक और कान के बदले कान और दाँत के बदले दाँत और जख़्म के बदले (वैसा ही) बराबर का बदला (जख़्म) है फिर जो (मज़लूम ज़ालिम की) ख़ता माफ़ कर दे तो ये उसके गुनाहों का कफ़्फ़ारा हो जाएगा और जो शख़्स ख़ुदा की नाजि़ल की हुयी (किताब) के मुवाफि़क़ हुक्म न दे तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं (45)

ला युहिब्बुल्लाह

وَقَفَّيْنَا عَلَى آثَارِهِم بِعَيسَى ابْنِ مَرْيَمَ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ التَّوْرَاةِ وَآتَيْنَاهُ الإِنجِيلَ فِيهِ هُدًى وَنُورٌ وَمُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ التَّوْرَاةِ وَهُدًى وَمَوْعِظَةً لِّلْمُتَّقِينَ {46}

और हम ने उन्हीं पैग़म्बरों के क़दम ब क़दम मरियम के बेटे ईसा (अ०) को चलाया और वह इस किताब तौरैत की भी तस्दीक़ करते थे जो उनके सामने (पहले से) मौजूद थी और हमने उनको इन्जील (भी) अता की जिसमें (लोगों के लिए हर तरह की) हिदायत थी और नूर (ईमान) और वह इस किताब तौरेत की जो वक़्ते नुज़ूले इन्जील (पहले से) मौजूद थी तसदीक़ करने वाली और परहेज़गारों की हिदायत व नसीहत थी (46)

ला युहिब्बुल्लाह

وَلْيَحْكُمْ أَهْلُ الإِنجِيلِ بِمَا أَنزَلَ اللّهُ فِيهِ وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَا أَنزَلَ اللّهُ فَأُوْلَـئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ {47}

और इन्जील वालों (नसारा) को जो कुछ ख़ुदा ने (उसमें) नाजि़ल किया है उसके मुताबिक़ हुक्म करना चाहिए और जो शख़्स ख़ुदा की नाजि़ल की हुयी (किताब के मुआफि़क) हुक्म न दे तो ऐसे ही लोग बदकार हैं (47)

ला युहिब्बुल्लाह

وَأَنزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ الْكِتَابِ وَمُهَيْمِنًا عَلَيْهِ فَاحْكُم بَيْنَهُم بِمَا أَنزَلَ اللّهُ وَلاَ تَتَّبِعْ أَهْوَاءهُمْ عَمَّا جَاءكَ مِنَ الْحَقِّ لِكُلٍّ جَعَلْنَا مِنكُمْ شِرْعَةً وَمِنْهَاجًا وَلَوْ شَاء اللّهُ لَجَعَلَكُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً وَلَـكِن لِّيَبْلُوَكُمْ فِي مَا آتَاكُم فَاسْتَبِقُوا الخَيْرَاتِ إِلَى الله مَرْجِعُكُمْ جَمِيعًا فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ {48}

और (ऐ रसूल) हमने तुम पर भी बरहक़ किताब नाजि़ल की जो किताब (उसके पहले से) उसके वक़्त में मौजूद है उसकी तसदीक़ करती है और उसकी निगेहबान (भी) है जो कुछ तुम पर ख़ुदा ने नाजि़ल किया है उसी के मुताबिक़ तुम भी हुक्म दो और जो हक़ बात ख़ुदा की तरफ़ से आ चुकी है उससे कतरा के उन लोगों की ख़्वाहिशे नफ़सियानी की पैरवी न करो और हमने तुम में हर एक के वास्ते (हस्बे मसलेहते वक़्त) एक एक शरीयत और ख़ास तरीक़े पर मुक़र्रर कर दिया और अगर ख़ुदा चाहता तो तुम सब के सब को एक ही (शरीयत की) उम्मत बना देता मगर (मुख़तलिफ़ शरीयतों से) ख़ुदा का मतलब यह था कि जो कुछ तुम्हें दिया है उसमें तुम्हारा इम्तेहान करे बस तुम नेकी में लपक कर आगे बढ़ जाओ और (यक़ीन जानो कि) तुम सब को ख़ुदा ही की तरफ़ लौट कर जाना है (48)

ला युहिब्बुल्लाह

وَأَنِ احْكُم بَيْنَهُم بِمَا أَنزَلَ اللّهُ وَلاَ تَتَّبِعْ أَهْوَاءهُمْ وَاحْذَرْهُمْ أَن يَفْتِنُوكَ عَن بَعْضِ مَا أَنزَلَ اللّهُ إِلَيْكَ فَإِن تَوَلَّوْاْ فَاعْلَمْ أَنَّمَا يُرِيدُ اللّهُ أَن يُصِيبَهُم بِبَعْضِ ذُنُوبِهِمْ وَإِنَّ كَثِيراً مِّنَ النَّاسِ لَفَاسِقُونَ {49}

तब (उस वक़्त) जिन बातों में तुम इख़्तेलाफ़ करते वह तुम्हें बता देगा और (ऐ रसूल) हम फिर कहते हैं कि जो एहकाम ख़ुदा नाजि़ल किए हैं तुम उसके मुताबिक़ फै़सला करो और उनकी (बेजा) ख़्वाहिशे नफ़सियानी की पैरवी न करो (बल्कि) तुम उनसे बचे रहो (ऐसा न हो) कि किसी हुक्म से जो ख़ुदा ने तुम पर नाजि़ल किया है तुमको ये लोग भटका दें फिर अगर ये लोग तुम्हारे हुक्म से मुँह मोड़ें तो समझ लो कि (गोया) ख़ुदा ही की मरज़ी है कि उनके बाज़ गुनाहों की वजह से उन्हें मुसीबत में फॅसा दे और इसमें तो शक ही नहीं कि बहुतेरे लोग बदचलन हैं (49)

ला युहिब्बुल्लाह

أَفَحُكْمَ الْجَاهِلِيَّةِ يَبْغُونَ وَمَنْ أَحْسَنُ مِنَ اللّهِ حُكْمًا لِّقَوْمٍ يُوقِنُونَ {50}

क्या ये लोग (ज़मानाए) जाहिलीयत के हुक्म की (तुमसे भी) तमन्ना रखते हैं हालाँकि यक़ीन करने वाले लोगों के वास्ते हुक्मे ख़ुदा से बेहतर कौन होगा (50)

ला युहिब्बुल्लाह

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَتَّخِذُواْ الْيَهُودَ وَالنَّصَارَى أَوْلِيَاء بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاء بَعْضٍ وَمَن يَتَوَلَّهُم مِّنكُمْ فَإِنَّهُ مِنْهُمْ إِنَّ اللّهَ لاَ يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ {51}

ऐ ईमानदारों यहूदियों और नसरानियों को अपना सरपरस्त न बनाओ (क्योंकि) ये लोग (तुम्हारे मुख़ालिफ़ हैं मगर) बाहम एक दूसरे के दोस्त हैं और (याद रहे कि) तुममें से जिसने उनको अपना सरपरस्त बनाया बस फिर वह भी उन्हीं लोगों में से हो गया बेशक ख़ुदा ज़ालिम लोगों को राहे रास्त पर नहीं लाता (51) 

ला युहिब्बुल्लाह

فَتَرَى الَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ يُسَارِعُونَ فِيهِمْ يَقُولُونَ نَخْشَى أَن تُصِيبَنَا دَآئِرَةٌ فَعَسَى اللّهُ أَن يَأْتِيَ بِالْفَتْحِ أَوْ أَمْرٍ مِّنْ عِندِهِ فَيُصْبِحُواْ عَلَى مَا أَسَرُّواْ فِي أَنْفُسِهِمْ نَادِمِينَ {52}

तो (ऐ रसूल) जिन लोगों के दिलों में (नेफ़ाक़ की) बीमारी है तुम उन्हें देखोगे कि उनमें दौड़ दौड़ के मिले जाते हैं और तुमसे उसकी वजह यह बयान करते हैं कि हम तो इससे डरते हैं कि कहीं ऐसा न हो उनके न (मिलने से) ज़माने की गर्दिश में न मुब्तिला हो जाए तो अनक़रीब ही ख़ुदा (मुसलमानों की) फ़तेह या कोई और बात अपनी तरफ़ से ज़ाहिर कर देगा तब यह लोग इस बदगुमानी पर जो अपने जी में छुपाते थे शर्माएंगे ((52)

ला युहिब्बुल्लाह

وَيَقُولُ الَّذِينَ آمَنُواْ أَهَـؤُلاء الَّذِينَ أَقْسَمُواْ بِاللّهِ جَهْدَ أَيْمَانِهِمْ إِنَّهُمْ لَمَعَكُمْ حَبِطَتْ أَعْمَالُهُمْ فَأَصْبَحُواْ خَاسِرِينَ {53}

और मोमिनीन (जब उन पर निफ़ाक़ ज़ाहिर हो जाएगा तो) कहेंगे क्या ये वही लोग हैं जो सख़्त से सख़्त क़समें खाकर (हमसे) कहते थे कि हम ज़रूर तुम्हारे साथ हैं उनका सारा किया धरा अकारत हुआ और सख़्त घाटे में आ गए (53)

ला युहिब्बुल्लाह

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ مَن يَرْتَدَّ مِنكُمْ عَن دِينِهِ فَسَوْفَ يَأْتِي اللّهُ بِقَوْمٍ يُحِبُّهُمْ وَيُحِبُّونَهُ أَذِلَّةٍ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ أَعِزَّةٍ عَلَى الْكَافِرِينَ يُجَاهِدُونَ فِي سَبِيلِ اللّهِ وَلاَ يَخَافُونَ لَوْمَةَ لآئِمٍ ذَلِكَ فَضْلُ اللّهِ يُؤْتِيهِ مَن يَشَاء وَاللّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ {54}

ऐ ईमानदारों तुममें से जो कोई अपने दीन से फिर जाएगा तो (कुछ परवाह नहीं फिर जाए) अनक़रीब ही ख़ुदा ऐसे लोगों को ज़ाहिर कर देगा जिन्हें ख़ुदा दोस्त रखता होगा और वह उसको दोस्त रखते होंगे ईमानदारों के साथ नर्म और मुन्किर (और) काफि़रों के साथ सख़्त ख़ुदा की राह में जेहाद करेंगे और किसी मलामत करने वाले की मलामत की कुछ परवाह न करेंगे ये ख़ुदा का फ़ज़ल (व करम) है वह जिसे चाहता हे देता है और ख़ुदा तो बड़ी गुन्जाइश वाला वाकि़फ़कार है (54)

ला युहिब्बुल्लाह

إِنَّمَا وَلِيُّكُمُ اللّهُ وَرَسُولُهُ وَالَّذِينَ آمَنُواْ الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلاَةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُمْ رَاكِعُونَ {55}

(ऐ ईमानदारों) तुम्हारे मालिक सरपरस्त तो बस यही हैं ख़ुदा और उसका रसूल और वह मोमिनीन जो पाबन्दी से नमाज़ अदा करते हैं और हालत रूकूउ में ज़कात देते हैं (55)

ला युहिब्बुल्लाह

وَمَن يَتَوَلَّ اللّهَ وَرَسُولَهُ وَالَّذِينَ آمَنُواْ فَإِنَّ حِزْبَ اللّهِ هُمُ الْغَالِبُونَ {56}

और जिस शख़्स ने ख़ुदा और रसूल और (उन्हीं) ईमानदारों को अपना सरपरस्त बनाया तो (ख़ुदा के लशकर में आ गया और) इसमें तो शक नहीं कि ख़ुदा ही का लशकर वर {ग़ालिब} रहता है (56)

ला युहिब्बुल्लाह

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَتَّخِذُواْ الَّذِينَ اتَّخَذُواْ دِينَكُمْ هُزُوًا وَلَعِبًا مِّنَ الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ مِن قَبْلِكُمْ وَالْكُفَّارَ أَوْلِيَاء وَاتَّقُواْ اللّهَ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ {57}

ऐ ईमानदारों जिन लोगों (यहूद व नसारा) को तुम से पहले किताबे (ख़ुदा) (तौरेत, इन्जील) दी जा चुकी है उनमें से जिन लोगों ने तुम्हारे दीन को हॅसी खेल बना रखा है उनको और कुफ़्फ़ार को अपना सरपरस्त न बनाओ और अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो ख़ुदा ही से डरते रहो (57)

ला युहिब्बुल्लाह

وَإِذَا نَادَيْتُمْ إِلَى الصَّلاَةِ اتَّخَذُوهَا هُزُوًا وَلَعِبًا ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لاَّ يَعْقِلُونَ {58}

और (उनकी शरारत यहाँ तक पहँची) कि जब तुम (अज़ान देकर) नमाज़ के वास्ते (लोगों को) बुलाते हो ये लोग नमाज़ को हॅसी खेल बनाते हैं ये इस वजह से कि (लोग बिल्कुल बे अक़्ल हैं) और कुछ नहीं समझते (58)

ला युहिब्बुल्लाह

قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ هَلْ تَنقِمُونَ مِنَّا إِلاَّ أَنْ آمَنَّا بِاللّهِ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْنَا وَمَا أُنزِلَ مِن قَبْلُ وَأَنَّ أَكْثَرَكُمْ فَاسِقُونَ {59}

(ऐ रसूल एहले किताब से कहो कि) आखि़र तुम हमसे इसके सिवा और क्या ऐब लगा सकते हो कि हम ख़ुदा पर और जो (किताब) हमारे पास भेजी गयी है और जो हमसे पहले भेजी गयी ईमान लाए हैं और ये तुममें के अक्सर बदकार हैं (59)

ला युहिब्बुल्लाह

قُلْ هَلْ أُنَبِّئُكُم بِشَرٍّ مِّن ذَلِكَ مَثُوبَةً عِندَ اللّهِ مَن لَّعَنَهُ اللّهُ وَغَضِبَ عَلَيْهِ وَجَعَلَ مِنْهُمُ الْقِرَدَةَ وَالْخَنَازِيرَ وَعَبَدَ الطَّاغُوتَ أُوْلَـئِكَ شَرٌّ مَّكَاناً وَأَضَلُّ عَن سَوَاء السَّبِيلِ {60}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तुम्हें ख़ुदा के नज़दीक सज़ा में इससे कहीं बदतर ऐब बता दॅू (अच्छा लो सुनो) जिसपर ख़ुदा ने लानत की हो और उस पर ग़ज़ब ढाया हो और उनमें से किसी को (मसख़ करके) बन्दर और (किसी को) सूअर बना दिया हो और (ख़ुदा को छोड़कर) शैतान की परस्तिश की हो बस ये लोग दरजे में कहीं बदतर और राहे रास्त से भटक के सबसे ज़्यादा दूर जा पहँचे हैं (60)

ला युहिब्बुल्लाह

وَإِذَا جَآؤُوكُمْ قَالُوَاْ آمَنَّا وَقَد دَّخَلُواْ بِالْكُفْرِ وَهُمْ قَدْ خَرَجُواْ بِهِ وَاللّهُ أَعْلَمُ بِمَا كَانُواْ يَكْتُمُونَ {61}

और (मुसलमानों) जब ये लोग तुम्हारे पास आ जाते हैं तो कहते हैं कि हम तो ईमान लाए हैं हालाँकि वह कुफ़्र ही को साथ लेकर आए और फिर निकले भी तो साथ लिए हुए और जो निफ़ाक़ वह छुपाए हुए थे ख़ुदा उसे ख़ूब जानता है (61)

ला युहिब्बुल्लाह

وَتَرَى كَثِيراً مِّنْهُمْ يُسَارِعُونَ فِي الإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ وَأَكْلِهِمُ السُّحْتَ لَبِئْسَ مَا كَانُواْ يَعْمَلُونَ {62}

(ऐ रसूल) तुम उनमें से बहुतेरों को देखोगे कि गुनाह और सरकशी और हरामख़ोरी की तरफ़ दौड़ पड़ते हैं जो काम ये लोग करते थे वह यक़ीनन बहुत बुरा है (62)

ला युहिब्बुल्लाह

لَوْلاَ يَنْهَاهُمُ الرَّبَّانِيُّونَ وَالأَحْبَارُ عَن قَوْلِهِمُ الإِثْمَ وَأَكْلِهِمُ السُّحْتَ لَبِئْسَ مَا كَانُواْ يَصْنَعُونَ {63}

उनको अल्लाह वाले और उलेमा झूठ बोलने और हरामख़ोरी से क्यों नहीं रोकते जो (दरगुज़र) ये लोग करते हैं यक़ीनन बहुत ही बुरी है (63)

ला युहिब्बुल्लाह

وَقَالَتِ الْيَهُودُ يَدُ اللّهِ مَغْلُولَةٌ غُلَّتْ أَيْدِيهِمْ وَلُعِنُواْ بِمَا قَالُواْ بَلْ يَدَاهُ مَبْسُوطَتَانِ يُنفِقُ كَيْفَ يَشَاء وَلَيَزِيدَنَّ كَثِيراً مِّنْهُم مَّا أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ طُغْيَانًا وَكُفْرًا وَأَلْقَيْنَا بَيْنَهُمُ الْعَدَاوَةَ وَالْبَغْضَاء إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ كُلَّمَا أَوْقَدُواْ نَارًا لِّلْحَرْبِ أَطْفَأَهَا اللّهُ وَيَسْعَوْنَ فِي الأَرْضِ فَسَادًا وَاللّهُ لاَ يُحِبُّ الْمُفْسِدِينَ {64}

और यहूदी कहने लगे कि ख़ुदा का हाथ बॅधा हुआ है (बुख़ील हो गया) उन्हीं के हाथ बांध दिए जाए और उनके (इस) कहने पर (ख़ुदा की) फिटकार बरसे (ख़ुदा का हाथ बॅधने क्यों लगा) बल्कि उसके दोनों हाथ कुशादा हैं जिस तरह चाहता है ख़र्च करता है और जो (किताब) तुम्हारे पास नाजि़ल की गयी है (उनका शक व हसद) उनमें से बहुतेरों को कुफ़्र व सरकशी को और बढ़ा देगा और (गोया) हमने ख़ुद उनके आपस में रोज़े क़यामत तक अदावत और कीने की बुनियाद डाल दी जब ये लोग लड़ाई की आग भड़काते हैं तो ख़ुदा उसको बुझा देता है और रूए ज़मीन में फ़साद फैलाने के लिए दौड़ते फिरते हैं और ख़ुदा फ़सादियों को दोस्त नहीं रखता (64)

ला युहिब्बुल्लाह

وَلَوْ أَنَّ أَهْلَ الْكِتَابِ آمَنُواْ وَاتَّقَوْاْ لَكَفَّرْنَا عَنْهُمْ سَيِّئَاتِهِمْ وَلأدْخَلْنَاهُمْ جَنَّاتِ النَّعِيمِ {65}

और अगर एहले किताब ईमान लाते और (हमसे) डरते तो हम ज़रूर उनके गुनाहों से दरगुज़र करते और उनको नेअमत व आराम (बेहिशत के बाग़ों में) पहँचा देते (65)

ला युहिब्बुल्लाह

وَلَوْ أَنَّهُمْ أَقَامُواْ التَّوْرَاةَ وَالإِنجِيلَ وَمَا أُنزِلَ إِلَيهِم مِّن رَّبِّهِمْ لأكَلُواْ مِن فَوْقِهِمْ وَمِن تَحْتِ أَرْجُلِهِم مِّنْهُمْ أُمَّةٌ مُّقْتَصِدَةٌ وَكَثِيرٌ مِّنْهُمْ سَاء مَا يَعْمَلُونَ {66}

और अगर यह लोग तौरैत और इन्जील और (सहीफ़े) उनके पास उनके परवरदिगार की तरफ़ से नाजि़ल किये गए थे (उनके एहकाम को) क़ायम रखते तो ज़रूर (उनके) ऊपर से भी (रिज़क़ बरस पड़ता) और पॉवों के नीचे से भी उबल आता और (ये ख़ूब चैन से) खाते उनमें से कुछ लोग तो एतदाल पर हैं (मगर) उनमें से बहुतेरे जो कुछ करते हैं बुरा ही करते हैं (66)

ला युहिब्बुल्लाह

يَا أَيُّهَا الرَّسُولُ بَلِّغْ مَا أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ وَإِن لَّمْ تَفْعَلْ فَمَا بَلَّغْتَ رِسَالَتَهُ وَاللّهُ يَعْصِمُكَ مِنَ النَّاسِ إِنَّ اللّهَ لاَ يَهْدِي الْقَوْمَ الْكَافِرِينَ {67}

ऐ रसूल जो हुक्म तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम पर नाजि़ल किया गया है पहँचा दो और अगर तुमने ऐसा न किया तो (समझ लो कि) तुमने उसका कोई पैग़ाम ही नहीं पहँचाया और (तुम डरो नहीं) ख़ुदा तुमको लोगों के शर से महफ़ूज़ रखेगा ख़ुदा हरगिज़ काफि़रों की क़ौम को मंजि़ले मक़सूद तक नहीं पहँचाता (67)

ला युहिब्बुल्लाह

قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لَسْتُمْ عَلَى شَيْءٍ حَتَّىَ تُقِيمُواْ التَّوْرَاةَ وَالإِنجِيلَ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْكُم مِّن رَّبِّكُمْ وَلَيَزِيدَنَّ كَثِيراً مِّنْهُم مَّا أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ طُغْيَانًا وَكُفْرًا فَلاَ تَأْسَ عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ {68}

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ एहले किताब जब तक तुम तौरेत और इन्जील और जो (सहीफ़े) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम पर नाजि़ल हुए हैं उनके (एहकाम) को क़ायम न रखोगे उस वक़्त तक तुम्हारा मज़बह कुछ भी नहीं और (ऐ रसूल) जो (किताब) तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से भेजी गयी है (उसका) रश्क (हसद) उनमें से बहुतेरों की सरकशी व कुफ़्र को और बढ़ा देगा तुम काफि़रों के गिरोह पर अफ़सोस न करना (68)

ला युहिब्बुल्लाह

إِنَّ الَّذِينَ آمَنُواْ وَالَّذِينَ هَادُواْ وَالصَّابِؤُونَ وَالنَّصَارَى مَنْ آمَنَ بِاللّهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ وعَمِلَ صَالِحًا فَلاَ خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلاَ هُمْ يَحْزَنُونَ {69}

इसमें तो शक ही नहीं कि मुसलमान हो या यहूदी हकीमाना ख़्याल के पाबन्द हों ख़्वाह नसरानी (गरज़ कुछ भी हो) जो ख़ुदा और रोज़े क़यामत पर ईमान लाएगा और अच्छे (अच्छे) काम करेगा उन पर अलबत्ता न तो कोई ख़ौफ़ होगा न वह लोग आज़ुर्दा ख़ातिर होंगे (69)

ला युहिब्बुल्लाह

لَقَدْ أَخَذْنَا مِيثَاقَ بَنِي إِسْرَائِيلَ وَأَرْسَلْنَا إِلَيْهِمْ رُسُلاً كُلَّمَا جَاءهُمْ رَسُولٌ بِمَا لاَ تَهْوَى أَنْفُسُهُمْ فَرِيقًا كَذَّبُواْ وَفَرِيقًا يَقْتُلُونَ {70}

हमने बनी इसराईल से एहद व पैमान ले लिया था और उनके पास बहुत रसूल भी भेजे थे (इस पर भी) जब उनके पास कोई रसूल उनकी मर्ज़ी के खि़लाफ़ हुक्म लेकर आया तो इन (कम्बख़्त) लोगों ने किसी को झुठला दिया और किसी को क़त्ल ही कर डाला (70)

ला युहिब्बुल्लाह

وَحَسِبُواْ أَلاَّ تَكُونَ فِتْنَةٌ فَعَمُواْ وَصَمُّواْ ثُمَّ تَابَ اللّهُ عَلَيْهِمْ ثُمَّ عَمُواْ وَصَمُّواْ كَثِيرٌ مِّنْهُمْ وَاللّهُ بَصِيرٌ بِمَا يَعْمَلُونَ {71}

और समझ लिया कि (इसमें हमारे लिए) कोई ख़राबी न होगी बस (गोया) वह लोग (अम्र हक़ से) अंधे और बहरे बन गए (मगर बावजूद इसक) जब इन लोगों ने तौबा की तो फिर ख़ुदा ने उनकी तौबा क़ुबूल कर ली (मगर) फिर (इस पर भी) उनमें से बहुतेरे अंधे और बहरे बन गए और जो कुछ ये लोग कर रहे हैं अल्लाह तो देखता है (71)

ला युहिब्बुल्लाह

لَقَدْ كَفَرَ الَّذِينَ قَالُواْ إِنَّ اللّهَ هُوَ الْمَسِيحُ ابْنُ مَرْيَمَ وَقَالَ الْمَسِيحُ يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ اعْبُدُواْ اللّهَ رَبِّي وَرَبَّكُمْ إِنَّهُ مَن يُشْرِكْ بِاللّهِ فَقَدْ حَرَّمَ اللّهُ عَلَيهِ الْجَنَّةَ وَمَأْوَاهُ النَّارُ وَمَا لِلظَّالِمِينَ مِنْ أَنصَارٍ {72}

जो लोग उसके क़ायल हैं कि मरियम के बेटे ईसा मसीह ख़ुदा हैं वह सब काफि़र हैं हालाँकि मसीह ने ख़ुद यॅू कह दिया था कि ऐ बनी इसराईल सिर्फ उसी ख़ुदा की इबादत करो जो हमारा और तुम्हारा पालने वाला है क्योंकि (याद रखो) जिसने ख़ुदा का शरीक बनाया उस पर ख़ुदा ने बेहिश्त को हराम कर दिया है और उसका ठिकाना जहन्नुम है और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं (72)

ला युहिब्बुल्लाह

لَّقَدْ كَفَرَ الَّذِينَ قَالُواْ إِنَّ اللّهَ ثَالِثُ ثَلاَثَةٍ وَمَا مِنْ إِلَـهٍ إِلاَّ إِلَـهٌ وَاحِدٌ وَإِن لَّمْ يَنتَهُواْ عَمَّا يَقُولُونَ لَيَمَسَّنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ مِنْهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ {73}

जो लोग इसके क़ायल हैं कि ख़ुदा तीन में का (तीसरा) है वह यक़ीनन काफि़र हो गए (याद रखो कि) ख़ुदाए यक्ता के सिवा कोई माबूद नहीं और (ख़ुदा के बारे में) ये लोग जो कुछ बका करते हैं अगर उससे बाज़ न आए तो (समझ रखो कि) जो लोग उसमें से (काफि़र के) काफि़र रह गए उन पर ज़रूर दर्दनाक अज़ाब नाजि़ल होगा (73)

ला युहिब्बुल्लाह

أَفَلاَ يَتُوبُونَ إِلَى اللّهِ وَيَسْتَغْفِرُونَهُ وَاللّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ {74}

तो ये लोग ख़ुदा की बारगाह में तौबा क्यों नहीं करते और अपने (क़सूरों की) माफ़ी क्यों नहीं मागते हालाँकि ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (74)

ला युहिब्बुल्लाह

مَّا الْمَسِيحُ ابْنُ مَرْيَمَ إِلاَّ رَسُولٌ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهِ الرُّسُلُ وَأُمُّهُ صِدِّيقَةٌ كَانَا يَأْكُلاَنِ الطَّعَامَ انظُرْ كَيْفَ نُبَيِّنُ لَهُمُ الآيَاتِ ثُمَّ انظُرْ أَنَّى يُؤْفَكُونَ {75}

मरियम के बेटे मसीह तो बस एक रसूल हैं और उनके क़ब्ल (और भी) बहुतेरे रसूल गुज़र चुके हैं और उनकी माँ भी (ख़ुदा की) एक सच्ची बन्दी थी (और आदमियों की तरह) ये दोनों (के दोनों भी) खाना खाते थे (ऐ रसूल) ग़ौर तो करो हम अपने एहकाम इनसे कैसा साफ़ साफ़ बयान करते हैं (75)

ला युहिब्बुल्लाह

قُلْ أَتَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللّهِ مَا لاَ يَمْلِكُ لَكُمْ ضَرًّا وَلاَ نَفْعًا وَاللّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ {76}

फिर देखो तो कि (उसपर भी उलटे) ये लोग कहाँ भटके जा रहे हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या तुम ख़ुदा (जैसे क़ादिर व तवाना) को छोड़कर (ऐसी ज़लील) चीज़ की इबादत करते हो जिसको न तो नुक़सान ही इख़्तेयार है और न नफ़े का और ख़ुदा तो (सबकी) सुनता (और सब कुछ) जानता है (76)

ला युहिब्बुल्लाह

قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لاَ تَغْلُواْ فِي دِينِكُمْ غَيْرَ الْحَقِّ وَلاَ تَتَّبِعُواْ أَهْوَاء قَوْمٍ قَدْ ضَلُّواْ مِن قَبْلُ وَأَضَلُّواْ كَثِيراً وَضَلُّواْ عَن سَوَاء السَّبِيلِ {77}

ऐ रसूल तुम कह दो कि ऐ एहले किताब तुम अपने दीन में नाहक़ ज़्यादती न करो और न उन लोगों (अपने बुज़ुगों) की नफ़सियानी ख़्वाहिशों पर चलो जो पहले ख़ुद ही गुमराह हो चुके और (अपने साथ और भी) बहुतेरों को गुमराह कर छोड़ा और राहे रास्त से (दूर) भटक गए (77)

ला युहिब्बुल्लाह

لُعِنَ الَّذِينَ كَفَرُواْ مِن بَنِي إِسْرَائِيلَ عَلَى لِسَانِ دَاوُودَ وَعِيسَى ابْنِ مَرْيَمَ ذَلِكَ بِمَا عَصَوا وَّكَانُواْ يَعْتَدُونَ {78}

बनी इसराईल में से जो लोग काफि़र थे उन पर दाऊद और मरियम के बेटे ईसा की ज़बानी लानत की गयी ये (लानत उन पर पड़ी तो सिर्फ) इस वजह से कि (एक तो) उन लोगों ने नाफ़रमानी की और (फिर हर मामले में) हद से बढ़ जाते थे (78)

ला युहिब्बुल्लाह

كَانُواْ لاَ يَتَنَاهَوْنَ عَن مُّنكَرٍ فَعَلُوهُ لَبِئْسَ مَا كَانُواْ يَفْعَلُونَ {79}

और किसी बुरे काम से जिसको उन लोगों ने किया बाज़ न आते थे (बल्कि उस पर बावजूद नसीहत अड़े रहते) जो काम ये लोग करते थे क्या ही बुरा था (79)

ला युहिब्बुल्लाह

تَرَى كَثِيراً مِّنْهُمْ يَتَوَلَّوْنَ الَّذِينَ كَفَرُواْ لَبِئْسَ مَا قَدَّمَتْ لَهُمْ أَنفُسُهُمْ أَن سَخِطَ اللّهُ عَلَيْهِمْ وَفِي الْعَذَابِ هُمْ خَالِدُونَ {80}

(ऐ रसूल) तुम उन (यहूदियों) में से बहुतेरों को देखोगे कि कुफ़्फ़ार से दोस्ती रखते हैं जो सामान पहले से उन लोगों ने ख़ुद अपने वास्ते दुरूस्त किया है किस क़दर बुरा है (जिसका नतीजा ये है) कि (दुनिया में भी) ख़ुदा उन पर गज़बनाक हुआ और (आख़ेरत में भी) हमेशा अज़ाब ही में रहेंगे (80)

ला युहिब्बुल्लाह

وَلَوْ كَانُوا يُؤْمِنُونَ بِالله والنَّبِيِّ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْهِ مَا اتَّخَذُوهُمْ أَوْلِيَاء وَلَـكِنَّ كَثِيراً مِّنْهُمْ فَاسِقُونَ {81}

और अगर ये लोग ख़ुदा और रसूल पर और जो कुछ उनपर नाजि़ल किया गया है इमान रखते हैं तो हरगिज़ (उनको अपना) दोस्त न बनाते मगर उनमें के बहुतेरे तो बदचलन हैं (81)

ला युहिब्बुल्लाह

لَتَجِدَنَّ أَشَدَّ النَّاسِ عَدَاوَةً لِّلَّذِينَ آمَنُواْ الْيَهُودَ وَالَّذِينَ أَشْرَكُواْ وَلَتَجِدَنَّ أَقْرَبَهُمْ مَّوَدَّةً لِّلَّذِينَ آمَنُواْ الَّذِينَ قَالُوَاْ إِنَّا نَصَارَى ذَلِكَ بِأَنَّ مِنْهُمْ قِسِّيسِينَ وَرُهْبَانًا وَأَنَّهُمْ لاَ يَسْتَكْبِرُونَ {82}

(ऐ रसूल) ईमान लाने वालों का दुशमन सबसे बढ़के यहूदियों और मुशरिकों को पाओगे और ईमानदारों का दोस्ती में सबसे बढ़के क़रीब उन लोगों को पाओगे जो अपने को नसारा कहते हैं क्योंकि इन (नसारा) में से यक़ीनी बहुत से आमिल और आबिद हैं और इस सबब से (भी) कि ये लोग हरगिज़ शेख़ी नहीं करते (82)